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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन
[खण्ड :२ संघनायक आचार्य भद्रबाहु श्वेताम्बरा तथा दिगम्बर दोनों परम्पराओं द्वारा स्वीकृत हैं। क्रमशः होने वाले पांच पट्टधरों में एकमात्र यही पट्टधर हैं, जो श्वेताम्बर तथा दिगम्बर-दोनों पट्टानुक्रमों में एक हैं। इनके संघनायकत्व के काल के सम्बन्ध में दोनों परम्पराओं में ऐकमत्य नहीं है। श्वेताम्बर आचार्य भद्रबाहु का आधिपत्य-काल चौदह वर्ष का मानते हैं, जब कि दिगम्बरों के अनुसार यह काल उनतीस वर्ष का है। श्वेताम्बर मान्यतानुसार आयं जम्बू के मोक्षगामी होने से लेकर आचार्य भद्रबाहु के स्वगंगामी होने तक का समय (प्रभव ११ वर्ष + शय्यम्भव २३ वर्ष + यशोभद्र ५० वर्ष + सम्भूतिविजय ८ वर्ष तथा भद्रबाहुँ १४ वर्ष = १०६ वर्ष ) एक सौ छः वर्ष का होता है। महाधीर-निर्वाण से जम्बू-निर्वाण तक का समय चौंसठ वर्ष का है ही। इस प्रकार (६४+१०६-१७०) भगवान महावीर से आचार्य भद्रबाहु तक का समय १७० वर्ष का होता है।
दिगम्बर-परम्परानुसार आयं जम्बू के पश्चात् आचार्य भद्रबाहु तक - विष्णु या नन्दी १४ वर्ष + नन्दिमित्र १६ वर्ष + अपराजित २२ वर्ष' + गोवद्ध'न १९ वर्ष + भद्रबाहु २६ वर्ष = कुल समय १०० वर्ष का होता है। ये पांचों आचार्य श्रुत केवलो माने जाते हैं। इनके बाद भरत क्षेत्र में श्रुतकेवली होना वे स्वीकार नहीं करते । । महावीर-निर्वाण से जम्बू-निर्वाण तक का समय ६२ वर्ष' का है। इस प्रकार (१२+१००=१६२ ) महावीर-निर्वाण से आचार्य भद्रबाहु तक का समय १६२ वर्ष का होता है। आचार्य भद्रबाहु का स्वर्गवास
आचार्य भदबाहु के बारे में दिगम्बर लेखकों द्वारा उनके स्वर्गवास के विषय में भी चर्चा को गयी है। श्वेताम्बर-परम्परा में उनके स्वगंधास के सम्बन्ध में जो संकेत प्राप्त होते हैं, वे उनसे भिन्न हैं। हिमवत् थेरावली में इस विषय में जो उल्लेख है, उसका सारांश इस प्रकार १. गंदो य गंदिमित्तो विदिओ अपराजिदो तइज्जोय ।
गोवद्धणो चउत्थो पंचमओ भद्दबाहु ति ॥ पंच इमे पुरिसवरा उदसपुवो जगम्मि विक्खादा । बारस अंगधरा तित्थे सिरि वडढमाणस्स ॥ पंचाणं मेलियाणं कालपमाणं हवेदि वाससदं । वीवम्मि य पंचमए भरहे सुदकेवलो णत्थि ॥
-तिलोयपण्णती, १४८२-८४ २. बासट्ठी वासाणिं गोदम पहुदोण गाणवताणं । धम्मपयट्टणकाले परिमाणं पिंडरूवेणं॥
-तिलोयपण्णत्ती, १४७८
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