________________
३६४ ]
मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण : २ विशेषावश्यक भाष्य के वृत्तिकार मलघारी हेमचन्द्र ने २५११ वी गाथा की व्याख्या में प्रसंगोपात्ततया यह सूचित किया है कि दुर्बलिका पुष्यमित्र के अतिरिक्त आर्य रक्षित के तीन मुख्य शिष्य और थे-विन्ध्य, फल्गुरक्षित और गोष्ठामाहिल । आचार्य रक्षित ने दुर्बलिका पुष्यमित्र को आदेश दिया, वे विन्ध्य को पूर्वो की याचना दें। दुर्बलिका पुष्यमित्र पाचना देने लगे। पर, पुनरावृत्ति न कर पाने के कारण नवम पूर्व की विस्मृति होने लगी। आचार्य रक्षित को उस समय लगा, ऐसे बुद्धिशाली व्यक्ति को भी यदि सूत्रार्थ विस्मृत होने लगे हैं, तब भविष्य में और कठिनाई उत्पन्न हो जायेगी। उन्होंने इस विवशता से प्रेरित हो कर पृथक्-पृथक् अनुयोगों की व्यवस्था की। आगम : अनुयोग : सम्बन्ध अनुयोगों के आधार पर सूत्रों का विभाजन निम्नांकित प्रकार से हुआ 1 : १. प्रथम-चरणकरणानुयोग में ग्यारह कालिक श्रुत-ग्यारह अंग, महाकल्प श्रुत तथा
छेद सूत्र । २. द्वितीय-धर्मकथानुयोग में ऋषिभाषित । ३. तृतीय-गणितानुयोग में सूर्यप्रज्ञप्ति आदि ।
४. चतुर्थ-द्रव्यानुयोग में दृष्टिवाद । दिगम्बर-आम्नाय में अनुयोग
दिगम्बर-परम्परा में भी चार अनुयोग माने गये हैं। श्वेताम्बरों से उनके नाम कुछ भिन्न हैं। वे इस प्रकार हैं : १. प्रथमानुयोग-बोधि तथा समाधि के निधान-तदुपजीवी प्रचुर सामग्री से युक्त
पुराण, चरित तथा कथाए-आख्यान-प्रधान ग्रन्थ । . २. करणानुयोग-लोक-अलोक-विभक्ति, गति-चतुष्क, ज्योतिष, गणित आदि से
सम्बद्ध ग्रन्थ ।
३. चरणानुयोग-चारित्र्य की उत्पत्ति, वृद्धि तथा रक्षण से सम्बद्ध नियमों व उप
१. कालियसुयं च इसिमासियाई तइआ य सूरपन्नती।
सव्वो य दिट्ठिवाओ चउत्यो होइ अणुओगो॥ जं च महाकप्पसुयं जाणि अ सेसाणि छेयसुत्ताणि । चरणकरणाणुओगो ति कालियत्थे उवगयाणि ॥
-विशेषावश्यक भाष्य, २२९४-९५
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org