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भाषा और साहित्य] आर्ष ( अर्द्धमागधी ) प्राकृत और आगम वाङमय [३५. ८. अहीनाक्षर-उच्चार्यमाण पाठ में किसी भी वर्ण को हीन अर्थात् गायब या अस्पष्ट न
करना । पाठ स्पष्ट होना चाहिए। ६. अन्त्यक्षर-अचार्यमाण पाठ में जितने अक्षर हों, ठीक वे ही उच्चरित हों, कोई
अतिरिक्त या अधिक न मिल जाए । १०. अध्याविद्धाक्षर-अ+वि+आ+विद्ध के योग से अध्याविद्ध शब्द बना है। विद्ध का
अर्थ बिंधा हुआ है और उसके पहले 'आ' उपसर्ग लग जाने से उसका अर्थ सब ओर से या भली-भांति बिंधा हुआ हो जाता है। 'आ' से पूर्व लगा 'वि' उपसर्ग बिंध जाने के अर्थ में और विशेषता ला देता है। अक्षर के ध्याविद्ध होने का अर्थ है, उसका अपहत होना, पीड़ित होना । उपहनन या पीड़न का आशय अक्षरों के विपरीत या उल्टे पठन से है।
चैसा नहीं होना चाहिए। ११. अस्खलित- पाठ का यथाप्रवाह उच्चारण होना चाहिए। प्रवाह में एक लय
( Rhythm ) होती है, जिससे पाठ द्वारा व्यज्यमान आशय सुष्ठुतया अवस्थित रहता है; अतएव पाठ में स्खलन नहीं होना चाहिए। अस्खलित रूप में किये जाने वाले पाठ की अर्थ-ज्ञापकता वैशद्य लिये
रहती है। १२. अमिलित - अजागरूकता या असावधानी से किये जाने वाले पाठ में यह आशंकित
रहता है कि दूसरे अक्षर कदाचित् पाठ के अक्षरों के साथ मिल जाए। घेसा होने से पाठोच्चारण की शुद्धता व्याहत हो जाती है। वैसा नहीं
होना चाहिए। १३. अव्यत्यानेडित-अ+वि+अति+आमेडित का अर्थ शब्द या ध्वनि की आवृत्ति
है। इस शब्द का मूल रूप 'अवच्चामेलिय' है। 'अ' उपसर्ग निषेधा
थंक 'अ' के बिना इसका रूप 'वच्चामेलिय' है। पाइअसद्दमहण्णवो में ___ 'बच्चामेलिय' और 'विच्चामेलिय' दोनों रूप दिये हैं। दोनों का एक
ही अर्थ है। वहां भिन्न-भिन्न अंशों से मिश्रित 'अस्थान में ही छिन होकर चिर प्रथित' तथा 'तोड़ कर सांधा हुआ' अर्थ किया गया है। सूत्र
Monier M.
१.(क) संस्कृत-हिन्बो कोश, आप्टे, पृ० ११५ (ख) Reduplication : Sanskrit-English Dictionary: Sir
Williams, P. 147 २. पाइअसद्दमहण्णवो, पृ० ७७६
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