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मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन पर्वो के आधार पर रचना . दशवकालिक की रचना के सम्बन्ध में ऐसा कहा जाता है कि यह पूर्वो पर आधृत है। उदाहरणार्थ, वशवकालिक का धर्मप्रज्ञप्ति नामक अध्ययन आत्म-प्रवाद पूर्व के, पिण्डेषणा नामक अध्ययन कर्म-प्रवाद पूर्व के, पाक्य-शुद्धि नामक अध्ययन सत्य-प्रवाद पूर्व के तथा शेष अध्ययन प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय वस्तु के आधार पर प्रणीत हुए।
कल्पसूत्र-स्थविराषली में आर्य शय्यम्भव के लिए केवल इतना-सा उल्लेख है : “कात्यायनगोत्रीय स्थघिय मार्य प्रभव के अन्तेवासी आर्य शय्यम्भव थे। वे वत्सगोत्रीय थे और मनक के पिता थे।" आचार्य-काल
भाचार्य शय्यम्भव तेईस वर्ष तक संघनायक ( आचार्य ) रहे। हिमवत् थेरापली में उनके स्वर्गवास का समय १८ वीर-निर्वाणान्द लिखा है, जो इससे संगत है। दिगम्बरमान्यता के अनुसार विष्णु या नन्दी के पट्टधर अर्थात् जम्बू के पश्चात् दूसरे पट्टधस नन्दिमित्र थे, जिनका संघ-नायक-काल सोलह वर्ष का माना जाता है।
आर्य यशोभद्र भायं यशोभद्र मार्य भय्यम्भव के अन्तेषासी थे। कल्पसूत्र स्थविरावली में उनके परिचय में लिखा है : "मनक के पिता, वत्सगोत्रीय स्थधिर शय्यम्भव के अन्तेवासी मा स्थविर यशोभद्र थे। वे तुगियायन गोत्रोत्पन्न थे।"3 आयं शय्यम्भव के पश्चात् श्रुत-संघाहन तथा संघ-संचालन का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व आयं पशोभद्र पर आया, जिसका उन्होंने अत्यन्त सफलतापूर्वक निर्वाह किया। वे चतुर्दश पूर्वधर थे। नन्दराजाओं को प्रतिबोध
कहा जाता है, आर्य यशोभद्र ने नन्दाजाओं को प्रतिबोध दिया। फलतः उन्होंने आहेत धम स्वीकार कर लिया।
हिमवत् थेसावली में उल्लेख है कि आर्य यशोभद्र के समय आठवा नन्द मगध का षा था। वह बहुत लोभी था। उसने विरोचन नामक ब्राह्मण-मन्त्री की प्रेरणा से फलिंग देश १. जैन आगम, पं० दलसुख मालपणिया, पृ० १७ २ थेरस्स गं अज्जप्पमवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अज्जसेज्जभवे अंतेवासीमणगपिता बच्छसगोत्ते। ३. थेरस्स णं अज्ज सेज्जमवस्स मणपिउणो वच्छसगोत्तस्स अज्ज जसम थेरे अंतेवासी
तुंगीयायणस गोत्त।
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