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आर्ष (अर्द्धमागधी ) प्राकृत और आगम वाङमय [ ३७७
महान् प्रभावक आचार्य भद्रबाहु
परम्परया ऐसा माना जाता है कि आचार्य भद्रबाहु का दक्षिण में प्रतिष्ठान पुरा (पेडन) में एक ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ था । उन्होंने अपनी वंश-मर्यादा के अनुसार अनेक विद्याओं का अध्ययन किया । उनके पारगामी बने । कहा जाता है, उनकी आर्थिक स्थिति कष्टपूर्ण थी । कोई ऐसा प्रसंग बना हो, आहंत्-दर्शन के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा तथा उन्होंने श्रमण-दीक्षा स्वीकार कर ली ।
भाषा और साहित्य ]
वराहमिहिर से सम्बन्ध
ऐसी भी जन श्रुति प्रचलित है, महान् ज्योतिर्विद् वराहमिहिर आचार्य भद्रबाहु के अनुज थे । पर वराहमिहिरा के प्राप्त साहित्य के आधार पर उनका काल विक्रम की षष्ठ शताब्दी निश्चित होता है | आचार्य भद्रबाहु का समय विक्रम के बहुत पूर्ववर्ती है; अत: भद्रबाहु तथा वराहमिहिर का जो सम्बन्ध कल्पित किया जाता है, वह असंगत है ।
छेद-सूत्रों के रचनाकार
श्रुत वाङमय में निशीथ, महानिशोथ, व्यवहार, दशाशु तस्कन्ध, कल्प (वृहत्कल्प) तथा पंचकल्प (अथवा जीतकल्प) छेद सूत्रों के नाम से प्रसिद्ध हैं | वशा तस्कन्ध में भारत का इतिहास क्रमबद्ध व्यवस्थित रूप में प्राप्त होता है । चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्मानुयायी था या वह वैदिक धर्म को मानता था, इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है ।
परिशिष्ट पर्व
परिशिष्ट पर्व में उल्लेख किया गया है कि महामात्य चाणक्य जैन था । वह चन्द्रगुप्त को जन बनाने के लिये प्रयत्नशील था । एक बार उसने दो परिषदों में विभिन्न दार्शनिक परम्पराओं के साधुओं को समाहत किया। एक परिषद् में जैन श्रमण भी आमन्त्रित थे । चन्द्रगुप्त जैन श्रमणों से प्रभावित हुआ । उसने जंन धर्म स्वीकार भी कर लिया । प्रायः समस्त श्वेताम्बर, दिगम्बर जैन वाङमय में चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न प्रसिद्ध हैं, जिनमें भविष्य में धर्म-क्षेत्र में होने वाली हासोन्मुख स्थितियों का सूचन है ।
चन्द्रगुप्त की राज सभा में रहने वाले यूनान के राजदूत मेगस्थनीज़ ने जो उल्लेख किया है, उसके अनुसार चन्द्रगुप्त ने ब्राह्मणों के धर्म-सिद्धान्त के प्रतिरूप जैन श्रमणों के सिद्धान्त या धर्मोपदेश स्वीकार किये थे । सुप्रसिद्ध विद्वान् टामस के अनुसार केवल चन्द्रगुप्त ही नहीं, उसका पुत्र बिन्दुसार तथा पौत्र अशोक भी जैन था । टामस ने मुद्राराक्षस, तथा आइने अकबरी आदि ग्रन्थों द्वारा इसे समर्पित करने का प्रयत्न किया है।
राजतर गिणी बौद्ध धर्म
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