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भाषा और साहित्य] आर्ष ( अर्द्धमागधी ) प्राकृत और आगम वाङमय [३४६ विवाह सम्पन्न
शुभ दिवस में जम्बू कुमार के पीठी लगाई गयी। कन्याओं के भी अपने अपने घरों में पीठी लगी। आवश्यक विधि-विधान के अनन्तर कुमार जम्बू उसी प्रकार कन्याओं के घर गये, जैसे चन्द्र तारिकाओं के सन्निकट जाते हैं। कन्याओं के साथ वे इस प्रकार घर लौटे, मानो श्री, धृत्ति, कीर्ति और लक्ष्मी को साथ लिये आये हों।
सैकड़ों आनन्द तथा उल्लासपूर्ण विधि-विधानों द्वारा कुमार जम्बू को स्नान कराया गया तथा अनेकविधि आभरणों से उन्हें अलंकृत किया गया। नागर जनों द्वारा कुमार जम्बू का अभिनन्दन किया गया। इस अवसर पर श्रमण-ब्राह्मणों का आदर-सत्कार किया गया । सन्ध्या समय पारिवारिक जनों तथा नागरिकों को विशेष भोज दिया गया । कुमार जम्बू माता-पिता तथा नवोद्घाहिता वधुओं के साथ अपने वास गृह में आये। तस्करराज प्रभव : आगमन
उसी देश-काल में उन्हीं दिनों वहां प्रभव नामक एक प्रसिद्ध चोर था। वह विध्यराज का पुत्र था, जयपुर निवासी था। वह अनेक कलाओं का मम-वेत्ता था । विन्ध्यराज ने उस (प्रभव) के छोटे भाई अर्थात् अपने कनिष्ट पुत्र को राज्य दे दिया था। प्रभव ने इसे अपना अपमान माना । वह घर से निकल पड़ा। वह विन्ध्याचल की दुर्गम धाटियों में रहने लगा और चोरी द्वारा जीवन चलाने लगा। उसने सुना, कुमाय जम्बू अत्यधिक भवशाली हैं। उनके वैवाहिक समारोह में अनेक समृद्धिशाली व्यक्ति सम्मिलित हैं । वह चला । वह तालोद्घाटिनी विद्या जानता था। उसने उसके द्वारा कपाट खोल लिये । अनेक तस्कर-योद्धाओं के साथ यह कुमाष जम्बू के भवन में प्रविष्ट हुआ। वह अवस्वापिनी घिद्या भी जानता था । उसके द्वारा उसने लोगों को अवसुप्त कर दिया। सभी ऊघने लगे। तस्कर उनके आभूषण तथा घस्त्र उतारने लगे । कुमार जम्बू ने यह देखा । उसने असम्भ्रान्त-निर्भय भाष से तस्करदम्ब को कहा-अतिथियों को न छूए । जम्बू के कपनमात्र से लेष्य निर्मित ( मिट्टी से बने ) पक्षों की तरह वे तस्कर स्तम्भित तथा चेप्टा-शून्य हो गये। प्रभव ने देखा, कुमार जम्बू वधुओं सहित सुखासन पर बैठे हुए ऐसे लगते हैं, मानो तारिकाओं से घिरा शरपूर्णिमा का चन्द्र हो। जम्बू और प्रभव : सम्वाद
सापी तस्कर योद्धाओं को स्तम्भित तथा निश्चेष्ट देखकर तस्करराज प्रभव ने कुमार जम्बू से कहा-"म विन्ध्यराज का पुत्र प्रभव तस्कर हूं। आपके प्रति सहज ही मेरे मन में मैत्रि-भाव उद्भूत हो गपा है। मेरा अनुरोध है, आप, मुझे स्तम्भिनी तथा मोचनी नामक विद्याए सिखा दें, मैं आपको तालोद्घाटिनी एवं अवस्वापिनी विद्याए सिखला दूंगा।"
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