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भाषा और साहित्य ]
आये (मागधी प्राकृत और आगम वाङमय
आर्य स्थविर सुधर्मा जम्बू को सम्बोधन करते हुए कहने लगे
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जम्बू द्वारा पूछे गये प्रश्न पूछने की विधि आदि से यह प्रकट है कि वे आचार्य के प्रति कितने श्रद्धालु, भक्तिशील और विनयावनत थे । जिज्ञासु शिष्य किस प्रकार श्रद्धा, सम्मान और विनयपूर्वक अपनी जिज्ञासा गुरु के सम्मुख उपस्थित करे, प्रस्तुत प्रसंग में इसकी गौरवपूर्ण झलक है । आये जम्बू के हृदय में आये सुधर्मा के प्रति अप्रतिम श्रद्धा थी । आचार्य से उन्हें सत्य का आलोक प्राप्त होगा, उनका ऐसा दृढ़ विश्वास था । जायसड्डे विशेषण इसी आशय को व्यक्त करता है । उनका प्रश्न क्रम श्रद्धानुस्यूत हो आगे बढ़ता है । उन्हें जो विषय स्पष्ट करने हैं, उनके सम्बन्ध में उनमें अदग्र जिज्ञासा का भाव उभरता है, जिसे सूत्र में जायस सए पद द्वारा प्रकट किया गया है । यह पद वास्तव में तत्व सम्बन्धी आस्था के विषय में सन्देह का सूचक नहीं है । जम्बू अर्थ का विशेष विशदीकरण या सापष्ट्य चाहते हैं, अत्तएव जातसंसए पद व्यवहृत हुआ है ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती सूत्र ) में भगवान् महावीर से गणधर गौतम द्वारा पूछे गये प्रश्न के सन्दर्भ में उनके विशेषण के रूप में प्रयुक्त इसी ( जायसंसए) पद की व्याख्या करते हुए नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव सूरि लिखते हैं: “तथा जातः संशयो यस्य स जातसंशयः, संशयश्चानवधारितार्थ ज्ञानम्, स चैवं तस्य भगवतो जातः । भगवता हि महावीरेण 'चलमाणे चलिए' इत्यादौ सूत्रे चलन् अर्थश्चलितो निर्दिष्टः । तत्र स एव चलन् स एव चलित इत्युक्तः, ततश्चैकार्थविषयावेतौ निर्देशौ - चलन् इति च वर्तमानकालविषय:, चलित इति चातीतकालविषयः । अतो न संशयः – कथं नाम यः स्वार्थो वर्तमानः,
१. तेण कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स जेट्ठ अंतेवासी अज्जजंबू नामं अणगारे कासवगोत्तणं जाब सत्तुस्से हे अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसांभते उड्ढजाणू अहौसिरे ज्hाणकोट्ठगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं से अज्ज जंबू नामे जायसड्ढे जायसंसए जायको उहले संजाय सड्ढे संजायसंसए संजायको उहले उत्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उष्पन्नको उहले समुप्पन्न सड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नको उहले उट्ठाए, उद्वित्ता जेमेव अज्ज हम्मे थेरे तेणामेव उवागच्छ इ, उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मे थेरे तिषखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ बंदs नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता अज्ज सुहम्मट्स थेरस्स तच्चासन्ने नाइ दूरे सुस्सुसमाणे नमसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासमाणे एवं एवं वयासी - जइ णं भंते ! समणोणं भगवया महावीरेणं - पंचमस्त अंगस्स अयमट्ट पन्नत्त, छटुस्स णं भंते! नायाधम्मकहाणं के अट्ठे पन्नो ? जंबू त्ति अज्जसुहम्मे थेरे अज्जजंबून माणं अणगारं एवं बयासी ।
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-नायाघम्मकहाओ, अध्ययन १.६
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