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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
भोग्य वस्तुएं ; यह सब होते हुए भौतिक वासनाओं, एषणाओं और अभिसिद्धियों का अस्वीकार, अध्यात्म-अर्पित नितान्त निरपवाद साधक दशा का स्वीकार - निःसन्देह एक असाधारण एवं आश्चयंकर घटना थी ।
जम्बू के इस परम पुनीत अत्यन्त विरल, साहस- संवलित, आत्म-साधना की अमिट लो से. उद्दीप्त व्यक्तित्व अनेक कवियों, लेखकों और कथाकारों को आकृष्ट और प्रेरित किया । फलतः आर्य जम्बू के जीवन पर अनेक भाषाओं व शैलियों में विपुल साहित्य सर्जित हुआ । उनके जीवन से सम्बद्ध दूसरी कोटि का साहित्य वह है, जहां अन्य महापुरुषों के चरितों के साथ उनका चरित्र भी समाविष्ट है । इस प्रकार जम्बू जोवन के सम्बद्ध ऐतिहासिक तथ्यों के समाकलन के लिए साहित्यिक दृष्टि से उक्त दो प्रकार के आधार प्राप्त हैं ।
वसुदेव- हिंडा
उपलब्ध साहित्य में वसुदेव - हिंडी' सबसे पुरानो रचना है, जिसमें आर्य जम्बू का भी जोवन वृत्तान्त वर्णित है । वसुदेव हिंडी के रचनाकार श्री संघदास गणी हैं। उनका समय विक्रम की छठी-सातवीं शताब्दी माना जाता है । वसुदेव हिंडी जैन महाराष्ट्री प्राकृत की सबसे पुरातन कृति है । इसके अनन्तर जो आर्य जंबू विषयक चरित-साहित्य रचा जाता रहा, उसका मुख्य आधार प्रायः यही ग्रन्थ यहा । इस ग्रन्थ के कथोत्पत्ति नामक प्रकरण
आर्य जम्बू का इतिवृत्त है । आगम-वाङमय के प्रमुख संवाहक होने के नाते यह वांछनीय है कि आर्य जम्बू के चस्ति से पाठक अवगत हों; अतः यहां वसुदेव हिंडी के अनुसार सक्षेप में उसका साथ उपस्थित है ।
माता-पिता, जन्म, निवास
वसुदेव हंडीका ने सर्वप्रथम मगध देश की तथा उसकी राजधानी राजगृह को नैसर्गिक छटा, वैभव, जन-समुदाय के सम्पन्न, समृद्ध एवं उल्लासपूर्ण जोबन का सजीव चित्र अंकित किया है | वहां के राजा श्रेणिक की महत्ता, उदारता, विजिगीषुता और यशस्विता की चर्चा की है । श्रणिक की पटरानी चिल्लणा (चल्लणा) और राजकुमार कोणिक (अजातश ह) का भी यथाप्रसंग उल्लेख किया है ।
१. प्राकृत में हिंड धातु चलने फिरने या परिभ्रमण करने के अर्थ में है । अतः वसुदेव हिंडी का अर्थ वसुदेव (वासुदेव-कृष्ण के पिता) के परिभ्रमण - वृत्तान्त हैं । इस ग्रन्थ में वसुदेव के परिभ्रमण यात्राओं का विशद वर्णन है । वे घर छोड़कर घूमने निकल जाते हैं। अनेक वर्षों तक परिभ्रमण करते रहते हैं। अनेक कन्याओं से उनका परिणय होता है । इन सब वृन्तों तथा नत्र नव अनुमत्रों का प्रस्तुत कृति में करना-रंजित साहित्यिक शैलो में वर्णन किया गया है ।
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