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भाषा और साहित्य] भारत में लिपि कान का उद्भव और विकास [३०५ दो शब्द मिले हुए है । खरा का गधा घोष उष्ट्र का अर्थ अट होता है। इसके अक्षर गधे भोर ऊट की तह कार में कुछ बेडंगे थे; अतः यह खरोष्ट्री कहलाई । खरोष्ठी खपेष्ट्री का ही विकार है।
नर और उष्ट्र के शाब्दिक आधार पर व्याख्या तो हो गयो, पर, इसमें संगति प्रतीत नहीं होती। गधे और ऊंट दोनों के आकार का कोई मेल नहीं है । दोनों के आकार परस्पर में सर्वथा भिन्न है। खरोष्ठी के आकार का दोनों ( गधे और ऊंट के आकार ) के समन्वय से साहश्य घटित नहीं होता। यदि ऊंट के आकार के बेढंगेपन के साथ मेल बिठाने की बात होतो, तो वह किसी तरह सम्भाग्य थी।
डा० प्रजिलुको ने भो इस शब्द के आधार पर विचार किया है। उनके अनुसार इसका नाम खरपृष्ठी है। गधे के चमड़े पर लिखे जाते रहने के कारण इसका यह नामकरण हुआ, जो बाद में खरोष्ठी के रूप में परिवर्तित हो गया। ___ डा. राजबली पाण्डेय ने जो इसको शाब्दिक व्याख्या की है, उसके अनुसार इसके अधिकांश अक्षर खर (गधे) के मोष्ठ की तरह है। इस प्रकार खर और मोष्ठ के मेल से खरोष्ठी कहलाई।
डा० सुनोतिकुमार चटर्जी के अनुसार खरोष्ठी नाम खरोमेष (Kharosheth ) के संस्कृत रूप खरोष्ठ से बना है । खयोशेष हिम भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ लिखावट है। हिन भाषा से यह शब्द इधर पाया है।
चीनी भाषा के विश्वकोश फा-बान-शु-लिन में खरोष्ठ नामक व्यक्ति को इस लिपि का निर्माता कहा है । उसो के नाम पर इस का खरोष्ठी नामकरण हुआ।
कुछ विद्वानों का कहना है कि यह लिपि सीमाप्रान्त के खरोष्ठ संज्ञक अधे सभ्य लोगों द्वारा व्यवहृत रही है, इसलिए उनके नामानुरूप इसका नाम खरोष्ठो पड़ गया। .
सिलवा लेषी के मन्तण्यानुसार काशगर कभी इस लिपि का मुख्य केन्द्र रहा है। चीनी भाषा में काशगर का नाम "किया -शु-ता-ले" है। उसका परिवर्तन होते-होते खरोष्ठ हो गया, जिससे खरोष्ठी शब्द बना।
मामक व्युत्पत्ति
कुछ लोग आर्मेइक भाषा के सरो? शब्द के साथ इसे संयुक्त करते है। कभी-कभी भ्रामक युत्पत्ति के कारण ऐसी गडबड़ी हो जाती है। दो शब्दों की पारस्परिक ध्वनि-समता को देखकर किसो और ही अर्थ के शब्द को अन्य समझ लेना और तत्सदृश किसी अन्यायक शब्द
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