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[खण्ड : २
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन आर्य सुधर्मा : एक परिचय
जन्म
- आर्य सुधर्मा का जन्म विदेह प्रदेश में हुआ था। प्राचीन मान्यता के अनुसार उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पूर्व में कौशिकी और पश्चिम में गण्डको नदी से घिरा प्रदेश विदेह कहा जाता था।
आवश्यक-नियुक्ति में गणधरों को जाति, गोत्र, माता-पिता, शरीर-सम्पदा, ज्ञानवैशिष्ट्य आदि का विस्तृत उल्लेख किया गया है। तद्नुसार सुधर्मा अग्निवैश्यायन-गोत्रीय ब्राह्मण-वंश में उत्पन्न हुए थे। उनके पिता का नाम धम्मिल और माता का नाम भद्दिला था।
नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने आर्य सुधर्मा का जन्म उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में होना लिखा है। उन्होंने सभी गणधरों के जन्म के नक्षत्रों का वर्णन किया है। इससे प्रतीत होता है, उन दिनों (आचार्य भद्रबाहु के समय ) लोगों को सम्भवतः ज्योतिष में विशेष अभिरुचि रही हो अथवा एक कारण यह भी हो सकता है कि तीर्थंकरों के वर्णन में अन्याय पहलुओं के साथ उनके जन्म के नक्षत्रों का भी उल्लेख किया जाता रहा हो। उसी पद्धति का अनुकरण करते हुए नियुक्तिकार ने गणधरों के गोत्रों का उल्लेख करना आवश्यक समझा हो । ऐतिहासिक दृष्टि से भी जन्म के मुहूर्त, नक्षत्र आदि का उल्लेख करने की उपयोगिता है। 'काल-गवेषणा में किसी अपेक्षा से यह सहायक होता है। विद्वता : वैभव
भगवान महावीर के समय में राजनैतिक दृष्टि से तो विदेह विशेष जागृत था। विश्व की प्रागितिहासकालोन गणराज्यात्मक शासन-पद्धति के प्रयोग का यह सम्भवतः सर्वाधिक
१. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० २२ २. तिन्नि य गोयमगुत्ता भारद्दा अग्गिवेस वासिठ्ठा । कासव गोअम हारिअ कोडिन्नदुगं च गुत्ताइ ॥
-आवश्यक-नियुक्ति , गाथा ६४९ ३. वसुभूई धणमित्तो धम्मिल धणदेव मोरिए चैव।
देवे घसू अ दत्ते बले अ पिअरो गणहराणं ॥ -गाथा ६४७ ४. जेट्ठा कत्तिय साई सवणो हत्थुत्तरा महाओ अ। रोहिणि उत्तरसाढ़ा मिगसिर तह अस्सिणी पुस्सो॥
-आवश्यक-नियुक्ति, गाथा ६४६
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