________________
भाषा और साहित्य ] भारत में लिपि-कला का उद्भव और विकास [२८९ ब्राह्मी का सीधा सम्बन्ध उस प्राक्तन लिपि से है, जो सेमेटिक लिपियों की भी जनयित्री थी। इस अभिमत के समक्ष बहुत से ऐसे स्पष्ट प्रश्न-चिह्न हैं, जो असमाधेय प्रतीत होते हैं; अतः इस पर ऊहापोह संगत नहीं लगता।
भारत : ब्राह्मी का उत्पक्ति-स्थान ।
कतिपय पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वान् यह नहीं मानते कि ब्राह्मी किसो वैदेशिक लिपि से उद्भूत हुई। उनका मन्तव्य है 6ि ब्राह्मी का उत्पत्ति-स्थान भारतवर्ष है। एडवर्ड थामस, गोल्ड स्टूकर, राजेन्द्रलाल मित्र, लास्सेन, डासन, कनिधम आदि के नाम इस सम्बन्ध में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस विचारधारा के कतिपय विद्वानों के अनुसार प्राचीन काल में भारतवर्ष में आर्यभाषी जनता द्वारा किसी चित्र-लिपि का प्रयोग किया जाता था। सम्भवतः उसी से ब्राह्मी का प्रादुर्भाव हुआ।
बूलर ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि भारत में जब कोई प्राचीन चित्र लिपि मिलती ही नहीं, तब यह कैसे कल्पना की जा सकती है कि ब्राह्मी का चित्र-लिपि से विकास हुआ। जब बूलर ने यह मत व्यक्त किया था, तब तक मोहन-जो-दड़ो और हड़प्पा का उत्खनन नहीं हो पाया था। इस उत्खनन के परिणाम स्वरूप ऐसे प्रश्न और शंकाएं स्वयं समाहित हो जाती हैं।
डा० चटर्जी का विचार
भारत के महान् भाषा-विज्ञानवेत्ता डा० सुनीतिकुमार चटर्जी के विचार इस सन्दर्भ में अनेक दृष्टियों से मननीय हैं। उन्हें अविकल रूप में यहां उद्धत किया जाता है : "भारत की जो लिपियां अभी तक पढ़ी जा सकी हैं, उनमें ब्राह्मी-लिपि सबसे प्राचीन है। यही भारतीय आर्यभाषाओं से सम्बन्धित प्राचीनतम लिपि है । हमारी हिन्दू-सभ्यता का इतिहास बहुत प्राचीन है। पुराण ईसा पूर्व बहुत हजार वर्षों की बात बतलाते हैं, लेकिन भारतवर्ष में ई. पू. ३०० के पूर्व की आर्य-भाषा में रचित कोई लेख अभी तक नहीं मिला है और न पढ़ा हो गया है। मौर्य युग की ब्राह्मी-लिपि को ही वर्तमान क्षेत्र में आधुनिक भारतीय लिपियों में आदि-लिपि कहना पड़ता है। ब्राह्मो-लिपि की उत्पत्ति के बारे में मतभेद है । अब तक करीब सभी समझते थे कि यह फिनिशीय अक्षरों ( जो ई० पू० १००० के पहले ही सीरिया देश के Phoenicia फिनिशिया में प्रचलित शैमोय परिवार की फिनिशीय भाषा के आधार पर बने ), से उत्पन्न हुई; या तो दक्षिण-अरब के रास्ते, नहीं तो ईरान की खाड़ी के रास्ते, द्राविड़ जाति के वणिकों की मार्फत ये अक्षर ई० पू० ८००-६०० के लगभग भारत में लाये गये और बाद में ब्राह्मणों के द्वारा परिवर्तित और परिवर्द्धित होकर इस अक्षरमाला
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org