________________
२४ j
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन । खण्ड : २ अबुविधा को मानव ने अनुभव किया। सम्भवतः उसे प्रतीत हुआ, चिह्नों का प्रयोग ध्वनियों के लिए अधिक संगत तथा समोचोन है। जो चिद जिस ध्वनि के लिये प्रयुक्त था, उससे सर्वत्र वही बनि समझी जातो थो। भावमूलक चिह्नों में बहुत स्पष्ट रूप में वैसी स्थिति नहीं बनती थी; इसलिये भाष-ध्वनिमूलक लिपि का विकास स्वनिमूलक लिपि में हुआ।
ध्वनिमुलक लिपि के भेद
ध्वनिमूलक लिपि दो प्रकार को है। एक अक्षरात्मक ( Syllabic ) और दूसरी वर्णात्मक ( Elphabetic )।
अक्षरात्मक लिपि-धर्ण और भक्षर में एक अन्तर है। वर्ण एक ध्वनि का उद्बोधक है मौर अक्षर एक से अधिक मिलित ध्वनियों का सूचक है । स्थूल दृष्टि से अक्षरात्मक लिपि के प्रयोग में कोई अभाव दृष्टिगोचर नहीं होता, पर, यदि भाषा-विज्ञान की दृष्टि से सूक्ष्मता में जायें, तो वहां कुछ न्यूनता लगेगी। उदाहरण के लिये हिन्दी के 'प्रिय' शब्द को लें। देवनागरी लिपि में इसके 'प्रि' और 'य' दो भाग दृष्टिगोचर होंगे। 'प्रिय' शब्द में समस्त वणे कितने हैं, उसके बाह्य दर्शन से कुछ ज्ञात नहीं होता। पर, यह शब्द यदि रोमम लिपि में शिला जायेगा, तो इसमें P, R, I, Y तथा A; वे पांच ध्वनियां स्पष्ट दिखाई देंगी। संस्कृत भाषा के देवनागरी में लिखे हुये शब्दों के वर्गों को संस्कृतक तत्काल जान सकते हैं, पर, वह राण्ड अपने कलेवर से उन वर्गों का पृथक-पृथक् स्वरूप प्रकट नहीं कर सकता; जैसे संस्कृत का वृक्ष शब्द । बाह्य दृष्टि से देखने पर इसमें केवल दो भाग हैं-- दो अक्षर दिखाई देते हैं, पर, पस्तुतः इसमें ब, ऋ, क्, ष, तथा अ; ये पांच वर्ण हैं, जो वृक्ष शब्द के कलेवर से प्रतीत नहीं होते । यह लिपि की परिपूर्णता में एक कमो है। आधुनिक लिपियों में देवनागरी की तरह बंगला, गुजराती, उड़िया, तमिल, तेलुगु, अरबी, फारसी आदि लिपियां अक्षरात्मक हैं ।
वर्णात्मक लिपि-लिपि के विकास में जो उत्तरोत्तर प्रगति होती गई, उसको पराकाष्ठा या चरम उत्कर्ष वर्णात्मक लिपि है। रोमन लिपि इसका उस्कृष्ट उदाहरण है। वर्णात्मक लिपि को यह विशेषता है कि उसकी प्रत्येक पनि के लिये पृथक-पृथक चिह्न होते है; इसलिये उसमें किसी भी भाषा का शब्द जितने वर्षों का होगा, उतने वर्षों में लिखा जायेगा। जहां रोमन लिपि में लिखे गये शब्दों के उचारण में भिन्नता पाई जाती है, जैसे अंग्रेजी के Should, Could, Would आदि शब्द अपने अन्तवर्ती वर्गों के उच्चारण के अनुरूप उच्चारित न होकर शुड, कुड, वुड जैसे विभिन्न उच्चारणों में बोले जाते हैं, वहां उस लिपि में लिखी गयो भाषा की न्यूनता है या उसकी अपनी विशेष प्रवृत्ति है, उसमें लिपि का दोष नहीं है।
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org