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भाषा और साहित्य | भारत में लिपि-कला का उद्भव और विकास [ २८३ तो करता, पर, उसे सन्तोष नहीं था, अनेक कठिनाइयां थीं। वह कुछ खोज में था, ताकि यह असन्तोष, वे कठिनाइयां मिट सके।
प्रतीक-लिपि चित्र-खोंचने में असुविधा थी और साथ-ही-साथ अमनोनुकूल कालक्षेप भी था। सतत गतिशोल मानव लम्बे समय तक कैसे सह पाता ! शीघ्रातिशीघ्र भाष व्यक्त करने के लिये समय बचाने के लिए वह बहुत तत्परता से चित्र बनाता। चित्र ठीक नहीं बनते । विकृत चित्रों से भी कुछ काल तक वह काम चलाता रहा । लेखिनी की शीघ्रता के कारण चित्रों का उत्तरोत्तर घसीट रूप होता गया । तब पूरे चित्र के प्रतीक के रूप में कुछ रेखाओं का प्रयोग होने लगा । उदाहरणार्थ, पहले पर्वत को दिखाना होता तो उसका एक रेखा-चित्र-सा बनाया जाता, उसकी चोटियां रेखाओं द्वारा विशेष रूप से दिखाई जातीं। पर, आगे चल कर यह सारा कुछ रेखाओं के रूप में ही बचा रहा । इस प्रकार चित्रों के स्थान पर प्रतीक-चिह्नों से काम चलने लगा । चित्र में समझने की दृष्टि से एक सुविधा थी। उसे देखते ही वस्तु समझ ली जाती । प्रतीक चिह्नों में यह नहीं रहा। उन्हें स्मरण रखना पड़ता, यह चिह्न अमुक वस्तु के लिए है और यह किसी अन्य के लिए। चित्रों में एक सीमा तक सदृशता थी; अतः उन्हें समझाने में भिन्न-भिन्न देशों या स्थानों के लोगों को कठिनाई नहीं होती। रेखाचिह्नों में यह बात नहीं रही । वहां जिस वस्तु के लिए, जिस भाव के लिए जो रेखा-चिह्न कल्पित कर लिये गये, उन चिह्नों को देखने मात्र से वैसा कुछ बात नहीं होता, जब तक उन चिह्नों से सम्बद्ध मान्यता को आत्मगत न कर लिया जाता । इस प्रकार चित्रों द्वारा तत्कालोन लिपि में जो सार्वजनीनता आई थी, वह नहीं रह पाई। भिन्न-भिन्न देशों के व्यक्तियों ने भिन्न-भिन्न वस्तुओं के लिए एक ही समान रेखा-चिह्न स्वीकार किये हों, ऐसा भी सम्भव नहीं। भाव-वनिमलक लिपि
वस्तु और भाष दोनों के लिए अभिव्यक्ति हेतु प्रयुक्त प्रतीकात्मक लिपि में अगला विकास हुआ कि कुछ तो भावमूलक प्रतीक, जिनसे भावों के समझने में तत्कालीन मानव कुछ सुविधा अनुभव करता था, जो चित्रों के संक्षिस या संकेतक रूप थे, विद्यमान रहे और बुछ प्रतीक भावों के परिवर्तन में ध्वनियों के साथ संयुक्त कर दिये गये । इस प्रकार मानव को लिपि-विकास के अभियान में कुछ सुविधा मिली। इस पद्धति को भाव-ध्वनिमूलक लिपि कहा जाता है।
ध्वनिमूलक-लिपि प्रतीक-भिह भाष और पनि; दोनों के लिए प्रयुक्त थे। दोनों में होने वाली सुविधा
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