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भाषा और साहित्य ] पालि-भाषा और पिटक-वाङमय
[ २२३ १०. जातक ११. उपदेश
१२. अद्भुत धर्म एक और वर्गीकरण भी है, जिसके अनुसार बुद्ध वचन चौरासी हजार धर्म-स्कन्धों में विभक्त है।
अति विस्तारपूर्ण वर्गीकरण या विभाजन बौद्धों की विस्तीर्ण-विश्लेषण-प्रियता के घोतक हैं। वस्तुतः अध्ययन-क्रम आदि में तीन पिटक तथा उनके उपविभाग ही व्यवहृत हैं।
बहुविध विभाजन : परम्परा
तीन पिटक, पांच निकाय, नौ अंग तथा चौरासी हजार स्कन्धों के रूप में बुद्ध-वचनों का यह विभाजन-क्रम कब से है, यह जिज्ञासा स्वाभाविक है। तीनों पिटकों का संकेत स्वयं पिटकों में भी प्राप्त है। भाव अभिलेख में सम्राट अशोक द्वारा कुछ धम्म पलियायों या धर्मपरियायों का इस आशय से उल्लेख करवाया गया है कि सभी भिक्षु और भिक्षुणियां, उपासक तथा उपासिकाए उनका सदा श्रवण करें, पालन करें। उस शिलालेख में बुद्धवचनों के जिन-जिन अंशों का उल्लेख है, वे कहीं-कही शब्दशः और अधिकांशतया अर्थशः उन विभागों से कुछ-कुछ जुड़ते हैं। कौन-कौन धम्म ( धम्म-पलियाय ) किन-किन विभागों में आता है, इस पर विद्वानों ने अच्छा प्रकाश डाला है। विस्तारमय से उसका यहां उल्लेख नहीं किया जा रहा है।
अशोक के भाव अभिलेख से यह प्रकट होता है कि ई० पूर्व तीसरी शप्ती में त्रिपिटक अपने वर्गीकरण या विभाजन के नामों के साथ प्रायः उसी रूप में विद्यमान थे; जैसा वे आज हैं। सुत्त-पिटक और विनव-पिटक के लिए तो सुनिश्चित रूप में ऐसा माना ही जा सकता हैं।
भाव -अभिलेख के अतिरिक्त उसके पश्चाद्धर्ती सोचो और भरहुत ( ई० पूर्व दूसरी शती)
१. सूत्रं गेयं व्याकरणं गायोवानावदानकम् ।
इतिवृत्तकं निदानं वैपुल्यं च सजातकम् ॥ उपदेशाद्भुतौ धौं द्वावशाङ्गमिदं वचः ।
. -अभिसमयालङ्कार, पृ० ३५, बड़ौदा संस्करण २. ........इमानि मते ! धंमपलियायानि विनयसमुकसे, अलियवसानि, अनागतमयानि,
मुनिगाथा, मोनेयसूते, उपतिसपसिने ए चा लाघुलोवादे मुसावादं अधिगिच्य बुधेन मासिते । एतानि भंते धंमपलियायानि इच्छामि किं ति बहुके भिखुपाये चा भिखुनिये चा अभिखिनं सुनयु चा उपधालेयेयु चा। हेवं मेना उपासका चा उपासिका चा। एतानि भते ! इमं लिखापयामि अभिपेतं मे जानंतू ति ।
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