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भाषा और साहित्य ] शिलालेखी - प्राकृत
[ २४१ शाहबाज़गढ़ी के शिलालेखों में रज और रय दोनों रूप मिलते हैं। इसी प्रकार की स्थिति मानसेरा के शिलालेखों में है। इस सम्बन्ध में दोनों ही स्थानों में कोई नियामकता नहीं दिखलाई देती।
मानसेरा के चतुर्थ शिलालेख में राज्ञः के लिए रजिने का प्रयोग हुआ है, जबकि शाहबाजगढ़ी के शिलालेख में र का प्रयोग हुआ है । पश्चिमोत्तर के शिलालेखों में प्रायः ज्ञ के लिए ञ का प्रयोग ही मिलता है।
शाहबाजगढ़ी और मानसेवा के अभिलेखों में तु के लिए प्रायः चु का प्रयोग हुआ है। गिरनार के लेखों में ऐसा नहीं है । वहां तु यथावत् रहा है, पर, कालसी, धोली और जौगढ़ में उत्तर-पश्चिम की तरह चु' ही दृष्टिगोचर होता है।
सप्तम शिलालेख में तु के लिए गिरनार में तु, कालसी में चु, धौली में च, जौगढ़ में च,
१. देवनं प्रियो प्रियदर्शि रय एवं अहति ।-शाहबाजगढ़ी
देवनं प्रिये प्रियदशि रज एवं अह ।-मानसेरा ( देवानां प्रियः प्रियदर्शी राजा एवमाह । )
२. .."तदिशे अज वढिते देवनं प्रियस प्रियदशिस रजो ध्र मनुशस्तिय अनरंभो प्रणनं..।
- शाहबाजगढ़ी, चतुर्थ शिलालेख तदिशे अज वढिते देवन प्रियस प्रियदशिने रजिने ध्रममुशस्तिय अनरंभे प्रणन...।
-मानसेरा (......"तादृशममघवर्द्धित: देवानां प्रियस्य प्रियदर्शिनः राज्ञः धर्मानुशिष्टया अनालंभः प्राणामाम्....."1)
३. यो तु एत देस पि हायेसति सो दुकतं कासति ।
--गिरनार, पंचम शिलालेख ए चु हेता देस पि हापयिसंति से दुकट कछति ।-कालसी ए......"हेत देसं पि हापयिसति से दुकटं कछति ।-धौलो यो चु अतो......."पि हयेशति सो दुको कषंति ।-शाहबाजगढ़ी ये चु अत्र देश पि हपेशति से दुकट कषति । -मानसेरा ( ये तु अत्र देशमपि हापयिष्यन्ति ते दुष्कृतं करिष्यन्ति ।)
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