________________
२७० ]
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : २ इमे > इमि, उपेतः> उवितो, क्षेत्र> छ् इत्र, अन्त> अ>उ का वैकल्पिक प्रयोग मिलता है । उदा० प्रातः> प्रतु। स्वरमध्यवर्ती सशे ऊषम और स्पर्शसंघर्षी अघोष व्यंजन सघोष में बदल जाते हैं । ऊष्म के अतिरिक्त अन्य व्यंजन का लोप और उसके स्थान पर इ-या य के प्रयोग मिलते हैं। उदा० यथा> यधा, सन्तिके > सदिइ, त्वचा> त्वया, प्रथम> पढम, अवकाश> अवगजअ, कोटि> कोडि, गोचरे> गोयरि, भोजन> भोयंन । यदि संयुक्त व्यंजन में अनुनासिक अथवा कोई उपम पनि सन्निविष्ट हो, तो अघोष व्यंजन सघोष का रूप ले. लेता है। उदा० पंच> पज, सिञ्च > सिज, सम्पन्न > सबन्नो, दुष्प्रकृति > दुबकति, संस्कार> सघर, अन्तर> अवर, हन्ति> हदि आदि । सघोष के स्थान पर अघोष के मी कुछ उदाहरण मिलते हैं । उदा० विराग> विरकु, समागता> समकत, विगाह्म> विकय, योग> योक, ग्लानः> किलेन, दण्ड> तण्ट, भोग> योग आदि । महाप्राण व्यंजनों के स्थान पर अल्पप्राण व्यंजनों का प्रयोग ईरानी और अनार्य भाषाओं के प्रभाव का कारण माना गया है। उदा० भूमि> बूम, धनानाम् > तनना। शब्द में विसर्ग के अनतर 'ख' और स्वतंत्र रूप से 'क्ष' का परिवर्तन ह में मिलता है। उदा० दुःख> दुह, अनपेक्षिणः> मनवेहिनो, अपेक्ष> अवेह धादि।
__ शब्द में सघोष ऊष्म ध्वनि रूप में उच्चारण के कारण ध के स्थान पर ऊपम व्यंजम का प्रयोग मिलता है। उदा० मधुर> मसुरु, गाथानाम् > गशन, शिथिल> शिशिल, मधु> मसु, अधिमात्रा> असिमत्र आदि । तीनों ऊष्म ध्वनियों श, ष, स का प्रयोग होता है, परन्तु, इनमें 'स' का प्रयोग अधिक व्यापक मिलता है। सघोष ऊष्म ध्वनि ज का स, झ लिखित रूप मिलता है। शब्दों में ऋ के स्थान पर अ, इ, उ, रू, रि का विकास मिलता है । उदा. मृतः> मुतु, संवृतः> सवतो, स्मृति> स्वति, वृद्ध> विढ, कृत> किड, पृच्छितव्य> पुछिवयो आदि।
संयुक्त व्यंजन में यदि - , -ल सनिविष्ट हों, तो उनका परिवर्तन नहीं होता। उदा. प्राप्नोति> प्रनोदि, कीर्ति> कीर्ति, धर्म> धर्म, धम, मार्ग> मर्ग, परिव्रजति> परिवयति, दीर्धम्> द्रियम्, मैत्र> मेत्र आदि । संयुक्त व्यंजन की एक अनुनासिक ध्वनि में दूसरी निरनुनासिक ध्वनि का समीकरण हो जाता है। उदा० पण्डित> पणिदो, दण्ड> वण, प्राप्नोति> प्रनोवि, गम्भीर> गमिर, कुंजरः> कुंजरु, प्रशा>प्रञ, शून्य> शुञ, विज्ञप्ति> विनति आदि । संयुक्त व्यंजन श्र>ष का परिवर्तन मिलता है। उदा. श्रावक - षवक, श्मश्रु> मषु । संयुक्त व्यंजन क्र, प्र, त्र, द्र, प्र, ब, भ्र, स्त का प्रयोग स्थिर रहता है। उदा. त्रिमिः> त्रिहि, प्रियाप्रिय> प्रिअप्रिअ, संभ्रम>संम्रमु आदि ।
संयुक्त व्यंजन ए, ष्ठ का समीकृत रूप हो जाता है। उदा. श्रेष्ठ:> शेठो, दृष्टि> दिठी,
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org