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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन समवायांग सूत्र में उल्लिखित अठारह लिपियों में पहला नाम ब्राह्मी लिपि का है। प्रशापना सूत्र में वर्णित अठारह लिपियों के नाम समवायांग सूत्र से पूरी तरह तो नहीं मिलते, पर, बहुलांश में सादृशता है। उनमें भी पहला नाम ब्राह्मी लिपि का है । विशेषावश्यक टीका' तथा कल्पसूत्र में उल्लिखित अठारह लिपियों के नाम समवायांगसूत्र व प्रज्ञापना सूत्र में दिये गये नामों से भिन्न हैं। आश्चर्य है, दोनों में दी गयी लिपि नामावली में ब्राह्मी लिपि का नाम ही नहीं आया। इन दोनों सूचियों में जो नाम हैं, उनसे प्रतीत होता है कि ये नाम बहुत अर्वाचीन हैं. जब इस देश में ब्राह्मी का प्रयोग तो अवरुद्ध हो ही गया था, महत्व भी समाप्त प्राय: हो गया था।
विशेषावश्यक की टीका में आये हुए नामों में यवनी, तुरुक्की, धिड़ी, सिंधधीय, मालवीनी, नागरी, लाट, पारसी आदि कुछ ऐसे हैं, जो देशों और प्रदेशों के आधार पर दिये हुए हैं। ऐसा लगता है, विशेषावश्यक के टीकाकार के समय जिन-जिन भू-भागों में जो भिन्न-भिन्न लिपियां प्रचलित थीं, सम्भवतः उन्हीं के आधार पर उनके नाम दे दिये गये ।
१. १. ब्राह्मी, २. यावनी, ३. दोष उपरिका, ४. खरोष्टिका, ५. रूर-शविका, ६. पहरातिगा,
७. उपचतरिका, ८. अक्षर पृष्ठिका, ९. भौगवतिका, १.. वेणकिया, ११. निण्हविका, १२. अंकलिपि, १३. गणितलिपि, १४. गन्धर्वलिपि, १५. आदर्श-लिपि, १६. माहेश्वरी, १७. दामिलिपि, १८. बोलिव लिपि
-समवायांग सूत्र, समवाय १८ २. १. ब्राह्मो, २. यावनी, ३. दोसापुरिया, ४. खरोष्ठी, ५. पुक्खरासारिया, ६. भोगवतिका
( भोगवइया ), ७. पहराइया ८. अन्तक्खरिया, ६. अक्खरपुटिया, १०. बैनयिकी, ११. निविकी, १२. अंक लिपि, १३. गणितलिपि, १४. गन्धर्बलिपि, १५. आयंसलिपि, १६. माहेश्वरी, १७. दोमि लिपि, १८. पोलिन्दी ।
-प्रज्ञापना सूत्र, पद १, सूत्र ३७ ।। ३. १. हंस, २. भूत, ३. पक्षी, ४. राक्षसी, ५. उड्डी, ६. यवनी, ७, सुरजी, ८. कीरी,
९. द्रविडी, १०. सिंधवीय, ११. मालवीनी, १२. नडि, १३. नागरी, १४. लाट, १५. पारसी, १६ अनिमित्ती, १७. चाणक्की, १८. मूलदेवी।
-पृ० ४६४ ४. १. लाटी, २. चौसरी ३. बाहाली, ४. कानी, ५. गूजसी, ६. सोरठी, ७. मरहटी,
८. कोंकणी, ९. खुरासानी, १०. मागधी, ११. सिंहली, १२. हाड़ी, १३. कीड़ी, १४. हम्मीरी, १५. पारसी, १६. मती, १७, मालवी, १८. महायोधी ।
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