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प्राकृत-अभिलेख : लिपियां
प्राकृत के जो प्राचीन अभिलेख प्राप्त हुये हैं, वे मुख्यतः ब्राह्मी लिपि में हैं। एक अन्य लिपि का भी उनमें प्रयोग हुआ है, जो खरोष्ठी के नान से प्रसिद्ध है। अशोक के पश्चिमोत्तय शाहबाजगढ़ी और मानसेरा के शिलालेख खरोष्ठी लिपि में हैं । कांगड़ा के दो ऐसे शिलालेख हैं, जिनमें खरोष्ठी लिपि का भी प्रयोग हुआ है और ब्राह्मी का भी। ऐसा अनुमान होता है कि वहां सम्भवतः इन दोनों लिपियों का व्यवहार रहा हो.। आश्चर्य है, ब्राह्मी लिपि के क्षेत्र मथुरा का भी एक प्रसिद्ध शिलालेख खरोष्ठी लिपि में है। पटना में भी इस प्रकार का एक शिलालेख है। उन अभिलेखों की लिपियों के सन्दर्भ में भारत में लिपि-कला के उद्भव, विकास तथा विस्तार मादि पर संक्षेप में विचार करना आवश्यक होगा।
ब्रामी लिपि
भारतवर्ष में प्रयुक्त लिपियों में ब्राह्मी लिपि सबसे प्राचीन है । जिस प्रकार भारतवर्ष के भिन्न-भिन्न धर्मों में आस्था रखने वालों के अपने-अपने धर्म-ग्रन्थों की भाषाओं के सम्बन्ध में आता या अनादिता के सुधक मत हैं, उसी प्रकार उन सबका ब्राह्मी लिपि के सम्बन्ध में विचाय है । यहां प्रशस्तिपरकता (Superlativeness) की मात्रा अधिक है, तथ्यपरकता कम । मानव की कुछ इस प्रकार की दुर्बलता है कि जिसे वह 'स्व' से जोड़ता है, उसे प्रशस्त भी बताना चाहता है। वैदिक अभिमत
बैदिक परम्परा में विश्वास रखने वालों का यह अभिमत है कि ब्राह्मी शब्द ब्रह्मा से निष्पन्न हुआ है। त्रिदेवों में ब्रह्मा जगत के स्रष्टा या विधाता है। जिस प्रकार जगत् की, समस्त जागतिक पदार्थों की उन्होंने रचना की, लिपि का भी उन्हीं से प्रादुर्भाव हुआ। जगत् के साथ-साथ जन्मने वाली वह लिपि ब्राह्मी लिपि थी। ब्रह्मा द्वारा त लिपि
१. ब्रह्मा सर्जक, विष्णु-पालक, शिव-संहारक
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