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भाषा और साहित्य] शिलालेखी-प्राकृत
[२६१ घर या गुफा होता है। पिहोल का मन्तव्य है कि अशोक के लेख गुफाओं में भी हैं; अतः उनकी भाषा के लिए यही नाम संगत है। डा. गुणे के अनुसार यह संगत नहीं है। कतिपय अन्य विद्वानों ने इसे 'लाट विभाषा' नाम भी दिया है। लाट शब्द यष्टि शब्द का विकसित ( यष्टि > लट्ठि> लाट ) रूप है। अशोक के अनेक लेख लाटों पर उत्कीर्ण हैं; अतः उन विद्वानों ने इस नाम को उपयुक्त बतलाया है। कुछ विद्वानों ने इसे अशोकीय प्राकृत ( Ashokan Prakritas ) शब्द से संज्ञित किया है। इस प्रकार अशोक के अभिलेखों की भाषा का कई प्रकार से नामकरण हुआ है, पर, वह शिलालेखी प्राकृत्त के नाम से ही अधिक प्रसिद्ध है और यह नाम अपेक्षाकृत अधिक संगत भी लगता है। क्योंकि यहां प्रयुक्त शिला शब्द पाषाण - खण्ड के अर्थ में न लिया जाकर वत्कोटिक सामान्य (Common ) पाषाणीय लेखाधार के रूप में लिया जाए, यह अधिक समीचीन होगा। अन्य प्राकृत-अभिलेख
अशोक के अभिलेखों के अतिरिक्त प्राकृत के कुछ और अभिलेख भी प्राप्त होते हैं । उनमें कुछ तो विस्तृत और कुछ केवल एक- एक पंक्ति के ही हैं। इनका समय ई० पूर्व ३०० से ४०. ई० तक का है। बड़े-छोटे ये सभी शिलालेख संख्या में लगभग दो हजार तक पहुंच जाते हैं। उनमें उत्तर बंगाल का महास्थान का शिलालेख ( Mahasthan Stone Plaque Inscription ) मध्यप्रदेश का जोगीमार गफा लेख (Jogimara Cave Inscription ) पश्चिमोत्तर बिहाथ का सोहगौरा ताम्रपत्र लेख ( Sohgaura Copper Plate Inscription ) ग्वालियर का बेसनगर स्तम्भ लेख ( Besnagar Pillar Inscription ) पश्चिमोत्तर भारत का खरोष्ठी लिपि में शिन काट कास्केट बेख ( Shinkot Casket Inscription ) उड़ीसा के सम्राट् खारवेल का हाथी गुम्फा लेख, उदयगिरि खण्ड गिरि के शिलालेख तथा पश्चिमी भारत के आन्ध्रवंशीय राजाओं के शिलालेख विशेष प्रसिद्ध हैं। आकार में भी बड़े हैं। सिंहल के प्राकृत-अभिलेख
सिंहल में भी ई० पूर्व १०० से ३०० ई. तक के प्राकृत अभिलेख प्राप्त होते हैं। ये अभिलेख गुफाओं में तथा प्रस्तरों पर प्राप्त होते हैं। प्रस्तर-लेख प्राय: सरोवरों के तटों पर मिलते हैं, जिनमें मन्दिों के निमित्त सरोवरों के दान का उल्लेख है।
भाषा का सुकाव
सिंहल में प्राप्त अभिलेखों की भाषा का झुकाव अधिकांश पूर्व और मध्य के शिलालेखों की ओर है। पर, उसकी अपनी भी कुछ विशेषताएं हैं। जैसे, प्रथमा विभक्ति एकवचन
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