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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलम । खण्ड :२ शकार के प्रयोग के साथ कल्पित कर लिया गया हो । सामान्यतः यदि आज भी दन्त्य स
और तालव्य श की उच्चारण-सम्बन्धी सरसता-असरसता ( सुन्दरता-असुन्दरता ) पर गौर किया जाये, तो तालव्य श का बार-बार उच्चारण करना कुछ अप्रिय-सा लगता है । इसका एक कारण यह भी हो सकता है, दन्त्य सकार के विशेष अभ्यस्त हों। पूर्व के अभिलेखों में तालव्य शकार के अप्रयुक्त रहने के सम्बन्ध में डा० चटर्जी के निरूपण से बहुत कुछ समाधान प्राप्त हो जाता है।
के अभिलेखों में स्वार्थक क का प्रयोग अधिक प्राप्त है। कालसी और टोपरा के अभिलेखों में इसका प्रयोग और अधिक बढ़ा हुआ मिलता है।
संयुक्त व्यंजन में त और व के पश्चात् जो य आता है, वह (य) इय में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरणार्थ, चतुर्दश शिलालेखों में प्रहोतव्यः के लिए कालसी में पजोहितविये का प्रयोग हुआ है। जौगढ़ में भी पजोहितविये ही आया है। मानसेरा में प्रयुहोतधिये व्यवहृत हुमा है। गिरनार और शाहबाजगढ़ी में यह परम्परा घटित नहीं दीखती । गिरनार में प्रजूहितइवं माया है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं मिलता। शाहबाजगढ़ी में प्रयुहोतवे का प्रयोग हुआ है, जो संस्कृत के अधिक निकट है। इसी शिलालेख में कर्तव्यः के लिए कालसी में कटविये, जोगढ़ में भी कटविये तथा मानसेगा में कटविय आया है ।
चतुदंश शिलालेखों के अन्तर्गत तृतीय शिलालेख में अल्पव्ययता के लिए कालसी में अपविपाता तथा धौली में अपवियति का प्रयोग हुमा है। अर्थात् त् और व् के अनन्तर आने वाले य के इय में परिवर्तित होने की परम्परा यहां घटित होती है । पर, गिरनार, मानसेरा और शाहबाजगढ़ी में एतदनुरूपता दृष्टिगत नहीं होती। गिरनार में अपव्ययता का प्रयोग हुआ है, जिससे स्पष्ट है कि इस समस्त-पद में व्ययता ज्यों-का-त्यों रह गया है और अल्प का अप हो गया है। शाहबाजगढ़ी और मानसेरा में अपवयत का प्रयोग हुआ है। मास्की के प्रथम लघु शिलालेख में द्रष्टव्यम् के लिए दखितविये तथा वक्तव्यः के लिए पतविया का प्रयोग हुआ है ।
संयुक्त व्यंजनों में व्यंजन का अनुगमन करने वाले वकार का उव में परिवर्तन हो जाता है । प्रथम शिलालेख में द्वौ के लिए कालसी में दुवे, जौगढ़ में दुवे, मानसेरा में दुवे तथा शाहबाजगढ़ी में दुवि का प्रयोग हुआ है। यहां वकार के उव में परिवर्तित होने की बात तो
१. न हैवं दखितवीये उडालके व इम अधि गद्दे या ति । खुदके च उडालके च वतीबया........। (न एवं दृष्टव्यमुदारा एव इम मधिगच्छेयुः इति । क्षुद्रकाः च उवारकाः च वक्तव्याः:... 1)
-मास्की, प्रथम लघु शिलालेख
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