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भाषा और साहित्य ] पालि-भाषा और पिटक-वाङ्मय
[ २१५ भागों में विभक्त है।
सुत्त-विभंग में दोषों का वर्णन है। उन नियमों के उल्लंघनों का भी वर्णन है, जिन्हें भिक्षु प्रत्येक महीने की अमावस्या और पूर्णिमा ( उपोसथ के दिन ) को दुहराते थे। इन्हें पाटिमोक्ष (प्रातिमोक्ष ) भी कहा जाता है। प्रातिमोक्ष के दो भाग हैं-भिक्षु प्रातिमोक्ष ओय भिक्षुणी प्रातिमोक्ष। भिक्षु प्रातिमोक्ष में भिक्षुओं द्वारा और भिक्षुणी प्रातिमोक्ष में भिक्षुणियों द्वारा होने वाले नियमोल्लंघन का वर्णन है। प्रातिमोक्ष का पाठ करते समय जैसे-जैसे अपराधों का विवरण आता, उस सभा में उपस्थित प्रत्येक भिक्षु और भिक्षुणी से यह आशा की जाती थी कि यदि उसने वैसा अपराध किया है, तो वह अपने स्थान पर उठ कर उसे स्वीकार करे । ऐसा करने के पीछे यह भाव था कि भविष्य में वह पैसा दोष न करे।
भिक्षु-जीवन में प्रातिमोक्ष का बड़ा महत्व है। महावग्ग में इसके सम्बन्ध में कहा गया है : "प्रातिमोक्ष कुशल-धर्मों का मादि है, मुख है, प्रमुख है। यही कारण है कि वह प्रातिमोक्ष कहलाता है।"
एक प्राचीन टीकाकार ने प्रातिमोक्ष का बड़े सुन्दर शब्दों में विश्लेषण करते हुए लिखा है : “जो उस (प्रातिमोक्ष ) को रक्षा करता है, उसके नियमों का परिपालन करता है, वह ( प्रातिमोक्ष ) उसे अपाय-असद्गति आदि दुःखों से छुटकारा दिलाता है, मुक्त करता है, इसलिए वह प्रातिमोक्ष कहलाता है।"
खन्धक महावग्ग और चुल्लवग्ग; दो भागों में विभक्त है। भिक्षुओं का संघीय जीवन कैसा होना चाहिए, उन्हें किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए, आदि का महाबग्ग में वर्णन है। सुत विभंग अधिकांशतः निषेधात्मक शैली में लिखा गया है, जबकि महावग्ग उसका विधेयात्मक रूप है। महावग्ग में भगवान बुद्ध के सम्बोधि लाभ से लेकर प्रथम संघ के संस्थापन तक का विवरण भी बड़े सुन्दर रूप में दिया गया है। महावग्ग का यह अंश ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। उपसम्पदा, वर्षावास, प्रातिमोक्ष, प्रवारणा, चोवर रंगना आदि से सम्बद्ध विधि-क्रम और नियमों आदि का भी इसमें विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।
चुल्ल-बग्ग एक प्रकार से महावग्ग का परिपूरक है। इसमें भिक्षु के लिए उसके दैनन्दिन जीवन में क्या विहित है, क्या अधिहित है, उसे कैसे चलना चाहिए, कैसे बोलना चाहिए; १. पातिमोक्खं ति आदिमेतं मुखमेतं पामुखमेतं कुसलानं धम्मानं तेन वुच्धति पातिमोक्खं ति।
-गोपक मोग्गलान सुत्त, मज्झिमनिकाय, ३।१।८ २. यो तं पाटिरक्खति तं मोफ्लेति मोचेति अपायकाविदुक्खेहि तस्मा पाविमोक्खं ति वुच्चति ।
--A Comparative Study of Pratimoksha, P. 4, by Pachova.
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