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७२ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ वे, जो उनके चले जाने पर पीछे रह गये। जो लोग पीछे रहे, वे या उनमें से अधिकांश उस स्थान को छोड़ कर किन्हीं नये स्थानों की खोज में पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम आदि अन्यान्य दिशाओं की ओर चल पड़े हों। आगे बढ़ते गये हों। भिन्न-भिन्न दिशाओं में आगे बढ़ते रहने तथा भिन्न-भिन्न भू-भागों में आबाद होते जाने के कारण नई-नई भाषाए निर्मित होती गयी हों। ईरान में भावास : भाषा में परिवर्तन
दक्षिण-पूर्व होती हुई पूर्व की ओर बढ़ने वाली शाखा के लोग जब ईरान में बस जाते हैं, तब वहां पर उनकी मूल भाषा का रूप परिवर्तित होने लगता है। ईरान आर्याणाम् का परिवर्तित रूप है, यह ठीक ही प्रतीत होता है । सम्भवतः आर्यों के उस भू-भाग में बसने के पश्चात् उस ( देश ) का यह नाम प्रचलित हुआ हो ।
भाषा-परिवार के विवेचन के प्रसंग में जैसा कहा गया है, जो लोग बाहर से आते हैं, उन्हें, जहां आकर वे टिकते हैं, वहां के मूल लोगों की भाषा से काफी ले लेना होता है। इस प्रकार एक मिली-जुली भाषा बन जाती है। ईरान में ऐसा ही हुआ ।
भारोपीय परिवार की भारत-ईरानी शाखा
ईशान आने के पश्चात् आर्यों की भाषा की जो धारा प्रवाहित होती है, उसे भारोपीयपरिवार की आर्य-शाखा या भारत-ईरानी शाखा कहा जाता है। भारोपीय - परिवार में इस शाखा का बड़ा महत्व है। आगे चलकर ऋग्वेद जैसे साहित्य का इसी में प्रणयन होता है, जो विश्व के उपलब्ध वाङमय में सबसे प्राचीन माना जाता है। प्राचीनता के साथ-साथ ऋग्वेव की भाषा - सम्बन्धी विशेषता को संसार के प्रायः सभी प्रमुख विद्वान् स्वीकार करते हैं। इसके साथ - साथ भारत-ईरानी परिवार की भाषाओं का रूप-गठन तथा वाङमय भी अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पश्चिम में भाषा-विज्ञान के व्यापक तथा बहुमुखी अध्ययन एवं अन्वेषण का जो क्रम गतिशील हुआ, उसका आधार भी मुख्यतः ये ही आय-परिवार की भाषाए हैं। इन भाषाओं के सूक्ष्म अनुशीलन और विश्लेषण के प्रसंग में पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान विश्व की विभिन्न भाषाओं के ध्वन्यात्मक, शब्दात्मक तथा
त्मक साम्य की ओर आकष्ट हआ। कलकत्ता स्थित भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर विलियम जॉन्स के परिचय-प्रसंग में इस दिशा में जो प्रकाश डाला गया है, उससे यह तथ्य प्रमाणित होता है।
आर्यों के ईरान में आ जाने तथा बस जाने के अनन्तर जो नई भाषा अस्तित्व में
१. अग्निम प्रकरण में यथाप्रसंग यह चर्चा की जायेगी।
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