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भाषा और साहित्य ] पालि-भाषा और पिटक-वाङ्मय
[ १९३ इससे सहज ही प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या अभिधम्म का संकलन प्रथम संगीति के अनन्तर हुआ ? बौद्ध परम्परा ऐसा नहीं मानती। वह तीनों पिटकों की रचना में कालभेद स्वीकार नहीं करती। वह उनका साथ-ही-साथ रचा जाना या संकलित किया जाना मानती है । आचार्य बुद्धघोष ने तो स्पष्ट लिखा है-"इस प्रकार पंचशतिक संगीति के समर में समग्र बुद्ध-वचन का विनय-पिटक, सुत्त-पिटक, अभिधम्मपिटक तथा चौरासी हजार धर्म स्कन्धों के रूप में विभाजन कर, व्यवस्थापन कर संगान किया गया ।"]
आचार्य बुद्धघोष ने सुमंगलविलासिनी तथा समन्तपासाविका की निदान कथा में भी अभिधम्म-पिटक के विषयों का संकेत करते हुए प्रथम संगीति के अवसर पर ही उसके आकलित होने का उल्लेख किया है ।।
सुप्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग, जो वर्षों तक भारत में रहे, नालन्दा विद्यापीठ के आचार्य भी रहे, ने भी इस तथ्य का समर्थन किया है।
त्रिपिटक का जो रूप राजगृह की परिषद् में निर्धारित हुआ, अक्षरश: वह वर्तमान त्रिपिटक में सुरक्षित है, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता, पर, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वर्तमान त्रिपिटक मूलतः उसी पर आधारित है।
त्रिपिटक की प्रामाणिकता के सन्दर्भ में चुल्लवग्ग का एक प्रसंग है। जिस समय राजगृह के वेभार पर्वत पर यह संगीति हुई, पुराण नामक एक भिक्षु उधर विहार करता हुआ आ निकला। उससे कहा गया, वह भो संगोति में भाग ले। उसने उत्तर दिया- "स्थधिरों ने धम्म और विनय का सुन्दर रूप में संगान किया है। किन्तु, जैसा मैंने स्वयं शास्ता के मुह से श्रवण किया है, ग्रहण किया है, वैसा ही आचरण करूगा।"3
कुछ विद्वानों ने इस घटना को लेकर राजगृह में हुई परिषद् की प्रामाणिकता में सन्देह किया है। उनका सोचना है कि पुराण की इस उक्ति में राजगृह की परिषद् में भिक्षुओं १. एवमेतं सव्वं पि बुद्धवचनं पंचसतिकसंगीतिकाले संगायन्तेन इवं विनयपिटकं, इदं सुत्तन्त
पिटकं, इदं अभिधम्मपिटकं, इमानि चतुरासीति धम्मक्खन्धसहस्सानी ति इमं पभेदं ववत्थयेत्वा व संगीतं ।
-अट्ठसालिनो, पृ० २३ (पूना संस्करण, १९४२) २. ततो अनन्तरं-धम्मसंगणि विभंगञ्च, कथावत्युश्च पुग्गल, धातु - यमक - पट्टानं,
अभिधम्माति वुच्चतीति । एवं संविणितं सुखुम णमोचरं, तन्तिं संगायित्वा इदं अभिधम्म
पिटकं नामाति वत्वा पञ्च अरहन्तसतानि सज्झायमकंसु । ३. विनय-पिटक, चुल्लवग्ग, बुद्धचर्या, पृ० ५५२
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