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मावा और साहित्य ]
ओष्ठ्य
दन्तोष्ठ य
अन्तःस्थ
: प्, फ ू, ब् भ् म्
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य्, र्, लू, व्
(2)
:
शुद्ध अनुनासिक अनुस्वार
संघर्षी
विश्व भाषा प्रवाह
: शू, ष, स, ह, जिह्वामूलीय
उपध्मानीय
भारोपीय को ध्वनियों के साथ वैदिक संस्कृत की ध्वनियों की तुलना करने पर प्रकट होता है कि आदि स्थान से यहां तक पहुंचने पर ध्वनियों में बहुत परिवर्तन हो गया था । परिवर्तन की कुछ विशेष दिशाएं इस प्रकार है :
★ भारोपीय में जहां कवर्ग की तीन श्रेणियां थीं, वैदिक संस्कृत में केवल एक रह गयी । ★ व्यंजनों में चवर्ग और टवर्ग, जो भारोपीय में नहीं थे, वैदिक संस्कृत में नये रूप में आ गये ।
3
★ भारोपीय में ऊष्म या संघर्षी ध्वनि केवल स् थी, जो वैदिक संस्कृत में शू स्, ह. आदि के रूप में विस्तार पा गयी ।
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वैदिक संस्कृत की ध्वनियों की जो तालिका दी गयी है, उसमें ए और ओ को मूल स्वरों में दिखलाते हुए केवल ऐ और औ को संयुक्त स्वरों के रूप में उपस्थित किया गया है। यहां कुछ ज्ञातव्य है । संस्कृत - व्याकरण में ए, ऐ, ओ, औ को संयुक्त स्वर माना जाता रहा है; अतः ये दीर्घ स्वरों में गिने जाते रहे हैं। इनका उच्चारण - ए = अइ, ओ = अउ, ऐ = आइ, भौ
| = आउ माना जाता रहा है । परन्तु अब भाषा-शास्त्र के बहुश्रुत विद्वान् यह स्वीकार नहीं
करते । जैसा कि भारोपीय में है, उनका कहना है कि ए और ओ मूल स्वर हैं । I
ह्रस्व और दीर्घ दोनों रूपों में प्रयोग होता था । उच्चारण क्रमशः अइ और अउ था ।
१. क
२.
ख इति कखाभ्यां प्रागधं विसर्गसदृशो जिह्वामूलीयः । इति पफाभ्यां प्रागर्धविसर्गसदृश उपध्मानीयः । --अष्टाध्यायी, १/१०९, वृत्ति
३. एवामपि द्वादश तेवां इस्वाभावात्, अष्टाध्यायी, १२१८ वृत्ति
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बू,
मूर्द्धन्य व्यंजन : एक अनुपम विशेषता
वैदिक संस्कृत की एक बहुत बड़ी विशेषता है । वहां व्यंजनों में मूद्ध न्य ध्वनियों के वर्ग का अस्तित्व है । भारोपीय परिवार की अन्य किसी भी भाषा में यह वर्ग ( ट वगं--, ठ ू, ड ू, ड ू) नहीं पाया जाता ।
इनका
संयुक्त स्वर केवल ऐ और औ हैं, जिनका
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