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भाषा और साहित्य ] प्राचीन भारतीय आर्य भाषाए' [ ९५ वानप्रस्थी साधकों को ऐसा मार्ग उपदिष्ट करते हैं, जिससे क्रमशः ब्राह्मो स्थिति की ओर गति कर सकें। ब्राह्मण-ग्रन्थों की तरह आरण्यकों की रचना भी सरल, संक्षिप्त और क्रिया-बहुल है। भिन्न-भिन्न वेदों से सम्बद्ध भिन्न-भिन्न आरण्यक हैं ।
उपनिषद्
उपनिषद् वैदिक वाङमय के शान-काण्ड के अन्तर्गत हैं । यद्यपि वहां वैदिक यज्ञयागादि कर्म-काण्डों का निषेध नहीं है, पर स्वर्गकायोयजेत के अनुसार इनका फल मात्र स्वर्ग-प्राप्ति है। स्वर्ग-फल शाश्वत नहीं है। पुण्य-क्षय के अनन्तर स्वर्ग से पुनः मत्यलोक में आना पड़ता है। आशय यह है कि यज्ञ-यागादि कर्म-काण्ड-परक कार्यों से आवागमन नहीं मिटता, शाश्वत सुख नहीं मिलता। जो स्वर्गिक सुख मिलता है, वह भी भोग-प्रधान है। भोग का अवसान सुख में नहीं है, दुःख में है। आवागमन-जन्म-मरण, भौतिक अनुकूलता, प्रतिकूलता, वैभव, विलास और समृद्धि, इन सबसे परे एक स्थिति है, जिसे उपनिषद् की भाषा में ब्रह्मानन्द कहा जाता है। वह केवल ज्ञान द्वारा साध्य है । ज्ञान के बिना बन्धन से कभी छुटकारा नहीं हो सकता। उपनिषद्-साहित्य का यही विषय है, जिस पर विभिन्न दृष्टियों से सूक्ष्म चिन्तन और पर्यालोचन किया गया है।
उपनिषद् के ज्ञान का कितना अधिक महत्व समझा जाता रहा है, इस सन्दर्भ में छान्दोग्य उपनिषद् का एक प्रसंग हैं : अनेक विद्याओं में निष्णात देवर्षि नारद सनत्कुमार के पास आते हैं और उनसे अभ्यर्थना करते हैं-"मुझे अध्ययन करवाइए, शिक्षा दीजिए।" इस प्रकार कहकर वे शिष्य-भाव से उनके सान्निध्य में उपसन्न होते हैं।"
___ सनत्कुमार ने कहा-"आप जो कुछ जानते हैं, मुझे बतलाए । तदनन्तर मैं आपको आगे कहूंगा, उपदेश करूंगा।"
नारद बोले-"भगवन् ! मैंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और चौथा अथर्ववेद पढ़ा है। इतिहास और पुराण जो पंचम वेद कहे जाते हैं, मैंने पढ़े हैं । व्याकरण, पितृकल्प-श्राद्धकल्प, गणित-शास्त्र, उत्पात-ज्ञान, महाकालादि निधिशास्त्र, तर्क-शास्त्र, नीति-शास्त्र, देष विद्या-निरुक्त, ब्रह्मविद्या-ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद का शिक्षा शास्त्र, वैदिक संहिताओं के शुद्ध उच्चारण और स्वर-प्रयोग के लिए निर्धारित नियमों के उद्बोधक ग्रन्थ-प्रातिशाख्य, कल्प-कर्मकाण्डविधि, छन्द-शास्त्र, भौतिक विज्ञान, धनुर्वेद, सर्पविद्या, देवजनविद्या-नृत्य, गान, वाद्य और शिल्प आदि विज्ञान भी मैंने पढ़े हैं।" .
१. क्षीणे पुण्ये मत्यलोकं विशन्ति । २. ऋते शानान्न मुक्तिः ।
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