________________
भाषा और साहित्य] प्राचीन भारतीय आर्य भाषाए
[ ११६ सम्भावना नहीं बनती । बोलचाल की भाषा सदा विकासोन्मुख होती है। भाषा के विकास को धिकार भी कहा जाता है । उसका अर्थ भी भिन्न रूप लेता है, कुत्सित नहीं। ___संस्कृत के स्वरूप-गठन में यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि वह शिष्ट भाषा रही है । पह वर्ग जो विशेषत: विद्या-निष्णात था, जब कभी परस्पर मिलता, इसका अवश्य प्रयोग करता रहा होगा। आज भो यदा-कदा ऐसा देखा जाता है, जब पण्डितवृन्द मिलते हैं, तो इसका पारस्परिक वार्तालाप में उपयोग करते हैं । आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी ऐसा निर्देश प्राप्त होता है कि वैद्य जब परस्पर में वार्तालाप करें, तो वे संस्कृत का व्यवहार करें।
संस्कृत व्याकरण-परिष्कृत भाषा तो थी, पर, बोलचाल की भाषा से अत्यधिक दूर नहीं थी; अतः ऐसा सम्भव जान पड़ता है कि पुरातन युग में शिष्ट और विद्ववन्द द्वारा प्रयुक्त संस्कृत भाषा को साधारण जनता सामान्यतः समझ तो लेती थी, पर, उसे बोल नहीं सकती थी। उसका सुदृढ़ प्रमाण उत्तरवर्ती काल के संस्कृत नाटकों में प्राप्त होता है । वहां विभिन्न पात्रों द्वारा भाषाओं के प्रयोग की एक विशेष व्यवस्था है। परिव्राजक, ब्राह्मण, राजा, न्यायाधीश, अमात्य, सेनापति आदि उच्च वर्ग के व्यक्तियों द्वारा नाटकों में संस्कृत-भाषा का प्रयोग किया जाता है। स्त्री, शूद्र, किसान, मजदूर, दास, दासी, दुकानदार आदि दूसरी श्रेणी ( साधारण या निम्न वर्ग आज की भाषा में जिसे जन-साधारण या आम जनता कहा जा सकता है ) के व्यक्तियों द्वारा विभिन्न प्राकृतों का प्रयोग करने का विधान है । जब एक भृत्य राजा से वार्तालाप करता है, तो वह राजा द्वारा संस्कृत में कथित बात को सुनकर उसका प्राकृत में उत्तर देता है। यदि वह राजा द्वारा संस्कृत में कथित बात को अच्छी तरह नहीं समझता, तो उसका उतर कैसे दे पाता ? इससे निश्चय ही यह प्रकट होता है कि संस्कृत के काल में जन-साधारण के बोलचाल के उपयोग में जो भाषा आती थी, वह संस्कृत नहीं थी, संस्कृत के बहुत निकट अवश्य थी।
___ संस्कृत के जो नाटक कहलाते हैं, वास्तव में उनमें प्राकृत का भाग कम नहीं, प्रत्युत अधिक है। नाटक में संस्कृत बोलने वाले पात्रों की अपेक्षा प्राकृत बोलने वाले पात्र भी प्रायः अधिक मिलते हैं। उदाहरणार्थ, शूद्रक के मृच्छकटिक में तीस पात्र हैं, जिनमें केवल चार पात्र' संस्कृत बोलते हैं, बाकी के छब्बीस पात्र प्राकृत । कभी-कभी किन्हीं नाटकों में प्राकृत-भाषी पात्र बीच में किसी प्रसंग में थोड़ी-सी संस्कृत बोलते हुए भी दिखला दिये जाते हैं । उदाहरणार्थ, भास के चारुदत्त में नायक चारुदत्त की पत्नी कुलजा होने के कारण संस्कृत बोलती हुई भी दिखलाई गयी है, पर, साधारणतया वह प्राकृत ही बोलती है। नाटकों के इस क्रम से सहज ही यह अनुमान होता है कि सामान्यतया प्राकृतों का लोक
१. नायक चाश्वत्त, विट, आर्यक और ब्राह्मणजातीय तस्कर शर्षिलक ।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org