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१७.] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ बर्मी परम्परा में अनुकरण हुआ है। थेरवाद में सिंहल और बर्मा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। बर्मी परम्परा में भी ऐसी मान्यता है कि मगध की भाषा में ही, जो उसके अनुसार विश्व की मूल भाषा है, भगवान् बुद्ध ने उपदेश किया, जो त्रिपिटक के रूप में उपलब्ध है। १६ वीं शतो में बर्मा में विधिशास्त्र पर पालि में मोहविच्छेदनी नामक ग्रन्थ रचा गया। बर्मी पालि-वाङमय में उसका महत्वपूर्ण स्थान है। उसमें भी ऐसा ही निरूपण किया गया है।
भगवान बुद्ध के उपदेश को भाषा के सम्बन्ध में विद्वानों में प्रचलित अनेक मान्यताओं में से उपयुक्त मत एक है। अन्य मतों पर भो संक्षेप में प्रकाश डाला जा रहा है, ताकि प्रस्तुत विषय पर समीक्षात्मक दृष्टि से पर्यालोचन किया जा सके ।
प्रो० रायस डेविड स ... प्रो. रायस डेविड्स ने पालि पर बहुत कार्य किया। उनके मन्तव्य का सारांश है कि भगवान बुद्ध कौशल प्रदेश के थे। उनकी मातृभाषा वही थो, जो कौशल प्रदेश में प्रचलित थी। यह स्वाभाविक है कि उपदेष्टा अपनी मातृ-भाषा में ही उपदेश करता है; भतः जिसे आज पालि कहा जाता है, उसका आधार ई० पू० छठी-सातवीं शती में कौशल प्रदेश में प्रचलित भाषा थी। प्रो0 यायस डेविड्स का यह भी कथन है कि भगवान् बुद्ध के परिनिर्माण के पश्चात् लगभग एक शताब्दी की अवधि में मुख्यतया उनके उपदेश कौशलप्रदेश में ही संकलित किये गये ।
उज्जयिनी-भाषा और पल
__ एक ऐसा मत है, जिसके अनुसार पालि उज्जयिनी-प्रदेश, जिसे आज मालव कहा जाता है, की बोली पर आधारित है। इस मत के उद्भाषक वेस्टर गार्ड और ई० कुहन हैं। उन्होंने मुख्यतया इसके दो कारण दिये हैं। पहला यह है कि गिरनार ( सौराष्ट्र ) में अशोक के शिलालेख की भाषा से इसकी सबसे अधिक समानता है। दूसरा कारण वे यह बतलाते हैं कि सम्राट अशोक के पुत्र कुमार महेन्द्र, जिन्होंने सिंहल में बौद्ध धर्म का प्रचार किया और पालि त्रिपिटक को पहुंचाया, अपने शैशव से ही उज्जयिनी-प्रदेश में रहे थे। वहीं की भाषा उनको मातृ-भाषा थी, जिसमें वे त्रिपिटक को ले गये ।
1. The pali Literature of Burma, p. 88-89 (London, 1909) 2. History of pali Literature, vol. I, p. 50-56
( Preface ) : Dr. Law 3. Budhistic Studies, P. 233, Edited by Dr. Law
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