________________
भाषा और साहित्य ]
पालि भाषा और पिटक -बाङ मयं
[ १८५
ड्, भ्, ण्, न् और म्; संस्कृत के इन पांच अनुनासिक व्यञ्जनों में से केवल न और म के अतिरिक्त अन्य व्यञ्जन शब्द के आदि में प्रयुक्त नहीं होते। पालि में भी ऐसी ही स्थिति है | प्राकृत में नू का ण हो जाता है ।
शब्द के प्रारम्भ में स्थित य् र् ल् व् पालि में यथावत् बने रहते हैं । कहीं-कहीं र्ल् में परिवर्तित हो जाता है, जो मागधी प्राकृत की विशेष प्रवृत्ति है । उदाहरणार्थ, मागधी में राजा का सर्वत्र लाजा होगा । पालि में यह कादाचित्क है ।
संस्कृत में शब्द के आदि में विद्यमान अघोष अल्पप्राण व्यञ्जन ( क्, त्, प् आदि ) पालि में उसी वर्ग के अघोष महाप्राण ( ख् थ्, फ् आदि ) हो जाते हैं । उदाहरणार्थ, संस्कृत के कोल, कुजः तथा परशु पालि में खीलो, खुज्जो तथा फरसु के रूप में परिवर्तित होंगे |
कहीं-कहीं इस नियम को विपरीतता भी दृष्टिगत होती है । अभिप्राय यह है कि संस्कृत अघोष महाप्राण व्यंजनों के स्थान पर पालि में उसी वर्ग के अघोष अल्पप्राण व्यञ्जन भी हो जाते हैं । उदाहरणार्थ, भगिनो के स्थान पर पालि में बहिनी और बहिणी भी देखा जाता है ।
शब्द के मध्य में स्थित संस्कृत अघोष स्पर्श व्यञ्जन पालि में उसी घगं के घोष स्पर्श व्यञ्जनों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं । उदाहरणार्थं, 'माकन्दिय' का 'मागन्दिय' और 'उताहो' का 'उदाह' हो जाता है ।
शब्द के मध्य में विद्यमान व्यंजनों में अघोष अल्पप्राण व्यंजन पालि में उसी वर्ग के अघोष महाप्राण व्यंजन हो जाते हैं । जैसे, सुकुमार का पालि रूप सुखुमाल हो जाता है ।
व्यंजन पालि में कहीं-कहीं अघोष भी हो जाते हैं । जैसे,
संस्कृत के घोष स्पर्श
कुशीद = कुसीत ।
कहीं-कहीं संस्कृत के दन्त्य व्यंजन पालि में प्रायः मून्य हो जाते हैं । अर्थात् त, थ, द्धू, न्, पालि में ट् ठ् ड् ल्ह और ण हो जाते हैं । जैसे, दाह=डाह, शकुन = सगुण, प्रथम = पठम हो जाता है । यह नियम प्रायः आदि और मध्य दोनों ही स्थानों पर स्थित व्यंजनों के लिए है ।
शब्द के मध्य में स्थित संस्कृत के तालव्य स्पर्श वर्णों के स्थान पर पालि में कहीं-कहीं दन्त्य स्पर्श वर्णं हो जाते हैं । जैसे, चिकित्सा = तिकिच्छा ।
शब्द के मध्यवर्ती मूद्ध न्य स्पर्शं वर्णों के स्थान पर पालि में कहीं-कहीं दन्त्य स्पर्श वर्षा हो जाते हैं । जैसे, डिण्डिम - देण्डिम् |
For Private & Personal Use Only
Jain Education International 2010_05
www.jainelibrary.org