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भाषा और साहित्य }
मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाए
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या उसके आस-पास की किसी प्राक्तन लोक भाषा का परिनिष्ठित रूप थीं । मध्यदेश के बाहर की लोक- भाषाएं या प्राकृत अपने प्रादेशिक भेद तथा वैदिक परम्परा से बसंलग्नता के कारण छन्दस् से अपेक्षाकृत दूर थीं । प्राकृत-साहित्य में जो देश्य शब्द गृहीत हुए हैं, उनका स्रोत सम्भवतः ये ही मध्यदेश के बाहर की प्रादेशिक भाषाए हैं । इन लोक भाषाओं का कोई भी प्राक्तन या तत्कालीन रूप वैदिक भाषा का आधार या उद्गम स्रोत नहीं था; अतः इनसे आये हुए शब्दों के, जो देश्य नाम से अभिहित किये गये, अनुरूप संस्कृत में शब्द नहीं मिलते।
देश भाषा : व्यापकता
देशी भाषा या देशभाषा बहुत प्राचीन नाम है । प्राचीन काल में विभिन्न प्रदेशों की लोक- भाषाएं या प्राकृत देशी भाषा या देशभाषा के नाम से प्रचलित थीं । महाभारत में स्कन्द के सैनिकों और पार्षदों के वर्णन के प्रसंग में उल्लेख है "वे सैनिक तथा पार्षद विविध प्रकार के धर्म अपने देह पर लपेटे हुए थे। वे अनेक भाषाभाषी थे । देशभाषाओं में कुशल थे तथा परस्पर अपने को स्वामी कहते थे ।"1
नाट्य शास्त्र में इसी प्रकार देश भाषाओं के सम्बन्ध में चर्चा है । वहां उल्लेख है । "अब मैं देशभाषाओं के विकल्पों का विवेचन करूंगा अथवा देशभाषाओं का प्रयोग करने वालों को स्वेच्छया वैसा कर लेना चाहिए ।" 2
कामसूत्र में भी लिखा है : "लोक में वही बहुमत या बहुसमाहत होता है, जो गोष्ठियों में न तो अधिक संस्कृत में और न अधिक देशभाषा में कथा कहता है ।"3
1 उदाहर
न वाङमय में अनेक स्थानों पर देशी भाषा-सम्बन्धी उल्लेख प्राप्त होते णार्थ, सम्राट् श्रोणिक के पुत्र मेघकुमार के वर्णन के प्रसंग में कहा गया है : "तब वह मेघ
१.
नाना - चर्माभिराच्छन्ना
नानाभाषाश्च भारत ।
- कुशला देशभाषासु जल्पन्तोऽन्योन्यमीश्वराः ॥ -- महाभारत, शल्यपर्व, ४५, १०३
अत ऊर्ध्व प्रवक्ष्यामि देशभाषा विकल्पनम् । अथवाच्छन्दतः कार्या देशभाषाप्रयोक्तृभिः ॥
--नाट्यशास्त्र, १७, २४-२६ नात्यन्तं संस्कृतेनैव नात्यन्तं देशभाषया । कथां गोष्ठीषु कथयंलौके बहुमतो मवेत् ॥
- कामसूत्र, १.४. ५०
२.
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