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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ अध्वयु'', ब्रह्मा आदि यज्ञ-सम्पादन में भाग लेने वाले विशिष्ट व्यक्तियों के कार्य, विधि, यशवेदी का निर्माण यश-सम्पादकों की अवस्थिति, भिन्न-भिन्न यज्ञों में भिन्न-भिन्न मन्त्रों का विनियोग, यज्ञों और मन्त्रों का सम्बन्ध, मन्त्रों की व्याख्या प्रभृति नियमों का इन ग्रन्थों में बड़ा सूक्ष्म और विस्तृत उल्लेख है। इनमें प्रसंग-क्रम से अनेक आख्यानों का भी समावेश है। आगे चलकर अधिकांशतः ये ही भाख्यान पुराणों के रूप में विकसित हुए हों; ऐसी सम्भावना की जाती है।
वेदों के जिन-जिन विषयों से जो-जो ब्राह्मण-ग्रन्थ सम्बद्ध हैं, वे उन-उन वेदों की उनउन शाखाओं के ब्राह्मण कहे जाते हैं। वेद-मन्त्रों के अर्थ निर्धारण में निःसन्देह इन ग्रन्थों को बहुत बड़ी उपयोगिता है। उनकी सहायता से ही वेद-मन्त्रों का हादं यथावत् रूप में समझा जा सकता है।
आरण्यक
__ आरण्यक भी वेदों के कर्म-काण्डात्मक भाग के अन्तर्गत स्वीकृत हैं। ब्राह्मण-ग्रन्थों में जहां याज्ञिक विधि-विधानों का विस्तृत, गम्भीर और परम्परानुस्यूत विश्लेषण है, आरण्यकों में अर्थवाद के आधार पर तलस्पर्शी व्याख्या-विवेचना है। वैदिक यज्ञ-विधान के अन्तर्गत करणीय कार्यों के उद्देश्य, लाभ आदि के बहुमुखी विश्लेषण के साथ-साथ आरण्यकों में वेदों के उन स्थलों का उल्लेख है, जिनसे याज्ञिक विधि-भाग में किये गये निर्देशों का तात्पर्य स्पष्ट होता है।
___ कहा जाता है, ब्रह्मचर्य में निमग्न ऋषियों द्वारा वैदिक यज्ञ-याग से सम्बद्ध गम्भीर विषयों पर 'अरण्यों'-धनों में चिन्तन किये जाने के कारण ये अर्थवाद-प्रधान ग्रन्थ आरण्यक शब्द से अभिहित हुए । अथवा अरण्य एव पाठ्यात् आरण्यकमितीर्यते के अनुसार अरण्यों में पढ़ाये जाने के कारण इनकी आरण्यक संज्ञा हुई। सम्भवतः इसी कारण इनका उपयोग विशेषतः वानप्रस्थियों के लिए माना गया है। वानप्रस्थ में अरण्य-वास का विधान है, जहां व्यक्ति लौकिक जीवन से शाश्वत आनन्द की ओर अग्रसर होने को प्रयत्नशील होता है । पर, वह एकाएक गृही जीवन के संस्कारों से छूट सके, यह कम सम्भव होता है। आरण्यक
१. अनुच्च स्वर से मन्त्र उच्चारण करते हुए पुरोडास प्रभृति याज्ञिक द्रव्यों को तैयार
करने वाला और देवताओं को उद्दिष्ट कर आहुति देने वाला। २. चारों वेदों का पूर्ण ज्ञाता, यज्ञों के विधि-क्रम व नियमोपनियम को सूक्ष्मता से
जनने वाला; अतः यज्ञ संलग्न सभी पुरोहितों के कार्यों का निरीक्षण तथा अपेक्षित होने पर परिष्कार करने वाला।
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