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भाषा और साहित्य । प्राचीन भारतीय आर्य भाषाए
[ १०५ वैदिक और लौकिक संस्कृत कुछ भेद-रेखाएं
आर्य भाषा के विस्तृत विवेचन के प्रसंग में भारोपीय ध्वनियों के साथ पैदिक संस्कृत की ध्वनियों की तुलना की गयी थी। लोकिक संस्कृत को ध्वनियां घेदिक संस्कृत की ध्वनियों से कुछ ही भिन्न हैं। वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत में जो भिन्नता है, उस सम्बन्ध में निम्नांकित तथ्य विशेष रूप से ज्ञातव्य है :
धेदिक संस्कृत में ळ, ळट, जिह्वामूलीय और उपहमानीय ध्वनियां थीं । लौकिक में उनका लोप हो गया।
वैदिक संस्कृत का दन्तोष्ठ्य व, जो अंग्रेजी के समान ध्वनि है, लौकिक में लुप्त हो गया। लौकिक संस्कृत में जो 'व' प्रयुक्त है, वह तालव्य है ।
वैदिक संस्कृत में अनुस्वार शुद्ध अनुनासिक ध्वनि माना गया था। वह स्थर है या व्यंजन, इस सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न मत रहे हैं। कुछ विद्वानों ने इसे स्वर तथा कुछ ने व्यंजन माना। लौकिक संस्कृत में इस सम्बन्ध में मान्यता बदल गयी। वहाँ अनुनासिक का उच्चारण अनुनासिक स्थर के समान होने लगा।
वैदिक संस्कृत में धातु-रूपों की बहलता थी। लौकिक संस्कृत में वह न रह पाई। उदाहरणार्थ, वैदिक संस्कृत में जहां हम इमसि तथा इमः दोनों पाते हैं, वहां लोकिक में केवल इमः मिलता है । इस प्रकार और भी अनेक उदाहरण हैं । घेदिक संस्कृत में जहां स्मसि
और स्मः दोनों रूप मिलते हैं, लौकिक संस्कृत में वहां स्मः ही मिलला है। वैदिक संसास में ईष्टये, ईष्टे, ईशे तथा ईशते; ये चार रूप प्रचलित हैं, वहां लौकिक संस्कृत में केवल ईष्टे का प्रयोग मिलता है। वैदिक संस्कृत में श्रृद्धि, श्रुणुहि तथा शृणोधि; भू धातु के लोट् लकार मध्य पुरुष एकवचन के ये तीन रूप व्यवहृत हैं, जब कि लोकिक संस्कृत में केवल शणु का ही व्यवहार होता है। वैदिक संस्कृत में शेये और शेते; दोनों रूपों का प्रचलन है, पर लोकिक संस्कृति में केवल शेते का प्रयोग होता है। सारांश यह है कि पैदिक संस्कृत में वैकल्पिक रूपों का जो बाहुल्य था, लौकिक संस्कृत में वह मिट गया। धातुओं की तरह प्रातिपदिकों की विभक्तियों के रूपों की घेदिक संस्कृत में बहुलता थी, लोकिक संस्कृत में वह घिलुप्त हो गयी।
पेदिक संस्कृत में अकारान्त पुल्लिग शब्दों के प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में जस विभक्ति के दो रूप बनते थे-माः, मासः; ब्राह्मणाः, ब्राह्मणासः; देवाः, देवासः । लौकिक संस्कृत में माः, ब्राह्मणाः, देवाः; ये एक-एक रूप ही रह गये । अकारान्त पुल्लिग शन्दों के तृतीया बहुवचन की भिस् विभक्ति के वैदिक संस्कृत में देवेभिः, देवैः, पूर्वेमिः, पूर्वः; इस प्रकार दो.
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