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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ दो रूप बनते थे, जबकि लौकिक संस्कृत में देवैः तथा पूर्वेः ही बच पाये । वैदिक संस्कृत में सप्तमी विभक्ति में अग्नौ और अग्नां आदि दो-दो रूप बनते थे, लौकिक संस्कृत में केवल अग्नौ ही बच पाया । वैदिक संस्कृत में क्रिया के ग्यारह लकार होते थे। यहां सम्भावना तथा आज्ञा के लिए लेट् लकार और था। जैसे, भवाति, पताति, तारिषत; आदि। लौकिक संस्कृत में लेट् लकार नहीं मिलता। वहो दश ही लकार रहे। वैदिक संस्कृत में तुमन् ( Infinitive ) के रूप चलने की परम्पया थी। तुमन् के अर्थ में और भी कई प्रत्ययों का प्रयोग होता था। जैसे, तनै —पातगै, ध्ये-मध्ये, असे-जीवसे इत्यादि । लौकिक संस्कृत में तुमन् से निष्पन्न होने वाला एक ही रूप बचा। जैसे, गन्तुम्, मन्तुम, चलितुम्, अध्येतुम्; आदि । वैदिक संस्कृत में लोट् लकार मध्यम पुरुष बहुषचन में त, तन, थन, तात; ये चार प्रत्यय प्राप्त हैं, जिनसे शिणोत, सुनोतन, यतिष्ठन, कृणुतात जैसे, रूप बनते हैं । लौकिक संस्कृत में केवल त प्रत्यय ही रह गया । जैसे, शिणुत।
पैविक संस्कृत में यु प्रत्यय से बने अनेक शब्द प्राप्त होते हैं। जैसे यज्यु, देवयु, वाजयु; आदि । लोकिक संस्कृत में वे प्रायः लुप्त हो गये । दस्यु जैसे एक-दो शब्द ही प्राप्त हैं। वेदिक संस्कृत में आत्मनेपद और परस्मैपद; दोनों गणों में जो धातुए निरूपित हैं, उनमें से कतिपय लौकिक संस्कृत में केवल आत्मनेपद में ही मिलती है। वैदिक संस्कृत में त्वद् सर्वनाम भी प्राप्त है। लौकिक संस्कृत में केवल तद् ही मिलता है। वैदिक संस्कृत में स्तिी के रूप चलते थे। स्वस्तये रूप से यह प्रमाणित है । लौकिक संस्कृत में स्वस्ति को अध्यय! माना गया है। इनके रूप नहीं चलते। पैदिक संस्कृत में उदात्त, अनुदात्त और स्वरित; तीन प्रकार के स्वर प्राप्त हैं । लौकिक संस्कृत में उनका प्रयोग नहीं होता। वैदिक संस्कृत में संगीतात्मकता है, जैसे कि ग्रीक में है। लौकिक संस्कृत में संगीतात्मकता का अभाव हो गया। धैदिक संस्कृत में य और व के स्थान पर इय और उव का प्रपोग भी देखा जाता है। जैसे, लौकिक संस्कृत के वीर्यम् शब्द के समकक्ष पीरियम् भी है और त्वम् के समकक्ष तुवम् भी। वैदिक संस्कृत का कत्वान प्रत्यय लौकिक संस्कृत में लुप्त हो गया है। वैदिक संस्कृत में सप्तमी के एकवचन में डि का लोप हो जाता है। जैसे, व्योमन् । लौकिक संस्कृत में व्योममि होता है। पैदिक संस्कृत में उपसर्ग क्रिया से दूर रहते हैं। जैसे; प्र बभ्रवै शिवतिमाय शिवतीचे लौकिक संस्कृत में वे ठीक क्रिया के पूर्व पाये जाते हैं। वैदिक संस्कृत में स्वर के कारण समास में अन्तर हो जाता है। जैसे, यदि आद्योदात्त हो तो बहुवीहि समास होता है और यदि अन्त्योदात्त हो, तो तत्पुरुष । जैसे, इन्द्रशत्र । वंदिक संस्कृत में चौसठ वर्ण प्राप्त होते हैं तथा लोकिक संस्कृत में पचास । १. सदृशं त्रिषु लिंगेषु सर्वासु च विभक्तिषु ।
वचनेषु च सर्वेषु यन्न ध्ये ते तवव्ययम् ॥
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