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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन
[खण्ड : २ कि कभी दरद भाषा-भाषी पंजाब, सिन्ध, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में रहे हों; अन्यथा सैकड़ों मीलों की दूरी पर विद्यमान भाषाओं के शब्द इतर भाषाओं में कैसे आ जाते ? भाषाओं के पारस्परिक सम्बन्ध तथा प्रभाव मानवीय कर्म-चेतना के किस प्रकार द्योतक हैं, इससे अनुमेय है।
पुरातन समय में भारत में ऐसा माना जाता रहा है कि दरद भाषाए भारतीयपरिवार की भाषाए हैं। उन्हें पैशाची प्राकृत के अन्तर्गत समझा जाता था। पर ज्योंज्यों इस सन्दर्भ में अनुसन्धि सु भाव से अध्ययन-अनुशीलन होता गया, यह मान्यता परिवर्तित हो गयी। अब भाषा-वैज्ञानिकों का इन्हें ईरानो से निःसृत मानने में प्रायः ऐकमत्य है । काश्मीरी भाषा
___ काश्मीरी भाषा को शब्द संघटन, वाक्य-रचना, ध्वनि-तत्व आदि की दृष्टि से अनेक विद्वान् ईरानी की 'दरद' शाखा के अन्तर्गत मानते हैं, पर, भारत के सुप्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक डा० पी० डी० गुणे आदि कतिपय विद्वान् इसे भारतीय शाखा के अन्तर्गत मानते रहे हैं। उनका यह भी कथन रहा है कि काश्मीरी का पेशाची अपनश से विकास हुआ है। काश्मीरी पर संस्कृत-प्रभाव का कारण
काश्मीरी पर संस्कृत का बहुत प्रभाव पड़ा है। कारण यह है कि काश्मीर प्राचीन काल से ही संस्कृत विद्या का प्रबल और प्रबुद्ध केन्द्र रहा है। संस्कृत विद्या में निष्णात होने के लिए विद्याभ्यासो जहां काशी जाकर पढ़ते थे, वहां अपनी विद्या की सम्पन्नता के लिए वे काश्मीर भी जाते थे। यहां का पीठ बहुत विश्रुत था। संस्कृत वाड मय की विभिन्न विधाओं में रचना करने वाले अनेक विद्वान् वहां हुए, जिन्होंने संस्कृत के भाण्डागार को अपने अमूल्य ग्रन्थ-रत्नों से भरा। इस कोटि के विद्वान् एक-दो नहीं, सैकड़ों हुए, जिनमें से काव्यालंकारसूत्र के रचयिता वामन ( राजा जयापीड़ ७७६-८१६ ई० सन् के आश्रित ), मामहालंकार-विवरण (जो अब प्राप्त नहीं है ) तथा अलंकारसार संग्रह के लेखक उद्भट ( जयापीड़ के आश्रित ), हरविजय महाकाव्य के प्रणेता रत्नाकरा ( राजा जयादित्य और अवन्ति धर्मा ८५० ई० के आश्रित ), कप्पणाभ्युदय के लेखक भट्ट शिवस्वामी ( अवन्ति वर्मा के आश्रित ), ध्वन्यालोकलोचन, प्रत्यभिज्ञावाव, अभिनव भारती आदि अनेकानेक महत्वपूर्ण विश्लेषण-ग्रन्थों के प्रणेता अभिनव गुप्त (१००० ई० के आस पास ), भारतमंजरो, रामायण. मंजरी, बृहत्कथा मंजरी, दशावतारचरित, पद्यकावम्वरो तथा औचित्य-विचार-चर्चा आदि के लेखक अभिनव गुप्त के शिष्य क्षेमेन्द्र ( ११ वीं शती का मध्यकाल ), कथासरित्सागर के रचयिता सोमदेव (१०६३-१०८१ ई०), सुप्रसिद्ध इतिहास-ग्रन्थ राजतरंगिणी के लेखक कल्हण (११५० ई०), सोमपालविलास काव्य के कर्ता जल्हण (११५० ई.) तथा
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