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८.] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ गये। कुछ की मान्यता है कि दो बार में या कई बार में अनेक टोलियों के रूप में वे भारत में आये और बसते गये। पहले पहल आने वाले आर्य पश्चिम भारत में बस चुके थे तथा मध्यप्रदेश व पूर्वी भाग में कुछ फैलते जा रहे थे ; अतः बाद में आने वाली टोलियों को और पूर्व में मगध, विदेह, अंग, गौड आदि प्रदेशों में बसना पड़ा हो ।
एक प्रश्न और है, जो आर्य भारत में आये, क्या वे सभी एक ही जाति के थे ? अथवा कई जातियों के थे? . डा० सुनीतिकुमार चटर्जी ने आर्यों के भारत आने के प्रसंग में लिखा है : "भारत में जो आर्य भाषा-भाषी आये थे, वे शारीरिक गठन की दृष्टि से एक ही जाति के थे, ऐसा नहीं प्रतीत होता। अनुमान किया जाता है, इनमें दो भिन्न-भिन्न जातियों के भिन्न-भिन्न प्रकार के शारीरिक गठन वाले जन-समूह थे। एक Nordic 'नाडिक' अर्थात् उत्तर प्रदेश के मानव थे। ये दीर्घकाय, सफेद या गौर वर्ण, हिरण्यकेश, नील चक्ष, सरल नासिक और लम्बे सिय वाले थे। बहुतों के मतानुसार ये ही विशुद्ध इन्दो-यूरोपीय या मौलिक आर्य हैं । और दूसरी जाति के लोग Alpine 'आल्प पर्वतीय' या मध्य यूरोपीय जाति के बताये जाते हैं। ये अपेक्षाकृत लघुकाय, पिंगलकेश या कृष्णकेश और चिपटे सिर वाले थे। भारत में आई हुई इस आल्पीय श्रेणी की जाति मूलतः आर्यभाषी थो या नहीं, इस विषय में सभी एक मत नहीं हैं । लेकिन, भारत में कहीं-कहीं, जैसे गुजरात और बंगाल में, आर्य भाषी लोग इस चिपटे सिर वाली आल्पीय णी के अन्तर्गत हैं । पंजाब, राजपूताना और उत्तर-हिन्दुस्तान में Nordic या उत्तरी श्रेणी के बृहत्काय, लम्बे सिर वाले आर्यों का निवास अधिक हुआ था, ऐसा प्रतीत होता है । आर्यभाषी उपजाति-समूह ने भिन्न-भिन्न काल में तथा भिन्न-भिन्न दलों में भारत में प्रवेश किया। इनकी भिन्न-भिन्न उपजातियों या गौत्रों में प्रचलित मौखिक या बोलचाल की भाषा में थोड़ा बहुत पार्थक्य हो गया था। लेकिन, इन सब बोल-चाल की भाषाओं के ऊपर कविता या साहित्य की एक भाषा इनमें बन गयी थी, जिसका निदर्शन हमें ऋग्वेद में मिलता है। उत्तर पंजाब में आर्यों का पहला निवास हुआ। इसके बाद आर्य जाति और भाषा का प्रसार पूर्व की ओर हुआ। सिन्धु और पंचनद से सरस्वती और दृषद्वती के दोआब से होकर वे गंगा-यमुना के देश की ओर बढ़े। द्राविड़ और आस्ट्रिक ( आग्नेय ) भाषाए आर्य भाषा के विस्तार के साथ ही साथ परित्यक्त होने लगी।"
कतिपय अन्य विद्वानों का भी आर्यों के भारत आगमन के सम्बन्ध में लगभग इसी प्रकार का विचार है कि वे कई दलों में, कई बार में भारत आये। जाज ग्रियसन का अभिमत है कि वे कम-से-कम दो बार में अवश्य आये ।
१. भारत की भाषाएं और भाषा सम्बन्धी समस्याएं, पृ० ३३-३५ ___Jain Education International 2010_05
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