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७० ] मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड: २ मानवशास्त्रवेत्ता सेर्जी ( Sergi ) द्वारा एशिया माइनर के पठार, लोकमान्य तिलक द्वारा उत्तरी ध्रव के पास, सर देसाई द्वारा रूस में बाल्कन झील के पास, डा० गाइल्ज (Giles) द्वारा हंगरी के कारपेशियन पहाड़ के आसपास, हर्ट द्वारा पोलैंड में विश्चुला नदी के तट पर, नेहरिंग द्वारा दक्षिणी रूस मच आदि विद्वानों द्वारा पश्चिमी बाल्टिक के किनारे, स्लाव भाषाओं के विद्वान् प्रो. श्रेडर ( Schrader ) द्वारा दक्षिणी रूस में वोल्गा नदी के मुहाने तथा कैस्पियन सागर के उत्तरी तट के पास, डा० ब्रान्देन्ताइन ( Brandenstein ) द्वारा यूराल पर्वतमाला के दक्षिण ( दक्षिण-पश्चिम रूस ) में आर्यो का मूल स्थान होने की परिकल्पनाए की गई हैं।
कुछ विद्वानों ने जर्मनी, लिथुवानिया, मेसोपोटामिया, रूसी तुर्किस्तान, परसिया, बाल्टिक सागर के दक्षिणी-पूर्वी तट आदि को आर्यों का मूल स्थान बतलाने का प्रयत्न किया है। प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि तिब्बत मानव-सृष्टि का आदि स्थान है। मानव-जाति का इसी स्थान पर उद्भव हुआ। यहीं से वह सारे विश्व में फैली। इस मान्यता के अनुसार तिब्बत त्रिविष्टप का परिवर्तित रूप है। त्रिषिष्टप का अर्थ तीनों लोकों का समूह है। सारी मानव-जाति का उत्पत्ति-स्थान जब तिब्बत है, तब आर्य-जाति सहज ही वहां की सिद्ध हो जाती है। आर्यों के मूल-स्थान के विषय में इतने मत-मतान्तरों के मध्य सही स्थान का अति प्रामाणिक निर्णय दे पाना सरल नहीं है। समीक्षा : स्थापना ___ उपर्युक्त मतों पर जब तटस्थ भाव से विचार करते हैं, तो सबसे पहले एक तथ्य की
ओर ध्यान जाता है, जिस पर पहले भी यथाप्रसंग कुछ इगित किया गया है। निश्चय ही बुद्धि और भावुकता परस्पर विपरीत तत्त्व हैं। भाबुकता से मोह उत्पन्न होता है। मोह का परिणाम किसी विशिष्ट वस्तु की ओर झुकाध है। यह सर्वथा सम्भव है, सूक्ष्म विवेक वहां कुछ क्षीण हो जाता है। आर्यों के मूल-स्थान के निर्धारण में भी कुछ विद्वानों की मनोवृत्ति पर इसका प्रभाव प्रतीत होता है ।
भारतीय विद्वानों ने भारत को जो आर्यों का आदि स्थान बतलाया, उसका आधार भारतीय वाङमय था। प्रो. श्रेडर ने स्लाघ-भाषाओं के क्षेत्र को आर्यो का मूल स्थान घोषित किया। प्रो० श्रेडर स्लाव-भाषाओं के विद्वान् थे। उनका अनुसन्धान और अनुशीलन मुख्यतः स्लाव-भाषाओं के आधार पर हुमा । उन्होंने अपने मत की स्थापना तथा दृढ़ीकरण में उन्हीं भाषाओं के उद्धरण उपस्थित किये । डा० लैधम स्केंडेमेषियन भाषाओं के पण्डित थे। उन्होंने एतद्विषयक अपने अध्ययन-अन्वेषण के परिणाम स्वरूप आर्यों का मूल स्थान - १. त्रयाणां विष्टपानां समाहार :-त्रिविष्टपम्
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