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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
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खण्ड:२
हुई, उसका समय ई० पू० दो हजार चारसौ से पहले का है। कुछ विद्वान् इसमें थोड़ा संशोधन करते हैं। उनका कहना है कि मूल भारत-हित्ती का समय ई० पू० दो हजार नौसौ तथा ई० पू० दो हजार चारसौ के मध्य होना चाहिए । अभिप्राय यह है, वे विद्वान् मूल भारत-हित्ती की अवस्थिति उस स्थान पर लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व से मानते हैं ।
विरोस : एक नई कल्पना
मूल भाषा से उद्गत होकर भारत-हित्ती-परिवार या भारोपीय-परिवार की भाषाएं संसार के विस्तृत भू-भाग में प्रसृत हुई, उसके लिए एक विशेष नाम की कल्पना की गयी है। उन्होंने इस कल्पना का आधार संस्कृत वीर, लेटिन Uir, Vir, प्राचीन आयरिश FER तथा जर्मन VER आदि को माना। जिन मूल-स्थान-घासियों में कभी यह भाषा प्रचूत थी, उन्हें भी वोरोस ( wIROS ) नाम से सम्बोधित किया गया।
पूर्व चर्चित भारोपीय या भारत-हित्ती परिवार के नामों के सम्बन्ध का सार यह है कि नाम की समस्या अब तक भी सन्तोषजनक रूप में समाहित नहीं हो सकी है। डा० भोलानाथ तिवारी ने इस विषय में एक सुझाव उपस्थित किया है, जो उल्लेखनीय है । उन्होंने लिखा है : यदि हम उन मूल लोगों को "विरोस' कह रहे हैं, तो उसी आधार पर उस मूल-भाषा के परिवार के लिए 'विरोस परिवार' ( Wiros Family ) का प्रयोग कर सकते हैं। सभी दृष्टियों से यह नाम दूसरों की अपेक्षा उपयुक्त है। हां, यह बात दूसरी है कि भारोपीय या ( Indo-European ) के पूर्ण प्रचलन हो जाने के बाद अब किसी अच्छेसे-अच्छे नाम के भी प्रचलन की सम्भावना नहीं है ।"1 आर्यो को मूल स्थान
'विरोस' भाषा जहां प्रचलित थी, उसको बोलने वाले लोग जहां रहते थे, वह स्थान कौन-सा था, इस पर विश्व के अनेक विद्वानों ने जलवायु विज्ञान, भाषा- विज्ञान, पुरातन साहित्य, भूगोल, पुरातत्व और ज्योतिष आदि के आधार पर बहुत कुछ चिन्तन मन्थन किया है। भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। उनमें काफी मतभेद हैं । बहुत कुछ प्रयत्न करने पर भी अब तक विश्व के विद्वान् धिरोस भाषा और लोगों के निवास स्थान के सम्बन्ध में किसी एक भत' पर नहीं आ सके । वास्तव में ज्ञान और गवेषणा का मार्ग बड़ा दुर्गम है। उसमें तपस्या और साधना चाहिए । आशा है, वर्तमान विद्वान् और आगे भाने वाले विद्वानों की पीढ़ी इस प्रश्न का समाधान ढूंढ निकालने में तब तक प्रयत्नशील रहेगी, जब तक एक निर्बाध निर्णय नहीं हो जायगा ।
१. भाषा विज्ञान, पृ० १२५
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