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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ परिवारों में भारोपीय परिवार से तथा भौगोलिक आधार पर वर्गीकृत भाषा-खण्डों में यूरेशिया खण्ड से सम्बद्ध हैं। इन भाषाओं पर चर्चा करने से पूर्व भारोपीय परिवार पर भी संक्षेप में विमर्षण आवश्यक होगा।
विश्व के भाषा-परिवारों में भारोपीय परिवार पर भाषा-विज्ञान-सम्बन्धी बहुत कार्य हुआ है। संस्कृत इसी परिवार की भाषा है, जिसका अध्ययन करते समय पाश्चात्य विद्वानों को भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने की विशेष प्रेरणा प्राप्त हुई। भारोपीय परिवार को अब विद्वान् भारत हित्ती ( Indo-Hitti ) परिवार कहते हैं । फिर भी यह परिवार आज़ भी भारोपीय के नाम से अधिक प्रसिद्ध है; क्योंकि यह वर्षों से इसी नाम से बोला जाता रहा है। संसार के भाषा-परिवारों में यह परिवार अत्यन्त महत्वपूर्ण है। संसार में इस परिवार की भाषाओं को बोलने वाले लोग संख्या में सबसे अधिक हैं। यह परिवार संसार के एक बड़े भू-भाग में फैला है। संस्कृति, सभ्यता और साहित्य के अभ्युदय, विकास और प्रकर्ष का संवहन करने की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है। इस परिवार का विस्तार मुख्यत: पश्चिम में ब्रिटेन और ब्रिटिश द्वीपों से लेकर पूर्व में उत्तर भारत तक है। मध्यवर्ती यूराल-अल्टाइक तथा वास्क के भू-भाग इससे छूट जाते हैं। वे इस परिवार में नहीं आते । वस्तुतः इस परिवार का नामकरण अब तक ठीक नहीं हो पाया है; इसलिए इसके नाम समय-समय पर बदलते रहे हैं। भारोपीय परिवार के विभिन्न नाम
सबसे पहले भारोपीय परिवार इन्डोजर्मनिक ( Indo-Germanisch ) नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसके पीछे यह विचार था कि इस परिवार के पूर्वी किनारे पर भारतीय भाषाए और पश्चिमी किनारे पर जर्मन भाषाएं हैं। किन्तु, पश्चिम में जर्मनी तक ही यह परिवार सीमित नहीं है। उसके भी पश्चिम में इस परिवार की एक शाखा और प्रचलित है, जिसका नाम केल्टिक है। इस स्थिति में "इण्डोजर्मनिक' नाम विद्वानों को उपयुक्त नहीं लगा। उसे छोड़ दिया गया। परन्तु, जर्मन विद्वान् आज भी इस परिवार के लिए इसी नाम का प्रयोग करते हैं। उनका कहना है कि यही यथार्थ नाम है । जर्मनी का महत्व घटाने के लिए इस नाम को हटाया गया ।
कुछ विद्वानों ने इस भाषा-परिवार को आर्य-परिवार के नाम से भी सम्बोधित किया। इसका आधार उन्होंने यह बताया कि इसके बोलने वाले आर्य जाति के लोग हैं। परन्तु, आगे जो गवेषणाए हुई, उनसे सिद्ध हुआ कि आर्य शब्द द्वारा उन सब लोगों का भान नहीं होता, जो इस परिवार के विशाल दायरे में हैं। कुछ आगे बढ़कर विद्वानों का ऐसा मत बना कि आर्य केवल ईरान और भारत के लोगों के लिए ही प्रयुक्त हुआ है, इसलिए समूचे
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