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३८ j आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २ ध्वनियों के उच्चारण का भी अभ्यास हुआ होगा। इस क्रम से चलते रहने से भाषा के विकास में सहारा मिला होगा। इन ध्वनियों के प्रयोग से अन्य ध्वनियों के उच्चारण का अभ्यास बढ़ने की जो सम्भावना डा० तिवारी करते हैं, वह चिन्त्य है। वस्तुस्थिति यह है, अन्य धनियां उन विविध स्थूल व सूक्ष्म पदार्थों तथा भावों से सम्बद्ध हैं, जिनका इनसे कोई तारतम्य नहीं जुड़ता। किसी ध्वनि का सहसा निकल पड़ना तथा चिन्तनपूर्वक उसका निष्कासन दोनों भिन्न-भिन्न हैं। दोनों में संगति नहीं है। प्रतीत होता है, अन्य ध्वनियों का उद्भव और विकास किन्हीं भिन्न स्थितियों और आधारों से हुआ है। इंगित-सिद्धान्त
भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो सिद्धान्त परिकल्पित किये गये, उनमें इगित सिद्धान्त (Gestural Theory ) का महत्वपूर्ण स्थान है। सबसे पहले पालिनेशियन भाषा के प्रमुख विद्वान् डा० शये ने इस ओर संकेत किया । विकासवाद ( Theory of Evolution ) के आविष्कर्ता डाविन.ने भी इस पर विचार किया। उन्होंने छः ऐसी भाषाए लों, जिनका परस्पर सम्बन्ध नहीं था। उनका तुलनात्मक अध्ययन किया और उसके आधार पर इस सिद्धान्त की प्रामाणिकता बताई। इस सिद्धान्त पर ऊहापोह वर्तमान शताब्दी तक चलता रहा । सन् १९३० के आस-पास रिचर्ड ने इस सिद्धान्त की पुनः चर्चा की। रिचर्ड की पुस्तक मानव की भाषा ( Human Speech ) है, जिसमें इस सिद्धान्त का मौखिक इगित सिद्धान्त ( Oral Gesture Theory ) के नाम से उल्लेख किया है तथा इस ओर भाषाविज्ञान के पण्डितों का ध्यान आकृष्ट किया है। प्रस्तुत विषय की महत्ता इसी से सिद्ध हो जाती है कि लगभग इसी समय आईस लैंडिक भाषा के विद्वान् अलेक्जेण्डर जॉनसन ने भी इस पर विचार किया। उन्होंने भारोपीय भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। उस बोच इस प्रसंग (इगित-सिद्धान्त ) की चर्चा करते हुए उन्होंने इसकी सार्थकता स्वीकार की। तदनन्तर उन्होंने अपनी दूसरी पुस्तकों में इसका विस्तार से विवेचन किया। तथ्यपरीक्षण और समीक्षण के सन्दर्भ में जहां उन्होंने भारोपीय भाषाओं को आधार के रूप में लिया, वहां हिब, (प्राचीन ) तुर्की, चीनी तथा कतिपय अन्य भाषाओं को भी लिया । विवेज्य प्रसंग में उसको चर्चा विशेष उपयोगी रहेगी। जॉनसन का निष्कर्ष
जॉनसन ने चार सोपान स्वीकार किये, जिनसे भाषा का विकास हुआ। उनके अनुसार पहला सोपान है-भावव्यंजक ध्वनियां । बभूक्षा, तृषा, कामेच्छा, प्रसन्नता, अप्रसन्नता, भीति, कोप आदि भाव जप मनुष्य के मन में उभरते हैं, तब वह उन्हें व्यक्त करना चाहता है । भाषा उसे प्राप्त नहीं है, इसलिए बन्दर आदि पशु जैसे इन भावों को कुछ ध्वनियों से प्रकाशित करते हैं, मनुष्य भी इनकी अभिव्यक्ति के लिए कुछ मुख-ध्वनियों का उपयोग करता है।
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