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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:२
अन्तिम सोपान है।
जॉनसन ने भाषा के अनेक पहलुओं पर विस्तार से विचार करने का प्रयत्न किया है। स्वरों और व्यंजनों का विकास किस प्रकार हुआ, इस पर भी प्रकाश डाला है। ध्वनियों के साथ अर्थों के सम्बन्ध की स्थापना पर भी चर्चा की है। उदाहरणार्थ, उनके अनुसार जिन धातुओं के आरम्भ में ऋकार या रकार होता है, वे धातुए गत्यर्थक होती हैं, क्योंकि ऋकार या रकार के उच्चारण में जिह्वा विशेष गतिशील होती है या दौड़ती है। इसी प्रकार और भी उन्होंने विश्लेषण किया है। एक विशेष बात जॉनसन यह कहते हैं कि आदि मानव ने अपने शरीर में तरह-तरह के Curves = आकुंचन-मोड़ देखे। उनका अनुकरण करते हुए उसने कतिपय मूल भावों को सूचित करने वाले शब्दों का सर्जन किया।
भाव-संकेतों का अभिप्राय
प्रस्तुत प्रसंग में जॉनसन ने तीसरे सोपान में जो भाव-सकेतों की चर्चा की है, उस पर सूक्ष्मता से विचार करने की आवश्यकता है। मानव ने अपने देह के हाथ आदि अंगों के परिचालन के आधार पर विविध ध्वनियों की सृष्टि की, यह समझ में आने योग्य नहीं है। अंग-विशेष के हलन-चलन या स्पन्दन से ध्वनि-विशेष का सम्बन्ध जुड़ना कल्पनातीत लगता है। जैसे, यदि कोई व्यक्ति क्रोधावेश में हो, दांत पीसने लगे, आक्रमण की मुद्रा में हाथ उठा ले, तो समझ में नहीं आता, किसी ध्वनि द्वारा क्या इसे प्रकट किया जा सकता है ? ध्वनि का अपना क्षेत्र है, देह-चालन से कोई विशेष आवाज तो निकलती नहीं, फिर किस रूप में उसका अनुकरण सम्भव है ? जॉनसन ने अंग-परिचालन के साथ ध्वनि-उच्चारण का तालमेल बिठाने का जो प्रयत्न किया है, वह अपने-आप में नवीन अवश्य है, पर, युक्ति-संगत नहीं लगता।
धातुओं के मादि अक्षर : विशेष अर्थ : विसंगति ___ धातुओं के आदि अक्षरों का विशेप अर्थों के साथ ताल-मेल बिठाना भी सूक्ष्म पर्यालोचन करने पर यथार्थ सिद्ध नहीं होता। ऋकार या रकार से प्रारम्भ होने वाली धातुओं का जो उल्लेख गत्यर्थकता के सन्दर्भ में किया गया था, उनके समकक्ष जो दूसरी गत्यर्थक धातुए हैं और जिनका प्रारम्भ ऋया र से नहीं होता, उनका क्या होगा? गम् धातु गत्यर्थक है। वह 'ग' से प्रारम्भ होती है। 'ग' के उच्चारण में वागिन्द्रिय का कोई अंग 'र' के उच्चारण की तरह दौड़ता नहीं, फिर उपयुक्त स्थापना की संगति कैसी होगी ? गम् की तरह अन्य भी कितनी ही धातुएं होंगी, जो गत्यर्थक हैं, जिनका प्रारम्भ ऋ या र से नहीं होता। ऋया र से प्रारम्भ होने वाली ऐसी धातुए भी हैं, जो गत्यर्थक नहीं हैं । संस्कृत की 'राज्' धातु, जो शोभित होने के अर्थ में है, र से ही उसका आरम्भ होता है। ग्रीक
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