________________ प्रथम स्थान ] [ पुद्गल सूत्र ५५–एगे सद्दे। ५६–एगे रुवे। ५७–एगे गंधे। ५८–एगे रसे। ५६-एगे फासे। ६०-एगे सुनिभसद्दे / ६१–एगे दुन्भिसद्दे / ६२-एगे सुरूवे / ६३–एगे दुरूवे / ६४-एगे दीहे / ६५-एगे हस्से। ६६--एगे वट्ट / ६७–एगे तंसे। ६८–एगे चउरंसे। ६६-एगे पिहले। ७०–एगे परिमंडले / ७१-एगे किण्हे / ७२–एगे णीले / ७३--एगे लोहिए। ७४–एगे हालिहे। ७५-एगे सुविकल्ले। ७६-एगे सुभिगंधे। ७७-एगे दुनिभगंधे। ७८-एगे तित्ते। ७६–एगे कडुए / ८०-एगे कसाए / ८१-एगे अंविले / ८२–एगे महुरे / ८३–एगे कक्खडे जाव / ८४--[एगे मउए। ८५–एगे गरुए। ८६–एगे लहुए। ८७-एगे सीते। ८८–एगे उसिणे / ८६-एगे णिद्ध / ६०–एगे] लुक्खे / शब्द एक है (55) / रूप एक है (56) / गन्ध एक है (57) / रस एक है (58) / स्पर्श एक है (56) / शुभ शब्द एक है (60) / अशुभ शब्द एक है (61) / शुभ रूप एक है (62) / अशुभ रूप एक है (63) / दीर्घ संस्थान एक है (64) / ह्रस्व संस्थान एक है (65) / वृत्त (गोल) संस्थान एक है (66) / त्रिकोण संस्थान एक है (67) / चतुष्कोण संस्थान एक है (68) / विस्तीर्ण संस्थान एक है (66) / परिमण्डल संस्थान एक है (70) / कृष्ण वर्ण एक है (71) / नीलवर्ण एक है (72) / लोहित (रक्त) वर्ण एक है (73) / हारिद्र वर्ण एक है (74) / शुक्लवर्ण एक है (75) / शुभगन्ध एक है (76) अशुभ गन्ध एक है (77) / तिक्त रस एक है (78) / कटुक रस एक है (76) / कषायरस एक है (80) / आम्ल रस एक है (81) / मधुर रस एक है (82) / कर्कश स्पर्श एक है (83) / मृदुस्पर्श एक है (84) / गुरु स्पर्श एक है (85) / लघु स्पर्श एक है (86) / शीतस्पर्श एक है (87) / उष्ण स्पर्श एक है (88) / स्निग्ध स्पर्श एक है (88) / और रूक्ष स्पर्श एक है (60) / विवेचन-उक्त सूत्रों में पुद्गल के लक्षण, कार्य, संस्थान (आकार) और पर्यायों का निरूपण किया गया है / रूप, रस, गन्ध और स्पर्श ये पुद्गल के लक्षण हैं। शब्द पुद्गल का कार्य है / दीर्घ, ह्रस्व वृत्त आदि पुद्गल के संस्थान हैं। कृष्ण, नील आदि वर्ण के पांच भेद हैं / शुभ और अशुभ रूप से गन्ध के दो भेद होते हैं। तिक्त, कटुक आदि रस के पांच भेद हैं और कर्कश, मृदु आदि स्पर्श के आठ भेद हैं / इस प्रकार पुद्गल-पद में पुद्गल द्रव्य का वर्णन किया गया है। अष्टादश पाप-पद १-एगे पाणातिवाए जाव। ६२-[एगे मुसावाए। ६३--एगे अदिण्णादाणे। १४---एगे मेहुणे] / ६५--एगे परिग्गहे। ६६–एगे कोहे / जाव 67 [एगे माणे। १८-एगा माया / ६६—एगे ] लोभे। १००–एगे पेज्जे। १०१–एगे दोसे / जाव १०२-[एगे कलहे / १०३–एगे अब्भक्खाणे / 104 - एगे पेसुण्णे] / १०५-एगे परपरिवाए। १०६-एगा प्ररतिरती। 107 -एगे मायामोसे / १०८–एगे मिच्छादसणसल्ले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org