Book Title: Bruhat Stavanavali
Author(s): Prachin Pustakoddhar Fund
Publisher: Prachin Pustakoddhar Fund
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HT For Private And Personal use only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SearNESSISeleMPSETIMASTEYASAAKAL । ॥ अहम् ॥ प्राचीनपुस्तकोद्धारफंड. ग्रंथांकः-१८ बृहत् स्तवनावलि. -~- - - जैनाचार्यश्रीमजिनकृपाचंद्रसूरिजीमहाराजके सदुपदेशसें-सुरत निवासी सा. धनसुख । चुनीलालकी माता कमलाबाईतथा-जामनगर निवासी-ताराचंद-बीकमसीनी विधवा-जडा वबाईने प्रकाशित कीया मुम्बापुर्या निर्णयसागरमुजणालये कोलनाटवीभ्यां २३, तमे गृहे रामचंद्र येसू शेमगे पारा मुजयित्वा प्रकाशिता प्रतयः-२००. वि० सं० १९७६. o rncome Po साक्ष For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar --- -- --- -- --- -- - - -- - -- Published by Jadavbai, Widow of Tarachand, Vikamsi, Nawapura, Jamnagar. Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya-sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay. OUDE For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh प्रस्तावना. ॥अर्हतो ज्ञाननाजः सुरवरमहिताः सिधिसौधस्थसिधाः पंचाचारप्रवीणाः प्रगुणगणधराः पाठकाश्चागमानां ॥ लोके लोकेश वंद्याः सकलयतिवराः साधुधर्माजिलीनाः पंचाप्येते सदाप्ताः विदधतु कुशलं विघ्ननाशं विधाय ॥१॥ कृपाचन्न सूरे जगति यशसा ते धवलिते, पयः पारावारं करिवरमजौमं कुलिशनृत् ॥ कपदीं कैलासं सुरवरः सुधां च मृगयते कलानाथं राहुः कमललवनो हंसमधुना ॥२॥ सुझसें सुम जो गुणसंघात उसके ग्रहणकरणेंमें विचक्षण र रत्नोंकी खाणसमान अहो सजनों सर्व आपलोक सावधान होकर श्रवण करो कि इस बृहत् स्तवनावलिनामक अत्युत्तम ग्रंथमें सर्वत्र पृथिवी मंगलमें (याने ) सर्व दुनियामें बहुत प्रतिष्ठाको प्राप्त करने वालें श्रतएव बहुत बमी है कीर्ति जिणोंकी और विधानोंमे शिरोमणी एसे अनेक गीतार्थोके रचे हुवे और बहुततर बोधके देनेवाले और अत्यंत सुगम प्राचीन याने जूने जूने बम बमे बहुत स्तवनोंका तथा सिकायोंका संग्रह इस ग्रंथमें है इस सिवाय और नि बहुत संग्रह है इसवास्ते हेगुणरागि सजनो। आपलोक इस ग्रंथकुं पढके याने कंठस्थ करके निर्मल ज्ञानके जजने वाले होवो और इस ग्रंथके उपवारोंमें युग प्रवरागम श्री श्री १००८ श्री श्री मजिनकृपाचजसूरीश्वरजीकी शिषनी आर्या श्रीमती For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४ ) अपराधकों हमा महिमाश्रीजी तथा श्रीमती जवेरश्रीजी के समुपदेश श्रेष्ठ है नाम जिसका और सद्गुणोंकी रागवाली श्री सुरतशहर में रहने वाली श्रीमती सुश्राविका श्री कमलाबाईका दियाहुया आर्थिक सहाय करके और जामनगर में रहनेवाली ने दीक्षा ग्रहणवाली श्रीमती जमावबाईका दिया दुवा आर्थिक सहाय करके श्री जैन प्राचीन पुस्तकोछार फन्मके कार्यवाह - कोंने प्रगट करके उपवाया और इस ग्रंथका महत प्रमाण होनेसें प्रव्यव्यय जादा लगऐंसे किमत करके इस ग्रंथकुं अलंकृत किया है और सुपो इस ग्रंथ अत्यंत मनोहर दो पर प्रमाद और विस्मृति करके क्रम उलंघन हूवा है सो दयालु सान और पाठक गए इस मेरे करें और इसमें दृष्टिदोषसें विस्मृतिदोषसें मति मोहसे बापाच्यादिकके दोषसें अक्षर पद कानो मात्रा वगेरे star अधिक हूवा होय सो दीर्घ दर्शायोंकुं शुद्ध करणा उचित है यह प्रार्थना युग प्रवरागम श्रीमनि कृपाचन्द्र सूरीश्वरजी के शिष्यरत्त विघविरोमणि ज्येष्ठांतेवासी श्रीमान् आणंदमुनिजी सें लघु गुरु नाता पं० । जयमुनिकी है सो श्रीमान् सजन पाठकवर्ग अवश्य सार्थक करेगें इति अनिल पामहे | चिरंनन्दन्तु पाठकाः ॥ चिरंनन्दन्तु गछेश्वराः ॥ चिरंनन्दन्तु श्रीकोटिक गलेश्वराः ॥ चिरंनन्दन्तु श्रीखरतरे - श्वराः ॥ चिरंनन्दन्तु श्री वीरशासनेश्वराः ॥ श्रीरस्तु ॥ विक्रम संवत १९७६ शाके १८४१ हिजरी सन् १३३७ ईसवी For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन् १९१ए नन्दीवर्धन संवत्सर व श्रीवीरनिर्वाणात् २४४६॥ श्रावण शुक्ल पंचम्यां ता० १६ अगष्टमास शुक्र श्री सुरत पत्तने पं । जयमुनिनाऽसेखि ॥ चिरंनन्दन्तु वर्तमान जट्टारकाः श्रीमजिनकृपाचप्रसूरीश्वराश्च ॥ शुनं जवतु ॥ For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ग्रंथांक. www.kobatirth.org ॥ बृहत्स्तवनावलि अनुक्रमणिका ॥ - विषय. करतानुनाम. पृष्ठ. जिनपद्मसूरिजी १ १ अतो जगवंत श्लोक " २ श्री जिनसासन से० सम० स्त० उपाध्याय धर्मव० १ ३ रिषजानन वर्ध० सास्व० स्त० उ समयसुंदरजी० ४ ४ प्रहरी प्रध्यान असा० स्त० पं० मोहनजी ए प्रणमुपज जिने ० २४जि०स्त० रंगविनयजी ६ पदेव प्रमुं २४ जि० स्त० रंगविनयजी ७ नुवनप्रदीपकवीर जीवचारस्त० ज्ञानसारजी ८ नमस्कार अरि० नवतत्वस्त० ज्ञानसारजी दंमकस्त० ज्ञानसारजी ए रुषादिक चौ० १० मोरासाहिब हो० स्तवन ११ जयजयजिन पा० ८४ श्रासा 0 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुहपस्त० स्तवन १२ सद्गुरुचरणकम० ६३ स०स्त० १३ वर्द्धमान जिनवर १४ वीरसुणो मोरी० १५ पूरमनोरथपास० २४ दंमकस्त० नाधर्मसिंहजी १६ प्रभुप्रणरे पास इरिया०स्त० बालविवलनजी १७ सुमतिजिणंदसु० १४ गु०स्त० उाधर्मसीजी १८ वंडुमनसुधविह० अढा स्त० नाधर्मसिंह १९ सासनपतिचोवी० ४२ दोषस्त० रूगनाथजी ए For Private And Personal Use Only १० उ। समयसुंदरजी नाधर्मसिंहजी २५ मुनि वसताजी २६ ललिवलनगणिजी २८ १४ 烤麵 २३ समयसुं० ३० ३२ ३६ ३५ ४३ ४० Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथांक. विषय. करतानुणाम. पृष्ठ. २० दशपच्चखाणस्त रामचंगणि २१ सुण २ सैलूंजगि जिननक्तिसूरिजी ५५ २२ मंगलकमला जामेरुमंदनजीजी ५६ १३ श्रीविमलाचत सिन राजसमुज्जी ए २४ सुणजिनवरसै जिनहरषजी ६० २५ सुरमणिसमसदुम० जिनलालसूरिजी ६२ २६ पयप्रणमीरे जिनव० चैत्रीपू० लासाधुकीर्तिजी ६३ २७ नंदीसरवावनजिक जिनचंजसूरिजी ६५ २७ मारगदेशकमोक्ष देवचंजी ६६ २५ नमोरेनमोरेसेर्बुज जिनहरषसूरि ६७ ३० वाणिब्रह्मावादिनी विमलप्रीत ६० ३१ प्रणमुं प्रथमजिने० लब्धि धर्मवनजी ७३ ३२ जिनवर श्रीवई० १५ पूरय जिनसौलाग्यसूरि ७६ ३३ सासनदेवीसारदा तिखकतप विजयविमलजी ए ३४ वीरजिनेसरनाखि सोखिया ३५ वर्तमानचोवीसी० ए६ जिन जिनचंदसूरिजी ७२ ३६ श्रीमहावीरधर्म० उपधान नासमयसुंदरग ८५ ३७ जंबूधीपसोहाम पखवासो उसमय०७ ३७ त्रिजुवननायक० १२ मासी विजयविमलजी ३ए गोतमस्वामिरेबु ६ मासी सेवक ४० सासनदेवतसाम० रोहणी श्रीसारजी mmmmmmm ए१ For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (ए) ग्रंथांक. विषय. ४१ चौवीसे श्री तीर्थ० ४५ आगम ४२ सिद्धारथसुतवंदियै ए समवाय ४३ मोक्षमारगमांरो० सजाय ४४ परवारिहोजि० सिद्धाचल० ४९ वी सथानकतपसे० २० थानक ४६ त्रिभुवननायकतूं० १२ मासी ४७ सर २ कमलननी ० सज्जाय ४० श्रीश्रयमत्तामुनि० स० ४ चंपानगरी तिन० स० ५० भरतजीमनही मिं० स० २१ जलजल तिमिलति० सजाय ९२ दमका नहीजरोसा स० २३ बाहुवलिचारित्र० स० २४ प्रवचन अमरि० स० २५ सकल देवसमरि० स० ५६ कमवाफलहोक्रो० स० २७ रे जीवमाननकी० स० ५० सम कितनो मूल० स० ५० तुमे लक्षणजोजोलो ० स० ६० सेवासंतिजिणंदकी ० स्तवन ६१ त्रिशलानंदनप्रण० नारकीनी ० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करतानुणाम. पृष्ठ. Սա शविसारजी विनयविजयजी १०५ १०५ उ । समयसु ० कृपाचंद्रसूरिः केसरिचंदमुनि १०७ विजयविमलजी १०० ११० मायाजी १११ १११ छ । समयसुं० कतकाकीर्त्तिजी ११२ जिनहरषजी ११२ ११३ विमलकीर्त्तिजी ११४ नयविमलजी ११५ नय विमलजी उदयरलजी उदयरत्नजी उदयर० उदयर० भावसागरजी मुक्तिकमखजी For Private And Personal Use Only ११८ ११ ए १२० १२० १२१ १२१ १२३ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) ग्रंथांक. विषय. करतानुनाम. पृष्ठ. ६५ नमियपयकमल पंचकड्यापुन्यसागरजी १३० ६३ नेमकीजानवणीला लावणी नवखरामजी १३४ ६४ श्रीअरिहंतअनंत० पारणे मुनिमाल १३५ ६५ गौतमस्वामीपुग स नयसारजी १३० ६६ पहिलो अंगसुहा० स० विनयचंत्रजी १३ए ६७ बीजोअंगतुमेसांन० स० विनयचंजी १५० ६० त्रिजोअंगनलोक० स० विन १४१ ६ए चोथोसमवायांग स० विन० १४२ ७० पंचमअंगे लगवति स० विन ११ बगेअंगते ज्ञाता० स० ७२ सातमोअंगतेसां० स० विन १४५ ७३ आठमे अंगअंतग० स० विन १४६ १४ नवमो अंगअणु० स० विन १४६ ७५ दशमोअंगसुरंगसु० स० विन १४७ १६ सुणोरेविपाक सः विन १४ ७७ अंगझारेमेथु० स० विन ७० मेरेमनमानीज्ञा स्तवन । वालचंद १४ए खए श्रुतअतिहिनलो० स्त उादमाक १५० G० ढंढण शबिजिनेवं सज्काय जिनहर्षजी १५० १ श्रीजिनवाणिरेध० सण २ देवदानवतीर्थक स शधिहरषजी १५३ ११३ विन १४४ LLLLLLLL १४ए For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ११ ) ग्रंथांक. विषय. ०३ सातव्यसनरोरेसं० स० ४ वीरवांदीवलतांथ० स० ८५ जुलोमनजमरा ०६ राजत ס स० तिलोनि० स० 09 अरणकमुनिवचा० स० ८० नामइलापुत्रजाणिए स० ८ वीर जिणंद समोसखा०स० ए० श्रावणका तिमगस० १५५ १५६ १५६ | समयसुंदरजी १९७ उ। समयसुं० १५८ १५ए समयसुं० पून्यसारजी १५५ सिकाइ० हीर धर्मजी १६१ स० १ जिन सासन रेसुचिस० २२ अ० लक्ष्मी रत्नसूरिजी १६२ २ संवेगरसमेकील ० जिनराजसूरिजी १६४ ९३ राजकीरलियामो स० रिद्धिहर्षजी ४ धर्म मंगलमहिमा० १ दसवैका ० जैतसीजी १६५ १६५ एए दीक्षादोहितीयां० २ स० ९६ सुधासाधुनिग्रंथ० ३ स० ए महावीरजाख्योए ० ४ स० ए० पंचमपिमेष० ५ स० वैरागी निरागी हो ६ स० 9 स० ० स० १०० साधुबूकोरे ० १०१ जिनवरगणधर ० १०२ जलगमी २ करिये० १०३ अरिहंतवचने दी ० १० स० एस० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करतानुणाम. पृष्ठ. धर्मसीजी समयसुं महमदजी जैतसीजी जैतसीजी जैतसीजी जैतसीजी जैतसीजी जैतसीजी जैतसीजी जै० जै० For Private And Personal Use Only १६६ १६५ १६० १६ए २७० १७१ १७२ १७३ १७३ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) ग्रंथांक. विषय. करतानुणाम. पृष्ठ. १०४ दसवैकालिकसू० स० कर १७४ १०५ नयरीकपिलानो स० जासमयसुं० १७५ १०६ नयरसुदरसण राय० स० जासमयसु० १७६ १०७ प्रद्मपुरवर्धनरा० स० जोसमयसु० १७६ १०० क्रोधमकरसोलो० स० जिनकृपाचं० १७७ १०ए मानवनवपामी स० जिनकृपा १७७ ११० मायाविषवेली सा जिनकृपा० १७० १११ खोजतजो नविप्रा० स० जिनकृपा १७ए ११३ हरेमारदीवालि० स० जिनकृपा १७ए ११३ सखिपर्वपजुषण स जिनकृपा १० ११४ विविधधर्मजिनवर चैत्यवंदन जिनकृपा० १०१ ११५ पांचज्ञानप्रगटावया० ५ चैत्य जिनकृपा० १०५ ११६ श्रीनेमी पंचरूप० स्तुतिसं० कुशलसूरिजी १५ ११७ षनचरणकजण स्तवन जिनकृपाचंच० १०३ ११० आग्मदिनारा चैत्य जिनकृपा० १४ ११ए श्रीमनित्रिनुव० ११ चैत्य जिनकृपा १४ १५० सीताल जिनपति० चैत्य जिनकृपाण १०५ १२१ बारमजिनवरवं० चै जिनकृपा १०५ १२३ श्रीवीरजिनेसर० पर्युष चै० जिनकृपा १७६ ११३ जयजय श्रीजिनवर्ष. दीवालि चै० जाक्षमाकट्या १८६ १२४ सिधारथकुलदिनम दीवा० चै० जिनकृपाचं० १०७ For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय. स० (१३) ग्रंथांक. करतानुणाम. पृष्ठ. १२५ वासपूज्य जिनअंत बीजनीथुइ जिनकृपाचं० १७ १२६ वीरजिनेसरजगल पर्युषणथु जिनकृपाचं १८ १२७ बींकसकुननोकऊ स . शधिहरखजी १ए १२० सासनस्वामीरे जादेमाकपा ९ए१२ए मायाकारमीरे० स० नासमयसुं० १९२ १३० सांजलरे तुं प्री० स० जिनहररवजी १९३ १३१ धुरप्रणमुंजिन सत्र । १एए १३२ सुगुरुपिगणो सुगुरुश्एसी जिनहषजी ०१ १३३ मारी बीनतमीश्रव० स्तवनवीनति अनुपमचंदजी २०४ १३४ स्वारथकीसबहेरे स नासमयसुदर० २०६ १३५ बीजैविधधर्मां० सा वीजनी केसरिचंदजी २०६ १३६ पंचज्ञान पंचमीदिने स० ५ वी केसरिचंदजी २०७ १३७ हांजीप्रवचनमा० स० जी केसरिचंदजी २०७ १३७ नेमीजिनेसरल० स०११नी केसरिचंदजी २०० १३ए हिवराणिपदमावति० स० जीवरास जोसमयसुं० २०ए १४० जगतमेनवपदज लावणी नावालचंदजी १११ १४१ गश्घटागगनमेका० ला कपूरचंदजी २१२ १४२ आदिकरणआदि० ला० दीपविजयजी १३ १४३ आगम २ वाजै खान तेजरामजी १ए १५४ श्रीमहावीरजिनेस० स० नामाक० २२ १५५ सुकृतकटपतरुमे० स० देवचंदजी २३ For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देव श्श्ए (१५) ग्रंथांक. विषय. करतानुणाम. पृष्ठ, १४६ प्रथम अहिंसक सण १४७ साधुजीसमतिबीजी स० देव २२५ १४ समतितीसरीएषणा सण देव २२६ १४ए समितिचोथीरे० स० देव २२० १५० पंचमीसमतिक० स० देव १५१ मुनिमन वसकरो० स० देव० २३० १५२ वचनगुप्तिसूधी० स० देव १५३ गुप्तिसंचारोरेत्रीजी० स० ३३३ १५४ धर्मधुरंधरमुनिवर० स० देवन २३४ १५५ तेतरिया नाश्ते कलश देव २३६ १५६ स्वस्तिश्रीमंधरपरम ५ लावना देव २३६ १५७ गिरिवैताद्य तेज प्रजजन्नास देव २४५ १५० तोरणधीरथफेरी १५ मासो देव० २५० १५ए सुखसंपति दायक घग्घरनीसानी जिनहर्षजी २५१ १६० तूं मेरेमनमें स्तवन कनककीरतिजी २५६ १६१ जिनजी महिरक स्त० जिनचंडसूरिजी २५६ १६५ आजआपेचालोस० स्त जिनचं० २५७ १६३ सेव॑जरिषनसमोसा तीर्थमाला जोसमयसुं० २५७ १६५ चौवीसै जिनवरन नवकारस्त० धर्ममंदिरजी २५ए १६५ सुखकारणनवियण नवबंद सुरवर शिष्य २६१ १६६ किं कप्पतरु रेअवा० वृधनकार जिनवखनसू० २६५ For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथांक. ' विषय. करतानुणाम. पृष्ठ. १६७ स्वस्तिश्रीदायकस सत्तरसोस्त कपूरचंदजी २६५ १६७ सेनामाताजितारि० कम्मपयमी० श्रवीरचंदजी २६७ १६ए सारदमातनमुंसिर० सांतिस्त० गुणसागरजी २६ए १७० नवियणध्यावोरेवा० स्त जिनकृपाचंड २७१ १७१ वर्धमानजिनवंदिये वीजनोस्त जिनकृपा ७५ १७५ वर्षमानजिनवरन श्रामिनो जिनकृपा० २७३ १७३ समवसरण वैगन गयरसनो जोसमयसुं० २७६ १७४ प्रणमुंश्रीगुरुपाय पांचमनोस्त न समयसुं० २१७ १७५ श्रीइंजनूतिवसुलू गोतमाष्टक जादमाक २० १७६ जनमपार्श्वनाथाय स्तोत्र २१ १७७ आदौने मिजिनस्तौ स्तोत्र जयतिलकसू २०१ ११८ परमेष्ठिनमस्कारं स्तोत्र २०२ १७ए पापालोवसुंश्रा० ३६ आलो लोसमयसुं० २५ १०० स्यादवादमतश्री० सज्जाय श्रीसारजी २०५ १७१ श्रीजिनवररे देश स० हंसजवनसूरिजी २०७ १७२ सासरियेएमजश्येरे० स० विनयप्रजसू ए. १७३ इंतोप्रणमुस जुरुपा० स० श्राणंदघनजी शए? १०८ सुणोवीर्य बोलु कवित १०५ प्रनुप्राणमुंरे पासजि स्त। - कुशलतानजी श्ए १५६ सरसवचनदेसरसति श्रष्टकण्। धर्मसींहजी ए १७७ सरसतिमाताजग नीसानी दोखतरामजी ३०० For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६) ग्रंथांक. विषय. करतानुणामः पृष्ठ. १७ प्रथमजिनेसरपाय० दानसील जोसमयसुंदरजी ३०२ १७ए स्वस्तिश्रीमंगलकर इग्यारसनो जिनकृपाचं० ३१० १९० अरिहंतादिकपद. नवपदवृक्ष जिनकृपाचं० ३१३ १५१ वीरजिनेसरलवे पानसर म० जिनकृपाचंज ३१६ १ए सिघारथकुलदिन पंचमीवृद्ध जिनकृपाचंज० ३१७ १५३ वर्धमानजिनचंदकुंण् दीवालिवृक्ष जिनकृपाचं० ३१ १ए। श्रीजिनकुशवसूरि बंद जावराज ३४ १एए वाग्वादिनीनम सरस्वती ३२६ १५६ ग्रंथप्रशस्ति पंजयमुनि। ३२६ ( ॥ समाप्ता॥ BES For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रईम् ॥ ( ग्रन्थाङ्क: ११ ) पूर्वाचार्यविरचिता बृहत् स्तवनावली अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिताः सिद्धाश्व सिद्धि स्थिता ॥ ●आचार्या जिनशासनो न्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः श्रीसिद्धान्तपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः । ते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ १ ॥ ॥ समवसरन विचार गर्जित स्तवनं लिख्यते ॥ || ( 5हा ) श्री जिन सासन सेहो | जगगुरु पास जिणंद प्रणमी जेदना पायकमल । श्रवी चौसठइंद्र ॥ १ ॥ तीर्थंकर थावे तिहां । त्रिगमो करे तयार । समकित करणी साचवे । यह कहुं अधिकार ॥ २ ॥ करे प्रसंसा समकिती । मिथ्यात्वी होवे मुंक | सूर्य देखे हरखे सहु घणें अंधारे घूक ॥ ३॥ || ढाल वीर वखाणी रांणी चेलना एचाल ॥ ॥ आप अरिहंत जले श्राविया जी । गावे परह गंधर्व समवसरण रचे सुरवरा जी। संखेपे ते कहुं सर्व ॥ ४ ॥ श्र० नुवन पति वीस में मियाजी सोलह व्यंतरसार । बोइस दश वेमाणिय जुड्याजी । चौसठ इंष सुविचार ॥ ५ ॥ श्र० । पवनसुर पुंज परमारजैजी । भूमि योजन सम जाउ । मेघ कुंमर रचे मेघने जी । करीय सुगंध निकाल ॥ ६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रा । अगर कपूर सुन्न धूपणा जी। करेयं श्री श्रगनि कुमार । वाणव्यंतर हिवे वेगसुं जी। रचे मणिपीठकासार ॥ ७ ॥ था। पुहुप पंच वरण ऊरध मुखे जी। वरपे जानु परिमाण जवणव देव त्रिगमो जलो जी । करय ते सुंणोड सुजाण ॥॥श्रा । रचय गढ प्रथम रूपा तणो जी । सोवन कांगरे सार । रविशशि रयण कोसीसको जी। कनक नो बीय प्राकार॥ए॥श्रामरतन गमरतनने कांगरे जी।रचय वेमाणीय सुर राज । जसो त्रीजो गढ जीतरे जी । जीहां विराजे जिनराज ॥१०॥ था। जीत ऊंची धणु पांचसे जी। सवा तेत्रीस विस्तार । धनुषसे तेर गढ शांतरो जी। प्रौल पंचास धणुघ्यार ॥ ११ ॥ श्रा० । दश पंचपंच त्रिहुंगढतणी जी । पावनी वीस हजार । थाक श्रम नहीय चढतां थकां जी । एक कर उच्च विस्तार ॥ १२ ॥श्रा ।पंच घणु सहस पृथवी थकी जी। उच्च रहै त्रिगढ श्राकाश । तेहतल सहु यथा स्थित वसे जी। नगर श्राराम आवास ॥१३॥आप।तोरण चिहुँशदिस तिहां जी। नीलमणि मोर निरमाण । उसय धणु मध्य मणीपीलिका जी उच्च जिण देह परिमाण ॥ १५ ॥ श्रा० च्यार आसण तिहां चिडं दिसें जी । मोतीयें काक जमाल । सम विचकूण ईसाणमें जी। देव बंदो सुविसाल ॥१५॥ श्रादेव इंउनि नाद उपदिसे जी । जिन गुण गावसी तेह । ब्रह्म जिम आई शिर ऊपरें जी। गाजसी तेह गुण गेह ॥ १६॥ श्रा। ॥ (ढाल) सफलसंसारनी ॥ * ॥ पुवदिशि भासणे या For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३ ) बेसे पहू । सुरकृत चौमुख रूप देखे सह । दीपे शोक तरु बार गुण देदथी । देखि दरखे सहू मोर जिम मेथी ॥ १७ ॥ मोतियां जालि त्रिवत्र सुविसालए । रूप चिहुं चिहुं दिसें चामरढालए। योजन गामनीवाणी श्री जिनतणी । भगवंत उपदिशें बार परषद जी ॥ १८ ॥ प्रदक्षिणा रूपथी ऋगनिकूक। गणधर साधवी तिम वेमाणीय सुरी | ज्योतषी जुवानी विंतरी स्त्री पणें । नैशत कुंए जिनवाणि ऊनी सुखें । त्रिहु॑ता पति वाय कुंए में जाए। सुर वेमानीय नरनारी ईशाणए। वारद परपदा मद मार बोए । जूख त्रिष वीसरे सुर्णे कर जोकए ॥ १५ ॥ पूठ जामंगल तेज प्रकास ए । जोयण सहस धज ऊंच आकास ए । ऊलहले तेज धर्मचक्र गगनें सही । महक सह वारणें धूपणासही ॥ २० ॥ वाहण वहील सहुधरीय पहिले गर्दै । होइ पग चारि नर नारि ऊंचा चढे । जिनतली वाणी सुखी जीव तिरजंच ए । वैर तजि बीय गढ रहे सुख संचए ॥ २१ ॥ पुण्यवंत पुरष ते परषद बारमें। सुणें जिन वाणि धनगाय अवतार में। चौविह देव जिए देव सेवा रचै । मणिमयी मांहिली प्रोलमा वसे ॥ २२ ॥ चिहुं दिसि वाटली वावी चौ जायें । विदिसि चौकूण दोइ दोइ वखाणिये । श्राव जिहां वावी लामृत जेम ए । स्नान पाने वपु निरमल हेमए ॥ २३ ॥ जय विजय जयंत अपराजिया । मध्य कंचण गर्दै प्रोल वसंतिया । बरु पुरुष खडंग र्चिमाल ए । रजत गढ प्रोलना एह रखा वाल || १४ || पहिल त्रिगको न दुवे जिए पुरग्राम ए । देव महदिकरचे तिगमए | करण वारवार नहीं कारण कोईए । For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४.) आठ प्रातीहारज ते सही होइए || २५ || जिएसमवसरणनी रिद्धिदीवी जीये । तेड़ धनधन्य अवतार पायो तिये । पास अरदास सुणी वंचित पूरज्यो । हिव मुफ ताहरो सुद्ध दरसण हुज्यो ॥ २६ ॥ (कलश) इम समवसरणें रिद्धिवर सदु जिनवर सारखी । सरददै तें वह सुद्ध समकित परम जिन धर्म पारखी । प्रकरण सिद्धांत गुरू परंपरसुणी सदु अधिकार ए । संस्तव्यो पास जिद पाठक धर्मवर्द्धन धार ए ॥ २७ ॥ इति श्री समवसरण विचार जाषा गति स्तवनं ॥ अथसंकल साखता चैत्य नमस्कार स्तवनम् ॥ ॥ ढाल बेकर जोडी तांम ए चाल ॥ रिषजानन वर्धमान | चंद्रानन जिन । वारिषेण नामे जिना ए ॥ १ ॥ तेहता प्रासाद त्रिभुवन सासता । प्रणमुं विंब सोहामणा ॥ २ ॥ चेईहर सगको कि लाख बहुतर । चेंईय प्रतिमा सो असीए ॥ ३ ॥ तेरेसे निव्यासी कोमि । साठ लाख सुंदर । जुवनपती मांहि मन वसीए ॥ ४ ॥ बारे देव लोक प्रासाद चौरासी लाख । सहस बिन्नूनें सातसैए ॥ ५ ॥ ( ढाल श्रन्यो तिहां नरहर ए चाल ॥ ) हिवे नव ग्रीवेकै पंचानुत्तर सार । चेईहर त्रासय त्रेवीसा सुविचार प्रत्येके प्रतिमा वीसासो तिहां जांए । मत्रीस सदस सतसाठ गुण खांण ॥ ६ ॥ नंदीसर बावन कुंकल रुचक 'वखांण । चऊ चऊ ईहर साठ सबै त्रिदु गए। इकसो चौवीसे गुण प्रतिमा चिहुं नांम । प्यारसे चालीसा सात सहस प्रण । For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) माम ॥ ७॥ नंदीसर विदिसे सोखस कुलगिरि तीस । मेरूवन अस्सी दस कुरु गजदंते वीस । मानुषोत्तर परबत च्यार च्यार खुकार । जैसो अतिसुंदर वासकार मकार ॥७॥ ॥(ढाल ३)॥ दिग्गजगिर चालीस । असीजह सुजगीस । कंचन गिर वरुए.। एक सहस धरुए ॥ ए॥ वृत्त दीरघ वैताढ्य । वीस सत्तरसो थाढ्य । सत्तर महा नदीए । पंच चूला सदीए ॥ १० ॥ जंबू प्रमुख दसरूक्ख । श्यारेसै सत्तर सुक्ख । कुंभ त्रण सय असी ए।वीस जमग वसी ए ॥११॥ ॥(ढाख)॥ त्रिण सहस सो एक निवां)रे । जिनवर प्रासाद वखाणूरे । वीससो ए अंक गुणीयेरे। तीर्थकर प्रतिमा शुणीये ॥ १५ ॥ त्रिण लाख सहस वलि त्र्यासीरे । प्रतिमा आठ सोने असी । सरवाले सब मेली जेरे । जिनवर प्रसाद नमीजे ॥ १३ ॥ आठकोकि सत्तावन लक्खारे । दोयसे निव्यासी कयरुक्खा । हिव प्रतिमा ग्यान कहीजेरे । जिनवरनी आण वही जे ॥ १४ ॥ पनरेसे वैतालीस कोमीरे। अमवन्न खख अधिक जोमी उत्तीस सहस अधिक कही रे । प्रतिमा सगली सरदहीयेरे ॥ १५॥ ॥( ढाल ५ मी)॥ जोइस वितर प्रतिमा सासती । असंख्यात वलि जेहोजी । पाय कमल तेहना नित प्रणमीयेः। सोवन वरण सुदेहो जी ॥१॥ बिनयकरी जिन प्रतिमा वंदीये। सुंदर सकल सरूपोजी। पूजे प्रतिमा चौविह देवता । वलिय , विद्याधर जूपो. जी.॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिन प्रतिमा बोली जिन सारखी । हितसुख मोक्ष नी दानो जी । नवियण ने जवसायर तार वा । प्रवहण जेम प्रधानो जी॥३॥ जीवा निगम प्रमुख मांहि लाखीयो । एस दु अरथ विचारोजी सांजलतां गणता सुख संपदा । हिय हरष अपारो जी॥४॥वि० (कलश) ॥ श्म सासता प्रासाद प्रतिमा संथुण्या जिनवरतणा।चिहुं नाम जिण चंद तणा त्रिनुवन सकलचंद सुहावणा। वाचनाचारज समयसुंदर गुण लणे अनिरामए । त्रिहुंकाल त्रिकरण शुद्ध होयज्यो सदा मुझ परणांमए ॥ ५॥ ॥ इति श्री सास्वता जिन चैत्य बिंब संख्या स्तवनं ॥ ॥ अथ साखता असाखता जिन बिंब नमस्कार स्तवनम् ॥ ॥* ॥ (देशी सुरती)॥ प्रहऊठी प्रनु ध्यान धरूं नमुं सिघ अनंत । त्रिनुवन माहै नमणकलं जे बिंब रहंत । नुवनपति व्यंतर जोतषि वैमानिकमांह । अनुत सास्वता बिंब नमुं मनधरि उबाह ॥ १॥ पंचमेरू वैताढ्य हिमाचल निषध प्रमाण।नीलवंत चित्रसेल कुंमल गजदंत वखांण । रुचक नंदीसर मानुषोत्तर आदि सास्वता जांण । रिषनानन चंजानन वारिषेण वर्धमान ॥२॥श्रावकोम अरूवप्पण लाख सत्ताणुं हजार। चढसै ग्यासी चैत्यसा स्वता मंगलकार । सहस अगवीस नवसै पचवीसकोक मिलाय । तेपन लख चसै अठ्याशी जग जिनराय ॥३॥ केश श्राचार्य मते श्राउकोम सतावन लाख । दोयसै अाणुं For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 3 ) त्रिभुवनमांस चैत्यनी साख । श्रावनलख पनरेसे वयाली - जोक ॥ ४ ॥ सको । श्रमतीस सहस बिंब सदृ सत असी की मगध कोसल अंग बंग कलिंग काशी कुरु देस | सोरठ कल विदेद जांगल कुसावर्त्त कहेस । जंग सोबीर वैराट मलय सांगिल सूरसेन । वरण पंचाल दशार्ण कुणाल देसमें चैन ॥ ५ ॥ खाट बिरद सिंधु देसस केक अर्ध जांए । साढा वीस देश जरतमें श्रार्य प्रधान । दोय को अघावन लाख बयासी हजार | नवसैतिदुत्तर ग्रांम नगरमां है बिंब अपार ॥ ६ ॥ बसुरत सात साठ जंबुद्दीप सहु श्रार्य होय । धातकी खं सहस एक सातसै चौतीस जोय । एताही ा पुष्करमा हैं देस गिलाय । ग्रांम नगर मांदै बिंब अनेक नमुं गुणगाय ॥ ७ ॥ सिद्धसेस उति शिखरगिरि मोटा धांम । श्रष्टापद चंपा पावापुरि शिव सुख गंम । तारंगा अर्बुद राजग्रही खेत्रप्रमाण। अंतरीक घूसेवा रामपुरो जग जांए ॥ ८ ॥ द्वीप संख्या जल यख पर्वत शिखर सुहाय । कनक धातु पाखाण रयण सदु बिंब रहाय । इम त्रिहुं लोक असास्वती सास्वती थांपना देख । त्रिकरण सुझे नितप्रति प्रयमं सद्गुण लेख | ॥ ए ॥ स्थापना जगवंते कही आगम मांदि प्रमाण । अंग उपांग देखी मननिश्चय राखो सुजाण । जे उत्सूत्र वचन के जाषक जासी निगोद । अनंत काल जमतां क्षणजरनहिं पायें विनोद ॥ १० ॥ सोम्य मूरत प्रजुनी देखी जविपामें बोध । श्राजकुमारकी रीते देखो श्रागमसोध । प्रव्य जाव विधिसंयुत सुरनर पूजे जेय । गुण पिंकस्थ पदस्थ रूपस्थ रूपातीत लेय ॥ ११ ॥ रिषजादिक चौवीस तिर्थ For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर नमुं मन खाय । गणधर सदुसंघ मंगलकारी नितप्रति श्राय । जन्म मरण सहु उख दूरे करो दीनदयाल । गत खरतरगुरु सश्मीप्रधानमोहन प्रतिपाल ॥१॥ ॥ इति श्री त्रिनुवन मंगण सर्व जिन बिंब नमस्कार स्तवनम् ॥ . ॥ * ॥ अथ २४ जिन देह मान स्तवनं लिख्यते ॥ *॥ * ॥ प्रणमुं झपन जिनेसरपाय । धनुष पांच सै उंचीकाय । बीजो अजित जिन मुझ मन वसै । मान धनुष साढा च्यारसै ॥ १॥ तीजो संजव सुखदातार । उंची काय धनुष सो च्यार।अजिनंदन जीनसुं मनलीन । देह धनुष सो साढातीन ॥॥पंचम सुमति नाथ लगवान् ।धनुष तीनसो देहीमान । पदम प्रन्नु पूरै मनास । देह धनुष दोयसै पंचास ॥३॥सामिसुपारस सत्तम होय। देह प्रमाण धनुषसोदोय। चंजा प्रनु जिन मुक मन वसै। देह प्रमाण धनुष दोढसै ॥ ४॥ सुविधिनाथ नमिये सुविवेक । चंचप्रमाण धनुषसोएक । शीतलनाथनमें जगसवे । देह प्रमाण धनुष जसु निवे ॥ ५ ॥ श्रीश्रेयांस नमुं नबसी ऊच प्रमाण धनुष तनु असी । वास पूज्य बारम जिनचंद । मान धनुष सित्तर सुखकंद॥६॥विमल विमल गुण करि गंजीर।साठी धनुष जसु मान सरीर। अनंत ज्ञान अनंतप्रकास । देहप्रमाण धनुष पंचास ॥७॥पनरम धरमनाथ जगदीस ।मान धनुष जसु पंतासींस । शांति करण सोलम जिनशांति । देह धनुष चालीस सोनंति ॥ ७ ॥ सतरम कुंथु जिन जगदाधार । मान धनुष पत्रीस उदार । श्रर अढारम दीन दयाल । त्रीस धनुष तनु अति सुविशाल ॥ ए॥ मशिनाथ जिन उगणीसमो । मान For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पचीस धनुष पय नमो । वीसम मुनिसुव्रतअरिहंत । वीस धनुष तनु मान कहंत ॥ १०॥ कवीसम नमि जिन राजान । धनुष पनरे तनु रूप निधान । बावीसम श्री नेमि जिणंद। दस धनु दीपे जाण दिणंद ॥ ११॥ तेवीसम श्री पारस नाथ । नील वरन सोहै नवहाय । चौवीसमा जिनवर श्रीवीर । सातहाथ जगनाथ सरीर ॥ १२ ॥ इण परि ए जिणवर चौवीस । प्रणमें प्रहसम धरीय जगीस । तांघर रिद्धि सिद्धि जल रंग । रंगविनय प्रणमें मुनिरंग ॥ १३ ॥ * ॥ ॥ इति श्री चोवीस जिनदेहमान स्तवनं ॥ * ॥ .. ॥ अथ २४ जिन आउ प्रमाण स्तवनं लि०॥ ॥ * ॥ षन देव प्रणमुं जिनराय । लाख चोराशी पूरव आय । बीजो अजित जसु सूत्रे साख । आज बहुत्तर पूरब लाख ॥ १ ॥ तीर्थकर संजव तीसरो । श्रन लाख पूरब सागीरो। अजिनंदन पूरे मन आस ।आन लाख पूरब पंचास ॥ ॥ सुमतिनाथ पंचम जगदीस । आज लाख पूरब चालीस । श्री पदम प्रनुनी ए स्थिति जाण । लाख तीस पूरब परिमाण ॥३॥ श्री सुपार्श्व लाख पूरब वीस । दस लाख पूरब चंदप्रनु ईस । सुविधिनाथ लाख पूरब दोय । इक लख पूरब शीतल थिति होय ॥४॥ श्राउ वरस चोरासी लाख । श्री श्रेयांस तणो श्रुत साख । लाख बडुत्तर वरसां तणो वासु पुज्य परमायुष गीणो॥ ५॥ विमल श्राउ लाख साठि वरीस। वरस अनंत तणो लख तीस । लाख वरस दस धरम जिणंद । लाख For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) वरस श्रीशांति जिणंद ॥ ६ ॥ वरस सहस थिति पंचाणवे । श्री कुंथुनाथ तणी संजवे । सहस चोरासी र जिन ती । मति सदस पंचावन जी ॥ ७ ॥ वरस संपूरण त्रीस हजार । मुनिसुव्रत परमा उदार । वीस सहस नमि जिन थिति जणी । वरस सस नेमीसर तणी ॥ ८ ॥ पास वरस एकसो सुख कंद | वरस बहुत्तर वीर जिनंद । रुषजतला तेरे अवतार । सात चंद्र संतीसर बार ॥ ए ॥ सुव्रत जव नव नव नेमीस । पार्श्व वीर दश सत्तावीस । त्रिहुं त्रिहुं जव सतरे जगदीस । सगला जव एकसो तीस ॥ १० ॥ सिद्धि लही सहुने धन धन्न | गणधर चवदेसे बावन्न । सहनें मुनि लख हासि । सहस ऊपरे तालीस ॥ ११ ॥ लाख चमाल ग्यांस हजार । मधिक सदु साधवी सोच्यार | श्रावक लाख पचावन धुरे तालीस सहस ऊपरे ॥ १२ ॥ एक कोमि श्राविका सुजगीस | लाख पांच सद्स अमतीस । एसंघ चतुर्विध सहु जिन तणें । रंगविनें प्रण में हितघणें ॥ १३ ॥ * ॥ इति श्री चोवीस जीन श्रायुप्रमाण स्तवनं ॥ ॥ अथ जीव चार भाषा गर्भित स्तवनं लि० ॥ ॥ * ॥ ( 5ड़ा ) भुवन प्रदीपक वीरनमि । किंचित जीव सरूप । कहिसुं पूर्वाचार्य जिम । बालबोध गुरु रूप I ॥ १ ॥ ( देशी सूरती महीनानी ) ॥ एग मुगति बीजा संसारी जीवकुभेद । सत्तानिने सिद्धानं तै रूप अद । संसारी थावर इग तिम त्रस दोय प्रकार | श्रप तेक बाऊ वास्सई थावर धार ॥ १ ॥ फिटक रयण मणि For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११ ) विद्रुम हिंगुल वलि हरियाल । मणसिल पारो सुवरण आदि धातु नीहाल । सेढी बन्नी अरोटो पलेवो पाखाए । जोकल तुरी श्रो भूमि पाहण जे खाए ॥ २ ॥ सुरमो लूंए जात ए पुढवी काय विछेद | जूमि आकास यस हिम करग चाऊना जेद । हरित घास ऊपर जे जलकण धूंदर तेम । होय घणो दधि प्प काय पण पाहण जेम ॥ ३ ॥ अंगारा काला जोजर तिम उलकापात । अणि कणगविद्युतादिक अगनजीव विज्ञात | उन्नामग उकलिका मंगल वलि मुहवात । शुद्ध गुंज तिम घण तणु वाऊ नेदें ज्ञात ॥ ४ ॥ साधारण पत्तेय वण-रसइ जीव उत्नेय । एग सरीर अनंतजीव साधारण नेय । कंदा अंकुर कुंपल फूल वलि सेवाल । मुंफोमा हत्तिय सरवे जे फल वाल ॥ ९ ॥ गाजर मोथ वथवो थेग पालंको साग । गुपत सिरा सांधा गांवां जाजे सम जाग । काटी माल जुंमिमें रोप्यां पलव थाय । जाल पान इत्यादिक साधारणवण काय ॥ ६ ॥ एग सरीरें एग जीव जे ते प्रत्येक । फूल बाल फल मूल काठ बीजे जिय एक । वण पन्तेय विना जे पांचे पुढवी काय । सयल लोगमें व्यापक अंत मूहर्त्ते श्राय ॥ 9 ॥ सूखमथी ते नियमा दिर्घा निजर न होय । लोका लोक प्रकाश की वलि अलप न कोय । कवमी संख गंगोला लहिगा लटनी जात । कालसी मेहर जोका विज्ञात ॥ ८ ॥ माय बाहा कृम पौरादिक बेडी होय । गोमी माकण जुना कीमा कीमी दोय । दीपक ईली घीवेली गोंगींका जात। चरम जुका गादहिया गोबर कृम उतपात ॥ ए ॥ धान कीमा जिम चोरकीमा गोवाली. For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) तहे। ईली कुंथुक इंजगोप तेजी एह । वीवू ढंकन जमरा जमरी इंशी च्यार। तीमा माखी मांस मबर कंसारी धार ॥१०॥ कवक मोला मांकमिय पतंग इत्यादिक नेद । नारक तिरिमणु देव पंचेंजी च्यार विद घम्मा वंसा सेला अंजण रिका ज्ञात । मघा माघवई नारग ए नामें सात ॥ ११॥ जलचारी थलचारी ननचारी तिरजंच । म कह सुसुमार मगर गाहा जल अंच । चौपय उरपरि जुजपरि साप जूचारी तेय । तिविहा गाय साप तिम नकुल अनुक्रमे लेय ॥ १२ ॥ खेचर चरम रोमपंखी चमचेक कपोत । मनुज लोकधी बाहिर समुग विगय पंख होत । सरबे जख थल खचर समुहिम गन्जय दोय । कम्म अकम्म नूमि अंतर दीवा मणुजोय ॥ १३॥ असुरा दिक दस होय वाण व्यंतरिया अछ। जोइस पंच वैमाणिय उविहा सुत्ते दिछ । पनरै जेदै सिषकह्या ए जीव प्रकार । तनु मानादिक हिव एहनो कहिसु अधिकार ॥ १४ ॥ देह श्राऊखो एक सरीरें थितनो मांण । प्राण जेहनें जेता तिम वलि योनि प्रमाण । अंगुल नाग असंख सहू एगिंदीकाय । जोयण सहस साधिक पत्तेय वणस्सई काय ॥ १५ ॥ विति चौरिंजी अनुक्रम नक्कि देह ऊंचास । बारे जोयण तीन गाऊ ग जोयण लास । सत्तमना नेरश्या धनुः सय पंचप्रमाण । तेहथी अरध अरध जणा अनुक्रम रयणाण ॥ १६॥ जोयण सहस गनधर मल उरगनो देह । गाऊ धणुहपहुत जूचारी पंखी जेह । खेचर नवधणु जुयंग जरग जोयण नव होय। नव गाऊ परिमाण समुहिम चौपय सोय For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १७ ॥ खम गाऊ ऊंचास चप्पय गन्लयमांण । तीन कोस उक्कोस मनुजनो काय प्रमाण । लवण व्यंतर जोइस वेमाणिय ईसाणंत । सातहाथ नकोसे ऊंचपणे तणु दुत ॥ १७॥ सन. तकुमार माहें षम ब्रह्म खांतक पांच । शुक्र सहस्रारें उक्कोस ध्यार कर वांच । आणतप्राणत आरण अच्युत हाथै तीन । नव अवेयक दोय पंचानुत्तर गलीन ॥१॥ बाबीस सात तीन दशवरस सहस्से आय । आऊ वाऊ वण ती दिन तेऊ काय। बारवरस गुणचास दिवस तिम वलि बम्मास । अनुक्रम बेत्री तेची चौरिंधी रास॥श्मासुर नारग तेतीस अयर नकोसें थाय। चौपय तिरिय मनुजनो तीन पट्योपम श्राय । जलचर उरपर जुजपर उक्कोसें पुच कोम । पंखीने ग नाग असंख पट्यनो जोम ॥२१॥ सरब सूखम साधारण समुबिम मणु जेह । जहन्न नकोसे अंतमुहत्त नियम थिति तेह । श्म श्रोगाहण नाख्यो संखेपे अधिकार । जे वलि इत्थ विसेस विसेस सुत्रसूं धार ॥२२॥ असंख उसप्पणि सहुएगिंदी आपणीकाय । उपजे चवे अनंत साधारणवणस्सईकाय । संख्याता संवबर विगल थापणी देह । सात श्राउ नव पंचिंगी तिरि मणुआ जेह ॥२३॥ नारकथकी उदवरती जीव नरक नवि जाय । देव चवीने ते वलि देवपणे नवि थाय । इंशीय सासोसास आऊ बल ए दस प्राण । च्यार उ सात आठ ग उति चौरिंडीय जाण ॥४॥ सन्नि असन्नि पंचिंदी दश नव अनुक्रम जोय । प्राण की जे विप्रयोग जिय मरणे होय । जीमसायर संसार अपार अनंतीवार । जमियों जीव धरम विण जोणि शशीने न्यार For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) ॥ २५॥ सग सग सग सग दश चवदे दो दो दो लाख । च्यार च्यार तिम च्यार चवद लख सूत्रे साख । नू थप तेऊ वाऊ वणपत्तेय साधार । बि ति चौपण तिर नारग सुरनर अनुक्रम धार॥२६॥ काय न आय न पाण न जोणी कुल नहीं जात । सादि अनंत नंग जिन श्रागम थिति विक्षात । रोग न सोग न जोग जोग नहीं नारि लिंग । नहीं य नपुंसक पुरष तणा नहीं अंग उपांग ॥ २७ ॥ नाण दंशण चारित वीरज ए च्यार अनंत । सिद्ध श्रया तेहथी सिद्धांते सिद्ध कहत । इमए जीव विचार गाथाथी लाषा रूप । श्रावक आग्रहथी में कीनो सुगम सरूप ॥ ॥ खरतर गळ नट्टारक श्रीजिनसान सूरीस । रत्नराज गणिग्यान सार मुनिसीस जगीस। संवत शशि रस वारण ससिहर धर निरधार ।माघ चौथ दिनकी नो जैपुर नगर मकार ॥२॥ इति श्रीजीवविचार प्रकरण नाषा गजित स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ नवतत्व भाषा गर्षित स्तवनं लि०॥ ॥ * ॥ उहा ॥ नमस्कार अरिहंतनें । सिघसूरि उवकाय । साधु सकल प्रणमीकरी प्रणमी श्रीगुरु पाय ॥ १ ॥ करस्युं हूं नवतत्वनी । गाथा नाषा रूप । मंदबुधि गुरु सानिधे । कहिस्यु सुगम सरूप ॥२॥ (सुरती महीनानी देशी) जीव अजीवें पुण्य पाप तिम आसव सोय । संबर निकर बंध मोद ए नव तत्व होय । चवद चवद बायाल वयासी वलि बायाल । ससावन बारे चौ नव क्रम जेद निहाख ॥१॥ग उति चौविद पणविह बिह For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १. 1 जीव कहा य । चेतन त्रस थावर वेदे गई सूखम वादर ए दो जिय गए । सन्नि चौरिंदी आण ॥ २ ॥ ए सग पत्ता पत्ता चवदे होय । अनुक्रम जीवठाण ए सूत्र प्ररूप्यासोय । नापंसण चारित वीरज तप तिम उवयोग । ए षलक्षण लक्षित जीव द्रव्य इह खोग || ३ || इग आदार सरीर इंदिय पत्ती तीन । सासो सास जापा मन षए अनुक्रमलीन । च्यार एगिंदी पंचपत्ती विगलें जोय । पंच सन्नि सन्नितें पर पत्ती होय ॥ ४ ॥ इंडिय पांच उसास आऊ बल ए दस प्राण । च्यार ब सात एगिंदी विगले जाए । सन्नि सन्नि पंचिंदीने नव दस क्रम थाय । प्राणांथी जे विप्रयोग जिय मरण कहा य ॥ ५ ॥ धम्मा धम्म श्रगास तीनूंना त्रिए त्रिए जेद । काल दशम इग आगास पुग्गल घ्यार विबेद । खंधा देश पएस परमाणु चवद जीव । धम्मा धम्म पुग्गल नन काल ए पांच न जीव ॥ ६ ॥ चल सहाई धम्मे । थिर संघाण अधम्म । श्रवगाहें पूरण गल नन पुग्गल धम्म । समया वलिय महुत्त दीह पख मासनें साल । पत्योपम सागर उस्सप्पणी सप्पणी काल ॥ ७ ॥ पक इग दो सग सगसग पर इग अंक गिलाय । एग महुत्तें श्रवखि संख्या सूत्रकाय । तीन सात वलि सात तीन ऊसासें माण । केवल नाणी जलियो एद महुत्त प्रमाण ॥ ८ ॥ साता उच्चगोय मणु सुर दुग पंचिंदी जाय । पांच शरीर श्रादिम तिसरीर जवंग कहाय । श्रदिसंघेण संठाण चौवर्ण अगुरु लहु होय । परघ ऊसास तेम वलि श्रातपनें जोय ॥ ए ॥ सुन करणें काय । एगिंदी सन्नि पदी विति For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खगई निम्माण तसादिदशुंनीमाल । सुरनर तिस्यि आऊ तित्थंकर पुण्य बायाल । तस वादर पक्रत्त पत्तेय थिरं सुन्न सोय । सुलग सुसर आइज जसें त्रस दसको होय ॥ १० ॥ नाएंतराय दसक नववीजा नीच असाय। मिल थावर दश नारगत्रिक पचवीस कसाय।तिरयंच उंग एकिंजीबिति चौरिडी तेय। कूखगई उपघा अपसत्थ वण चौनेय॥११॥ पढम संघयण विना संघयण तेम संहाण । एम वयासी प्रकृति पापतत्वनी ए जाण । पावर सुहम अपजा साहारण अधिरे गेय । असुन कुत्लग दूसर पाइजा अजस दसलेय ॥ १२॥ पणं चौपण तिय इदिकसाय अवय तिम जोग । बायालीस सेस पच्चीस क्रिया संयोग । काश्य अहिगरणीया पावसिया परिताप । प्राणातिपात श्रारंजकी परिगहियानो लाप ॥ १३॥ माया प्रत्यय मिला दंसणवत्ती तेम । अपञ्चक्खाणकी दिक पुहि पामुञ्चिय जेम । सामंतोपनवणिय नेसत्थि साहत्थै जेह । आज्ञापनकी वेयारण श्रणजोगा तेह ॥ १४ ॥ श्रणवकख पञ्चयना उवयोगी समुदाय । प्रेम ष इरियाबही किरिया ए कहिवाय।सुमति गुपति परिसह जश्वम्म नावण चारित्त । पण तिग बावीस दस बारै पण संबर तत्त ॥ १५ ॥ इरिया-नाषा एषणा सुमतीना भेद होय । आदान जंग उच्चार निक्खेवण पांचे जोय । मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती त्रिण जाण । हिव श्रागे बावीस परीसह कईहित श्राण ॥ १६॥जुख पिपासा सीत ऊसन मांसा निरचस्थ । अरति जोषा चरिथा नैषिया सिज्जासत्त । अक्कोस वह जायण प्रसाज सेग त्रएफास । मख सकार पन्ना अन्नास For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समत्त समास ॥ १५ ॥ खंति महव असाव मुत्ती तव संजमें सम्म । सत्यं सौच अकिंचन बंजचेर जई धम्मः । पढम अनित्य अशरण संसार एग अनत्त । श्रसुचि आश्रव संबर निआर नवि जावो नित्त ॥ १७ ॥ लोकसुलाव बोधपुरखन ग्यारम गाव । धरम साधक अरिहंत ए बारे नावन नाव । सामायक वेदोप स्थापन बीजो सोय । परिहार विसुङ्ग सूखमसंपराय चउत्थो जोय ॥१॥तिम अहक्खाय चरित्त सर्व जिय लोग प्रसिद्ध। जेह सुविधि आचरणे के जिय पाम्या सिद्ध । बारे विध निऔर तत्व बंधना च्यारं प्रकार । प्रकृति लिई अनुनाग प्रदेश नेदें निरधार ॥२०॥श्रणसण उणोदर वृत्ति संखेय रसनो त्याग । कायकलेस सहीनता बाहिर तप पड्लाग । पायबित विनय वेयावच्च तेम सज्जाय । ध्यान कासग्ग अन्यंतर तप षमविध थाय ॥ २१ ॥ प्रकृति सुनाव काल अवधारण श्रित निरबंच । अनुलागै रसतेम प्रदेसें दलनों संच । पट प्रतिहार धार तरवार मद्य वलितेम । निगम चित्रकर कुंलकार नंमारी जेम ॥ ३॥ अनुक्रम आउनामना जाख्या जे जे जाव । तिम ज्ञानावरणादिक अमना एहसनाव । इम संखे विवरणकीना आहे तत्त । प्रस्तावे पाम्यो वरणवस्यु हिव मोखतत्त ॥ २३ ॥ संतपदे परूवण अव्यने क्षेत्र प्रमाण । फरसन काल पांचमों बो अंतर जाण । नाग सातमो नाव श्रावं तिम अलपबहुत्त । ए नवनेदें जावन करस्युं नवमो तत्त॥२५॥ मोक एक पदथी ने जे पदे अविनाजाव । व्योम कुसुम तिम ससिक शंग जिम नहींय अजाव । एहवों जे पद मोक्ष तेहनों बृ०२ For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) मनवा बार । विश्वकर बरणवस्थे. सुयो सुहम विचार #३५॥ गति नर दिय पञ्जीका प्रेसकाच नाणे जेहनें क्स संचमनी अहलाच । दसबमें इक केवल दसख श्रवण होय । जय चलव्य अव्यपणो परिषाके जोय ॥ २६ ॥ संमत्त दायक सन्नी असनीय सन्नि । अबहारी थाहारी अखसरी उप्पन्न । अन्य प्रमाणे सिद्ध जीवजन्य होय अनंत । खोग असंखम जीग फासिष्प- होय अवंत ॥२७॥ फरसन खेत्रथि अधिक काल न सिक प्रतीत । सादि अनंती वित जिन भागमकी सुविदीन । प्रतिपाती नाचे नहीं सिझां अंतर जोय । सरव जीवनी जांग अनंतम सदु सिद्ध होय ॥ ४ ॥ दसण नाए जेहमें थे ते दायक जाव । जीवत जेहने वलि परिणामक नाव समाव । सहुथी थोमा बेद नपुंसकथी बे। सिम तेहश्री श्री नर धनुक्रम संखगुप्ता सुपसिछु ॥ श्ए । जे जाएं जीकादिक नात्त तसं सम्मतः । चण जाणंतानें सुयै जे सरधान स । सरब- बिसर मुखबी जाख्यावयक्ष जहत्य । ए बुद्धी जेहने मन सम्मत निचलतत्य ।। ३० ।। अंतर मदुरत एगमात्र करस्यों संमत्त । वर्षपुग्गल परियह नियम संसार निमत्त । उस्सप्पणीय श्रणंत एग पुग्गल परि यह। अनंत अतीत अनागत तदगुणक्यण प्रगट्ट ॥३१॥ श्म नवतत्त जेद पनि जेदे विवरण कीध । श्रावक श्राग्रह कीन सहाय पूरण रसवीध । कोटिक गण मुनसदन प्रकास नदी उपमान।श्रीजिनलाल चंदकुल पूनम चंदसमान ॥३५॥ भयानादिक करिक्रसिंहें परी साख । रसराजमुनि ते For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) वम्साखानी पमिसाख । ग्यानसारं ते पमिसाखानी सूखममाल। ए नवपद नवरयण विनाणे गूंथीमात ॥ ३३ ॥ संवचरनिश्चय नय विगई प्रवचनमाय । परम सिद्धपद वामगते ए अंक गिणाय । माघ किसन ससिवार मेरु तिथ पूरन कीध । च्यार कथा तजि तत्वकथा नज नर फल लीध ॥ ३४ ॥ इति श्रीनवतत्व नाषागिनत स्तवनं संपूर्ण ॥ ... ॥अथदंडक भाषागर्भित स्तवनं लिख्यते ॥ * ॥ षनादिक चौवीस नमि । तेहनो सूत्र विचार । दंगक रचनाये स्तवं । संखेपे निरधार ॥१॥ नरक सात दंगक पढम । असुरा नाग सुवन्न । विगु श्रगनि दीबोदही । दिसि पवणे थणियन्न ॥॥ पुढवी आऊ तेक वलि । वाऊ वणस्सईकाय । बिति चौरिंदी गन्नधर । तिरि नर तिहां मिलाय ॥३॥ व्यंतर जोइस वेमाणिया । ए दमक चौवीस । एहना पार कहुं हिवे । गणनायें तेवीस ॥४॥ * ॥ वीरजिणेसरनी देशी ॥ * ॥ सरीर श्रोगाहण संघयणे संगण । कोहाई सिदिय दो समुग्धाय प्रमाण । दिछी देसण नाण जोग तिम वलि उपयोग । उपपात वलिय चवण लिई पङत्ति प्रयोग॥१॥ के दिसिनो आहार सन्नि गइ आगइ वेय । दार गाहा जुगनो ए अरथ कह्यो संखेव । हिव तेवीस दारनो रचिस समय अनुसार श्रलप रुची हुं तेहथी कहिसुं श्रखपविचार ॥२॥ * ॥ सूरती महीनानी देशी ॥ * ॥ चौगनय तिरि वाऊ काये च्यार सरीर । मनुष्यमें पांच दमक इकवीस रह्या तिसरीर । For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) थावर च्यारने जहन्न उकोसे देह प्रमाण । नाग असंख्यातम ग. अंगुलनों परिमाण ॥१॥ सरबनो जघन्य स्वजावक अंगुल नाग संदात । उक्कोसें पणसें धणु नारगमें.. विदात । सुरनो सात हात गल्लयतिरि वणस्सई काय । जोयण सहस साधक इक सहस अनुक्रम थाय ॥२॥ नर तेइंदि तिगाऊ बेइंदी जोयणबार । एग जोयण चौरिंदी देह ऊंचे आकार । आरंज काले वैक्रिय देहनो ए परिमाण । जाग एक इक अंगुलनो संख्यातम जाण ॥ ३ ॥ सुर नरनें साधक इक लाख जोयण ग लाख । नवसे जोयण तिरजंचनें ए सूत्रे साख । सानावकथी उगाणो नारक वैक्रिय काय । एक महूरत नारय नर तिरि च्यार कहाय ॥४॥सुरने पढ़एग नकोस विनवण काल । विगल संघयणी थावर सुर नारकनी माल । गनय नर तिरनें षडू विगलने बेवक एक । सरब जीवनें च्यार दसे सप्लायें लेख ॥ ५॥ नर तिरनें षम सुरनें सम चौरस संगण । ढुंमक इग नारग विगदी सूत्र प्रमाण । नाणाविह धय सूर मसूरनी चंद्र आकार । वणस्सइ वाज तेउ नू बुदबुद अप्पाकार ॥६॥ सहुने च्यार कषाय गनय षम नर तिरि दोय । वेमाणिय नारग तेल वाल विगल त्रिक होय । जोयसि तेऊ लेसा सेस. रह्यांने च्यार । दार इजियनो सुगम तेहनो स्युं नारग विसतार ॥७॥ समुदघात सग नरने पण गप्पय तिरि देव । नारक वायुनें च्यार सेसने तीनुं नेव । दिनी दोय विगलमें थाव रने मिथ्यात । सेसनें तीन दिहि जिम प्रवचनमें विक्षात ॥७॥ थावर वितिनें एक अचक्खूदंसण होय । चौरिंदी तेचक्खु For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१ ) चक्खूंदसण होय । मनुजनें प्यार सेस दंरुगमें दंसण तीन । ना ना तीन सुर तिरि नारगतें लीन ॥ ए ॥ थावर दोय ना विगल दो नाए अनाए । गलय मणुनें तीन नानें पांचं नाए । सुर नारग एकादश तिरनें तेरे जोग । मनुजनें पनरे प्यार विगलने जोग प्रयोग ॥ १० ॥ वांकायनें पांच तीन यावर संयोग । मनुजनें बार नरग तिरि देवनें नव उपयोग । विगल पुगे पण पड़ चौरिंदी थावर तीन । उववाय ग चवण दार दोनुं समकीन ॥ ११ ॥ एगसमें संख्यात असंख्या चचणुपपात । गञ्जय तिरि विगलेंदी नारय सुर विख्यात । मणुझा यावर वणस्स संख असंखत । मज सन्नि संख चवंत तेम उपजंत ॥ १२ ॥ बावीस मपुज सात तीन दस वरस सहस्त कि । वएस्सई च्यारनें तीन दिवस तेऊनें जिछ । नर तिरि तीन पहय सुर नारग अयर तेतीस | व्यंतर पय अधिक लखवरस पत्य जोईस ॥ १३ ॥ असुरादिक दशनें इक सागर अधिकाय । देसें ऊणा ata erat aar निकाय । विगलने बार बरस गुणचास दिवस म्मास । तमहुत्त जहन्नें पुढवाई दसरास ॥ १४ ॥ वनपती नारग व्यंतर दस वरस हजार । पढ्य तेना स वेमायि जोइस धार । सुर नर तिरि नारगनें षट थावरनें च्यार | विगलने पंच पत्ती ए अफारम दार ॥ १५ ॥ सरब जीवनें होय बए दिसनो आहार | होय न होय पंचादिक दिस ए सुत्र मकर । दीह कालकी चौविह सुर नारग तिरजंच । विगलने हे पएशा सन्नि रहितरि पंच ॥ १६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) गनय मणुजनें दीहकालकी सन्ना होय । केशक श्राचारज कहै दिहि वायकी दोय । निश्चय पत्ता पंचिंदी तिर नर जेह । चौविह देवां मांहे. श्रावी ऊप जे तेह ॥ १७ ॥ संखाउ पजत्त पंचिंदी तिरि नर तेम । पजाता जूदग पत्तेय वसई जेम । ए सर्वमें निच्चे सुरनी श्रागति हुंति । पऊत्त संख गनय तिरि नर सग नरके जंत ॥ १० ॥ नरक उदवरत्या नर तिरि उपजे नहुवे सेस । नू अप्प वणस्सईमें नारग विण उपजे असेस । पुढवाई दसपयमें नू बाऊ वण जंति । पुढवाई दस पयमें तेऊ वाऊ उपजंत ॥ १ए॥ तेउ वाऊनो गमण पुढवी पद नवमें दुत । पुढवाई दस पदमें विगल जावंत श्रावंत । सहमें तिर गति आगति मणुश्रा सहुमें जाय । तेढ वाऊथी मरीने जीव मनुज नवि थाय ॥ २० ॥ श्री पुरसे चौविह सुर तिरि नर तीनूं वेद । थावर विगल नारगर्ने एक नपुंसक नेद । पऊत्त मणु वादर अगनि वेमाणिक-तेम । लवण नारग व्यंतर जोईस चौपण तिरि एम ॥१॥ बेइंजी तेइंत्री पृथवीने अप्पकाय । वाऊ वणस्सई अधिक अनुक्रम करि कहिवाय । हे जिन ए सहु लवमें पाम्या वार अनंत । तेहनो अनुक्रम गणितां किम हीन आवे अंत ॥ २५ ॥ नर सुर विण सहु दमग ते गति संयोग । साधो नहीं तुह दंसण कीनो कम्म प्रयोग । सुरमे पिण सण लहि चिरति नपामी मूल । ते सुर जात सहावे देस विरति प्रतिकूल ॥ २३ ॥ श्रारज देस आरजकुल शुद्ध सुगुरु उपदेश । तेहथी तुह दंसनो किंचित पाम्यो लेस । धारक तारक कारक वारक दंसप देव । श्रातम For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) गुण संसार सम्मत्त कम्म सयमेव ॥ २४ ॥ खरतरगल जकारक श्रीजिनदानसूरिंद । रत्नराजमुनि सीस तेहना पद अर. विंद । रजमकरंदें सीणो ग्यानसार तसुसीस । तेण स्तव्या तेवीसदार दंझक चौवीस ॥२५॥ संवत शशि रस वारण तेम चंद निरधार । पोष मास पख ऊजल सातमनें सोमवार । श्रावक वाग्रहथी एकीनो अटपविचार । श्रम चौमासो कर जैपुर नगर मकार ॥२६॥ इति श्री चतुर्विंशतिदमकस्तवनं संपूर्ण ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ श्री शीतलनाथ स्वामींनो स्तवनं लि०॥ मोरा साहिब हो श्री शीतलनाथ कि । वीनती सुणो इक मोरकी। मुख जांजेहो जग दीनदयाल कि । बात सुणी मैं तोरमी ॥१॥ मो० ॥ तिण तोरे हो हुँ आयो पास कि। मुक मन श्रास्या के घणी ॥ मो० ॥ कर जोमी हो कई मननी बात कि । तुं सुपिजे त्रिजुवन घणी ॥२॥ मो० ॥ हुँ नमियो हो नव समुन मकार कि । पुरक अनंता में सह्या । ते जाणे हो तुंहीज जिनराज कि । में किम जायें ते कह्या ॥३॥ मो० ॥ जाग जोगे हो तोरो श्रीनगवंत कि। दरसन नयणे निरखियो । मन मान्यो हो मोरे तुं अरिहंत कि । हियमो हे जे हरखियो ॥४॥ मो॥ एक निश्चे हो में कीधो श्राज कि । तुज विण देव बीजो नहीं। चिंतामणि हो जो पायो रतन्न कि।काच ग्रहै कहो कुण सही ॥मो॥५॥ पंचामृत हो जिण लोजन कीध कि । खल खायवा. मन किम थाये । कंठतां हो जो अमृत पीधतो । खारो जल कहो कुण For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५) पिये ॥६॥ मो० ॥ मोती कोहो जो पहस्यो हार कि । चिरमठि कुण पहिरे हीये । जसु गांठे हो लाख कोमि गरत्थ कि। व्याज काढी दाम कुण लीये ॥ ७॥ मो० ॥ घर माहें हो जो प्रगढ्यो निधान तो। देस देसांतर कुण नमें । सोना नोहो जो पोरसो सीधतो। धातुर वादी कुण धमें ॥८॥मो॥ जिए कीधो हो जवहर व्यापार कि । मणिहारी मन किम गमें । जिण कीधो हो सदा हाल हुंकम्म कि । ते तूं कारो किम खमें ॥ए॥मो० ॥ तूं साहिब हो मोरो जीवन प्राण कि । ढुं सेवक प्रनु ताहरो । मुरू जीवत हो आज जनम प्रमाण कि। नव मुख जागो माहरो ॥ १० ॥ मो० ॥ तुझ मूर्ति होदेखता प्राय कि । समवसरण मुक संजरे।जिन प्रतिमा हो जिन सरिखी जाण कि । मूर्ख जे सांसो करे॥११॥मो॥तुह्म दरसण हो मुझ आणंद पूर कि। जिम जग चंद चकोरमा तुह्म नामें हो मोरा पाप पुक्षायकी। जिम दीन जगे चोरमा ॥१॥ मो० ॥ तुह्म दरसण हो मुक मन उरंग कि।मेह आगम जिम मोरमा । तुह्म नामें हो सुख संपत्ति थाय कि । मन वंबित फल मोरमा॥ १३ ॥ मो० ॥९ मांगुं हो हिव अविहम प्रेम कि।नित नित करूं निहोरमा । मुझ देज्यो हो स्वामी जव जव सेवकि । चरण न बोमु तोरमा ॥ १४ ॥ मो० ॥ कलश ॥ श्म अमरसर पुर संघ सुखकर मात नंदा नंदनो। सकलाप शीतलनाथ स्वामी सकल जन श्रानंदनो। श्रीवच लंबन वरण कंचन रूप सुंदर सोह ए। ए तवन कीधो समयसुंदर सुणित जन मन मोह ए ॥ १५॥ * ॥ इति श्री शीतलनाथजिनस्तवनम् ॥ * ॥ For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५), ॥ अथ ८४ आसातना स्तंवन लि०॥ ॥ ढाल ॥ विलसै शधिनी ॥ जय जय जिण पास जगत्र धणी । सोला ताहरी संसार सुणी । आयो हुँ पिण धर आस घणी । करिवा सेवा तुम चरण तणी ॥१॥ धन धन जे त पके जंजाले । उपयोग सुं बैसै जिन आले । बासातना चउरासी टाले । सास्वता सुख तेहीज संलाले ॥२॥ जे नाखे श्लेखम जिनहरमें । कलह करे गाली जूयरमें । धनुषादि कला सीखण इके । कुरखो तबोल नखे थूके ॥ ३॥ सुरे वायवी लघुनीत तणी । संका कुंगुलिया दोष सुणी । नख केस समारण रुधिर क्रिया । चांदीनी नाखे चांबमिया ॥ ४ ॥ दांतणनें वमन पीये कावो। खावे धाणी फुली खावो । सूवे वेसा मण विसरावे । अज गज पशुनें दामण दावे ॥५॥ सिर नासा कान दसन आखे । नख गाल वपुषना मल नाखे। मिखणो लेखो करे मंत्रणो । विहचण अपणो करि धन धरणो ॥६॥ वेसे पग ऊपरि पग चढियां । थापे गंणा उमे ढूढणीयां । सूकवे कप्पम पप्पम मियां । नासीय रिपे नृप जय पमियां ॥ ७॥ शोके रोवे विकथाज कहै । इहां संख्या बेतालीस खहै । हथियार धमेनें पशु बांधे । तापें नांणों परखे रांधे ॥७॥ जांजी निसही जिनगृह पेसे । धरे बबनें मंम्प में बसे । पहिरे वस्त्र अनें पनही । चामर वीकें मन गम नहीं ॥ ए तनु तेल सचित्त फल फूल लीये । नूषण तजि आप कुरूप थीये । दरसपथी सिर अंजलि न धरे । ग सामे उत्तरा संग न करे ॥१०॥ गेगो सिर पेच मोम जोमे। दमिये रमनें For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६ ) बेसे होने । सयणां सुं जुहार करे मुजरो । करे जंग चेष्टा कहै वचन बुरो ॥ ११ ॥ धेर धरणो ऊगमे उठी । सिर गुंथे बांधे पालंठी । पसारे पग पहरे चाखकीयां । पग ऊटक दिरावे पुरवमीयां ॥ १२ ॥ करदम लूहे मैथुन मंगे । जूत्रां वलि तिहां बं । उघामे गुजकरे वयदां । काढे व्यापार तणी कदां ॥ १३ ॥ जनहर पर नालनो नीर धरे । घोले पीवा गम नरे । डूषण जिन जवनमें ए दाख्या । देववंदण भाष्यमें जे जाख्या ॥ १४ ॥ सुज्ञानी श्रावक सगति बतां । आसान टाले वार सतां । परमाद वसे कोई थाये । आलोयां पाप सहू जाये ॥ १५ ॥ तंबोलनें जोजन पान जुचा । मल मूत्र सयन स्त्री जोग हुआ । भूषण पनही ए जघन्य दसे । वरज्या जिनमंदिर मांहि वसे ॥ १६ ॥ Sव्यतनें जावत दोय पूजा । एहना हिज नेद कह्या दूजा । सेवा प्रजुनी मन सुद्ध करे | वंबित सुख लीला तेह वरे ॥ १७ ॥ * ॥ कलश ॥ * ॥ इम जव्य प्राणी जाव आणी विवेकी शुभ वातना । जिन बिंब अरचे परी वरजे चोरासी सातना । ते गोत्र तीर्थंकर उपार्जे नमें जेहनें केवली । नवज्याय श्री धर्मसद वंदे जैन सासन ते वखी ॥ १८ ॥ इति श्री चोरासी आसातना स्तवनम् ॥ अथ ६३ सिलाकापुरुषस्तवनं लिख्यते ॥ ॥ * ॥ ( ढाल १ ) धरम महारथ सारथि सारं एचाल ॥ सद्गुरु चरण कमल मन धारं । त्रेसठ उत्तम नर अधि For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारं । पणिसु श्रुतः अनुसारं । जेहनें नाम लिये निसतारं । श्रापण सफल हुवे अवतारं । पामी जे जव पारं ॥१॥षन अजित संजव अभिनंदन । सुमति पदमप्रनु नयना नंदन सत्तम तेम सुपास । चंड प्रजुनें सुविधि सीतल जिन । श्रेयांस. वासपूज्य जिन सुरमणि विमल गुणें करि वास ॥ ५ ॥ अनंतधर्म श्रीशांति जिनेसर कुंथुनाथ अरमति सुहकर । मुनिसुव्रत नमि नेम । पार्श्व वीर ए जिन चोवीस जगवन्चल जगगुरु जगदीस । प्रणमी जे धर प्रेम ॥३॥ (ढाल ) प्रथम सुपन गज निरख्यो ए चाल ॥ * ॥ प्रथम चरत नर इंद । बीजो सगर सुरिंदै । मघवा तीजो उदार । चोथो सनत कुमार ॥४॥ पांचम सांति चक्कीस । यो कुंथु गणीस । सातमो अर नरनाथ । श्रापम सुजुमसनाथ ॥ ५॥ नवमो पदमनरेस । हरिषेण दसम कहेस । ग्यारम जयताम । बारम ब्रह्मदत्त नाम ॥ ६॥ एह चक्की सर बार । खेत्र जरत सिणगार । मघवा सनत कुमार । पुहता स्वरग मकार ॥ ७॥ सुनुम अने ब्रह्मदत्त । सत्तम निरय निरत्त । आठ श्रया सिवगामी । ते प्रणमुं सिरनामी ॥७॥ ॥ (ढाल ३)॥ * ॥ मुनिवर आर्य सुहस्तिए चाल ॥ * ॥ - पहिलो त्रिपृष्ट जाण । विप्रष्ट इसरो तीजो स्वयं प्रनु जाणीये ए। पुरुषोत्तम ए चोथो । पंचम परगमो । पुरुष सिंह. प्रमाणिये ए॥ ए॥ो पुरुष पुंगरीक । दत्त तिम सातमो। सदाण नामें आठमो ए । नवमो कृष्ण नरेस । ए नव केसवा। प्रहऊठी ए पिण नमुंए ॥१०॥ तिहां पहिखो वासुदेव । For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मती ए। राम ॥ १३ ॥ सासणे या (२०) नारकी सातमी । आगला पांच बगी गया ए । सातमो पंचम नयर । चोथी आवमो नवमो तीजी नारीयें ए ॥ ११ ॥ अचल विजयनें जा । सुप्रनु सुदर्शन । आनंद नंदन सुनमती ए। रामचंग बसना । बलदेव ए नव । आठ थया तिहां सिवगती ए॥१॥ बलज ब्रह्म देव लोक । काल उत्सर्पणी । जास्यें सिव कृष्ण सासणे ए । अथवा निपुलाक नाम । तीर्थकर होस्थे । चवदमो श्म बहु श्रुत जणे ए॥ १३॥ ( ढाल) कुमरपणे प्रभु रहतां काल सुखे गर्ने ए, ए चाल ॥ * ॥ अश्वग्रीवने तारक मेरुक बली मधु तिसा ए निशुल वलय प्रल्हाद रावण जरासिंधु जिसा ए । ए नव प्रति वासुदेव नरक गति गामिया ए।ते पिण नावि जिणेस केई प्रणमुं मुदा ए॥१४॥ (ढाल ५) सफल संसारनी॥ * ॥ .. सांतिने कुंथु अर एह नव एकही । चक्रधर तीर्थकर दोय पदवी सही। बीर वासुदेव अरिहंत नव जूजू था । देह तिण साठ पिण जीव गुण सठ श्रया ॥ १५ ॥ वासुदेव वलीय बलदेव केरा पिता । एक हीज थाय नव एण लेखे बता । तीन चक्रधर तणा मिलिय बारे टट्या । एम वेसठ ना तात इकवन मिट्या ॥ १६॥ तीन चक्रधर तणी टाल दीजे जिसे । माय सहुनी थई साठ लेखे इसे । एह नर रयण नो ध्यान नित जे धरे। तेह सुर पद खही मोद पदवी वरे॥१७॥ (कलश) श्म शुण्या तीर्थकर चक्कीसर वासुदेव बलदेव ए। प्रति वासुदेव सुसेव जेहनी करे सुर नर सेव ए । त्रेस For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) सिलाका पुरुष उत्तम जगें जयवंतो सदा । प्रहसमें तेहना चरण पंकजनमें मुनि वसतो मुदा ॥१०॥ इति त्रेसक सिलाकापुरुषस्तवनं ॥ * ॥ ॥ * ॥अथ मुहपत्ती पडिलेहण स्तवनं लिख्यते॥ॐ॥ ॥ * ॥ ढाल कपूर हुवे अति ऊजलोरे ए चाल॥ * ॥ वरधमान जिनवर तणा जी। चरण नमुं चित्त लाय । ग्यान क्रिया जिण उपदिसे जी। शिव सुख तणो उपाय ॥१॥ (नविक जनधर श्रीजिन उपदेश । बूटे कर्म कलेस जा)॥ पनि लेहण मुहपति तणी जी। जाखीने पचवीस । तिहां ए जाव विचारीये जी । श्म जाखे जगदीस ॥ ॥ज ॥ प्रथम बे पास विलोकिये जी। सूत्र अर्थनी दृष्टि । ए पनि लेहण दृष्टिनी जी । करे धर्मनी पुष्टि ॥३॥०॥ समकित मिथ्या मिश्रनी जी। मोहनी तीन नो त्याग । कामराग स्नेह रागनें जी। तज वलि तिम दृष्टिराग ॥४॥ ज० ॥ सीष वधूतक गुरु थकी जी। वाम हाथ करनाउ । नव अखोमा श्रादरो जी । नव पखोमा गमाल ॥ ५ ॥न ॥ देवतत्व गुरुतत्व सुंजी । धर्मतत्व गृहसारः। कुगुरु कुदेव कुधर्म नो जो। तीन तणो परिहार ॥ ज० ॥ ६ ॥ ज्ञान दरसाण चारित्रना जी। संग्रह तीन आचार । तजो विराधना तीन ए जा । एह अर्थ अवधार ॥ ज०॥ ॥ मन वचन कायानी सदा जी। गुपति ग्रही जे सुछ । परिहरीये वलि जाणने जी। तीने दंग विसुछ ॥ ज० ॥ ॥ पमिलेहण पचवीस ए जा । मुहपत्तीनी सार । हिव पहिलेहण अंगनी जी । ते पिण चतुर For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०) विचार ॥ ॥ ए॥ हास्य श्ररति रति दोयने जी । सुध करो बाम बांह । तजि जय शोक सुगंबना जी। दक्षिण पिण करे साह ॥ ॥१०॥ धुरखी लेश्या तीन ए जी। ते शिरथी-करि दूर । रिद्धि रस शाता गारवो जी। करि मुख थी चकचूर ॥ ॥ ११ ॥ काढसट्य तीन उरकी जी। माया नियाण मिथ्यात । च्यार कासाय बे बगलथी जी। क्रोधादिक करि घात ॥ ज० ॥१२॥ तज षट् काय विराधना जी। चरण बेदुं शुष होय । ए पनि लेहण अंगनी जी। पचवीसे तुं जोय ॥ ज० ॥ १३ ॥श्म पनि खेहण जे करे जी। धरमन ज्ञान विवेक । सकल कर्म दूरे करे जी । पामें सुक्ख अनेक ॥ ज० ॥ १५ ॥ कलश । श्म वीर जिणवर तणा मुख श्री अर्थ गणधर सांजली । कहे सूत्रवाणी मन सुहाणी सुणो नवियण मनरखी। उवज्काय वर सिरि लचिकीरति मुख थकी ए संग्रही। मुहपत्ती पमिलेहण तणी विधि सबिवाल गणि कहि ॥ १५॥ इति श्री मुहपत्ती पनि खेहण स्तवनं ॥ अथ श्री महावीर वीनती लिख्यते ॥ ॥ * ॥ वीर सुणो मोरी बीनती । कर जोमी हो कहुं मन निवात । बालकनी परि वीनतुं । मोरासामी हो तूं त्रिभुवन तात ॥ वी० ॥१॥ तुम दरसण विण हुँ जम्यो । जवमाहें हो सामी समुघ मकार । पुरक अनंता में सह्या । ते कहितां हो किम श्रावे पार ॥ वी० ॥२॥ पर उपगारी तुं अनु। मुख नांजे हो जगदीनदयाल । तिण तोरे चरणे हूं आवीयो। सामी मुझने हो निज नयण निहाल । वी० ॥३॥ अपराधी For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१) पिण ऊधस्या । तें कीधा हो करूणा मोरासाम । हुतो परम नगत ताहरो। तिण तारो हो नहिं ढीसनो काम ॥वी॥४॥ शूलपाणि प्रति बूकव्यो । जिण कीधा हो तुऊन उपसर्ग । मंक दीयो चमकोसीये । तें दीपो हो तसु आठमो सर्ग ॥ वी० ॥ ५॥ गोशालो गुनही घणुं । जिण बोस्या हो तोरा धवरण वाद । ते बलतो ते राखीयो । सीतल लेश्या हो मूकी सुप्रसाद ॥ वी०॥६॥ ए कुण इंश जाखीयो । श्म कहितां हो आयो तुम तीर । ते गोतमनें तें कीयो । पोतानो हो प्रजुता नो वजीर ।। वी० ॥७॥ वचन उत्थाप्या ताहरा। जे ऊगड्यो हो तुऊ साथ अमाल । तेहनें पिण पेनरे नवे । सिवगामी हो तें कीध कृपाल ॥ वी० ॥७॥ मत्तो रिषि जे रम्यो । जलमाहें हो बांधी माटीनी पाल । तिरती मूकी कोचली । तें ताखो तेहनें तत्काल ॥ वी० ॥ ॥ मेघकुमर रिषि हव्यो। चित्त चूको हो चारित्रथी अपार । एकावतारी तेहनें । तें कीधो हो करुणा जंमार ॥ वी० ॥ १० ॥ बारे वरस वैश्या घरे । रह्यो मूकी हो संयमनो जार । नंदीषण पिण ऊधयो । सुरपदवी हो दीधी अतिसार ॥ वी० ॥ ११ ॥ पंच महा ब्रत परिहरी । गृहि वासे हो वसियो वरस चौवीस। ते पिण आप कुमारनें । तें तास्यो हो तोरी एह जगीस ॥ ॥ १२॥ राय श्रेणिक राणी चेलणा । रूप देखी हो चित्त चूका जेह । समवसरण साधु साधवी । तें कीधा हो श्राराधक तेह ॥ वी० ॥ १३ ॥ विरति नहीं नहीं श्रांखमी । नहीं पाहो नहीं आदरी दीख । ते पिण श्रेणिक रायनें । तें कीधो हो For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२ ) स्वामी सरीख ॥ वी० ॥ १४ ॥ इम अनेक तें ऊधया । कहुं तोरा हो केता अवदात । सारकरो हिव माहरी । मनमाहें हो आणो मोरमी वात ॥ वी० ॥ १५ ॥ सूधो संजम नवि पले । नहीं तेहवो हो मुऊ दरसल नाए । पिए आधार द एतलो । इक तोरोहो धरुं निश्चल ध्यान ॥ वी० ॥ १६ ॥ मेह महीतल बरसतो । नवि जोवे हो समविषमी गम । गिरु श्रा सहि जे गुण करे | स्वामी सारो हो मोरा वंचित काम ॥ वी० ॥ १७ ॥ तुम नामें सुख संपदा । तुम नामें हो दुख जाये दूर | तुम नामें वंबित फले । तुम नामें हो मुक पूर | वी० ॥ १८ ॥ कलश ॥ * ॥ इम नगर जेशल मेरु मंण तीर्थकर चौवीसमो । सासना धीसर सिंह लंबन सेवतां सुर तरु समो | जिनचंद त्रिशला मातनंदन सकलचंद कलानिलो । वाचना चारिज समयसुंदर संथुल्यो त्रिभुवनतिलो ॥५१॥ इति अमावस्या श्री महावीर स्तवनं संपूर्णम् ॥ · * ॥ अथ चौवीस दंडक स्तवनं लिख्यते || ॥ ढाल आदर जीव क्षमा गुण आदर ए चाल ॥ ॥ पूर मनोरथ पास जिनेसर । एह करूं अरदास जी । तारण तरण विरुद तुक सांजलि | आयो हुं धरि आस जी ॥ १ ॥ पू० ॥ इस संसार समुद्र अथागे, जमियो जवजल मांहि जी । गिलगिचिया जिम आयो गिरुतो । साहिब हाथे साहि जी ॥ पू० ॥ २ ॥ तुं ज्ञानी तो पिए तु श्रागे । वीतक कहिये वात जी । चौवीसे दंरुक हुं जमियो । वर तेह विख्यात जी ॥ पू० ॥ ३ ॥ साते नरक तो इक दैरुक, For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३३) असुरादिक दस जाण जी। पांच थावरनें तीन विकलेंगी। उगणिस गिणती आण जी ॥ पू० ॥ ४ ॥ पंचेंजी तिर्यंचनें मानव । एह थया इकबीस जी। व्यंतर ज्योतिषीने वैमानिक । श्म दंमक चौवीस जी ॥ पू॥५॥ पंचेंजी तिर्यच अनेनर । पर्याप्ता जे होय जी । ए चौविह देवां मे उपजे । इम देवां गति दोय जी ॥ पू० ॥६॥ असंख्याते आऊखे नरतिरि निश्चे देवज थाय जी। निज आऊखे समके प्रोडे । पिण अधिके नवि जाय जी ॥ पू० ॥ ७॥ नवनपतीके व्यंतर ताई । समूर्छिम तिर्यच जी। सरग आग्मे ताई पुहचे । गर. नज सुकृत संच जी॥पू०॥॥आऊ संख्याते जे गरजज। नर तिर्यंच विवेक जी। बादर पृथवीने वलि पाणी । वनस्पती प्रत्येक जी ॥ पू० ॥ ए॥ परियाप्ता इण पांचे गमें । आवी उपजे देव जी । इण पांचे माहें पिण आगे । अधिकाई कहुं हेव जी॥ पू० ॥ १० ॥ तीजा सरग थकी मांमी सुर । एकेडी नवि थाय जी । अध्मयी ऊपरखा सगला । मानव माहें जाय जी ॥ पू० ॥११॥ ॥ * ॥ ढाल २ आज निहे ज्योरे दीसे नाहलो ए चाल ॥ ॥ नरक तणी गति आगति इण परें । जीवनमें संसार । दोय गतिने दोय आगति जाणीये । वलीय विशेष विचार ॥ १५ ॥ नरक ॥ संख्याते आऊ परयाता । पंचेंजी तिर्यंच। तिमहीज मनुष्य एहिज बे नरकमें । जाये पाप प्रपंच ॥न ॥ १३ ॥ प्रथम नरक लगि जाय असन्नियो । गोह नकुल तिम बीय । गृध्र प्रमुख पंखीत्रीजी खगे। सीह वृ०३ For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३३) प्रमुख चोथीय ॥ न ॥ १४ ॥ पंचमी नरके सीमा सापणी । बजी लगि स्त्री जाय । सातमीये माणस के मामलो। ऊपजे गरजज आय ॥ न० ॥ १५॥ नरक की आवे बिहुं दंझके । तिरयंच के नर थाय ॥ ते पिण गरजने परयापता। संख्याती जसु आय ॥ न० ॥ १६ ॥ नारकियांने नरक श्री नीसवां । जे फल प्राप्ति होय । उत्कृष्ट नांगे करि ते कहुँ । पिण निश्चे नहीं कोय ॥ न ॥ १७ ॥ प्रथम नरक श्री चवि चक्रवर्ति हुवे । बीजी हरि बलदेव । तीजी लगि तीर्थकर पद लहै । चोथी केवल हेव ॥ न० ॥ १०॥ पंचमी नरकनो सरब विरति लहै । उसी देस विरत्त । सातमी नरक नो समकितहीज लहै । न हुवे अधिक निमित्त । न० ॥ १५॥ ॥ * ॥ ढाल ३ करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ मानव गति विण मुगति हुवे नहीं रे । एहनो इम अधिकार । आऊ संख्याते नर सहु दंगके रे । श्रावी लहै अव. तार । मानव ॥ २० ॥ तेऊ वाऊ दंमक बे तजी रे । बीजा जे बावीस । तिहांथी आया थाये मानवी रे । सुख-दुःख कर्म सरीस ॥ मा०॥२१॥ नर तिरयंच असंखी आऊखे रे । सातमी नरकना तेम । तिहांथी मरिने मनुष्य हुवे नहीं रे । अरिहंत नाख्यो एम ॥ मा० ॥ २२ ॥ वासुदेव बलदेव तथा वली रे । चक्रवर्तिने अरिहंत। सरग नरगना आया ए हुवे रे। नर तिरिथी न हुवंत ॥ मा० ॥ २३ ॥ चौविह देव थकी चवि ऊपजे रे । चक्रवर्ति बलदेव । वासुदेव तीर्थकर ए बे हुवे रे । वैमानिक थकी बेव ॥ मा० ॥२४॥ For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh (३५) ॥ * ॥ ढाल ४ नाभि अने मरुदेवा ए चाल ॥ ॥ दिव तिरयंच तणी गति धागति कहीये अशेष । जीवजमें इण पर नवमांहें करम विशेष । आऊ संख्याती जे नर तिर्यंच विचार । ते सगला तिरयंचां माहें लहै अवतार ॥२५॥ जिण तिरयंचां माहें आवे नारक देव । ते कह्या पहिली तिण कारण न कहुँ हेव । पंचेंड़ी तिरयंच संख्याते आऊखे जेह । ते मरी चिहुं गतिमां जावे यहां नहीं संदेह ॥ २६ ॥ थावर पांच तीने विकलेंजी आये कहावे । तिहांथी आउ संख्याता नर तिरयंचमें आवे । विकल चवी लहै सर्व विरति पिण मुग तिन पावे । तेऊ वाऊ श्री आयो तेहनें समकित नावे ॥२७॥ नारक वरजीने सगलाही जीव संसार । पृथवी श्राउ वनस्पती माहें लहै अवतार । ए तीने इहां श्री चवि आवे दसे गमें । थावर विकल तिरी नर माहें उत्पत्ति पामें ॥ २०॥ पृथवी काय आदि देई दस दंमके एह । तेऊ वाऊ माहें श्रावी उपजे तेह । मनुष्य विना नवमाहें तेऊ वाऊ बें जावे। विकलेंजी ते दसमाहिं जावे पूगही आवे ॥ श्ए ॥ एम अनादि तणो मिथ्याती जीव एकंत । वनस्पती माहें तिहां रहीयो काल अनंत । पुढवी पाणी अग्नि अनें चोथो वलि वाय। काल चक्र असंख्याता तांई जीव रहाय ॥ ३० ॥ बेइंजीते इंजी अनें चौरिंडीमकारे । संख्याता वरसां लगे नमियो कर्म प्रकारे सात आठ जव लगितां नर तिरयंचमें रहियो । हिवमानव लव लहिनें साधुने वेषमें रहियो ॥ ३१ ॥ राग द्वेष बूटे नहीं किम होवे चूटक वार । पिण जे महारे मन सुधता For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३६) हरो एक आधार । तारण तरण में त्रिकरण सुझे अरिहंत लाधो । हिव संसार घणो नमिवो तो पुद्गल आधो ॥ ३२ ॥ तूं मन वंबित पूरण आपद चूरण सामी । ताहरी सेवलहीतो में नव निध सिध पामी । अवरन कांई श्वं इण लव तुहीज देव । सूधे मन एक होयजो लव लव ताहरी सेव ॥ ३३ ॥ कलश । इम सकल सुखकर नगर जेशल मेर महिमा दिन दिने । संवत्तसतरे जगणतीसे दिवस दीवाली तणें । गुण विमलचं समान वाचक विजयहरष सुसीस ए । श्रीपासना गुण एम गावे धरमसी सुजगीस ए ॥ ३४ ॥ इति श्री चौवीस दंझक स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री इरियावही मिच्छामि दुक्कड संख्या स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ * प्रभु प्रणमुरे पास जिणेसर थंभणो ए हनी ॥ ॥ पद पंकजरे प्रणमी वीरजिनंदना। त्रिकरण सुधरे करि मुनिवर पयवंदना । जैमतेरे पमिकमी जिम इरियावही । श्रीवीरनी रे वाणी तहत करि सरदही । उहालो । सरदही वाणी मन सुहाणी चित्त आणी तेवली । मिठामि छक्कम तणी संख्या कहि सुं जिम कही केवल । नूदग जलण तिम वाज वसई विगल पण इंडी तणी। करतां विराहण करम बंध्या दूर ते करिवा लणी ॥ १॥ ढाल ॥ पुढवी दगरे तेऊ वाऊ वणस्सई । पण थावर रे बादर सुहम दसें थई । प्रत्येक जरे वणस्सई ग्यारें अया। बावीसरे पजत्तग अपजत्तया ॥ जयालो ।। पऊत्त अपऊत्तग वखाएया विगल तिय बह जाल ए । जस For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) थल खचर नुयंग इ पण इजिय तिरि अमयाल ए । घम्मादि साते नरक पुढवी नारकी तिहां सात ए । ते चवद नेदे करी जाणो पजात्तय अपऊत्त ए॥२॥ ढाल ॥ पनरह विधरे सुरगण परमा हम्मिया । किलविषियारे विविध करम ते निम्मिया । जंनिय दस रे नव लोकांतिक जाणिये । सोलह विधरे व्यंतरदेव वखाणिये ॥ उबालो ॥ वखाणिये दस विध नुवन पतिना तार रवि शशि रिषि गाहा । चर श्रिर दसे विध जोइसी सुर वखाण्या जिणवर जिहां । बारह वैमानिक पण अणुत्तर नव ग्रेवे एके नव लण्या । पजात्त अपजात्तग अगणुं अधिक सत संख्या गिण्या ॥ ॥ ढाल २॥ मेघ आगम सही ए देशी॥ ॥ पंच नरत वलि ऐरवत पंच ए पंच विदेह वर नूमिका ए। क्षेत्र ए पनरह करम नूमि जाणीये असि कसि मसि हि आजीविका ए । हेमवत खेत्र वलि तिम हरिवर्ष, रम्यक ऐरण्यवत सही ए । मेरु पिण पाखती चारि चारि खेत्र ए दस कुरु अकरमक जूमि कही ए॥४॥ हिमगिरि सिहरीय दाढ चिहुंआरिअ लवण समुझ मांहि विस्तरी ए । सात सात अंतर दोय पासे दीप उप्पन्न अंतर धरी ए । दोसे नेद श् आगला जांणिये मणुय पङत्त अपजत्तया ए । एकसो एक समुर्छिम नेद ए । तीनसे तीन मणु आ या ए ॥५॥ ॥ ढाल ३ ॥ हिव जनम्या जगगुरु जगत्र । हुवो जयकार ए चाल ॥ ॥ पणसय तेस विध जीव सहू ने एह अलिहय आदिक For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) दस गुणित करीजे तेह । पण सहस उसे वलि तीस अधिक ते जाण । ते रागे दोसे मुगुणा करी वखाण ॥६॥ दुइ सहस ग्यारह उसय सार प्रमाण । ए प्रवचन वाणी जाणी हित जर आण । मनवच काया करि त्रिगुणा करि ते अंक । तेतीस सहस सत सात असी निःसंक ॥ ७ ॥ वलि करण करावण अनुमति त्रिगुणा किन्छ । इक लक्ख सहस ग तिसय चालीस प्रसिद्ध । अतीत अनागत वर्तमान वलि काल । जे अश्य विराधना तिणि त्रिगुण संजाल ॥ ॥ तीन लाख सहस च्यार बीस अधिक ते पाय । अरिहंत प्रमुख बह साखे उ गुणा नाय । श्म लाख अढारह वलि सहस चवीस । इकसो वीसोत्तर हुइ संख्या निसदीस ॥ ए॥ ॥ ढाल ४॥ चोपईनी॥ ॥ण पणि मिठामि उक्कम देई । नविक तस्या जवजल निधि केई । तरे अ वलि आगल तरसी। निरमल केवल लखमी वरसी ॥ १० ॥ रिया वही धरम गंगाजल । स्नान करि श्रातम करे निरमल । से मुख जाये वीरजिनेसर । सूत्र करि गूंथे ते श्रुतधर ॥ ११ ॥ इम पमिक्कमी मुनिवर श्मतो । वीर सीस केवल पदपत्तो। त्रिकरण सुध तसु पय प्रणमीजे । मानव जनम सफल श्म कीजे ॥ १२ ॥ कलश ॥ इम वीर जिणवर झान दियर सयल लोय सुहंकरो । तिय लोय सामी सिद्धि गामी सुध धरम धुरंधरो । उवज्काय लक्ष्मी कीर्ति सीसे जैन वाणी मनधरी गणि ललिवल स्तवन नण इम संथुण्यो जावे करी ॥ १३॥ इति श्रीहरियावही स्तवनं संपूर्ण । For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५) ॥ * ॥ चवदगुणठाणा स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ थंभण पुर श्रीपास जिणंदो ॥ ए चाल । ॥ सुमति जिणंद सुमति दातार । वं मन सुधवारं वार । आणी नाव अपार । चवदे गुणस्थानक सुविचार । कहि स्यु सूत्र अरथ मन धार । पामें जिम लवपार ॥१॥ प्रथम मिथ्यात कह्यो गुण गणो । बीजो सास्वादन मन आयो । तीजो मिश्र वखाणुं । चोथो अविरति नाम कहाणो । देशविरति पंचम परमाणो । उसो प्रमत्त पिठाणुं ॥२॥ अपरमत्त सत्तम स सही जे । अज्म अपूरब करण कही जे । अनिवृत्ति नाम नवम्म । सूखम लोन दसम सुविचार । उपशांत मोह नाम श्यार । खीणमोह वारम्म ॥३॥ तेरम सयोगी गुण धाम । चउदम थयो अयोगी नाम । वरणुं प्रथम विचार । कुगुरु कुदेव कुधर्म वखाणे । एह खदण मिथ्या गुण गणें । तेहनां पंच प्रकार ॥४॥ ॥ ढाल २॥ सफल संसारनी चाल ॥ ॥ जेह एकांत नयपद थापी रहै प्रथम एकांत मिथ्या मति ते कहे । ग्रंथ उत्थापि थापे कुमति आपण। । कहे विपरीत मिथ्यामती ते जणी ॥ ५ ॥ जैन शिव देव गुरु सहु नमें सारिखा । तृतीय ते विनय मिथ्यामति पारिखा । सूत्र नवि सरदहे रहे विकलप घणे । संसयी नाम मिथ्यात चोथो जणें ॥ ६॥ समझ नहीं काई निज धंध रातो रहे । एह अज्ञान मिथ्यात पंचम कहै । एह अनादि अनंत अजव्यनें । करिय अनादि थिति अंत सुन्नव्यनें ॥ ७ ॥ जेम नर खीर For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४०) घृत खंग जीमनें वमें । सरस रस पाय वलि स्वाद केहवो गमें। चौथ पंचम के गण चढिने पड़े। किणहि कषाय वसि आय पहिले अमे ॥ ७॥ रहे विच एक समयादि षट् आवली । सहीय सासादने स्थिति इसी सांजली। हिव इहां मिश्र गुणगण त्रीजो कहे । जेह नस्कृष्ट अंतर महुरत लहे ॥ ए॥ ॥ ढाल ३ ॥ बेकर जोडीताम ऐहनी ॥ ॥ पहिला चार कषाय । शम करि समकिती । केतो सादि मिथ्या मती ए । ए बेहिज लहे मिश्र । सत्य असत्य जिहां । सरदहणा बेचं ती ए ॥ १० ॥ मिश्र गुणालय मांहि । मरण हे नही । आज बंध न पके नवो ए । केतो लहे मिथ्यात। के समकित लहे। मति सरखी गतिपर नवे ए॥११॥ च्यार अप्रत्याख्यान । उदय करी लहे । मति विण किहां समकित पणो ए। ते अविरत गुणगण । तेतीस सागर । साधिक थिति एहनी जणो ए ॥ १२॥ दया उपशम संवेग। निर्वेद आसता । समकित गुण पांचे धरे ए । सहु जिन वचन प्रमाण । जिन सासन तणी। अधिक अधिक उन्नति करे ए ॥ १३ ॥ केईक समकित पाय । पुद्गल अरधतां । उत्कृष्टा नवमे रहे ए। केईक नेदी गंठि। अंतर महुरतें । चढतें गुण सिव पद लहे ए॥ १४ ॥ च्यार कषाय प्रथम । त्रिण वलि मोहनी । मिथ्या मिश्र सम्यक्तनी ए साते प्रकृति जास । परही नपसमें । ते उपसम समकित धणी ए ॥ १५ ॥ जिण साते क्य कीध । ते नर दायकी । तिणहीज लव For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१) सिव अनुसरे ए । आगल बांध्यो आउ । तातें तिहां थकी। तीजे चौथे नव तरे ए ॥१६॥ ॥ ढाल ४ ॥ इण पुर कंबल कोइ न लेसी ए चाल ॥ ॥ पंचम देस विरति गुण गण । प्रगटे चलकमी प्रत्याख्यान । जेण तजे बावीस अन्नद पाम्यो श्रावकपणो प्रत्यद ॥१७॥गुण इकवीस तिके पिण धारे। साचा बारे ब्रत संचारे । पूजादिक षट् कारज साधे । ग्यारे प्रतिमा श्राराधे ॥ १० ॥ भारत रौप्रध्यान हुवे मंद । आयो मध्य धरम आनंद । आठ वरस काणी पुत्र कोक पंचम गुण गणे थिति जोम ॥ १५ ॥ हिय आगे साते गुण गण । इक इक अंतरमहुरत मान । पंच प्रमाद वसे जिण गम। तेण प्रमत्त बनो गुण धाम ॥२०॥थिवर कलम जिन कलप आचार । साधे षट् श्रावस्यक सार । उद्यत चोथा च्यार कषाय । तेण प्रमत्त गुणगण कहाय ॥२१॥ सूधो राखे चित्त समाधे । धरम ध्यान एकांत आराधे । जिहां प्रमाद क्रिया विध नासे । अपरमत्त सत्तम गुण लासे ॥ २२ ॥ ॥ ढाल ५ ॥ मी नदी यमुनाके तीर उडे दोय पंखीया ए चाल ॥ ॥ पहिले अंसे अहम गुण गणा तणें । आरंने दोय श्रेणि संखेपे ते गणें । उपशम श्रेणि चढे जे नर हुवे उपसमी । दपक श्रेणि दायक प्रकृति दश दयगमी ॥ २३ ॥ तिहां चढता परिणाम अपूरब गुण लहे। अच्म नाम अपूरब करण तिणें कहे । सुकल ध्याननो पहिलो पायो आदरे । निरमल मन परिणाम अमिग ध्याने धरे ॥ २४ ॥ हिव अनिवृत्ति For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२ ) करण नवमो गुण जालिये। जिहां जाव थिर रूप निवृत्ति न जाहिये । क्रोध माननें माया संजला हर्णे । उदे नहीं जिहां वेद वेद पण ति ॥ २५ ॥ जिहां रहे सुखम लोन काक शिव लिखे । ते सूखम संपराय दशम पंकित दखे | संतमोह इस नाम इग्यारम गुण कहे । मोह प्रकृति जिए गम सहु उपसम लहे ॥ २६ ॥ श्रेणि चढ्यो जो काल करे किएही परे । तो थाये अहमिंद्र अवर गति नादरे । च्यार वार समश्रेणि लहे संसार में । एक नवे दोय श्रेणि अधिक न हुये कि ॥ २७ ॥ चढि इग्यारम सीम समी पहिली पh | मोह दे उत्कृष्ट अरध पुद्गल रहे। क्षपक श्रेणि इग्यारम गुण गणो नहीं । दशम थकी बारम्म चढे ध्यानें रही ॥ २८ ॥ || ढाल ६ || एकदिन कोई मागध आयो पुरंदर पास ए चाल ॥ ॥ खीए मोह नामें गुण गणो बारम जाए । मोह खपायो नेमो यो केवल नाए । प्रगटपणें जिहां चारित श्रमल यथा आख्यात | वियागे तेरम गुण गए तणी कहे वात ॥ २५ ॥ घातीय चौकी दय गई रहीय अघातीय एम । प्रकृति पच्यासी जेहनें जूना कापक जेम | दरसण ज्ञान वीरज सुख चारित पंच अनंत । केवल ज्ञान प्रगट थयो विचरे श्री जगवंत ॥ ३० ॥ देखे लोक लोकनी बानी परगट वात । महिमावंत अढारे दूषण रहित विख्यात । आवे वरसे ऊणी कही इक पूरव कोमि । उत्कृष्ट तेरम गुण गएँ एथिति जोकि ॥ ३१ ॥ कर शैलेस करण निरूध्या मन वचकाय । ते योगी त For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३) समे सहु प्रकृति खपाय । पांचे लघु अक्षर ऊचरतां जेहनो मान । पंचम गति पामें सिवपद चउदम गुण थान ॥ ३२ ॥ त्रीजे बारमें तेरमें माहें न मरे कोय । पहिलो बीजो चोयो परल साथे होय । नारक देवनी गति माहें लाने पहिला च्यार । धुरला पांच तिरि माहिं मणु ए सर्व विचार ॥३२॥ कलश ॥ श्म नगर बाहम मेरु मंमन सुमति जिन सुपसानले । गुण गण चवद विचार वरण्यो नेद आगमने बले । संवत्तसतरेसे उत्तीसे श्रावण वदि एकादसी । वाचक विजय श्रीहरष सानिध कहे मुनि इम धर्मसी ॥ ३३ ॥ इति श्री चतुर्दश गुण स्थान विचार स्तवनं संपूर्णम् ।। ॥ अथ अढाई द्वीप २० विहर मान स्तवनं लिख्यते ॥ ॥बंॐ मन सुध विहरमाण जिणेसर वीस । दीप अढीमें दीपे जयवंता जगदीस । केवल ज्ञानने धारे तारे करि जपगार । किण किण गमें कुण कुण जिन कहि स्युं सुविचार ॥१॥ए पेंतालीस लद योजन मानुष देत्र प्रमाण । बलया कारे श्राधे पुष्कर सीमा जाण । दोय समुझे सोहे हिप अढाई सार । तिणमें पनरे करम नूमीनो कहूं अधिकार ॥ ५ ॥ पहिलो जंबूदीप समे विचथाल आकार । लांबो पिठुलो इक लख जोयणनें विसतार । मोटो तेहनें मध्य सुदरशण नामें मेर । तिण थी दिसा विदिसानी गिणती च्यारे फेर ॥ ३ ॥ मेरु थकी दक्षण दिसि एह नरत सुन क्षेत्र । पांचसे ग्वीस जोयण उकला तेहनो वेत्र । उत्तर खममें एहवो ऐरवत क्षेत्र कहाय । इण चिहुं करमां नमी बारा नई फिरता जाय ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) तेत्रीस सहस उसे चौरासी जोयण जाण । च्यार कला ए महा विदेह विखंच वखाण । बावीससे तेरे जोयण एक विजय पहुलाण । एहवि बत्तीस विजय विराजे जेहनें गण ॥ ५॥ मेरु विचेकर पूरब पछिम दोय विजाग । सोले सोले विजय तिहां विचरे श्रीवीतराग । सासते चोथे आरे तारे श्री अरिहंत । एहवो महा विदेह करम नूमि त्रीजी तंत ॥ ६॥ पूरब विदेह विजय पुष्कलावति आवमी गम । मुमरीकणी नगरी तिहां श्री सीमंधर स्वाम । वप्र विजय पंचवीसमी विजया पुरनो नाम । पछिम विदेह बीजो युगमंधर कीजे प्रणाम ॥७॥ तिमहीज नवमी वनविजय वलि पूरब विदेह । नयरि सु सीमा त्रीजो बाहु नमुं धरि नेह । नलिनावर्त्त चौवीसमी पश्चिम विदेह वखाण । वीतशोका नगरी तिहां चौथो सुबाहु जाण ॥ ॥ ए च्यारे जिणवर जंबुद्धीप मकार । महा विदेह सुदरशण मेरु तणे परकार । एहवो जंबुधीप महा गढ जेम गिरिंद । खाई रूपे दोय लख जोयण लवण समंद ॥ ए॥ ॥ ढाल दीवाली दिन आवीयौ ए चाल ॥ ॥ दीपे बीजो दीप ए । धन धन धातकी खंग । पिहलो चिहुं लख जोयणे । मंगल रूपे मंम् ॥ १७ ॥ दी ॥ दोय जरत दोय ऐरवत दोय वलि महा विदेह । करम नूमी पद ने जिहां । नणहीज नामें एह ॥ ११॥ दी ॥ पूरब पश्चिम धातकी । खंग गिणीजे दोय । विजय मेरू पूरव दिसे । पत्रिम अचल जोय ॥ १५ ॥ दी० ॥ इक इक मेरुने आंतरे । करम नूमि तीन तीन । निज निज मेरुथी मांमिनें । लेखो चिटुं For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४५) दिस लीन ॥ १३ ॥ श्रीसुजात जिन पांचमो । जो स्वयं प्रजू ईस । रिषजानन जिन सातमो । समरी जे निसदीश ॥१४॥ दी० ॥ अनंत वीरज जिन बाग्मो। ए च्यारे जिनराय । पूरब धातकी खंझमें । महाविदेह रहाय ॥१५॥दी॥ पहिली चिहुं जिननी परे । विजय नगर दिशि गण । तिण हीज नामें अनुक्रमें । विजय मेरु अहि नाण ॥ १६॥दी॥ नवमो सूर प्रन्नु नमुं । दशमो देवविशाल । श्म वज्रधर ग्यारमो । त्रिकरण नमुं त्रिहुंकाल ॥ १७॥ दी० ॥ बारमो चंजानन जिन । पश्चिम धातकी मांहि । विचरे च्यारे जिणवरा । अचल मेरु उनहि ॥ १० ॥ दी० ॥ एहवो धातकी खम ए । परददाणा परकार । अउ लख जोयण विटीयो समुज कालो दधि सार ॥ १५॥ दी ॥ ॥ ढाल ३॥ पहिलि प्रतिमा एकणमासनी० ए चाल ॥ ॥ कालो दधिने पेलेपार ए । वीट्यो चूमी जेम विचाल ए। सोलेह लख जोयण विसतार ए । दीप पुष्कर वर अति सुखकार ए ॥ उबालो ॥ सुखकार पुष्कर दीप त्रीजो तेहनें आधे पगे । विचपड्यो परबत मानुषोत्तर मनुष्य क्षेत्र तहां लगे। तिण आधिकर आउ लाख । जोयण अरध पुष्कर एम ए। तिहां करम नूमी उए । कही जे धातकी खंम जेम ए ॥२०॥ ॥ ढाल ॥ आधे पुष्करनें पूरब दिसे । मंदर नामें मेरु तिहां वसे । पश्चिम विमुमाली मेरु ए । इहां किण इतरो नामें फेर ए ॥ नबालो ॥ फेर ए इतरो इहां नामें अवर गमें को नहीं। एक एक मेरे तीन तीने करम चूमी तिहां कही । इम जरत For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४६) ऐरवत महा विदेहे नाम सरिखो एह ए । तिणहीज नामें विजय सगली सासता धर्म क्षेत्र ए ॥ २१ ॥ ढाल ॥ धातकी खमे तिम पुष्कर सही। इहां खेत्रांनी रचना विध कही । वारवार कहतां विसतार ए। पहिला पर लेज्यो सुविचार ए॥ ॥जहालो ॥ सुविचार बाकी तेह सगलो नगर तिमहीज मनगमें । पूरवे पछिम जेह नीते तेह तिमहीज अनुक्रमें । श्रीचंबाहु नुजंग ईसर नेम च्यार तीर्थकरा । पूरवे पुष्कर अरध मांहे सरब जीव सुखं करा ॥ २२ ॥ ढाल ॥ वैरसेन वंडं जिन सतरमो श्रीमहाजन अचारमनितनमो देव जसा जगणी सम जिन देव ए । जसो रिच वीसम जिण देव ए ॥ नहालो ॥ जिण च्यार पुष्कर अरध मांहि कह्या पश्चिम नाग ए। तिहां मेरु विद्युन्मालि चिहुं दिसि विचरता वीतराग ए । चौरासी पूरव लाख वरसां श्राउ इक इक जिन तणो । पांचसे धनुष सरीर सोहे सोवन वरण सुहामणो ॥ २३ ॥ ढाल ॥ काल जघन्यै ए जिण वीस ए । हिव उत्कृष्टे लेद कहीस ए । एकसो सत्तरि तिहां जिणवर कहे । पांचे चरते जिम पांचे लहे ॥ नहालो॥ जिण खहे पांचे तेम पांचे ऐरवत मिल दश हुवा । इक इक विदेहे बत्तीस विजयां तिहां पिण जू जूनां । एकसो सत्तरि एम जिनवर कोमि नवसय वलि केवली । नव सहस कोमी अवर मुनिवर वंदीये नित ते वली ॥ २५ ॥ ढाल ॥ इहां जरतें ऐरवतें आज ए, पांचमें आरे नहीं जिन राज ए । धन धन पांचे महा विदेह ए। विचरे वीस जिन गुण गेह ए॥उबालो॥ For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४७) गुण गेह दोष श्रढार वरजित अतिशया चौतीस ए । चोस दि नरिंद सेवित नमुं ते निसदीस ए । तिहां आज तारण तरण विचरे केवली दोय कोम ए । दोई सहस कोमि सु साधु बीजा नमुं बे कर जोम ए ॥ २५॥ कलश ॥ श्म अढीदीपे पनरकरमानूमि खेत्र प्रमाण ए । सिद्धांत प्रकरण मांह जाप्या वीस विहरमाण ए । श्रीनगर जेशल मेरु संवत सतर गुणतीसे समे । सुख विजय हरष जिणंद सांनिध नेह धरि धर्मसीह नमें ॥२६॥ इति श्रीमेरु पर्वत कर्मजूम्यादि विचार गर्नितं विंशति विहरमाण जिनानां वृद्धि स्तवनं ॥ जंबुद्धीप, धातकी खंम, २ आधो पुष्कर छीप, ३ एवं ॥ वीपमें ए नरत, ५ ऐरवत, ५ महाविदेह, १५ कर्म नूमीमें विचरता सास्वता २० विहर मानकों मेरा नमस्कार होवो ॥ ॥ अथ श्रीशीतल जिन चैत्य प्रतिष्ठा स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ नवि जन पूजो रे शीतल जिन पती रे। नयनानंदन चंद । प्रनुजी विराजे रे सूरत बिंदरे । नंदा देवीना नंद ॥१॥०॥ जगहितकारी रे जिनजी अवतस्या रे । श्रीदृढ रथ नृप गेह । श्रीवच सोहेरे लांउन सूंदरू रे । कनक वर्ण प्रनु देह ॥ ॥ ज॥ विषय निवारी रे संयम संग्रह्यो रे । लाधु केवल नाण। सघन घना घन जिम धर्म वरसतारे । विचस्या त्रिनुवन जाण ॥३॥ नवि० ॥ वेदनी प्रमुख जे शेष रह्या हुतारे । च्यार श्रघाती कर्म । दूर निवास्या रे अनुक्रम तेहनें रे । पाम्युं शिव पद सर्म ॥ ॥ ज०॥ संप्रति कालेरे श्रीजिन राजनो रे। पूजी जेरे प्रति बिंब । प्रतिदिन लहीयेरे प्रनु सुप्रसादथी रे For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) वांछित फल अविलंब ॥ ५॥ ॥ श्रीजिनवरनो बिब विलोकतां रे । उकृत दूर पुलाय । इंजीय निग्रह सुग्रह संपजे रे । समकित पिण दृढ थाय ॥ ६॥ ॥ श्रीसशुरुना मुखथी सांजड्यारे। एहवा वचन विलास । ते वहुमाने रे निज चित्तमें धस्यारे । नेमी सुत नाई दास ॥ ७ ॥ ज० ॥ चैत्य कराव्यु रे सुंदरसोलतो रे । मन धरि अधिक उलास । शीतल प्रजुनो रे बिंब जरावियो रे । सहस फणा वलिपास ॥ ७॥ ॥ वरस अचारह सत्तावीस मेंरे । माधव मास मकार । उजाल हादसी दिवसे थापीयारे । बिंब अनेक उदार ॥ ए॥न ॥ एकसो इक्यासी सहु मेले थया रे। विबादिक सुविचार।कीध प्रतिष्टा ते दिन तेहनीरे । विधि पूर्वक मन धार ॥१०॥न ॥ श्रीजिनलाल सूरीश्वर दीप तारे । श्री खरतर ग नांण । तासपसायमें शीतल जिन शुण्यारे । विबुध दमाकट्याण ॥११॥ नवि० ॥ इति श्री १० शीतल जिन स्तवनम् । ॥ अथ बयालीस दोस वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दोहा ॥ सासनपति चौवीसमो । महावीर जगवंत । दोष बयांतीस दाखीया । टाले ते मतिमंत ॥१॥धारक दस विध धरमना । चाले जे इण चाल । निर दूषण आहार हये । ते विरला इण काल ॥२॥ सोले श्रावकथी टले । सोले साधु सरीर । बली दस फीरतां गोचरी । समजे तिके सधीर ॥२॥ मांझलना दूषण कह्या। पण धारीने पंच । माहें ते पिण मेलतां । संतालीसनो संच ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ষঃ) ० 1 || ढाल ४ || कपूर हुये अति ज्जलो रे || ए देशी ॥ ॥ उदगम नाम संज्ञा इसी रे । श्रावकथीजे सोल । पहिली ते परिकासीधे रे । विवरो करीय विरोल । मुनीसर समजीस्यो हार | नालिक वचन निहाल ज्यो रे । श्राहार जिस्यो उदगार ॥ मुनी० ॥ ६ ॥ मुनिनें काजे जे करे रे । आधा कमीं बुद्ध | कीधोको ऊनो करी रे । घेते पूर्व विसूद्ध ॥ मुनी ॥ ७ ॥ ए दोनुं मेलीदीये रे । ते त्रिजो पूतिर्कम । न्य मतिनें पतां रे । घेते मिश्रित मर्म || मुनी० ॥ ८ ॥ श्राप्यो दूजे गम में रे । थापना दूषण जाण । प्रानृतिका दूपण बो रे । वसुं । मुनी० ॥ ए ॥ जाली गोख जोई दीये रे । प्रा:क्करण ते प्राय । मोल लेइौं मुनि प्रतेरे । क्रीत तीको कहिवाय || मुनी० ॥ १० ॥ ऊधारो लेड़ श्रापत रे । नवम प्रामित्य नेम । असन सटे ले असन धेरे । ते परवर्तन प्रेम ॥ मुनी० ॥ ११ ॥ अन्याहृत इग्यारमो रे । जेदे थानक श्रयं । उनि नांमे बार मोरे । आपे जे उघमाय ॥ मुनी ० ॥ १२ ॥ ऊपरथी उतारी द्येरे। मालाहत ते मोस । बालक ना करथी यहि रे । देतें आविद्य दोस ॥ मुनी० ॥ १३ ॥ पाकादिक पंचांतणो रे । अनपृष्ठ दे जो एक । अधिके रो करे वीरे | देखी साधु अनेक || मुनी० ॥ १४ ॥ अध्यव पूरक ते सोलमो रे । लेतां लागे पाप । सुविवेकी श्रावक हूवे रे । तो सहिजेटले संताप | मुनी० || १५ || 5हा || उतपादन संज्ञा तणा । दाखूं सोले दोष । जयणा करी टालीस जो । तो मुनिवर पामीस मोख ॥ १ ॥ बृ० ४ For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ढाल २॥ सुगुण सोभागी हो साहिब माहारा एदेशी ।। ॥ प्रथम खेलावे बालक बहू परे । ते धाई दूषण तंत । चतुरनर, दाखें संदेसा दूतितणा । ते दूति दोष कहंत ॥ चतु ॥१७॥ जिनवरने वचनें चाले जिके । ते राखे एक तार ॥ चतु०॥असनादिक लेतां । अणसूऊतां । आगे दोष अपार ॥ चतु॥१७॥ जिन ॥ निमित्त प्रकाश करे । नित नित नवो। निमित दूषण तेह नेम ॥ चतु० ॥ जात वतांयां आपणी जन प्रते। आजीविक दोष एम ॥ चतु० ॥१५॥ जिनः ॥ शिव शासनी वात सुणावतां । वनीगम दोष विचार ॥ चतु० ॥ विविध आहार करी व्य वैद्यगी। तेह चिकित्सानीतार ॥ चतु० ॥ ५० ॥ जिन ॥ असनादिक जे क्रोधे आचरं । क्रोध दूषण कहिवाय ॥ चतु० ॥ मान तणे वस जेह ग्रहें मुनि । ते मान पिंम कहिवाय ॥ चतु॥१॥ जिन ॥ केलवाणा जे कपट तणी मिलें । तेतो मायावि नाम ॥ चतु० ॥ लालसा दूषण रस लुब्धो लीयें। ते समजुनो नहिं काम ॥ चतुश्॥ जिन॥परसंसी दातव्य गुण पूरला । लेतां संस्तवनो लाग॥ चतु० ॥ लेख्ने परसंसें लोकनें । ते परसंसा पिण त्याग ॥ चतु ॥ २३ ॥ मंत्रतणी लाघवताये मिले । तो मंत्र दूषण तास ॥ चतु०॥ वसीकरण कर देई वहिरतां, चूरणपिंग सरास ॥ चतु ॥ २४ ॥ जिन ॥ अंजनादिक जोगे अहसी करे । योगपिंम दूषण जाण, मूलकरममि दूषण सोलमो, पातन गन प्रमाण ॥ चतु० ॥ २५ ॥ जिन ॥ उहा ॥ गौचरीये For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जातां गुरें। दाख्या दूषण दस्म । ते टाली त्यावे तिके । संयम गुणं सरस्स ॥ २६॥ ॥ हाल श्रीसंवेसरपास जिणेसर भेटिये एदेशी ॥ आधा करमी आदिक सोलह जे कह्या, संका करतां संकित पिंम वसे फह्या । सचित्त जलादिक लागां मृक्षित किए। अथवी प्रमुख मुकाणो निक्षितपिंग ॥ २७ ॥ सचित प्रमुख फल स्पर्शे । असन ग्रह्यां सदा । चोयो पिचित दोष दूबो परगट तदा । संहत दोष मोटा श्री। लघुमे मूकतां । दायक नामे दोष देवाल असूजतां ॥ २०॥ उनमिश्र लागे जोग्य अजोग्य अजाणतां । अपरणित्त इण नांम असीनो आणतां । कर रेखा विण सूकां लिप्तदूषण लीयो । बर्दितदूषण जे लेतां धरति नां खीयो ॥ २५॥ ए दस दूषण एहनें संज्ञा एषणा, साधु जिकेसु विहांण चलंति गवेषणा । जिनवरने वचनें एह बेतालीस जो टले, तोश्ण पंचमेंयारे साधुपणो पले ॥३०॥ मुनिवर में वली पांच दूषण मांमल तणा । जे लाख्या जिनराज सुणो नवियण जणा । खीरखांक घृत मेट्यां संजोजन सुणो । अपरिमाण आहार लेतां दूजो गिणो ॥३१॥ धूम दूषण इण नाम तेहिज कुवखाणतां । ईगाल नामे दूषण सखर वखांणतां । ग्लानिबिनारस लेतां अनिमित्त आणीयें। मामलना ए दोष । सुगुरु मुख जाणीयें ॥ ३२ ॥ पिण हूं संयन पाय नको टाली सक्यो । तिण कारण हिव स्वामि सरणताहरोतक्यो । मोटांने ओलाज अजे मिटवातण । कारज पमियां काज सुधारे ते धणी ॥३३ ।। आगे पिण अपराधि तास्वारे इता । सहू जाणे For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कवण फल थाय ॥ २ ॥ ( ५२ ) संसार कविदाखे किता । इम जाणी मुज ऊपर महिर करी जीये | बांह ग्रह्यांकी लाज निवा जस दिजिये || ३४ ॥ तारण तर जिहाज विरुद ने ताहरो । तो मानवनो अवतार सफल कर माहरो । जव जव ताहरी सेव चरण सेवक रहूं । तिम करज्यो जगवंत किसुवलि वलि कहूं ॥ ३५ ॥ ( कलश ) इम नगर देसलसर निरंतर बिंबनेट्या सुनमनें । जिन वचने संजम सू पाले दोष टाले दिन दिने । सुविवेक विध पहिराज श्रावक तासु श्राग्रह बहू परे । रुघनाथ मुनिये । कीध रचना अधारे अमोत्तरे || ३६ || इति श्री बेंयांलीस दोष विवरण स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ दश पचक्खाण वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ सिद्धारथ नंदन नमूं । महावीर जगवंत । त्रिग वेग जिनवरू । परषद बार मिलंत || १ || गणधर गौतम तिए समें । पूबे श्रीजिनराय । दश पञ्चक्खाए किसां कह्या । कीयां Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || ढाल || सीमंधर करज्यो मया एदेशी ॥ ॥ श्री जिनवर इस उपदिशे । सांजल गोयम स्वाम | दश पच्चक्खाण कियां थकां । लहिये अविचल गम ॥ ३ ॥ नव कारसी बीजी पोरसी । साढपोरसी पुरिम | एकासा नीवी कही । एकलवा देव ॥ ४ ॥ श्री० ॥ दात बिल उपवासही । एहीज दश पच्चक्खाण । एहना फल सुण गोयमा । जू जूवा करूं वखाण || श्री० ॥ ए ॥ रतनप्रना शरकरप्रना । बालुका तीजी जांए । पंकप्रजा तिम धूमप्रजा । तमप्रजा For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५३ ) तम तमाम ॥ श्री० || ६ || नरक सात कही ए सही । करम कठिन कर जोर । जीव करम वस ते सही । उपजे तिहीज ठगेर ॥ श्री० ॥ ७ ॥ बेदन जेदन तारुना । जूख त्रिषा वलि त्रास । रोम रोम पीमा करे | परमाम्मी तास ॥ श्री० ॥ ८ ॥ रात दिवश खेत्र वेदना । तिलनर नहीं जिहां सुक्ख । किया करम जे जोगवे । पामें जीव बहु एक्ख || श्री० ॥ ए ॥ इक दिनरी नवकारसी । जे करे जाव विशुद्ध । सो वरस नरक नो ऊखो। दूर करे ज्ञान बुद्धि ॥ श्री ॥ १० ॥ नित्य करे नव कारसी । ते नर नरक न जाय । न रहे पाप वलि पावला । निरमल होवे जी काय ॥ श्री० ॥ ११ ॥ || ढाल ॥ २ ॥ श्रीविमला चल सिरतिलो एदेशी ॥ सु गोतम पोरसी कियां महा मोटो फल होय जावसुं जे पोरसी करे। रगति वेदे सोय । श्री० ॥ १२ ॥ नरक मांहें जे नारकी । वर एक हजार । करम खपावे नरकमें । करता बहुत पुकार | सु० ॥ १३ ॥ एक दिवशनी पोरसी । जीव करे इक तार । करम हों सहस एकना । निहचेसुं गणधार ॥ सु० ॥ १४ ॥ रगति मांहें नारकी । दस हजार प्रमाण | नरक आयु खिए एकमें । साढपोरसी करे हांण ॥ सु० ॥ १५ ॥ पुरम करे नित जीव जे । नरके ते नवि जाय । लाख वरष करमनें दहे । पुरम करम खपाय ॥ सु० ॥ १६ ॥ लाख वरष दश नारकी । पामें दुःख अनंत इतरा करम एकास । दूर करे मनखंत || सु० ॥ १७ ॥ एक कोकि वरसां लगे | करम खपावे जीव । नीवीय करतां जावसुं । डुरगति ह For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५४) सदीय ॥ सु०॥ १७ ॥ दश कोमी जीव नरकमें । जितरो करे कर्म दूर । तितरो एक लगणही । करे सही चक चूर ॥ सु० ॥ १५ ।। दात करंतां प्राणीयो । सोकोमी परमाण । इतरा वरष उरगति तणा। वेदे चतुर सुजाण ॥ सु०॥ २० ॥ आंबिल नो फल बहु कह्यो । कोमी एक हजार करम खपावे इण परे । नाव आंबिल अधिकार ॥ सु० ॥२१॥ कोमि सहस दश वरसही । सहे मुःख नरक मकार । उपवास करे इक नावसुं । तो पामें मुगति मकार ॥ २२ सु०॥ ॥ दाल ३॥ के केइ वर लाधो एदेशी ॥ ॥ लाख कोमी वरसां लगे । नरके करतां रीवरे। गौतम गणधारी कम तप करतां थकां। सही नरक निवारे जीवरे ॥ गौ० ॥ २३ ॥ नरके वरस कोम लाख ही जीव लहें तिहां मुःख रे । ते मुख अच्म तप ढुंती । दूर करी पामें सुरकरे । गौ० ॥ २४ ॥दन नेदन नारकी। कोमा कोमि वरसां रे । कुगति कुमतिनें परहरो । दशमें एतो फल हो रे ॥ गौ० ॥३५॥ नित फासू जल पीवतां । कोमा कोमी वरसनो पापरे । दूर करे खिण एकमें । निश्चै होय निः पाप रे ॥ गौ० ॥२६॥ वलिय विशेषे फल कह्यो । पांचम करे उपवास रे । पामें ज्ञान पांचेजला । करता त्रिनुवन परकास रे॥गौ॥२॥ चवदश तप विधि सुं करे। चवदह पूरब होय धार रे। म अनेक फल तप तणा। कहितां वलि नाके पार रे ॥ गौ ॥२॥ मन वचने काया करी । तप करे जे नर नार रे । ग्यारे वरस एकादशी करतां लहे नव पार रे ॥ गौ ॥ २५ ॥ आग्म तप आराधतां । जीव न फिरे For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ach (५५) संसार रे । अनंत नवाँना पापथी। बूटे जीव निरधार. रे ॥ गौ ॥ ३० ॥ तप हुँती पापी तस्या । निस तरीयो अरजुन माल रे ॥ गौ० ॥ ३१ ॥ तपना फल सूत्रे कह्या । पञ्चक्खाण तणा दश नेद रे । अवर नेद पिण वे घणा । करतां दे त्रय वेद रे ॥ गौ० ॥ ३२ ॥ ( कलश ) पच्चक्खाण दशविध फल प्ररूप्या महावीर जिण देव ए । जे करे नवियण तप अखंमित तासु सुर पय सेव ए । संवत्त निधि गुण अश्व शशि वलि पोश सुद दशमी दिने पदमरंग वाचक सीस गणिवर रामचंड तप विधि लणें ॥ गौ० ॥ ३३ ॥ इति दश पञ्चक्खाण फल गम्नित वृद्ध स्तवनम् ॥ ॥ अथ श्रीऋषभ जिन स्तवन लिख्यते ॥ ॥ ढाल ॥ पाटोधर पाटीये पधारो एदेशी ॥ सुण' सुण सेजुंज गिर स्वामी । जगजीवन अंतरजामी । हुँतो अरज करुं सिरनामी । कृपा निधि वीनती अवधारो ॥१॥ जवसायर पार उतारो । निजसेवक वान वधारो । कृपानिधि वीनती अवधारो। प्रनु मूरति मोहन गारी । निरख्यां हरखे नर नारी । जालं वारी हुँ वार हजारी ॥ कृ० ॥॥हिव किसिय विमासण की जे । मुफ ऊपर महिर धरी जे । दिल रंजन दरसन दीजे ॥ कृ० ॥३॥ आज सयल मनोरथ फलिया । जव नवना पातिक टलिया । प्रनु जो मुझसैं मुख मिलिया ॥ कृ ॥४॥ समस्यां संकट टलि जाये । नव नवनित मंगल थाये । मुझ आतम पुण्य नरायें ॥ कृ० ॥ ५ ॥ कर जोमी वीनति कीजे । केसर चंदन चरची जे । दिन धन For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५६) धन तेह गिणी जे ॥ कृ०॥६॥ प्रनु दरस सरस सहि तोरो। अतिहरखित हुवो चित्त मोरो। जिम दीगं चंद चकोरो॥ कृ० ॥७॥ परतिख प्रनु पंचमे आरे । विषम महा लय संकट वारे । सहु सेवक काज सुधारे ॥ कृ ॥ ७॥ सेवो स्वामि सदा सुख दाई । कमणा न रहे घर काई।बाधे संपति सोज सवाई। कृ०॥ ए॥ नानिराय कुलांवर चंदा । नवि जन मन नयण आणंदा । शोलगे सुर असुर सुरिंदा ॥ कृ० ॥ १०॥ जयकारी रिषन जिनंदा । प्रह समधर परम आणंदा । वंदे श्रीजिनलक्ति सूरिंदा ॥ कृ ॥११॥ इति श्री झपन देवजी स्तवनं संपूर्णम्।। ॥अथ श्रीअजित शांति स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ मंगल कमला कंद ए । सुखसागर पूनिमचंद ए । जगगुरु अजिय जिणंद ए। शांतीसर नयणा नंद ए ॥ १ ॥ बिहुँ जिनवर प्रणमेव ए । बिहुं गुण गाइस संखेव । पुण्य जंमार नरे स ए । मानव जव सफल करेस ए ॥शा कोम हि लाख पचासए। सागर जिणसासण लास ए । रिषद जिणेसर बंस ए। जवज्काय सरोवर हंस ए॥३॥ण अवसर तिहां राजीयो ए । राजा जितशत्रु जग गाजीयो ए । विजया तसु घर नार ए। बिहुँ रमयति पासा सार ए॥॥ कूखहि जिन अवता ए। तिणराय मनाच्यो हार ए । उयर वस्यो दस मास ए । प्रनुपूरी जपणी आस ए ॥ ५॥ बिहुँ जण मन आणंदीयो ए । सुत नाम अजिय जिण तो दीयो ए । तिहु अण सयल जन्नाह ए। क्रम क्रम वधे जग नाह ए॥६॥ हंस धवल सारसतणी ए । गति सुखलित निज गति निरंजणी ए । मलपति चाले गेल ए। For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 19 ) जाणें नया मी रस रेल ए ॥ ७ ॥ वरन समो संसार ए । वलि ज्ञान विवेक विचार ए । गुण देखी गज गहगह्यो ए । लंबन मिसि पग लागी रह्यो ए ॥ ८ ॥ जो वन वय जब वीयो ए| तब वर रमणी परिणावियो ए । पीय साधे सब काज ए । प्रभु पाले पुहवीराज ए ॥ ए ॥ हिव हत्था उर गम ए । विश्वसे नरेसर नाम ए । राणी चिरा देव ए । मनहर सुख मात्र ए ॥ १ ॥ चवदह स्वमें परिवस्यो ए । अचिरा जयरे सुत वतस्यो ए । मानव देव वखाणीयो ए । चक्कीसर जिनवर जाणीयो ए || ११ || देस नयर दुइ संत ए । तिए नाम दीयो सिरिशांत ए । जिए गुण कुल जाएँ कही ए । तिहुं जुवणे तसु उपमा नहीं ए ।। १२ ।। नयण सलो हिरण लोए । वन सिंघे वीहे एकलो ए । नयण समाधि निरोध ए । इस नयो नारि निरोध ए ॥ १३ ॥ गीतही राग सुरंग ए । पिए पजणे लोक कुरंग ए । तो उग्यो शशि संक ए । तिल पाम्यो नाम कलंक ए ॥ १४ ॥ इापर मृग अतिखल जल्यो ए । जय जय स्वामी सांजइयो ए । दीयो मन आपणो ए । पाय सेवे मिस लाए तो ए ॥ १५ ॥ लीला वति परणें घणी ए । नव नवी य कुमरी रायां तली ए । बल बल रिया जोगवे ए | पीयराय जलीपर जोगवे ए ॥ १६ ॥ कुमर त मंगल समें ए| पंचास सहस वरसां गमें ए । तो तेजे दियर जिसो ए | ऊपन्नो चकरण तिसो ए ॥ १७ ॥ साधी जरह वह खंरु ए | वरतावी आणा अखं ए । चवदरयण नव निहि सही ए । वसु सोल सहस जक्खे यही ए ॥ १८ ॥ For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( एढ़ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहस बहुतर पुरवरा ए । बत्तीस मौक बद्ध नरवरा ए| पाय कगामे करू ए । विन्नवे नमें बेकर जोक ए ॥ १५ ॥ हय गय रह वर जू जुवाए । लख चौरासी मंदिर दुवा ए। लाखत्रि वाजित्र घम घमे ए । बत्तीस सहस नाटक रमे ए ॥ २० ॥ रूप जिसी सुर सुंदरी ए । लक्षण लावन्य लीला जरी ए । जंगम सोहग देहमी ए| इसी चौसठ सहस अंतेनरी ए ॥ २१ ॥ अवरज रिद्धि प्रकार ए । मणि कंचण रयण जंकार ए । ते कहिवा कुण जाए ए | वपु वपुरे पुण्य प्रमाण ए ॥ २२ ॥ इम चक्कीसर पंचमो ए । चौथो दूसम सुषम समो ए । वरस सहस पंचवीस ए । सब पूरी मनह जगीस ए ॥ २३ ॥ इस परि बिह तीर्थ करा ए| चिरपाली राज विविह परा ए । जाली अवसर सार ए । विहुं लीधो संजम जार ए ॥ २४ ॥ विहुं खमदम धीरम धीर ए । बिहु मोह मयण मद परि हरी ए । बिहुं जिए का समाए ए । बिहुँ पाम्यो केवल नाए ए ॥ २५ ॥ बिहु देवहि कोहि महिय । बिहुं चौतीसे अतिसय सहिय । समव सरण बिहुं गए ए । बिहुं जोयण वाणी वखाए ए ॥ २६ ॥ नाचे रकत नेरीए । बिहुं आगलि इंड अंतेरीए । टिग मिग जोवे जग सहु ए । रंगहि गुणगावे सुर बहु ए ॥ २७ ॥ बिदु सिरवत्र चमर विमल । बिहु पग तल नव सोवन कमल । बिहुं जिन त विहार ए । नवि रोग न सोग न मारि ए ॥ २८ ॥ बिदु जवयार जुवा जरी ए । बिहुं सिद्धि रमणि सयंबरी ए । विदं जंजी जवद ए । विहं उदयो परमाणंद ए ॥ २९ ॥ इम वीजोनें सोलमो ए जाऐं चिंतामणि सुरतरु समो ए । शुषि For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (एए) अतिसंकविहाण ए। तिहां इह परि जव नवि हाण ए॥३०॥ बिहुँ उगव मंगल करण । विडं संघ सयल मुरिय हरण बिहुँ वर कमल वयण नयण । बिहुं श्रीजिनराय नुवन रयण ॥३१॥ इम जगते नोलिमतणी ए। श्रीअजिय शांति थुइ नणी ए। सरण बिहुँ जिण पाय ए। सिरि मेरुनंदन उवजाय ए ॥३॥ इति श्रीअजित शांति जिन स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥अथ श्रीसिद्ध गिरि स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ श्रीविमला चल सिर तिलो । श्रादीसर अरिहंत । जुगला धरम निवारणो । जय गंजण जगवंत ॥१॥ श्रीग॥ मुझ मन ऊलट अति घणो रे । सो दिन सफल गिणेस । स्वामी श्रीरिहेसरू । जब नयाणे निरखेस ॥ श्री० ॥२॥ जंगम तीरथ विहरता । साधु तणे परिवार । आदि जिणंद समोसस्या । पूरब निवा ए॒वार ॥ श्री ॥३॥ अचरा विजया नंदनें । जग बंधव जगतात । इण गिरि चनमासे रह्या । शिवर कहे ए वात ॥ श्री० ॥४॥ पामें शिव सुख सासता गणधर श्री पुंगरीक । पुंगरगिरि तिण कारणे । नगति करो निर नीक ॥ श्री० ॥५॥ नमिन विनमि सहोदरू । विद्याधर बलवंत । सेव॒जय शिखर समोसस्या । जे गिरवा गुणवंत ॥ ६ ॥ श्री० ॥ थावच्चामु निवर शुकसहस सहस परिवार । पंथग वयाणे जागीयो । सो सेलग श्रणगार ॥ श्री ॥ ७ ॥ पांमव पांच महाबली । सुणी जादव निरवाण । ते सीधा सिधा चले । सुरनर करे वखाण ॥ श्री० ॥ ७ ॥ इम सीधा इण डूंगरे । मुनिवर कोमा कोमि । पाज चढतां साजरे । ते प्रण मुंकर जोमि ॥ श्री० ॥ ए॥ जेवा For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६०) घणी प्रति बूकवी ते दरवाजे जोय।गोमुख यद कवम मिली। सानिध कारी होय ॥ १० ॥ श्री० ॥ जे विधिसुं यात्रा करे। सुर नर सेवक तास । राज समुड गुण गावतां अविचल लील विलास ॥ श्री ॥११॥ इति श्रीसेव॒जय स्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री आदि जिन वीनती (आलीयण ) स्तवनं । ॥ सुण जिनवर सेजा धणीजी । दासतणी अरदास । तुज आगल वालक परेजी, इंतो करूं वेखासरे जिनजी मुज पापीने तार । तुतो करुणा रस नस्यो जी । तुं सहुनो हितकार रे जिन जी॥ मुज० ॥१॥ हुँ अवगुणनो ओरमो जी । गुण तो नहीं लवलेश । परगुण पेखी नवि शकुं जी। केम संसार तरेशरे जिनजी। मुज ॥२॥ जीवतणा वधमें कस्खा जी । बोट्या मृषावाद । कपट करी परधन हया जी। सेव्या विषय सवादरे जिनजी॥मुज० ॥ ३ ॥ हुं लंपट हुं लालची जी। कर्म कीधां कई क्रोम । त्रण नुवनमां को नहीं जीजे आवे मुज जोक रेजिन जी ॥ मुजम् ॥४॥ बिन परायां अह निशे जी । जो तो रहूं जगनाथ । कुगति तणी करणी करी जी । जोड्यो तेहशुं साथरे जिनजी ॥ मुज ॥५॥ कुमति कुटील कदा ग्रही जी। वांकी गति मति मुज । वांकी करणी महारी जी । शीसंनलावू तुज रे जिन जी ॥ मुज० ॥६॥ पुन्य विना मुज प्राणिो जी। जाणे मेलुरे आथ । उचां तरुवर मोरीयां जी । त्यांही पसारे हाथरे जिनजी ॥ मुज ॥ ७॥ विण खाधां विण लोगव्यां जी। फोगट कर्म बंधाय । आत ध्यान मिटे नहीं जी। कीजे कवण जपायरे जिनजी ॥ मुज ॥ ७॥ काजलश्री पण For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शामला जी। मारा मन परणाम। सोणा माहीं ताहाँ जी। संजालं नहीं नामरे जिनजी ॥ मुज० ॥ ॥ मुग्ध लोक उगवा नणी जी। करुं अनेक प्रपंच । कुन कपट केलवी जी। पाप तणो करूं संचरे जिनजी॥ मुज ॥ १०॥ मन चंचल नरहे किमे जी। राचे रमणीरे रूप । काम विटंत्रण शी कहुं जी । पनीश हुँ दुरगति कूपरे जिन जी॥ मुजम् ॥ ११॥ किश्या कहुं गुण महारा जी। किश्या कहुँ अपवाद । जेम जेम संजालं हीये जी। तेम तेम वधे विखवादरे जिनजी॥ मुजः ॥ १२॥ गिरु आ ते नवि लेखवे जी। निगुण सेवकनी वात । नीच तणे पण मंदिरे जी। चंड नटाले जोतरे जिनजी ॥ मुज ॥ १३ ॥ निगुणो तो पण ताहरो जी। नाम धरावु रे दास । कृपा करी संजारजो जी । पूरजो मुज मन आसरे जिनजी ॥ मुज० ॥ १४ ॥ पापी जाणी मुज लणी जी । मत मूको विसार । विष हलाहल आदत्यो जी। ईश्वर न तज तासरे जिनजी॥ मुज ॥ १५ ॥ उत्तम गुणकारी हुवेजी । स्वार्थविना सुजाण । करसण चिंचे सर नरे जी । मेहन मांगे दाणरे जिनजी ॥ मुज ॥१६॥ तुं नपगारी गुण निलो जी । तुं सेवक प्रतिपाल । तुं समरथ सुख पूरवा जी । कर माहरी संजालरे जिनजी॥ मुज० ॥ १७ ॥ तुजने शुं कहीये घणो जी । तुं सदु वाते जाण । मुजने थाजो साहिबा जी। जव जव ताहरी आणरे जिनजी॥ मु० ॥ १७ ॥ नाजिराया कुल चंदलो जी। मारु देवीनो नंद। कहे जिन हरष निवाज ज्यो जी। देजो परमानंदरे जिनजी। मुज पापी ने तार ॥१॥ इति श्रीआलोयण आदि जिन स्तवन ॥ For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६२ ) ॥ अथ नवपद् वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ नत्र ॥ सुरमणी सम सहमत्रमां । नवपद अभिरामीरे वो ॥ अहो नव० । करुणा सागर गुण निधी । जग अंतर जामीरे लो || हो जग || १ | त्रिभुवन जन पूजित सदा । लोका लोक प्रकासीरे लो || अहो लोका० । एहवा श्री अरिहंतजी । नमुं चित्त उल्लासीरे लो || अहो नमुं० ॥ २ ॥ अष्टकरम दल क्ष्य करी । यया सिद्ध सरूपी रे लो। अहो श्रया० । सिद्ध नमो जवि जावयी । जे अगम अरूपीरे लो ॥ श्रहो जे० ॥ ३ ॥ गुण बत्तीसे सोजता | सुंदर सुख कारीरे वो ॥ अहो सु० ॥ आचारज तीजे पदे व अविकारीरे लो ॥ श्रहो वं० ॥ ४ ॥ आगम धारी उपशमी । तप दुविध धीरे वो ॥ श्रहोत० ॥ चोथे पद पाठक नमो | संवेग समाधीरे लो ॥ अहो सं० ॥ ५ ॥ पंचा चार पालणपरा पंचाश्रवणत्यागीरे तो ॥ अहो पं० ॥ गुण रागी मुनि पांच में । प्रमुं वक जागीरे लो || अहो प्र० ॥ ६ ॥ निजपर गुपने श्रोलखे । श्रुत श्रद्धा श्रावेरे लो ॥ अहो श्रु० ॥ गुण दरशण नमो । श्रातम शुभ जावेरे लो ।। श्रहो या ॥ ७ ॥ ज्ञान नमो गुण सातमें जे पंच प्रकारे लो ॥ यहो जे० स्वपर प्रकाशक दिनमणि । जह अज्ञान निवारे तो अहो जे० । ॥ ८ ॥ में चारित्र पद नमो | परजाव निवारी रेलो || हो पत्यादिक दस धर्मनो । जेह वे अधिकारे लो || अहो जे० ॥ ए ॥ नवमें वलि तप पद नमो । बाह्याभ्यंतर देरे लो || अहो बा० ॥ बांध्याकाल अनंतना । जे कर्म बे देरे लो || अहो जे० ॥ १० ॥ ए नव पद बहुमान श्री । ध्यावे शुभ जावेरे लो || अहो ध्या० ॥ नृप श्रीपाल ती परे । मन For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३) वंचित पावरे लो॥ अहो म ॥ ११ ॥ श्रासू चैत्रक मासमां। नव अविल करियरे लो॥ अहो नव० ॥ नव अोली विधि युत करी। शिव कमलावरि येरे लो ॥ अहो शि ॥ १२ ॥ सिद्धचक्रनी बहु परे । वर महिमाकी जेरे लो ॥ अहो व ॥ श्रीजिनलान कहे सदा। अनुपम जशली जेरे लो॥ अहो अप ॥ १३ ॥ इति श्रीनवपदजीका वृष्य स्तवनं ।। ॥ अथ चैत्री पूनम वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ ढाल ॥ पय प्रणमीरे जिन वरना सुप साउले । पुंकर गिररे गाइस हुँ सुन्न जाउले । मति सुर गिररे सहस जीन जो मुख हुवे । किमते नररे विमला चलना गुण स्तवे । नहालो । किमस्तवे गुण गण एह । गिरिना जिहां मुनि सीधा बहु । गिर रायना गुण नापिये। तिरपंच नारक तणी गतिना दुःख दूरे राखिये ॥ १॥ चाल । जिन राजारे पहिलो आदि जिने सरू । तसु नंदनरे चक्रवर्ति नरते सरू । तसु अंगजरे पुंमरीक गुण गण निलो।शम दम रसरे विनय विवेक गुणे नलो । जलालो। गुण नलो अनुक्रम आदि जिनवर पास संयम सिवपुरी। पुंभरीक गणधर प्रथम विहरे सुमति गुपले संचरी । पण कोमि साथे विमल गिरवर मुगति पदवी पाव ए । सुदि चैत्र पूनिम तेण ए गिरि घुमरीक कहाव ए॥२॥ चाल ॥ हिव चैत्रीरे पूनिम पर्व सुहामणो । सेजुजेरे आराध्यां फल हुवे घणो। मन सुधेरे आपापे थानकरही। आराध्यारे यात्र पुन्य पामे सही। नहालो ते पुन्य पामें दान तप जप धर्म ध्यान मने धरे । बहु लाव जत्ने त्रिविध पूजा आदि जिनवरनी करे । जावना नावे For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६५) तेण दिवसे पंच कोमि गुणो फले । अनुक्रमे ते नर भुगति पामी सिद्धि सुंदरीने मिले ॥३॥ चाल ॥ दश वीशारे तीश चालीश पूजा कही । पन्नासारे निरती सरदही । चनथ उच्रे अध्म दशम वालसे। पूजा फलरे अनुक्रम ए मुफ मन वसें। नहालो। मनवसे पूज कपूर धूवे मास खमाण फले वली । सामन्न धूवे पक्खनो फल जे करे मननीरली। हिव पूजनी विधि जेम गुरु मुख सुणी अडे परंपरा । ते मोहमाया कपट बंमी सुणो नवियण सादरा ॥४॥ ढाल ।। तंमुल राशि विमल गिरयापी। तसु ऊपरि पट्टादिक आपी। प्रतिमा आदि जिणेसर केरी। पुंमरीकनी थापी निवेरी ॥ ५॥ सेनंज गिरिने मन चिंतीजे । करमतणा मल दूर करीजे । मोती तंबुल करीय वधागो । तीन प्रदक्षण पूज रचावो ॥ ६॥ मंगलीक पहिला तिहां आठ । करम बंध दूरे करि आउ । प्रतिमा मूल सनात्र करेवा । जिनवरना गुण हीयमे धरे वा ॥ ७॥ जना घई नवकार गुणंता। दश दश जेती तिलक करंता । माला पुष्प पुंगी फल ढोवो। मेरु जरण वर धूप उखेवो । ढाल ॥ शक स्तव पांचे देव वांदे। जघन्यना वंदण पाप दे । दशे नमस्कार करत जेती । राखी करी दृष्टि जिनेंद्र सेती ॥ ए॥ श्राराधिवाकीजे काउसग्ग । जिणे कीये नाजे कर्मवग्ग । लोगस्स उजो य दसे वखाएं। वेला प्रमाणे अहि एग आणुं ॥ १० ॥ईणें प्रकारे धुर पूज एह । इसी परे बीजी च्यार तेह । दशांतणी वृद्धि तिहां गिणी जे । एक चित्त सूधे सुन पुन्य कीजे ॥ ११ ॥ धजा तणो रोप तिहां करीजे । एकेक पुरे अथवा गिणी जे । महुत्तरे आरति For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६५) मंगलेवो । पने प्रनु आगलिते करेवो ॥ १ ॥ ( कलश ) म करिय पूजा यथायोगे संघ पूजा श्रादरो। साहमी वञ्चल करो जविका लव समुज लीला वरो। संपदा सोहगतेह मानव रिधि वृद्धि बहु लहे । श्रीअमर माणिक सीससुपरे साधुकीरति इम कहे ॥ १३ ॥ इति श्रीचैत्री पूनिम वृक्ष स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥अथ नंदीसर दीप स्तवनं लिख्यते ।।। .. ॥ नंदीसर बावन्न जिनालय । शाश्वता चौमुख सोहे रे । रुषजानन चंबानन वारिषेण । वरधमान मनमोहे रे ॥ नंदी ॥१॥ आठमो दीप नंदीसर अदनुत । वलया कार विराजे रे। तेहनें मध्ये चिहुँ दिश शोजित । अंजन गिरिवर गजेरे ॥२॥ नंदी० ॥ जोयण सहस चउरासी ऊंचा । ऊंचपणे अजिरामारे । मूले पृथुल सहस दश जोयण । उवरि सहस श्क श्यामारे ॥ ३ ॥ नंदी० ॥ ते उपर प्रासाद प्रजुना । अति उत्तंग उदारारे । साधुजंघा विद्या चारण वांदे विविध प्रकारा रे ॥ ४॥ नंदी० ॥ चैत्ये चैत्ये एकसोचोवीस । बिंबसंख्या सविदाखीरे । ध्यावो सेवो नविजन नक्तं । सुध आगम करि साखीरे ॥ ५॥ नंदी० ॥ ऊंचपणे सहु जोयण बहुत्तर । सोजो यण आयामारे । पिडुलपणे पंचास जोयणना । प्रनु प्रासाद सुगमा रे ॥६॥ नंदी० ॥ धनुष पांचसे आयत प्रजुनी। विविध रतन मयकायारे । जिन कट्याणक उन्लवकरवा सुरपति जगते आयारे ॥ ७॥ नंदी अंजन अंजन चिहुं गिरी जवरे। चौसुख वावि विशालारे । वाविवावि विच कश्क पर्वत । राजतरंग रसाला रे ॥८॥ नंदी० ॥ चौसम सहस बृ०५ For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६६ ) 1 जोयण उत्तंगे । दश सहस सम पिडुलारे । चिदिशि सोलसोहे दधिमुख गिरि । तिहां प्रासादसु विमला रे ॥ ए ॥ नंदी० ॥ । वाविवाविनें अंतर विदिशें । रतिकर पर्वत रूमारे । दोय दोय संख्या जगदीसे । कह्या नहीं एकूमारे ॥ १० ॥ नंदी० ॥ जोयण सहस मानदश ऊंचा । दशदश सहस विस्ता रारे । कलरिस्रमसंताप जगतगुरु । ए निश्चय निरधारारे ॥ ॥ ११ ॥ नंदी० ॥ ते ऊपर प्राशाद सतोरण | अंजन गिरि परिमाणेरे । जिन प्रतिमा नी संख्या तेहिज । श्री जिनराज वखारे ॥ १२ ॥ नंदी० ॥ इम प्रासाद प्रभूना बावन | नंदी सरवर घीपेरे । व्य जाव विधिपूज करतां । मोह महा जम जीपेरे ॥ १३ ॥ नंदी० ॥ प्रवचन सार उधार प्रकरणें । जीवानिगमें जाणोरे । इम अधिकार से ग्रंथ अनेके । इहां संका मत आणोरे ॥ १४ ॥ नंदी० ॥ जिम सुरपति विरचे तिहां पूजा | ते अनुभव इहांस्यावोरे । ध्यावो जिमपावो परमातम । जैन चंद्रगुण गावोरे ॥ १५ ॥ इति श्रीनंदीसर द्वीप स्तवनं ॥ ॥ अथ निर्वाण कल्याणक स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ मारग देशक मोनोरे । केवल ज्ञान निधान । जावदया सागर प्रभूरे । पर उपगारी प्रधानोरे || १|| वीर प्रभु सिद्धथया । संघ सकल धारोरे । दिवइण जरतमां । कुण करस्ये उपगारोरे ॥ २ ॥ वीर० ॥ नाथ विहूणी सेन्य जूंरे । वीर विहूपोरे संघ | साधेकुण आधारथी रे । परमानंद अनंगोरे ॥ ३ ॥ वी० ॥ मात विदुषा बालज्युंरे । अरहां परां श्रथमाय । वीर विहूणा जीवकारे । आकुल व्याकुल थायेरे ॥ ४ ॥ वी० ॥ For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६७) संशय वेदक वीरनोरे । विरह ते केम खमाय । जेदी- सुख ऊपजेरे । ते विण किम रहिवायोरे ॥५॥ वी० ॥ निर्यामक नव समुनोरे । जव अटवी सत्यवाद । ते परमेशर विन मित्यारे किमवाधे उदाहोरे ॥६॥ वी० ॥ वीरथकां पिण श्रुततणोरे इंतो परम आधार । दिवणां श्रुत आधार बेरे। एह जिन आगम सारोरे ॥ ७॥ वी० ॥णकाले सहू जीवनेरे । आगमथी आनंद । ध्यावो सेवो नविजनारे । जिन पमिमासुखकदोरे ॥ ॥ वी० ॥ गणधर आचारजमुनिरे । सहुने इण परि सीध । नवनव आगम संगथीरे । देवचंड पद. वीधरे ॥णा वी० ॥ इति श्री निर्वाष कट्याणक स्तवनं संपूर्णम् ॥ अथ श्रीसिधक्षेत्र पुंडरीक गिरिवृद्ध स्तवनं लिख्यते श्री चंद्रा प्रभू पाहूणोरे एदेशी॥ ॥ नमोरे नमो शेव्रुज गिरीरे । त्रिकरण शुध त्रिकालरे । पाप पमलदूरेटवेरे । तूटे करम जंजाबरे । नमो ॥१॥ पूरब निना) समवसस्यारे । प्रथम जिनंद जगदीशरे । बावीसम जिनवर विनारे । समोसस्या तेवीसरे ॥ नमो० ॥॥ साधु अनंत अणशण ग्रहीरे । सीधा एहीजठोमरे । काल आगामी वलिसीजस्येरे । साधु अनंती कोमिरे ॥ नमो० ॥३॥ अनंत कट्याणक नूमिकारे । महिमावंत महंतरे । सासतो तीरथ ए सहीरे । अतिशय जास अनंतरे ॥ नमो० ॥४॥ कोमि नवंतरे जे कियारे । पातिक विविध उपायरे । सेजे सनमुख चालतारे । पग पग ते सहू जायरे ॥ नमो० ॥ ५॥ धनदिन तेहीज जाणसुंरे । वहिस्युं सेजकेरी वाटरे । उहरी यथा. For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६०) विधि पालस्यूरे । संघ सहित गहि गाटरे ॥ नमो० ॥६॥ पग पग उन्नव अति घणारे । पग पग जाचक दानरे । प्रेम जगति साहमी तणारे । जीर्णोद्धार प्रधानरे ॥ नमो० ॥ ७॥ धन ते गिरिराय निरखसुंरे । वढती मंगल मालरे। मणि मोतीयमे वधाव स्युरे । रजतसोवन नर थासरे ॥ नमो० ॥७॥ धन दिन ते गिरिराय फरसस्यूरे । करस्यु पावन मोरी कायरे। जगति जुगति जुहारसुंरे । नाजिनंदन जिनरायरे ।। नमो० ॥ ॥ ए ॥ भव्य नाव करसुं मुदारे । पूजा विविध प्रकाररे। नावे नावना नावसुंरे । करसुं सफल अवताररे ॥ नमो० ॥१०॥ रतन त्रयी नमती नलीरे । देसुं ते धरबुधिरे। जव जव भ्रमण निवारसुंरे । लहिसुं आतम सुधिरे ॥ नमो० ॥११॥ विधि फरसण मन माहरोरे । मोहिरह्यो दिनरातरे । पुन्य प्रबलथी पामियोरे । उकल गिरीकेरी जातरे ॥ नमः ॥ १२॥ नाथधूलेवा सुपसायधीरे । कारज सगला सिघरे। कहे जिनहरख सूरी सदारे । होय जो मंगल वृद्धरे ॥ नमो० ॥ १३ ॥ इति श्री सिझाचल वृद्ध स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री गौडी पार्श्वनाथ वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ उहा ॥ वाणी ब्राह्मावादनी । जागे जग विख्यात । पासतणा गुण गावतां । मुफ मुख वसज्यो मात ॥१॥ नारंगे अपहिल पुरे । अहमदावादे पास । गौमीनो धणी जागतो। सहूनी पूरे आस ॥२॥ शुज वेला शुन्न दिन घमी । महुरत एक मंमाण । प्रतिमा ते इह पासनी। भई प्रतिष्टा जाण ॥३॥ ॥ ढाल १॥ गुणहि विशाला मंगलीक माला । वामानो सुत For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६ए) साचो जी। धण कण कंचण मणि माणकदे। गौमीनो धणी जाचो जी ॥ ४ ॥ गुण ॥ अणहिदपुर पाटण माहें प्रतिमा । तुरक तणें घरहूंती जी । अश्वनी नूमि अश्वनी पीमा । अश्वनी वाल विगुती जी॥ ५॥ गुण ॥ जागंतो जद जेहने कहिये। सुहणो तुरकनें आपे जी। पासजिनेसरकरी प्रतिमा। सेवक तुझ संतापे जी ॥ ६॥ गुण ॥ प्रह जीने परगट करजे । मेघा गोठीने देजे जी । अधिको मले जे उगो मले जे । टक्का पांचसें ले जे जी ॥७॥ गुण ॥ नहिं आपिस तो मारीस मुरमी स । मोर बंध बंधास्ये जी । पुत्र कलत्र धन हय हाथी तुऊ । लाउ घणी घर जास्ये जी ॥७॥ गुण ॥ मारग पहिलो तुकने मिलस्ये । सारथ वाह जे गोठी जी । निलवट टीलो चोखा चेन्या । वस्तु वहे तसु पोगी जी ॥ ए॥ गुण ॥ ॥ उहा ॥ मनसुं वाहनो तुरकमो। मांने वचन प्रमाण । बीबीने सुहणा तणो । संजलावे सहिनाण ॥ १० ॥ बीबी बोले तुरकर्ने वमा देव हे कोश् । अब सताब परगट करो नहींतर मारे सोय ॥ ११॥ पाउली रात परोमीये । पहिली बंधे पाज। सुहणामा हे सेग्नें । संजलावे यद राज ॥ १ ॥ ढाल ॥ एम कही यद आयो राते । सारथ बाहुनें सुहणें जी। पास तणी प्रतिमा तुं लेजे। लेतो शिरमत धुणे जी ॥१३॥ एम०॥ पांचसे टक्का तेहनें आपे । अधिकोम आपिसवारो जी। जतन करी पुढचामे थानक । प्रतिमा गुण संजारो जी ॥१॥ एम० ॥ तुऊने होसी बहु फलदायक । लाई गोठी सुणजे जी। पूजीस प्रणमीस तेहना पाया । प्रह ऊठीने शुणजे जी ॥१५॥ For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७० ) I I एम० ॥ सुहो देईनें सुर चाहयो । अपने थानक पछुतो जी । पाटण माहें सारथ बाहू । हीं तुरकनें जो तो जी ॥ १६ ॥ एम० ॥ तुरके जातां दीगे गोठी । चोखा तिलक जिलामे जी । संकेत पहुतो साचो जाणी । बोलावे बहुलामे जी ॥ १७ ॥ एम० ॥ मुज घर प्रतिमा तुंकनें पुं । पास जिलेसर के जी। पांचसें टक्का जोमुक्त श्रापे । मोलन मांगुं फेरी जी ॥ १८ ॥ एम० || नांगो देई प्रतिमा लेई । थानक पडतो रंगे जी । केशर चंदन मृगमद घोली विधिसुं पूजा रंगे जी ॥ १५ ॥ एम० ॥ गादी रूमी रूनी कीधी । ते मांहि प्रतिमा राखे जी । अनुक्रम श्रव्या परिकर मांहे। श्रीसंघनें सुर साखे जी ॥२०॥ एम० ॥ उन्नव दिन दिन अधिका थायें । सत्तर नेद सनात्रो जी । ठाम गमना दरशण करवा । वे लोक प्रजातो जी ॥ २१ ॥ एम० ॥ डुड़ा || इक दिन देखे अवधि | परिकर पुरनो जंग | जतन करूं प्रतिमा तयो । तीरथ अबे नंग ॥ २२ ॥ सुहणो आपे सेवनें । थल अटवी उतारु । महिमा यास्येति घणी । प्रतिमा तिहां पुचारु ॥ २३ ॥ कुशल खेम तिहां वे । तुऊनें मुकनें जाणि । संका बोकी काम कर । करतो मकर संकाणि ॥ २४ ॥ ढाल || पास मनोरथ पूरण करे । वाहण एक वृषन जोतरे । परिकरथी परियाणो करे । इक थल चढ बीजे ऊतरे ॥ २५ ॥ बारकोस आव्या जेतले | प्रतिमा न विचाले तले । गोठी मनह विमा सा थई । पास भुवन मंगावूं सही ॥ २६ ॥ श्रटवी किम करुं प्रयाण । कुटको कोई नदी से पाहा । देवल पास जिनसरतणो मंकावुं For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किम गरथे विणो ॥ २७ ॥ जल विन श्री संघहरस्ये किहां । सिला वटो किम श्रावे यहां । चिंतातुर थयो निता खहे। यदराज श्राविनें कहे ॥ २० ॥ गुंहली ऊपर नांणो जिहां । गरथ घणो जाणि जे तिहां । स्वस्तिक सोपारीने गण। पाहण तणी उलटस्ये खाण ॥ २५॥ श्रीफल सजल तिहां किलजुर्म । अमृत जल नी सरसी कूड । खारा कूया तो इह सैनांण । नूमि पड्यो ने नीलो गण ॥ ३० ॥ सिलावटो सीरोही वसे । कोढपरा लवियो किसमिसे । तिहां थकी तूं शहां श्राण जे । सत्य वचन माहरो मान जे ॥ ३१ ॥ गोठी नो मन थिर थापियो । सिखावटेने सुहणो दियो । रोग गमीनें पूरं आस । पास तणो मंझे श्रावास ॥ ३५ ॥ सुपन मांहे मान्यो ते वैण । हेम वरण देखाड्यो नैण । गोगी मनह मनोरथ दुवा । सिहावटेने गया तेमवा ॥ ३३ ॥ सिवावटो श्रावे सूरमो । जीमें खीर खांम घृत चूरमो । घने घाट करे कोरणी। लगन जले पायारोपणी ॥३४॥ अंन थंन कीधी पूतली। नाटक कौतिक करतीरली । रंग मंगपरखियामणो रसे । जोतां मानवनों मनवसे ॥ ३५॥ नीपायो पूरो प्रासाद । स्वर्ग समो मंझे आवास । दिवस विचारी इंको घड्यो । तत खिण देवल ऊपर चड्यो ॥३६॥ शुन लगन शुन वेलावास । पवासण वेग श्री पास । महिमा मोटी मेरु समान । एकल मिल वगमे रहैवान ॥ ३७॥ वात पुराणी · में सांजली । तवन माहिं सूधी सांकली। गोठी तणा गोतरिया अडे । यात्र करीने परणे पडे ॥ ३० ॥ उहा ॥ विधन विमारण यद जगि For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेहनो अकल सरूप । प्रीत करे श्री संघनें । देखामे निजरूप । ॥ ३५॥ गिरु गौमी पास जिन । आपे अरथ मार । सांनिधकरे श्री संघनें । आस्या पूरण हार ॥४०॥ नील पलाणे नील हय । नीलो थई असवार । मारग चूका मानवी। बाट दिखावणहार ॥४१॥ ढाल ॥ वरण अढार तणो लहे जोग । विघन निवारे टाले रोग पवित्र थई समरे जे जाप । टाले सगला पाप संताप ॥४२॥ निरधननें घरि धननो सूत । आपे अपुत्री याने पुत्र । कायर में सूरा पण धरे । पार उतारे खही वरे ॥ ४३ ॥ दो नागीने दे सो नाग । पग विहूणाने आपे पग । गम नहीं तेहर्ने ये गम । मनवंडित पूरे अनिराम ॥ ४ ॥ निरधास्याने घे आधार । जवसायर ऊतारे पार । आरती यानी भारत जंग । धरे ध्यान ते लहे सुरंग ॥४५॥ समस्खां साददीये यद राज। तेहना मोटा अडे दिवाज । बुद्धि होणनें बुद्धि प्रकास । गूंगानें ये वचन विलास ॥४६॥ मुखियांने सुखनो दातार । जय जंजण रंजण अवतार । बंधन तूटे वेमी तणा । श्री पार्श्वनाम अदर समरणा ॥४७॥ दूहा ॥ श्रीपार्श्वनाम अदर जपे। विश्वानर विकराख । हस्ति यूथ दूरेटले । उधरसींह सियाल ॥१॥ चोरतणा जय चूकवें । विष अमृत ऊमकार । विष धरनो विष उतरे । संग्राम जय जय कार ॥४ए। रोग सोग दालि मुख । दोहग दूर पुताय । परमेशर श्रीपासनो । महिमा मंत्र जपाय ॥१०॥ ॥कडखानी चाल ५॥ जितुं जितुं जि उपशम धरी । झी श्रीश्रीपार्श्व अदर For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७३) जपते । जूतने प्रेत कोटिंग व्यंतर सुरा उपसमे वार कवीश गुणते ॥ ५१ ॥ ॥ पुखरा रोग सोग जरा जंतनें । ताव एकांतरा उत्तपते । गर्न बंधन ब्रणं सर्प विनु विषं । चालिका बालमेवा खंते ॥ ५५ ॥ ॥ साइणी माणी रोहिणी रंकाए।। फोटका मोटका दोष हुँतें । दाढ ऊंदर तणी कोल नोला तण।। स्वान सीयाल विकराल दंते ॥ ५३ ॥ ३०॥ धरणेऊ पदमावती समर सोनावती । वाट आघाट अटवी अटते । लखमी लोई मिले सुजशवेला वले । सयल आस्या फले मन हसंते ॥ ५४॥ ७० ॥ अष्ट महा जय हरे कानपी माटखे । ऊतरे सूल सीसग लणंते । वदत वर प्रीतसुं प्रीति विमल प्रजू । श्रीपार्श्वजिन नाम अनिराम मंते ॥ ५५ ॥ इतिश्री गौमी पार्श्वनाथजी वृक्ष स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ यह स्तवन ॥ संध्या समय निरंतर पवित्र होकर गुणे या सुणे सुध अदरसे तो सर्व उपभव मिटे महा मंगल होवे ॥ ॥ अथ अट्ठाईस लब्धी तप स्तवन लिख्यते ॥ ॥ उहा ॥ प्रणमुं प्रथम जिनेसरु । शुद्ध मनें सुखकार । खबधि अगवीस जिन कही। आगमनें अधिकार ॥१॥ प्रश्न व्याकरणे प्रगट जगवती सूत्र मझार । पन्नवणा आवस्यके । वारू लवधि विचार ॥२॥ आंबिल तप कर ऊपजे । खबध्यां अावीस । ते हिव परगट अरथसुं । सांजलज्यो सुजगीस ॥ ३ ॥ ढाल १ सफल संसारनी ॥ अनुक्रमे हेव अधिकार गाथा तणे । सबधिना नाम परिणाम सरिखा जणें । For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७४ ) रोग सहु जाय जसु श्रंग फर स्यां सही । प्रथम ते लबधि बे नाम मो सही ॥ ४ ॥ जासु मल मूत्र उषध समा जालीये । बीय विष्पोसही लबधि वखाये । श्लेषम उषधि सारिखो जेनो । तीजी खेलोसही नाम ने तेहनो ॥ ५ ॥ देहना मैथी कोढ दूरे हुवे । चोथी जल्लोसही नाम तेहनो वे । केश नख रोम सदु अंग फरसे सही । रहे नहीं रोग सब्बो सही ते कही ॥ ६ ॥ एक इंप्रिय करी पांच इंडिय तथा । भेद जाणें तिका नाम जिन्ना वस्तुरूपी सहू जाणियें जि करी | सातमी लबधि ते अवधि ज्ञानें करी ॥ ७ ॥ ॥ ढाल २ आव्यो तिहां नरहर एं चाल ॥ ॥ हिव गुल अढीये ऊणो मानुष क्षेत्र । संज्ञी पंचेंद्री तिहां जे वसय विचित्र । तसु मननो चिंतित जाऐं थूल प्रकार । ते कजुमति नांमें आम लवधि विचार ॥ ८ ॥ संपूरण मानुष क्षेत्रे संज्ञावंत । पंचेद्रिय जे बे तसु मन वातां तंत । सूखम पर जायें जाणें सद् परिणाम । ए नवमी कहीये विपुलमती सुन नाम ॥ ए ॥ जिए लबधि प्रजावे की जाय श्राकाश । ते जंघा विद्या चारण लवधि प्रकाश । जसु वचन सरापे खिए में खेरु थाय । ए लब्धि इग्यारमी यासी विषयक हाय ॥ १० ॥ सदु सूखम वादर देखे लोका लोक । ते केवल लबधि बार मिये सहु थोक । गणधर पद लहिये तेरमी लबधि प्रमाण | चवदम लबधे करी चवदे पूरब जाण ॥ ११ ॥ तीर्थकर पदवी पामें पनरमी लबधि | सोलम सुख दाई चक्रवर्त्ति पदरिद्धि | बलदेव तो पद लहिये सतरमी सार । श्रड्ढारमी For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७५) श्राखी वासुदेव विस्तार ॥ १३ ॥ मिसरी घृत खीर मेट्यां जेह सवाद । ए हवी आहे वाणी जगपीसमी परसाद । नणीयो नवि जूले सूत्र अरथ सुविचार । ते कुष्टिक बुद्धि वीशमी लवधि विचार ॥ १३ ॥ एके पद लणीये श्रावे पद खखकोक। कवीशमी सबधि पायाणु सारणी जोग । एके श्ररथे करी उपजे अरथ अनेक। बावीसमी कहीये बीज बुद्धि सुविवेक१४ ॥ ढाल ॥३॥ कपूर हुवे अति ऊजलोरे ए चाल ॥ ॥ सोलह देश तणी सही रे । दाहक सगति वखाण । तेह सबधि तेवी समी रे । ते जो खेश्या जाण ॥ १५ ॥ चतुर नर सुणज्यो ए सुविचार । बागमनें अधिकार । वारू खबधि विचार ॥ चतु० ॥ चवदह पूरब घर मुनिवरू रे । उपजंतां संदेह । रूप नवो रचि मोकले रे । खबधि आहारक एह ॥ चतु० ॥१६॥ तेजो लेश्या अग्निने रे । उपशम वा जलधार । मोटी लबधि पचशमी रे । शीतो लेश्या जाण । चतु ॥१७॥ जेण सगति सुं विकुरवें रे । विविध प्रकारे रूप । सद्गुरु कहे गवीसमी रे। वेक्रिय लबधि अनूप ॥ चतु॥ ॥१०॥ एकणपात्रे आदमी रे । जीमावे केई लाख । तेह श्रदीण महाणसी रे । सत्तावीसमी साख ॥ चतु० ॥ १ए। चूरे सेना चक्कीसनी रे । संघा दिकनें काज । तेह पुलाक सबधि कही रे । अभावीशमी साज ।। चतु० ॥२०॥ तेजशीत लेश्या बिहुँ रे। तेम पुलाक विचार । जगवती सूत्रमें जाखियो रे । ए निहुंनो अधिकार ॥ चतु॥१॥ चक्रवर्ती बलदेवनी रे । वासुदेव त्रण एह । आवश्यक सूत्रे अजे For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७६ ) पन्नवणा इक इक व्याकरणें रे । नहिं इहां संदेह ॥ चतुः ॥ २२ ॥ हारनी रे । कल्पसूत्र गणधार | तीन तीने मिलीरे वारू या विचार ॥ चतु० ॥ २३ ॥ प्रष्ण कही रे | वाकी सबध्यांवीश । सांजलतां सुख उपजे रे । दोलत हुवे निशि दीश ॥ चतु० ॥ २४ ॥ ( कलश ) संवत्त सतरेसेंवीशे मेरु तेरस दिन जले। श्री नगर सुखकर लूं करणसर श्रादिजिन सुपसावले । वाचना चारज सुगुरु सांनिध विजय दरख विलास ए । श्री धर्मवर्द्धन स्तवन जातां प्रगट ज्ञान प्रकाश ए ॥ २५ ॥ इति श्री २८ लब्धि स्तवनं ॥ ॥ अथ १४ पूर्व स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ ढाल * बेकर जोडीताम ए चाल ॥ ॥ जिनवर श्री बर्द्धमान । चरम तीर्थंकर । प्रहऊठी प्रणमुं मुदा । श्रुतधर श्री गणधार । सूरि शिरोमणी । नमतां नवनिधि संपदा ए ॥ १ ॥ चवदे पूरब नाम । सूत्रे जूजूवा । वीर जिणंदेनाखीया ए । ते दिव सुगुरु पसाय । वरवस्युं इहां । आगममें जिम उपदिश्या ए ॥ २ ॥ पहिलो पूरव उत्पाद | दूजो ग्रायणी । वीर्यप्रवाद तीजो नमुं ए । अस्ति नास्ति प्रवाद ॥ ४ ॥ सत्ता जाणीये । नारग रयण पंचम गिणुं ए ॥ ३ ॥ ast सत्य प्रवाद | सत्तम तम । कर्म प्रवाद अम गिलो ए । प्रत्याख्यान प्रवाद । नामें नवम । विद्या प्रवाद दशमो को ए ॥ ४ ॥ इग्यारम नाम कल्याण । प्राणायाम बारमो । क्रिया विशाल तेरम नोए । बिंदुसार इस नाम । चवदे एका सास्त्र थकी में संग्रह्याए ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७७) ॥ ढाल ॥२॥ श्री विमलाचल सिरतिलो ए देशी ॥ उत्पाद पूर्व सोहामणो । कोटी पद परिमाण । षट लाव प्रगट चे ते जिहां । त्रिपदी नाव विएणण ॥ १॥ सर्व अव्य पर्याय तणो । जीव विशेष प्रमाण । दूजो पूर्व आग्रायणी । छिन्नूलख पदजाण ॥ २॥ पदलख सित्तर जेहनी । संख्या परगट एह । वीर्य प्रबलता जीवनी । जाखी तीजे तेह ॥३॥ चोथे पूर्वे जे कह्यो । अस्ति नास्ति प्रवाद । पद संख्या साठ लाखनी । सप्त नंगी स्यावाद ॥ ५ ॥ ज्ञान प्रवाद पद पंचमो। सूत्रे आएयो जोम । मत्यादिक पण लेदसुं । पद संख्या इक कोम ॥ ५॥ सत्य प्रवाद बो कहुँ । लालुं सत्य स्वरूप । संख्या पद ग कोमनी । नाखी अगम अनूप ॥६॥ नित्या नित्य पणो इहां । आतम अव्य सुनाव । बीस पद कोम जेहना । सूत्रे श्राण्यां नाव ॥ ७॥ कर्म प्रवाद तणो हिवे । प्रगट पणे अधिकार । लाख असी पद जेहना। कोमी ग निरधार ॥ ७॥ नवमो पूर्व कहुँ हिवे । नामें प्रत्याख्यान । लाख चौरासी जेहना । पद संख्या चित्त बान ॥ ए॥ अतिसय गुण संयुत जणी । साधन साध्य निदांन । विद्या अनुपम सातसें । कोमी दस लख जांन ॥ १० ॥ कट्याण नाम ग्यारमो । बीस कोम प्रमाण । ज्योतिष शास्त्र विचारणा । चौविह देव कट्याण ॥ ११ ॥ प्राणायु पद बारमो। उप्पन्न लख इग कोम् । प्राण निरोधन जे क्रिया । शास्त्रे आण्यो जोम ॥१२॥ ख्यायिक्यादिक जे क्रिया । बंद क्रियासु विसाल । पद संख्या नव कोमनी । तेरमी किरिया विशाल For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (90) ॥ १३ ॥ खोकसार बिंड चवदमो । नामें अरथ निहाल । पद संख्या ग कोमनी । लाख पचवीश संजाल ॥१४॥ लोक प्रत्यय देखण जणी । संख्या गज परिमाण । सोल सहस अरुतीनशें । उर तेंयांसी जाण ॥ १५ ॥ पूरब संख्या एकही। गुणमालाथी देख । आगे बुध जन सोधज्यो । बाकी देश विशेष ॥ १६॥ ॥ ढाल ॥३॥ वीरजीनेसर इम उपदिशे ए चाल ॥ सूत्रे गूंथे गणधरा । अरथे श्रीअरिहंत नाखे रे। ते श्रुत ज्ञान नमुं सदा । पाप तिमिर जिम नासे रे ॥१॥ वाणीरे वीर जिनंदनी । सुणज्यो चित हित श्राणी रे । तत्व रमण ता अनुसरे । संपूरण गुण खाणी रे ॥ वा ॥२॥ विषय कषाय तजी करी । ज्ञान जगति उर धारी रे । विधि संयुत जिन मंदिरे । प्रनु मुख पास जुहारी रे ॥ वा० ॥३॥ तप जप संयम आदरी । श्रीश्रुत झान निधानो रे । सदगुरु चरण नमी करी । संबर जोग प्रधानो रे ॥ वा ॥ ४ ॥ अदत लेई ऊजला । गुंहली सुंदर कीजे रे। नांण देसण चारित्रनी। ढिगली तीन धरीजे रे ॥ वा ॥ ५॥ चवद पूर्व ब्रत इण परे। सुगुरु संजोगे लेई रे । विधिसुं पुस्तक पूजीये । चित अति आदर देईरे ॥ वा ॥६॥श्म तप संपूरण थयां । ऊजमणो हिव कीजे रे । घर सारू धन खरचनें । नर जव लाहो लीजे रे ॥ वा० ॥ ॥ पूग परत विटांगणा । पूरब नाम प्रमाणो रे । नवकर वाली कोथली । लेखण उवणी जाणो रे ॥७॥ देहरे देब जुहारने । आरती मंगल कीजे रे । सनात्र पूजा For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (SU) aa साचव । तत्व सुधारस पीजे रे || वा० ॥ ए ॥ इ पर तप आराधतां । दुरगति कारण वेदेरे । चवदह र सिरो मणि । जीव गति वेदे रे ॥ १० ॥ वा० ॥ तप आरा धन विधी | आगम वचने जोई रे । जवियण पिण तुमे आदरो | ज्युं जव भ्रमण न होई रे ॥ ११ ॥ वा० ॥ (कलश) श्म सय सुखकर गल खरतर तपे रवि जिम कांत ए । सोना ग्यसूरि मुणिंद इस पर कह्यो पूर्व वृत्तत ए । संवत गरे वरश बिन्नूं नयर श्री वालूच रे । ए स्तवन जणतां श्रवण सुतां सयूल मन वंबित फले ॥ १२ ॥ इति चवदे पूर्व स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ तिलक तप स्तवन लिख्यते ॥ दूहा* सासण देवी सारदा । वाणी सुधारस वेल । बालक हित जणी वगसिये । सुबुधि सुरंगी रेल ॥ १ ॥ नवम अंग जिन पूजतां । मन लहि सुन परिणाम । तप तिलके फल पामियें । दवदंती गुण धाम ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ वीरजिणे सर उपदिसे ए देशी ॥ ॥ कमला जिम कुंम पुरे । जुज बल नरपतिजी मोरे । पदमनी पदम सुवासना । श्वेत गज स्वप्नी मोरे ॥ पदम० ॥ १ ॥ परतख्य फल ए पुन्यना । प्रसवी सुता पूरे मासे रे । दवदंती नाम दीपतों । गुणमणी बुद्धि प्रकाशे रे ॥ पदम० ॥२॥ चौसठ कला विचक्षणा । रूप गुणें करी रंजा रे । देव गुरु धर्म दीपावती । व्रत धारी दृढ बंजा रे ॥ पदम० ॥ ३ ॥ प्रतिमा पूजे श्री सांतीनी देवे दीधी त्रिकालो रे । मात पिता For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि तल कमसार । संजम (00) प्रमोदसुं॥ स्वयंबर वर मालो रे ॥ पदम ॥४॥ अज्का धिप श्री निषदनो । नल लिखीयो निलामे रे । आनंदसुं पंथ श्रावतां । पूरव पुन्य उघामे रे ॥ पदम० ॥ ५ ॥ मज्कम रयणी तम जरी। मधुर वकुंत इहां वनमें रे । मणि नाले तेज दिनमणी । जाग्रत देखी अहो मनमें रे ॥ पदम ॥६॥ ज्ञान धारी गुरु को मिले । पूरीये एह प्रसन्नो रे । कर्म बले मुनि श्रावीया। परीसह जीतमदन्नो रे ॥ पदम ॥ ७ ॥ पंच जीत पंच पालता । टालता उस्सह सवला रे । संजम शुष्क संजालता । उद्यम शिव सुख कमला रे ॥ पदम ॥ ७ ॥ उहा मणि तेजें मुनि तरुपये रथ थकी स्त्री जरतार देवे तीन प्रदक्षिणा विधिसुं चरण जुहार ॥ ए॥ देशना सुन पावन थया झान सुधारस पाय को तप परनव तिलक है कहिये श्रीमुनिराय ॥ १० ॥ ॥ ढाल ॥२॥ भरत नृप भावसुं ए चाल ॥ ॥ मधुर स्वरे मुनिवर कहे ए नाणी गुरु सुपसाय । दीपक सहू लोकना ए । कर्म सुत्नासुन परजवे ए । इह लव फल निपजाय । करम गति वांकमी ए ॥ ११॥ हिनांण नव प्रागनो ए । नृप सुणे निरमल नाव । समकित साहीयो ए। धर्मवती को नृप वधु ए । जाण्यो हे तत्व प्रस्ताव । साची जिन वाचना ए ॥ १५ ॥ चौथ प्रमुख नृप चुप सुंए । किरिया शुद्ध करी एह । नले चित्त नाव सुंए । नव अंग पूजे तिलक सुंए । चाढे जिन चौवीश । रयण कंचण जम्या ए ॥ १३ ॥ तिलक तिलकसें पामियो ए। समकित एह सतीस । जनम प्रदक्षिणा For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) सफलो गिणे ए। नगवन तप विधि नाखीये ए । नल कहे बोध वरीस । पीहर पट कायना ए ॥ १४ ॥ आदिनाथ अरिहंतना ए। षट् उपवास कहीस । त्रि चौबीहारस्सुं ए। चौथ दोय जिनवीरना ए । अजितादिक बावीस । आणा गुरू शिरवही ए॥ १५॥ पौषधत्रीश त्रीने श्रया। पूजन तिलक चढाय । तारक जगदीसने ए । उद्यापन संघ नक्तिसुं ए। जन्म सफल नलराय । सूधे मन साधीये ए॥१६॥ सुणवाणी समकित गहे ए । पय प्रणमी गुरुवीर । चित्त उमाहीयो ए। इणपर जे जविआदरे ए । पाये चरम शरीर मूल सुखशासता ए ॥१७॥ ( कलश ) श्री शांति दाता त्रिजग त्राता नविक ध्याता सुखकरा । इम सतीय साध्यो तप आराध्यो सुजस बांध्यो शिवधरां । आगमे आखे सुरीय साखे सुगुरु नाखे । सुण यथा । सुछ ध्यावे लविक नावे विजय विमल जिनवर कथा ॥ १७ ॥ इति तिलक तपस्या स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥अथ शोलीये को स्तवन लिख्यते ॥ ॥ वीर जिनेसर नाखीयोरे लाल । सदु ब्रतमें सिरताज । नविप्राणी रे । कषायगंजनतप आदरो रे लाल । इणश्री पातिकजाय नविप्राणी रे ॥ वी०॥ १॥ कोमवरष तप आदरेरे लाल । क्रोधगमावे फलतास नविप्राणी रे । मानकरे जे प्राणियारे लाल । ते जगमें न सुहाय ॥ ज० ॥ वी० ॥२॥ ब्रतमें माया श्रादरी रे लाल । स्त्रीपणो पायो मश्विनाथ ॥ल ॥ रूपपरावर्त कीया घणारे लाल । आषाढ नूति गणिका साथ ॥ ॥ वी० ॥३॥ च्यार कपाय के मूलगारे लाल उत्तम बृ. ६ For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सोले नेद ॥ न ॥ श्म लव लव जमतो थकोरे लाल । जीवपामें बहुखेद ॥ ज० ॥ वी० ॥ ४॥ एकाशण ब्रत जे करे रे लाल । लाख वरष मुख हांण ॥ ॥ नीवी ब्रत दूजो कह्योरे लाल । ए धारो जिनवर वाण ॥ ॥ वी० ॥ ॥ आंबिलनो फल बहु कह्यो रे लाल । उपजे लबधि अपार ॥ ज० ॥ उपवास करतां नावसुंरे लाल । पामें नवनो पार ॥ज वी ॥६॥ इम दिन शोले तप करे रे लाल । पूरण ए ब्रत थाय ॥ न० ॥ देव गुरु पूजा करे रे लाल । तिण श्री पातिक जाय ॥ न० ॥ वी० ॥॥ ए तप आदर श्री करे रे साल । मन वंचित फल थाय ॥ न ॥ नर सुर रिद्धि पिण लोगवे रे लाल । निश्चै मुगति जाय ॥ नवीन ॥ ॥ इति १६ कषाय गंजन तप स्तवनं ॥ ॥ अथ ९६ भगवानका स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ वरतमान चोवीसी वंहुँ । मनसूधे नित मेवरी माई । षन अजित संजव अभिनंदन सुमति पदम प्रनुसेवरी माई ॥१॥ वर० ॥ श्री सुपार्श्व चंऽप्रनु प्रणमुं । सुविधि शीतल श्रेयांसरी माई । वास पूज्य विमल अनंत धरम जिन शांति कुंथु परसंसरी माई ॥ वर ॥२॥ अरजिन मलि अनें मुनि सुब्रत । नमि नेमि पास जिणंदरी माई। चौवीसमा श्री वीर जिणेसर प्रणमुं परमाणंदरी माई ॥ वर ॥३॥ ॥ ढाल २ प्रहशम सूधा साधु नमुं नित एदेशी॥ .. नित नित अतीत चोवीशी नमीये । जेहना नाम प्रगट ए जाण । केवल ज्ञानीने निरवाणी । सागर महाजश विमल सपना For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) वखाण ॥ नि०४॥ सर्वानुनूति श्रीधर दत्त जिनवर । दामो दर सुतेजा श्रीस्वामि । मुनि सुब्रत सुमति शिवगति जिन । श्री अस्ताग नेमीसरनाम ॥ ५॥ नि० ॥ अनिल यशोधर तेम कृतारथ । श्रीजिनेसर सुधमति सुजगीस । शिवकर स्पंदन संप्रतिनामें । वंदीजे जिनवर चौवीश ॥ ६॥ नि॥ ॥ ढाल ३ सफल संसारनी देशी।। ॥ जे जविस्संति अनागए कालए । तेह चौवीश प्रणमीस त्रिहुंकालए । प्रथम महाराज श्रेणिकतणो जीवए । श्री पदमनान प्रणमीस सदीवए ॥ 9 ॥ वीरनो पितरीयो नाम सुपासए । हुसी जिनबीय सूरदेव सु प्रकास ए । कोणिक सुत उदाई नरिंदए । तीसरो तेह सुपास जिणंदए ॥२॥ सिष्य श्री वीर नो पोट्टलो साधए । चोथो स्वयंप्रनु नाम आराध ए । दृढा युषजीव सिधांतमें जाणीये । पंचम सर्वानुनूति प्रमाणी ये ॥ ३ ॥ कीर्तण नाम इक जीव कहीजीये । देवश्रुत ते उणे स्वामि स सही जीये । शंख श्रावक दुस्ये उदय जिण सातमो आणंदनो जीव पेड्डाल जिण आवमो॥४॥ सुनंदनो जीवते नवम पोट्टल जिणं । शतक श्रावक शतकीर्ति दशमो नणं । देवकी जीव मुनि सुव्रत ग्यारमो । सत्यकी जीवते अमम जिण बारमो ॥ ५॥ वासुदेव जीव निकषाय जिनतेरमो । बलदेव जीव निपुखाक चवदम नमो । पनरमो निरममदेव सुलसा कही। रोहिणी जीव चित्रगुप्त सोलम सही ॥६॥ समाधि जिन सतरमो श्रविका रेवती। अढारमो शहाल जीव संबर जिनपति । दीपायन जीव यशोधर उगणीसमो । कृष्ण कोई For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (०४) जीव ते विजय जिनवीशमो ॥ ७॥ मलि इकवीशमो जीवनारदतणो । देव वावीशमो अंबम श्रावक नणो । तेवीशमो अमर जीव अनंत बीरज नमो । स्वाति बुध जीव ते जा चौवीशमो ॥ ॥ एह आगामी चौवीश जिण जाणीया । प्रवचनसार नधार श्री आणीया । केई पर सिघनें केई अप्रसिद्धकह्या । शास्त्र अनुसार थी साचकर सरदह्या ॥ ए॥ ॥ ढाल ४ आजनिहेजोरे दीसे लाहलो. एदेशी ॥ विहरमान जिण वीशे वंदीये । महाविदेह विख्यात । सीमंधर युगमंधर बाहुजी श्रीसुबाहु सुजात ॥ ६॥ वि०॥ स्वयंप्रनु रिपन्नानन अनंतवीरजी । सूरप्रन्नु तेम विशाल । वज्रधर चंजानन चंबाहुजी । नुजंग ईसर नेम नाल ॥७॥ वि० ॥ वैरसेन महाना नमुंवली । देवयशा यसोरिछ । अढी वीपमें विचरे आजए । नामलीये नवनिछ ॥ ७ ॥ वि०॥ ॥ ढाल ५ रेजीव जिनधर्म कीजीये० ए देशी॥ च्यार तीर्थकर शाश्वता । इणहीज अनिधान । झपनानन चंजानन वारिषेण वर्षमान ॥ ५॥ च्या० ॥ अवकोकि उप्पन लाखसुं । सत्ताणुं हजार । चनसे व्यासी देहरा । त्रिहुं लोकमकार ॥ २० ॥ च्यार० ॥ नवसे पणवीस कोमीया । बिंब त्रेपनलाख । सहस अगवीश च्यारसे । अठ्यासी लाख ॥२१॥ च्यार ॥ चिन्नूं जिणवर नाम ए । समस्यां सुखदाय । प्रणम्यां पाप मिटे परा । समकित सुछ प्राय ॥२॥ च्यार० ॥ ( कलश ) श्म त्रिण चौवीशी वीश विहरमांन चौजिण शाशता । संथुल्यां सतरेसे त्रयांले अधिक आणी आसता। For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) जिन रतन चिंतामणि तणी परि प्रघल वंचित पूरए । प्रहसमे त्रिकरण सुख प्रणमें सदा जिनचंदसूरए ॥ २३ ॥ इति श्री चिन्न लगवानका स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री उपधान तप वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ श्री महाबीर धरम परकासे । वेठी परषद बारजी। अमृतवचन सुणी अति मीग । पामें दरष अपार जी॥१॥ सुणो सुणो रे श्रावक उपधान बह्यां विन । किमसूके नवकार जी। उत्तराध्ययन बहुश्रुत अध्ययने । एह लण्यो अधिकार जी ॥॥ सुणो० ॥ महानिशीथ सिद्धांत मांहे पिण । उपधांन तप विस्तार जी। अनुक्रम सुझ परंपर दीसे । सुविहित गब आचार जी ॥ सुणो ॥३॥ तप जपधान वह्यां विन किरिया। तुल अलप फल जाण जी । जे जपधान वह्या नर नारी । तेह नो जनम प्रमाण जी ॥४॥ सणो० ॥ तप उपधान कह्यो सिद्धांते । जो नविमाने जेह जी । अरिहंत देवनी आण विराधे जमस्ये नव नव तेह जी ॥ ५ ॥ सुणो० ॥ अघड्या घाट समां नर नरी । विण उपधाने होय जी। किरिया करतां आदेश निरदेश । काम सरे नहीं कोई जी ॥६॥ सुणो० ॥ इक घेवरने खांझे नरियो । अति घणो मीगे श्राय जी । एक श्रावक उपधानवहेतो धन धन ते कहवाय जी ॥७॥ सुणो॥ ॥ ढाल २॥ नवकार तणो तप पहिलो वीसम जाण । इरियावही नो तपबीजो वीसम आण। इण बिहुँ उपधाने निश्चे नांण मंमाण । बारे उपवासे गुरु मुख बेबे वांणि ॥ ॥ त्रीसम त्रीजो णमो त्थुणं उपधांन । त्रिण वायण उगणीस तप उपवास प्रधान । For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (०६) अरिहंत चेई तप चोयो चोकम एह । उपवास अढाई वायण एक गुण गेह ॥ ए ॥ पांचमो लोगस्स तप असावीसम नाम । साढा पनरह उपवासे वायण त्रिणगम । पुरकरवरदी तप उको उक्कम सार । साढात्रण उपवासे वायण एक सुविचार ॥ २० ॥ सिझाएं बुखाणं सातमो उपधान माल । उपवास करे इक चौविहार तत काल । एक बायण करे बलि गुरु मुख सरस रसाल । गड नायक पाशे पहरे माल विशाल ॥ ११ ॥ माल पहरण अवशर आणी मन उरंग । घर सारू वारू खरचे धन बहु जंग । अति उन्लवकीजे राती जोगो दिल खोल । गीत गान गवावे पावे अति रंग रोल ॥ १२ ॥ ढाल३॥ ए साते उपधान । विधसों जे वहे । ते सूधी किरिया करेए। खिण नकरे परमाद । जीव जतन करे । पुंजि पुंजि पगला नरेए ॥ १३ ॥ नकरे क्रोध कषाय । हम हम हसे नहीं । मरम केहनो नवि कहे ए । नाणे घरनो मोह । उत्कृष्टी करणी करे । साधुतणी रहणी रहे ए ॥ १४ ॥ पहुरसीम सिकाय । करपोरसी नणी । उंचे स्वर बोले नहीं ए । मनमांहें नावे एम । धन धन ए दिन । नर नव मांहिं सफल सही ए ॥ १५ ॥ जे साते उपधान । विधसेती वहे । पहिरे माल सोहावणी ए। तेहनी किरिया शुध। बहु फल दायक । करम निरजरा अति घणी ए॥१६॥ परनव पामे रिख । देव तणा सुख । बत्रीस बद्ध नाटक पमे ए । लाने लील विलास । अनुक्रम शिव सुख । चढती पदवी जे चढे ए॥ १७ ॥(कलश) श्म वीर जिणवर जुवण दिणयर मात त्रिशला नंदणो । उपधान ना फल कहे उत्तम For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) नविय जण आणंदणो। जिणचंद जुग परधान सदगुरु सकलचंद मुनीसरो। तसु शीश वाचक समयसुंदर लणे वंचित सुखकरो ॥ १७ ॥ इति श्री सात उपधान गजित श्री महावीर स्वामी वृक्ष स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पक्खवासे तपका वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥सीमंधर करजो मया एदेशी ॥ ॥ जंबुघीप सोहामणो । दक्षिण जरत उदार । राजग्रही नगरी जली । अलिका पुर अवतार ॥ १॥श्रीमुनिसुब्रत स्वामी जी। समरंता सुख थाय । मनवंचित फल पामी ये । दोहग दूर पुलाय ॥२॥ श्री० ॥ राजकरे तिहां राजियो। सुमित्र नरेसर नाम । पटराणी पद्मावती । शीलगुणे अजिराम ॥ श्री ॥३॥ श्रावण ऊजल पूनमें । श्रीजिनवर हरिवंश । माताकुदि सरोवरे । श्रवतरीयो रायहंस ॥ श्री ॥४॥ जेठ पढम पद अमी। जायो श्रीजिनराय । जनम महोग्व सुरकरे । त्रिनुवन हरख नमाय ॥ श्री० ॥ ५॥ शामल वरण सोहामणो । निरुपम रूप निधान । जिनवर लंबन काउबो । वीश धनुष तनु मान ॥ श्री० ॥६॥ परणी नार प्रजावती । जोग पुरंदर साम । राज लीला सुख लोगवे पूरे वंचित काम ॥श्री० ॥ ७ ॥ तब लोकांतिक देवता । आवि जंपे जयकार । प्रनु फागुण वदि वारसे लीधो संयम नार ॥ श्री० ॥ ७॥ शुल फागुण वदि बारसे । मनधर निरमल ध्यान । च्यार करम प्रनु चूरिया । पाम्यो केवल ज्ञान ॥ श्री० ॥ ए॥ ॥ ढाल २ सुखकारण भवियण समरो श्री नवकार एदेशी।। ॥ ततखिण तिहां मिलिया चलिया सुर नर कोमि । प्रजुना For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) पद पंकज प्राणमे वेकर जोमि । बेकर जोमी मचर गेमी समव सरण विरतंत । माणकहेम रूपमय त्रिगमो उत्र त्रय कलकंत। सिंहासन वेग तिहां स्वामी चोविह धर्म प्रकासे । बारे परखदा वेगरी भागलि सुणे मन जटहासे ॥ १० ॥ तपनें अधिकारे पखवासो तप सार । पमिवाथी कीजे पनरह तिथ ऊदार । पनरह तिथि कीजे गुरु मुख लीजे । जिस दिन हुवे उपवास । श्रीमुनिसुव्रत नाम जपी जे वांदी देव जबास । तप ऊजमणे रजत पालणो सोवन पूतली चंग । मोदक श्राल देहरे मूंकी जिनवर स्नात्र सुरंग ॥ ११ ॥ तप करिये निरंतरअदुरव दरशनी जेम । मन वंचित केरा सुख पानी जे तेम । सुख पामीजे कारजसीजे तप करतां सुखकार पुत्र मित्र परिवार परं अति ववन जरतार । जस कीरत सो नाग वमाई महियल महिमा जांण । परनव मुगति फल लहीये ए तपनें प्रमाण ॥ १२॥ श्रिर थापी चतुर्विध संघतणो अधिकार । जरुवच प्रमुख नगरादिक करिय विहार । विहार करी प्रतिबोधे खंदक पंचसयां परिवार । कार्तिक सेठ जितशत्रु तुरंगम सुब्रतनामकुमार । तीश सहस वरस आऊखो पाले जगदया सार । श्री सम्मेत सिखर परमेसर पोहता मुगति मकार ॥ १३ ॥ इम पंच कल्याणक थुणिया त्रिनुवन ताय । मुनि सुब्रत स्वामी वीशमो जिनवर राय । वीशमो जिनवर राय जग गुरु जय जंजण जगवंत । निराकार निरंजन निरुपम अजरामर अरिहंत । श्री जिनचंद विनय शिरोमणि सकलचंद गणि सीस । वाचक समयसुंदर इम पजणे पूरो मनह For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८‍ ) जगीस ॥ १४ ॥ इति श्री पक्खवासे तपसा वृद्ध स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ वारे मासी तप स्तवनं लि० ॥ दान उलट धरी दीजीये। (एदेशी ) त्रिभुवन नायक तुं दिजिणे सर देवरे । चौसठ करे सदा । तुक पद पंकज सेवरे ( ० ) ॥ १ ॥ प्रथम भूपाल प्रभु तुं थयो । अवसरपणी कालरे । तुम सम अवरन को प्रभु । तुं प्रभु दीनदयाल ( त्रि० ) ॥ २ ॥ प्रथम तीर्थ कर तुं सही । केवल ग्यान दिनं दरे । धर्म प्रज्ञापक प्रथमतुं । तूंही है प्रथम जिनंदरे | ( त्रि० ) ॥ ३ ॥ अंतर अरि जे आतम तथा । काल अनादि थिति जेहरे । ते तप शक्तिये ते हया । आत्म वीरज गुण गेहरे ( त्रि० ) ॥ ४ ॥ ताहारी शक्ति कुए कह शकै । जेहो अंत न पाररे । द्वादश माशनो तप कर्यो । तेह पाक सार रे ( ० ) || २ || एह उत्कृष्ट तप वरणच्यो । गम जिन राज रे । ते करवुं ति या करूं । तप विना किम सरे काज रे ( त्रि० ) || ६ || तीनशे साठ उपवास ते । जेइन पंचम कालरे । अवसर आदर क्रम विना । ते पिए नवि सुविलास रे ( ० ) || ७ | ए तप गुरूमुख आदरै । शास्त्र - तणे अनुसाररे । पक्किमणादिक जावखी । सुद्ध क्रिया मन धार रे ( त्रि० ) ॥ ८ ॥ चित्तसमाधि सुन जावथी । धरे ताहरो ध्यानरे । तेनर उत्तम फल लहे । बलि लहे उत्तम ज्ञान रे ( ० ) ॥ ए ॥ काल अनादि संसारमें । जन्म मरण तणा दुःख रे । ते लह्या धर्म पायां विनां तपविना किमहुवे सुक्ख रे For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए.) (त्रि०)॥ १० ॥ हिव सह्यो नर जव पुन्यथी । वलि सह्यो श्रीजिनधर्म रे । तत्वनी रुचि थई हे मुके । हिव मिट्यो मन तणो नर्म रे (त्रि० ॥११॥ जव जव एक जिनराजनो । सरण होज्यो सुख कार रे कुगुरु कुदेव कुधर्मनो। में कीधो हिवे परिहार रे (त्रि ) ॥ १२ ॥ दर्शन ज्ञान चारित्र ए । मोदमारग सुविसाल रे । जव जव जे मुझ संपजे । तो फले मंगल मालरे ॥ त्रि० ॥ १३ ॥ श्री जिन शासन तप कह्यो । ते तप सुरतरु कंदरे । धन धन जे नर आदरे । काटे ते करमनो फंदरे ॥ त्रि॥ १४ ॥ कलश ॥ श्म नालि नंदन जगत वंदन सकल जन आनंदनो । में शुण्यो धन दिन थाजनो मुफ मात मरुदेवी नंदनो । संवत सुनेत्राकाश निधि शशि नयर श्री वालूचरे । श्री जिन सौलाग्य सूरिंदके सुपशाय विजय विमलवरे ॥ १५ ॥ इति श्री बारमाशी तप वृद्ध स्तवनम् ॥ ॥ अथ छम्मासी तप स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ गौतम स्वामी रे बुध दो निरमली । आपो करिय पसाय महावीर स्वामी जे जे तप किया । तेहनो कहिसु विचार । वलि वलि वां वीर जी सुहामणा ॥१॥ जावर जंजण सेव्यां सुख करे । गातां नत्र निधि श्राय । बारे वरसां वीरजी तप कियो । दूर करे सहु अपाय ॥ व० ॥२॥ बे कर जोमी एहूं वीनवू । श्रीजिन शासन राय । नाम लियां थी नव निधि संपजे । दरिशण उरित पुलाय ॥ व० ॥ ३ ॥ नव चौमासा जिनजीरा जाणि ये । एक कीयो उम्मास । पांचे कणा वलि जाणिये । बार के को जी माश ॥ व०॥४॥ बहुत्तर माशख For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) मण जग दीपता । ब दो मासी रे जाण । तीन अढाई दो दों कीया। दो दोढ माशी वखाण ॥ व० ॥ ५॥ जज महान शिवगति जाणियें । उत्तम एहना प्रकार । विचमें पारणो स्वामी नहिं कियो । नहिं कीयो चोथो आहार ॥ व० ॥६॥ तिहुँ उपवासे प्रतिमा बारमी । कीधा बारे जी माश । दोयसें बेला जिनजीरा जाणिये । इण गुणतीस विलास ॥ ३० ॥७॥ तीनसे पारणा जिनजीरा जाणिये । तीन गुणतीस पचास । एहमें स्वामी केवल पामिया । पाम्या मुगति आवास ॥व० ॥ ॥ कलश ॥ इम वीर जिनवर सयल सुखकर अतिहि मुक्कर तप करी । संयमसुं पाली कर्म टाली स्वामी शिव रमणी वरी । सेवक पजणे वीरजिनवर चरण वंदित तुमतणा । संसार कूप पर्फत राखो । आपो स्वामी सुख घणा ॥ ए॥ इति उम्मासी तप स्तवनं ॥ ॥अथ रोहिणी तप वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ शाशण देवता सामिणीए मुफ सांनिध कीजे । नुलो अक्षर जगत लणी समझाई दीजे । मोटो तप रोहणी तणो ए जिगरा गुण गाउं । जिम सुख सोहग संपदाए वंछित फल पाउं ॥१॥ दक्षिण जरते अंगदेस ने चंपा नयरी। मघवा राजा राज्य करे तिण जीत्या वयरी । पाटतणी राणी रूवमी ए लखमी इण नामें । थाप पूत्र जाया जिणेए मनमें सुखपामें ॥२॥ रोहणी नामे कन्यकाए सबकुं सुख कारी। आगं पूत्रां ऊपरां ए तिण लागे प्यारी । वाधे चंजतणी कला ए। जिम पख उजवाले । तिम ते कुमरी धाय माय पांचे प्रतिपाले For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) ॥३॥ कुमरी रूपे रूवमी ए घर अंगण वैठी। दीनी राजा खेलती ए तिण चिंता पैठी। तीन नुवन विच एहवी ए नहिं दूजी नारी रंजा पलमा गवर गंग इण आगल हारी ॥४॥ पुरुष न दीसे को इसो जिणने परगाउं । आंख्या श्रागल साल वधे तिण चयन न पार्छ । देश देश ना राजवीए ततखिण ते माया । सबल सजाई साथ करी नरपति पिण आया ॥ ५ ॥ वीतशोक राजा तणो ए कुमर सो लागी। कन्या केरी आंखमी ए तिणसेती लागी। ऊना देखे सकल लोक चढिया के पाला । चित्रसेन रे कंगवी कुमरी वरमाला ॥६॥ देव अने देवांगना ए जपे जय जय कार । रलियायत श्रयो देखने ए सारो संसार । कर जोमी कहे लोक वखत कन्यारो जामो । वीतशोकनो कुमर श्रयो सिर ऊपर लामो ॥ ॥ इम विवाह श्रयो नलो ए । दीया दान अपार । घर आया परणी करी ए हरख्यो परिवार । वीतशोक निजपूत्र जणी अपणो पाट दीधो। श्रापण संजम आदरीए जगमें जस लीधो ॥ ७॥ ॥ ढाल २ प्रभु प्रणमुंरे पास जिणेसर थंभणो ए देशी ॥ तिण नगरी रे चित्रसेन राजा थयो । सुख माहीं रे केटलो काल वही गयो । इण अवसर रे श्राउ पूत्र हुवा जला। चढते पखरे चंज जिसी चढती कला ॥ नहालो ॥ चढती कला हिव राय बेगे पास बेगी रोहणी । सातमी नूमी कंत सेती करे क्रीमा अति घणी । आठमो बालक गोद ऊपर रंगसूं राणी लियो । पूत्रने प्रीतम आंख आगल देखतां हरखे हियो ॥ ए॥ ढाल ॥श्क कामणी रे गोख चढी अष्टे पमी। शिर For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए३) पीटे रे दीन स्वरे रोवे खमी । बूढा पणेरे मन गमतो बालक मूओ। हुँतो एकज रे तिण अधिकेरो मुख दुई ॥ नबालो ॥ मुख हुवो देखी रोहिणी कहे इम प्रीतम नणी । ए नार नाचे अने कूदे कहो किम मोटा धणी । एहवो नाटक आजतांई में कदे देख्यो नहीं । मुझने तमासो अने हासो देखता आवे सही ॥ १० ॥ ढाल ॥ण वचने रे रीसाणो राजा कहै । तूं पापणी रे परतणी पीमा नवि लहै । ए मुखणी रे पूत्र मुए तम फम करे। जब वीतेरे वेदना जाणी जे तरे ॥ जहालो ॥ जाणी जे तरे तूं वात दुखनी गरव गहिली कामीनी । इम कही राजा हाथ काट्यो तेहना बालक लणी । सातमी मी श्री तले नाख्यो तिसे हाहारव थयो । रोहिणी हसती कहै प्रीतम पूत्र नीचे किम गयो ॥ ११॥ ढाल ॥ हिव राजा रे पूत्र तणे शोके करी। थयो मुरवित रे रोवे अति आंख्यां जरी । पमतो सुतरे सासण देवत कालियो।कंचन मयरे सिंहासण बेसाणियो। (ढाल) वेसाणियो कर जोमी आगे करे नाटक देवता । गोद खिलावे के हसावे पाय पंकज सेवता । ऊपनो पति ने अचंलो देखि ए कारण किसो । जो कोइ ज्ञानी गुरु पधारे पूछिये सांसो इसो ॥ १५ ॥ ढाल ॥ चिंतवतां रे चारित्रिया आया जिसे । राजा पिण रे पुहतो वंदण ने तिसे । सुणि देशना रे पूरे प्रश्न सोहामणो । कहो स्वामी रे पूरब नव बालक तणो ॥ नबालो ॥ बालकतणो नव नूप पूरे कहै इण पर केवली। रोहिणी राणीनो नवांतर अने राजानो वली। श्री सुगुरु पासे पारखे नवे रोहिणी. तप आदयो । तप तणे सगते साधु लगते For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ए४ ) तुम्ह जवसायर तो ॥ १३ ॥ ढाल || कहै राजा रे रोहिणी तप किम की जिये । विधि जाखो रे जिम तुम पासे लीजीये ॥ तब मुनिवर रे विधिरोहिणीरा तप तणी । इम जंपे रे चित्र - सेन राजा जी || उल्लाजो || राजा जणी विधि एह जंपे चंद्र रोह जब विये । उपवास कीजे खाज लीजे जली जावना जाविये । बारमा जिनवर ती प्रतिमा पूजिये मनरंगसुं । इम सात वरसां लगे कीजे तजी आलस अंगसुं ॥ १४ ॥ ॥ ढाल वीर सुणो मोरी बीनती ए देशी ॥ ॥ तप करिये रोहिणी तणो । वलि करिये हो ऊजमणो एम। तप करतां पातिक टले । तिए कीजे हो तप सेती प्रेम ॥ १५ ॥ तप० ॥ देव जुहारी देहरे। तिए आगे हो कीजे वृक्ष अशोक । गुणनो बारम जिनतणो । जला नेवजहो धरिये सदु थोक ॥ तप० ॥ १६ ॥ केशर चंदन चरचिये की जे आगे हो मंगलीक | विधिसुं पुस्तक पूजिये । ते पामे हो शिव पुर तहतीक ॥ तप० ॥ १७ ॥ सेवा कीजे साधूनी । वलिदीजे हो मुँह माग्या दान | संतोषी जे साहमी मनरंगे हो कर कर पकवान ॥ तप० ॥ १८ ॥ पाटी पोथी पूंचना । मिस लेखण हो फिल मिल सुजगीस । नवकरवाली वींटणा | गुरु आगे हो धरो सत्तावीस ॥ तप० ॥ १९ ॥ चोश्रो व्रत पिए ति दिने । इम पाले हो मन । विवेक । इस विध रोहिणी आदरे । ते पामे हो आनंद अनेक ॥ तप० ॥ २० ॥ ॥ ढाल ४ धर्मकरो जिनवर तणो ए देशी ॥ ॥ इम महिमा रोहणी तणी । श्रीज्ञानी गुरु परकाशे रे । For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५५) चित्रसेन ने रोहिणी । वासुपूज्य तीर्थकर पासे रे ॥श्म ॥२१॥ इण परि रोहिणी आदरी । ऊपर ऊजमणो कीधो रे । चित्रसेनने रोहणी । मन सूधे संजम लीधो रे ॥इम ॥२५॥ श्राउ पूत्रे आदरी । दीक्षा बारम जिन आगेरे । वलि नाना विध तप तपे । धरम तणी मति जागेरे ॥ इम० ॥ २३ ॥ करि श्रणसण आराधना । सहि केवल शिवपद पायारे । जिन वाणी आणी हिये । प्रनु चरणां चित लायारे ॥ श्म ॥॥ मनमोहन महिमा नीलो । में स्तव्यो शिवपुर गामी रे । मन मान्या साहिब तण।। हिव पुन्ये सेवा पामो रे ॥श्म० ॥२५॥ कलश ॥ श्म गगन उगमुनि चं वरसे (१७२०) चोथ श्रावण सुदि नली ॥ में कही रोहिणी तणी महिमा सुगुरु मुख जिम सांजली । वासुपूज्य अमने श्रया सुप्रशन चितनी चिंता टली। श्रीसार जिन गुण गावतां हिव सकल मन आस्या फली ॥२६॥ इति श्री रोहिणी तप वृद्ध स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥अथ पंतालीस आगम वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ चोवीसे श्री तीर्थपति । नमूं देव अरिहंत ॥ अर्थ प्रकाशे गणपपुर । घादश अंग महंत ॥ १ ॥ त्रिपदी सहि गणपतिरचे । सूत्र अर्थ संजोग ॥ अक्षर रूपे सारदा । प्रण त्रिकरण योग ॥२॥ टीका कर्ता जगत गुरु । सूत्रकरे गणधार ॥ पंचांगी युत विस्तरे । नय निक्षेप विचार ॥ ३ ॥ दुषम काल मुनिसें। जूले बारम अंग ॥ कंठ पावसे लिखतकर। रचना रची अनंग ॥ ४ ॥ खंदिल अरु देवर्षि गणि । आचारज सयपंच ॥ चौरासी आगम लिखे । कोटि ग्रंथ तज खंच For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ए६ ) 1 ॥ ५ ॥ काल दोपसें छात्र मिलें । आगम पैंतालीस ॥ ताको मुनि विवरण करे । माने विसवावीस ॥ ६ ॥ ढाल ॥ जगत गुरु त्रिशला नंदन जी एदेशी || आचारांग पहिलो कह्यो जी । मुनि आचार विचार || सुय गमांग दूजो जी | पापंमी निरधार ॥ जगत गुरु जाखे वीर जिनंद ॥ १ ॥ दस गण गणांग में जी। समवायांग संख्यात ॥ सहस बत्तीस जात प्रश्ननो जी | जगवई अंग विज्ञात || जग० ॥ २ ॥ धर्म कथा ज्ञाता जी जी । दस श्रावक व्रतधार ॥ दसा उपासक सातमो जी । अंग कह्यो निरधार ॥ जग० ॥ ३ ॥ अंतगम केवली जे थया जी । वरणन अष्टम अंग || पंचानुत्तर जे गया जी । ऋणुत्तरोवाई चंग ॥ जग० ॥ ४ ॥ अंगुष्टादिक प्रश्नो जी । प्रश्न व्याकरण नाम | सुख दुखना फल जाषिया जी | सूत्र विपाके ताम ॥ जग० ॥ ५ ॥ अढार सहस आचा रांगमें जी । पदसंख्या परिमाण || वर्ण संख्याते पद हुवे जी । गए 5गुण सब जाए || जग० || ६ || जववाई उपांग में जी । कोशिक रूप || वर्णन नगरी यदिदे जी । सांजल नविजन चूप ॥ जग० ॥ 9 ॥ सूरियन पूजा करी जी । जिन प्रतिमा नवरंग ॥ द्रव्य जाव चिहुं जेद सूं जी । राय प्रश्नी चित चंग ॥ ज० ॥ ८ ॥ जीवतो निगम सही जी । विजय देव प्रस्ताव || जीवानिगम तीजो कह्यो जी सुरकृत बहु विध जाव || जग० ॥ ए ॥ पन्ना में जाए ज्यो जी । जीवा जीव विचार ॥ जंबु दीपनी वर्णना जी । नाम थकी गुण धार ॥ ज० ॥ १० ॥ सूरचंद्र विग्रह गती. जी । पन्नत्ती बिहुं जाए || For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए? कप्पिया कप्पवर्मिसिया जी। पुपियाँ" नाम वखाण ।। जग ॥ ११॥ पुष्फ चुलिया जाणीये जी । वन्हि दशा इण नाम ॥ नामश्री अर्थ पिगण ज्यो जी । सांजलता सुख धाम ॥ जग ॥१२॥ ॥ ढाल २ ख्याली लाल अणवट रंग लागो ए देशी॥ ॥ दतणा प्रायश्चित्तना जी। बेद गए ए जाण ॥ वृहत्कटप विवहारमें जी । नाख्यो नगवंत ज्ञान ॥ सुझानी लाल इणसुं नितराचो ॥राचो राचो रे जविक दिखधार । इणसु नित राचो । सुझा० ॥ १३॥ महानिशीथे नाखियो जी। जिन पूजा बिहुँ जेद ॥ श्रावक व्य नावसुं जी। मुनिवर नाव उमेद ॥ सु० ॥ १४ ॥ जीतकटप वलि निसीय ने जी। ओर दशाश्रुतस्कंध ॥ दश पयन्ना जाणिये जी । चौसरण संथार प्रबंध ॥१५॥ सु०॥तंकुल वयाली चंदा विजाया जी। गणिविजा अन्निधान ॥ देव विजया वीर श्रुवो जी । गलाचार निधान ॥ सु० ॥ १६ ॥ ज्योतिषकरंग महापच्चरकाण जी । च्यार सूत्र ने मूल ॥ आवश्यक दशवकालिक जी। उत्तराध्ययन अमूल ॥ सु॥ १७ ॥ च्यारे अनुयोगे करी जी। रचना सूत्रे जाण ॥ तेह न्याय निदेपथी जी। अनुयोग बार प्रधान ॥ सु०॥१॥ प्रव्यानुयोग उ ए व्यनी जी। चर्चा विधि विस्तार ॥ चरण करण अनुयोगमें जी। मुनि श्रावक आचार ॥ सु० ॥ १५ ॥ गणितानुयोग गणना करी जी। पृथ्वी नग विमाण ॥ वर्ग मूल घन मूल थी जी। जाणो चतुर सुजाण ॥ सु० ॥ २० ॥ For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) धर्म कथा अनुयोगमें जी। धर्म कथा दृष्टांत ॥ ए चारों विस्ता. रिया जी। पेंतालीस सिद्धांत ॥ सु ॥ १॥ ॥ढाल ३ सांगानेर विराजे एदेशी ॥ ॥ सुण गौतमवाणी । श्म वीर वदे गुणखाणी रे । नवियां आगमसुं मन लावो ॥ मनकटिपत वात मागावो रे ॥ ज० ॥ आ॥२॥ नंदीसूत्र चिरनंदो । यामें पंचज्ञान ने वंदो रे ॥ ज्ञानना नेद वखाण्या। मति अगवीसे आण्यारे॥ ॥ श्राप ॥ २३ ॥ श्रुत चवदे वीसां नेदे । ए मिथ्यामत ने बेदे रे ॥ ॥ श्रा० ॥ अवधि उ असंख्य प्रकारे । मनपयवय जेद धारे रे ॥ ॥ श्रा० ॥२४॥ केवल एक प्रकासे । ए सब विधि नंदी नासेरे ॥ एतो सहु आगमनी नूद । स्याघाद गंगनी बूंदरे ॥ ॥ श्रा० ॥ २५॥ अंग उपांगनी टीका । कर्त्ताने नमूं निरनीकारे ॥ प्रथम शीलांगा चारी । श्रीअजयदेव बलिहारी रे ॥न ॥ आ० ॥२६॥ मखयगिरी गुरु स्वामी । इत्यादिकने सिर नामी रे ॥ सामान्य विशेष नाख्यो । निश्चय व्यवहार ने साखी रे॥ ज०॥ आप ॥२७ ॥ उत्सर्ग वचन डे के। अपवाद वचनने लेरे ॥ जम्॥इक मनसुं आराधो। मन वंचित सगला। साधोरे॥ज० श्रा० ॥ १८ ॥ ॥ ढाल ४ मंगल कमला कंदए ए देशी ॥ पैंतालीस आगमतणीए। हिव तप विधि सुण ज्यो हित जणीए । दूज पांचम एकादशीए । ज्ञानतिथि तपथी कर्म जायखसीए ॥ २५॥ शक्तिबते उपवासए । शांबिल निवीथी For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) नवासए । एकासण अथवा करेए । इम पैंतालीस दिन श्राचरेए ॥ ३० ॥ जापकरे दो हजारए । देववंदन पूजनसारए । प्रतिक्रमण करे दोन टंकए । आगम सुणे अर्थ निसंकए ॥३१॥ ऊजमणो हित चितकरेए । गुरु नक्ति चित्तसुं श्रादरेए । नक्ति करे साहमीतणीए । जे पढे पढावे ते जणीए ॥ ३२॥ अन्न वस्त्र पुस्तक करे दानए । तिण मनुष्य जनम परिमाणए । ते पामे श्रुतज्ञानए । क्रमथी लहै पद निर्वाणए॥ ३३ ॥ (कलश) शुल नंद शर निधि चंड वरष माघ सुदि पंचमीदिने । वर नयर बीकानेर सुंदर बृहत्खरतर गण घणे । गणधार कीर्ति सुरिंद पाठक रामगणि शहिसारए । श्म करिय स्तवना सुय महोदय सदा जयजय कारए ॥ ३४ ॥ इति श्री पैंतालीस आगम तप वृद्ध स्तवनं ॥ ॥अथ पंच समवाय स्तवनं लिख्यते ।। ॥ सिद्धारथ सुत वंदिये। जगदीपक जिनराज । वस्तु नाव सब जाणिये । जिनागमथी आज ॥१॥ स्यादवादश्री संप जे । सकल वस्तु विख्यात । सप्तजंगी रचना विना । बंध न बेसे बात ॥ २॥ वाद वदे नय जू जुवा । आप आपणे गम । पूरण वस्तु विचारतां । कोई न आवे काम ॥ ३ ॥ अंध प्ररूपे एक गज । ग्रही अवयव एकेक । दृष्टिवंत लहे पूर्ण गज । अवयव मिली अनेक ॥ ॥ संयुत सकल नये करी । जुगत जुगत सुध बोध । धन जिन सासन जग जयो। तिहां नहीं कोई विरोध ॥ ५ ॥ ढाल १ आसाउरी राग ॥ श्रीजिनसासन जग जयकारी । स्यादवाद शुद्ध स्वरूप रे । नय एकांत For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिथ्यात्व निवारण । अकल श्रनंग अनूप रे ॥६॥ श्री॥ कोई कहे ए काल तणे वस । सकल जगत गत होय रे । काले उपजे विणसे काले । अवर न कारन कोय रे ॥ ७ ॥ श्री ॥ कालेगर्न धरे जग वनिता । काले जनमे पूत रे । काले बोले काले चाले । काले काले घर सूत रे ॥ ॥ श्री० ॥ काले दूध थकी दही थाये । काले फल परिपाक रे ॥ विविध पदारथ काल उपाये । अंतकरे बे वाक रे ॥ ए॥ श्री० ॥ जिन चनवीसे बारे चक्कि । वासुदेव बलदेव रे । काले कवलित कोई न दीसे । जसु करता सुरसेव रे ॥ १० ॥ श्री० ॥ उत्सपणि अवसर्पणि श्रारा । उ जू जूय लांत रे । षट् रितु काल विशेष विचारो । जिन्न भिन्न दिनरात रे ॥ ११॥ श्री० ॥ काले वाल विलास मनोहर । यौवन काला केश रे । बुढा पाणे ढय वलि वलि पुर्बल । सक्ति नहीं लव लेस रे ॥१॥श्री॥ ॥ ढाल ॥२॥ गिरुआ गुण श्रीवीरजीए चाल ॥ ॥ तब स्वनाववादि वदेजी । काल किसु करे रंक । वस्तु स्वन्नावे नीपजे जी। विणसे तेमज निस्संक ॥ १३ ॥ विवेकी जुश्रो जुत्रो वस्तु स्वजाव । ते योग जोवनवती जी । वांकणी न जणें बाल । मूंउ नहीं महिला मुखेजी । करतल ऊगे न वाल ॥ १४ ॥ वि० ॥ विणस्वजाव नवि संपजे जी। किमह पदारथ कोय ॥ अंवन लागे नींबमे जी। वाग वसंते जोय ॥ १५॥ वि०॥ मोर पीउ कुण चीतरे जी। कुण करे संध्यारंग । अंग विविध सवि जीवना जी । सुंदर नयन कुंरंग ॥ १६ ॥ वि०॥ कांटा बोर बंबूलना जी । कुणे अणिया For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०१) ला कीध । रूप रंग गुण जू जू श्रा जी । तस फल फूल प्रसिद्ध ॥ १७ ॥ वि०॥ विसहर मस्तके नित वसे जी। मणिहरे विस तत काल । परबत थिर चल वायरो जी । उरध अगननी काल ॥ १७ ॥ वि० ॥ मन तुंब जलमां तरे जी। बूमे काग पाहाण । पंख जाति गयणे फिरे जी। इणपरे सहिज विनाण ॥ १५ ॥ वि० ॥ वाय सूरथी उपसमें जी। हरमे करे विरेच । सीजे नहि कण कोरमु जी । सकल स्वजाव अनेक ॥ २० ॥ वि० ॥ देश विशेषे काठनो जी । नुयमां पाये पाखा ण । संख अस्थिनो नीपजे जी। देव स्वनाव प्रमाण ॥ २१॥ वि० ॥ रवि तातो शशि सीयलो जी। जव्यादिक बहु जाव । बए ऽव्य आप आपणा जी । न तजे कोश् स्वजाव॥२॥वि०॥ ॥ ढाल ३ कपूर हुवे अति ऊजलो रे ए चाल ॥ ॥ काल किसुं करे बापमो रे । वस्तु स्वजाव अकज । जो न होइ नवतव्यताजी ।.तो किमसीके का रे ॥२३॥ प्राणी मकरो मन जंजाल । ए तो जावी जाव निहाल रे ॥ प्रा० ।। जलधितरे जंगल फिरे जी । कोमि यतन करे कोय । अण जावी होवे नहीं जी। जावी होय ते होय रे ॥ २४॥ प्रा॥ आंबे मोर वसंतमा जी।माले कोइलाख । कस्या केई खांखटीजी। केई वा केई साख रे ॥ २५॥ प्रा० ॥ वांउल जिम नव तव्यता जी। जिण जिण दिशे उजाय । परवस मन माणस तणो जी। तृण जिम पूरे धाय रे ॥ २६ ॥ प्रा० ॥ नियत वसे विण चिंतव्यूं जी । श्रावी मिले व्रतकाल । वरसां सोनुं चिंतव्यो जी। नियम करे विसराल रे ॥२७॥ प्रा० ॥ श्राउमो For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०२) चक्रि सुनूम ते जी । समुष पड्यो विकराल । ब्रह्मदत्त चक्री तणा जी । नयन हरे गोवाल रे ॥२७॥ प्रा०॥ कोकूहा कोयल करे जी। किम राखीसरे प्राण । आहेभी शर ताकीयो जी। ऊपर जमें सींचाण रे ॥ प्रा० ॥ श्ए ॥ आहेमी नागेंमस्यो जी। बाण लग्यो सींचाण । कोकूहो कमी गयो जी। जो नियत परमाण रे ॥ ३० ॥ प्रा० ॥ सस्त्र हण्या संग्राममां जी। रान पड्यां जीवंत । मंदिर मांहें मानवी जी। राख्याही न रहंत रे ॥३१॥प्रा ॥ ॥ ढाल ४ राग मारुणी मनो हरणी ए चाल ॥ ॥ काल स्वन्नाव नियत मतिकूमी । करम करे ते थाय । करमें नरय तिरिय नर सुर गति । जीव नवंतरे जाय ॥ ३ ॥ चेनत चेतज्योरे करम न बूटे कोय । करमें राम वस्या वनवासे । सीता पामी श्राल । कर्मे लंकापति रावणर्नु । राज्य श्रयो विसराल ॥३३॥ चेत॥कम कीमी कर्मे कुंजर। कर्मे नर गुणवंत । कम रोग सोग मुख पीमित । जनम जाये विलसंत ॥ ३४ ॥ चेत ॥ कर्मे वरस खगे रिसहेसर । उदक न पामें अन्न । कर्मे जिननें जो गिमारे । खीलारोप्या कन्न ॥३५॥ चेत०॥ कम एक सुखपाल बेसे । सेवक सेवे पाय । एक हय गय चढ्या चतुर नर । एक श्रागल ऊजाय ॥ ३६॥ चेत० ॥ उद्यम मानी अंधतणी परि । जगहीं हा हूतो। कर्म वली तेलहे सकल फल । सुखन्नर सेजे सूतो ॥ ३७॥ चेतः ॥ जंदर एके कीधो उद्यम । करंमीयो करकोले । मांहे घणा दिवसनो नूखो । नागरह्यो मममोले ॥ ३० ॥ चेतः ॥ विवर For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०३) करी मूषकतसु मुखमां । दीये आपणुं देह । मार्ग सहि वन नाग पधाख्या कर्म मर्म जोवो एह ॥ ३५ ॥ चेतः ॥ ॥ ढाल ५ मी तो चढियो घण माण गजे ए चाल ॥ ॥ हिव उद्यम वादी न0ए । ए च्यारे असमत्थतो । सकल पदारथ साधवाए । उद्यम एक समरत्थतो ॥ ४० ॥ उद्यम करतां मानवी ए । स्युं नवि सीजे काजतो । रामें रयणायर तणी ए । लीधो लंका राजतो ॥४१॥ करम नियतिने अनुसर ए । जेहमां सत्व न होय तो । देवल वाघ सुख पंखिया ए । पिउ पैसंता जोय तो ॥४२॥विण उद्यम किम नींकले ए। तिलमाहेश्री तेल तो । उद्यम थी ऊंची चढे ए । जोवो एकेप्रिय बेल तो ॥ ४३ ॥ उद्यम करतां इक समेंए । जेह न सीके काज तो। ते फिर उद्यमश्री हुवे ए । जो नवि आवे वाजतो ॥४४॥ उद्यम करि ऊखां विना ए । नवि रंधाये अन्न तो । आवी न पके कोलीयो ए। मुखमां खेपे जतन्न तो ॥१५॥ कर्म पूत उद्यम पिता ए । उद्यम कीधा कर्म तो । उद्यम थी दूरे टले ए। जो उ कर्मनो मर्म तो ॥ ४६॥ दृढ प्रहारी हत्या कररी ए । कीधा पाप अनंत तो । उद्यम श्री षट् मासमां ए । आप श्रया अरिहंत तो ॥४७॥ टीपे टीपे सरवर नरे ए। काकरे काकरे पालतो । गिरि जेहवा गढ नीपजे ए। उद्यम सक्ति निहाल तो ॥ ४० ॥ उद्यम थी जल बिंबुड ए। करे पाहाणमा गमतो । उद्यमश्री विद्या नणे ए । उद्यम जोमे दामतो ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०४) ॥ ढाल ॥ ६॥ ए छिंडी किहां राखी ए देशी ॥ ॥ ए पांचेही वाद करंता । श्रीजिन चरणे आवे । अमीयरसे जिन वयण सुणीनें। आणंद अंग न माये रे॥५०॥ प्राणी॥ समकित मति मन आयो रे । नय एकांत मताणो रे । ते मिथ्या मत जाणो रे । आंकणी ॥ ए पांचे समुदाय मित्यां विण । कोई कारज न सीके । अंगुली जोगे कवलतणीपर । जे बूके ते रीफे रे ॥ ५१ ॥ प्राणी ॥ आग्रह आणी कोई एकनें एहमां दिये बमाई । पिण सेनमिल सकल रणांगण । जीते सुनट लमाई रे ॥ ५५ ॥ प्रा० ॥ तंतु सनावे पट उपजावे । कालक्रमें वाई । जवतव्यता होय ते नीपजे । नहीं तो विघन घणाई रे ॥ ५३ ॥ प्राणीस० ॥ तंतु वाय उद्यम नोक्तादिक । नाग्य सवल सहकारी । ए पांचे मिल सकल पदारथ । उत्पत् जोवो विचारी रे॥५४॥प्रा॥ नियति बसें हलुकर्म अईने । निगोद थकी नीकलियो । पुण्य मनुज जवादिक पामी । सदगुरुनें जई मिलियो रे ॥ ५५ ॥ प्राण ॥ लव तिथिनो परिपाक श्रयो तब । पंमित वीर्य जलसियो । जव्य स्वनावे शिव गति गामी । शिव पुर जईनें वसियो रे । ॥ प्रा० ॥ वर्षमान जिन इणपरि वीनवे । सासन नायक गावो । संघ सकल सुखदाई जे हथी । स्यादवाद रस पावो रे॥५॥मा० ॥ (कलश)॥श्म धर्म नायक मुगति दायक वीरजिनवर संथुएयो । सय सतर संवत वन्हि लोचन वर्ष हर्ष धरीघणो । श्री विजयदेवसूरींद पट धर विजय प्रनु मुणिंद ए । कीर्ति विजय वाचक सीस इण परि For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विनय क स्तवनं समाप्तम् ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०५ ) द ए ॥ ५० ॥ इति श्रीपंचसमवाय वृद्ध ॥ अथ वैरागनी सजाय ॥ ॥ मोह नगर मारुं सासरं अविचल सदा सुखवासरे। पण जिनवरने टिये त्यां करो लील वीलासरे० मो० ॥ १ ॥ ज्ञानदर्शन यां याविया । करो करो जक्ति अपार रे || शीलशिएगार पहेरो पदमणी उठी उठी जिनसमरो सार रे० मो० ॥२॥ विवेक सोवन टीलुं तपतपे साचो साचो वचन तंबोल रे ॥ संतोष काजल नय जय जीवदया कुंकुम घोलरे० मो० ॥ ३ ॥ समकीत वाट सोहामणी संजमवहेल उजमाल रे ॥ तप जप बलदीया जो तय जावना रास रसाल रे० मो० ॥ ४ ॥ कारमो सासरो परी हरो चेतो चेतो चतुर सुजाण रे । समयसुंदर मुनि एमजणे त्यां वे नवि निर्वान रे, मो ॥ ए ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ थांपर वारिहो जिनजी श्री सिद्धाचल शिखरे शेषन जले जेटिया हो राज रु० ज० जे० शां० पूर्व संचित अशुभ करम समेटिया हो राज थां० सोरव देशमे शोजता हो राज थां० दोय तिरथ मनुहार जव्य जन तार ता हो राज० म० श्रा० ॥ १ ॥ प्रथम शेत्रुंजयगिरि जयो हो राज थां० तीन जुवन शिरताज आज दरशा लह्यो राज० ० यां० ॥ २ ॥ नेमि जिनेसर राजियो हो राज० थां० श्याम सलूषो दीदार रेवत गिरि गाजियो हो राज० ॥ ३ ॥ पांचको मुनि परिवर्या हो राज यां० पुंरुरीक गणधार चैत्री शिव सुखवर्या हो राज० श्रां० For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०६) ॥४॥ आदीश्वर अलवेसरु हो राज थां० पूर्व निवाणु वार रायण पगला उव्या हो राज रा थांग ॥ ५॥ कातिपूनम दश कोमसुं हो राजा थांग शिवसुख पाम्या सार प्राविम्बारि खिबजी हो राज प्रा० ॥६॥श्म अनेक मुनि इहां हो राज थांसिधिबधु जरतार थयागिरि फरशतां हो राजा थां० ॥ ७॥ पूरव पुन्यपसाजले हो राज थां० सफल फली सङ श्रास जात्रा विधिसुं करी हो राज जा० थां० ॥ ७॥ रतनपुरीथी आवीया हो राज० श्रां० आनंदकुंवर शुन्न लाव लाल लिधो घणो हो राज ला० श्रां ॥ ए॥ चतुरा चोमासो रह्या हो राजा श्रां जगवति सुण्यो नले नाव, नपधांन तप आदर्यो हो राज न० श्रां ॥ १० ॥ जनवरंग वधामणां हो राज थां० वरत्या जयजयकार सुगुरु सुपसायथी हो राज सु० श्रां ॥ ११ ॥ खरतर वसी छिपा वसी हो राज यां० साकरउजूम हेम प्रेम वालावसी हो राज प्रे० श्रां ॥ १५ ॥ मोती विमल बसी आवीया हो राज थां० ललकाकोल सिद्ध सिला सिबम फरसीया हो राज सि श्रां ॥ १३ ॥ सुनजगणीसे सित्तरे हो राज थां० पोसदशमी सुविदित आनंद सुख पामीया हो राजा आं यां ॥ १४॥ जव जव चाहूं चाकर हो राज थां० प्रन्नु चरणांरी नित्त कृपाचंड वीनवे हो राज कृत थां० श्री सिघाचल शिखरे षन जले नेटिया हो राज ॥ १५ ॥ इति सिघाचल स्तवन संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०७) . ॥ अथ वीशस्थानक तप वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥श्री सिद्धाचल भेटीये ए देशी॥ ॥ वीश यांनक तप सेवीए । धर करि सुन्न परिणाम लाल रे। तीजे नव सेव्यो थको । बांधे तीर्थकर नाम साखरे ॥ वी० ॥१॥ तप रचना अधकी कही । ज्ञाता अंग मकार लालरे । सुण जो नवि तुमे नावसुं । चितसें करि ए जच्चार साखरे ॥२॥ सुविहित गुरु पासे ग्रहे । वीशथानक तप एह लालरे । निर दूरषण सुन महुरते । जचरी जे ससनेह लालरे ॥ वी० ॥ ३ ॥ अरिहंत १ सिद्ध २ प्रवचन नमुं॥ सूरि । थिवर ५ उवज्काय ६ । लालरे ॥ साधु ७ नाण ७ दसण ए अरु ॥ विनय १० नमुं नलसाय लालरे ॥ वी ॥ ॥ चारित्र ११ बंन्न १२ क्रियापदे १३ ॥ तप १५ गोयम १५ जिण १६ ईस लाल ॥ चारित्र १७ ॥ झानने १७ श्रुत १ए जणी नमुं तीर्थ २० पद वीश लालरे ॥ वी० ॥ ५ वीश दिवशमें एकही । पद गुणनो करमेव लालरे । अथवा दिन वीशांलगे । वीशे पद गुण मेव लासरे ॥ वी० ॥६॥ एक उली षट् माशमें । पूरी जो नवि होय लालरे । फेर नवी करणी पो । पिछली निष्फल जोय लालरे ॥ ७॥ वी० ॥ अध्म उपवाससुं । अथवा देखी शक्ति लालरे । पोसहकर आराधिये । देववांदे निज नक्ति लालरे ॥ वी० ॥॥ संपूरण पद सेवतां पोसहरो नहीं जोग लालरे । तोही सात पदे सही। पोसह करिए संजोग लालरे ॥ वी० ॥ ए ॥ सूरि थिवर पाठक पदे । साधु चारित्र सुजाण लालरे । गौतम For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०८ ) तीर्थ पदे सही । सात थानक मन मान लाखरे ॥ वी० ॥१०॥ पद पद दी करे सदा । दोय दोय जाप हजार लाल रे || पकिमणो दोय टंकही । करिए पूजासार लालरे ॥ वी० ॥ ११ ॥ शक्ति मुजब तप कीजीए । एक ठेली करो वीश लालरे । वीशा वीशी च्यारसे । तप संख्या कही एम । लालरे ॥ वी० ॥ १२ ॥ जिस दिन जो पद तप करे । तिसके गुण चितधार लालरे । कालसग्ग परदक्षणा । मुख जलिये नवकार लालरे ॥ वी० || १३ || जिस पदकी स्तवना सुणे । कीजे जनपद नक्ति, बाबरे । पूजन शुन मन साचवे । दिन दिन वढती शक्ति लालारे ॥ वी० ॥ १४ ॥ मृतक जनम तुकालमें | कबि धायो उपवास ला० सो लेखे नहिं लेखवो | निकेवल तप जास लालरे ॥ वी० ॥ १५ ॥ सावज त्यागपणो करे । सोक न धारे चित्त लालरे । शील आभूषण आदरे । मुखसुं बोले सत्य लालरे ॥ वी० ॥ १६ ॥ जेठ आसाढ वैशाखमें । मिगसर फागुण मांह लालरे । ए षट् मास मांहिनें । व्रत ग्रहि ए वक जाग लालरे || वी० ॥ १७ ॥ तप पूरण हुवां rai | जणो निरधार लालरे । कीजे शक्ति विचारीनें । व विविध प्रकार लालरे ॥ वी० ॥ १८ ॥ वीसवीस गिणती ता । पुस्तक पूवा आदि लालरे । ज्ञान ती पूजा करे । मुंकी जे हव वाद लालरे ॥ वी० ॥ १९ ॥ फलवधी नगरनी श्राविका कधी विधि चित लाय लालरे । जनम सफल करवा जणी हिज मोह उपाय लालरे | वी० ॥ २० ॥ ( कलश | ) इम वीर जिनवरतणी आज्ञा धार चित्त मऊारए । सदु देख For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०ए) श्रागम तणी रचना रची तप विधि सारए । वसु नंद सिद्धि चंड वरसे चैत्र मास सुहंकरू । मुनि केशरी शशि गब खरतर जणी स्तवना मनहरू ॥३१॥इति वीस स्थानक तप वृक्ष स्तवनं॥ ॥ अथ बारमाशी तप वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दान उल्लट धरी दीजीए ए देसी ॥ ॥ त्रिन्नुवन नायक तूं धणी । आदि जिनेसर देवरे । चौसठ इंड करे सदा तुज्क पदपंकज सेवरे ॥ त्रि० ॥१॥ प्रथम लूपाल प्रनु तूं थयो । इण अवसरपणी कालरे । तुम सम अवर न को प्रन्नु । तूं प्रनु दीनदयालरे ॥ त्रि० ॥२॥ प्रथम तीर्थकर तूं सही। केवल ज्ञान दिणंदरे । धर्म प्रज्ञापक प्रश्रम तूं । तुहि हे प्रश्रम जिनंदरे॥त्रि० ॥ ३ ॥ अंतर अरि जे आतमतणा । काल अनादि थिति जेहरे । ते तप शक्तिए तें हण्या । आत्म वीरज गुण गेहरे ॥ त्रि०॥४॥ ताहरी शक्ति कुण कह सके । जेहनो अंत न पाररे । हादश माशनो तप कस्यो । तेह अपा. नक सार रे ॥त्रि ॥ ५ ॥ एह उत्कृष्ट तप वरणव्यो।आगममें जिनराजरे । ते करवू अति आकरूं । तप विना किमसरे काजरे ॥त्रिः ॥६॥ तीनसे साठ उपवास ते। ते इण पंचम कालरे। अवसर आदरे क्रम विना । ते पिण नवि सुविसालरे ॥ त्रि ॥७॥ए तप गुरुमुख आदरे । शास्त्रतणे अनुसार रे । पकिकमणादिक जावधी । शुद्ध क्रिया मन धार रे ॥ त्रि० ॥॥ चित्त समाधि शुन्न नाव थी। धरे ताहरो ध्यानरे । ते नर उत्तम फल लहे । वलि लहे उत्तम ज्ञानरे ॥ त्रि॥ ए॥ For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११०) काल अनादि संसारमें । जन्म मरण तणाःखरे । ते लहे धर्म पाया विना । तप विना किम दुवे सुखरे ॥ त्रिम् ॥ १० ॥ हिव लह्यो नरजव पुन्यथी । वलि लह्यो श्रीजिन धर्मरे । तत्वनी रुचि यश हे मुके । हिव मिव्यो मन तणो नमरे ॥त्रि ॥ ११॥ नव जव एक जिनराजनो । सरण हो ज्यो सुख काररे । कुगुरु कुदेव कुधर्मनो । मैं कियो हिवे परिहारर ॥त्रि ॥ १५ ॥ दर्शन झान चारित्र ए । मोद मारग सुविशालरे । जव लव जे मुझ संपजे । तो फल मंगल माल रे ॥ त्रि॥१३॥ श्रीजिन शाशन तप कह्यो, ते तप सुरतरू कंद रे । धनधन जेनर अदरै, काटे ते कर्मनो फंद रे॥त्रि॥१४॥ (कलश)॥ श्म नाजिनंदन जगत वंदन सकल जन आनंद नो, में श्रूण्यो धन दिन आजनो मुझ मात मरूदेवीनंदनो ॥ संवत सुने त्राकासनिधि शशि नयर श्रीवाखूचरै, श्रीजिनसौलाग्य सूरिंदके सुपसाय विजयविमल वरै ॥ १५ ॥ इति श्रीबार माशी तपस्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीसम्यक्त्वनी सझाय ॥ ॥ सरसर कमल न नीपजे वन वन चंदन न होय ॥ घर घर संपदा न पांमिए जन जन पंमित न होय ॥१॥तिम समकित धर श्रोमला समकीत वीना शीवदूर ॥ जव्यजनो तुमे सांजलो जपे जिनचंसूर ति० ५ ॥ गीरवर गीरवर गज नही पवस पवल न प्राशाद ति० ॥ कुसुम कुसुम परिमल नही फल फल मधुर न स्वाद ति ॥ ३ ॥ पुरुष सर्व सूरा नही सर्व सुलदाणी न नार ॥ मावंत सब मुनि नही सत्यवादी दोय चार For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१११) ति॥४॥ समकित समकित जग नणे लेद न जाणेजि कोइ जिस घट समकीत ऊपजे ते घट वीरला कोइ । ति० ॥५॥ दान सीयल तप नावना सुधु समकित होय मुक्ति सिंहासन बेसणे निश्चय पावेजि सोय। ॥६॥ इति संपूर्ण ॥ ॥अथ अइ मत्ता मुनिनी सझाय ॥ ॥श्रीअश्मत्ता मुनिवर जूके। करणीकी बलिहारीवे । पट वर्षनके संजम लीनो । वीरवचन चित्त धारीवे ॥ श्री० ॥१॥ विजय नृपति श्रीदेवी नंदन । पोलासपुर अवतारी । अंगग्यार पढे गुण आगर । त्रिविध त्रिविध अविकारी वे ॥श्री ॥ ॥ तप गुण रयण संवत्सर आदिक । करके काय उधारी वे । प्रनु आदेशे विपुलाचल गिरि करी अणसण अति जारी वे॥ श्री० ॥३॥ केवल पाय मुक्ति गये मुनिवर । कर्म कलंक निवारी वे । अढारअमताले तिहिं गिरि ऊपर । कीनी थापना सारी वे ॥ श्री ॥ ॥ वाचक अमृतधर्म सुगुरुके। सुपसायें सुविचारी वे । शिष्य दमाकट्याण हरख धर ॥ गुणगावे अति जयकारी वे॥ श्री० ॥ ५ ॥ इति श्री अश् मत्ता मुनिनी सकाय ॥ ॥ अथ करकंडू प्रथम प्रत्येक बुद्धनी सझाय ॥ ॥ चंपानगरी अतिनली । ढुंवारी लाल । दधि वाहन नूपालरे । कुंवारी लाल । पद्मावती कूखें उपनो ॥ ९॥ कर्मे कीधो चंमाखरे ॥ ९० ॥१॥ करकंडूने करं वंदणा ॥ ९० ॥ पहिलो प्रत्येक बुधरे ॥ हुं ॥ गिरवाना गुण गावतां ॥ ९ ॥ समकित थाये शुधरे ॥ ९० ॥२॥ लाधी वांशनी ताकमी ॥ For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११५) हुँ॥थयो कंचन पुर रायरे॥९॥ बापसुं संग्राम मांमीयो ॥९॥ साधवी लीयो समजायरे॥९॥३॥ वृषल रूप देखीकरी ॥९॥ प्रति बोध पास्यो नरेशरे ॥९॥ ॥ उत्तम संजम आदखोहुं॥ देवता दीधो वेषरे ॥ ९० ॥४॥कर्म खपाय मुक्तं गया॥ हुं० ॥ करकंडू रिषि रायरे ॥ ९० ॥ समयसुंदर कहे साधुने ॥ हुं०॥ प्रणम्यां पातिक जायरे ॥ हुं ॥ ५॥ इति प्रथम प्रत्येकबुधनी ॥ अथ भरत चक्रवर्ती भावमुनिनी सझाय ॥ ॥जरतजी मनही में वैरागी । मनहीमें वैरागी । नरतजी मन । सहस बत्तीस मुगट ब राजा । सेवा करे वह लागी। चौसम सहस अंतेवरि जाके । तोही न दुवा अनुरागी। जरतजी मनहीमें वैरागी ॥१॥ लाख चोरासी तुरंगम जाके । बन्नु कोम है पागी । लाख चोराशी गजरथ सोहै। सुरता धरमसुं लागी जरत ॥२॥ च्यार क्रोम मण अन्नज ऊपमे । खूण दश लाख मण लागे । तीनकोम गोकुल नित दूजे । एक कोमी हल सागी ॥ जर० ॥ ३ ॥ सहस बत्तीस देस वफ लागी । लए सरबके त्यागी । उन्नु कोम गांमके अधिपति । तोही न हुवा अनुरागी ॥ जर ॥ ४ ॥ नवनिध रतन चनगमा वाजें । मन चिंता सरब लागी । कनक कीरत मुनिवर वंदत है। दीजो मुगतिमें मांगी ॥ जर ॥ ५॥ इति जरतजीका स्वाध्याय ॥ ॥ अथ शीता सतीनी सझाय ॥ ॥ जल जलती मिलती घणीरे । कालो काल अपाररे । सुजाण शीता । जाणे केसू फूलियारे लाल राता खैर अंगार रे ॥सु०॥१॥धीज करे सीता सती रे लाल सीलतणे परिः For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११३) माणरे ॥ सु०॥ लखमण राम खुशी अयारे लाल । निरखे राणो राणरे ॥ सु० ॥॥ स्नान करी निरमल जलेंरे लाल । पावक पासें आयरे ॥ सु०॥ ऊली जाणे सुरांगनारे लाल । अनुपम रूप दिखायरे ॥ सु० ॥३॥ नर नारी मिलीया घणारे लाल । ऊना करे हाय हायरे ॥ सु० ॥ जस्महुसी इण श्रागमेरे लाल । राम करे अन्यायरे ॥ सु०॥ ॥ राघवविन वां ग्यो दुवेरे लाल । सुपर्ने ही मन कोयरे ॥ सु० ॥ तो मुफ अगनि प्रजालज्योरे लाल । नहीं तो पाणी होयरे ॥सु०॥५॥ श्म कहि पैठी आगमेरे लाल । तुरत श्रयो अगनि नीररे॥सु०॥ जाणे यह जलसु नखोरे लाल । जीले धरम सुधीररे ॥ सुन ॥६॥ देवकुशम वरषा करेरे लाल । एहसती सिरदाररे॥सु०॥ शीता धीजे ऊतरीरे लाल । साख नरे संसाररे ॥ सु० ॥ ७॥ रलियायत सहुको थयारे लाल । सगले श्रया उरंगरे॥सु०॥ लखमण राम खुशी श्रयारे लाल । शीता शील सुरंगरे ॥ सु० ॥ ॥ जगमांहें जस जेहनोरे लाल । अविचल शील कहायरे ॥ सु० ॥ कहे जिन हरष सती तणारे लाल । नित प्रणमी जे पायरे ॥ सु०॥ ए॥ इति शीता सती सकाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ उपदेस सझाय लिख्यते ॥ दमका नांहि नरोसा सांहै । करले चलनेका सामान । तन पिंजरसें निकश जागा। जिनमें पंजी प्राण ॥ दण्॥१॥ लख चौरासी जोनीमें नटक्यो । उपनों गरजा धानें । सवा नवमास वश्यो अंधकूपमें । मनुष्यरूप सनमान ॥ द० ॥॥ उत्तम कुलमें जनम लियोहै । सुखमें खाण अरुपाण । जीम पड्यां बृ०८ लिया खुशी अयार लाल । अविचलित प्रणमी जे पायरे । अथ उपदो करले च For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११४ ) तेरे कोइ न साथी | साथी दान अरु ध्यान ॥ ६० ॥ ३ ॥ शा त्रिशनां विकथा निद्रा कुमता रूप निधान । दिन दिन वधे पापकी संगत। यामें क्रोध अरु मान ॥ ५० ॥ ४ ॥ चलते फिरते सोवत जागत । करत खाण अरु पाए । बिन बिन घटत है तेरे | होत देहकी हाए || द० ॥ ५ ॥ माल मुलक सुख संपत में । होय रह्या गुलतान देखत देखत विनस जायगा । मतकर मान गुमान ॥ ५० ॥ ६ ॥ वा सब यह जगत पसरा । नारी विषकी खान । माया ममता आदिके वैरी । इनसें कहा पहचान || द० ॥ ७ ॥ पांचू चोर मूंसें घर तेरो । इनकी खोटी वाण | आठ वैरी तेरे संग फिरतु है । मोह वा सुलतान || द० ॥ ८ ॥ कोइ रहाणें पावे नहीं जगमें । यह तुं निच्चै जान । अज हुं बांकि समकि कुटलाई । मूरख तर अज्ञान || द० ॥ ए ॥ जाई बंध अरु सजन संबंधी । राखे तेरा मान । अंतसमें कोई काम न खावे । किसपे मान गुमान ॥ ६० ॥ १० ॥ जप तप शील पालो सुन संगत । देह सुपात्रे दान । सुविहित साध चरण चितस्यावो | प्रभु जज तज अभिमान ॥ ० ॥ ११ ॥ इति उपदेस सजाय संपूर्णम् ॥ जं जं विदिणा लिहि । तं तं परिणमई सयक्ष लोयस्स । इह जाये विणु धीरा । विदुरेवि न कायरा हुंति ॥ १ ॥ ॥ अथ बाहूबलजीनी सझाय लिख्यते ॥ ईडर आंबा आंबलीरे ॥ ए चाल बाहुबलि चारित्र लीयोरे । साचो धरि वैराग । जरते सर इम वीनवेरे । वारवार पाय लाग । हरष जर मुकसुं बोल For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योरे । थाने बाबाजीरी आण । थाने मजदेवजीरी आण । थेतो मकरो खेंचा ताण । सेतो माहरे जीवन प्राण ॥ हरष ॥ मुफसुबो । आंकमी ॥१॥ इंतो नाई ताहरोरे । जेमें कीधो दोस । तो पिण खमज्यो नाईझारे । गरुवा नकरे रोस । हा ॥२॥ श्रावो वांह देई मिलारे । जोवो आंख जघाम । बोलो मीग बोलमारे । पूरो मननो लाम ॥ ह० ॥३॥ खीलो ना तोमनेंरे । जिण कुल जाई वेढ । नायो आयुध सालमेरे । ज्यु बांजण घर ढेढ ॥हा॥४॥जानीना उलंजमारे । किम संलला ये कान । जातां पांव वहे नहीं रे । तुमने मुंकी रान ॥ ह ॥ ५॥ तूं जीत्यो हूं हारीयोरे । देव जरे ने साख । तुऊ सरिखो जगको नहींरें। मुफ सरिखा रे लाख ॥हा॥६॥ माथे सूरज आवीयोरे । पसीनो सारो गात । बैसो नोजन जीमियरे । खारक दाख निवात ॥ ह ॥७॥ निन्नां) एक ण मतेरे । मुझने लोजी जाण । ते सहू मुझने परिहस्योरे । ज्युं वरसाले वाण ॥ ह० ॥ ॥ तूं माहरे जीवन आतमारे । तुंहीज माहरे बांह । दिससूनी लाई विनारे । आवोनें घर जांह ॥ ह० ॥ ए॥ बोल घणाई बोलियारे । जरतेसर महाराज । हाथीना दांत जे नीकट्यारे । ते पाग नवी जाय ॥ हप ॥१०॥ अनिमानी सिर सेहरोरे । बाहूबली रिषिराय। सीधा करम खपायनेंरे । विमलकीरति गुण गाय ॥ ह० ॥११॥ इति श्रीवाहूबजिजी सिकाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ सचित्त अचित्त नी सझाय ॥ ॥ ढाल चौपईनी ॥ प्रवचन अमरी समरी सदा । गुरुपद For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११६) पंकज प्रणमी मुदा । वस्तु तणा कहूं काल प्रमाण । सचित्त अचित्तविधि लहै जिममाण ॥ १॥ बिहुँ ऋतु मिली चौमासा मांन । पटऋतु मिलीने वरिस प्रमाण । वर्षा शीत नष्ण त्रिण काल । त्रिहूं चौमासें वरस रसाल ॥२॥ श्रावण नाव आसू मास । काती श्म वरसाला वास । मागसिर पोस माहने फाग । ए च्यारे सीयाला लाग ॥३॥ चैत्र वैशाख, ज्येष्ट आसाढ । जष्णकाल ए च्यार अगाढ । वर्षा शरद शिशिर हेमंत । वसंत ग्रीष्म पटझतु श्म तंत ॥४॥ रांध्युं विदल रहै चन्याम । चंदन आठ पुहुर अलिराम । प्रहर सोल दधि कांजी नगन। पठे रहे तो जीव निवास ॥ ५॥ पापम लोश्या वटक प्रमाण । च्यार पदुर तिम पोलीमांन । पनर दिवस वर्षों पकवान । त्रीस दिवस सीयाला मांन ॥६॥ वीस दिवस उन्हाले रहे । पत्रे अन्नद थाये जिन कहै । मातर प्रमुख नीवी पकवान । चलित रसे तस काल प्रमाण ॥ ॥ धांन धोवण एक प्रहर प्रमाण । त्रिफला जल उ घमीन मांन ॥ ७॥ त्रिणवारे जकलिलं जेह । सुध उष्ण जल कहिये तेह । प्रहर तीन चज पंच प्रमाण । वर्षों शीत उन्हाले जाण ॥ ए॥ श्रावण जावो दिन पंच । मिश्रलोट अण चालित संच । मिगसर पोसे त्रिण दिन जांण । आसूकाती चलदिनमांन ।। १०॥ माह फागुणे कह्यो पण याम । चैत्र वैशाख चन प्रहर प्रमाण । जेठ आसाढ प्रहर त्रिण जोय । तिण उपरांत सञ्चित्तते होय ॥ ११॥ गोहूं शालि षम धांन कपास । जव त्रिण वरसे अचित्त होय खास । विदल सर्व तिल तूंवरदाल ।पांच वरसे होश् अचित्त विशाल ॥१२॥ For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११७) अलसी कोषव ागर्ने ज्वार । साते वरसें अचित्त विचार । शीत ताप वर्षादिक जोय । सचित्त जोनि अचित्त ते होय ॥ १३॥ हरमे पीपर मिरच विदाम। खारक प्राख एला अजिराम । जोयण शत जल वटमां वहे । साठि जोयण श्रलमांहें रहे ॥ १५ ॥ सचित्त वस्तु प्रवहणनी जेह । थाई अचित्त प्रवचन कहै एह । धूम अगनि परीया पणे करी । अचित्त योनि तस थाये खरी ॥ १५ ॥ बार पहूर रहे ऊगली राब । सोल पहुर राईतां अजाब । कमाह विगय परि सेक्यो धांन । पहिर चौवीस गोमूत्रनुं मांन ॥१६॥ अति खारं घृत कालातिल । पलटाई वर्णादिक रील । काचो दूध रहे बहुवार । एह अन्नद कहै मुनिसार ॥ १७ ॥ ढुंढणीयादिक विदलनी दाल । सेक्या धांन परें तस काल । च्यार पडुर सीरो लापसी । विदख परते प्रवचनवसी ॥ १७ ॥ प्रथम दिवस प्रारंजी गिएयो । काल प्रमाण सवि केहनोलण्यो चलित रस जेहनो जिहां थाय । तिहां ते वस्तु अनद कहिवाय ॥१५॥ धवलो सेंधव कह्यो अचित्त । श्राप विधे अख्यरां प्रतीत । ए कालादिक उहरां जे थाय । तेह अचित्त थापना न थाय ॥ २० ॥ गीतारयनें वयणे जोय । आचीरण अना चीरण होय आई धांन अंकुर नीकले । तब ते वस्तु अजदमां जिले ॥१॥ गेरू मणसिल लवण हरियाल । आवे जलवट मांहि रसाल । तेह अचित्त हो। प्रवचन साखि । पिण लेवानी नहीं तसु नाखि ॥२२॥ श्म बोस्यो जब देश विचार । विस्तार प्रवचनसारोधार । धीर विमल पंमित सुपसाय कवि। For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११८ ) नयविमल कहे सजाय ॥ २३ ॥ इति सचित्त चित्त वस्तु स्वरूप सजाय ॥ I ॥ अथ काउसरगना १९ दोसनी सझाय ॥ सकल देव समरी अरिहंत प्रणमी सदगुरु गुणे महंत । उगणीस दोष का सग्गतणा । बोलुं श्रुत अनुसारे सुया ॥ १ ॥ घोटक दोष को वलि एह । वांको पग राखे वलि जेह । लत्ता दोष बीजो हवे सुखो कील हलावे जे ति घणो ॥ २ ॥ उठींगण लेई जे रहे । थंज दोष ते तीजो कहै । माल दोष चोथो को एह । मस्तक टकावी रहे जेह ॥ ३ ॥ पग अंगूठा मेली रहे । उद्धि दोष ते पंचम कहे । बेकं पग जेला करे जेह । नउल दोष बो को एह ॥ ४ ॥ गुह्य गमि राखे निज हाथ | शबरी दोष कह्यो जगनाथ । मुख चलना करे तिघणी । खलित दोष अहम ते सुखी ॥ ५ ॥ घूघट ताणीनें जे रहे । बहु दोष ते नवमो लहे लक थम तूं पहिरे पहिरं । दशमे दोष लंबोत्तर जणुं ॥ ६ ॥ हृदय स्थल बादित रहे ते या दोष इग्यारमो लहे । वस्त्रांसुं ढांक्यो सवि देह । संयति दोष बारसमो एह ॥ ७ ॥ नांमण चालो करे • ति घणुं । मुह दोस तेरसमो जणुं । अंगुली हलावे संख्याकाज । चवदमो दोष कह्यो जिन राज ॥ ८ ॥ नेत्र तथा चाला जे करे । वायस दोष पनरमो धरे । पहिया वस्त्र संकोमी रहे । कपित्थ दोष सोलसमो लहे ॥ ए ॥ मस्तक धूणावे अति घणुं । ते सिरकंप सतरमो जणुं । महिरानी परि जे वरुवमे । वारुणी दोष वरमो चके ॥ १० ॥ मूक दोष कह्यो उगणीसमो । For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११ ) तेह करी काउसम्म मत गमो । त्रिए दोष ए माहिला दले । सोल दोष साधवीनें मिले ॥ ११ ॥ संबुत्तर यानें संयती । दोष एह बोया जगपती । बहू दोष चौथो जब मिले । च्यार दोष भाविकानें टले ॥ १२ ॥ काऊसग्गथी समता सुख थाय । कठिन कर्मनी कोकि पुजाय । काज सग्ग करतां सवि सुख होई । कासग सम तप न कह्यो कोय ॥ १३ ॥ दोष रहित काटसग्ग कीजीये। जिम सहिजे शिवफल लीजीये | पंकित धीर विमलनो सीस । कवि नय विमल कहै निशिदीश ॥ १४ ॥ इति का सरगना १९ दोषनी सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ क्रोधादि चतुष्क सझाय ॥ ॥ तत्र प्रथम क्रोधनी सझाय ॥ ककुवारे फल ने क्रोधना । ग्यानी एम बोले । रीसतणो रस जाणिये । दलाल तोले ॥ क० ॥ १ ॥ क्रोधें कोकि पूरब तप । संजम फल जाय । क्रोध सहित तप जे करे। ते तो लेखे न थाय ॥ २ ॥ क० ॥ साधु घणो तपियो तो । धरतो मन वैराग | शिष्यना क्रोध थकी थयो । चंक को सियो नाग ॥ क० ॥ ३ ॥ श्रगि कठे जे घर थकी । ते पहलुं घरवालें । जलनो जोग जो नवि मिले। तो पासे नो पर जालें ॥ क० ॥ ४ ॥ क्रोध तणी गति एहवी | कहे केवल नांणी । हांणि करे जे हितनी । जालव जो इम जाली ॥ क० ॥ ए ॥ उदय रतन कहै क्रोधनें काढजो गलें साही । काया करजो निरमली । उपशम रस नाही ॥ क० ॥ ६ ॥ इति क्रोधनी सजाय संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) ॥अथ मान की सझाय ॥ रे जीव मान न कीजिये । माने विनय न आवेरे । विनय विना विद्या नहीं । तो किम समकित पावरे ॥ १॥ रे ॥ समकित विन चारित्र नहीं । चारित्र विण नहीं मुक्तिरे । मुक्तिना सुख ने सास्वता।ते किम लहीये जुक्तिरे ॥२॥ रे॥ विनय वमो संसारमा । जगमांहें अधिकारीरे । मानें गुण जाये गली प्राणी जो ज्यो विचारी रे ॥३॥मान कियो जो रावणे। ते तोरामें माखोरे । पुरयोधन गरबे करी। अंते सब ते हास्योरे॥रे ॥४॥ सूका लाकमा सारीखो। मुखदाई ए खोटोरे ।उदय रतन कहै माननें । देज्यो देसवटोरे ॥ रे०॥५॥ इति मानकी सहाय ॥अथ मायाकी सझाय ॥ समकितनो मूल जाणीये जी । सत्य वचन साख्यात । साचामें समकित वसें जी। मायामां मिथ्यात रे । प्रांणी मकरिस माया लगार ॥१॥ मुख मीठगे कूठे मनेंजी । कूम कपटनो कोट । जीनेंतो जी जी करेजी । चितमां ताके चोटरे ॥ प्रांग ॥२॥ आप गरजें आघो पके जी । पिण न धरे विसवास । मनसुं राखे आंतरेजी । ए मायानो पासरे ॥ प्रां० ॥ ३ ॥ जेसुं बांधी प्रीतमी जी । तेसुं रहे प्रतिकूल । मयल न में मन तणो जी। ए मायानो मूलरे ॥ प्रांग ॥४॥ तप कीधो माया करी जी। मित्रसुं राख्योरे जेद । मविजिनेसर जाणजो जी। तो पाम्या स्त्री वेदरे ॥ प्रां० ॥ ५॥ उदय रतन कहै सांजलो जी। मेलो मायानी वुध। मुगति पुरी जावा तणो जी। ए मारग शुघरे । ॥ प्रां० ॥६॥ इति मायाकी सकाय ॥ For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) ॥ अथ लोभकी सझाय॥ तुमे लक्षण जो ज्यो लोजनारे । लोने जन पामे खोल नारे । लोने माह्या मन मोहला करेरे । लोने घाट पंथे संचरेरे ॥ तु० ॥१॥ तजे लोन तेहना ले लामणारे । बलि पाय नमीने करूं खामणारे । लोने मरजादा न रहे केद्दनीरे। तुमे संगत मेलो तेहनीरे ॥ तु॥२॥ लोजे घर मेली रणमां मरेरे । लोने उंचते नीचं आचरेरे । खोलें पाप जणी पगला नरेरे । लोले अकारज करतां न ओसरेरे ॥ तु० ॥३॥ लोने मनमुं न रहें निरमलुंरे । लोनें सगपण नासें वेगलुरे । लोने उरहो प्रेतनि पावतुं रे लोले धन मेले बहु एगई रे तु॥४॥ खोले पुत्र प्रतें पिता हणेरे । लोनें हत्या पातिक नवि गणेरे । ते तो दाम तणे लोनें करीरे । ऊपर मणिधर थायें ते मरीरे ॥तु० ॥ ५ ॥ जोतां लोनने श्रोन दोसे नहीरे । एहवो सूत्र सिद्धांते कडं सहीरे । लोनें चक्री संजूम नामें जुवोरे । ते तो समुज माहें बुझी मुंवोरे ॥ तु०॥६॥म जाणीनें लोजनें बंम ज्योरे । एक धर्मसु ममता मम ज्योरे । कवि उदय रतन नाषे मुदारे । वंलोन तजे तेहनें सदारे॥॥इति लोजकी सकाय संपूर्णम् ॥ ॥श्री शांतिनाथजी भगवाननुं स्तवन ॥ सेवा शांति जीणंदकी । कीजे अति सारीरे । अहो कीजे सारीरेलो। पद पंकज पूजे सदा । जेहना नर नारीरलो ॥ अहो ॥१॥ एकवार सुरलोकमें । मेघरथ राजारीरेलो॥ अहो ॥ इंजे कीधी प्रसंसा । मोटो उपगारीरेलो ॥ अहोग ॥॥ जीण वेला सुर बोलीयो। मिथ्या मति धारीरेखो। For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५५) अहो॥धान तणो ए कीमलो । मल मूत्र मारी रेलो॥अहो ॥३॥ तीण मांहे कहो कयां थकी। एहवी श्क तारीरेखो ॥ अहो ॥ उत्तर वैक्रीय रूपें करी। चाट्यो तिण वारीरेलो ॥ अहो ॥४॥ कीधा दोय पंखी तणा । उपबुद्धि विचारीरेलो ॥ अहो ॥ ध्यान धरी बेगं तिहां । नरपति निरधारीरेलो ॥ अहो ॥ ५॥ राख राख करतो पड्यो । पारेवो तिण वारीरेलो॥ अहो॥ राजा रूमी रीतसुं । लीधो बुचकारीरेलो ॥ अहो० ॥६॥ जय मत कररे बापमा । कोय न शके मारीरेलो ॥ अहो ॥ पापी पुंठे श्रावीयो । हुलवो हीलकारीरेलो ॥ अहो ॥७॥ जद दीजे नृप माहरो। तिम खाई मारीरेलो ॥ अहो ॥ नोजन आपुं तो जणी। मीगं सुखमारीरेलो ॥ अहो ॥ ७॥ मांस विना खालं नहि । नृप जात हमारीरेलो ॥ अहो ॥जद नहि द्यो माहरो । तो हत्या हमारीरेलो ॥ अहो० ॥ ए॥ दया पिण तुजने होसी । हत्या परिवारीरेलो॥ अहो॥राजा श्रापे तेहने । निज अंग विदारीरेखो ॥ अहो ॥ १० ॥ तो पण नाण्यो चित्तमे । राय दुःख वीगारीरेलो ॥ अहो ॥ तिण वेला सुर बोलीयो । सुरवाणी सारीरेलो ॥ अहो ॥११॥ तिण वेला सुर बोलीयो । ढुं हुं आशा सारीरेलो ॥ अहो० ॥ इंज वखाण्यो तोहवो । जोहवो उपगारीरेलो ॥ अहो ॥ १२ ॥ जीवदया प्रतिपालने । निज काज सुधारीरेलो ॥ अहो ॥ राजा पहोतो मंदिरे । निज पोषो पारिरेलो ॥ अहो ॥ १३ ॥ तेरमे लव लाधी जली । दोय पदवी सारीरेलो ॥ अहो॥ तीर्थकर थया सोलमा। For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) पंचम चक्रधारीलो ॥ श्रहो ||१४|| शांति जी ऐसर वीनति । चित्त में श्रवधारी रेलो || अहो० ॥ जावसागर कहे श्रायजो । संघ मंगल कारी रेखो ॥ श्रहो ० ॥ १५ ॥ ॥ श्री नारकीनी छ ढाल ॥ ॥ दोहा ॥ त्रिसला नंदन प्रणमीये । शासन नायक वीर । सिद्धारथ नृप कुलतीलो । बलवंत साहसधीर ॥ १ ॥ चरण अंगुठे चांपीयो । जेणे मेरु गीरींद । सवी सुर संशय ऊपनो । जाया त्रिभुवन चंद || २ || बाल लीला सुख जोगवी । पढे लीये संयम जार। केवल ज्ञान पामी करी । करे नवीने उपकार || ३ || समवसरण बेसी करी । गौतम गल वीर । नरक त दुःख वर्णवे। सांजले वीर वजीर ॥ ४ ॥ विविध प्रकारनी वेदना | सहतां नारकी जीव । सांजलतां हीयो थर थरे, जाषे शासन वीर ॥ ५ ॥ || प्रथम ढाल || देशी त्रीपदीनी ॥ पहेली नरके जारे, सागर एकनुं । आयु जाषे वीरजी ए ॥१॥ बीजी नरके जोयरे । सागर त्रानुं । श्रान एटलुं जालीये ए ॥ २ ॥ सागरसातनु आयुरे । त्रीजी ए कहां । केवली वचन ते सर्द ए ॥ ३ ॥ चोथी दस सागर जागरे । गुण वंत सांजलो । ए वचन श्रीवीरना ए ॥ ४ ॥ गणधर जाषेतासरे । पांचमी नरकनो । सत्तर सागर उपो ए ॥ ए ॥ बही नरके गुणवं तरे । सागर बाबीशनो । इसी परे गुरु मुख सांजस्यो ए ॥ ६ ॥ सातमीये जाणो संतरे । सागर तेतीसनो | आयु वीरजी प्ररुपता ए ॥ ७ ॥ ए साते नरके युरे । जाणो शास्त्रश्री । नरक For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२४ ) वेदना अति आकरी ए ॥ ८ ॥ कहे मुक्ति वीर जीणंदरे । कीम समे वेदना | धर्मे मुक्ति जस लदे || | || I I ॥ दोहा ॥ रत्नप्रना पहिली कहि । सकरप्रजा तुं जाए । बालुक प्रजा त्रीजी सुखी । सांजखो चतुर सुजाण ॥ १ ॥ चोथी पंक प्रजा सुणो । धुम प्रजा पांचमी जेह । तम प्रजा बही कही । तमः तमा सातमी तेह ॥ २ ॥ ॥ द्वितीय ढाल ॥ मनरुं मारुं मोकलुं मारा वाला जीरे । काल अनंत वेदना गुणवंता जीरे । घणुं शुं जाएं एह, सुगुण नर सांजल गुणवंता जीरे। शोर बकोर नारकी करे ॥ गु० ॥ केवली जाणे तेह || सु० गु० ॥ १ ॥ पंदर भेदना देवता ॥ गु० ॥ वेदना उपजावे प्रचंम ॥ सु० गु० ॥ खंको खंग ते प्राणना ॥ गु० ॥ ऊपर मुजर दंग || सु० गु० ॥ २ ॥ एहवा शब्द कुण सांजले ॥ गु० ॥ एक सांजले श्रीजीनराज ॥ सु० गु० ॥ पाप करोने प्राणीयो ॥ गु० ॥ जइ बेसे नारकी पाज | सु० गु० ॥ ३ ॥ कर्कश जाषा बोलता | गु० ॥ पर्ण कुवर्ण तुं जाण ॥ सु० गु० ॥ मांहो मांहे सांजले ॥ गु० ॥ सहे जली दुःखनी खाए || सु० गु० ॥ ४ ॥ शीतल जोनीये उपजे ॥ गु० ॥ रहेतां तेज गम ॥ ० ॥ ० ॥ रुधिर मांस चामकां ॥ गु० ॥ बे तस घोर धार ॥ सु० गु० ॥ ५ ॥ कीच जक्षणकी करे ॥ गु० ॥ घ नरकमां दुःख || सु० गु० ॥ मननी वात मनमां रहे || गु० ॥ परवश नारकी न सुख ॥ सु० गु० ॥ ६ ॥ दीवस नवि सूजे तेहने || गु० ॥ परमाधामी उजा जेह ॥ सु० गु० ॥ नासी ने जाय कहां ॥ गु० ॥ एवो थानक नहि जेह ॥ सु० गु० For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२५ ) ॥ ७ ॥ सांजली हैको कमकमे ॥ गु० ॥ एहवा नारकी दुःख ॥ सु० गु० ॥ जीवजंत मारे प्राणीयो ॥ गु० ॥ किमलहे मुक्ति सुख || सु० गु० ॥ ८ ॥ ॥ दोहा ॥ दस प्रकारनी वेदना । सहेता नारकी जीव । अन्यो अन्ये जुजतां । सहतां दुःख सदैव ॥ १ ॥ अशुभ बंधन शुन गति । शुन संस्थान जे हुं । नेदन छेदन अशुभ वर्ण । सहेतां दुःख प्रचंक ॥ २ ॥ अशुभ गंधने जावो । अशु रस वली जेद । माछो फरस वली कह्यो । मागे गुरुलघु तेह होय || ३ || मागे शब्द वली लह्यो । वेद न दसे प्रकार । त्रैलोक्य दीपकथी जाणजो । जाषी सूत्र मक्कार ॥ ४ ॥ . ॥ तृतीय ढाल || मनडो अडेर रह्यो अभिमाने ॥ साते नरकमां जाणे वेदना । श्रीवीर वखाणेरे मारा नरक तणारे । दुःख सुजो ए की । नहि सूरज नहि चंद्र | नहि पाणी पवन प्रचंकारे ॥ मारा० ॥ १ ॥ माहा घोर अंधकार । थानक पण नहि साररे ॥ मारा || बिहामणी भूमि जाणो । तस फरस खंमा धाररे ॥ मारा० ॥ २ ॥ साते नरके जाण । तस वेदना कहि नवि जावेरे ॥ मारा० ॥ माहा क्रोध धरीने तिहां । हथी चार धरीने वेरे ॥ मारा० ॥ ३ ॥ कातरणी जेसी करे देह । एम चरण करतां तेहरे ॥ मारा० ॥ माहा रौरव शब्दने जाणो । केवली जाणे तेहरे ॥ मारा० ॥ ४ ॥ परमाधामी पचावेरे । वली ऊंधे मस्तके अंगेरे ॥ मारा० ॥ देहने क्षणमां मरोगे । वली तेहनी पूंछे दोमेरे ॥ मारा० ॥ ५ ॥ वैतरणी नदीमां लई आवे । वली पाणी मां जबकांवेरे ॥ 1 For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५६) मारा ॥ ए कर्मतणां विपाक मांहे मांहे मली जावेरे ॥ मारा ॥६॥ करे कुहामा राखे।वली वचन बिहामना नाखि ॥मारा॥ वेदन नेदन करतां । वली पापनी राशे वधनारे ॥ मारा ॥७॥ समलीने रूपे आवे । वली वायस रूप सुहावरे ॥ मारा० ॥ वाघसीहना रूप जे करतां । थइ चीता रूपे तामुकेरे ॥ मारा ॥७॥श्म अनेक हिंसारी जीव । इम परमाधामी रुपरे ॥ मारा ॥ वीर नाषे पन्नरे नेदे । करे मुक्ति धर्मथी सुख वेदेरे ॥ मारा ॥ए॥ ॥ दोहा ॥ श्म दस प्रकारनी वेदना । कहि नरके जीनराय । शीत उषणनी वेदना। केवलीसे कहि न जाय ॥१॥नुख तृषातसें वेदना । परज वेदना अत्यंत । परवशता ज्वरता पणुं । दाघज्वर पामे अनंत ॥२॥ जय शोक तेहने घणो। म ते नारकी जाणवीर जिन इणी परे नासता। सुणतां गौयम स्वाम ॥३॥ ॥ ढाल चोथी ।। सुण साहेबजी परमातम पुजानु फल मुज आपो-एदेशी॥ हो सुण गौतमजी । वीर पयंपे नरक तणां मुःख निवारता परनारी तणी जे संग करता । वली पाप थकी प्राणी नवी मरता । जम रायजी संका नवि धरता सुण श्रोताजी । नरक तणां पुःख सांजलतां हर्शे कमकमे ॥१॥गुण वंताजी। वीरतणी वाणी सांजलतां धर्म खजानो ते नारे । ए बांकणी खोहतणी पुतली तपावे ने । अति अग्निमय करावे । तस आलिंगन तेह करावे रे सुण गु॥२॥ पांचसे जोजन ऊंचा उगले । तेहने ते जूंथ पगमे । फरी तेहनी देह For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाले ॥ बने पावे मांखार मा (१७) ते बाले वे ॥ सुण गु० ॥३॥ श्वान ते रूपे करमे ने । काली नारकी अंगने मरमे ये । वली तेहनी पूरे दो ॥ सुण गु० ॥४॥ मृगला जेम पासमां पामे । कलीरी करवतें करी को बे । श्म उंचा पकमी नमाझे जे ॥ सुण गुण ॥ ५॥ वली तस शूली आरोपे । वली कान नाक तस कापे ने । वीरु श्रा तस तेहना विपाके जे ॥ सुण गु० ॥ ६॥ वली ताता तेलमां घाले । नासममां तेहने वाले ने । वली खाल उतारी जाले ने ॥ सुण गुण ॥ ७ ॥ अनलिष्ट आहार करावे । श्म नारकी मुःखने पावे ने । बहु शब्द करतां काल गुमावे ॥ सुण गु० ॥ ॥ वली तनुमां खार मीलावे ने । परमा धामी मुख देखावे । प्रनु वीरवाणी शीतल थावे ॥ सुण गु० ॥ ए॥ ॥ दोहा । नुमि ने तीहां आकरी । वन जे शीतल जाण । आवी वेसे तरु गंहमी । पमतां नाजे प्राण ॥१॥ वीरुया विषय विलास तस । सुख श्रोमो दुःख बहु जाण । नरक तणां मुःख सांजलो । नाषे वीर वर्धमान ॥२॥ ॥ ढाल पांचमी मने संभव जीनसुं प्रीत ए देशी॥ कुंजीमां करता पाक । देह ते जाणोरे । तेल घाणीमां तेह घाले जम राणोरे ॥१॥ महेर न आवे तास । गल ग्रही जावेरे । रस काढे तस तंतुथी । वली नस बालेरे ॥२॥ नावा जाये तेह । मन जय ब्रांतरे । परमाधामी तेह । काले कांतरे ॥३॥ सूली परोवे जेह दातमां से वेरे । वली मारी करे शत खंम, घणु मुख देखवेरे ॥४॥ फीरी फीरी लागे पाय । श्रावे ॥ For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) वेदना सहेतारे । एम काल अनंतो त्याहा। सहे मुख मरतारे ॥५॥ हवे तो सही न जाय । नारकी मुःखमारे । कोइ न पूचे सार । नारकी सुखमारे ॥ ६ ॥ नहि शरणुं तीहां को। असरण मरतारे । परमा धामी जेह, बहु मुःख देतारे ॥७॥ सांजली परहरे देह । श्राये प्राणीरे । कहे मुक्ति महाराज कहे प्रनु नाणीरे ॥७॥ ॥दोहा॥ पाप करम कीधा घणा । बहु जीव संहार।पीमा न जाणे परतण। । जीवमो वमो गमार ॥१॥ अलीक वचन मुख जापीआ । पारका चोर्या माल । सेवी परनारी निःशंक पणे । आरंज कीधा अपार ॥२॥ बहु परिग्रह मेलव्यो । निशी जोजन अंधार । बहु जीव विणास्या तिहां कणे । अनद अथाणुं नहि पार ॥३॥ कोलमा गसने मेलवी । जम्यो आहार निःशंक । लाल जोगे बहु जीवमा । उपजे तेन दीसंत ॥४॥ अलगी थाए नार तस । आजम जेट निवार । गणांगे प्रगट पाठ ए । जाणो तम निरधार ॥ ५॥ ॥ढाल च्छट्टी विसारिमी ए देशी॥ मात पिता गुरु उलव्या गुण रागीरे । किधा क्रोध अपार । सुणो तुमे रागीरे । मान माया लोनयी ॥ गुण ॥ बुधि नहि रही कां ॥ सुण ॥ १॥ नरकतणां जे बारणां ॥ गुण ॥ पापे उघाड्या तेह ॥ सुणा ॥श्म परमाधामीनी वेदना ॥ गु०॥ शुली कटी वन ॥ सु॥२॥ उदीरी उदीरी देह ने ॥ गु०॥ पठे पगमे तेह ॥ सु०॥ तरस वसे करी तेह ने ॥ गुण ॥ उकाली कथीर ते पाय॥सु०॥३॥ मुखमां नाखे तेहने ॥गु०॥ For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२ए) दन वली ताम ॥ सु० ॥ बहु कीमा पमे देहमां ॥ गु० ॥ वली आव्या करे शत खंम, सु० ॥४॥ निशी लोजन तस बारj ॥ गु० ॥ जाणे पाप अखंग, ॥ सु० ॥ उनोने वली आकरो॥ ॥ गुण ॥ नीर आणे प्रचंग ॥ सुण ॥ ५॥ ते घाले निज आंखमां । श्रवणमा नरे कथीर ॥ सु०॥ महा काल बीहामता ॥ गु० ॥ महा बीनत्स चीत्तधार ॥ सु० ॥६॥ दीन दयामणां जाणवां ॥ गु० ॥ नरकना जीव अतीव, ॥ सु॥ वीरजीणंद श्म देशना॥गु०॥सुणोते मुक्ति सदीव ॥सु०॥७॥ ॥दोहा॥नरकतणां मुःख सांजली। कंपे तास शरीर । तव गोयम ते श्म कहे । सांजल गुण गंजीर ॥ १॥ प्रनु चरणे शीर नामीने । पूजे गौतम स्वामि । अंरजामी माहरो । सरस कहो सिरनामी ॥२॥ए वेदना में बहु सही । वसीयो काल अनंत । कोक पुन्य कबोलथी । मुजमीढ्या जगवंत ॥ ३ ॥ पंच माहाव्रत जे धरे । पाले पंचाचार । पांच सुमति जे श्रादरे । ते लेशे जवनो पार ॥४॥ ॥ ढाल ७ मी॥ आसणारा योगी ऐ देशी॥ इणी परे बहु वेदना अहि श्रासी। हवे आव्यो चरणेनिवासीरे । वीरजी गुणवंता । वसतां नरक मांहें जीनराज । गयो काल अनंत माहाराजरे ॥ वी० ॥१॥ ज्ञानी विना कुण जाणे प्राणी । कहेतां नावे पाररे । सुघसंयम रागी। दशे दृष्टांते दोहीलो लाख्यो नरलव पुन्य संयोगेरे। वी० ॥२॥ शुभ संयमनो खप करशे । टाली विषय विकाररे ॥सु॥ पंचे इजियने वश करजो । तो शिवरमणीने वरशोरे ॥ सु० ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३० ) निषा विकथा दूर निवारो । श्रीजीन धर्मचित्त धारोरे ॥ सु० ॥ समकितरत्न हियेमे धारोरे । नरक तणां दुःख वारोरे ॥ सु० ॥ ४ ॥ जांजे सर्वे मिथ्या धर्म । एवो निजशासन धर्म ॥ सु० ॥ श्रीचींतामणी चरण पसाये । संकट विकट ते जायरे ॥ सु० तुज पुर सहेर गुरुनी महारे ॥ कस्यो चोमास उल्लासरे ॥ सु०॥ संवत जगणीस सतोतरे वरसे । पोसती सुद दसमिरे ॥ सु० || || अंचल पूज्य पटोधर । श्रीपुण्य सिंधु सूरि रायरे ॥ मु०॥ संघन साखे मिलामि क्कम । होज्यो अधिक सवायारे ॥ सु०॥७॥ ॥ ६ ॥ जो कोइ जशे श्रवणे सांजलशे । तस घर मंगल मालरे || सु० ॥ नरकतणां दुःख वीरे जाख्यां । वीर वचन रस चाख्यारे ॥ ० ॥ 9 ॥ कहे मुक्ति कमला तस वरजो । सर्दहजो वीरजी वाणीरे ॥ सु० ॥ मिथ्यात्व प्रमाद तजो । सवी जाइजीन आणा तित लाउरे || सु० ॥ ८ ॥ ॥ अथ पंच कल्याणक स्तवनम् ॥ नमिय पयकमल सुजाव सवि जिनतणा पंच कल्याण दिए जणि जिनवरतणा । कसिए कत्तीतर्णं परिक पंचमि दि नाम संवत खयकरम तर्फे ॥ १ ॥ नेमि जिए चवण सुरजवणथी बार पठमपह जम्म बलि दिरक तसु तेरसे ॥ वीर समां वसै परिक हिव उजलै नाम सिरि सुविधि र तीज वारसि मिले ॥ २ ॥ जा० ॥ मिगसर वदिरे सुविध पंचमी जनमियो सोइ बवैरे संयमधर सुर पण मियो | दसमी दिनरे वीरे संयम यादस्यौ इग्यार सिरे पउपम पह सिवसिरि For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३१) वस्यौ । सिव वरयो मिगसर सुदि दशमी दिण रयणि अर जिन जामीयो वलि मुगति पिण तिण दिवस पोतो व्रत ग्यारसि पांमीयो । झ्यारसैं वलि मनि जिणने जम्म दिरक सुनाणीया वलि मलि दिरका जाण बचै अंग पोसि वखाणिया॥३॥ जाः ॥ इहां कारणरे लिखित दोष संन्नावियै कइ कोरे अवर हेतु पिण नावियै ॥ ते परि सवीरे गीतारथ सद गुरु खहै श्रुत केवलीरे वचन सह सम सद्दहे ॥ सदहै सहूयै ते प्रमाण ज वलि श्यारसि निमि तणौ श्रीनाण कल्याणक चनदसि जनम संजवनों पुणौ ॥ पूनिमें संचव दिरक पामी दया धरि जगजीवनी हिव पोसवदि दसमी ग्यारस जनम दिका पासनी॥४॥ वारस तिथिरे चंदप्पह जिण जाश्यौ वलि तेरसिरे संजम रंग सुणाश्यौ । चनदस दिनरे श्रीशीतल यो केवली पोस सुदिरे बउ विमल नाणी वली ॥ नाणी वलि थयो नवमि संती अजितनाथ ग्यारसें चलदसें अभिनंदने केवल पूनिमें धम्मै वसे माहाइग्छे पलम चवियो बारसैं शीतल श्रयौ वलि तासु संजम कसिण तेरसि रिसह जिण शिवपुर गयो ॥ ५ ॥ अम्मावमिरे दिवसे नाण ग्यारमें जिन पामीरे माह सुदें हिव अनुक्रमें ॥ सित बीजेरे अभिनंदन वासु पूजनों कल्याण करे जनम गंण अनुक्रम मनों ।। अनुक्रमें मांनों बिहू त्रीजे विमल धर्म सुजामीया श्रीविमल दिरका चनधि अमि अजित उत्पति पांमिया ॥ नवमिये दिरका अजितपामी बारसें अभिनंदने श्रीधर्म नाथें सार संयम सिरवरि तेरसि दिनें ॥६॥ ला ॥ फागुण वदि उ- सुपास केवल सिरिपतो सत्तम वलि For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३२ ) तसु मुगति चंद्रप्रभु नाणें जुत्तो ॥ नवमि सुविह जिन चवण रिसह इग्यारसि केवल बारस सुवय नाए जम्म सेयंसह निम्मल ॥ ७ ॥ तेरसि व्रत सिसतो चउदस वसुपुक जम्म दुर्ज अमावसे एतसु संजम र ॥ सुकल बीज चथि अमियें मलि संजय चवसु बारसि मलि मुगति सुहय वय उबव ॥८ ॥ ( ढाल फागनी ) ॥ चैत्र पढम परिक चथि नाण पारस पंचमि ससि पह चव जम्म अमि रिसस । वलि संजम पिए रिस सांमि अमि आदरियो धवल तीज दिव कुंशु नाथनें केवल फुरियो ॥ ए ॥ पंचमि अजित अनंत संजवने मुगति नवमि इग्यारस मुगति नांण वलि पांम्यो सुमति || त्रिसला देवें वीरनाह तेरस निसि जायो पूनिम दिन श्रीपदम ना केवल सिरि पायो ॥ १० ॥ नास ॥ वि वैसाख वदे परिवा दिन कुंथु सिद्ध शीतल वीजे दिन पंचमी कुंथु चरित्र | वे श्री शीतल अवतरियो दशमैं नमि जिण सिव सिरि वरियो तेरसि जनम अनंत ॥ ११ ॥ चवदस दिरका ना तह जनम हुई श्रीकुंथु जिए दह दह सिव पुर सत्य || सेत च जिनंदन उत्तम धरमनाथ चवियो वलि सत्तमि श्रमि सिद्ध च ॥ १२ ॥ सुमतिनाथ अव मिये जायो नवमें संयम सांमे पायो गायो धरि आणंद दशमें नाण वीर जिए पामी बारसि चव्यो विमल जग स्वामी तेरसि जित जिद || १३ || ( ढाल) || जेठ कसिए परिक व चवियो समीय जनमियो ए ॥ नवमि मुगति सोपत तेरस चवदसि सन्ति जम्म सिव वय दुओ ए ॥ धरम नाथ सिवपत्त For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३३) धवली पंचमें नवमें वसुपुज अवतरियो ए॥ श्री सुपास जिण जम्म बारसि तेरसि जग गुरु संयम सिरि वस्यो ए ॥१४॥ नास ॥ हिवै असाढ वदि चनथि रिसहेस चवण सत्त मिहि सिरि विमल ॥ मुक नवमि नमि वय गहण सेय बचै चवण ॥ वीरनो अनमि नेमि मुस्क चवदसे श्री वसुपुज जिणंद उ सय वर साधु कर परवस्यो ए ॥ बहुतर वरस लख पुरि चंपा पुरें कर्म हणि मुगति रमणी वस्यो ए ॥ १५॥ (ढाल)॥ श्रावण वदि हिव तीज मुगति सेयंसह पामिय सत्तमि चविलं अयंत नाह अठमी नमि जामिय ॥ नवमि कुंथु जिण चवण दुई अह निम्मल बीजै सुमति चवण पंचमिह नेमि जिण जम्म जणीजै ॥ १६॥ मुनिवर नेमि हुय अनमि सीधो पास ॥ मुनिसुबय पूनिम रयणि चविढे गुण मणि वास ॥१७॥ जाभव वदि सत्तमें संति ससि चवण जवरकय अमि चविय सुपास नवमि सुदि सुविध सिवंगय ॥ हिव आसु वदि तेरसि ए॥ श्री वीर जिणेसर गर्न हरण अम्मावसी ए नांगी नेमीसर ॥ १७ ॥ पूनिम नमि जिणवर चविय इणपर वारद मासि ॥ श्री आवस्यक दाखवी जिण कट्याणक रासी ॥१५॥ जिण चवण जम्म चरित्त केवल नांण शिव प्रापति दिने अरिहंत जत्ते सुध चित्ते तप करे जे शक मनें ।कस्यांणनी ते कोमी पांमी अनुक्रमें सिव सुख लहे ए हेतु जांणी सुगुरु जांणी एह कट्याणक कहे ॥ २० ॥ श्म पांच जरते ऐरवत करि एक दिन जिन वरतणा दस कल्याणक दुवे इण दिन सुर करे व घणा ॥ जिम हुआ ते तिम वलि होस्ये पंचकल्याणक सदा श्री For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३४) पुन्य सागर कहे खरतर एह आराहो मुदा ॥ २१॥ इति पंच कल्याणक स्तवनं ॥ ॥ नेमनाथ लावणी ॥ नेमकी जान वणी नारी देखन कुं आवै नर नारी ॥ (ए अखणी) अनंता घोमा उर हाथी । मनखकी किणती नही आती ॥ ऊंउपर धजा जो फरराती धमकसें फरती पर राती (दोहा-) समुजविजयका लामला नेम जनोंका नाम ॥ राजुल देकुं आया परणवा उग्रसेन घर गम ॥ प्रसन नइ नगरी सब सारी ॥ नेमकी ॥१॥ कसुंबल वागा अतिवारी काने कुंमल बवि है न्यारी ॥ किलंगी तुररा सुख कारी मालगले मोतियनकी मारी ॥ ( मुहा- ) काने कुंमल जगमगे शीश मुगट फल कार ॥ कोमिः नानुकी करु उपमा शोना अधिक अपार ॥ वाज रह्या वाजा टंक सारी ॥ नेमकी ॥२॥ लूट रही उनकी बरराइ व्याहमें आये वझे नाई ।। फरोखे राजुल दे आई जान कुं देखी सुख पाश् ॥ (हा-साबी)। उग्रसेनजी देखके मनमें करे विचार ॥ बहोत जीव करि एका वामो जरयो अपार ॥ करी सव नोजनकी त्यारी ॥ नेमकी ॥ ३ ॥ नेमजी तोरण पर आये पशु जीव सवही कुरलाये ॥ नेमजी वचन फुरमाये पशु जीव काहेकुं लाये ॥(उहा-साखी) याको लोजन होवासी जान वासते एह ॥ एह वचन सुणी नेमजी थर थर कांपे देह ॥ नावसें चढगये गिरनारि ॥ नेमकी ॥४॥ पीसें राजुख देवाइ हाथ अब पकड्यो दिन मांही ॥ कहां तुं जावै मेरी जाई जैर वर हेरं मुकता ॥ For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३५ ) (हा - साखी) मेरे तो वर एकही हो गया नेम कुमार ॥ र नवर नही कोटी करो विचार || दीक्षा जद राजुलने धारि ॥ नेमकी ० ॥ ५ ॥ सहेल्यां सबही समजावे हियै राजुल के नहि ॥ जगत सब फुगे दरसावै मेरे मन नेम कुमर जावे || ( 5हा - साखी) || तोरुया कांकण दोरमा तोड्या नव सर हार || काजल टीकी पान सुपारी त्याग्यो सब सिणगार साख्यां सब लिखाणी ॥ नेमकी ० ॥ ६ ॥ तज्या सब शोले सिणगार आभूषण रत्न जगित सारा ॥ लगे मोहे सबही सुख बारा बोककर चालि निरधारा || ( डुहा - साखी ) |! मात पिता परिवार कुं तजतां न लागी वार || वियोग कर चली आप जाय चढि गिरनार || कुरति बोकि मा प्यारी ॥ नेमकी || 9 || दया दिल पशुवनकि आइ त्याग जब कीनो बिन मांहि ॥ नेमि जिन गिरनारे जाइ पशु वनके बंधन तुमवाइ || ( कुहा - साखी) || नेम राजुल गिरनार लीनो संजम दान ॥ नवलराम कर लावणी उपज्यो केवल ग्यान || जिनकी किरिया बुध सारी || नेमकी ० ॥ ८ ॥ इति पदं ॥ ॥ अथ पारणा महावीर स्वामीका ॥ ॥ दोहा ॥ श्रीरिहंत अनंत गुण । अतिसय पूरण गात्र || मुनि जे ज्ञानी संजमी । ते कहिये उत्तम पात्र ॥ १ ॥ पात्र तली अनुमोदना करतो जीरासेव । श्रावक च्युय गति लदे । नवग्रै वेका देव ॥ २ ॥ दस चमासी वीरजी विचरत संजमवास || वेशालापुर आविया इग्यारमी च मास || ३ || (ढाल ) ॥ एकघर घोमाहातियाजी. (देशी) चोमासी इग्यारमीजी विचरत साहस For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३६) धीर॥वेसाला पुर बाहिरे जी श्राव्या श्रीमहावीर ॥१॥ जगत गुरु त्रिशला नंदनजी जलेमें नेव्यां श्रीजिनराय ॥ सखीरी चोक पूरावो आय मेरे नाग्यअनोपम माय ॥ ज० ॥२॥ बलदेवनो वे देहरोजी तिहां प्रनुकाउसग्ग लीध ॥ पञ्चरकाण चोमासनो जी स्वामी ए तप कीध ॥ ज० ॥ ३ ॥ जीरण सेठ तिहां वसे जी पाले श्रामक धर्म ॥ श्राकारे तिण उलख्याजी जाणे श्री जिन धर्म ॥ ज० ॥४॥ आज अने उपवासीया जी स्वामी श्रीवर्धमान ॥ काले सही प्रनु जीमस्ये जी सेहथ देस्युं दान ॥ ज० ॥ ५॥ सदा सेठ इम चिंतवेजी होसी सफल मुक श्रास ॥ पक्षमास गिणतां थकां जी पूरी थर चोमास ॥ ज० ॥ ६॥ सामग्री आहारनी जी जीरण कीध तश्यार ॥ प्रनुनो मारग देखतो जी बेठो घरने बार ॥ ज० ॥ ॥ घर आवे ने पाहुणो जी निहुत्यो एकण वार ॥ प्रनु जी कांन पधारसी जी में निडुत्या वारंवार ॥ ज०॥७॥ पीने करस्युं पारणोजी हुँ प्रजूने पमिलाल ॥ होय मनोरथ एहवोजी तोय विन वरसे आज ॥ ज०॥ ए॥ अवसर उठ्या गोअरीजी श्रीसिघारथ पुत ॥ वेसालापुर आवतां जी पूरण घरे पहुत्त ॥ ज० ॥ १० ॥ मिथ्यात्वी जाणे नहीं जी जंगम तीरथ एह ॥ चेटी प्रते इम कहे जी कांक निदा देह ॥ ज० ॥ ११ ॥ चाटू जरने बाकलाजी प्रजूने आणी दीध ॥ नीरागी तेही लियाजी तिहां प्रनू पारणो कीध ॥ ज० ॥ १५ ॥ देव वजावे दुमुनि जी जै बोले कर जोमि ॥ हेम वृष्टि दुश् तिहांजी साढी बारे कोमि ॥ ज० ॥ १३ ॥ कहो सेव तुमे स्युं दियोजी कियो पारणो वीर ॥ For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३७) लोकां प्रते श्म कहेजी में वहिराइ दीर ॥ ज० ॥ १४ ॥ राजा दिक सहुए कहेजी धन धन पूरण सेठ ॥ &ची करणी तें करी जी श्रवर सहू तुक हेठ ॥ ज० ॥ १५ ॥ जीरण सेठ सुणे तबे जी वाजिब उरुनि नाद ॥ अन्यत्र कियो प्रनू पारणो जी मनमें थयो विषवाद ॥ ज० ॥ १६॥ हूं जगमें अन्नागियो जी मेरे न आया साम ॥ कट्पवृक्ष किम पांमीये जी मारु मंगल गंम ॥ ज० ॥ १७ ॥ जेता मनोरथमें किया जी ते ता रह्या मन मांहि ॥ निरधन जिम जिम चिंतवे जी तिम तिम निर फल श्राय ॥ ज० ॥ १७ ॥ स्वामी तिहां कियो पारणो जी कियो अन्यत्र विहार ॥ या पास संतानिया जी तिहां मुनी केवल धार ॥ ज० ॥ १५ ॥ वेशालापुर राजियो जी लोका स्यु आणद ॥ राय प्रश्न पूछे इस्यो जी सुगुरु चरण अरविंद ।। ज० ॥ ॥ मेरे नगरमे को अबे जी जीव पुन्य जसवंत ॥ कहे केवली आज तो जी जीरण सेठ महंत ॥ ज० ॥ २१ ।। राय कहे किण कारणे जी जीरण सेठ महंत ॥ दान दियो. जिन वीरने जी पूरण सेठ महंत ॥ ज० ॥ ॥ राय प्रते कहे केवली जी पूरण दीनो दान ॥ हेम वृष्टि फल तेहने जी अवर न कोई प्रमाण ॥ ज० ॥ २३ ॥ देवलोक तिण बारमें जी जीरण घाट्यो बंध ॥ विना दान दियां लह्यो जी उत्तम फल संबंध ॥ ज० ॥ २५ ॥ घमी एक सुर मुनि जी जो नसुणतो कान ॥ लहि तो जीरण तो सही जी केवल अविचल ठाम ॥ ज० ॥ २५॥ राजा जीरणने दियो जी अधिक मान सन For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३०) मान ॥ मुदनगरमे थापियो जी जोवो पुन्य प्रमाण ॥ जण ॥ २६ ॥ दान दियो सुपात्रने जी ते निष्फल नवि जाय॥ पात्र दांन अनुमोदता जी जीरण जिम फल थाय ॥ ज० ॥२७॥ श्म जांणी अनुमोदना जी दान सुपात्र रसाल ॥ दांन देवे सुपात्रने जी तेहने नमे मुनीमाल ॥ ज० ॥२०॥ इति श्रीवीर प्रनु पारणा संपूर्ण ॥ ॥ अथ सिद्ध पद वर्णन सज्झाय ॥ श्रीगौतमस्वामी पूग करे विनय करी शीश नमाय प्रनु जी॥अविचट थानक में सुष्यो कृपा करीमोय बताय प्रनु जी ॥ शिव पुरनगर सोहामणुं ॥१॥ श्रापकर्म अलगा करी सास्या आतम काज प्रनुजी ॥ बूटा संसारना मुख थकी रहवानो किहां गम प्रनुजी ॥ शि॥२॥ वीर कहे नई लोकमां सिशिला तणो हो गोतम ॥ स्वर्ग पुरिने उपरे तेहना बारे नाम हो गोतम ॥ शि० ॥ ३ ॥ लाख पिस्तालीस जोजना लाबी पोहली जाणहो गोतम ॥ आठ जोजन जामी विचे मे माखी पंख माण हो गोतम ॥ शि ॥४॥ उज्वलाहार मोती तणा गोञ्ध संख प्रमाण हो गोतम ॥ ते थकी उजली अतिघणी उलटो उन संगण हो गोतम ॥ शि० ॥ ५॥ अरजुन स्वर्ण शम दीपती घगरी मगरी जाणहो गोतम ॥ फटक रतन थकी निरमली सुंआली अत्यंत वखाण हो गोतम ।। शि० ॥ ६॥ मिध शिला उलंघी गया अधर रह्या सिद्ध राज हो गोतम ॥ थलोकसुं जाइ अमया सारया आतम काज हो गोतम ॥ शि०॥७॥ जनम नहीं मरणो नही नही जरा नही For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ए ) रोग हो गोतम ॥ वैरी नहीं मित्रो नही नही संजोग वियोग हो गोतम ॥ शि० ॥ ८ ॥ जूख नहीं तिरखा नहीं हरख नहीं नही सोक हो गोतम ॥ करम नहीं काया नहीं विषाय रस नहीं योग हो गोतम || शि० ॥ ए ॥ शब्द रूप रस गंध नही फरस नहीं नहीं वेदहो गोतम ॥ वोले नही चाले नही मोन प नहीं खेद हो गोतम ॥ शि० ॥ १० ॥ गाम नगर ए को नहीं वसती नही जाम हो गोतम ॥ काल तिहां वरते नहीं नहीं रात दिवस तिथिवार हो गोतम ॥ शिव० ॥ ११ ॥ राजा नहीं परजा नहीं नहीं ठाकुर नहीं दास हो गोतम ॥ मुक्तिमें गुरु चेलो नहीं नहीं लघु वमाइ वास हो गोतम ॥ शि० ॥ १२ ॥ अनंता सुखमें फिल रह्या रुपी ज्योत प्रकाश हो गोतम || सह कोश्ने सुख सारिखा सगलाने अविचल राज हो गोतम ॥ शि० ॥ १३ ॥ अनंता सिद्ध मुगते गया वली अनंता जाय हो गोतम ॥ श्रवर जग्या फंधे नहीं जोतमां जोत समाय हो गोतम ॥ शि० ॥ १४ ॥ केवल ज्ञाने सहित केवल दर्शन खास हो गोतम ॥ कायक समकित दीपता कदय न होवे उदास हो गोतम || शि० ॥ १५ ॥ सिद्ध स्वरुप जे लखे आणी मन वैराग हो गोतम ॥ शिवरमणी वेगे वली नय कड़े सुख याग हो गोतम ॥ शि० ॥ १६ ॥ इति सिद्धि पद वर्णन सजाय संपूर्ण ॥ || प्रथम आचारांग सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल हठीलानी ॥ पहिलो अंग सुहामणो रे, अनुपम श्राचरांग रे ॥ सुगणनर || वीरजिनंदे जापियो रे लाल, For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४०) उववाई जास जवंग रे ॥ सु० १॥ बलिहारी ए अंगनी रे, हुँ जालं वारंवार रे ॥सु०॥ विनये गोचरी आदरे रे लाल, जिहां साधुतणो आचार रे ।। सु० ब० ॥२॥ सुयखंध दोय बै जेहना रे, प्रवर अध्ययन पचवीस रे ॥ सु० ॥ उद्देशादिक जाणिये रे लाल, पिच्यासी सुजगीस रे ॥ सु० ब० ॥३॥ हेतु जुगत कर सोजता रे पद अढारहजार रे ॥ सु० ॥ अदर पदने हमे रे लाल, संख्याता श्रीकार रे ॥ सु० ब० ॥४॥गमा अनंता जेहमां रे, वलि अनंत पर्याय रे ॥ सु० ॥ त्रस परित्तो बै इहां रे लाल, थावर अनंत कहाय रे ॥ सु० ब० ॥ ५ ॥ निबद्ध निकाचित सासता रे, जिनप्रणीत ए नाव रे ॥ सु० ॥ सुणतां आतम उबसे रे लाल, प्रगटे सहज स्वनाव रे ॥ सु० ब० ॥६॥ सुगुण श्रावक वारू श्राविका रे, अंगे धरिय नवास रे ॥ सु० ॥ विधिपूर्वक तुमे सांजलो रे लाल, गीतारथ गुरु पास रे ॥ सु० ब० ॥ ७ ॥ ए सिद्धांत महिमानिलो रे, ऊतारे जव पार रे ॥ सु०॥ विनयचं कहे माहरे रे लाल, एहिज अंग आधार रे ॥ सु० ब० ॥ ॥ इति आचारांग स० ॥ ॥ अथ २ सुयगडांगसूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल रसियानी ॥ बीजो रे अंग तुमे सांजलो, मनोहर श्रीसुगमांग ॥ मोरासाजन ॥ त्रणसे तेसठ पाखंमीतणो, मत खंड्यो धर रंग ॥ मो० ॥१॥ मीठी रे लागे वाणी जिनतणी, जागे जेहथी रे ग्यान ॥ मो ॥ ए वाणी मन जणी माहरै, मानु सुधा रे समान ॥ मो० ॥ मी० ॥२॥रायपसेणी उपांग बे जेहनो, एतो सूत्र गंजीर ॥ मो० ॥ बहुश्रुत अरथ जाणे For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) सहू, हीर नीर धनु तीर ॥ मो० मी० ॥३॥ एहना रे सुयखंध दोय बै, वलि अध्ययन तेवीस ॥ मो० ॥ उद्देसा समुद्देस जिहां जला, संख्याये रे तेत्रीस ॥ मो० मीठी ॥ ४ ॥ नय निदेप प्रमाण नया, पद उत्तीस हजार ॥ मो० ॥ संख्याता अदर पदमाहे, कुण लहे तेहनो रे पार ॥ मो० मी० ॥ ५॥ गमा अनंता पर्याय वली, जेद अनंत जिण मांहि ॥ मो० ॥ गुण अनंत त्रस परित्त कह्या, थावर अनंत जे मांहि ॥ मोग मी ॥६॥ निवड निकाचित्त जे सासय कमा, जिन पणत्तारे नाव ॥ मो० ॥ नाषी रे सुंदर एह प्ररूपणा, चरण करणनो रे जाव ॥ मो० मी० ॥ ७॥ करिये जगत जुगत ए सूत्रनी, निश्चै लहिये रे मुक्ति ॥ मो० ॥ विनयचं कहे प्रगटे एहथी, आतमगुणनी रे शक्ति ॥ मो० मी० ॥ ॥ इति सूयगमांग सज्जाय ॥ २ ॥ ॥ अथ ३ ठाणांगसूत्रसज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल | आठ टके कंकण लियोरी ॥ ए चाल ॥ त्रीजो अंग ललो कह्यो रे जिनजी, नामे श्रीगणांग॥ मोरो मन मगन थयो ॥ हारे देखी २ नाव, हारे जीवाजीव स्वजाव । मो० ॥ सबल जुगत करी गजतो रे जि०, जीवानिगम नपांग ॥ मो० ॥१॥ एह अंग मुझ मन वस्यो रे जिनजी, जिम कोकिल दल अंब ॥ मो० ॥ गुहिर नाव करि जागतो रे जि०, आज तो एह आलंव ॥ मो॥२॥ कूट शैल सिखरी शिला रे जि०, काननमें बलि कुंम ॥ मो० ॥ गह्वर आगर यह नदी रे जि०, जेहमें अने रे उदंग ॥ मो० ॥३॥ दस गणा अति For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२) दीपता रे जि०, गुणपर्याय प्रयोग ॥ मो० ॥ परित्त जेहनी वाचना रे जिप, संख्याता अनुयोग ॥ मो० ॥४॥ वेष्ट सि लोक निजुत्तसुं रे जि०, संग्रहणी पमिचित्त ॥ मो० ॥ ए सदु संख्यातां जिहां रे जि०, सुणतां उससे चित्त । मो० ॥ ५॥ सुय खंध इक राजतोरे जिप, दश अध्ययन उदार ॥ मो० ॥ उद्देशादिक वीस जै रे जि०, पद बहुत्तर हजार ॥ मो० ॥६॥ रागी जिनशासन तणो रे जि०, सुणे सिद्धांत वखाण ॥मो० ॥ विनयचंज कहैते हुवे रे जि०, परमारथरा जाण ॥ मो॥७॥ इति श्री ग० सं० ॥ ॥ अथ ४॥ समवायांगसूत्र सझाय ॥ ॥ ढाल ॥ थारा महिलां ऊपर मेह रोखे वीजली ॥ एचाल । चोथो समवायांग सुणो श्रोता गुणी, हो लाल सुणो श्रो, पन्नवणा उपांग करी सोजावणी, हो लाल करी सो० ॥ अरध मागधी जाषा साखा सुरतणी, हो लाख साखा सु०, समकित नाव कुसुम परिमल व्यापी घणी, हो लाल परि॥१॥जीव अजीवने जीवाजीव समासथी, हो लाल जी०, लहीये एहथि जाव विरोध कांइ नथी, हो लाल वि०॥ नांगा तीन स्वसमयादिकना जाणीये, हो लाल यादि०, लोक अलोक ने लोकालोक वखाणीये, हो लाल लो ॥२॥ एकथकी चै सत समवाय परूपणा, हो लाल सम, कोमाकोमि प्रमाणक जीव निरूपणा, हो लाल जी० ॥ वारस विह गणी पिकटतणी संख्या कही, हो लाल त०, सासता अरथ अनंत कि बै एहना सही, हो लाल जै० ॥३॥ सुयखंध अध्ययन उद्देसादिके जला, हो For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४३ ) - लाल उ०, संख्यायें एक एक प्रत्येके गुण निला, हो० प्रत्ये० ॥ पद एक लाख चौमाल सहस तेउत्तरा, हो० स०, पदनें उदग्र संख्याता अक्षरा, हो० सं० ॥ ४ ॥ जाप्य चूर्णि नियुक्ती करी सोहे सदा, हो० करी०, सुणतां जेद गंजीर त्रिपत न होय कदा, हो० त्रि० ॥ जेह नमावै गरि अन्तरगति हसी, हो० त०, जल वरसंते जोर कुण न दुवे खुसी, हो० कु० ॥ ९ ॥ जाग्यो धरम सनेह जिणंदसुं माहरो, हो० जि०, तजिया शास्त्र मिथ्यात सुत्र जाल्यो, खरो हो० सू ॥ जिम मालती लहे भृंग करीने नवि रहे, हो० क०, ईश्वरशिर सुरगंग तजी परि नवि वहे, हो० त० ॥ ६ ॥ ए प्रवचन निग्रंथतणो जुगते वको, हो० तर, साकर सेलकी प्राखथकी पिए मीठो, हो० थ० ॥ स्युं कहिये बहुवात विनयचं इम कहै, हो, वि० एहना सुने जव श्रोता प्रति गहरा है, श्रो० ॥ १॥ इति समवायांग०स०सं० " ॥ अथ ५ ॥ भगवतीसूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल पंथी मानी ॥ पंचम अंगे जगवती जालिये रे जिहा जिन वरना वचन अथाह रे । हिमवंत परवत सेती नीकट्या रे, मानुं परतिख गंग प्रवाह रे | पं० ॥ १ ॥ सूरन्नत्ती नामे परगको रे, जेहनी है उद्दाम उवांग रे ॥ सूत्रतपणी रचना दरिया जिसी रे, महिला अरथ ते सजल तरंग रे ॥ पं० ॥ २ ॥ इहां तो सुयखंध एक अतिजलो रे, एकसो एक अध्ययन उदार रे || दश हजार उद्देसा जेहना रे, जिहां किए प्रश्न बत्तीस हजार रे | पं० ॥ ३ ॥ पद तो दोय लाख रथे जा रे, ऊपर सहस व्यासी जाए रे || लोकालोक स्वरू For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४४ ) . पनी वर्णना रे, विवाहपन्नत्ती अधिक प्रमाण रे ॥ पं० ॥ ४ ॥ करिये पूजा ने परजावना रे, धरिये सदगुरु ऊपर राग रे ॥ सुणिये सूत्र जगवती रागसूं रे, तो होय जवसागरनो त्याग रे | पं० ॥ ५ ॥ गौतम नामे द्रव्य चढाइये रे, सम्यक् ज्ञान उदय होय जेम रे ॥ कीजै साधु तथा साहमी तणी रे, जगति युगति मन आणी प्रेम रे || पं० ॥ ६ ॥ इण विधसुं ए सूत्र राधां रे, जव सीके वंचित काज रे ॥ परजव विनयचंद्र कहे ते लहे रे, मोहन मुगतिपूरीनो राज रे ॥ पंच० ॥ ७ ॥ इति श्री जगवती सूत्र सज्जाय सं० ॥ ॥ अथ ६ ॥ ज्ञातासूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ || ढाल || कितलख लागा राजाजीरें मालियै ॥ ए देशी ॥ as अंग ते ज्ञातासूत्र वखाणियै जी, जेहना है अरथ छानेक उद्दम हो || म्हारा सुज्यो धरि नेह सिद्धांतनी वातकी जी ॥ श्रवणे सुतां गाढो रस ऊपजे जी, मधुरता तर्जित जिम मधुखंक हो || म्हा० ॥ १ ॥ जंबुद्दीवपन्नत्ती उपांग है जेहनो जी, इ मां जिन पूजानी विधि जोरहो ॥ म्हा० ॥ कि सुषि परम शांतिरस अनुवे जी, चर्चिक सुणि करै सम सोर हो । म्हा० ॥ २ ॥ नगर उद्यान चैत्य वनखंग सोहामणो जी, समवसरण राजानो मातने तात हो || म्हा० ॥ धरमाचारज धर्मकथा तिहां दाखवी जी, इह लोक परलोक शद्धि विशेष सुहात हो || म्हा० || ३ || जोग परित्याग प्रव्रज्या पर्षदा जी, सूत्र परिग्रह वारू तप उपधान हो || म्हा० ॥ संलेह पच्चरकाण पादपोप गमनता जी, स्वर्ग गमन शुभ कुल उतपत्तान हो || म्हा० ॥ For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४५) ॥४॥ बोधिलाल वलि तंत ते अंतकृत्य कही जी, धर्मकथाना दोय ने सूय खंध हो ॥म्हागापहिलाना उगणीस अध्ययन ते आज चै जी, बीजाना दस वर्ग महा अनुबंध हो । म्हा ॥ ५॥ ऊंठकोमि तिहां सकल कथानक जाषिया जी, नाष्या वलि जगए।स उद्देस हो ॥ म्हा० ॥ संख्याता हजार जला पद एहना जी, एह अकी जायै कुमति कलेश हो । म्हा ॥ ६॥ विनय करे जे गुरुनो बहु परै जी, तेहने श्रुत सुणतां बहु फल होय हो ॥ म्हा० ॥ ते रसिया मन बसिया विनयचंधने जी, सो मांहे मिलै जोया एक कै दोय हो ॥ म्हाण ॥ ७॥ इति ज्ञाताधर्मकथांग स० ॥ ॥ अथ ७ ॥ उपासकदशा सूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल विबियानी ॥ हिवै सातमो अंग ते सांजलो, उपा सगदशा नामे चंग रे ॥ श्रमणोपासकनी वर्णना, जसु चंदपनत्ती उपांग रे॥१॥ मन लागो मोरो सूत्रथी, एतो लव वैराग तरंग रे ॥ रस राता ज्ञाता गुण लहै, परमारथ सुविहित संग रे॥ म ॥२॥ण अंगे सुयखंध एक जै, अध्ययन उद्देस विचार रे ॥ दस ५ संख्यायें दाखव्या, पद पिण संख्यात हजार रे ॥म० ॥ ३॥ आनंदादिक श्रावकतणो, सुणतां अधिकार रसाल रे ॥ रसलागे जागे मोहनी, श्रोताजनने ततकाल रे ॥ म० ॥४॥श्रोता बागल तो वांचतां, गीतारथ पामे रीकं रे ॥ जे अर्धदग्ध समजै नही, तेहसुं तो करवी धीज रे ॥ म० ॥५॥ दस श्रावक तो यहां जाषिया, पिण सूत्र जएयो नही कोय रे ॥ ते माटे शुद्ध श्रावक जणी, एक अरथ वृ० १० For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४६) नी धारणा होय रे ॥ म० ॥ ६॥ साचो होय ते प्ररूपियै, निस्संक पणे सुजगीस रे ॥ कविविनयचं कहै स्युं थयो, जो कुमती करस्यै रीस रे॥॥॥ इति उपाशकदशांग सज्कायः॥ ॥ अथ ८ ॥ अंतगडदशांग सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल ॥ वीर वखाणी राणी चेलणा जी ॥ ए देशी॥ आठमो अंग अंतगमदशा जी, सुणी करो कान पवित्र ॥ अंतगम केवली जे श्रया जी, तेहना रेश्हां आठ चरित्र ॥श्राप ॥१॥ कर्म कठिन दल चूरतां जी, पूरता जगतनी आस ॥ जिनवरदेव इहां नासता जी, सासता अर्थ सुविलास ॥ श्राप ॥२॥ सकल निदेप नय नंगयी जी, अंगना नाव अग्नंग ॥ सहिज सुख रंगनी तटिपका जी, कटिपका जास जवांग ॥ आ॥३॥ एक सुयखंध इण अंगनो जी, वर्ग आठ अनिराम ॥ आठ उद्देसा ने वली जी, संख्याता सहस पद नाम ॥ आ॥४॥ आठमा अंगना पाउमें जी, एहवो अरे मीगस ॥ सरस अनुन्नव रस ऊपजै जी, संपजै पुण्यनी रास ॥ आ० ॥ ५ ॥ विषयलंपट नर जे हुवे जी, निरविषयी सुण्यां थाय, जिम माहा विष विषधरतणो जी, नागमंत्रे सुण्या जाय॥आ॥६॥ अमृतवचन मुख वरसती जी, सरस्वती करो रे पसाय ॥ जिम विनयचं इण सूत्रना जी, तुरत लहै अभिप्राय ॥ श्रा० ॥७॥ इति श्रीअंतगमदशा सूत्र स० ॥ ॥ अथ ९॥ अणुत्तरोवाई अंग सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल ॥ नणदल विंदली लै ॥ए चाल ॥ नवमो अंग अणुत्तरोवाई, एहनी रुची मुझने आई हो॥श्रावक सूत्र सुणो॥ For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४७) सूत्र सूणो हित आणी, एतो वीतरागनी वाणी हो ॥श्रा० ॥१॥ जसु कट्पावतंसिका नामै, सोहे नपांग प्रकामे हो ॥ श्रा० ॥ एतो श्रागमने अनुकूला, मानु मेरुसिखरनी चूला हो ॥ श्रा ॥५॥ एतो सूत्रनो नाम सुणीजै, तिम २ अंतरगति जी हो ॥ श्रा० ॥ प्रगटै नवल सनेहा, एहथी जलसे मोरी देहा हो ॥ श्रा० ॥३॥ अणुत्तर सुरपदपाया, तेहना गुण इणमें गाया हो ॥श्रा० ॥ नगरादिक नाव वखाण्या, ते तौ उ अंगे अण्या हो ॥ श्रा॥४॥ इहां एक सुयखंध वारू, त्रण वर्ग वली मनुहारू रे ॥ श्रा० ॥ उद्देसा त्रिण सनूरा, संख्यात सहस पद पूरा हो ॥ श्रा० ॥ ५॥ सूत्र सुणावू अमे तेहनें, साची श्रद्धा हुय जेहने हो ॥ श्रा० ॥ श्रोताथी प्रीत लगावू, निंदकने मुंह न लगाउं हो ॥ श्रा० ॥ ६ ॥ जे सुणतां करै बकोर, तेतो माणस नही पिण ढोर हो ॥ श्रा० ॥ कवि विनयचं कहे साचो, श्रुत रंगै सहुको राचो हो ॥ श्रा० ॥७॥ इति श्रीअणुत्तरोवाई सज्जायः॥ ॥ अथ १०॥ प्रष्णव्याकरण सज्झाय लिख्यते ।। ॥ ढाल ॥ आधा आम पधारो पूज ॥ ए देसी ॥ दशमो अंगसुरंग सुहावै, प्रष्णव्याकरण इन नामें, सूत्र कल्पतरु सेवे ते तो, चिदानंद फल पामे ॥ आवो २ गुणना जाण तुमने सूत्र सुणाचं ॥ पुष्पकली ज्यूं परिमल महकै, गुरु परागने रागै ॥ तिम उपांग पुष्पिका एहनो, जोर जुगति करि जागै॥ श्रावो ॥२॥ अंगुष्टादिक जिहां प्रकास्या, प्रष्णादिक अति रूमा । ते चै अष्टोत्तर सत ए तो, सूत्र मध्यमणिचूमा ॥ आ० ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) आश्रव चार पांच इहां आण्या, पांचे संबर धारा ॥ माहामंत्र वाणीमां लहियै, लबधि नेद सुखकारा ॥ आ०॥४॥ सुयखंध एक चै दसमे अंगै, पणयालीस अज्जयणा ॥पणयालीस उद्देस वली पद, सहससंख्यातनी रयणा ॥ श्रा० ॥ ५॥ जे नर सूत्र सुणै नही कानै, केवल पोषे काया ॥ माया मांहि रहै लपटाणा, ते नर इमहिज आया ।। आ० ॥६॥ सूत्र मांहि तो मारग दोय बै, निश्चय नय व्यवहारा ॥ विनयचं कहै ते आदरियै, तज मन मदन विकारा ॥ आवो ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ ११॥ विपाकसूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल कमखानी ॥ सुणो रे विपाकश्रुत अंग ग्यारमो, तजो विकथा वृथा जे अनेरी ॥ ललित उपांग जसु प्रवर पुष्फचूलिका, मूलिका पाप आतंक केरी ॥ सु॥१॥ अशुन किंपाक सम उकृतफल नोगवी, नरकमें गरक श्रया जेह प्राणी॥ सुकृतफल जोगवी स्वर्गमां जे गया, तास वक्तव्यता इहां श्राणी ॥ सु०॥॥ दोय श्रुत खंधने वीश अध्ययन वलि, वीस उद्देस इहां जिन प्रयुंजे ॥ सहससंख्यात पद कुंद मचकुंद जिम, बहुल परिमल ब्रमर चित्त गुंजै ॥ सु० ॥३॥ सरस चंपकलता सुरन्नि सहुने रुचै, अन्य उपगारनी बुद्धि माटै ॥ सूत्र उपगार तेहथी सबल जाणिय, जेहथी पुरुष सुख अचल खाटै । सु० ॥४॥ बंध ने मोदना बेचं कारण अजै, कृतने सुकृत जोवो विचारी ॥ कृतने परिहरी सुकृतने आदरी, जिनवचन धारियै गुण संजारी ॥ सु ॥५॥म कररे म करो निंद्या निगुण पारकी, नारकी तणी गति कांश बांधै ॥ नारकी For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४९) प्रकृत तज सहज संतोष जज, लाग श्रुत सांजली धरमधंधे ॥ ० ॥ ६ ॥ सुरकने दुःख विपाक फल दाखव्या, अंग इग्यार में वीतरागे ॥ चिरजयो वीर शासन जिहां सूत्रथी, कवि विनयचंद्रगुण ज्योति जागे || सु० ॥ ७ ॥ ॥ अथ इग्यारै अंगकी वर्णना लिख्यते ॥ ॥ ढाल वधावाकी ॥ अंग इग्यारे में थुण्या, सहेली ए ॥ आज या रंगरोल कि ॥ स० ॥ नंदीसूत्र मांहि एहनो, स० ॥ नाप्यो सर्व निचोल कि ॥ १ ॥ सहेली ए आज वधामणा ॥ कणी ॥ पसरी अंग इग्यारनी, स० ॥ मुक्त मन मंरुप वेल कि ॥ सींचू ते हरखे करी, स० ॥ अनुभव रसनी रेल कि ॥ ॥ २ ॥ हेज धरी जे सांजलै, स० ॥ कुण बूढा कुण बाल कि ॥ तो ते फल लहे फुटरा, स० ॥ स्वादें तहि रसाल कि ॥ स० ॥ ३ ॥ हरख अपार धरी हियै, स० ॥ अहम्मदावाद मकार कि || जासकरी ए अंगनी, स० ॥ वरत्या जय २ कार कि ॥ स० ॥ ४ ॥ संवत सतर पचावनें, स० ॥ वर्षातु ननमास कि || दसमी दिन सुदि पक्षमां, स० ॥ पूरण थई मन आस कि ॥ स० ॥ ९ ॥ श्रीजिनधर्म सूरी पाटवी, स० ॥ श्री जिनचंद्र सूरीस कि ॥ खरतरगञ्जना राजिया, स० ॥ तसु राजै सुजगीस कि ॥ ६ ॥ पाठक हरखनिधान जी, ज्ञानतिलक सुपसाय कि ॥ विनयचंद्र कहे में करी, स० ॥ अंग इग्यार सज्जाय कि । स० ॥ ७ ॥ इति श्री इग्यारे अंग सज्जाय ॥ ॥ अथ ज्ञानका स्तवन लिख्यते ।। ॥ राग वुमरी ॥ मेरे रे मन मानी ज्ञान जरी, मे० ॥ पर For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५० ) उपगारी सुगुरु बताई, पांचु नेदें करी ॥ मति श्रुति अवधि वर मनपर्यव, केवल बोध वरी ॥ मे० ॥ १ ॥ तप करि सिदंसनकी, करमेंधन लकरी ॥ सक्रिय संजम करतासुं मिल, सिद्धि रसान धरी ॥ मे० ॥ २ ॥ पूरण पुन्य मिली मोहि सजनी, सकलानन्द दरी, वाल कहै अव विसरत नाही, पल बिन एक घरी ॥ मे० ॥ इति पद ॥ ॥ पुनः आगम स्तवनं ॥ २ ॥ श्रुत तहि जलो, संघ सकल आधार नमूं त्रीभुवन तिलो ॥ श्री ॥ अर श्रीवीरजिनंद आख्यो, सूत्रं श्री गणधर - गुरु जाथ्यो, तडुनयथी जे मुनिवर राख्यो | श्रु० ॥ १ ॥ जे हथी जग जाव सकल जाणे, नय एकांत मुनिजन नवि ताणे, निश्चय व्यवहार ते मन आले ॥ श्रु० ॥ २ ॥ जिहां अंग उपांग तिरुमा, व छेद पयन्ना नहि कूमा, मूलसूत्र नंदी अनु योग चूका ॥ श्रु० ॥ ३ ॥ जिहां निरयुक्ती सूत्रे संगी, बलि जाष्य चूरणी टीका चंगी, पंचम अंगे कही पंचांगी ॥ श्रु० ॥ ४ ॥ जिहां साधु श्रावक मारग लहिये, संवेगपखी वलि सरददिये, ए त्रि वि जवमारग कहियै ॥ श्रु० ॥ ५ ॥ जेहनी अनुदा नित करियै, उपचारे दूषण परिहरियै श्राराध्यां निज अनुभव वरियै ॥ श्रुत० ॥ ६ ॥ जिन श्रागमना जे गुण गावे, शुद्धाशय जे मन में ध्यावे ते क्षमाकल्याण सदा पावै ॥ श्रु० ॥ ७ ॥ इति ज्ञान स्तवनं ॥ " || ढंढरिषीनी सज्झाय ॥ ॥ ढणपिजीने वंदना हूं वारी, उत्कृष्टो अणगार रे For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुवारी लाल, अनिग्रह लीधो एहवो हूँ॥लेस्युं श्रुद्ध आहार रे॥ हुँ० ॥१॥ ढंग ॥ नितप्रति गोचरी टुं० ॥ न मिले श्रुध आहार रे ॥ ढुवा मूल न लै अणसूऊतो ढुं० ॥ पंजर कीधो गात रे हुं० ॥२॥ ढं० ॥ हरि पूर्व श्रीनेमीने हूं, मुनिवर सहसअढार रे ॥ ९ वा ॥ उत्कृष्टो कुण एहमें हुं० ॥ मुऊनें कहो विचार रे ॥ ९वा ॥ ३ ॥ ढं० ॥ ढंढण अधिको दाखियो ढुं० ॥ श्रीमुख नेमजिएंद रे ढुंवा० ॥ कृष्ण ऊमाह्यो वांदवा हुं० ॥ धन जादव कुलचंद रे हुं वा० ॥ ४ ॥ ढं० ॥ गलियारे मुनिवर मिट्या ढुंग, बांद्या कृष्ण नरेस रे ढुवा० ॥ किणही मिथ्यात्वी देखने ढुंग, आण्यो लाव बिसेसरे ढुं०॥५॥ ढं० ॥ मुझ घर आवो साधुजी हुँ०, ट्यो मोदक बै श्रुधरे हुँ । मुनिवर विहरीने पांगुस्सा हुँ०, आया प्रनुजीने पास रे ९० ॥ ६॥ ढं० ॥ मुफ लबधै मोदक मिट्या हुँ०, कहोने तुम्हे किरपाल रे हुं० ॥ लब्धि नही वच ताहरी हूं, श्रीपति खबधि निहाल रे ९० ॥७॥ ढं॥ए लेवो जुगतो नही हुं०, च्यात्या परउन काज रे हुं० ॥इंट निवा हे जायने हुं० चूरे करम समाज रे ९० ॥८॥ ढं० ॥ आणी चढती जावना हुं०, पांम्यो केवल नाण रे ९० ॥ ढंढण ऋषि मुगते गया हुं, कहे जिनहर्ष सुजाण रे हुं० ॥ ए॥ ढं० ॥ इति ढंढण शषि सज्काय संपूर्ण ॥ ॥ अथ धन्नाऋषी सज्झाय ॥ श्रीजिनवाणी रे धन्ना, अमिय समाणी मोरा नंदन, मनमो तो मानी रे नंदन ताहरै ॥ १॥ तूं अतहि वैरागी रे धन्ना, धरमनो रागी मोरा नंदन माहरो तो मममो रे किम परचावसुं For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५२ ) ॥ २ ॥ दस दिसी दीसे रे धन्ना, तो विन सूनी मोरा नंदन, अनुमति देतां रे जीव वहे नहीं ॥ ३ ॥ बत्तीसै नारी हो धन्ना, तहि पियारी मो० ॥ वाणी तो बोले रे मधुर सुहामणी ॥ ४ ॥ बालक तो कामणी रे धन्ना, वयपिण तरुणी मो० ॥ गजगति चाले रे चाल सुहावणी ॥ ५ ॥ ए घर मंदिर हो घन्ना, ए सुख सज्या मो० ॥ कोरु बत्ती से धननो तूं घणी ॥ ६ ॥ ए धन मांणो रे धन्ना, वय पिए जांणो मो० ॥ जोगवि ज्यो रे जोगसुहामणो ॥ ७ ॥ व्रत प्रति दोहिलो रे धन्ना, नहिय सुहेलो मो० ॥ सुगम नहीं बे रे साधु कहावणो ॥ ८ ॥ घर २ निक्षा हो धन्ना, गुरुतणी शिक्षा मो० ॥ कहणी रे रहणी नही बे सारखी ॥ ए ॥ इक वारे सुणीये हो धन्ना, आगमणीये मो० ॥ जिनवर जांणे हो डुक्कर जोग बै ॥ १० ॥ वनवास रहणो हो धन्ना, परीसह सहणो मो० ॥ कोमल केसा रे लोच करावणो ॥ ११ ॥ साचो तें जाख्यो हे अम्मा, झूठ न दाख्यो मोरी अम्मा | डुक्कर मारग जननी दाखियो ॥ १२ ॥ सुख अभिलाषी हे श्रम्मा, झूठ न आखी मोरी अम्मा ॥ कायर मारग जननी दाखियो ॥ १३ ॥ ए जग स्वारथी हे अम्मा नही परमारथि मोरी अम्मा, वीर वखाएयो परखदा सदु सुयो ॥ १४ ॥ में इस जाएयो हें अम्मा, वीर वखारयो मोरी अम्मा, ए धन जोबन आयु थिर नही || १५ || अनुमति दीजे हे अम्मा, ढील न कीजै मोरी अम्मा, जो खिल जावेसु फिर नही ॥ १६ ॥ अनु मति श्रापी हो अम्मा, जीव सुख पायो मोरी अम्मा, संजम लीधो रे मनमां गहगही ॥ १७ ॥ For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५३) पारणे हे अम्मा, विगय निवारण मोरी अम्मा, वीर वखाण्यो सुरनर बागलै ॥ १७ ॥ सुख संजम पाले हे अम्मा, दूषण टाले मोरी अम्मा, अंग श्यारे अरथ रूमा लणे ॥१९॥ संजम पाट्यो हे अम्मा, नव पखवामे मोरी अम्मा, मास संथारे सरबारथसिद्ध बह्यो ॥२०॥ इति धन्ना शषि सज्काय संपूर्ण ॥ ॥ अथ कर्मसज्झाय लिख्यते ॥ देव दाणव तीर्थंकर गणधर, हरि हर नरवर सबला॥ करम प्रमाने सुख सुख पाया, सबल हुआ महा निबलारे प्राणी, कर्म समो नहि कोई ॥१॥ आदीसरजीने करम अटास्या, वरस दिवस रह्या जूखा ॥ वीरने बारे वरस मुख दीग, ऊपना ब्राह्मणी कूखै रे प्राणी ॥ का ॥२॥ साठ सहस सुत माया एकण दिन, जोध जुवान नर जैसा ॥ सगर दुई महा पूत्रनो मुखियो, कम्मतणा फल एसा रे ॥ प्रा॥ क ॥३॥ बत्रीस सहस देसांरो साहिब, चक्री सनतकुमार ॥ सात रोग सरीरमे ऊपना, कम्र्मे कीयो तनु गर रे ॥ प्रा० ॥४॥ कर्म हवाल किया हरीचंदने, वेची सुतारा रांणी ॥ बारे वरस लग माथे आयो, नीचतणे घर पाणी रे ॥ प्रा० ॥ का ॥५॥ दधिवाहन राजारी बेटी, चावी चंदनवाला ॥ चौपद ज्यूं चहुटामें वेची, करमतणा ए चाला रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥६॥ संजूम नांमे श्राठमो चक्री, कम्र्मे सायर नाख्यो । सोले सहस जद उन्ना देखे, पिण किणही नहि राख्यो रे ॥ प्रा० ॥क०॥७॥ ब्रह्मदत्त नामे बारमो चक्री, कर्मे कीधो आंधो ॥ श्म जाणीने अहो नविप्राणी, कर्म को मत बांधो रे॥ प्रा० ॥ क०॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५४ ) aपन्न को जादवरो साहिब, कृष्ण महावल जांणी ॥ अटवी महि मूं एकलको, विल २ करतो पाणी रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥ ए ॥ पांव पांच महा ऊकारा, हारी प्रोपदा नारी ॥ वारे बरस लग बन रna किया, नमिया जैम निख्यारी रे || प्रा० ॥ क० ॥ १० ॥ बीस जुजा दस मस्तक हूंता, लखमण रावण मारयो || एकलकै जग सहु नर जीत्या, ते पिए कर्म्मसुं हायो रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥ ११ ॥ लखमण राम महा बलवंता, अरू सतवंती सीता ॥ कर्म्म प्रमाणे सुख दुख पांम्या, वीतक बहु तस वीता रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १२ ॥ समकितधारी श्रेणिक राजा, बेटे बांध्यो मुसकै ॥ धरमी नरने कर्म धकाया ॥ करमसुं जोर न किसका रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥ १३ ॥ सतियसिरोमणी प्रौपदि कहिये, जिन सम वर न कोई || पांच पुरुषनी हुइ ते नारी, पूरब कर्म्म कमाई रे || प्रा० ॥ क० ॥ १४ ॥ श्रजानगरी नो जे स्वामी, साचो राजाचंद || मां कीधो पंखी कूकको, कम् नाख्यो ते फंद रे || प्रा० ॥ क० ॥ १५ ॥ ईस्वर देव ने पार वती नारी, करता पुरुष कहावै ॥ अहनिस महिल मसां मे वासो, जिदा जोजन खावे रे || प्रा० ॥ क० ॥ १६ ॥ सहस किरण सूरज परतापी, रात दिवस रहे तो, सोल कला ससीधर जग चावो, दिन २ जाये घटतो रे ॥ प्रा० ॥ क० ॥ १७ ॥ इम अनेक खंड्या नर करमें, जांज्या ते पिए साजा ॥ कविहरष कर जोमीने विनवै, नमो २ कर्म्म महाराजा रे ॥ प्रा० ॥ ० ॥ १८ ॥ इति कर्म्म सजाय सं० ॥ For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५५) ॥ अथ सात विसनकी सज्झाय लिख्यते ॥ सात विसनना रे संग मत करो, सुण तेहनो सुविचार विवेकी ॥ सात नरकना रे नाइ सातेई, आप पुरक अपार विवेकी ॥ सा ॥ १॥ प्रथम जूवाने रे विसन पड्यांथकां, पांमव पांच प्रसिद्ध विवेकी ॥ नखराजा पिण इण विसने पड्यो, खोइ सहू राजरिछ वि० ॥ सा ॥२॥ दूसरे मांस जहाण अवगुण घणा, करै पर जीव संहार विवेकी ॥ महासतकनी नारी रेवती, नरक गइ निरधार विवेकी वि०॥ सा ॥३॥ तीजे मदिरा पनि विसनतजी, चित धरी वलि चाह वि० ॥ दीपायण रिषि दूहव्यो जादवे, धारकानो थयो दाह वि. ॥ सा ॥४॥ चोथे विसने वेस्याघर बसै, लोकमें न रहे लाज वि० ॥ कयवन्नादिकनो गयो कायदो, कुविसने रे काज वि० ॥ सा० ॥ ॥ पाप आहे कुविसन साचवै प्राणी हणिये प्रहार वि०॥ मारी मृगली श्रेणिक नृप गयो पहली नरक मकार वि० ॥ सा ॥६॥छे चोरीने विसने करी, जीव लहे पुरस्क जोर वि० ॥ मुंजदेव राजायें मारियो चावो दुमक चोर ॥ वि० सा० ॥७॥ परस्त्रीय संगत कुविसन सातमें, हाणि कुजस बहु होय वि० ॥ राणो रावण सीता अपहरी, नास लंकानो रे जोय वि० ॥ सा ॥ ॥ इम जांणीने लव्य तुमे आदरो, सीख सुगुरुनी रे सार वि० ॥ण नव परजव आणंद अति घणा, कहे ध्रमसी सुखकार ॥ वि० ॥ सा ॥ ए ॥ इति सात विसनकी सज्काय संपूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५६) ॥ अथ चेलणा सतीनी सज्झाय लिख्यते ॥ वीर वांदी वलतां अकां जी, चेलणा दीगे रे निग्रंथ ॥राति वन मांहि काउसग्ग रह्योरेजी, साधतो मुगतिनो पंथ ॥१॥ वीर वखाणी राणी चेलणा जी, सतिय सिरोमणि जाण ॥ चमारा. जानी साते सुता जी, श्रेणिक सीयल परिमाण ॥ वी० ॥॥ सीत उंगर सबलो पझे जी, चेलणा प्रीतम साथ ॥ चारत्रियो चितमे वस्यो जी ॥ सौमि बाहर रह्यो हाथ ॥ वी० ॥३॥ ऊबक जागी कहे चेलणा जी, किम करतो दुस्यै तेह ॥ कुसती मनमाहि ए कुण वस्यो जी ॥श्रेणिक पड्यो रे संदेह ॥ वी. ॥४॥ अंतेतर परो जायज्यो जी, श्रेणिक दियो रे आदेस ॥ जगवंत सांसो लांजियो जी, चमकियो चित्त नरेस ॥वी०॥५॥ वीर वांदी वलतां थकां जी, पैसतां नगर मकार ॥ धुंनो घोर देखी करी जी, जा जा रे अजयकुमार ॥ वी० ॥६॥ तातनो वचन पाली करी जी, व्रत लियो अन्नयकुमार ॥ समयसुंदर कहे चेलणा जी, पामियो जवतणो पार ॥ वी० ॥ ७ ॥ इती चेलणा महासती सज्काय संपूर्ण ॥ ॥अथ वैराग्य सज्झाय ॥ ॥ नूलो मनलमरा कां जमै, नमियो दिवस ते रात ॥ मायारो लोनी प्राणियो, नमियो परिमल जात ॥ १॥ जू० ॥ कुंल काचो काया कारमी, जेहना करो रे जतन्न ॥ विणसतां वार लागे नही निरमल राखो रे मन्न ॥२॥०॥ केहना गेरू केहना वारू, केहना माय नै बाप ॥ जीव जासी एकलो, साथे पुन्यने पाप ॥३॥ नू०॥ आस्या तो डूंगर For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५७ ) जेवमी, मरवो पगला रे देव ॥ धनं संची संच कां करो, करवी देवनी वेठ ॥ ४ ॥ ० ॥ लखपति छत्रपती सब गए, गए लाखो के लाख ॥ गरब करी गोखै बैठता, नए जल बल राख ॥ ५ ॥ नू० ॥ जवसायरजल दुख जरयो तिरवो बे रे जेह ॥ वीचमें बीह सबलो, कर में वाय ने मेह ॥ ६ ॥ जू० ॥ उलट नहि मारग चालवो, जायवो पहिले रे पार ॥ श्रगल नहि हट वांणियो || संबल लेग्यो रे लार ॥ 9 ॥ ० ॥ मूरख कहे धन माहरो, धन केहनो हतो न श्राय ॥ वस्त्र विना जाय पोढवो, लखपति लाकर माय ॥ ८ ॥ ० ॥ महमंद कहै वस्तु वोरीय, जे कुछ वे रे साथ || अपणो लाज उवारियै, लेखो साहिब हाथ ॥ ० ॥ ए ॥ इति ॥ ॥ अथ बाहुबलि सज्झाय ॥ ॥ राजता अति खोजिया, जरत बाहूबली झूले रे ॥ मूंठी उपामी मारिवा, बाहूबली प्रतिबूजे रे ॥ १ ॥ वीरा म्हारा गजथ की ऊतरो, ब्राह्मी सुंदरी जासै रे ॥ रूपन जिनेसर मोकली, वाहूबलीने पासै रे || वी० ॥ गज चढ्यां केवल न होई रे ॥ वी० ॥ २ ॥ लोच करी चारित्र लियो, वलि आयो अमिनो रे ॥ लघु बांधव वांदू नही, काउसग्ग रह्यो शुभ ध्यानो रे ॥ ३ ॥ वी० ॥ वरस दिवस काजसग्ग रह्यो, वेलमियां वींटा रे | पंखी माला मांदियां, सीत ताप सूकाणो रे ॥ वी० ॥ ४ ॥ साधवी वचन सुया इसा, चमक्यो चित्त मकारो रे ॥ हय गय रथ में परिहरया, नवि मूंक्यो अहंकारो रे ॥ वी० ॥ ५ ॥ वैरागे मन वालियो, मूंक्यो निज निमांनो रे ॥ पांव For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८) जपानी वांदिवा, ऊपनो केवलज्ञानो रे ॥ वी ॥६॥ पदुतो केवली परखदा, बाहुबल शषिराया रे ॥ अजर अमर पदवी वही, समयसुंदर बंदे पाया रे ॥ ७॥ वी० ॥ इति ॥ ॥अथ अरणक मुनि सज्झाय ॥ ॥ अरणक मुनिवर चाल्या गोचरी, तमके दाजे सीसो जी॥ पायनजराणा रे वेलूपरजलै, तन सुकमाल मुनीसो जी ॥ अर० ॥१॥ मुख कमलाणो रे मालती फूल ज्यूं, ऊ नो गोखने हेठो जी॥ खरै उपहरै रे दीगे एकलो, मोही माननी मीगे जी॥॥१०॥ वयणरंगीली रे नयणे विधियो, शषि घंव्यो तिण वारो जी ॥ दासीने कहे जाय छतावली, रिषि तेमी आंणो जी ॥३॥ १० ॥ पावन कीजे झषि घर आंगणो, वहिरो मोदक सारो जी ॥ नवजोवन रस काया कांइ दहो, सफल करो अवतारो जी॥४॥अ० ॥ चंजावदनी रे चारित चूकन्यो, सुख विलसै दिन रातो जी ॥ इक दिन गोखै रमतो सोगढ़, तव दीगे निज मातो जी ॥ ५॥ ॥ अरणक ५ करती माय फिरे, गलियै ५ मकारो जी ॥ कहि किण दीको रे माहरो अरणलो, पूबै लोक हजारो जी॥६॥ १० ॥ उतर तिहाथी रे जननीरे पाय नमे, मनमें लाज्यो तिवारो जी॥ धिग् २ पापी रे माहारा जीवने, एह में अकारज धारयो जी ॥७॥०॥ अगन धुखंती रे सिवा उपरै, अरणक अण सण कीधो जी ॥ समयसुंदर कहे धन ते मुनिवरू, मन वंचित फल सीधो जी ॥७॥ ॥ इति अरणक मुनि सज्काय संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१एए) ॥ अथ इलापूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ नांमश्लापुत्र जांणिय, धनदत्तसेठनो पूत ॥ नटवी देखी रे मोहियो, नहि राखे घरसूत ॥१॥ करम न छूटे रेप्राणिया पूरब नेह विकार ॥ निज कुल बंमी रे नट थयो, नाणी सरम लिगार ॥ क० ॥ २ ॥श्क पुर आयो रे नाचवा, जंचो वंस विशेष ॥ तिहां राय जोवा रे आवियो, मिलिया लोक अशेष ॥ क० ॥३॥ दोय पग पहरी रे पावमी, वंस, चढयो गजगेल । निरधारा ऊपर नाचतो, खेले नवनवा खेल ॥ क० ॥४॥ ढोल बजावे रे नाटवी, गावे किन्नर साद ॥ पायतल घूघर घमघमें, गाजै अंबर नाद ॥ क० ॥ ५॥ तव तिहां चिंते रे राजियौ, लुनध्यो नटवी रे साथ ॥ जो नट पमै रे नाचतो, तो नटवी मुक हाथ ॥ क० ॥ ६॥ दांन न आपै रे जूपती, नट जांणे नृप वात ॥ हूं धन वंबु रे रायनो, राय वं मुफ घात ॥ क० ॥ ॥ तिहांथी मुनिवर पेखियौ, धन २ साधु नीराग ॥ धिक् २ विषया रे जीवने, मन आण्यो वैराग ॥ क० ॥७॥ संबर लावै रे केवली, ततखिण कर्म खपाय॥ केवलि महिमा रे सुर करै, समयसुंदर गुण गाय ॥क० ॥ए॥ इति ।। ॥ अथ मेघकुमार मुनि सज्झाय लिख्यते ॥ वीरजिनंद समोसरया जी, वंदे मेघकुमार ॥ सुणी देशन वैरागीयौ जी, ए संसार असार रे मायमी ॥ अनुमति द्यो मुक आज ॥ संयम विषम अपार रे ॥ मा० ॥ अ० ॥१॥ व तूं केणे नोलव्यौ रे,श्रेणिक तात नरेस ॥ कां ऊणौ किण दूहव्यो रे, हूं नवि द्यु आदेश रे जाया ॥ संयम विष ॥ किम निरबा For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६०) हिस नार रे जाया ॥ हूं न० ॥॥ आदि निगोदे हूं रुट्यो जी, सहिया पुरक अणंत ॥ सासोश्वासें नव पूरीया जी, तेह न जाणू अंत हे ॥ मा० ॥ १०॥३॥ हिवणा तूं बालक अ जी, जोवन नखो रे कुमार ॥ आठ रमणि परणावियो रे जोगवि सुरक अपार रे जाया ॥ हूं नवि० ॥ ४ ॥ जनम मरण निरयातणौ जी, उरक न सहियो जान ॥ वीरजिणंद वखापियो जी, ते मै सुणियौ कान हे मायमी ॥ अ॥५॥ वर कांचलीय जीमणो जी ॥ अरस विरस आहार ॥ लुश पाला नित हीमणो जी, जाणसि तुझ कुमार रे जाय ॥ हूं न० ॥६॥ जमतां जीव अनंत जम्यो जी, धर्म मुहेलो होय ॥ जरा व्यापे जोवन खिसे जी, तब किम करणो होय रे मायमी॥ ॥ ॥ मृगनयणी आवे रमे जी, तो नवसर हार ॥ जोवनजर बोरू नही जी, कांई मूको निरधार कुमारजी॥ हूं न ॥ ॥ हंस तूलिका सेजमी जी,रूप रमणि रस जोग ॥ अतहि सुंहाली देहमी जी, किम दुय संजम जोग रे जाया ॥ हूं न ॥ ए॥ स्वारथनो सहू ए सगो जी, अरथ पखे सहु कोय ॥ विषय विषम महुरा कह्या जी, किम जोगविये सोय हे मायमी ॥ अ० ॥१०॥ खमि ३ माउ पसाय करी जी, में दीधुं तुझ पुरक ॥ दिउँ आदेस जिम टुं सुखी जी, वीर चरणे ट्युं दीरक हे ॥ मां ॥ १० ॥ ११॥ तन फाटे लोयण करे जी, मुख न सहणा जाइ ॥ वह सुखी दुवो तिम करो जी, में दीधो आदेस रे जाया ॥ संयम वि० ॥१५॥ मणि माणक मोती तज्या जी, तोड्यो नवसर हार ॥ मृगनयपी For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६१ ) ० रमे जी, विह्म कवण आधार नरेसर || संयम ॥ १३ ॥ कुमर जलै सुकुलीश्रिया जी, बहु दुख ए संसार ॥ नेह तुमारो जांगियो जी, जो व्यो संयमनार रे नारी ॥ सँय ॥ १४ ॥ रथ सिविका तब सकी करी जी, कुंवर धारणी माय ॥ श्रेणिकराय व करै जी, चारित्र त्यो रिषिराय रे जाया || सं० ॥ १५ ॥ इम जांगी वैरागियौ जी, वरजै जे नर नारि ॥ करजोमी पूनोजणे जी, ते तरस्यै संसार हे मा० ॥ ० ॥ १६ ॥ इति मेघकुमार सि० ॥ ॥ अथ असिज्झाइ निर्णय सज्झाय ॥ श्रावण काती मिगसर मास, पहिली परुवा तीन विभास ॥ चौथी पhar वदि वैसाख, च्यार पुहर सिकाइ जाख ॥ १ ॥ जां लगि होली ऊमे वार, धुंवर परुती दुवै जिवार ॥ जां परचक्रनो जय नवि जाय, तां लग सिकाई कहिवाय ॥ २ ॥ धूलवृष्टि ने केस पाखांण, वरसै तां लग सिज्जाई जांए || ऊँ मल्ल मांहोमांहि जांम, तां लग सिकाई तिए गंम ॥ ३ ॥ जूपति परजव पोहतो होय, जां लग पाट न बैसे कोइ ॥ तां लग बोली वे सिकाइ, सहुको सरदहज्यो मन मांहि ॥ ४ ॥ Tantra ने दिगदाह, एक पोहर सिकाई थाय ॥ निवल मेह तिम जांणो सही, व पहोर सबल जल कही || ५ || चैत्र सुदि पांचम दिन की, परिवा लग सिकाइ वकी ॥ परिवा बीज तीज चांदणी, समीसांक सिकाई गिणी ॥ ६ ॥ आषा नक्षत्र न लागै जांम, गाजवीज असिकाइ ताम ॥ गाज वीज जो हुवे काल, असिकाइ बे पुहर संजाल ॥ ७ ॥ ब्रु० ११ For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६३) चंद्रग्रहण असिन्काई जणी,बारह पोहर उत्कृष्टी गिणी ॥ जघन्य प्रकारै आठ विचार, सूर्यग्रहण पोहर जघन्यै वार ॥ ७ ॥ सोल प्रहर उत्कृष्टी कही, सुगुरु मुखै नवियण सरदही।नगर प्रधान मरे जो कोश, आठ पुहर असिज्काई होय ॥ ए॥ वसतीश्रकी सातां घर माहि, नर विहमै अहोरति असिन्काई ॥ पुरुष पड्यो होय मृतकअनाथ, तां असिकाय कही सो हाथ ॥१०॥ पुत्रतणे प्रसवै दिन सात, बेटी आठ दिवस विदात ॥ सो कर मांहि कही असिकाई, नारी ऋतु दिन तीन कहाश् ॥ ११ ॥ इंको फूटै प्रसवै गाइ, जां जर रुधिर पमै तिन गइ ॥ असिज्जा सो कर मांहि, त्रिएह पोहर के ऊपर नही ॥१२॥ असाढे चौमासै दिने, पमिकमणा गयाथी गिणे ॥ बार पोहर असिकाई कही, काती चौमासै इण परि सही ॥ १३ ॥ इण पर असिकाई बै बहू, गीतारथ गुरु जाणे सहू ॥ सांजलि ए में कही संखेवि, हरखै पय प्रनू कीजै हेवि ॥ १५ ॥ अंतवर्ग अंतदर जे, च्यार मात्रदीजे तेह ॥ सत्तम वर्ग बीअं अदरै, तब कबि नाम कहियो इण परै ॥ १५ ॥ इति असिकाइ सिकाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ बावीस अभक्ष सज्झाय लिख्यते ॥ जिनशासन रे सूधी सरदहिणा धरो, श्रीगुरुमुख रे नव तत्व ए निरता करो ॥ मिथ्यामत रे कुमति कदाग्रह परिहरी, सहि पालो रे ते नर समकित मन खरो ॥ १॥ तूटक ॥ मन खरौ समकित शुद्ध पालौ, टालो दोष दया परो ॥ धुरि पंच अणुव्रत तीन गुणवत, च्यार सिदाव्रत धरौ ॥ श्म देशविरती For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६३ ) क्रिया निरती, सुखो जविया मनरली ॥ दाखविए गुण परह केरा, दोष सम काढौ बली ॥ २ ॥ मम काढो रे लोजी नर कूमौ करौ, जांणी सावद्य रे अजद बावीसे परिहरौ ॥ वम पीपल रे पिलखण ने कटुंबरो, जंबरफल रे रखे तुमें जक्षण करो ॥ ३ ॥ उवालो | रखे तुमें जक्षण करौ मांखण, मद्य मधु श्रामिषतो ॥ मितो | विष हेम करहा बंकि परदा, दोष मूल माटी || परिहरो सजन रयणीजोजन, प्रथम पुरगति वारणौ ॥ मम करौ व्यालू ति सूरौ, रविनदय विन पारणो ॥ ५ ॥ थारे अनंतकाय सव निमिय ए, काचागोरस रे मांहि कठोल न जिमिये ॥ एह वेंगए रे तुछ फला सवि बांक ए, आपण रे व्रत लीधो नवि खंम ए ॥ ए ॥ तूटक ॥ नवि खंमए व्रत नियम लेश, वे फल व्रत जंगनौ । अज्ञात फल बहुबीज जोजन, चलित रस होय जेहनो ॥ संवर आणी अन जानी, जो बावीस ए ॥ गुरु वयण विगतें वली पूग्यौ, अनंतकाय बत्तीस ए ॥ ६ ॥ अनंती रे कंद जाति जाणो सहू, जसु क्षण रे पातिक बोया बहू || कचूरौ रे हलदनी दूं वली ॥ वजचूरण रे कंद बहूं कुंवली फली ॥ ७ ॥ तूटक ॥ कुंमली फली कुंवली वीज पाखै, चाखै चतुर नर श्राविली ॥ रतालु पिंकालु थेग थोहर, सतावरी लसण कुली ॥ गाजर मूला गिलौ ए गण विरहाली दुकवद्युलौ, पल्यंक सूरण वाल वीली मौथ नीली सांजलौ ॥ ८ ॥ वंसकारेला रे कुंपल कवला तरुणा, अंकूरा रे लोटा ते जलपोयणा ॥ कुमारी रे जमरवृक्षनी बालमी, जे कहिये रे लोके अमृतवेली ॥ ए ॥ वेखकी तानु ताजा For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६४ ) खिलोमा ने खरसुश्रा, जूय जूंफोमा बत्रा कार जांणौ नील फल सेवे जूझा ॥ बत्तीस बोल प्रसिद्ध बोल्या लक्ष्मीरतन सूरि इम कहे, परिहरे जे नर दोष जांली प्रांणी ते सवि सुख बहे ॥ १० ॥ इति बावीस न सकाय सं० ॥ ॥ अथ गजसुकमाल सज्झाय ॥ ॥ संवेगरसमे कीलता, मनसुं करे आलोच ॥ देखीने दोहग टलै, तासु साध्यो रे में करि लोच ॥ १ ॥ यादवराय धन २ गजसुक माल, तेहने करूं रे प्रणाम त्रिकाल ॥ या० ॥ यांकली ॥ प्रजू पासे संयम श्रादखौ, तेहनो ए परिणाम ॥ मन वच काया वसिकरी, जो हूं पामूं रे केवलज्ञान ॥ २ ॥ या० ॥ मुनि मुगति जायवा लजयो, परुषैन दिन दस वीस ॥ साहसीक इम उच्चरतो, पिए दिन जावे रे तो बेह दीस ॥ या० || ३ || समसां जाय का सग्ग रह्यौ, तिए सांकि प्रजुने पूर ॥ मुनिवर वर इम चिंतवै, एहनें साची रे वे मुंह मंत्र ॥ या० ॥ ४ ॥ मुऊ सुता विन अवगुण तजी, सौमिल अगनि प्रजाल ॥ सिगमी रचि सिर ऊपरै, चिहुँ दिसि बांधी रे माटीनी पाल || या० ॥ ए ॥ वेदना जिम अधिक वधै, तिम वधै मन परिणांम ॥ चवदमें गुणगणें चढ्यो, मुनिवर पांमी रे केवलयांन ॥ या० ॥ ६ ॥ देवकी जांमणने थई, ते रयण वरस हजार ॥ वांदवा वी प्रह समें, पिए नवि देखे रे प्रांण - धार ॥ या० ॥ ७ ॥ पूछतां प्रभु मांझीं करी, रातिनी वीतग वात || हरि देखी हियको फूटसी, तेणें कीधो रे ऋषिजीनो घात ॥ या० ॥ ८ ॥ उपसम सुधारस सेवतां, पांमियो वि For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६५ ) चलराज ॥ मनरंग साधु महंतना, गुण गावे रे श्रीजिन राज ॥ या० ॥ ए ॥ गज० सं० ॥ अथ प्रष्णचंद्र सज्झाय ॥ ॥ राज टंकी रलियामणोरे, जांणी थिर संसार | वैरागे मन वालियो, कांइ लीधो संजम जार ॥ प्रष्णचंद प्रभूं तुमारा पाय, तुमे मोटा मुनिराय ॥ प्र० ॥ १ ॥ वनमांहे का सग्ग रह्यो रे, पग ऊपर पगठाय ॥ बांह बेळं उंची करी, सूरज सांमी दृष्टि लगाय ॥ २ ॥ प्र० ॥ श्रेणिक वंदन नीसस्यो रे, वीरजीने वंदन जाय || देइ तीन प्रदक्षिणा, त्रिविध २ खमाय ॥ प्र० ॥ ३ ॥ 5रमुख दूत वचन सुणी रे, कोप चढ्यो ततकाल ॥ मनसुं संग्राम मांगियो, जीव पड्यो जंजाल ॥ प्र० ॥ ४ ॥ श्रेणिके प्रश्न पूबियो रे, एहनी सी गति थाय ॥ जगवंत कहे हिवणां मरे तो, सातमी नरके जाय ॥ प्र० ॥ ५ ॥ खिए इक अंते पूछियो रे सर्वार्थसिद्धि विमांन ॥ वाजी देवनी 55जी मुनि पांग्या केवलज्ञान || प्र० ॥ ६ ॥ प्रष्णचंद मुनि मुगते गया रे, श्रीमहावीरना शिष्य || रिहरख कहे धन्य ते, जिए दीठा रे परत ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ पंडित श्रीजेतसी मुनिकृत दशवैकालिक सझाय लिख्यते ॥ ॥ मुनि वृपज श्रीमनक मुनयेनमः ॥ श्रीदशवैकालिकसूत्रकृत् चतुर्दशपूर्वघर श्री शय्यँजवसूरिं वंदे ॥ ॥ तत्र प्रथमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ धर्म मंगल महिमानिलो । धरम समो नहीं कोय । धर्म For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६६) सूधे नमें देवता । धरमें शिवसुख होय ॥ १॥ "धर्म मंगल महिमानिलो” जीवदया नित पालीये । संयम सत्तर प्रकार । बारे जेदें तप तपें । धर्म तणो ए सार ॥॥ धर्म ॥ जिम तरुवरने फूलमे। जमरो रस ले जाय।तिम संतोषे साधु आतमा। फूल पीमा नवि थाय ॥३॥ धर्म ॥ इण विधि विचरे गोचरी । वहिरे शुद्ध आहार । ऊंच नीच मध्यम कुले । धन धन ते अणगार ॥ ५ ॥ धर्म ॥ मुनिवर मधुकर सम कह्या। नहिं निश्रा नहिं लोन । साधे लामो यें देहीनें । अणलाधे संतोष ॥ ५॥ धर्म ॥ अध्ययन पहिलो द्रुमपुष्फीने । सखरा अरथ विचार । पुन्य कलस शिष्य जैतसी। धर्मे जय जय कार ॥ ६॥ धर्म ॥ इति श्री प्रथमाध्ययन सकाय सं० ॥ ॥ अथ द्वितीयाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ दीदा दोहिली आदरी जी । काम लोग फल गंम। संकटपवसे उख पग पगे जी। वैरागें रंग मांग ॥१॥ मुनीसर धन धनते अणगार । नोगतजी जोग आदरे जी। तेहने हुँ वलिहार मुनीसर धन धनते अणगार ॥२॥ मनवाले जूतो चूकतो जी। नकरे ढील लगार । जाणे न को जग केहनो जी कुंण ढुं कुंणते नारि ॥ मुनी ॥३॥ करिआतपना आकरी जी। कोमल मकरे देह । राग देष तजी पाडूआ जी। जिम सुख पामे अछेह ॥ मुनी ॥ ४ ॥ अग्निकुंम जलतें पके जी। अगंधन कुल साप । वम्युं न वांचे विष वलि. जी । तिम आपणे कुल चाप ॥ मुनी ॥ ५॥ धिग धिग तुं जस वांबतो जी। वांछे वम्युं आहार । जीवाश्री मरवो नलो जी। निर्लज For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६७ ) न लाजे लिगार ॥ ६ ॥ मुनी० ॥ नारि सारि पारकी जी । देखी देखी मत जूल | वाक ऊकोट्या तरूपरे जी । श्रथिर हु इस मुखीर ॥ ७ ॥ मुनी० ॥ जिमहाथी अंकुश वशे जी । थिर वाम आवे तेम राजी मती सती बुकव्यो जी । स्थिराम श्रव्यो रहनेम ॥ ८ ॥ मुनी० ॥ अध्ययन सामण पुधिया जी । सखरा विचार | पुन्यकलश शिष्य जैतसी जी । प्रणमे सूत्र सुखकार || || मुनी० ॥ इति श्री द्वितीयाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ तृतीयाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ 1 ॥ सुधा साधु निग्रंथ | साधे मुक्तिनो पंथ । यतम संबो ए । संबर दो ए ॥ १ ॥ दूषण टाले दीख तेहनें एहवी शीख | वीर जिनवर कहे ए । मुनिवर सरद हे ए ॥ २ ॥ उदेशक आदि देय | एहवा पिंक न लेय। कृतकम जालिये ए । साम्हो ये || ३ || लेवेन राईजत्त । न जीमें गृहिनें पत्त । राय पिंक न आदरे ए । सज्यातर परिहरे ए ॥ ४ ॥ राखे न संनिधि राय । दान शाला नवि जाय । वाय न वींजणों ए । राग न जणों ए ॥ ए ॥ चोवा चंदन चंपेल । तन न लगा तेल । जोवे नहिं आरशी ए । ते गुरु तारसी ए ॥ ६ ॥ खेले न पासा सार । ते किम बोले मार । छत्र नवि शिर धरे ए । गृही संगति परिहरे ए ॥ ७ ॥ मांचां खाट पलंग । तजे चिकित्सा अंग । जूती नवि पगतले ए । जीवदया पले ए ॥ ८ ॥ श्रदरे तीन रतन्न । बोने तीन जन्न | कोम कोम मोलना ए । गनि जल अंगना ए ॥ ए ॥ मूला आदि कंद मूल । सचित्त बीज फल फूल । तजे तिम सेलमी ए । लूंए । For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६०) धूप न वी ए ॥ १० ॥ वमन विरेचन कर्म । करी न गमावे धर्म । दांते दांतण न घस ए। न लगामे मिसि ए ॥११॥ पहिरे नहीं हीर चीर । सोना न करे शरीर । पीठी न मंजणि ए । आखिन आंजणि ए ॥ १२ ॥ सूत्र में बावन बोल । वरजे साधु अमोल । तप किरिया करी ए।पुहचे शिवपुरी ए॥१३॥ नामे ए खुड्डीयार । अजयण तीजो सार । अरथ अनेक ने ए । जैतसी मन रूचे ए ॥१४॥ इति तृतीयाध्ययन सकाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ चतुर्थाध्ययन सझाय लिख्यते ।। ॥ महावीर लाख्यो एम । सामि सुधरमा उपदिसे । जीहो मुनिवर महावीर जाख्यो एम । सुण सुण जंबु तेम । चोथो अजयण जीवनो जीहो मुनिवर महावीर नाख्यो एम ॥१॥ सुण सुण जंबू तेम । पृथवी अप तेऊ वाऊ वनस्पति त्रस जांगिये । जीहो मुनिवर । पृथवी अप तेऊ वाऊ वनस्पति बस जांणियें । एह गए जीव निकाय । हिंसा टाली दया पाली ये । जीहो मुनिवर ॥२॥ महाव्रत पांच सदैव । वली गे व्रत पाली ये । जीहो मुनिवर । महाव्रत पांच सदैव । वली बगे व्रत पाली ये । त्रिबिधे त्रिविधे जाव जीव । गरही निंदी पमिक्कमि । जीहो मुनिवर ॥ त्रिविधे त्रिविधे जाव जीव गरही निंदी पमिकमि ॥३॥ शिष्य पूरे लेई दीख । किम चालुं बोलुं किम रहूं। जीहो मुनिवर । शिष्य पूरे लेई दीख । किम चालु बोलुं किम रहुँ । समजावे गुरु शीख । जयणायें चालो बोल जेरे । जीहो For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६५) मुनिवर ॥ समजावे गुरु शीख । जयणायें चाले बोल जेरे ॥४॥ए जिनसास न सार प्रथम ज्ञान पनी दया पाल जोरे । जीहो मुनिवर ॥ एजिन । जीवा जीव विचार । जाणे अनुक्रम ज्ञानथी । जीहो मुनिवर ॥ ५ ॥ जाणे ॥ केवल दंसण झान । पामे कर्म खपायने । जीहो मुनिवर ॥ केवलम् ॥ हमें लहे सिद्ध थान । अजर अमर सुख सासता । जीहो मुनिवर ॥६॥ हमे ॥ अजयण उजीवणिया नाम । सुणतां तनमन ऊबसें । जोहो मुनिवर । सरदहे सुछ परिणाम । पुण्य कलश शिष्य जैतसी जीहो मुनिवर ॥ ७ ॥ महावीर लाख्यो एम । इति चतुर्थाध्ययन सकाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पंचमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ तुंगीयागिरि शिखर सोहेर ॥ ए देशी ॥ ॥ पंचम पिमेषण अफयणे। उद्देशा बेसार रे। विधिसुं आणी जात पाणी । करो तरो संसार रे॥१॥दीख पालो दोप टालो। धरो ध्यान समाधि रे । सूत्र साचो अरथ आगे। नणो वाचो साधरे॥॥ संचरे मुनि गोचरीने । नगर गाम मकार रे । जीव निहाले दया पाले। बोले हसे न लिगार रे॥३॥दी॥श्रशन पाणी खादिम स्वादिम । सूझता ट्ये जेह रे। असूझते मुनि दोष जाणी। कहे न कलपे तेह रे ॥४॥दी०॥ काय मरदी साधु अरथे। कीया नोजन जेह रे । तेह नगर जे जती वरजे । सूआवम आदि देरे ॥५॥ दी० ॥ पिकनिषेध्या कुल निषेध्या। तजे नजे निरदोष रे । मुधा दाई मुधा जीवी बेऊ जावे मोखरे ॥६॥ दी॥ For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) विधिलेवे विधि आलोवे विधिकरे आहार रे । लूखो सूखो अरस नीरस हीवेनहीं लिगार रे ॥७॥ दी० ॥ काले आवे काले जावे । विचरे नहीं अकाल रे । काले काल समाचरे जे। वांछ साधु त्रिकाल रे ॥७॥दी॥जात पाणी सयण आसण । बता न देवे जेहरे । जती रती तसु रोष न करे । निंदे वंदे सम एहरे ॥ ए॥ दी०॥ तप चोरनें वय चोरादिक। हुवे किलवीषी देवरे । मुर्गति दुर्लल बोध जांणी । धरम मारग सेव रे ॥१०॥ दी० ॥ शिष्य शिक्षा ग्रहें निदा । ते लहे सिव लोय रे । जैतसी कहे शास्त्र मांहे, बोल बहु ने जोय रे ॥ ११॥ दी० ॥ इति पंचमाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥ ॥अथ षष्टाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ वैरागी नीरागी हो सूधा साधुजी । दसण नाण संपन्न वनवामी मांही आवि समोसया । सुमति गुपती प्रतिपन्न ॥१॥ वैराण ॥ मिल मिलराजा हो राजाना मुंहता । ब्राह्मण दात्रिय लोक । साधुनें पूरे हो किम ने ताहरो । आचार गोचर लोग ॥२॥ बैरा ॥ मुनिवर पनणे हो मारग साधुनो। कठिन आचार विचार । हुयो न हुस्ये हो धरम को इण समो । मुगतितणो दातार ॥ ३ ॥ वैरा ॥ षट् व्रतपाले हो उकाय राख तो। नहीं नाहण सिंणगार । पलंग निषेध्या हो गृही नाजन तज्या अकटपथान अढार॥४॥ वैराण ॥ तेल लूण गुलथी हो संनिधि जेकरे । ते गृही नहीं अणगार नित्य तप जाख्यो हो एकवार लोजने । वरजे विसन विकार ॥ ५॥ वैरा ॥ वस्त्र पात्र राखे हो संयम राखवा । नधरे ममता प्रेम । विभूषण For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७१ ) करतां हो करे बंध चीकणो । कप कहने केम ॥ ६ ॥ वैरा० ॥ जीवदया पाले हो । पग पग दिन समे । वरजे रातविहार | एक काय हणतां हो स श्रावर हो । लहे दुर्गति अवतार || 9 || वैरा० ॥ तप जप करणी हो दुःख हरणी करे | निरमम निरहंकार | संवेगी सोजागी हो चंद सम निरमलो । पुहचे मुगति मकार ॥ ८ ॥ वैरा० ॥ उगे अति मीठो हो लागे वाचतां । जलो धरमारथ काम । नामें सुख पामें हो जैतसी आतमा जलसे मनपरिणाम || वैरा० ॥ ए ॥ इति षष्ठाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥ I ॥ अथ सप्तमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ साधु बूकोरे । जाषा सुमति विचार । जाषा चिंहुं नेदे करी ॥ सा० ॥ सच्च सच्चा मीसा समोसा चोथी कही ॥ १ ॥ सा० ॥ वोले निरवद्य वांणी सच्च सच्चामोसा वलि ॥ सा० ॥ २ ॥ जाबो जापन वेय । बीजीनें त्रीजी वलि ॥ २ ॥ सा० ॥ निचे कठिन कठोर संकित सावद्य संजवे ॥ सा० ॥ जिएथी लागे पाप । तेहवी वाणी न संजवे ॥ ३ ॥ सा० ॥ चोरनें न कहे चोर । न कहे कांणो कांणा जी ॥ सा० ॥ पर पीमा हुवे जेण । वाणी तेहवी न बोलणी ॥ ४ ॥ सा० ॥ साधुन कहे साधु । साधुनें साधु बोलाव ज्यो ॥ सा० ॥ सुरनर पसुहार जीत कहि दोष न लावज्यो ॥ ९ ॥ सा० ॥ वक्क सुधी कयण | बोल घणा बे सातमे ॥ सा० ॥ लागे जिथी पाप । मपक तूं इस वात ॥ ६ ॥ सा० ॥ दस विध बोलो साच | श्री अरिहंत आज्ञा बे इसी ॥ सा० ॥ पुण्यकलश For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७२ ) गणी सीस | सूत्र रागी जो जैतसी ॥ ७ ॥ सा० ॥ इति श्री सत्तमाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथाष्टमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ जिनवर गणधर मुनिवरनें कहेरे । हिंसा टालीनें दया पालरे । जू जूवा जीव जांणी उक्कायनारे | पग पग जया करतो चालरे ॥ जिन० ॥ १ ॥ टाले सूक्ष्म आठ विराधनारे | बोमी मदमत्सर परमादरे । तप जप खप करी काया सुखवी रे । जीते इंद्रिय विषय सवादरे || २ || जिन० || जरा न करे देहा जाजरीरे न वधे रोग पीमा घटमाहिरे | इंडीहीए पके नहीं जांलगरे तां लगि धरम करमनो उत्साहरे || ३ || जिन० ॥ क्रोधे वैर वढे घटे प्रीतकी रे । माने विघटे विनय आचार रे । माया वासर ने गमे रे । लोने विसे सदु संसार रे ॥ ४ ॥ जिन ० ॥ ज्योतिष निमित्त सुहना फल कहे रे। मंत्र तंत्र जागा जूमा देइरे | कांमण मण षध केलवे रे । किम तरस्येंने तारस्ये केमरे ॥ ९ ॥ जिन० ॥ चीत जीत न जोवे नारी चीतरी रे | वाले लोचन रवि जिम तेज रे । हीली खीली वली सो वरसनी रे । तिहां पण व्रतधर न करे हेजरे ॥ ६ ॥ जिन० ॥ कुकमी aan करे बिल की रे । मरे ब्रह्मचारि नारी शुं तेम रे । सिणगार सोना पटरस खायवोरे। तालपुट जहर हलाहल जेमरे ॥ ७ ॥ जिन० ॥ वसही सयणा सण पाय पूरणो जी । पहिलेही लेग्यो सेवा जोगरे । धन धन मुनि ते चंद सूहरु समारे । लहे सुख इह लोगरे ॥ ७ ॥ जिन० ॥ श्रचार पणही नाम मेरे । श्रवमे सखरा आचार रे । सिद्धांतरी साखे नाखे For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७३ ) जैतसी रे | सूत्री ज्यो मुज निस्तार रे ॥ ए ॥ जिनवर० ॥ इति ष्टमाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ नवमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ 1 ॥ जलगमी उलगमी करिये गीतारथ गुरू ती रे । मान मोमी मद बोकी । सातना असातना टाली नमियें पूजीयें । वंदिये कर जोक | जेलगमी० ॥ १ ॥ सिद्धांत सिद्धांत सुणावे सखरा वांचने रे । बूकवे अरथ विचार | इंद्र चंद्र चंद्रसूर जिम सह गुरु सेवी ये रे । विनय करी वारं वार | उं० ॥ २ ॥ नवमे विनय समाहि अजे मेरे । नव नवा अरथ विचार | उसे उसे चोथे थिवर वरण व्यारे । समाधि थानक घ्यार । ॥ जं० ॥ ३ ॥ पहिली पहिली विनय समाधि विधिजली रे । बीजी सूत्र समाधि । त्रीजी तप २ चोथी आचारनी रे | च्यार जेद श्रराधि ॥ जं० ॥ ४ ॥ समाधी समाधी राधे O सुख सिलहे रे । अजर अमर पद देव । बेकर जोमी बेकर जोमी वांदे जेतसीरे । गुणवंत श्रीगुरूदेव ॥ ए ॥ जै० ॥ इति नवमाध्ययन सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ दशमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ || ढाल || अरिहंत वचने दीक्षा दी जी । निरूपम रस जाए । दसम निक्षुनाम अजय में जी वम्यु न वांबे सुजाए ॥ अरि० ॥ १ ॥ प्रथवी न खणे खणावे नहीं जी । पीवे न पात्रे सीतल नीर | जालेन जलावे तेऊ कायनें जी । वींजे न वीं जावे समीर | ० ॥ २ ॥ वेदे न वेदावे तरूहरी कायनें जी । वरजे बीज सचित्त । पचे न पचावे जोजन रसवती जी । 0 For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७४) तस पावर विध चित्त ॥ अरि० ॥ ३ ॥ पांचे व्रतपाले पांचइंजी दमे जी। गाम कंटक सहे धीर । रहे समसांणे पमिमा पभिवजे जी। तजे प्रतिबंध सरीर ॥ अरि ॥ ४ ॥ राग ष मदमत्सर माया परिहरे जी। नकरे विणज व्यापार । तजे तमासा हासा मसकरी जी। वांजे नहीं सतकार ॥ अरि॥५॥ सरम न लाखे धरम नाखे नलो जी। पामे परम पद सादि अनंत । आतम ध्याने आतम नघरे जी। वाचे सूत्र सिद्धांत ॥ अरि० ॥ ६॥ श्रीसिनवगणधर रच्यो जी । दसवैकालिक सूत्र । सखरो आचार प्ररूप्यो साधुनो जी। मनक तास्यो निज पूत ॥७॥ संवत सतर सतोतर समें जी। बीकानेर मकार पाठक पुण्यकलसगण । शिष्य जैतसीजी सिकाय रचि सुखकार ॥ ॥ अरि ॥ इति दसमाध्ययन सकाय संपूर्णम् ॥ ॥अथ कलस लिख्यते ॥ ॥ दसवैकालिक सूत्र सुहामणो रे । रच्यो सिङनव स्वाम। अफेण व्यालु वेला दसे हुवा जी। तिण दीयो एहवो नाम॥१॥ दसवैकालिक सूत्र सुहामणो रे । ऊपर चूलिकावे रलीयामणी रे। जिम मेरू सिर चूल । सीमंधर स्वामी नणी जदणी जणी रे । सखरी चे वात समूल ॥ दस ॥ ५॥ अढारे ाणा हो पहिली चूलिकारे । जाणों चतुर सुजाण । हय गय वाहण रसी अंकुश सढेरे । वसी हुवे मुनि तिम गण ॥ दस० ॥ ३ ॥ अरती ने वारे विरती आदरे जी। लोपे नहीं जिन लीक । तप जप खप किरिया करे। ते वंदनीक पूजनीक ॥ दस ॥४॥ चूलिका बीजी बोध बीज संपजे रे । वीजी तीजी वात । मुनि. For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७५ ) वर समता जर संबर रमे रे । धरमे जीनी सात धात || दस ॥ ५ ॥ संवेगी सोजागी वैरागी जती रे । पाले निरमल सील । केवल दंसणपामी जवजल तरी जी पामे विचल लील || दस० ॥ ६ ॥ सुतां जातां सिद्धांत वाचतां जी । जलसे अंग अंग । नव नव मंगल पुण्य कलस सदा जी । जयतसी जय जय रंग ॥ दस० ॥ इति श्री दसवैकालिक सूत्र सजाय पंकित जयतसी जी कृत संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्रीद्विमुखराजानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ नयरी कपिलानो धणी रे । जय राज गुण खाणी । न्याये नित पाले प्रजा रे । गुणमाला पटराणी ॥ १ ॥ डुमूहराय वीजो प्रत्येकबुद्ध | वैरागे मन वालियो रे । समकित पाले सूख ॥ ६० ॥ धरती खणतां निसर्यो रे । मुगट एक अभिराम मुख ॥ बीजो प्रतिबिंबी यो रे ति विमुखहुवो नाम ॥ 5० ॥ २ ॥ मुगट लेवा मांमीयो रे। चंरुप्रद्योत संग्राम | पिए अन्याय कृशीलीयो रे । किम सरे तेनां काम || 5 || ३ || इंद्रधन प्रति सिगारीयो रे । जोतां त्रिपत न थाय । सकल लोक खेले रमे रे । महोत्सव मांड्यो राय ॥ 5० ॥ ४ ॥ तिहां जाइ इंद्र धज देखीयो रे । पड्यो मलमूत्र मक्कार । हा हा शोना कारमी रे । ए सहु थिर संसार || 5 || ९ || बैरागे मन वालियो रे लीधो संजम जार । तप संजम कीधा करा रे । पाम्या जवनो पार || 5० ॥ ६ ॥ वी जो प्रत्येक बुकव्यो रे । डुमूह नामे रिषिराय । समय सुंदर कहे साधुने रे । नित नित प्रणमुं पाय ॥ 5० ॥ ७ ॥ इति विमुखराजानी सजाय संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५६) ॥ अथ नमीराजानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ नयर सुदरसण राय । होजी मणिरथ राज करे तिहां । कीधो सबल अन्याय ।होजी जुगबाहु बंधव मारीयो।॥ १॥ मयण रेहा गइ नाश होजी जायो पुत्र उद्यानमें । पमीय विद्याधर पास । पण शील राख्यो सावतो। पदमरथ नूपाल ॥॥ होजी घोमे अपहयों आवीयो । तेणे ते लीधो बाल । होजी पुत्र पाली मोटो कीयो । शत्रु नम्या सदु ताम ॥३॥ होजी नमी एवं नाम थापीयुं । श्रयो मिथिलानो राय हो जी सहस अंतेजरसुं रमे । दाघज्वर चढ्यो देह हो जी करमथकी लूटे नहीं । अथिर सडु रिछि एह । होजी नमी राजा संजम लियो । इंश परख्यो आप ॥५॥ हो जी चढते परिणामे चढ्यो । प्रणम्या सुरनर राय । हो जी समयसुंदर कहे साधुना । नित्य नित्य प्रणमुं पाय ॥६॥ इति नमीराजानी सकाय सपूर्ण ॥ ॥ अथ नभगति राजानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ पुंडपुर वर्धन राजीयो । म्हांकी सहीयर सिंहरथ नाम नरिंदरे । इकदिन घोमे अप हो म्हांकी । पमीयो अटवी मांहीरे ॥१॥ परवत ऊपर पेरवीयो ॥ म्हांकी ॥ सतनूमिन श्रावास रे। कनकमाला विद्याधरी ॥ म्हांकी० ॥ प्रणमी प्रेम नवासरे ॥२॥ नगरी जणी राजा निसर्यो ॥ म्हांकी० ॥ नन गइ नाम कहाय रे। मारगमें आंबो मिट्यो ॥ म्हांकी० ॥ सुंदर फल फूल पान रे॥३॥कोयल करे टहुकमा म्हाकी॥ मांजर रही महकाय रे । राजा इक मांजर ग्रही ॥ म्हाकी० ॥ For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) तिम मंत्री प्रधान रे ॥ ४ ॥ वलतो राजा ते वढ्यो | म्हांकी ० ॥ वृक्ष दीगेवीवायरे | शोना सघली कारमी ॥ म्हांकी ० ॥ वीमें खेरु थायरे || ए || जातिस्मरण पामीयो | म्हांकी ० ॥ संयम पाले सूध रे । समयसुंदर कहे साधुने म्हांकी० ॥ चोथा प्रत्येक बुद्ध हो || ६ || इति च्यार प्रत्येक बुद्ध सजाय अंर्तगत जगति राजानी सजाय संपूर्ण ॥ ॥ ॥ अथ श्रीजिनकृपाचंद्रसूरि रचित प्रथम कषाय सझाय लिख्यते || क्रोध मकरसो जोला प्राणियारे । क्रोधश्री थाये क्रोम करनेसरे । आधि व्याधि वधे घीरे । धर्मनो रहे नहिं लव लेसरे ॥ १ ॥ बहुकाले जे तप जप आदरे रे । क्रोधथी खिमां खेरु धायरे | कुणाला नगरीना मुनि जालिये रे । क्रोधश्री पुरगतिमां ले जायरे ॥ २ ॥ दण दण मां जे क्रोध करे मुनि रे । पाप श्रमण ते कहिवाय रे । शिष्यना ऊपर क्रोधकरी थयो रे । चंरुकोशियो को जिनराय रे ॥ ३ ॥ पोताना आत्मगुण बाले सहि रे । पछे परनो घर बावंतरे | अग्निसमान जालो तुमे क्रोधने रे । जे त्यागे ते मोटा कहंत रे ॥ ४ ॥ अनंतानुबंध्यादिक च नेद थी रे । न लहे दरशन आदि समृद्धि रे । सूरि कृपाचंद्र कहे धारज्यो रे । हमाथी पामे अविचल रिघ रे । इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ द्वितीय कषाय लिख्यते ॥ मानव जव पामी करी जी । विनय करो निशिदीस । मान महा गज टालवाजी । जाखे श्रीजगदीस । चतुर नर मेलो बृ० १२ For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७७) माननी वात । जिम थाय सुख सात । च मे ॥ १॥ मोह महाराजा तणो जी । मान ए अंगज जाण । जाति मदादिक एहना जी। परिकर जाणो सुजाण ॥ च०॥ मे ॥२॥ मान तणे वस जे पड्या जी। तेहज रुट्या संसार । मान त्यागथी बाहूबली जी । पायो केवल सार ॥च ॥ मे ॥३॥ विनय श्री विद्या संपजे जी । समकित लहे सुखकार । चारित्र पाले निरमलो जी । पोहचे मुक्ति मकार ॥ च ॥ मे ॥४॥ रावण राज गमावीयो जी। जुर्योधन मुख लीन । प्रतिविष्णु नरके गयाजी । माननी संगति कीन ॥ च ॥ मे० ॥ ५ ॥ विनय मूल जिनधर्मनो जी। जाख्यो श्रीजिनराज सूरि कृपा चंत्र गुणस्तवेजी । विनय जाणो सिरताज ॥ च० ॥ मे ॥६॥ इति मान सहाय ॥ ॥ अथ मायानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ माया विषवेली।। एतो दे घरगतिमां ली। माया विष वेली ॥ ए आंकमी ॥ माया वेलमी मनमां उगी। आर्यव कीले उखेली॥१॥ मायावि०॥ माया काया जगमें कुती ममता मांहि कहेली ॥२॥ माया ॥ कपट दपट करि लोकने धूते । बहू रूपे जर मेली ॥ माया ॥३॥ आषाढ जूति ये माया मूंकी । लही सिव पद नी सेली ॥ माया ॥४॥ मबि जिनेश्वर पूर्व जवमे मित्रथी माया करेली॥ माया ॥ ५॥ स्त्रीतीर्थकर पाम्या तेहथी । उत्तम गुण गण मेली ॥ माया ॥६॥धूतारा बहुमायाकरके धूते जग जन हेली For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) ॥ माया० ॥ ७ ॥ माया त्याग करो गुरु संगे । कृपाचंद्र सुख बरेली || माया० ॥ ० ॥ इति मायानी सजाय || ॥ अथ लोभनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ राग जर्तरि ॥ लोन तजो जवि प्राणिया लोने सब गुण जावे खोजे सुख नवि हूवे कदा तो किम निज गुण पावे लो० ॥ १ ॥ सागर सेठ बहु लोजीयो नरक गयो निरधार मम्मण तिम बहूलाजन श्रयाडुरगतिना जरतार || लो० ॥ २ ॥ सुजुम चक्री साधन जणी लोन पिशाच ग्रहाणो मध्य समुद्रमां बूकीयो थयो नरकनो राणो ॥ लो० ॥ ३ ॥ सुखम लोज जिहां लगे शिव सुख जिलाषा लोन शत्रु दूरे करी केवलज्ञान प्रकाशा | लो० ॥ ४ ॥ च्यार जेद लोजना का जिएगएधर देवे तेहतजी लहे क्रम श्रकी निज गुणने सेवे ॥ लो० ॥ ५ ॥ च्यार कपाय निवारवा कपाय गंजण तप कीजे कृपाचं सूरि इम नणे वंचित फल लीजे ॥ लो० ॥ ६ ॥ इति लोन सकाय ॥ ॥ अथ दीवालीनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ हांरे मारे गम धर्मना साढा पचवीश देश जो ॥ ए देशी ॥ हांरे मारे दीवाली दिन आयो सजनी जाणजो । वीर जिनेश्वर अंतिम चमासी रह्यारे लो ॥ १ ॥ हारे मारे पावापु मां वसीया त्रिभुवन नाथ जो । सोले पहेर लगे देशना दीधी सुखकरुरे लो ॥ २ ॥ हांरे मारे पुन्यपाक्षराजा पूढे सुदानो अर्थ जो । जावी फलको पंचम आरानो सही रे लो ॥ ३ ॥ हांरे मारे गौतम स्वामीने मुक्या बोधन काज जो । अमावसनी रजनी ये प्रभुसिवपद वय रे लो ॥ ४ ॥ हांरे मारे For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८० ) या तत खितामजो | कल्याणक निर्वा पाठावलता गौतम यई जागृत थयारे श्री गौतम स्वामी लो ॥ ७ ॥ हांरे चोराव सुरपति एनो व सोकशुं रे लो || ५ || हांरे मारे जाएयो निर्वाणजो । वज्राहत परे मुर्छित लो ॥ ६ ॥ हांरे मारे विविध विलापकरे जो । वीतराग श्रई केवललनि पामीयारे मारे काशी कोसल देश तथा गणराय जो । अढारे मिलि पोसह विधि आदर्योरे लो ॥ ८ ॥ हांरे मारे जाव उद्योत गयां थकां द्रव्य उद्योत जो । रथए मुकीने दीवाली की तिन समेरे लो ॥ ए ॥ हांरे मारे गोतम केवल महिमा करे इंद्रजो । ना बीज जमाड्यो वेहनी ये जाइनें रे लो ॥ १० ॥ हांरे मारे दीवाली नो बकरी चौवीहारजो । सोल पहोरनो पोसतप आराधयेरे लो ॥ ११ ॥ हारे मारे गुणनो करी पर जाते मंगल काजजो । गौतम स्वामीनुं एकासो करे जावसुं रे लो ॥ १२ ॥ दीवाली पर्व लोकोत्तर लोकी कजो । परसिध थयो कारतिकवदी मासे रे लो ॥ १३ ॥ हांरे मारे पर्वाराधन करो जवि मनबरंग जो । जिनकृपाचंद्रसूरि कहे सुख संपति बरो रे लो ॥ १४ ॥ हांरे मारे० ॥ इति दीवाली सजाय ॥ ॥ अथ श्री पर्युषण पर्वनी सझाय लिख्यते ॥ || देशी यतनी ॥ सखी पर्व पजुषण याव्या । जविजनना मनमां जाव्या । एमां श्रश्रव पांच हटाव्या एतो सर्व जीव सुखपाव्या सनेही पर्व पजुषण सेवो। एतो सेवी शिव सुख लेवो । सनेही पर्व ० ॥ १ ॥ श्रीवीर जिनेश्वर जाखे । ए पर्व सेवो श्रुत साखे । श्रीप्रबाहु स्वामी दाखे । एतो कल्पसूत्र इम For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७१) आखे ॥ स ॥ पर्व० ॥२॥ आठ दीवस अमर पखावो । जिनचैत्ये पूजा रचावो । कल्पसूत्र घरे पधरावो । देवे रात्रि जागो नले जावे ॥ स० ॥ पर्व ॥३॥ रथ हय वर गज सण गारे । साशननी शोना वधारे । वाजिन ध्वनि मनुहारे । वर घोमो सजे दिल सारे ॥ स० ॥ पर्व० ॥॥ आनंबर करीने लावे । श्री कल्पसूत्र शुल नावे । सदगुरुने हाथे जावे। सुहव मिल मंगल गावे ॥ स० ॥ पर्व०॥५॥ सदगुरुनी मीठी वाणी । सुणो चल विह संघ गुण खाणि मनमा अति उवट आणी। संसार तरे नवि प्राणी ॥स० पर्वगा॥श्कवीश वार सुणी जे । पूजापरत्नावना कीजे । उ अच्म चौथकरी जे । सुणी वीर जन्म जस लीजे ॥सापर्व ॥७॥ आषाढ चोमासेथी जाणो। पचास दिवस पर माणो । संवबरी पर्व कहाणो । लाखे श्रीजिनवर जाणो ।स०॥ पर्व ॥ ७ ॥ श्म पर्व आराधन करीये । पंच कारण मनमां धरी । श्री जिनवाणी अनुसरीयें । कृपाचं सूरि जस वरीये ॥ स० ॥ पर्व०॥ ए॥ इति श्री पजुषण पर्वनी सकाय संपूर्ण ॥ ॥अथ बीजनुं चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥विविध धर्म जिनवर कह्यो । साधु श्रावकनो जाण । शिक्षा दोय सेवो सदा । ग्रहणा सेवन आण ॥१॥ धर्म शुक्ल उग ध्यान णे ध्यावो चतुर सुजाण । आर्त रोज दोय परिहो। त्रिकरण शुचि महिरान ॥२॥ अभिनंदन जन्म्या प्रन्नु । सुमति अर चविया । वासु पूज्य श्रया केवली । शीतल शिव सुख वरिया ॥३॥ सीमंधर युगमंधरा । वीस विहर मान होय । राग शेषनो त्याग करी । निश्चय व्यवहार जोय ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) वीज दिवस आराधिये ए । ज्ञान तिथी सुविहाण । सूरिकृपाचंज सेवतां । तपथी क्रोम कट्याण ॥ ५ ॥इति वीजतिथीनो चैत्य वंदन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री पंचमी चैत्यवंदन ॥ ॥ पांच ज्ञान प्रगटायवा । पंचमी तप सुप्रधान । आराधो नबि इकमने । प्रगटे ज्ञान निधान ॥ १ ॥ अवग्रहादिक जाणि यें । मति अघावीश सार चवद वीश नेद श्रुततणा । अवधि उ असंख्य प्रकार ॥२॥ मनःपर्यव उग नेद । केवल सकल प्रकाश । लोका लोक स्वरूपनों । शायक ज्ञान एखास ॥ ३ ॥ सर्वा राधक झानने । लाख्यो श्री जगदीश । सासोस्वासमां कर्मनों दयकरे वीशवावीश ॥४॥ लघु मध्यम उत्कृष्ट पंच। मास वरिस जावजीव । विधि पूर्वक आराधतां । पामे ज्ञानस दीव ॥ ५॥ दोयपरोक्ष प्रत्यक्तीन । श्रुत उपगारी जाण । सूरि कृपाचं प्रणमतां लहिये निर्मल नाण ॥ ६॥ इति पंचमी चैत्यवंदन संपूर्ण ॥ ॥अथ श्री पंचमी थुइ लिख्यते ॥ ॥ श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपतिकृतप्राज्यजन्माभिषेक । चंचत्पंचादमत्तविरदमदनिदा पंचवक्रोपमानः । निर्मुक्त पंचदेह्याः परमसुखमयप्रास्तकर्म प्रपंचः । कट्याएं पंचमी सत्तपसि वितनुतां पंचम ज्ञानवान् वः॥१॥ संप्रीणन् सच्चकोरान् शिवतिलक समः कौशिकानंदमूर्तिः। पुण्याब्धि प्रीतिदायी सितरुचिरिव यः स्वीयगोनिस्तमांसि । सांत्राणि ध्वंसमानः सकल कुवलयोसास मुच्चैश्चकार । ज्ञानं पुष्याजिनौषः सत. For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७३) पसि नविनां पंचमीवासरस्य ॥२॥ पीत्वा नानाविधार्थी मृतरसमसमं यांति यास्यंति जग्मुः। जीवा यस्मादनेके विधि वदमरतां प्राज्यनिर्वाण पुर्याम् । यात्वा देवाधिदेवागमदशम सुधा कुंम मानंद हेतु । स्तत्पंचम्या स्तपस्युद्यत विशदधियां नवीनामस्तु नित्यं ॥ ३ ॥ स्वणालंकार वटगन्मणि किरण गणध्वस्त नित्यांधकारा । ढुंकारा रावदूरी कृत सुकृत जनवातविघ्न प्रचारा । देवी श्री अंबिकाख्या जिनवर चरणांनोज जंगी समाना । पंचम्यन्ह स्तपोयं वितरतु कुशलं धीमतां सावधान ॥४॥ इति शुभ संपूर्णम् ॥ ॥अथ रांदेर श्री ऋषभ जीणचैत्य प्रतिष्ठा स्तवनं लिख्यते ॥ (राग)सारंग। झपन चरण कज ध्यावो मन जमरा क्षणापरमानंद रस पावो ॥ मन न ॥ अषण ॥१॥ अपर कमल तुहिन संयोगे । मुजित होय कमलावे ॥ म० ॥२॥ प्रनुपद पंकज अहनिशि विकसे । तेहथी चित ललचावे ॥ मन न० ॥३॥ चंडविकासी कुमुद कुमुदनी । दिनमे ते मुरकावे ॥ म० ॥ ॥४॥ जिनपादांबुज निरुपमदेखी । अंतर ज्योति जगावे ॥ म ॥ ३० ॥ ५॥ तन मन थिर कर जिन कज ध्यावे । रूपातीत सुख पावे ॥ म ॥ २० ॥ ६॥ प्रथम जिनेसर प्रथम धराधिप प्रथम मुनि जग गावे ॥ म ॥ ॥ ७ ॥ प्रथम जगत गुरु जिन उपगारि । प्रजापति नाम धरावे ॥ म ॥ ३० ॥७॥ महा गोप महा माहन प्रनु जी। नव अटवी सत्थ वाहक हावे ॥म०॥०॥ ए॥ जव जलधि निर्यामक जगपति For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८४ ) ॥ उगणीसें चमोत्तर सुजश सदा सुहावे ॥ म० ॥ ० ॥ १० बरसे । माघ शुदि मन जावे ॥ ० ॥ दशमी रांदेर नगरमा । जिनचैत्ये पधरावे श्री जिन कृपाचंद्र सूरि जक्कें । संत सुयश ० ॥ १३ ॥ इति रांदेर मध्ये जीर्ण चैत्योहारे श्री रिपन जिन विंब प्रतिष्ठा स्तवनं संपूर्ण ॥ ० ॥ ११ ॥ शुदि ॥ म० श० ॥ १२ ॥ मिलगावे ॥ म० ॥ ॥ अथ अष्टमीनुं चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥ श्रवमदिन आराधिये । प्रवचन माता सार | अष्टसिद्धि सदा । का कुमति कुठार ॥ १ ॥ आम्मद निवारिनें । अष्टकर्म करित । श्रावण सुदि श्राम दिने । पासजी बह्यो जव अंत ||२|| जादरवा वदि में । सुपास चव्या जग जाए। माघ सुदि जन्म्या अजित फागन संजव चव्यां जाए || ३ || चैतर वदि श्रावम रिषन | जन्म दीक्षा वे जाए। वैसाखसित अष्टमी। अभिनंदन निर्वाण ॥ ४ ॥ एहिज तिथी जन्म्या सुमति । जेव वदि मुनिः सुव्रत । श्राषाढ सुदि श्रव । नेमि जिनेसर निर्वृत ॥ ९ ॥ श्रावण वदि आम दिने । नमि जनम्या जिन जाए । पोसह करो पहेरनो । जिम लहो गुण मणि खाल ॥ ६ ॥ अष्टमी इम आराधिये । त्रिकरण करि कठोर । कृपाचंद्रसूरि जवितणा । तूटे कर्म कठोर ॥ 9 ॥ इति अष्टमी चैत्यवंदन || ॥ अथ एकाशीनुं चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥ श्री मति त्रिभुवन धणी । जन्म दीक्षाने ज्ञान । कयाएक एकादशी । मगसर शुदि मन आण ॥ १ ॥ र पारस For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८५) दीदाग्रही । एकादशी दिन जाण । रिषज अजित सुमति नमि । पामे केवलज्ञान ॥२॥ पद्मप्रन्नु सिवपुर लह्यो । एकादशी अतिरूमी । ग्यारे अंग आराधवा । एतिथी नहीं कूमी ॥३॥ ग्यारे गणधर श्रया । घादश अंगरचनार । कृपा चंग सूरि सेवतां । पामे नवनो पार ॥४॥ इति एकादशी चैत्यवंदन ॥ ॥अथ १० शीतलजिन चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥ शीतल जिनपति जगतिलो । सांति सुधारस सार । अंतर ताप बुझायवा । प्रनु दरसण जलधार ॥ १॥ सुग्रीव कुलनन दिनमणि । नंदा मात सुजात । तीन नुवन तारण तरण । प्रनुजी नगे विख्यात ॥२॥ अंतर वैरी नमायया । नमि सेवो जगदीश । पारस फरसन ते दुवे । पावन विसवा वीश ॥३॥ जगणीसें तेहोत्तरे । वुहारी थाप्या ईश । प्रनुपद पंकजमां नमें ॥ कृपाचंसूरीश ॥४॥ इति १० शीतल जिन चैत्यवंदनं ॥ ॥ अथ १२ वासुपूज्य जिन चैत्य वंदन लिख्यते ॥ ॥ वारम जिनवर वंदिये । वासु पूज्य जिनचंद । रक्तवरण द्युति सुंदरू । मोहे सुर नर इंद ॥ १॥ सित्तर धनुषनी देहमी लाख बहुत्तर आय । त्रिकरण जोगे आराधतां । निजगुण निर्मल थाय ॥ ५॥ देरासर नलो दीपतो ए ॥ बुहारी नगर मकार । सूरि कृपाचं सेवतां । पामे जग जयकार ॥३॥ इति श्री वासुपूज्य जिन चैत्यवंदन संपूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६) ॥ अथ पर्युषण पर्वनो चैत्य वंदन लिख्यते ॥ ॥श्रीवीरजिनेसर नाखियो पर्वोमां सिरदार । रत्नोमां चिंतामणि । गिरिमां शत्रुजय सार ॥ १॥ लोकिक लोकोत्तर वति । पर्व घणा दिल धार । पजुषण समको नहीं । वोट्या शास्त्र मकार ॥२॥ नंदीसर दीपे जश् । उनव करे सुर राज । तिम श्रावक आराधतां । सारे वांछित काज ॥३॥ आस्रव कषाय निवारिने । सामायक करो शुद्ध । जिन पूजा पर नावना । करिने तरो लव बुख ॥ ४ ॥ कल्पसूत्र सुणो श्क मना । संवचरी पमिक्कमिये कृपाचंजसूरि सेवतां जव मानवि जमिये ॥ ५॥ इति श्री पजुषण पर्वनो चैत्य वंदन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री दीपमालिका चैत्य वंदन लिख्यते ॥ ॥जय जय श्री जिनवर्षमान । सोवन समवान । सिंह लंगन सिद्धार्थराय त्रिशला सुत नांन ॥१॥ वरस बहुत्तर आऊ देह कर सत्त प्रमाण । अषन्नादिक सम जास वंस । श्दवाग सम जाण ॥२॥ जत्त संजम लियोए । कुंमग्राम पुर गम । गणधर ग्यारे सहित । पायो शिव पुर स्वाम ॥३॥ चवद सहस मुनि स्वामी सीस । उत्तीस सहस । श्रमणी श्रावक एक लाख । गुण सट्सहस ॥४॥ तीन लाख श्राविका । वली सहस अढार । सुर मातंग सिझायिका । नित सानिधकार ॥ ५॥ एकाकी पावा पुरीए । बनत सुजाण । प्रनु पोहता अमृतपदे । करो संघ कट्याण ॥६॥ इति श्री दीपमालिका चैत्य वंदन ॥ For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) ॥ अथ द्वितीय दीवालीनो चैत्य वंदन लिख्यते ॥ ॥ सिद्धार्थ कुल दिनमणि । त्रिसलानो जायो । अंतिम चोमासी । प्रत्तु पावा पुरी आयो ॥१॥ कातिवदि अमावसे । सोल पहोर परसिद्ध । देशना दीधी वीर जिन । अनुपम सिव सुख लीच ॥२॥ गौतम स्वामीने ऊपनो। केवल ज्ञान उदार। दीवाली परजातमां । सहु संघने सुखकार ॥३॥ लाइ बीजनो पर्व थयो । सोक निवारण काज । दीवाली आराधतां । सारे वंचित काज ॥ ४ ॥ करि गुणनो करो। चाढो निवेदसार। कृपाचंजसूरि सेवतां । पामे नवनोपार ॥ ५॥ इति श्री दीवाली चैत्य वंदन संपूर्णम् ॥ ॥अथ बीजनी थुइ लिख्यते ॥ ॥ वासपूज जिन अंतर जामी । मन विसरामी स्वामी जी, जविजन । तारण सिव सुख कारण, निजगुणना प्रनु कामी जी बीज दिवस जिनवर शिव सुखकर । चं विमाने पामी जी नगर बुहारिमां मनुहारि सेवो जिन सुख धामी जी ॥१॥ वासु पूज्य पद्म प्रनु राता । चंड सुविधि जिन धवला जी मवि पास दोय नीला जाणो । मुनि सुब्रत नेमी काला जी आठ दिगुण जगनायक लायक । सोवन वरण सुहाया जी वीज दीवश नव नव चनदिक जिन बंदु अहनिशि पाया जी ॥२॥ मुविध धर्म जिनवर प्रकाश्यो । अर्थ अधिक सुखकारि जी। सूत्रे करि गणधर गुरु नाख्यो । नविजनना उपगारि जी। दोय शिदा दोय नयनिदेपा । चननंगी मन आयो जी बीज । आराधि संपदा साधि । परमारथ पहिचाणो जी For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) ॥ ३ ॥ बीज दिवस उपवास करी जे । पमिक्कमणादिक सारो जी। एतप सुरतरु सरिखो जाणो । निरुपम सुख दातारो जी कुमार यद तिम शासन देवी । चंमा सानिध नूरि जी। शुन फल दायक संघने होज्यो । श्रीजिनकृपाचंसूरी जी ॥४॥ इति वीजनी शुश् संपूर्णा ॥ ॥अथ श्री पजुषण पर्वनी थुइ लिख्यते ॥ ॥ वीर जिनेसर जग अलवेसर । राजग्रही समोसरिया जी पर्व पजुषण इण पर नाखे । चनविह संघ परिवरिया जी आषाढ चोमासाश्री पञ्चाश । दिननी संख्या जाणो जी । संव बरी पमिकमणो करिने । आतम निजघर आणो जी॥१॥ दोय राता दोय धोला जिनपति । दोय काला दोय नीलाजी लांउन वरण प्रमाण सुसोनित। सोले जिनवर पीलाजी। सतरे नेदी पूजा करिने । चैत्यपरवामी करी जे जी । परवपजुषण पुरव पुन्ये । पाम्या लाल जाणी जे जी॥२॥ कल्पसूत्र निज घरे पधरावी । रात्रि गो तिहां कीजे जी। वरघोमो सजि संघ मलिने । सद्गुरुने पाणी दीजे जी। नव ग्यारे तेरे वायण । सुणिने उरगति वारो जी। पूजा प्रनावना सद्गुरु नक्ति । करिने जन्म सुधारो जी ॥३॥ साहमीवबल करिये लावे। वारं वार उजमंता जी। केश शीयल तप संयम पाले । नाव अधिक उलसंता जी । आठ दिवस पजुषण सेवो । जिम सेवे सुर इंदा जी। सुयदेवी सुपसाये । नाखे कृपाचं सूरिंदा जी ॥४॥ इति श्री पजुषण पर्वनी शुश् संपूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७ए) ॥ अथ छींक विचार सझाय ॥ ॥ीक शुकननो कहुँ विचार । सुगुरु समीप सुएयो में सार । आगलमां जो गेंकज होय । अशुन्नतणी जाणे जो कोय ॥ १ ॥ पहेला शुकन हुवा शुज घणा । जींक हुवां निरफलते तणां । बींकज दुवां पगी जो जाण । शुकनहुवां ते करो प्रमाण ॥२॥ मावीक होय अर्ध फल कहे । जमणी जीक बूरी सडकहे । पूंचे वीक सुखदायक सही । घणी बींकते निरफल कही ॥३॥ हांसे जय उपाधीयेकरी । हठ घणो मन मांहे धरी । एक बींक ते निरफल जाण । कूतर जींक तो निः खर जाण ॥४॥ मंजार ींक ते मरणज करे । इसी बींक कष्टकारी सरे । वस्तु वेचतां ींकज होय आएयुं करियाणुं मोवू होय ॥ ५ ॥ वस्तु लेतां वीकज होय । बमणो लाल सघलानो जोय । गश् वस्तु जो जोवा जाय । गक होय तो लान न थाय ॥६॥ नवां वस्त्र वली पहेरतां । बींक होये पागल अपवतां । लोजन होम पूजानुं काम । मंगलिक धर्म सुगम ॥ ७ ॥ काम एटलां कीधानी अंत । वली क्रिया करावेखंत । रति स्नान करीने रहे । नींक होयतो पुत्रज लहे ॥ ७ ॥ ऋतुवंतीने दीधे दान । पठी होवे पुत्र निदान । वैरी जीती जागुं जोय । जीके वैरी सबलो होय ॥ए । रोगी काज वैद्य तेमवा। जातां वीके जोनव नवा ते रोगीने मृत्यु जाणीये । काम विना वैद्य नाणीये ॥ १० ॥ वैद्य रोगीने घरे आवतां । बीक होये औषध आपतां । रोगी तणोरोगते समे । आहार लेते जमवु गमे ॥११॥ व्यापारे लिधे व्यापार । क होय तो वृद्धि अपार । वेखं For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) शुध दीधुं रायने । क फोक थाये तेहने ॥ १२ ॥ पाणी पीतां अथ प्रीसंवाद । बींक दृष्टि दोष अनिवाद । नवे घरे वसवा आवीये । मेक होये ते उचालीये ॥ १३ ॥ व्याजे ऽव्य केहने आपतां वली पृथ्विमां धन दाटतां । कर्ष जोवा जातां वली । वृष्टि होय पुहवी मनरली ॥ १४ ॥ बींक शुकन नर जाणे जेह । पग पग संपद पामे तेह । ीक विचार जाणे जो कोइ । इद्धि वृद्धि कट्याएज होय ॥ १५ ॥ इति बीक विचार सहाय ॥ ॥ अथ श्री अइमत्ता मुनिनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल १ ली ॥ वीरजी श्राव्यारे चंपावनके उद्यान एदेशी ॥ शासन स्वामिरे । निरमलनामि । शिवगति गामिरे । वीर जिनेसरु ॥१॥ नगर पोटहासे रे । नविक उदासे । श्री वननद्याने रे । स्वामि समोसस्खा ॥२॥राजा तिहां राजेरे । चढत दिवाजे ॥ राजसमाजे रे । विजय नरेसरु ॥ ३ ॥ गुण मणि खाणी रे । श्री देवीराणी । अश्मत्तो नामे नंदन तेहने ॥४॥ कुमर कुमारी रे । बहु सुकुमारी । तेह संघाघे रे । निज उन्चरंगशुं ॥ ५ ॥ इंछ ध्वज उगमे रे । कौतुककामे । कुमर अश् मत्तो रे । रमतो आवीयो ॥६॥ प्रनु आणापामी रे । गौतम स्वामि । गोचरी श्राव्यारे। तिहांकणे ते समे ॥ ७ ॥ कुमर अश् मत्ते रे । निरमलचित्ते । गौतम पासे रे । आवी इम कडं ॥ ॥ कुण तुमे नामेरे । फरो किण कामे । तव कहे गौतमरे। वाणी अति जली ॥ ए॥ साधु आचारी रे । अमे ब्रह्मचारी। गोचरी जमिये रे । देवाणुप्पिया ॥१०॥ मुज घर आवोरे । For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९१ ) I ािपावो । इम कही आंगुलि रे । काली गुरु ती ॥ ११ ॥ निज घर लावे रे | दिलसुखपावे । श्री देवी निरखी रे | हर खि अति घणी ॥ १२ ॥ आसन बोमी रे । बेकर जोमी | वांदी पहिलाजी रे | गुरु बोलावीया || १३ || ढाल २ जी ॥ वीरे पनोती जरासिंधने एदेशी । तवकहे कुंमर गौतम जणी । किहां वसो वो तुमे स्वामरे । गौतम कहे पुर परिस रे । जिहां म गुरु गुणधाम रे | वीर जिनवर त्रिभुवनधणीं ॥ १४ ॥ ए की ॥ कुंमर कहे हुं पण प्रभुजीने । वांदिशुं जतुम साथरे । जिमसुख तिमकरो गुरु कहे । खावे ते जिहां जग-नाथरे || वीर० ॥ १५ ॥ विनय करी कुंमर बेसे तिहां । सेवतो प्र त पारे । धर्म देशना जिनवर दिये । सांजली हरखित थायरे || वीर० ॥ १६ ॥ कुमरकहे माता जी । पूर्वी लेशुं संयम जार रे । प्रभु कहे जिम सुख तिम करो । मकरो प्रतिबंध लगारे || वीरजि० ॥ १७ ॥ कुमर घर आवी मातजी । तातजी करी कृपासार रे । अनुमति दीजिये मुज जणी । लेइश डुं संयम जार रे || वीर० ॥ १८ ॥ मात कहे पुत्र तुं बाल वे । शुं समजे व्रत वात रे । कुमर कहे जेह जाणं तेनवि जाणुं हुं मात रे || वीर० ॥ १९ ॥ जेहवलि हुं नवि जाणुं | जाएं बुं मातजी तेहरे । इम सुणी माता पिता जये । कहे किम बालक हरे || वीर० ॥ २० ॥ ढाल ३ जी ॥ धनना लोजी वाणिया एदेशी ॥ कुंमर कहे जाणुं सही । जाये जीव मरेवोरे । नवि जाएं किए कालमें । किए गमे वली केवोरे । मात सुणो मुजवात मी ॥ २१ ॥ ए श्रकणी ॥ नवि जाएं For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०२ ) कि कर्म थी । जीव जमे संसारो रे । पण जाणुं निज कर्मथी । जीव जमे संसारो रे || मात० ॥ २२ ॥ तिलकारण संयम जणी अनुमति मुजने दीजे रे । श्रातम कारज साधतां । मुजने विलंब न कीजे रे ॥ मातः ॥ २३ ॥ विविध वचने करी जोलव्यो । पए निज जाव न टंके रे । मात पिता तव वेगशु । age करवा मं रे || मात० ॥ २४ ॥ कुंमर मत्ते आद री । प्रनुपासे जड़ दीक्षा रे । गुण रयणादिक तप कस्यां । अंग इग्यारे शीख्यारे || मात० ॥ २५ ॥ सिद्ध यया विपुलाचले । मत्तो मुनि रायारे । श्रम अंगथी उच्चरी । लेशे मुनि गुण गायारे | मात० ॥ २६ ॥ एहवा श्री मुनि रायनो । अमृतधर्म उदारो रे । शिष्य क्षमा कल्याणनी वंदना वारं वारो रे । मात सुखो मुजवातकी ॥ २७ ॥ इति मत्ताजी स० ॥ ॥ अथ श्री उपाध्याय समयसुंदरजी कृत मायानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ माया कारमी रे । माया मकरो चतुर सुजाण ॥ मा० ॥ एक || माया में वाह्या जगत विलुछा | दुखीया श्राये अजाण ॥ मा० ॥ १ ॥ न्हाना महोटा नरने माया । नारीने अधिके । वली विशेषे अतिघणी व्यापे । गरमा जाजेरी ॥ मा० ॥ २ ॥ योगी जंगम यती संन्यासी । नग्नथ परवरिया | जंधे मस्तक अगनी धखंती मायाथी नवि दरिया || मा० ॥ ३ ॥ माया मेली करी बहु जेली। लोने लक्षण जाय । चोरकर धरती मांघाले । ऊपर विसहर थाय ॥ मा० ॥ ४ ॥ माया कारण दूरदेशांतर | अटवी वनमां जाय । प्रवहणा For Private And Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९३) बेसी बीप दीपांतर । सायरमा जंपाय । मा० ॥६॥ शिवजूति सरिखा सत्यवादी । सम गोष कहावे । रतन देखी मन तेहर्नु चलि । मरीने मुर्गति जावे ॥ मा० ॥ लब्धिदत्त मायायें नमीयो । पमीयो समुश्मकार रे । मुख मा खणीचं श्रश्ने मरीयो । पमीयो नरक वार ॥ मा० ॥७॥ इंजे तो सिंहासनें थापी । संजूय माया राखी । नेमीसर तो माया मेली । मुगतीमां श्रया साखी ॥ ७॥ मा०॥ मन वचन कायायें माया । महेली वनमां जाय । धन्य धन्य तेह मुनिसर जेहना । तीन जवन गुण गाय ॥ मा ॥ ए॥ एवं जाणीने नवि प्राणी। माया मूको अलगी। समयसुंदर कहे सार ने जगमां । धर्म रंग शुं वलगी॥ माम् ॥ १० ॥ इति श्रीसमय सुंदरोपाध्यायकृत मायांनी सकाय संपूर्णा ॥ अथ श्रीपंडितजिनहर्षजी विरचित समकितनुं वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ते मुज मिलामि मुक्कम ॥ ए देशी॥ सांजल रे तुं प्राणीया । सशुरु उपदेशो । मानव नव दोहिलो लह्यो । उत्तम कुल एसो॥१॥सां। देव तत्त्व नवि उलख्यो। गुरु तत्त्व न जाण्यो । धर्म तत्त्व नवि सर्दह्यो । हियमे ज्ञान न आण्यो ॥२॥ सां० ॥ मिथ्यात्वी सुर जिन प्रत्यें । सरखा करी जाण्यागुणअवगुण नवि उलख्या । वयणे करी वखाण्या ॥३॥ सांग ॥ देव श्रया मोहें ग्रह्या । पासें रहे नारी । काम तणे वशे जे पड्या । अवगुण अधिकारी ॥४॥ सांग ॥ केश क्रोधी देवता । वली क्रोधना वाह्या । के कोथी बीहता । बृ० १३ For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) हथीयार संवाह्या ॥ ॥ सां० ॥ क्रूर नजर जेहनी घणी। देखतां मरीयें । मुत्रा जेहनी एहवी । तेहथी शुं तरी ॥६॥ सांग ॥ आठ करम सांकल जड्यां । नमे जवही मकारो । जनम मरण नव देखीयें । पाम्या नहीं पारो ॥ ७ ॥ सां० ॥ देव थश् नाटक करे । नाचे जण जण आगें । वेष करी राधा कृष्णनो । वली निदा मांगे ॥ ॥ सां० ॥ मुखें करी वाये वांसली । पेहेरे तन वागा । लावता जोजन करे । एहवा भ्रम लागा ॥ ए । सां ॥ देखो दैत्य संहारवा । श्रयो उद्यमवंतो। हरि हरणाकश मारीयो । नरसिंह बलवंतो ॥ १० ॥ सां० ॥ मच कच अवतार ले । सहु असुर विदास्या । दश अवतारें जूजूश्रा । दश दैत्य संहावा ॥ ११॥ सां० ॥ माने मृढ मिथ्यामति ॥ एहवा पण देवो । फरी फरी अवतार ले । देखी कर्मनी टेवो ॥ १५ ॥ सां० ॥ स्वामी सोहे जेहवो । तेहवो परिवारो । एम जाणीने परिहरो। जिनहर्ष विचारो ॥ १३ ॥ सांग ॥इति ॥ ढाल वीजी। उधव माधवने केहे जो ॥ ए देशी॥ जगनायक जिन राजने । दाखवियें सहीदेव । मुकाणा जे कर्म थी। सारे सुरपति सेव ॥ १५ ॥ ज ॥ क्रोधमान माया नहीं। नहीं लोन अज्ञान । रति अरति वेदे नहीं । गंड्या मद थान ॥ १५ ॥ज०॥ निता शोक चोरी नहीं । नहीं वयण अलीक। मन्चर जय वध प्राणनो । करे तेहे कोक ॥ १६ ॥ ज० ॥ प्रेम क्रीमा न करे कदी । नहीं नारी प्रसंग । हास्यादिक अढार ए। नहीं जेहने अंग ॥ १७॥ ज० ॥ पद्मासन पूरी करी । बेठा अरिहंत । निश्चल लोयण तेहना । नासाग्ररहंत ॥ १७॥ज०॥ For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१एए) जिन मुजा जिन राजनी । दीगग परम नवास । समकित थाये निर्मलु । तपे ज्ञान उजास ॥ १५ ॥ ज० ॥ गति आगति सदु जीवनी । देखे लोकालोक । मनःपर्याय सवी तणा । केवल झान आलोक ॥ २० ॥ ज० ॥ मूर्ति श्रीजिनराजनी। समता नंकार । शीतल नयण सुहामणां । नहीं वांक लगार ॥२१॥ जम् ॥ हसत वदन हरखे हैयुं । देखी श्रीजिनराय । सुंदर वि प्रनु देहनी । शोना वरणी न जाय ॥ २२ ॥ ज० ॥ अवरतणी एहवी नवि । किहां एम दीसंत । देव तत्त्व ए जाणीये । जिन हर्ष कहंत ॥ २३ ॥ ज० ॥ ढाल ३ जी॥ यत णीनी देशी ॥ श्रीजिनवर प्रवचन लाख्या । जे कुगुरुतणा गुण दाख्या । पासत्यादिक पांचे । पाप श्रमण कह्या साचे॥२॥ गृहीना मंदिरथी आणी । आहार करे जात पाण।। सुए जंघे निशदीस । परमादी वीशवा वीश ॥ २५॥ किरिया न करे किणि वार । पमिक्कमणुं सांऊ सवार । न करे पच्चरकाण समाय । विकथा करंतां दिन जाय ॥ २६ ॥ घृत दूध दहीं अप्रमाण । खाए न करे पच्चरकाण । ज्ञान दर्शनने चारित्र । मूकी दीधां सुपवित्र ॥ २७ ॥ सुविहित मुनि सामाचारी। पाले नहिं ते अणगारी । आहारना दोष वायाल । टाले नहीं किणही कालं ॥ २८ ॥ धबधब धसमस तो चाले । काचे जलें देह पखाले अर्चा रचना वंदावे । वस्त्रादिक शोला बनावे ॥शए॥ परिग्रह वली काका राखे । वलीवली अधिकाने धाखे । माठी करणी जे कहिये । ते सघली जिणमें लहियें ॥३०॥ एहवा जे कुगुरु आरंजी । मुनि साधु कहेवाये दंली । किश् For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९६ ) कम्म प्रशंसा करीये । जवजव गृहमां अवतरिये ॥ ३१ ॥ लोहानी नावा तोले । जव सायरमां जे बोले जिनदर्प जले हि कालो । पण कुगुरुनी संगति टालो ॥ ३२ ॥ ढाल चोथी ॥ कर जोमी आगल रही ॥ ए देशी ॥ गुण गिरुआ गुरु लखो । हिय सुमति विचारी रे। गुरु सुपरीक्षा दो दिल्ली । जूल पके नर नारी रे ॥ ३३ ॥ गु० ॥ पांचे इंद्रिय वश करें । पांच महाव्रत पाले रे । चार कषाय तजी जेणें । पांचे किरिया टाले रे ॥ ३४ ॥ ० ॥ पांच समिति सुमता रहे। तीन गुपति जे धारे रे । दोष बेतालीश टालीने पाणी जात आहारे रे || ३५|| गु० ॥ ममतां बांकी देहनी । निलजी निर्मायी रे | नवविध परिग्रह परिहरे । चित्तमें चिंसें न काइ रे ॥ ३६ ॥ गु० ॥ धर्म तथा उपगरण धरे । संजम पालवा काजें रे । भूमि जोई पगला नरे । लोक विरुधथी लाजें रे ॥ ३७ ॥ गु० ॥ परिखेदण निरति विधें । करे प्रमाद निवारी रे ॥ कालें शुद्ध क्रिया करे । इवा जोग निवारी रे || ३८ ॥ गु० ॥ वस्त्रादिक शुद्ध एषणी । ले देखी सुविशेष रे । काल प्रमाणें खपक रे । दूषण टलतां देखे रे || ३ || गु० ॥ कुखी संबल जे कह्यां । संनिधि केमही न राखे रे । दे उपदेश यथा स्थितें । सत्य वचन मुख जाखे रे ॥४०॥ गु० ॥ तन मेहेलां मन उजला । तप करी खीणी देही रे । बंधन वे बेदी करी । विचरे जन निःस्नेही रे ॥ ४१ ॥ गु० ॥ एहवा गुरु जोई करी । आदरीयें शुभ जावें रे । बीजुं तत्त्व सुगुरु तणुं । ए जिनहर्ष कहावे रे ॥ ४२ ॥ गु०॥ ढाल एमी ॥ कर्म न बूटे रे प्राणी ॥ ए देशी ॥ जव सायर तरवा जाणी 1 For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) धर्म करे हो सारंज । पत्थर नावे रे बेसीने । तरवो समुज मुर्खन ॥ ४३ ॥ ना ॥ श्रापे गोकुल गायनां । थापे कन्या रे दान । आपे खेत्र पुण्यार्थे । ब्राह्मणने देश मान ॥ ४॥०॥ लूंटावे घाणी वली । पृथिवी दान सुप्रेम । गोला कलशा रे मोरीया । आपे हलतिल हेम ॥ ४५ ॥ ज० ॥ वली खणावे रे खांत शुं । कूआ सुंदर बाव । पुष्करिणी करणी जणी । सरवर सखर तलाव ॥ ४६॥ ॥कंद मूल मूके नहीं। अग्यारसने हो दीस । आरंज ते दिन अति घणो।धर्म कीहां जगदीस ॥४॥ ज० ॥ याग करे होमे तिहां । घोमा नरने रे गग । होमे जलचर मीमकां । धर्म किहां वीतराग ॥४०॥ न ॥ करे सदा ए रे नोरतां । जीवतणा आरंज । हणे महिषनें बोकमा । जेहश्री नरक सुखन ॥ ४ ॥ ॥ सारे सरावे ब्राह्मण कने । पूर्वजनां रे सराध । तेमी पोपे रे कागमा । देखो एह उपाध ॥ ५० ॥ ज० ॥ तीरथ जाए गोदावरी । गंगा गया प्रयाग । नाये अणगल नीरमें । धर्म तणो नहीं लाग ॥ २१॥ ज०॥ इत्यादिक करण| करे । परनवे सुखनें रे काज । कहे जिनहर्ष मिले नहीं । एहथी शिवपुरराज ॥ ५॥ ज०॥ ढाल ६ ॥ रे जाया तुकविन घमी रेउ मास ॥ ए देशी ॥ धर्म खरो जिनवरतणोजी शिव सुखनो दातार । श्रीजिनराजें प्रका. शीयोजी । जेहना चार प्रकार ।।५३॥ नविक जन ज्ञान विचारी रे जोय । उर्गति पमतां जीवने जी । धारे ते धर्म होय ॥न॥ ए आंकणी ॥ पंच महाव्रत साधुनां जी। दशविध धर्म विचार। हितकरीने जिनवर कह्यां जी। श्रावकना व्रतवार ॥ ४ ॥ ज० ॥ पंचुंबर · चारे विगय जी। विष सहु माटी रे हीम । For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८) रात्रि नोजनने कह्यां जी। बहु बीजनो नीम ॥ ५५ ॥ ज० ॥ घोलवमां वली रीगणां जी । अनंतकाय वतीश । अण जाण्यां फल फूलमां जी। संधाणां निशदीस ॥५६॥ ज० ॥ चखित अन्नवाशी थयुं जी। तुब सहु फल दद । धर्मी नर खाये नहीं जी । ए बावीश अनदय ॥ ५५ ॥ ज०॥ न करे निबंसपणे जी । घरना पण आरंज । जीव तणी जयणा घणी जी। न पीये अणगल नीर ॥ ५० ॥ ॥ घृतपरें पाणी वावरे जी।बीये करतो पाप । सामायिक व्रत पोषधे जी। टाले नवना पाप ॥ एए ॥ ज० ॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मनी जी। सेवा नक्ति सदीव । धर्म शास्त्र सुणतां श्रका जी। समजे कोमल जीव ॥६० ॥ ज०॥ मास मासने आंतरें जी। कुश अग्रतुंजे बाल । कला न पोहोंचे शोलमी जी। श्रीजिनधर्म विशाल ॥ ६१ ॥ जः॥जिन धर्म मुक्ति पुरी दीये जी।चनगति भ्रमण मिथ्यात्व। एम जिनहर्ष प्रकाशयें जी।त्रीजुं तत्त्व विख्यात ॥६॥०॥ ॥ ढाल मी ॥ मधुकर आज रहो रे मत चलो ॥ए देशी ।। श्रीजिनधर्म आराधिये जी । करी निज समकित शुध नवियण । तप जप किरिया कीधली जी। लेखे पझे विशुद्ध ॥६३ ॥नः॥ श्री० ॥ कंचन कशी कशी सीजीयें जी। नाणुं लीजें परीख ॥ ज० ॥ देव धर्म गुरु जोइनें जी। आदरीयें सुणी शीख ॥६४ ॥ नम्॥ श्री० ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मनें जी। परहरियें विष जेम ॥ ज०॥ सुगुरु सुदेव धर्म, जी । ग्रहिये अमृत तेम ॥६५॥ न० ॥श्री० ॥ मूल धर्म तो जिन कह्यो जी। समकित सुरतरु एह ॥ ज० ॥ नवनव सुख संपति की जी। For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१एए) समकित शु'धरी नेह ॥६६॥ न ॥श्री० ॥ सत्तरसे उत्रीश समेजी । नन शुदि दशमी दीस ॥न ॥ समकित सीत्तरी ए रचीजी । पुर पाटण सुजगीश ॥ ६७ ॥ ॥ श्री ॥ जण जो गुण जो नाव शुं जी । तो खेशो अविचल श्रेय ॥ न० ॥ शांति हर्ष वाचक तणो जी। कहे जिनहर्ष विनेय ॥६॥ ज०॥ श्री०॥ इति श्रीसमकित सीत्तरी संपूर्णा ।। सकाय रूप ॥ ॥अथ समकितनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ देशी चोपाश्नी ॥ धुर प्रणमुं जिनवर चोवीश।सवि गणधरने नमुं शीश । तेहनां वयण सुणे जे कान । मन राखे समकितनो ध्यान ॥ १॥ साचोदेव एक वीतराग । धर्म तणो जणे दाख्यो माग । ते जिनवर निपालु आण । जे होये साचा सुगुरु सुजाण ॥ २ ॥ पंच महाव्रत मनमां धरे । राग क्षेष पेहेलुं परिहरे । चारित्र पाले टाले दोष । लीये आहार थोमे संतोष ॥३॥ दोष मांहे जे आधा कर्म । टाले ते त्रोमे आठ कर्म । आधा कर्म करे नरनार । ते पण घणुं रुले संसार॥४॥ मूकी देह तणा सुख वास । सहे परीसह बारेमास । तपें करिने जेणें जस लीध । वंदनीक ते त्रिन्नुवन सिध ॥ ५॥ एक संयमने बीजी दमा । शत्रु मित्र जेहने बेहुं समा । दृष्टि राग तरी जतरी । तेजाशे नवसायर तरी ॥६॥ एक आपणुं करी मन गम । लणे गुणे सिघांत प्रमाण । सशुरुनो उपदेश आचार । जो समजो हैये विचार ॥ ॥ एक पहेरे मुनिवरनो वेश । पण साचो न दीये उपदेश । जेह उत्थापे जिनवर वयण । तेहने किहां हियाना नयण ॥ ॥ घर मूकीने For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२००) थया महातमा । ममता जश् लागा आतमा । महारं महारु एम कहे घणुं । तेह मूरख वदन तापणुं ॥ ए॥ एक तजी दीसे ने इस्या । लोने शिष्य करे अण कस्या । पंच महाव्रत कहे उच्चरे । उपशम रस ते कहो किम ठरे ॥ १० ॥ आधा कर्मी वहो रे घणुं । धर्म विगोवे जिनवर तणो । यंत्र तंत्र मूली करी करी । चूरण आपे घर घर फरी ॥ ११॥ कुगुरु तणा जाणी अहिनाण । सेवा न करे जे होये जाण । जिनवाणी सांगली इसी । सोनुं गुरु बे लीजें कसी ॥ १२॥ सोनाथी होय एक जव हांण । कुगुरु करे नव नवनी हांण । सोने घाग पण ते मले । कुगुरु पसायें जव जव रुखे ॥ १३ ॥ सर्प झसे हुवे जवनो अंत । कुगुरु करे संसार अनंत । एम जाणी वली लीजे साप । कुगुरु नमि नवि बोलिये आप ॥ १४ ॥ एक वहे जिनवरनी आण । वैर वहे तिहां एक अजाण । एह आपणा नहीं गुरु एम । बोली लीये वदंतुं तेम ॥ १५ ॥ एक जणे महारा गुरु देव । में करवी एहिजनी सेव । पदतणा स्वामीने मान । अवर पक्षने दे अपमान ॥ १६ ॥ एक सगा जाणी माहातमा । गुण पाखें तारे आतमा । पात्र लणी पूजे तेहनें । कहो समकित केम ले तेहने ॥ १७ ॥ देखी परखी गुरु गुणवंत । श्रावकने मन संयमवंत । एह आपणा नहीं श्म नणे। दानमान सघले अवगणे ॥ १७ ॥ एकानें गहनो अनुराग । पण न लहे साचो जिन माग । वीर वचन लेश्ने पाधलं । कुगुरु सुगुरु जो आदरं ॥ १५ ॥ जेहने आगमनुं बहुमान । तेहना उघ एवं कान। ए साधारण गुरुनी वात । जोस्ने लेजो For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०१ ) मुक्ति मात ॥ २० ॥ हृदय नयन तमे जू सुजाण । टंको जिन कुगुरु ए आण । सगुरु तथा चरण आचरो । जेम नव सायर लीलायें तरो ॥ २१ ॥ जे जिनश्रण वढे निशदीश । ते ऊपर जे नाणे रीश | नवे तत्त्व निरता सर्द है । सूधुं समकितने ते कन्हे ॥ २२ ॥ एवं समकित सूधुं जाए । धर्मकाजनुं म करीश हां। जिनवर पूजा सद्गुरु नक्ति । जावें करवी श्रम शक्ति || २३ || पक्किमणुने फासुं नीर । कीजें धर्म का जे वीर | धर्मे इद्धि सिद्धि घर हंत । धर्मे संकट सवि कह्यु जाजत ॥ २४ ॥ धर्मे सूर्य निरतो तपे । धर्मे पाप करम सवि खपे । धर्मे होये रूपनो योग । धर्म पसायें संपत्ति जोग ॥ २५ ॥ जो गुणेने बहु तप करे । पण समकित सूधुं नादरे । समकित वि ते सहुए फोक । समकित आदर करवुं रोक ॥ २६ ॥ समकित माय बाप संसार । समकित सुख संपत्ति सार । समकित एह धर्मनुं मूल । समकितश्री सह ए अनुकूल ॥ २७ ॥ समकित शद्धि सिद्धि घर घणी । समकित लगें होय सुर धणी । समकित सीके सघलां काज । समकित लगें त्रिभुवननुं राज ॥ २८ ॥ समकित सहितनुं सुो प्रमाण कृष्णरायनुं जुड़े मंमाण । तपवि श्रेणिक राजह धणी । लेशे पदवी अरिहंत ती ॥ २९ ॥ समकित पाले जे नरनार । वली न आवे ते संसार । एम जाणी समकित दरो । सिद्धिरमणी जेम लीला वरो ॥ ३० ॥ इति श्रीसम कितनी सजाय संपूर्णा 1 ॥ अथ सद्गुरु परीक्षारूप श्रीसुगुरु पचशी लिख्यते ॥ || सुगुरुपीठाणे चारें । समकित जेहनुं शुरू जी ॥ For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०२) ॥ ए आंकणी ॥ कहेणी करणी एकज सरखी । अहर्निश धर्म विलु जी ॥ सु० ॥१॥ निरति चार महाव्रत पाले । टाले सघला दोष जी। चारित्र शुं लयलीन रहे नित्य । चित्तमा सदा संतोष जी ॥ सु० ॥२॥ जीव सहुना जे ने पीयर । पीके नहीं खटकाय जी। श्राप वेदन पर वेदन सरखी । न हणे न करे घाय जी ॥ सु० ॥३॥ मोह कर्मनें जे वश न पझे। नीरागी निर माय जी। जयणा करतो हलुये चाले । पूंजी मूके पाय जी ॥ सु०॥४॥ अरहो परहो दृष्टि न देखे । न करे चालत वात जी । दूषण रहित सूजतो देखे । तो लिये पाणी नात जी ॥ सु० ॥ ५॥ नूख तृषा पीड्या मुःख पीके। बूटे जो निज प्राण जी। तो पण अशुद्ध आहार न लेवे। जिनवर आण प्रमाण जी ॥ सु०॥६॥ अरस निरस आहार गवेषे । सरस तणी नहीं चाह जी। श्म करतां जो सरस मले तो । हरख नहीं मनमांह जी ॥ सु० ॥ ७॥ शीतकाले शीतें तनु सूके । उनाले रवि ताप जी । विकट परिसह घट अहीयासे । नाणे मन संताप जी ॥ सु० ॥ ॥ मारे कूटे करे उपअव । कोइ कलंक दे शीश जी । कर्म तणा फल जाणी उदीरे । पण नाणे मन रीश जी ॥ सु०॥ ए॥ मन वचकाया जे नवि दमे । बंसे पांच प्रमाद जी। पंच प्रमाद संसार वधा रे । जाणे ते निःस्वाद जी ॥ सु० ॥ १० ॥ सरल स्वलाव लाव मन रूमो।न करे वाद विवाद जी। चार कषाय कर्मना कारण। वरजे मद उनमाद जी ॥ सु० ॥ ११ ॥ पापस्थान अढारे वरजे । न करे तास प्रसंग जी। विकथा मुखथी चार निवारे । For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०३) समिति गुपति शुं रंग जी ॥ सु०॥ १२ ॥ अंग उपांग सिद्धांत वखाणे । ये सूधो उपदेश जी सूधे मारगे चाले चलावे । पंचा चार विशेष जी ॥ सु० ॥ १३ ॥ दशविध यति धर्म जिन नाख्यो । तेहना धारण हार जी। धरम थकी जे किमही न चूके । जो होये कोमि प्रकार जी ॥ सु ॥ १४ ॥ जीव तणी हिंसा जे न करे । न वदे मिरषा वाद जी। तृण मात्र अण दीधुं न लीये । सेवे नहीं अब्रह्म जी ॥ सु० ॥ १५ ॥ नवविध परिग्रह मूल न राखे । निशि लोजन परिहार जी। क्रोधमान मायाने ममता न करे लोन लगार जी ॥ सु०॥१६॥ ज्योतिष आगम निमित्त न लाखें । न करावे श्रारंज जी । औषध न करे नामी न जूवे । सदा रहे निरारंन जी ॥ सु०॥ १७ ॥ माकिणी शाकिणी नूत न काढे । न करे हलवो हाथ जी। मंत्र यंत्रने राखमी करी ते । नवी आपे परमार्थ जी ॥ सु० ॥ ॥ १७ ॥ विचरे गाम नगर पुर सघले ।न रहे एकण गम जी। चोमासा ऊपर चौमासुं। न करे एकण ग्राम जी॥सु०॥१५॥ चाकर न फरमासें नवि राखे । न करावे कोश् काज जी। न्हावण धोवण वेस बनावण । न करे शरीरनी साज जी ॥ सु॥२०॥ व्याजवटानुं नाम न जाणे । न करे वणज व्यापार जी। धर्म हाट मामीने बेग । वणिज ने परउपगार जी॥ सु० ॥२१॥ ते गुरु तरे अवरांने तारे । सायरमां जिम जिहाज जी। काष्ट प्रसंगें लोह तरे जिम । तेम सुगुरु संगते नव्य जी ॥ सु० ॥ २२ ॥ सुगुरु प्रकाशक लोचन सरिखा । ज्ञान तणा दातार जी । सुगुरु दीपक घट अंतर केरा । दूर करे For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०४) अंधकार जी ॥ सु० ॥ २३ ॥ सुगुरु अमृत सरिखा शीला । दीये अमर गति वास जी । सुगुरु तणी सेवा नित्य करतां। बूटे करमना पास जी ॥ सु० ॥ २४ ॥ सुगुरु पचीशी श्रवण सुणीने। कर जो सुगुरु प्रसंग जी। कहे जिन हरख सुगुरु सुपसायें। झान हरख उबरंगजी॥सु०॥॥इति श्रीसुगुरु पञ्चशी समाप्ता ॥ अथ श्रीसीमंधर जीनो वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ मारी वीनतमी अवधारो साहिब श्रीसीमंधर महाराज । त्रिजुवन साहिब अरज सुणी जो । दरसण दीजो महेर करी जी । अरज सुणी जो राज ॥१॥ मारी विनम् ॥ आप वस्या महाविदेह खेतरमे । हुँ इण जरत मकार । ओमेलो किम होवे साहिब । एही सबल विचार ॥२॥ मारी वीन ॥ नरत विचाले परबत आमो । नामे ने वैताध्य । पचीस जोजनको ऊंचो ने प्रन्नु पचास जोजन विस्तार ॥ ३ ॥ मारी वीन०॥ गंगा सिंधु दोनुं नदीयां । आमी ने किरतार । सहस अगवीस बीजी नदीयां । ए बेऊनो परिवार ॥४॥ मारी वीनम् ॥ शणी आगल परबत आमो । चुत-हिमवंत नाम । एक सहस बलि बावन जोजन । बारकला अनिराम॥५॥मारी वीन०॥ खेतर हेमवंत बलि प्रनु श्रामो । जुगड्यां केरो वास । इकवीस सै बलि पांच योजन । पांच कला सुवीलास ॥६॥मारीवीन॥ रोहिता रोहितांसा नाम । नदीयां ने असराल । उपन्न सहस वलि बीजी नदीयां श्रावु केम दयाल पामारीवीन० ॥ महाहेमवंत परबत आमो । मोटो अति विसतार । च्यार सहस दोय सैं दस जोजन । दसकला मनुहार ॥ ॥ मारीवीस० ॥ आठ For Private And Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०५ ) सहस सत च्यार अनोपम । इकवीस जोजन तास । एक कला बलिरूप नोपम । खेतर वे दरीवास ॥ ए ॥ मारीवीन० ॥ हरिकंताने हरिसलीला । नदीया ने परतख । बीजी नदीयां मी प्रभु । सहस बार एक लाख ॥ १० ॥ मारीबीन० ॥ परबत निषेध ने वलि श्रमो । जोयण वलि विसतार । सोला सहस सतत बयालीस । दोयकला मनुहार ॥ ११ ॥ मारी वीन ॥ खेतर वे वलि जुगल्यांकेरो । देव कुरु इस नाम । ते पिए जोय बहु विस्तारे । पोलो ने सुखो स्वाम ॥ १२ ॥ मारवीन० ॥ सीता नामे नदी वमेरी । सब नदीयां सीरदार । पांच लाख बलि बीजी नदीयां । अने वत्तीस हजार ॥ १३ ॥ मारी० | ० || लाख जोजनको मेरू परबत | नाम सुदरसण सार । गजदंता बलि च्यार वीचमे । खाऊं केम कृपाल ॥ १४ ॥ मारी - ॥ वन गिरीने परबत बहुला । नदीयां श्रघट घाट | किए विधि श्रा सुगुणा साहिब | मारग विषमी वाट ॥ १५ ॥ मारी ॥ कंचन गिरि वखारा परबत गजदंता गिरिराय । जवसाल बन मारग विचमे । लागे केम उपाय || १६ || मारी० ॥ क्यां मुज देश जरत खेतर । क्यां पुखलावती जिनराज । श्रोमेलो किम होसी साहिब । तारण तर जिहाज ॥ १७ ॥ मारी० ॥ निस दिन मारे तुंही आलंबन | वसीयो हृदय मकार । जव दुख जंजन तुही निरंजण । करुणा कला जंकार ।। १८ ॥ मारी० ॥ मन वंबित सुख संपत दाता प्रभु शाहेव बो खास । मुजने सेवक साचो जाणी पुरो मननी आस खरतर हरख गुरु सुप्साय | रूपचंद गुणगाय । अगर चंदकी । श्रीरीजिनवर जी । तारो दीन For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०६) दयालाय॥ २० ॥ मारी ॥ संवत् अढारसे इकवीस । पोस वदी सुन मास ।बीज नबुधवार अनोपम जिनपद वंदन लास॥२१॥ मारीवीन ॥ इति श्रीसीमंधर स्वामी बृद्ध स्तवनं संपूर्णम् ॥ अथ स्वार्थ उपर सझाय ॥ ॥ स्वारथकी सब हेरे सगाई । कुण माता कुण बेनरु नाई॥ स्वा० ॥ १॥ स्वारथ जोजन नुक्त सगाई । स्वारथ बिन कोश पाणी न पाई ॥ स्वा ॥ २ ॥ स्वारथ मा बाप सेठ बनाई। स्वारथ बिन नहु देत सहाई ॥ स्वा० ॥३॥स्वारथ नारी दासी कहाई । स्वारथ बिन लाठी ले धाई ।। स्वा० ॥४॥ स्वारथ चेला गुरु गुरू नाई । स्वारथ बिन नित होइ लमाई ॥ स्वा ॥५॥ समयसुंदर कहे सुणो लोका लुगाई । स्वारथ है नाई परम सगाई। स्वा० ॥६॥ (इति संपूर्णम्) ॥ प्रथम बीजनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ जग जीवन जगवाल हो ॥ ए देशी ॥ बीजे सुविध धर्म आदरो जिम पामो नव पार लाल रे । पंच महाव्रत साधुना घादश श्रावक धार लाल रे ॥ बी० ॥१॥ दोय जेद जाणों नय तणा निश्चयने व्यवहार लाल रे । तेह जे धारे नावसुं पामे मुगतिसु नार लाल रे ॥ बी० ॥॥ शिदा लहो मुनि तुम सहि ग्रहणा सेवणोदार लाल रे । जिम दीपे हो संयम वमो खीजे मोह किराम लाल रे ॥ वी० ॥३॥ संसारीने मुक्ति जीवमा नेद दोय सुखकार लाल रे । लहि हृदय कज पंकजे पालो जीवदया सार लाल रे ॥ बी०॥ ॥ मन वचकाया सुछ. For Private And Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०७) करीतप कीजे हुसीयार लाल रे । सर्व सुख स्वर्ग निवार्णना पामें केसरी विलास लाल रे॥ बी० ॥५॥इति बीजनी सकाय संपूर्ण ॥ अथ पांचमनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ कपूर हुवे अति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ पंचज्ञान पंचमी दिने जी आराधो सुखकार अज्ञान दसा निवारिने जी। पामो ज्ञान उदार रे । प्रांणी सांजलो श्रीजिनवाणि ॥१॥ मति श्रुत अवधि जाणिये जी मनपर्यव वलि धार । लोकालोक प्रकाशवा जी केवल लहो सार रे ॥ प्रां० ॥२॥ मति अचा. वीस नेदथि जी। मानो हृदय मकार श्रुत चवदे वीस कह्या जी। अवधि उ असंख्य प्रकार रे ॥ प्रांग ॥ ३ ॥ मनपर्यव दोय विधे जी ॥ प्रां० ॥ केवल एक प्रकार । एवं ज्ञानवताविया जी । नाणसु मनो हार रे ॥ प्रां० ॥ ४ ॥ नाणी आराधक सर्वथी जी क्रिया देस विचार । नाणी स्वासोस्वासमां जी । नाखे कर्म पिगम रे ॥ प्रां० ॥ ५॥ तप पोसो करी नावसुं जी। तदलय श्कतार सर्व सुख सहि केसरि जी। उतरे नवपार रे ॥प्रां० ॥६॥ इति पांचमनी सफाय संपूर्ण ॥ अथ आठमनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ हांजी आठे महामद वारीये ॥ ए देशी ॥ हांजी प्रवचन माय पालीये । टासीय नव फेरा रे । हांजी माता जाणो हो आपणी । पमत राखे हो पाप केरारे ॥ हांजी ॥१॥ हांजी प्रथम श्यासमिति कहि धारी दमदंत झषि रायाजी। हांजी कर्म हरी मुगतें गया । जेना सुरनर गुण गाया रे ॥ हांजी ॥२॥ हांजी दूजी लाषासमिति कही कालिकसूरि सही जगमां For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०७) रे। हांजी रावराणामें साचा थइ स्वर्गे यश गवाह रे ॥ हांजी० ॥ ३ ॥ हांजी तीजी एषणा सुमती ढंढणसमणे जे पाली रे। हांजी जन्म मरण उख मेटीने वरीजे सिवपूर नारी रे ॥ हांजी० ॥४॥ हांजी श्रादानमनिदेपणा चोथी बलकल चीरी जोय रे । हांजी मोहदसा निवारी करी पाम्या केवल दर्शन ज्ञानी रे॥ हांजी ॥ ५॥ उच्चारखेलादिक पंचमी बहु निकु जयणा करता रे । हांजी कर्म मिथ्या दूरे करी समकित सुंरह्या नीना रे ॥ हांजी० ॥६॥ हांजी मन गुप्ती आश्रव टले वचन गुप्ती कलह गमावे रे । हांजी काय गुप्ती चवदे राजमे जीव दया दिल धारे रे ॥ हांजी० ॥७॥ हांजी पुत्रनी जिम प्रति पालना माय निरंतर करती रे । हांजी तिम सर्व सुखनं कारणे प्रवचन माय केसरी यति रे ॥ हांजी० ॥७॥ इति आमनी सकाय ॥अथ एकादशीनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ वालम वेगारे आवजो एदेशी ॥ नेमी जिनेसर उपदिशे सांजलोने कृष्णराजनरे। मार्गशिर सुदि एकादशी आराधो गुण गेह रे ॥ नेमी० ॥१॥ए तिथी कर्म क्ष्य कारणे जाण जो सुलन उपाय रे । मौन धरीं पाप परिहरी करी पौषध निरा पाय रे ॥ नेमी० ॥२॥ दोढसो कट्याणक प्रजुतणां जापकर जर आत्म पुण्य रे । मोह निज़ा तजीवीर्य रायने जजीलहो श्रुत अगण्य रे ॥ नेमी० ॥३॥ जिन जन्म दिदा ज्ञान तिथी ध्याइने चतुर सुजाण रे । अर दीदाने नमी नाणने पाइ लहो पंच कल्याण रे ॥ नेमी० ॥ ४ ॥ अंग ग्यारे आराधन जणी For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०ए) एकादशी श्रारधो सुन्न नावरे सर्व सुख स्वर्ग निर्वाणना केसरी चंद तत सेवरे ॥नमी॥५॥इति एकादशीनी सफाय संपूर्णम् ॥ ॥ पद्मावती राणीनी सज्झाय लिख्यते ॥ हिवरांणी पद्मावती । जीवरास खमावे । जाणपणोजग दोहिलो । इणवेला आवे ते मुक मिळामि उक्कम ॥१॥ अरिहंतनी साख । जे में जीव विराधिया। चोरासी लाख ॥ तेमुण ॥॥ सात लाख पृथवीतणा। साते अप्पकाय । सात लाख तेजकायना साते वलि वाय ॥ तेमु०॥३॥ दस प्रत्येक वनस्पती। चवदे लाख साधारण । बिति चनरिंदी जीवना। बेबे लाख विचारण ॥ तेमु ॥४॥ देवता तिर्यच नारकी च्यार च्यार लाख प्रकाशी। चवदेलाख मनुष्यना। एलाख चोरासी॥ तेमु ॥५॥णजव परजव सेविया । जे पाप अढार । त्रिविध त्रिविध कर वोसरूं । मुरगति दातार ॥ तेमु० ॥६॥ हिंसा कीधी जीवनी । बोट्या मृषावाद।दोष अदत्ता दांनना । मैथुन उनमाद ॥ तेमु० ॥७॥ परिग्रह मेट्यो कारमो कीधो क्रोध विशेष । मांन माया लोज में कीया वलि रागने देष ॥ तेमु० ॥७॥ कलह करी जीव दूहव्या । दीधा कूमा कलंक । निंद्या कीधी पारकी । रति अरति निस्संक ॥ तेमु० ॥ ए॥ चामी कीधी चोतरे । कीधो थांपण मोसो । कुगुरु कुदेव कुधर्मनो। जलो श्राण्यो जरोसो ॥ तेमु० ॥१०॥ खाटकीने नव जे कीया जीवना वध घात । चिमीमार जव चिमकता । माया दिनने रात ॥ तेमु० ॥ ११॥ माजीगर नव माग्ला । जाल्या जलवास । धीवर नील कोली न । मृग माखा पास ॥ तेमु०, बृ० १४ For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१०) ॥ १२॥ काजी मुखाने नवे । पढी मंत्र कठोर । जीव अनेक जबे कीया। कीधा पाप अघोर ॥ तेमु० ॥ १३ ॥ कोटवाल नवमें कीया । आकरा कर दंग । बंदीवान मराविया। कोरमा बमी दंग॥तेमु॥१॥ परमा धामीने लवे ।दीधानारकी सुरक। बेदन लेदन वेदना । तामना अति तिक्ख ॥ तेमु ॥ १५॥ कुंजारने लवमें किया। निवाह पचाया । तेली लव तिल पिलिया। पाप पेट नराया ॥ तेमु० ॥ १६ ॥ हालीने नवहल खड्या फाड्या पृथवी पेट । सूमनिदान कीया घणा । दीधा बलध चपेट ॥ तेमु० ॥ १७ ॥ मालीने लव रोपिया । नाना विध वृद । मूल पत्र फल फूलना । लागा पाप ते लद ॥ तेमु॥ १७ ॥ आधोवाही आगमी। नया अधिका नार। पोठी ऊंठ कीमा पड्या । दया नावी लिगार ॥ तेमु० ॥१५॥ जींपाने नव तस्यो । कीधा रांगण पास । अगनि आरंज कीया घणा । धातुरवाद अन्यास ॥ तेमु० ॥ २० ॥ सूर पणे रणज्जतां । मास्या माणस वृंद । मदिरा मांस माखण नख्या खाधा मूलाने कंद ॥ तेमु० ॥ २१॥ खाण खिणाई धातुनी । पाणी उदंच्या । आरंज कीधा अतिघणा । पोते पाप ते संच्या ॥ तेमु० ॥ २२ ॥ अंगार कर्म किया वली। धर्मे दव दीधा । सूंस लेश वीतरागना कूमा सुसज कीधा ॥ तेमु० ॥२३॥ बिही जव ऊंदर गिट्या । गिलोइ हत्यारी । मूढगिमार तणे जवे में जूं लीख मारी ॥ तेमु० ॥२४॥नमजूंजातणे नवे। एकेजि जीव । ज्वार चिणा गहुँ से किया। पातारीव ॥ तेमु० ॥ २५ ॥ खांमणपीसण गारना । आरंन अनेक । रांधण For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इंधण श्रगनिना कीया पाप आपार ।। तेमु॥२६॥ विकथा च्यार कीधी वली । सेव्या पंच प्रमाद । इष्ट वियोग पमामिया रोदन विखवाद ॥ तेमु० ॥ २७ ॥ साधु अने श्रावक तणा ।व्रतलेश्ने लागा। मूल अने उत्तर तणा। मुजदूषण लागा॥तेमु॥२०॥ साप विधु सिंह चीतरा। सिकरानेसमली। हिंसक जीव तणे नवे। हिंसा कीधी सबली ॥ तेमु॥२५॥ सूआवझे दूषण घणा वलीग रन गलाया ॥ जीवाणी ढोत्याधणा शीलवत जंजाया। तेमु० ॥३०॥ लव अनंत नमतां थकां । कीया कुटुंब संबंध त्रिविध त्रिविध कर वोसरूं । तिणसुं प्रतिबंध ॥ तेमु ॥३१॥ण लव पर लवणपरे। कीधा पाप अखत्र। त्रिविध परे करवोसरूं । करूं जनम पवित्र ॥ तेमु० ॥ ३२ ॥ राग वेरामी जे सुणे । ए तीजी ढाल समयसुंदर कहे पापश्री बुटे ततकाल ॥ तेमु०॥३३॥ इति आलोयण विषे पद्मावती सकाय ।।। ॥ अथ श्रीनवपदजीकी लावणी लिख्यते ॥ जगतमें नवपद जयकारी । पूजतां रोगटले जारी। प्रथमपद तीर्थपति राजे । दोष अष्टादशकू त्याजे । आठ प्राति हारज गजे । जगत प्रत्नु गुण बारे साजै ॥ दोहा ॥ साखी ॥ अष्टकरमदल जीतके । सकल सिघते थाय । सिद्ध अनंता जजो बीजे पद, एक समय शिव जाय । प्रगट नयो निज स्वरूप जारी ॥ जग ॥१॥ सूरिपदमें गौतम केशी । उपमा चंड सूरज जेशी । जघ्यायो राजा परदेशी । एक जव मांहे शिव लेशी॥ दोहा ॥ साखी ॥ चोथे पद पाठक नमूं । श्रुत धारी उवकाय सवसाहु पंचम पदे । धन धन्नो मुनिराय । वखाण्यो वीर जिणंद नारी ॥ जग ॥२॥व्य षट्की For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) अक्षा श्रावे । सम संवेगादिक पावे । विना यह ग्यान नही किरिया । जैन दरशनसें सब तिरिया ॥ दोहा ॥ साखी ॥ ज्ञान पदारथ सातमें । पदमें आतम राम । रमता रम्य अध्या. तमें । निजपद साधे काम । देखता वस्तु जगत सारी ॥ जग ॥३॥ जोगकी महिमा बहु जाण । चक्रधर गेमी सब राणी यतिदश धरम करी सोहे । मुनि श्रावक सव मन मोहे ॥हा॥ साखी ॥ करम निकाचित कापवा । तप कुठार करध्याय । क्षमायुत नवमा पदधरे । कर्म मूल कटजाय । जजो तुम नवपद सुखकारी ॥ जग ॥४॥ श्रीसिम्पचक्र जजो जाई । आचामल तप विधिसें थाई । पाप त्रिहुँ जोगे परिहरजो। जाव श्रीपाल परे करजो । उहा ॥ साखी ॥ संवत जगणीस सतर समें । जेपुर श्रीजिन पास । चैत्र धवल पूनिम दिने । सफल फली मुझ आस । बालकहे नवपद नवि प्यारी ॥ जग० ॥ ५॥ इतिश्री नवपदजीनी लावणी संपूर्णा ॥ ॥अथ श्री नेमनाथजीकी चतुरमासक लावणी लिख्यते॥ ॥ गई घटा गगनमें कारि राजुलकुं विरह मुख नारी ॥ बा०॥ चौमासा लग्या रस निना। अलि अषाढ रंग महीना। च्यालं तरफसे वादल पीना । बिजलिने चमकणा कीना । दिख होत धमकता सीना । में अबला सखी पतिहीना । उमावनी॥ सररररर चलत समीर । थररररर करत सरीर । मररररर मरत समीर । अलि केसी करुं तदबीर बुरी तकदीर । पीया विन प्यारी । राजुलकू० ॥१॥ श्रावण में श्याम घनघोर । जरजोर बोलते मोर । दाउर मिल करते दोर पिउ पिउ पप For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१३ ) या सोर । ऊरु लग्यो बूंदऊम ऊोर । बिच चमके दामनी कोर ॥ उरुावनी ॥ खरुरुरुरुरु खघनमाला । तरुरुरुरुरु जल परनाला । रुरुरुरुरु नाला खाखा । में दुखी हुइ बेहाल ही में साल हुइ जलधारी ॥ राजु० ॥ २ ॥ नावमें पवन प्राचीना । बादलमें धनुष रंगीना । जंगलमें नदीस्वर जीणा । ज्यं बाजे मनोहरबीणा । अब एसें कहो क्या जीना । प्रीतमनें मुक्के दुख दीना || उरुावनी ॥ युं विलपत मुख मुरजाई । सखियन मिल दौन जगाई । यूं विलखत वचन सुनाई । सखि देखो पीयाकी रीत । तोरुके प्रीत | गये गिरनारी ॥ राजु० ॥ ॥ ३ ॥ आश्विनमें जरा नहिं धीर । यडुचंद जये वे पीर | ऊ चली नेमके तीर । काटनकूं कर्म जंजीर । प्रीतमसें लियो कसर व्रत संजम समकित हीर | उमावनी || शिवराजुल नेम सिधाए | इंद्रादिक जसु गुण गाये । जविजन मिल शीश माए । मुनि कहे कपूराचंद । प्रेमसें बंद । जाउं बलिहारि ॥ राजुल० ॥ ४ ॥ इति श्रीमनाथजी की लांवणी संपूर्णा ॥ ॥ अथ श्रीकेसरियानाथजी की महातम लांवणी लिख्यते ॥ ॥ दोहा ॥ आदि करण आदिम जगत | आदि जिनंद जिनराज | धूलेवानाथ जाचो धणी । वरणुं श्रीमहाराज ॥ १ ॥ चाल लावणी ॥ कास्यपगोत इक्ष्वाकुवंशमें मरुदेवा जननी जायो || नानि नरेसर वंश उजालन । यदि धर्म जस प्रगटायो ॥ २ ॥ चौसट सुरपति देव देवी मिल । मंदिर गिरपे न्हवरायो । इस रूप निधि प्रगट कल्पतरु । सुरनर मुनि जननितध्यायो || ३ || मेवाम देशमें नगर धुलेवे । जास For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१५) ददामा घुरता हे । जाकी महिमा अपरंपारा । कविजन कीरत करता हे ॥५॥ आदौ मूरत काल असंख्यकी । पूजी सुरगण असुरिंदा । सुरपति नरपति वंदित पदयुग । वलि पूजत सूरज चंदा ॥५॥ लाख ग्यार हजार पंचासी।वरस पांचसे पचासा। इतने वरस पर खंकागढमें । पूजित रावण गुण रासा ॥६॥ रामचं शीता अरु खबमन । ए मूरत पूजन लाए । नयरी अयोध्या जाते अधविच । नयर उकोणी ठहराए ॥ ७॥ प्रजापाल नरपति की तनया । सुंदरि मयणा धरमनकी । पाप करम अरु आप करमकी । नई बमाई मरमनकी ॥ ॥ आपक रमके ऊपर नृपने कुष्टी वर परणाई ॥ मयणा चिंते कां नवाई । करम लिखी सो वन आई ॥ ए॥ इक दिन जिन पूजन गुरु वंदन । आई श्रीजिनमंदिर । वंदन पूजन करके इकचित । ध्यान धरे मन कंदरपे ॥ १० ॥ मोती दाम बंद ॥तूंहि अरिहंत तूंहि नगवंत । तूंहि जिनराज तूंहि जग संत । तूंहि जगनाथ तूंहि प्रतिपाल । तूंहि मन मोहन तूंही दयाल ॥१॥ तूंहि जव जंजन लाव सरूप । तूंहि अरिगंजन रंजन नूप, तूंहि अविनासी तूंहि वीतराग । तूंहि माहाराज तूहि वमनाग॥११॥ तूंहि गुणधाम तूंहि विसराम । तूंहि नवनिप तूंहि वमनाम तूंही अघनाश तूंहि अविनाश । तूंही मतिवंत तूंही मतिवास ॥ ॥ १५ ॥ तूंही गुण केवल रूप अनंत । तूंही जगतरण तारण संत । तूंही जग ध्येय तूंही जग ध्यान । तूंही चिदरूप तूंही नगवान ॥ १३ ॥ तूंही मम तात तूंही मम मात तूंही मम ज्रात तूंही मम गत ॥ तूंही सरणागत राखणहार । तूंही मुख For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) दोहग टालणहार ॥ १४ ॥ चाल लावणी ॥ करूं अरज एक तो जिनपति । कंत कुष्टसें नही मरते । पूरब करमके लिखित लेख जे। किसके टारे नहीं टरते ॥ १५॥ पण तुऊ सासन जगत हेलना । जगत ढंढेरा वाजत है। आप कर्म अरु जैन धर्मके । फल पाई यों लाजत हे ॥ १६॥ यो मुख मोसें सह्यो जात नाही। आदिनाथ जग रखपाला करुणाकरके रोग निवारण । गुण कीजे जग प्रतिपाला ॥ १७ ॥ यद प्रसन्न हुय फल बीजोरो । हाथ तणो फल तब दीनो । मयणा तब नहास नई। मनचिंते सब कारज सीनो ॥ १० ॥ नौ दिन नमण नीर तनु फरसें । कुष्टरोग सब नासत हे कामदेव अरु अमर समोवम । नृप श्रीपाल सोहावत हे ॥ १५॥ या कीरत प्रन्नु तिहारी नूतल । प्रगट प्रबल हे जस तेरो । आसु चैत्र मासमें महिमा। देश देशमें प्रनु तेरो ॥ २०॥ फिर वागम देश वमोद नगरमें जग पर प्रनु करुणा कीनी। कितने वरस लग महिने महिमा । अविचल जूतल शघिदीनी ॥१॥ दिवा पर तुरकान जयो तब । पातस्याह लमवा आयो । चूत जूत पत्थरकी मूरत जम मूलांसें उखरायो ॥ २२ ॥ बहुत दिनां लग कीवि खराश् । थाको यों वाचा बोले । देव हिंदको वमो जागतो । यूं बोलत फिर फिर मोले ॥ २३ ॥ सुनो वात काजी मुहां तुम । एक वातसें त्रासेगा । गौब्राह्मण प्रतिपाल कहाई । गोवधसें येनासेगा॥धागोवध करण लगे जब निजरे। देख सके क्यो प्रतिपाला। करण युद्ध जब नये महाबल । शस्त्र कमो कम विकराला ॥ २५॥ हो ॥महायुद्ध करणे लगे।घाव For Private And Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१६ ) चौरासी अंग । करी मलोखा गारुखी । श्राये धूलेव सुरंग ॥ २६ ॥ चाल लावणी ॥ गांव धूलेवा वंश जालमें । गुप्त रहे हें प्रनुधरती गाय एक कोमी वनियन की । इ वाहां चरती चरती स्रवे तिहा पयधारा शिरपर साफ समे फिर नहि दुजे ॥ री सकरी तब गोपालन पर । गोपाल थरहर धूजै | दूजे दिन गौलारे आयो । लह्यो नेद को बनियनपें । शेठ श्राय जब नजरे देख्यो । चकित जयो हे तन मनपें ॥ २७ ॥ मध्य रातमे सुपनो दीनो । रुषज नाथकी मूरत है । afer निकास करो लापसी । जीतर मूरत पूरत है ॥ २८ ॥ नव दिन में सब घाव मिलासी । मत काढे तूं नव दिनमें । कियो शेठने हुकम प्रमाणे । ये संघ बहु ब दिनमें ॥ २५ ॥ के उपवासी के व्रतधारी के अलु आणे पांव चले । केड़ लोककूं डुक्कर बाधा । कब प्रजुको दरशन मिले ॥ ३० ॥ यूं सब लोकां दरस तरस की । कहे लोक मूरति काढो । लाओ लाओ महाराजकी मूरत । संघ सबे लीनो श्रमो ॥ ३१ ॥ जवर दस्तसें दिवस सातमें । लापसी बाहिर तब कीने । स स जर रहाए । संघ लोक दर्शन दीने ॥ ३२ ॥ फिर सुपने में प्रव्य दिखायो । संघे मिल देवल कीनो । मध्ये विराजे षन तखत पर | कलियुगमें यो जस लीनो ॥ ३३ ॥ डुहा ॥ संवत ढारे तेसवे । जान सदा शिवराय । कियो धगानो कुष्टने जाखं वरण वनाय ॥ ३४ ॥ मोतीदाम बंद ॥ सदा शिवराय चिंते मनएह लूंटे बहु धाम जमीपर जेह । जिल्लांपति नाथ धूलेव कहाय लखो लग द्रव्य जंकार सुणाय ||३५|| जावां अब लूंटा गाम धूलेव । ग्रनुं सब माल जई ततखेव । 1 For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१५ ) यी निज फोज लेई दल गाज । तोपां दोय साथ लियां बहु साज ॥ ३६ ॥ तंबु दोय लार लिये फिरंगाए । जंग नर साथ लिया कोकवाण ॥ तवां बहु लोक कहे महाराज | नही इह कारण कृत्य काज ॥ ३१ ॥ एतो वह जाजल देव कहाय । रहे नहीं लाज तिहारिय काय । तवां फिर बोले सदाशिव जूप | ग्रहां सब माल वां चढीचूप ॥ ३८ ॥ इसोकहित दुष्ट करूर | कीयो नजराणह नाथ हजूर । राख्यो नही नाथ तवे नजराणा । नयो मन चक्कितमान गिलाए ||३|| तवां मन चिंत जंकारी बुलाय । मीठे वच बोल सबे ललचाय । बई संग आय मुकाम मकार । कियो तब कूच लई सब बार ॥ ४० ॥ करे तब गाम पुकार पुकार । जंकारी सबै पुकार पुकार करो अब बाहर नाथ दयाल | गयो किहां आज गरीब निवाज | चढो अब बाहर राखण लाज ॥ ४१ ॥ डुहा ॥ उण समें को सेव को वाइण तारण काज । गये अधिष्ठायक नाथजी । जेरुं गये वहां गाज ॥ ४२ ॥ सुणो अरज पृथ्वी नाथजी सहेर धूलेव मकार । कियो कारज दुष्टने । शीघ्र चले जनतार ॥४३॥ श्राये तुरत महाराजजी । करवा जन संजाल । दो घोने दोनुं चढे । नेरु अरु प्रतिपाल ॥ ४४ ॥ निलकोप कियो । दश दिशि फौज हजार | मार मार चोतरफते । नई लकाई त्यार ॥ ४५ ॥ जुजंग प्रयात बंद कूकू कुकू कुकू हे कोकवां स सएवं तीर तरकस्स वाणं । धुंवाके This as नाल गोला। जिसा कर्कसा जम्मरा नयन मोला ॥ ४६ ॥ किते अंग शस्त्ररा घाव लागे । किते मारतें कंपते For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१७) दूर नागे किते दंत तिरण लेवे वराका । कितें थरथरे त्रास होवे तिराका ॥ ४ ॥ किते रसुद्धा इववा पुकारे । किते दीन होके खुदा संजारे। कितें नाथ केसरा खून माणे । किते नाथकू जागती ज्योत जाणे ॥ ४ ॥ सदाशिवनें घाव लागो अटारो । पुनी नाउ जसवंत दोनुं संहारो । वमो कोप जाणी सबे फोज लाजी । हु केशरीय नाथकी जीत वाजी ॥ ४ए । सदाशिवनें आंखमी अटक लीनो । सवा पांचसें कमरो खून दीनो। इसो धूलेवरो मईगाजी। सदा केशरा नाथरी जीतवाजो ॥ ५० ॥ उहा ॥ या विध कलियुग जग जाणा । ताखा के जिनराज । दीपविजय कविराजकू । महेर करो महाराज ॥५१॥ मोतीदाम बंद ॥ तूंही नवनिध तूंही अमसिह तूंही मनवंगित बंबित झन ॥ तूंही सिरदार तूंही किरतार । तूंही सरणागत दीन दयाल ॥ ५२ ॥ तूंही कामकुंज तूंही कामधेनु । तूंही सुरवृद तूंही मम सेन । तूंही दाणावर्त दायक देव । तूंही विसराम तूंही वमसेव ॥ ५३॥ तूंही मम प्राण आधार जरूर । तूंही मम इचित दायक नूर । तूंही मम नूप तूंही पतसाह तूंही मम ध नंमार अगाह ॥ ५५ ॥ तूंही मम मंत्र तूंही मम यंत्र तूंही मम सत्य तूंही मम तंत्र । तूंही गलनायक तूंही श्रीपूज्य । तूंही मम पूज्य तूंही जग पूज्य ॥५॥ चाल लावणी ॥ नाथ धूलेवा कीरत सुणके । देश देश नृप आवत हे । केशरमें गरकाब रहते है । केशर नाथ कहावत हे ॥५६॥ सहर परगणे देश दिशावर । फिरे उहाई नाथनकी हिं मूसलं वम राणा हाजर । पूरे इलित सब मनकी ॥२७॥ For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१५) जलवट थलवट वाट घाटमें। रण रावल दुख दूर हरे । इक चित ध्याने जे नित समरे । खय खजाना जर जरे ॥ ९८ ॥ aaa aaa धप मप धप मप । ताल पखावत राजत हे । गरु गरु गरु दौगम गम दौगम गम धोंधों नोवत वाजत हे ॥ ५ ॥ हिंदूपति पतसाह ऊदेपुर । जीम सिंहके राजनमें एह लावणी खूब वाई । सकल संघके सागनमें ॥ ६० ॥ संवत द्वार पच्चोत्तर वरषै । फागुण सुदि तेरश दिवसै। मंगल के दिन दीपविजयकूं दरशन परशन दो उससे ॥ ६१ ॥ कलश || बप्पय बंद || समवशरण जग शरन । तीनलोक कलिमल हरन । धुनि वरसत जलधरन । जरण पौष पावन करन ॥ जुगल धर्मनीति हरन । सब करम घ घन जरन । मोहमदन | सुकनु वरन शुद्ध चरन । इंद्र चंद्र पद जुगल सेवन । जगत विरुद तारन तरन । दीपविजय कवि - राज बाहादुर । रुषजनाथ असरन शरन ॥ ६२ ॥ रुषजनाथ महाराज सबे दुख दालि अंजन । रुषजनाथ महाराज । सबै जूप मनरंजन । शषजनाथ पृथ्वीनाथ | समस्यो बाहर धाये । रुपजनाथ पृथ्वीनाथ | मंगल नाम गवाये || दीप विजय कविराज वादपुर | खलक मुलक हाजर रहे ॥ कलिजुग जयो देव तुं । सुरनर सब कीरत कहै || ६३ ॥ इति श्री केसरयाजी की लावणी संपूर्णा ॥ ॥ अथ वीसनगर कल्याण पार्श्वनाथजीकी लावणी लिख्यते ॥ अगम अगम वाजे चोघमा । सवाइ का साहेबका || For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२० ) ari ani वाज होता । महेल बनाया गगनोका ॥ कल्याण पार्श्वनाथ नामका । नित नित वाजे चोघमा || तीन लोकमें सच्चा साहिब । पार्श्वनाथ अवतार वा ॥ १ ॥ वणारसी नगरी में तेरा जनम हे | माता वामाके नंदा || अश्वसेनके कुलमें शोने । जेसा सरद पूनमचंदा || स्वर्ग लोकमें दुवा आनंदा । इंद्राणी मंगल गावे । तेत्रीस कोम देवता मिलकर । श्रव करकुंवे ॥ २ ॥ कोइ श्रावता कोइ गावता । कोइ नाम लेता देवा ॥ चोस इंद्र अरज करता । चंद्र सूरज करता सेवा । केइ सुरनर साहेबके आगे अरज करता खमा खमा ॥ जिनके सरूपको पार न पावे। जिनका गुण हे सबसे वका ॥ ३ ॥ दूर देससें या जोगी । वने जोर तपस्या करता । नीचे लगाता ज्वाला जोगी । वरे व कोके खाता । बारे वरसकी उमर प्रजुकी । छोटे पनमें बहोत कला || बरोबरी के लिये सोबती । तपशी कूं देखए चला ॥ ४ ॥ ज्ञान देखके बोले जोगीसें । एसी तपस्या कूं करता श्री जोगी तेरे वने लकदेमें बका नाग इक अध जलता ॥ पारसनाथ जोगीसुं कहता । तोबी जोगी नहिं सुता । लकने दिये फेंक जंगलमें लोक तमासा देखता ॥ ५॥ क्या की या बे जोगी तुमने । बका नागकूं जला दिया । दिया सार नवकार नागकूं । धरणीधर पदवी पाया । anी उमेद या साहिब । संवत्सरीका दान दिया । माता पिताकी आज्ञा लेकर महाराजने जोग लिया ॥ ६ ॥ राज ahhh चले जंगलमें । जुगती सें कालसग्ग किया । वमे धीर गंजीर प्रभूनें। तीन लोकमें नाम किया । उष्ण कालकी वकी For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२१ ) धूपमें नीरंजन निराकारा खमा । कमवा सुरने किया कमाका । नजमंगल वादल चका ॥ ७ ॥ उसी दिन्नको कमठा सुरने । पिछला दावा जगवाया । मेघ माली की सेना लेकर जलकुं जलदी बुलवाया । वमा किया घन घोर जोरसें । पवन चलाया मत वाला । करुरु करूरु कर दुआ कमाका | चमक बीजका उजवाला ॥ ८ ॥ मूसलधारा मेघ वरसता । गगन गाजता चौताला । सात खूंटकी वमी ऊर्मी में । प्रभु खमा हे मतवाला ॥ नाक बरोबर या पाणी । नाथ निरंज धीरवका । पराजय नहिं होय जिनूंका। एसा प्रजुका ध्यान चढा ॥ ए ॥ संकटसें सिंहास मोला । दुवा घंटका श्रावाजा । अवधि ज्ञानसें इंदर देखा || धा धा धरणी राजा ॥ धरणीधर जलदी सें आया । पदमावती कूं संगलिया | पदमावतीने लिये शीसपर | शेषनागने बन किया ॥ १० ॥ कोरु उपाय तो किया कमवने । कुछबी इलाज नहिं चलता । तरणे वाला साहिब उनकूं | TH वाला क्या करता । जीते श्रीजिनराज हारकें कमठ हाथ दो जो खमा || धरणीधर साहिबके आगे । रजी करता खमा खमा ॥ ११ ॥ केवल पाय शिव पदकूं पहुंचे । पार्श्वनाथ शुज मतवाला । लगी ज्योतमें ज्योति दीपकी तपे तेजका अजुवाला ॥ वीसनगर में पार्श्वनाथका । देवल बनाया तेंताला ॥ वमे देवल में इंदर सोहे । घंटा वाजता चोताला ॥ ॥ १२ ॥ वमी जुगतसें सिंहासा कर । कोट बनाया देवलका ॥ जगों जगों पर शिखर चढाया । दरवाजा शुभ केवलका । नामंगलके आगे शोजता । मूल गुंजारा आरसका || पीछे For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२३ ) पच्चीस देरियां सोजित | सिरे काम सिंघासणका ॥ १३ ॥ मूल नायक के ऊपर सोहै । सहस फणा प्रभु पारसका । चौमुखकी चतुराई वणी है । बहू काम है सारसका । अढारसें पैंसव सवाई | मुहूर्त्त फागण मास जला । सुदी तीजकूं तखते बेठे । जगो जगो पर नाम चला || १४ || देश देशके संघ बहु मिलकर । तेरे दर्शनकुं आया । जगतगुरु जिनराज जगतमें । वमी तेरी अक्कल माया ॥ धर्मचंद जोगता सवाईने । वमा साहमी वात्सल्य किया । सकल संघकी आज्ञा लेकर । वमा शिखर निशान दीया ॥ १९ ॥ करमचंद ने देवचंद ने खेमचंद ने खुब किया || पारस नायकूं तखत बैठा कर । जगो जगो पर नाम किया । कीर्त्तिविजय गुरुराजकूं प्रणमूं । पाय गुरुका राजवा || गुलाबचंद साहेब के आगे ॥ जिनसासनका कामवा ॥ १६ ॥ तेजा गाता चंग रंगमें | ज्ञान ध्यानसें खमा खमा । हाथ जोमके अरजी करता । पारसनाथजी तूंही वमा। ant काम तेरे है साहिब । मुखसें नहिं कहणे आता ॥ शिवरमणी कुंवरी है जिनजी । जविजन कुं सुखके दाता ॥ १७ ॥ इति श्रीकल्याण पार्श्वजी की लावणी संपूर्ण || ॥ अथ श्रीउपाध्यायक्षमाकल्याणजी कृत श्रीथूल भद्रसूरिजीनी सझाय लिख्यते ॥ तीरथ ते नमूरे ॥ एदेशी || श्रीमहावीर जिनेसरु ॥ त्रिभुवन गुरुजी ॥ तसु अम पटधार | श्री धूलिननमो ॥ १ ॥ पारुलीपुर सोहामणुं । महिमंमपुंजी ॥ तिहां पायो अवतार ॥ श्री० ॥ २ ॥ नंद नरिंद मंत्री श्वरु | गुण आग - For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५३) रुजी। श्रीसकमाल सुपुत्र ॥श्री०॥३॥लाउनदे नंदन नलो॥ मुनि गुण निलोजी। नागर विज कुलदीप ॥ श्री ॥४॥ श्रीसंजूतिविजयगुरु । पूरव धरुजी ॥ ब्रतलीधा सुपास ॥ श्री ॥ ५॥ कोश्यावश्या प्रतिबोधवे । सशुरु तवेजी । उक्कर मुक्कर कार ॥ श्री ॥ ६॥ चौद पूरव शिष्यो वली । श्रुत केवली जी। श्री जत्रबाहु समीप ॥ श्री० ॥ ७॥ संयम पाल्यो निर्मलो। त्रिविधं ललो जी। जंगम युग प्रधान ॥ श्री० ॥॥ पंचमास पंचदिन सही। ऊपर कही जी ॥ वरस नवाणु याय ॥ श्री० ॥ ए॥ करि अणसण आराधना । शुन्न वासना जी। पहोता स्वर्ग मकार ॥ श्री० ॥ १० ॥ चुलसी चोवीशी लगें। जस जगमगे जी॥ रहेशे जेनुं नाम ॥ श्री ॥ ११॥ वसु युग वसु चंड वत्सरे १७२७ पामली पुरे जी ।जसु पद थापना कीध ॥ श्री॥१२॥ वाचक अमृत धर्मनो । श्रुणे शुनमनो जी॥ शिष्य दमाकट्याण ॥ श्री० ॥ १३ ॥ इति श्रीथूलि जाजीनी सकाय संपूर्णा ॥ ॥ अथ श्रीदेव चंद्रजीकृत अष्ट प्रवचन मातानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ दोहा ॥ सुकृत कट्पतरुश्रेणिनी । वर उत्तरकुरु जोमि । अध्यातम रस शशिकला । श्रीजिनवाणी नौमि ॥ १॥ दीपचंद पाठक सुगुरु । पदवंदी अवदात । सार श्रमणगुणनावना गाशुं प्रवचन मात ॥२॥ जननी पुत्र जिम शुनकारी । तिम ए पवयणमाय । चारित्र गुणगणवर्षिनी । निर्मल शिव सुखदाय ॥३॥ नाव अयोगी करण रुचि । मुनिवर गुप्ति For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) धरंत । यदि गुप्ति जो न रहिशके । तो समिति विचरंत ॥४॥ गुप्ति एक संबर मयी। औरंगिक परिणाम ॥ संवर निर्जर समितिथी। अपवादे गुण धाम ॥५॥त्रव्ये अव्यत चरणता नावे नाव चरित्त ॥ जावदृष्टि व्यत क्रिया । करतां शिव संपत्त ॥६॥ आतमगुण प्राग्नावथी। जे साधक परिणाम । समिति गुप्ति ते जिन कहे । साध्यसिद्धि शिवगम ॥७॥ निश्चय करण रूचिथइ । समिति गुप्तिधर साधि ॥ परम अहिं. सक नावथी । आराधे निरुपाधि ॥ ॥ परम महोदय साधवा । जेह श्रया उजमाल ॥ श्रमण निनु माहण यति । गाउं तस गुणमाल ॥ ए॥ ॥ अथ प्रथमईया समिति सझाय लिख्यते ॥ प्रथम गोवाल तणे नवें जी ॥ एदेशी ॥ प्रथम अहिंसक व्रत तणी जी। उत्तम नावना एह ॥ संवर कारण उपदिशी जी। समतारसगुण गेह ।। मुनीश्वर । यो समिति संजार ॥ आश्रव कर तनुयोगथी जी । मुष्ट चपलता वार ॥ मुनी० र्या ॥ ए आंकणी ॥ १॥ कायगुप्ति उत्सर्गनो जी। प्रथम समिति अपवाद ॥ या ते जे चालवू जी । धरि आगम विधिवाद ॥ मु० ॥ ॥॥ ज्ञान ध्यान सकायमे जी । स्थिर बेग मुनिराज ॥ शाने चपल पणुं करे जी ॥ अनुलव रस सुखराज ॥ मु० ॥ ॥३॥ मुनि उठे वसहीथकी जी। पामी कारण चार ॥ जिनवंदन ग्रामांतरे जी । के आहार निहार ॥ मुनि ॥ ॥ ४ ॥ परम चरण संवर धरूं जी। सर्व जाण जिन दिक ॥ शुचि समतारुचि ऊपजे जी । तिणे For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) सुनिने ए इ ॥ मु० ॥ ॥ ५॥ राग वधे स्थिर लावधी जी। ज्ञान विना परमाद ॥ वीतरागता ईहता जी । विचरे मुनि सास्हाद ॥ मु० ॥ ॥ ६॥ ए शरीर नवमूल ले जी। तसु पोषक आहार ॥ जाव अयोगी नवि हुवे जी । तां आनादि आचार ॥ मुनी० ॥ यो० ॥ ७ ॥ कवलाहारे निहारे जे जी ॥ एह अंग व्यवहार ॥ धन्य अतनु परमातमा जी । जिहां निश्चलता सार ॥ मु० ॥ यो ॥७॥ परपरिगति कृत चपलता जी । केम मूकशे एह ।। एम विचारी कारणे जी॥ करे गोचरी तेह ॥ मु० ॥ या ॥ ए॥ क्षमावंत दयालुआ जी। निःस्पृह तनुनीराग ॥ निरविषे गजगति परें जी। विचरे मुनि महानाग ॥ मुनी ॥ ॥१०॥ परमानंद रस अनुनव्या जी। निज गुण रमता धीर ॥ देवचंत्रमुनि वंदतां जी । लहीये जवजल तीर ॥ मु० ॥ो० ॥ ११ ॥ इति प्रथम समिति सकाय संपूर्णा ॥ ॥ अथ द्वितीय भाषा समिति सज्झाय लिख्यते । ॥ नावना मालती चूशीयें । ए देशी ॥ साधुजी समिति बीजी आदरो । वचन निर्दोष प्रकाश रे। गुप्ति उत्सर्गनो समिति ते । मार्ग अपवाद सुविलास रे ॥ सा ॥१॥ए आंकणी ॥ नावना बीजी महाव्रत तणी। जिन लणी सत्यता मूल रे ॥ नाव अहिंसकता वधे । सर्व संवर अनुकूल रे ॥ सा ॥२॥ मौन धारी मुनि नवि हुवे । वचन जे आश्रव गेह रे ॥ आचरण ज्ञाननें ध्याननो । साधक नपदिशे तेह रे सा० ॥ ३ ॥ नदित पर्याप्ति जे वचननी । ते करि श्रुत अनु वृ० १५ For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२६ ) सार रे || बोध प्राग् जाव सद्याय थी । वलि करे जगत उपकार रे ॥ सा० ॥ ४ ॥ साधु निजवीर्यथी परतणो । नवि करे ग्रहणनें त्याग रे || ते जणी वचन गुप्ति रहे । एह उत्सर्ग मुनि मार्ग रे ॥ सा० ॥ ५ ॥ योग जे श्रव पद हतो | ते को निर्जरा रूप रे || लोहश्री कंचन मुनि करे साधता साध्य चिद्रूप रे ॥ सा० ॥ ६ ॥ आत्महित परहित कारणें । आदरे पांच सकाय रे || ते जणी शन वसनादिका । आश्रय सर्व व वाय रे ॥ सा० ॥ ७ ॥ जिनगुणस्तवन निज तत्त्वने । जोश्व करे विरोध रे || देशना जव्य प्रति बोधवा । वायणा करण निजबोध रे ॥ सा० ॥ ८ ॥ नय गम जंग निक्षेप श्री । स्वहित स्याधादयुत वाणि रे || शोल दश चार गुणशुं मलि । कहे अनुयोग सुपहारे ॥ सा० ॥ ए ॥ सूत्र ने अर्थ अनुयोग ए । वीय निर्युक्ति संजुत्त रे ॥ तीय जाप्ये नयें जावियो । मुनि वदे वचन एम तंत रे ॥ सा० ॥ १० ॥ ज्ञान समुद्र समता जखा । संवरी दयानंकार रे ॥ तत्व आनंद आस्वादता वंदियें चरण गुण धार रे ॥ सा० ॥ ११ ॥ मोह उदयें अमोही जेहवा । शुद्ध निज साध्य लय लीन रे । देवचंद तेह मुनि वंदियें । ज्ञान अमृत रस पीन रे ॥ सा० ॥ १२ ॥ इति जाषा समिति सजाय ।। ॥ अथ तृतीय एषणा समिति सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ कांकरीया मुनिवर धन्य० ॥ एदेशी || समिति तीसरी एषा जी। पांच माहात्रत मूल || अनाहारी उत्सर्गनो जी । अपवादी मूल || १ || मन मोहन मुनिवर | समिति सदा चित्तधार ॥ एांकणी ॥ चेतनता चेतन तणी जी । नवि पर For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२७) संगी तेह ॥ तिण परसन मुख नवि करे जी। आतमरति वती जेह ॥ म० ॥ स० ॥॥ काय योग पुद्गल ग्रहे जी । एह न श्रातम धर्म । जाणंग करता जोगता जी । हुँ माहरो ए मर्म।। म० ॥ स ॥३॥ श्रनलिसंधि चलवीर्यनो जी । रोधक शक्ति अनाव ॥ पण अभिसंधि जे वीर्यथी जी । केम ग्रहे परलाव ॥ म ॥स ॥४॥इम परत्यागी संवरी जी। न ग्रहे पुद्गल खंध ॥ साधक कारण राखवा जी। अशना दिक संबंध ॥ म०॥ स० ॥ ५॥ आतमतत्त्व अनंतता जी। ज्ञान विना न जणाय । तेह प्रगट करवा लणी जी । श्रुत सद्याय उपाय ॥ म॥ स ॥६॥ तेह देहथी देहरहे जी ।आहारें बलवान ॥ साध्य अधूरे हेतुने जी। केम तजे गुणवान ॥ म०॥ स० ॥ ७ ॥ तनु अनुयायी वीर्यनो जी।वर्तन अशन संजोग॥ वृद्ध यष्टि सम जाणीने जी। अशनादिक उपनोग । म ॥ स० ॥७॥ज्यां साधकता नवि अमें जी।तो न ग्रहे श्राहार ।। बाधक परिणति वारवा जी । अशनादिक उपचार ॥ म० ॥ सम् ॥ ए॥ सुमतालीशे व्यना जी। दोष तजी नीराग ।। असंत्रांत मूळ विना जी । नमर परें वस जाग ॥ म० ॥स० ॥ १० ॥ तत्त्व रुचि तत्त्वाश्रयी जी। तत्त्वरसी निर्गथ ॥ कर्म उदयें आहारता जी । मुनि माने पलिमंथ ॥ म० ॥ सप ॥११॥ लाल थकी पण घन लहे जी । अति निर्जरा करत ॥ पाम्ये अणव्यापकपणे जी। निर्मल संत महंत ॥ म स० ॥ ॥ १२ ॥ अणाहारता साधता जी। समता अमृतकंद ॥ नितु For Private And Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२८ ) श्रमण वाचंयमी जी । ते वंदे देवचंद || म० ॥ स० ॥ १३ ॥ इति तृतीय एषणा समिति सजाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ चतुर्थ आदान निक्षेपणा समिति सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ जोलिमा हंसारे विषय न राचियें एदेशी । समिति चोथी रे । चगति वारणी । नाखी श्री जिनराज || राखी परम हिंसक मुनिवरे । चाखी ज्ञानसमान ॥ १ ॥ सहज संवेगी रे समति परिणमे || एकणी ॥ साधन तम काज ॥ श्राराधन ए संवर जावनो । जवजल तारण जहाज ॥ स० ॥ २ ॥ अनिलापी निज श्रात्मतत्त्वना । साखी करि सिद्धांत ॥ नाखी सर्व परिग्रह संगने । ध्यानाकाशी रे संत ॥ स० ॥ ३ ॥ संवर पंचतणी ए जावना । निरुपाधिक प्रमाद || सर्व परियह त्याग असंगता | तेहनो ए अपवाद || स० ॥ ४ ॥ ज्ञाने मुनिवर उपकरण संग्रहे । जे परजाव विरत्त || देह मोही नवि लोही कदा | रत्नत्रयी संपत्त ॥ स० ॥ ९ ॥ जाव अहिंसकता कारण जणी । प्रव्य हिंसक साधि ॥ रजोहर मुखवस्त्रादिक घरे | वरवा योग समाधि ॥ स० ॥ ६ ॥ शिव साधननुंरे मूल ते ज्ञान बे, ते नो हेतु सजाय ॥ ते हारें ते बलि पात्र थी। जयायें ग्रहेवाय || स० ॥ ७ ॥ बाल तरुण नर नारी जंतुनें । नग्न डुगंबा हेतु । तिए चोलपट ग्रही मुनि उपदिसे । शुद्ध धर्म संकेत ॥ स० ॥ ८ ॥ मंश मशक शीतादि परिसह सहे । न रहे ध्यान समाधि | कल्पक आदिक निर्मो हिपणे । धारे मुनि निर्वाध ॥ स० ॥ ए ॥ लेप अलेप नदीना For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ए) ज्ञाननो। कारण दंग ग्रहंत ॥ दशवैकालिक लगवश् सा. खथी । तनुस्थिरताने तंत ॥ स० ॥१०॥ लघु सजीव सचित्त रजादिनो वारण पुःख संघट्ट ॥ देखी पुंजे रे मुनिवर तेहथी। ए पूरव मुनिवट्ट ॥ ॥ स० ॥ ११॥ पुजल खंध ग्रहण निदेपणा । प्रव्ये जयणा तास ॥ नावे आत्म परिणति नव नवी। ग्रहतां समिति प्रकाश ॥ स० ॥ १२ ॥ बाधक नाव अक्षेष पणे तजे । साधक ले गतराग ॥ पूरव गुण रक्षक पोषक पणे निपजते शिवमार्ग ॥ स ॥ १३ ॥ संयम श्रेणैरे संचरता मुनि । हरे कमें कलंक ॥ धरता समता रस एकत्वता । तत्त्वरमणि निःशंक ॥ स० ॥१४॥ जग नपगारी रे तारक नव्यना। लायक पूर्णानंद ॥ देवचंद एहवा ते मुनिराजना । वंदे पद अरविंद ॥ स० ॥ १५ ॥ इति चतुर्थ श्रादाननिक्षेपणा समिति सकाय सपूर्ण ॥ ॥ अथ पंचम पारिट्ठावणियासमिति सज्झाय लिख्यते ॥ ॥चेतन चेतजो रे ॥ एदेशी ॥ पंचमी समिति कहि अति सुंदरु रे । पारिवणीया नाम ॥ परम अहिंसक धर्म वधारणी । मृगु करुणा परिणाम । मुनिवर सेवजो रे । समिति सदा सुखदाय । थिरता नावे संयम सोहाय । धरे निर्मल संवर थाय ॥ मु०॥ ए आंकणी ॥१॥ देह नेहथी चंचलता वधे रे। विकसे पुष्ट कषाय ॥ तिण तनुरागध्याने रमे जी। ज्ञानचरण सुपसाय ॥ मु० ॥२॥ जिहां शरीर तिहां मल ऊपजे रे । तेहतणो परिहार॥ करे जंतु चर स्थिर अणदूहव्या रे। सकल मुगंग वार ॥ मु० ॥ ३ ॥ संयम बाधक श्रात्म विराधना रे। For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३० ) आणा घातक जाणि ॥ उपाधि शन शिष्यादिक परठवे रे । यति लाम पिछा मु० ॥ ४ ॥ वध्या श्राहारे तपीया परिवे रे । निज कोठे अप्रमाद । देह अरागी जात अव्यापता रे । धीरनोह अपवाद ॥ मु० ॥ ५ ॥ संलोकादिक दूषण परिहरी रे | वर्जी राग ने द्वेष || आगमरीते परठवणी करे । लाघव हेतु विशेष ॥ मु० ॥ ६ ॥ कपातीत आहालंदी क्ष्मी रे । जिनकपादि मुनीश || तेहने परववणा एक मल तणी रे । तेह प वलिदीस ॥ मु० ॥ ७ ॥ रात्रे प्रश्रवणादिक परadd | विधिकृत मंगल ठाम ॥ थिविरकपनो प्रति अपवादळे रे । ग्लानादिक नहिं काम ॥ मु० ॥ ८ ॥ वलि एह व्यथी जावे रे । बाधक जे परिणाम | द्वेष निवारी मादक तावनी रे | सर्व विज्ञाव विराम ॥ ए ॥ अंतःपरिणति तत्त्वमयी करे रे । परिहरिता पर जाव ॥ इव्य समिति परंगजाव जी धरे रे । मुनिनो एह स्वभाव ॥ मु० ॥ १० ॥ पंच समिति समता परिणामथी रे । हमा कोष गतरोष ॥ जावन पावन संयम साधता रे । करता गुण गए पोष ॥ मु० ॥ ११ ॥ साध्य रसी निजतत्त्वे तन्मया रे | जबरंगी निर्माय । योग क्रिया फल जाव वचता रे | शुचि अनुभव सुखदाय ॥ मु० ॥ १२ ॥ आणा जीत जुआ नाणी रसी रे । निश्चय निग्रह युत्त ॥ देवचंद्र एहवा निग्रंथ जे रे । ते माहूरुं गुरुतत्त्व ॥ मु० ॥ १३ ॥ इति पंचम पारिष्ठापनिका समिति सजाय ॥ ॥ अथ षष्ठ मनोगुप्ति सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ वैरागी अयोरे ॥ देश ॥ मुनि मन वश करो रे ॥ मन For Private And Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३१) ए आश्रय गेहो ॥ ममताने तो शषि मन्नथी रे ॥ टालो यतिवर तेहो रे ॥ मु० ॥१॥ पुष्ट तुरगचित्त ते कडं रे । सो मोह नृपति प्रधान । आर्त रौपर्नु देत्र एह रे। रोक तुं ज्ञान निधानो रे ॥ मु० ॥२॥ गुप्ति प्रश्रम ए साधुने रे । धर्म शुक्लनो कंद । वस्तु धर्म चिंतन रम्या रे । साध्ये पूर्णानंदो रे ॥ मु० ॥३॥ योग ते पुजल जोग ने रे । पांच अभिनव कर्म । योग वरणाने कंपना रे । नवि ए आत्म धर्म ॥ मु०॥ ॥४॥ वीर्य चपल पर संगमी रे । एह न साधक पद । ज्ञान चरण सहकारना रे । वरतावे मनदद रे ॥ मु०॥५॥ सविकट्पक गुण साधुना रे । ध्यानीने न सुहाय । निर्विकटप अनुजवरसी रे । आत्मानंदी थायो रे ॥ मु०॥६॥ रत्नत्रयनी नेदता रे । एह समल व्यवहार ॥ त्रिगुण वीर्य एकत्वता रे । निर्मल आत्मा चारो रे ॥ मु० ॥ ७॥ शुक्लध्यान श्रुत लंबनी रे । ए पण साधन दाव ॥ वस्तु धर्म उबरंगमें रे । गुण गुणी एक स्वजावो रे ॥ मु० ॥ ॥ परसहाय गुण वतना रे । वस्तु धर्म न कहाय॥साध्य रसी तो किम ग्रहे रे । साधु चित्त सहायो रे ॥ मु०॥ ए॥ आत्मरुचि आत्मा लयी रे ।ध्याता तत्त्व अनंत ॥ स्याघाद ज्ञानी मुनि रे । तत्त्व रमण उपशांतो रे ॥ मु० ॥ १० ॥ नवि अपवाद रुचि कदा रे । शिव रसिया अणगार ॥ शक्ति यथागम सेवतां रे । निंदे कर्म प्रचारो रे ॥ मु०॥ ११ ॥ शुध सिद्ध निज तत्त्वता रे । पूर्णानंद समाज देवचंग पर साधता रे । नमिये ते मुनि राजो रे । मु० ॥१२॥ इति पष्ठ मनो गुप्ति सकाय ॥ For Private And Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३३) ॥ अथ सप्तमवचनगुप्ति सज्झाय लिख्यते ॥ समिति सदा ए दीलमें धरो ॥ एदेशी ॥ अथवा ॥ हमी रियानी देशी ॥ वचनगुप्ति सूधी धरो। वचन ते कर्म सहाय सलूणे ॥ उदयाश्रित जे चेतना निश्चे तेह अपाय ॥ स० ॥ वचन गुप्ति सूधी धरो ॥१॥ ए आंकण। ॥ वचन अगोचर यातमा । सिद्ध ते वचनातीत ॥ स ॥१॥ सत्ता अस्ति स्वजावमें । नाषक नाव अनीत ॥ स० ॥ व० ॥२॥अनुलव रस आस्वादता । करता बातम ध्यान ॥ स० ॥ वचन ते बाधक नाव । न वदे मुनि अज्ञान ॥ स ॥व० ॥३॥ वचनाव पलटायवा । मुनि साधे स्वाध्याय ॥ स० ॥ तेह सर्वथा गोपवो । परम महारस थाय ॥ स ॥ व० ॥४॥ भाषा पुजल वर्गणा । ग्रहणा निसर्ग उपाधि ॥ स० ॥ करवा श्रातम वीर्यने । शाने प्रेरे साधि ॥ स० ॥ व० ॥ ५॥ यावत् वीरज चेतना । आतमगुण संपत्त ॥ स ॥ तावत सरवे निजेरो । आश्रव पर श्रायत्त ॥ स ॥ व०॥६॥इम जाण। स्थिर संयमी । न करे वलि पलीमंथ ॥ स० ॥ आत्मानंद आराधतां । आज्ञार्थी निग्रंथ ॥ स० ॥ व० ॥ ॥ साध्य शुद्ध परमातमा । तसु साधन उत्सर्ग ॥स॥वार नेदें तप विविधे। सकल श्रेष्ट व्युत्सर्ग ॥ स० ॥ व० ॥ ॥ समकित गुण गणे कस्यो । साध्य अयोगी नाव ॥ स० ॥ उपादानता तेहनी। गुप्तिरूप स्थिर नाव ॥ स० ॥ व ॥ ए॥ गुप्ति रुचि गुप्ते रम्या । कारण समिति प्रपंच ॥ स० ॥ करता स्थिरता हिता। प्रहे तत्व गुण संच ॥ स० ॥व० ॥१०॥ अपवादे उत्सर्गनी। For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३३ ) दृष्टि न चूके जेह || स० || प्रणमे नित्य प्रत्ये जावसुं । देवचंद मुनि तेह || स० ॥ ० ॥ ११ ॥ इति सप्तम वचन गुप्ति सजाय संपूर्ण ॥ I ॥ अथाष्टम काय गुप्ति सझाय लिख्यते ॥ फूलना चोसर प्रभुजीने शिर चढे ॥ एदेशी ॥ गुप्ति संजारो रे त्रीजी मुनिवरु | जेहश्री परम आनंदो जी ॥ मोह टले घन घाति परगले । प्रगटे ज्ञान अमंदो जी ॥ गु० ॥ १ ॥ करीय शुभ अशुभ नवजे जे बे । तिए तजि तन व्यापारो जी ॥ चंचल जाव ते श्राश्नव मूल बे । जीव अचल विकारो जी ॥ गु० ॥ २ ॥ इंद्रिय विषय सकलनुं धार ए । बंधहेतु दृढ एहो जी ॥ अनिव कर्म ग्रहे तनु योगथी । तिए थिर करीयें देहो जी ॥ गु० ॥ ३ ॥ श्रतम वीर्य फुरे परसंग जे । ते कही यें तनुयोगो जी ॥ चेतन सत्ता रे परम योगी ने । निर्मल स्थिर उपयोगो जी ॥ गु० ॥ ४ ॥ जावत कंपन तावत बंध वे । जगव अंगेजी । ते माटे ध्रुव तत्वरसें रमे । माहण ध्यान प्रसंगे जी ॥ गु० ॥ ५ ॥ वीर्य सहायी रे आतम धर्मनो अचल सहज प्रयासो जी ॥ ते परजाव सहाया किम करे । मुनिवर गुण आवासो जी ॥ गु० ॥ ६ ॥ खंति मुक्ति युक्ति - किंचनी । शौच ब्रह्मधर धीरो जी ॥ विषय परिसह सैन्य विदारवा । वीर परम शौमीरो जी ॥ गु० ॥ ७ ॥ कर्म पल दल क्ष्य करवारसी । तम शद्धि समृद्धो जी ॥ देवचंद्र जिन आणा पालतां । वंडुं गुरु गुणवृद्धो जी ॥ गु० ॥ ८ ॥ इति कायगुप्ति सजाय संपूर्ण ॥ For Private And Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३५) ॥ अथ नवम साधुखरूप वर्णन सज्झाय लिख्यते॥ रसीयानी देशी ॥ धर्म धुरंधर मुनिवर सुलही । नाण चरण संपन्न ॥ सुगुणनर ॥ इंजिय लोग तजी निज सुख नजी। जवचारक उदविन्न ॥ सु॥१॥ व्य नाव साची सरधा धरी परिहरी शंकादि दोष ॥ सु० ॥ कारण कारज साधन श्रादरी । धरी ध्यान संतोष ॥ सु० ॥ध० ॥२॥ गुण पर्यायें वस्तु परिखतां । शीख उलय नंमार ॥ सु० ॥ परिणति शक्ति स्वरूपमें परिणमी। करता तसु व्यवहार ॥ सु० ॥ध० ॥३॥ लोक सन्न वितिगिना वारता । करता संयम वृद्धि ॥ सु०॥ मूल उत्तर गुण सर्व संजारता । धरता आतमशुहि ॥ सु० ॥ ध० ॥४॥ श्रुतधारी श्रुतधर निश्रारसी । वश कस्खा त्रिक जोग ॥ सु० ॥ श्रन्यासी अनिनव श्रुत सारना। अविनाशी उपयोग ॥ सु० ध० ॥ ५॥ अव्य नाव आश्रव मल टालता। पालता संयम सार ॥ सु० ॥ साची जैन क्रिया संजालता। गाखता कर्म विकार ॥ सु॥ध० ॥६॥ सामायिक आदिक गुण श्रेणिमें । रमता चढते रे नाव ॥ सु० ॥ तीन लोकश्री जिन्न त्रिलोकमें । पूजनीय जसु पाव ॥ सु० ॥ध ॥ ७ ॥ अधिकगुणी निज तुल्य गुणी थकी । मलता ते मुनिराज ॥ सु० ॥ परम समाधि निधि नव जलधिना । तारण तरण जहाज ॥ सु० ॥ध ॥ ॥ समकितवंत संयम गुण ईहता । ते धरवा समरथ ॥ संवेग पदी जावें शोनता । कहेता साचो रे अर्थ ॥ सु० ॥ध ॥ ए ॥ आप प्रशंसायें नवि माचता। राचता मुनि गुण रंग ॥ सु० ॥ अप्रमत्त मुनि श्रुत तत्त्व For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३५) पूजवा । सेवे जासु अलंग ॥ सु० ॥ ध० ॥ १० ॥ सईहणा आगम अनुमोदता । गुण कर संयम चाल ॥ सु० ॥ विवहारें साची ते साचवे ॥ आयति लाल पिगण ॥ सु०॥ध० ॥११॥ मुक्करकारीथी अधिका कहे । बृहत्कटप व्यवहार ॥ सु०॥ उपदेशमाला जगवश् अंगमे । गीतारथ अधिकार ॥ सु० ॥ ध० ॥ १२ ॥ नाव चरण स्थानक फरस्या विना । न हुवे संयम धर्म ॥ सु० ॥ ते शाने जून ते उच्चरे । जे जाणे प्रवचन मर्म । सु० ॥ध ॥ १३ ॥ जस लानें निज संस्मृत थायवा । पर जन रंजन काज ॥ सु ॥ ज्ञान क्रिया व्यत विधि साचवे । तेह नहि मुनिराज ॥ सु० ॥ध॥१॥बाह्य दया एकांतें उपदिसे श्रुत आम्नाय विहीन ॥ सु० ॥ बगपर उगता मूरख लोकने । बहु नमशे तेह दीन । सु ॥ध० ॥ १५॥ अध्यातम परिपति साधन ग्रही । उचित वहे आचार ॥ सु० ॥ जिन आणा अविराधक पुरुष जे । धन्य तेहनो अवतार ॥ सु० ॥ध० ॥ १६॥ अव्य क्रिया नैमित्तिक हेतु । नाव धर्म लयलीन॥ सु० ॥ नैरुपाधिक तो जे निज अंशनी । माने लाल नवीन ॥ सु॥ध० ॥ १७ ॥ परिणति दोष नणी जे निंदता कहेता परिणति धर्म ॥ सु० ॥ योग ग्रंथना जाव प्रकाशता । तेह विदारे हो कर्म ॥ सु० ॥ध० ॥ १७ ॥ अस्पक्रिया पण उपकारी पणे । ज्ञानी साधे हो सिद्ध ॥ सु० ॥ देवचंद्र सुविहित मुनि वृंदने । प्रणम्यां सयल समृद्धि ॥ सु० ॥ धम् ॥ १५ ॥ इति नवम साधु स्वरूप वर्णन सकाय संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३६ ) ॥ अथ कलश ॥ राग धन्याश्री ॥ तेतरिया रे जाइते तरिया जे जिन शासन अनुसरिया जी ॥ जेह कहे सुविहित मुनि किरिया । ज्ञानामृत रस दरिया जी ॥ ० ॥ एकही ॥ १ ॥ विषय कषाय सहू पर हरिया | उत्तम समता वरिया जी ॥ शील सन्नाहथकी पाखरिया | जव समुद्र जल तरिया जी ॥ ते० ॥ २ ॥ समिति गुप्ति शुं जे परवरिया | आत्मानंदे तरिया जी ॥ श्रवधार सकल वरिया || वर संवर संवरिया जी ॥ ते० ॥ ३ ॥ खरतर मुनि आचरणा चरिया । राजसार गुण गरिया जी ॥ ज्ञान धर्म तप ध्याने वसिया । श्रुत रहस्यना रसीया जी ॥ ते० ॥ ४ ॥ दीपचंदपाठक पद धरिया । विनय रयण सागरिया जी ॥ देवचंद्र मुनि गुण उच्चवरिया । कर्म अरि निर्जरिया जी ॥ ते ॥ ९ ॥ सुरगिरि सुंदर जिनवर मंदिर | शोजित नगर सवाई जी ॥ नवानगर चोमासुं करीने । मुनिवर गुण श्रुति गाई जी ॥ ते ॥ ६ ॥ अरिहंतनो यश जगमें विचस्यो । विस्तरी जस संपदा जी ॥ निग्रंथ वंदन स्तवन करतां । परम मंगल सुख सदा जी ॥ ७ ॥ इत्यष्ट प्रवचन माता सजाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पंडित श्रीदेवचंद्रजी कृत पंच भावना लिख्यते ॥ || स्वस्ति श्रीमंदिर परम | धर्म धाम सुखाम | स्यादवाद परिणामधरी । प्रणमुं चेतन राम ॥ १ ॥ महावीर जिनवर नमुं । जज्बाहु सूरीश | बंदी श्रीजिनन गणी । श्रीदेमेंद्र मुनीश ॥ २ ॥ सदगुरु शासन देव नमी । बृहत्करूप अनुसार । शुद्ध जावना साधुनी । जाविस पंच प्रकार ॥ ३ ॥ इंद्रिय For Private And Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३७) योग कषायने । जीपे मुनी निशंक । इण जीते कुध्यान जय । जाए चित्ततरंग ॥ ४ ॥ प्रथम नावना श्रुत तण।। बीजी तप तीय सत्त्व । तुरिय एकत्व नावना । पंचम नाव सुतत्त्व ॥५॥ श्रुत नावना मन स्थिर करे । टाले नवनो खेद । तप लावना काया दमे । वमे वेद उमेद ॥ ६॥ सत्व नाव निर्नय दशा । निज लघुता एक नाव । तत्त्व नावना आत्म गुण । सिद्धि साधना दाव ॥७॥ ढाल पहली लोक स्वरूप विचारो आतमा रे ए देशी ॥ श्रुत अभ्यास करो मुनिवर सदा रे । अतिचार सदु टाल ॥ हीण अधिक अदर मत उच्चरो रे । शब्द अर्थ संजाल ॥ श्रु ० ॥१॥ सूदम अर्थ अगोचर दृष्टीथी रे । रूपी रूप विहीण । जेह अतीत अनागत वत्तता रे । जाणे ज्ञानी लीन ॥ श्रुप ॥२॥ नित्य अनित्य एक अनेकता रे । सद सद नाव स्वरूप ॥ उए नाव एक अन्य परिणम्या रे॥ एक समयमां अनूप ॥ ३ ॥ उत्सर्गे अपवाद पदे करी रे । जाणे बहु श्रुत चाल । वचन विरोध निवारे युक्तिथी रे । थापे दूषण टाल ॥ श्रु० ॥४॥ व्यार्थिक पार्थिक धरे रे । नय गम नंग अनेक । नय सामान्य विशेष बहु ग्रहे रे । लोकालोक विवेक ॥ श्रु० ॥५॥ नंदीसूत्रे जपगारी कह्यो रे। वली असुच्चा गम । अव्य श्रुतने वांद्यो गणधरे रे । जगवश् अंगे नाम ॥ श्रु० ॥ ६॥ श्रुत अन्यासे जिनपद पामिये रे । ठे अंगे साख । श्रुतनाणी केवलनाणी समो रे । पन्नव विडो लाख ॥ श्रुतम् ॥ ७॥ श्रुतधारी आराधक सर्वनो रे । जाणे अर्थ स्वजाब । निज आतम परमातम सम ग्रहे रे । ध्यावे ते For Private And Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३१) नय दाव ॥ श्रु० ॥ ॥ संयम दरशन ते झाने वधे रे । ध्याने शिव साधत । नव स्वरूप चन गतिनो ते लखें रे । तेणे संसार तजंत ॥ श्रु०॥ ए॥इप्रिय सुख चंचल जाणी तजे रे । नव नव अर्थ तरंग । जिम जिम पामे तिम मन नहसे रे । वसे न चित्त अनंग ॥ श्रु० ॥ १० ॥ काल असंख्याताना नव लखे रे । उपदेशक पण तेह । परनव साथी आलंबन खरो रे ॥ चरण विना शिव गेह ॥ श्रु०॥११॥ पंचम काले श्रुत बल पण घट्यो रे । तो पण एह आधार । देवचंद जिन मतनो तत्त्व एह रे । श्रुतस्युं धरजो प्यार ॥ श्रुतम् ॥ १२ ॥ ॥ ढाल २जी अनुमती दीधीमाये रोवती ॥ ए देशी॥ ॥ रयणावली कनकावली । मुक्तावली गुणरयण । वजा मध्यने जव मध्यए । तप करीने हो जीपो रिपु मयण ॥ १॥ नवियण तप गुण आदरो। तप तेजेरे जीजे सहु कर्म । विषय विकार सदु टले । मन गंजेरे नंजे नव मर्म ॥ नवि० ॥२॥ जोगे जय ईजिय जय तदा । तप जाणो हो कर्म सूमण सार ।। उवहाणे योग उहा करी । शिव साधे रे शुधा अणगार ॥ नवि० ॥ ३ ॥ जिम जिम प्रतिज्ञा घढ थको । वैरागी तपसी मुनिराय । तिम तिम अशुन दल जीजवे । रवि तेजे रे जिम शीत विलाय ॥ जवि ॥४॥ जे निकु पमिमा आदरे। आसन अकंप सुधीर । अती लीन समता नावमां । तृणनी पेरे हो जाएंत शरीर ॥ नवि० ॥ ५ ॥ जिण साधु तप तरवारथी। सूड्यो रे हो अरि मोह गयंद । तिण साधुनो हुँ दास बुं । नित्य बंधुरे तसपय अरविंद ॥ नवि० ॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३९ ) चार सूयगमांगअंगमां । तिम कह्यो जगवई अंग । उत्तराध्ययन गुणती समें । तप संगे हो सदु कर्मनो जंग ॥ जवि० ॥ ॥ ७ ॥ ते दुविध डुक्कर तप तपे । जव पास आस विरक्त धन साधु मुनि ढंढण समा । कृषि खंधक हो तीसग कुरुदत्त | नवि ॥ ८ ॥ निज श्रातम कंचन जणी । तप अनि करी सोधंत । नव नवि लब्धि बल बते । उपसर्गे हो ते सहंत महंत || नवि० ॥ ए ॥ धन्य तेह जे धन गृह तजी । तन स्नेहन करी वेह | निसंग वनवासे वसे । तपधारी हो ते नि गृह गेह || जवि ॥ १० ॥ धन्य तेह ग गुफा तजी । जिनकप जावद | परिहार विशुद्धि तप तपे । ते वंदे हो देवचंद नींद ॥ वि० ॥ ११ ॥ ॥ ढाल ३ जी हवे राणी पद्मावती ॥ एदेशी ॥ ॥ रे जीव साहस आदरो | मत था दीन । सुख दुःख संपद पदा | पूरवकर्म आधीन ॥ रे जीव० ॥ १ ॥ क्रोधादिक वशे रणसमे । सह्या दुःख अनेक । ते जो समतामां सहे । तो तुज खरो विवेक ॥ रे जीव० ॥ २ ॥ सर्व अनित्य शाश्वत । जेह दीसे एह । धन तन सय सगा सदु । तिस्युं श्यो नेद | रे जीव० || ३ || जिम बालक वेलू तथा । घर करीय रमंत । तेह ते अथवा हे । निज निज ग्रह जंत ॥ रे जीव० ॥ ४ ॥ पंथी जेम सराहमां । नदी नावनी रीति । तिम ए परियण तो मिल्यो । तिथी शी प्रीति ॥ रे जीव० ॥ ए ॥ ज्यां स्वार्थ त्यां सहसा । विए स्वार्थ दूर । पर काजे पापे जसे । तुं केम होय सूर ॥ रे जीव० ॥ ६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४० ) तजि बाहिर मेलाको | मिलियो बहुवार । जे पूरव मिल्लियो नहि । तिस्युं धर प्यार || रे जीव० ॥ ७ ॥ चक्री हरी बल प्रतिहरी तस विजव अमान । ते पण काले संखा । तुज धनश्यों मान ॥ रे जीव० ॥ ८ ॥ हा हा तो तुं फिरे । परियानीचिंत | नरक पढ्यां कहे ताहरी । कोण करसे चिंत ॥ रे जीव० ॥ ए ॥ रोगादिक दुःख ऊपने । मन अरति म ध रेव । पूरव निजकृत कर्मनो । ए अनुभव देव ॥ रे जीव० ॥ ॥ १० ॥ एह शरीर अशाश्वतो । खिए में सीजंत । प्रीति किसि ते ऊपरे । जे स्वार्थ वंत ॥ रे जीव० ॥ ११ ॥ ज्यां लगे तुज देहथी। वे पूरव संग । त्यां लगे कोटी उपायथी । नवि थाय जंग | रे जीव || १२ || आगल पाउल चिंहुं दिने जे विसी जाय । रोगादिक श्री नवि रहे । कीधे कोटी उपाय || रे जीव० ॥ १३ ॥ अंते पण एने तज्यां । थाय शिव सुख । ते जो बूटे श्रापश्री । तो तुजने स्यो दु:खः ॥ रे जीव० ||१४|| ए तन विसे ताहरे नवि कांइ हाए । जो ज्ञानादिक गुण तणो । तुज आवे जाए || रे जीव० ॥ १५ ॥ तुं अजरामर आतमा | अविचल गुण राण | क्षण जंगुर या देहश्री । तुज कीहां पिवा ॥ रे जीव० ॥ १६ ॥ बेदन जेदन तारुना । वध बंधन दाह । पुद्गलने पुद्गल करे । तुं तो अमर अगाह ॥ रे जीव० ॥ १७ ॥ पूर्व कर्म उदये सही । जे वेदना श्राय । ध्यावे तम ति समे । ते ध्यानी राय ॥ रे जीव० ॥ १८ ॥ ज्ञान ध्याननी वातकी । करणी आसान | अंतसमे आपद पड्यां । विरला करे ध्यान | रे जीव० ॥ १९ ॥ रति करी For Private And Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४१) मुख जोगवे । परवस जेम कीर । तो तुज जाणपणा तणो। गुण केवो धीर ॥ रे जीव० ॥ २० ॥ शुद्ध निरंजन निरमलो निज आतम नाव । ते विणसे कहे मुःख किश्यो । जे मिलियो दाव ॥रे जीव० ॥ २१॥ देह गेह लामा तणो । ए आपणो नाहिं । तुज गृह आतम ज्ञान ए । तिण माहे समाहि ॥ रे जीव० ॥ २२ ॥ मेतारज सुकोसलो । वली गजसुकुमाल। सनतकुमार चक्रीपरे । तन ममता टाल ॥रे जीय० ॥ २३ ॥ कष्ट पड्यां समता रमे । निज प्रातम ध्याय । देवचंड तिण मुनितणा । नितवंदु पाय ॥रे जीव० ॥२४॥ ॥ ढाल ४ थी प्राणी धरीये संवेग विचार ॥ ए देशी॥ ॥ज्ञान ध्यान चारित्रने रे । जो दृढ करवा चाहे । तो एकाकी विहरता रेजिन कट्पादि साहे रे। प्राणी एकल जावना नाव । शिवमारगसाधन दाव रे ॥प्राणी ॥१॥ साधु जणी गृहवासनी रे । बूटी ममता तेह । तोपण गनवासी पणो रे । गण गुरु पर ने नेह रे ॥ प्राणी ॥२॥ वन मृगनी पेरे ते हथी रे । गेमी सकल प्रतिबंध । तुं एकाकी अनादीनो । किणथी तुज संबंध रे ॥ प्राणी ॥३॥ शत्रु मित्रता सर्वथी रे। पांमी वार अनंत । कोण सऊन मुस्मन किस्यो रे । काले सहुनोअंतरे ॥ प्राणी ॥४॥ बांधे करम जीव एकलो। जोगवे पण ते एक । किण ऊपर किण वातनी रे । राग पनी टेक रे ॥ प्राणी ॥ ५ ॥ जो निज एक पणुं ग्रहे रे । गेमी सकल परजाव । शुजातम ज्ञानदिशुं रे । एक स्वरूपं नाव रे ॥ प्राणी ॥ ६॥ आव्यो रे तुं एकलो रे । जाइस पण तुं बृ० १६ For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४२ ) 0 एक । तो ए सर्व कुटुंबथी रे । प्रीति कीसी छा विवेक रे ॥ प्राणी० ॥ ७ ॥ वनमाहे - गजसिंहादिथी रे । विहरतां नटले जेह | जिए आसन रवि श्रथमे रे । तिए आसन निशि बेह रे ॥ प्राणी ॥ ८ ॥ आहार ग्रहे तप पारणे रे । करमां लेप विहीन । एकवार पाणी पीवतां रे । वनचारी चित्त दीन रे ॥ प्राणी ॥ ए ॥ एह दोष परग्रहणश्री रे । परसंगे गुण हाण, परधन ग्राही चोरते रे । एक पशो सुख ठाण रे || प्राणी ० ॥ १० ॥ पर संयोगयी बंध वे रे । पर वियोगश्री मोठ । तेणे तजी पर मेलावको रे । एक पो निजपोष रे ॥ प्राणी ० ॥ ११ ॥ जन्म न पाम्यो साथको रे । साथ न मरसे कोय । दुःख वेंचान को नहि रे | क्षणभंगुर सहु लोय रे || प्राणी० ॥ १२ ॥ परिजन भरतो देखीने रे । शोग करे जन मूढ । अवसरे वारो आपणो रे । सहु जननी ए रूढ रे ॥ प्राणी० ॥ १३ ॥ सुरपति चक्री हरी बली रे । एकला परजव जाय । तन धन परिजन सहु मिलि रे । कोई सखाइन थाय रे || प्राणी ॥ १५ ॥ एक मामाहरो रे । ज्ञानादिक गुणवंत | बाह्ययोग सदु वर बे रे | पांम्यो वार अनंत रे || प्राणी० ।। १५ ।। कर कंडू नमी नगइ रे | कुम्मुह प्रमुख पिराय । मृगापुत्र हरि - केषीना रे । बंडु हुं नित पायरे || प्राणी० ॥ १६ ॥ साधु चिज्ञातीसुत जलो रे । वली अनाथी तेम । एम मुनिगुण अनुमोदता रे । देवचंद्र सुख खेम रे || प्राणी० ॥ १७ ॥ 0 I || ढाल ५ मी एणीपरे चंचल आउखो ॥ एदेशी ॥ ॥ चेतन ए तन कारिमो । तुमे ध्यावो रे । शुद्ध निरंजन देव । For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४३ ) जविक तुमे० ॥ शुद्ध स्वरूप अनूप ॥ जविक तुमे० ॥ १ ॥ नरजव श्रावक कुल लह्यो तुमे० । लाधो समकित सार जवि० । जिन आगम रूची शुं सुणो तुमे० । आलस नींद निवार || नवि० ॥ २ ॥ समयांतर सह जान्ननो तुमे० ॥ दर्शन ज्ञान अनंत वि० ॥ तम जावे श्रिर सदा | तुमे० ॥ अक्षय चरण महंत || जवि० || ३ || तीन लोक त्रिहुं कालनी तुमे० ॥ परिणति तीन प्रकार जवि० ॥ एक समये जाणे तिये | तुमे० ॥ ना अनंत अपार || नवि० ॥ ४ ॥ सकल दोष हर शाश्वतो तुमे० ॥ वीरज परम श्रदीन जाविक० ॥ सूक्ष्म तनु बंधन विना तुमे० ॥ अवगाहना स्वाधीन ॥ जवि० ॥ ५ ॥ पुद्गल सकल विवेकी तुमे० ॥ शुद्ध मूर्ति रूप नवि० ॥ इंडिय सुख निस्पृह थ तुमे० ॥ श्रथ वाह स्वरूप ॥ जवि० ॥ ६ ॥ Sव्य ता परिणामश्री तुमे० ॥ गुरु लघुत्व नित्य नवि० ॥ सत्य स्वभाव मयी सदा तुमे० ॥ बोमी जाव असत्य ॥ जवि० ॥ ७ ॥ निजगुण रमतो रामए तुमे० ॥ सकल अकल गुण खा जवि || परमातम पर ज्योतिए तुमे० ॥ अलख वखा || जवि० ॥ ८ ॥ पंच पूज्यश्री पूज्यए तुमे० ॥ सर्व ध्येयश्री ध्येय जवि० ॥ ध्याता ध्यानरु ध्येए तुमे० ॥ निश्चे एक अजेय ॥ वि० ॥ ए ॥ अनुभव करतां एहनो तुमे० ॥ थाय परम प्रमोद जवि० || एक स्वरूप अभ्यास शुं तुमे० ॥ शिव सुख बे तस गोद ॥ जवि० ॥१०॥ बंध अबंध ए श्रातमा तुमे० ॥ करता करता एह जवि० ॥ एह जोगता अनो गता तुमे० ॥ स्यादवाद गुण गेह ॥ जवि० ॥ ११ ॥ एक प For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) अनेक स्वरूप ए तुमे ॥ नित्य अनित्य अनादि नवि० ॥ सद सद जावे परिणम्या तुमे० ॥ मुक्त सकल उन्माद | नवि० ॥ १२ ॥ तप जप किरिया खप थकी तुमे ॥ अष्ट करम न विलाय लवि०। ते सहु आतमध्यानश्री तुमे० ॥ खिणमे खेरु थाय ॥ नवि०॥ १३ ॥ शुझातम अनुनव विना तुमे ॥ बंध हेतु शुक्ल चाल जम् ॥ श्रातम परिणामे रम्या तु०॥ एहज श्रव पाल ॥ नवि०॥ १४ ॥ श्म जाणी निज श्रातमा तुमे ॥ वरजी सकल उपाध नवि० ॥ उपादेय अवलंबने तुमे ॥ परम महोदय साध ॥ नवि० ॥ १५॥ जरत श्लासुत तेतली तु० ॥ इत्यादिक मुनि वृंद नवि०॥ प्रातम ध्यानथी ए तर्या नवि० ॥ प्रणमे ते देवचंद ॥ नवि० ॥१६॥ ॥ ढाल ६ ट्ठी शेलग सेजेजे सिद्धथया ॥ एदेशी ॥ नावना मुक्ति निशाणी जाण । जावो आशति आणीजी। योग कषाय कपटनी हाणी । थाये निर्मल जाणी जी॥ नावना ॥१॥ पंच लावना ए मुनि मनने ॥ संवर खाणी वखाणी जी। बृहत्कल्प सूत्रनीवाणी दीठी तेम कहाणी जी ॥ नावना ॥ ॥ कर्म कतरणी शिव निशरणी । जाण गण अनुसरणी जी। चेतन राम तणी ए घरणी । नव समुड मुःख हरणी जी॥ लव ॥ ३ ॥ जयवंता पाठक गुण धारी । राजसार सुविचारी जी। निर्मल ज्ञान धर्म संजाली । पाठक सहु हित कारी जी ॥ जावना० ॥४॥राजहंस सुगुरु सुपसाये । देवचंड गुण गावे जीनविक जीव जे लावन नावे । तेह अमित सुख पावे जी ॥ नावना० ॥ ५॥ जेसलमेर साह सुत्यागी। For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४५) वर्षमान वम जागी जी। पुत्र कलत्र सकल सुनागी। साधु गुणना रागी जी ॥ लाव ॥६॥ तस आग्रहश्री नावना जाय। ढाल बंधमां गाइ जी। जणसे गणसे जे एह ज्ञाता । लहेसे ते सुख साता जी॥नाव०॥७॥ मन शुधे पंचे नावना जावो पावन निजगुण पावो जी। मन मुनिवर गुण संग बसावो । सुख संपति ग्रह थावो जी ।। नावना ॥ ॥ इति श्रीपंमित देव चंद्रजी कृत साधुनी पंच जावना संपूर्णा ॥ ॥अथ पंडित श्रीदेवचंद्रजी कृत प्रभंजना महासतीनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ नाटकीयानी देशी ॥ गिरि वैताढ्यने ऊपरे । चक्रांका नयरीरे लो। अहो चक्रा० ॥ चक्रायुध राजा तिहां । जीत्या सवी वयरीरे लो। अहो० ॥१॥ मदन लता तस सुंदरी। गुणशील अचंजारे लो ॥ अहो० ॥ पुत्री तास प्रनंजना । रूपे रति रंजारे लो ॥ अहो ॥२॥ विद्याधर नूचर सुता बहु मली एक पंतेरे लो ॥ अहो ॥राधा वेधे ममाविछं । वर वरवा खंतेरे लो॥ अहो० ॥ ३॥ कन्या एक हजारथी । प्रलंजना चालीरे लो॥ अहो ॥ आर्य खममां श्रावतां वनखंक विचालीरे लो ॥ अहो० ॥ ॥ निग्रंथी सुप्रतिष्ठिता । बहु मुणणी संगेरे लो॥ अहो ॥ साध विहारे विचरती । वंदे मन रंगेरे लो॥ अहो० ॥ ५॥ आर्या पूरे एवमो। उमा स्यो रे लो॥ अहो० ॥ विनये कन्या विनवे । वरवरवा बेरे खो ॥ अहो व० ॥६॥ एश्योहित जाणो तुमें । एहश्री नवि सिधिरे लो॥ अहो ए० ॥ विषय हलाहल विष तिहां । सी अमृत बुधिरे For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५६) लो॥ अहो ॥ सी० ॥ ॥ लोग संग कारमा कह्या । जिनराज सदारे लो॥ अहो जि०॥राग देष संगे वधे नत्र भ्रमण सदारे लो ॥ अहो ज० ॥७॥राजसुता कहे साचए । जे जाखो वाणीरे लो॥ अहो जे० ॥ पण ए नूल अनादिनी किम जाए बंमागीरे लो॥ अहो कि० ॥ ए॥ जेह तजे तेह धन्य । सेवक जिन जीनारे लो॥ अहो से ॥ अमे तस पुद्गल रस रम्या । मोहे लय लीनारे लो ॥ अहो मो० ॥१०॥ अध्या तम रस पानथी । पीना मुनिरायारे लो ॥ अहो पी० ॥ ते पर परिणति रती तजी। निजतत्त्व समायारे लो ॥ अहो नि ॥ ११॥ श्रमने पण करवो घटे । कारण संयोगेरे लो ॥ अहो का० ॥ पण चेतनता परिणमे जम पुद्गल जोगेरे लो ॥ अहो ज० ॥ १२ ॥ अवर कन्या पण ऊच्चरे । चिंतित हवे कीजेरे लो॥ अहो चि ॥ पनी परम पद साधवा । उद्यम साधी जे रखो ॥ अहो न ॥ १३ ॥ प्रनंजना कहे हे सखी । एकायर प्राणीरे लो ॥ अहो ए० ॥ धर्म प्रथम करवो सदा । देव चंजनी वाणीरे लो ॥ अहो दे ॥ १५ ॥ ॥ ढाल २ जी ॥ कहे साहुणी सुण कन्यका रे । धन्या ए संसार कलेश । एहने जे हितकरी घणे रे । धन्या ते मिथ्या आदेश रे । सुज्ञानी कन्या शांचल हित उपदेश । जग हितकारी जिनेश ने रे कहे ॥ कीजे तसु आदेश रे ॥ सुझाए ॥१॥ सा ॥ खरमीनें वली धोयतुं रे कः ॥ तेह न शिष्टाचार । रतन त्रयी साधन करो रे ॥ क० ॥ मोहा धीनता वार रे ॥ सु० ॥ सा ॥२॥ जेह पुरुष वरवा तणी रे क० ॥ For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) ने ते जीव । स्ये संबंध पणे जणो रे क० ॥धारी काल सदीवरे ॥ सु० ॥ सा ॥ ३ ॥ तव प्रनंजना चिंतवेरे अप्पा ॥ तुं ने अनादि अनंत । ते पण मुज सिद्ध सत्ता समो रे अ॥ सहज अकृत महंत रे ॥ सु० सा॥॥ लव नमता सवी जीवधी रे अप्पा । पाम्यो सर्व संबंध । मात पिता भ्राता सुतारे अप्पा। पुत्र वधू प्रतिबंध रे ॥ सु० ॥ सा ॥ ५॥ स्युं संबंध कहुं इहां रे अप्पा । शत्रु मित्र पण श्राय । मित्र शत्रुता वली लहे रे। एम संसरण स्वन्नाव रे ॥ सु ॥ सा० ॥६॥ सत्ता सम सवी जीव ने रे अप्पा । जोतां वस्तु स्वन्नाव। ए माहरो एह पारको रे अप्पा । सविआरोपित नाव रे ॥ सु ॥ सा ॥ ७ ॥ गुरुणी आगल एहवं रे अप्पा । झुनु किम कहेवाय । स्वपर विवेचन कीजतां रे अप्पा । माहरो को न श्राय रे ॥ सु० ॥ सा० ॥ ॥जोग्य पणुं पण नूलथी रे अप्पा ॥ माने पुद्गत खंध । हुं लोगी निज नावनो रे अप्पा । परथी नहिं प्रति बंध रे ॥ सु० ॥ सा० ॥ ए॥ सम्यक् झाने वहेचतां रे अप्पा । हुँ अमूर्त चिद्रूप । कर्ता लोक्ता तत्त्वनो रे अप्पा । अक्ष्य अक्रिय रूप रे॥सु॥सा॥१०॥ जुदो सर्व विनावधीरे अप्पा। निश्चय निज अनुन्नूत । पूर्णानंदि परम एह रे अप्पा । नहिं पर परिणति रीत रे ॥ सु० ॥ सा ॥ ११॥ सिख समो ए संग्रहे रे अप्पा । पर रंगे पलटाय । संगांगी नावे करी रे अप्पा । अशुद्ध विलाव अपाय रे ॥ सु० ॥ सा ॥ १२ ॥ सुछ निश्चय नये करीरे अप्पा । श्रातम नाव अनंत । तेह अशुद्ध नये करी रे अप्पा। पुष्ट विनाव महंत रे॥सु०॥ सा॥१३॥ For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४८ ) sorकर्म कर्त्ता थयो रे अप्पा | नय अशुद्ध व्यवहार | तेह i नीवारो स्वपदे रे अप्पा | रमतां शुद्ध व्यवहार रे ॥ सु० ॥ सा० ॥ १४ ॥ व्यवहारे समरे थकी रे अप्पा | समरे निश्चया चार | प्रवृत्ति समारे विकल्पने रे अप्पा | तेह स्थिर परिणती सार रे || सु० ॥ सा० ॥ १५ ॥ पुद्गलने पर जीवश्री रे अप्पा | कीधो नेद विज्ञान बाधकता दूरे टली रे अप्पा | हवे कुण रोके ज्ञान रे || सु० ॥ सा० ॥ १६ ॥ आलंबन जावन वसे रे या । धरम ध्यान प्रगटाय । देवचंद पद साधवा रे अप्पा | एहज शुद्ध उपाय रे ॥ सु० ॥ सा० ॥ १७ ॥ ॥ ढाल ३ जी ॥ राग धन्याश्री ॥ थायो आयो रे । अनुजव श्रातम चो आयो । शुद्ध निमित्त आलंबन जजता श्रात्मा लंबन पायो रे ॥ ० ॥ १ ॥ तम खेत्रे गुण पर्याय विधि | तिहां उपयोग रमायो । पर परिणति पर रीते जाणी । तास fare समायो रे || श्रा० ॥ २ ॥ प्रथकत्व वितर्क शकल आरोही । गुण गुणी एक समायो । पर जय जव्य वितर्क एकता | डरधर मोह खपायो रे || ० || ३ || अनंतानुबंधी सुटने काढी । दर्शन मोह गमायो रे । तिरिगति हेतु प्रकृति दय कीधी थयो खतम रस रायो रे ॥ ० ॥ ४ ॥ द्वितीय तृतीय चोकमी खपावी । वेद युगल दय थायो । हास्यादिक सत्ताथी ध्वंसी । उदय वेद मिटायो रे ॥ ० ॥ ५ ॥ थई वेदीने अविकारी । हल्यो संजलनो कसायो । मार्यो मोह चरण क्षायक करी । पूरण समता समायो रे ॥ श्र० ॥ ६ ॥ घन घाति त्रिक योधा लमीया । ध्यान एकत्वने धायो । For Private And Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४ए) झानावरणादिक लट पमिया । जीत निशाण घूरायो रे ॥ आ० ॥ ७ ॥ केवल ज्ञान दर्शन गुण प्रगव्यो । महाराज पद पायो । शेष अघाति कर्म दीण दल उदय अबाध दिखायो रे ॥आ० ॥ ॥ सयोगीकेवली थया प्रनंजना लोकालोक जणायो । तीन कालनी त्रिविध वरतना। एक सममें उलखायो रे ॥ श्रा० ॥ ए॥ सर्व साधवीयें वंदना कीधी । गुणी विनय उपजायो । देव देवी स्तववे गुण स्तुति । जग जय पमह वजायो रे ।। आ ॥ १० ॥ सहस कन्यकाने दीदा दीधी। आस्रव सर्व तजायो । जग उपकारी देश विहारी । शुध धर्म दीपायो रे ॥ आ० ॥ ११ ॥ कारण योगे कारज साधे । तेह चतुर गाजे । आतम साधन निरमल साधे । परमानंद पाइजे रे ॥ आ० ॥ १२ ॥ एह अधिकार कह्यो गुणरागे । वैरागे मन नावी । वसुदेवहिंग तणे अनुसारे मुनि गुण नावना नावी रे ॥ आप ॥ १३ ॥ मुनि गुण थुणतां नाव विशुषे लाव विखेद न थावे । पूर्णानंद इहांथी उससे । साधन शक्ति जमावे रे ॥ आ० ॥ १४ ॥ मुनि गुण गावो नावना नावो । ध्यावो सहज समाधि । रत्नत्रयी एकत्वे खेलो । मेटी उपाधि अनादि रे॥आ० ॥१५॥राजसार पाठक उपगारी । ज्ञान धर्म दातारी । दीपचंड पाठक खरतरवर देवचंड सुखकारी रे॥आ० ॥१६॥ नयर लीबमी माहे रहीने । वाचयमस्तुति गाइ । आतम रसीक श्रोता जन मनने साधन रुचि उपजाइ रे ॥आ॥१७॥ इम उत्तम गुण माला गावो । पावो हर्षे वधाइ । जैन धर्म मारगरुचि करतां मंगल लील सदाइ रे ॥ आ॥ १० ॥ इति For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५०) श्रीपंमित देवचंद्रजीकृत प्रनंजना महासती सफाय संपूर्ण ॥ अथ पंमित श्रीदेवचंडजी कृत ॥ ॥ श्रीनेमिराजीमतीनो बारमास लिख्यते ॥ ॥सीयाले खाटू जली रे लाल ॥ ए देशी ॥ तोरणथी रथ फेरीयो रे लाल । नितुर नेमकुमार ॥ प्रेम विलूधी पदमणी रे लाल । वीनवे राजुल नार । हो रंगीला नेम सुण माहरी अरदाश ॥ १ ॥ सहीट्यांसुं राजुल कहे हो लाल । मगसिर नायो पीव । प्रीतम विन हिव माहरो हो लाल । धीरज न धरे जीव ॥ हो० ॥॥ पोस महीनो आवियो हो लाल । आयो मो सुख दैण । तो सूरतने सांवला हो लाल । देखण तरसे नेण ॥ हो ॥३॥ माह महीने सी पके हो लाल । पीउ संग पोढे नारी। प्रीतम विणहूं एकली रे लाल । कम रहूं निरधारी॥ हो ॥४॥ होली खेले हेतसुं हो लाल । फागुणमें नर नारी ॥ हुँ किणसुं खेलू हिवे हो लाल । पास नही जरतार ॥ हो ॥५॥ चेत महीने चांदणी रे लाल । संजोगण सुख देण । विरहणने वालम विना रे लाल । रोवत जावे रैण ॥ होग ॥६॥ वनहरिया वैशाखमें रे लाल । मांजर रही महकाय । अरज सुण। अबला तणी हो लाल । तपत मिटावो आय ॥ हो० ॥ ७॥ जेठ तपे लू आकरो हो लाल । दाजै कोमल गात । ससनेही साहिब विना हो लाल । कुण पूने मुझ वात ॥ हो लाल ॥ ॥ आषाढे काली घटा हो लाल । ऊनमि आयो मेह । कंत मिट्या निज नारसुं रे लाल । धरती मिलिया मेह हो ॥ ए॥ श्रावण चमके दामनी हो लाल । घन वरसे कम For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) लाइ । इण ऋतु सूतां एकली हो लाल । क्यू कर रैण विहाई ॥ हो० ॥ १० ॥ काली कालाहण मिलि हो लाल । लाघवमे वर खंत । अरज सुणीने साहिबा हो लाल । पूरो मो मनखंत ॥ हो ॥ ११ ॥ आसोजे आंसू करे हो लाल । नाह विना निस दीस । सारन पूरी साहिबे हो लाल । राखि रह्यो मनरीस ॥ हो ॥ १२ ॥ काती दृढ गती करी हो लाल ॥ जाय मिली गिरनार । देखी मुख निज नाहनो हो लाल । सफल गिणे अवतार ॥ हो० ॥ १३ ॥ संयम ले पिट सेंहथे हो लाल । पामे लवनो पार । इण पर पाले प्रीतमी हो लाल । धन धन ते नर नारि ॥ हो० ॥ १४ ॥ जे कीधी पशु ऊपरे हो लाल । भो पर करज्यो देवचंद नणी द्यो करि दया हो लाल। प्रनु चरणारी सेवा हो ॥ १५ ॥ इति श्रीनेमराजीमतीनो बारमास संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीपार्श्वनाथजीकी घग्घर नीसाणी लिख्यते ॥ ॥ सुख संपति दायक सुरनर नायक । परतिख पास जिनंदा हे । जाकी छवि कांति अनोपम उपित । दीपत जाण दिणंदा हे । मुख ज्योति जिगामिग झिग मिग २ । पूरण पूनमचंदा हे । सब रूप सरूप वखाणाहि जूपत । तूंही त्रिनुवन नंदा हे ॥१॥ करुणा सागर लोक सबे मिल । जाका जस्स श्रुणंदा हे । तेरी खिजमत्त करे इक चित्तसुं तो सेवक धरणिंदा हे । तें जलता आग निकाट्या नाग । किया वम नाग सुरिंदा हे । तो चरणां आय रह्या लपटाय । कला अति केलि करंदा हे ॥२॥ इक दिन्न महा रन्नवन पंचागनि । तापस ताप तपंदा हे । फल फूल For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५२) आहारी बुझा धारी । अस्प आहार लियंदा है । सब लेष सन्यासी रहे उदासी । अविनासी ध्यावंदा हे। दिसि च्यारां दिछी बले अंगीची। सूरज ताप तपंदा हे ॥३॥ महिमा वखारी सब नर नारी । जाकू आय नमंदा हे । एसी सुण वत्तां धरिय उकत्तां । पुत्तां पास जिनंदा हे । वामादे अरके कुण तो परके । मेरा हूंस पूरंदा हे । तिहां चालो पुत्तां जिहां अवधुत्तां । जो गारंन जगंदा हे ॥४॥ जननी मन आसा पूरण पासा । ऐरा पत्ति सऊंदा हे । गल घुग्घर माला जाण हे माला । दत्ताला उपंदा हे । वरवीर घंटाला मद मतवाला । कोलाली फलकंदा हे ॥ ५॥ पंचरंगी परकर सकी सखर । ढाला सुंढल कंदा हे । धत कारे धत्ता मत्ता अंकुप्त । मावत शीस दियंदा हे। गंगातट आये खमे रहाए । प्रनुज्ञानी आरकंदा हे ॥६॥ रे रे अनिमानी तप अज्ञानी । पावक जीव जलंदा हे । तिहां फाम मुफाम दिखाले लक्कम । वम फणधर नागंदा हे । नवकार सुणाया सुरपद पाया। तापस जस घटंदाहे । तिण किया नियाणा तप खजाणा । कोमी सट्टे वेचिंदा हे ॥ ७ ॥ हुयके क्रोधातुर आतुर सो कमगसुर धुर उपजंदा हे । अश्वसेन सुतन महाराज विषय मुख । जाणत आप तजंदा हे। पंचमुखी लोच किया आलोच । मनसुं सोच अफंदा हे । प्रनु अग्रति बंध विहार कियो तब । रनबन वास वसंदा हे॥७॥ उपशम अणगारे काउसग्ग मकारे। कमग सुरदा वलहंदा हे । वमा असुराणा वली हेराणा । पिगण विलोक धुखंदा हे । करि आतस क्रोध विचार विरोध । महा अनिमान धरंदा हे । वाउल मतवाली For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५३) नीली काली । वायु महा वाजिंदा हे ॥ ए॥ रवि किरणा कोट रही रज उंट। दिवाकर तेज पिंदा है।कर घोर घटा चिकटा नमटी । अरु बीजू गाजंदा हे । गरमाटा वाटा सुणिया थाटा। ऐरापति लाजंदा हे । हुआ अकाला धुर वरसाला । बीजलियां खिवंदा हे ॥ १० ॥ मोटी धारां सुं आरा बांसु । यों अंबू वरसंदा हे । चो जल खाला नदियां नाला । हेमाला हालंदा हे । दरियाव उलट्टां केतो फुट्टां । पाणी नहि मावंदा है। दिगपाल दहलां धरिय उत्सवां । खोणी पति खिसंदा हे ॥११॥ वमे पाहामां ऊंगी कामां । सकामां ढाहंदा है । समदाहंदी रेल वहंदी । जाणक जग रेखंदा हे । बहुवासर वून जाण किरुका । कुग मन असुरेंदा हे । तेवीशमराया वनमें पाया । कासग्ग कहा करंदा हे ॥ १२॥ उवसग्गाहंदी कोल करंदी। पाबा नहिं मुमंदा । धरि मनमें ध्याना क्रोध न माना । निश्चल ध्यान धरंदा हे । प्रनु नासां ताई नदी भाई तोही नाहि खुनंदाहे । देवाचल जेसा धीर पएसा पावस पीक सहंदाहे ॥ १३ ॥ तिण अवसर वरदां धरणी धरदां । भासण वेग चलंदा है । तिण अवधि प्रयुंजी दी। प्रनुजी । तन मन अति जल संदा हे । तिहां पदमावती देव सकत्ती सुं मिल वेग वहंदा हे । हुयके हेराना वैठ विमाना । पावां आय लगंदा हे ॥१॥ फण नाग हजारां कर विसतारा । बगत्तर ज्यूं गवंदा हे। ले आपण खंधे प्रेम निबंधे । पूरब प्रीत सुखंदा है। इंसाणी नारी सब सिणगारी । जोबन अंग फिल कंदा हे ॥ १५॥ राकापति वयणी मिरगा नयणी । सुंदर रूप सोहंदा हे । अणियाला For Private And Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५४) कऊल छलके विजाल । खूब वणाव वणंदा है। नकवेसर नत्यां लाल मुकत्यां। विच मोती फलकंदा हे । उढण पाटंबर जीपी अंबर । आ नूषण जलकंदा हे ॥ १६॥ र कंचु कसिया तन नवसिया । काम घटा गहरंदा हे । पहिरण तन खूवा हरिया दूवा । सोलेही सोहंदा हे । कटिमेखल कमियां सोने जमियां । हीरा वीच हलकंदा हेग्ध ॥१७॥घमके घुग्घरियां पाए धरियां। पग नेवर रणकंदा हे । ले जाकर ताला ताल कंसाला । पखावज वाजंदा हे । कुहके करनाला वीच रसाला । जंगी ढोल घुरंदा हे । वाजे सरणाई सखरी घाई। नगारा रोमंदा हे ॥१॥ पनमा वैरूट्टा आण उलट्टां । नाटिक मिल नाचंदा हे । तता थइ तत्ता श्रइ तान तमंमा । रस नेद रमंदा हे । दिन तीन वितीता तोहि न वीता । पावस जल पसरंदा हे ॥ १७॥ धरणी धर जाएया ग्यान पिगण्या । कमगसुर कोपंदा है। नागाधि पति अांख्यां रत्ती । कित्ती रीस आवंदा हे। रे मूढा धिता चित्त विणा । क्यूं नांहि समऊंदा हे । साहिब वलवंता जोर अनंता । तूं तो नहि जाणंदा हे ॥ २० ॥ ए क्षमासागर गुणके आगर । तीनूं लोक नमंदा हे । असमांन खमाई रीस जराई। हिकाई बज रंदा हे। कित्ती बहु गहां पमै दहलां धम हम देह धूजंदा हे । धरणे मराया तब ते आया । पावां आय लगंदा हे ॥१॥ कर जोमि खमाया सीस नमाया । जगनायक जिनचंदा हे । तूं साहिब सच्चा तो गुण रच्चा । मेरा दिल खुलंदा हे । तें रीसन धरियां दिणही विरियां । तूं ही अचल गिरंदा हे । कमगसुर कित्ती बहु विनत्ती । निज अपराध For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५५) खमंदा दे ॥ २२ ॥ सुरपति सिधाये निजघर आये । प्रनुके गुण समरंदा हे । सुध संजम पाले दोष निहाले । तब केवल उपजंदा हे । सम्मेत शिखर पर चढके ऊपर । सिह पुरी पोहचंदा हे । तेरी कीरत्ती जग ऊपत्ती। पार न को पावंदा हे ॥२३॥ तूं सच्चा रके नेद पररके । गुमानी मोमंदा हे । तूं अंतर जामी तूं वहुनामी । सुरनर सेव करंदा हे । तूं दीवाणा तूं खूमाणा। तूं मोजी मकरंदा हे । तूं असा पीर फकीर मुसाफर । तूं जोगी तूं जिंदा हे ॥ २५॥ तूं काजी मुबां मरद अदयां । तूं ही शेष फरीदा हे । तें ऊपाया धंदे लाया । मायामें मुलकंदा हे । तूं बूढा बाला मद मतवाला । तूं पक्का वाजंदा हे । तूं कच्चा कवला सवते सबला । सच्चा मऊ रहंदा हे ॥ २५॥ बाबा गोसांई लेद न पाई। नीम पड्यां आवंदा हे। तूं नारायण जोग परायण । माधव तूं ही मुकंदा हे । तूं कवला धारी तूं अवतारी । तूं देवां देवंदा हे । तूं एकां थप्पे एक उथप्पे । थिति निज सुध थापंदा हे ॥ २६॥ तो देवल मकां लोक तिसंकां । सीरणियां वाटंदा हे । गुण' गीत पयासे कीरत नासे । जीणे स्वर गावंदा हे । काला गुरु अगरसुं मलयागर । धूपेमा धुखंदा हे । कुंकुंम कसतूरी केसर पूरी । चंदन सुंचरचंदा हे ॥ २७ ॥ मरु आ मचकुंदा फूलाहंदा । टोमर कंठ वंदा हे। चंपा गुलाबां जरीय गवां । परमल तिहां वासंदा हे । कसबोई चंगी। रचीये अंगी फूलां वीच फावंदाहे । आजूषण धरियां तन ऊपरियां । कुंमल कान किगंदा हे ॥ २८ ॥ सूरत सोहंदी मूरत हंद।।दीगं नेण रंदा हे । तेरी बलि जा मोजां पाऊं। For Private And Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५६) वीनती तूं हि सुणंदा हे॥२५॥क्या कत्थू गहां हुकम अदया। समकित मन जलसंदा हे । सिद्धां दा वासा तिहां रहासा। तुझ सेवक विलसंदा हे । घग्घर नीसांणी पास वखाएं। गुण जिनहर्ष कहंदा हे ॥ ३० ॥ इति श्रीपार्श्वजिन घग्घर निसाणी संपूर्णा ॥ ॥ अथ श्रीपार्श्वजिन स्तवनं लिख्यते ॥ तूं मेरे मनमें प्रनु तूं मेरे दिल में ध्यन धरूं पल पलमें । पासजिनेसर अंतर जामी। सेवा करूं छिन छिनमें ॥ तूं०॥१॥ काहूको मन तरुणीसें राच्यो । काहूको चित्त धनमें । मेरो मन प्रनु तुमहीसें राच्यो । ज्युं चात्रक चित्त घनमें ।। तूं ॥५॥ जोगीसर तेरी गति जांणे । अलख निरंजन जिनमें । कनक कीरति सुखसागर तूं ही। साहिब तीन जुवनमें । तूं मेरे मनमे तूं मेरे दिलमे ॥३॥इति श्रीपार्श्वनाथजीरो स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥अथ श्रीचिंतामणी पार्श्वनाथजीका लघुस्तवन लिख्यते॥ ॥जिनजी महिर करीने राज । दरसण वहिलो दीजे । दीजे दीजे जी माहाराज । कारज सगला सीके । ए आंकणी । मुफ मन लमर तणी पर मोह्यो । गेझायो नवि लूटे । प्रेमराग बंधाणो पूरण तेतो कदियन खूटे ॥ जि० ॥ १॥ अलग थकां पिण हूं प्रत्तु तुमने । नहिय विसारं दिलसुं।रात दिवस एहवी मन वरते । जाणुं जा मिळु तुमसुं ॥ जि० ॥२॥ पूरब पुन्यथकी में पायो । ए अवसर आजूणो । मिलियो तूं प्रनु पास चिंतामण । साहिब सहज सलूणो ॥ जि० ॥ ३ ॥ थारे तो सेवक ने बहुला । मो सरिखा लख ग्याने । माहरे तो इण जगमे For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५७) जोतां । थारे नहीं कोई टाणे ॥ जि० ॥ ४॥ श्रासहीये इक ताहरीराखुं । बीजो मुखनही नाखू ॥ अमृत जेमलही तुक गुणरस खारो जलकिम चाखू ॥जि० ॥ ५॥ मोहन ए मुजानी महिमा । कहतां पारन आवे ॥ सायर लहर मालाने गिणतां कहोकुण मति उपजावे ॥जि ॥६॥ नगत पणे किंचित गुण नाखू हूं म्हारी मति सारू ॥ निरुपमा अनुपम तुक गुण लायक त्रिजुवन जीवनसारू ॥ जि०॥ ७ ॥ वरस अढार वली इकताले मिगसर पख उजवाले ॥ श्यारस दिन अधिक सनेहे यात्रकरी सुविशाले ॥ जि० ॥ ॥ जेसलगिरि श्रीसंघ जुगतसुं मेलो तिहां मंमायो ॥ लाल उदयजिनचंदने प्रनुजी वांध्यो प्रेम सवायो ॥ जि ॥ ए ॥ इति श्रीपार्श्वजिन स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥अथ सिद्धाचल स्तवनं लिख्यते ॥ श्राज आ चालो सहीयां सिघाचलगिरि जश्ये ॥ सिद्धाचलगिरि जश्ये बहेनी विमलाचलगिरि जश्येरे ॥ श्रा०॥ सुण बहेनी ए गिरिनी महिमा । आदिजिनंद इम लाखी ।। जरतादिक नरपतिने आगल । इंसादिक सहसाखीरे ॥ आ० ॥१॥णगिरिवरिये काल अनंते । साधु अनंता सीधा ॥ जन्म मरणनां दुःख गेमीने । श्रमल अखय गुणलीधारे । श्रा० ॥२॥णगिरि सन्मुख पगलां जरतां । आतम शुबसु नावे ॥ कोमिलवांरां पातक कीधा । एक पलकमें जावे रे ॥ श्रा० ॥ ३॥ सासतो तीरथ ए सेजो। जोतां लागे मीगे। तीन नुवनमें इणगिरि तोले । बीजो कोश्न दीगेरे ॥ श्रा० For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar (२०) ॥४॥ नीरंजनशुं नेहधरीने । आगे उलग करस्यां ॥ अद्भुत आदि जिनेसर निरखी । प्रेम सुधारस पीस्यारे ॥ आ० ॥५॥ पुष्प सुगंधा खेश पंचरंगा । हारसुगंधा गूंथी ॥ पैहिरावी प्रजुकं लहिस्यां । शिव मारगनी सूधीरे ॥ ॥६॥ गहिर स्वरे जिनवर गुणगातां । जात्र नवाएं करिये ॥ मनगमती जमती विचजमतां । जवसायर निसतरियरे ॥ श्रा ॥ ७ ॥ पूरव नवाणूं वार प्रथम जिन रायणरूखे आया ॥ ए तीरथ शुल नावें फरसी । करिये निरमलकायारे ॥ आप ॥७॥ लान नदेए गिरिवर लहिये । कहे श्म केवलनाणी ॥ श्रीजिनचंद सदा हितवत्सल प्रेम घणे चित्तवाणी रे ॥श्राप ॥ ए ॥ इति सिघाचलस्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री तीरथमाला स्तवनं लिख्यते ॥ शत्रुजय झपन समोसस्या जला गुण नसारे सीधा साधु अनंत । तीरथ ते नमुरे ॥ तीन कल्याणक तिहां श्रयां । मुगतें गयारे । नेमीसर गिरनार ॥ ती॥१॥ अष्टापद एक देहरो। गिरिसेहरो रे ॥जरते जराव्याबिंब ॥ ती० ॥ आबु चौमुख अतिजलो। त्रिनुवन तिलोरे ॥ विमलवसइ वस्तुपाल ॥ तीन ॥२॥ समेतशिखर सोहामणो । रलियामणोरे ॥ सिझा तीर्थकर वीश ॥ ती० ॥ नयरी चंपा निरखीये । हीये हरखीये रे ॥ सीधा श्रीवासुपुज्य ॥ ती० ॥३॥ पूर्वदिशें पावापुरी शके जरीरे । मुक्तिगया महावीर ॥ ती ॥ जेसलमेर जुहारीये । मुःख वारीयेरे ॥ अरिहंत बिंब अनेक ॥ ती० ॥४॥ वीकानेरज वंदीये । चिरनंदीयेरे ॥ अरिहंत देहरां आठ ॥ती० ॥ For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५ए) सोरिसरो संखेसरो । पंचासरोरे ॥ फलोधी थंजणपास ॥ तीन ॥५॥ अंतरिक अजावरो अमीरो रे ॥ जीरावलो जगनाथ ॥ ती० ॥ त्रैलोक्यदीपक देहरो जात्राकरो रे ॥ राणपुरें रिसहेस ॥ ती० ॥६॥ श्रीनामुलाई जादवो गोमीस्तवो रे ॥ श्रीवरकांणो पास ॥ ती० ॥ नंदीश्वरनां देहरां बावन जला रे ॥ रुचक कुंमल चार चार ॥ ती० ॥ ७॥ शाश्वती अशाश्वती । प्रतिमानती रे ॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल ॥ती ॥ तीरथ जात्रा फल तिहां होजो मुफ इहां रे । समयसुंदर कहे एम ॥ ती० ॥ ॥ इति तीरथमाला स्तवनं सपूर्णम् ॥ ॥ अथ नवकारतप स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ चोवीसे जिनवर नमी। पंच परमेष्टिसार ॥ परम मंत्र नवकारनी महिमा जणू उदार ॥ १ ॥ ढाल १ ली ॥ मुनिवर आर्य सुहस्ति ॥ ए देशी ॥ समरोश्रीनवकार । सार पूरवतणो। नवनिधि सिदि आपे सदा ए ॥ महिमा मोटी जास । संकट सब टले । मिले मनोरथ संपदाए ॥१॥ अमसठ वरण विख्यात । सातगुरु अदर । नवपद आने संपदाए ॥ सात सागरनां पाप । जाये अरे । संपूरण पांचसयमदाए ॥२॥ पुष्करवर दीपाई । सिझावटगाम । पासे परबत कंदराए ॥ चोमासी पच्चरकाण । करने तिहां रह्या । दमसार नामे मुनीसराए ॥ ३ ॥ नीलजीलणी बेअ । मनसुध नावसुं। नवकार मुनिपासे नणीए। बीजे जवराजसिंह । रतनवतीरांणी। शिवसुख पांम्या कर्म हणीए ॥४॥ रतनपुरी वसो जा । सेठतणोसुत । शिवनामा विसनीघाए ॥ अति श्रादरसुं तात । जास। सके नवनिधि सिदशी ॥ समरो For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६०) नवकार सीखव्यो । महा मंत्र गुण बहु जणूए ॥ ५॥ ए कदा योगी एक । समसानेलंगयो । शिवकुमार मनमें धस्योए ॥ नवकारने परनाव सबल संकट टल्यो । सोना पुरसो तिण कस्योए ॥ ६॥ ढाल २ जी॥ चरण करण धर मुनिवर वंदिये ॥ ए देशी ॥ श्रीनवकार तणी महिमा सुणो। पोतनपुर सुनवगमो जी। सेठ सुना तणी सुता श्रीमति । श्राविका धर्मनो कामो जी॥ श्री० ॥१॥ मिथ्यामते किण एक विवहारिये । परणी मनधर रागो जी ॥ धरम नमूंके हिये मन धरी । कलशमें {क्यो नागो जी॥ श्री ॥२॥ सापफीटीने फूल माला थई। महियल महिमा ए होजी ॥ पिउने कुटुंब सह प्रतिबूजव्यो । साचो धर्म सनेहो जी ॥श्री० ॥३॥दिति प्रतिष्ठित बलराजा तिहां । इक दिनबूगे मेहो जी ॥ नदीपूरबीजोरो आवियो । नृपने दीधोतेहो जी ॥ श्री ॥४॥ स्वादलही चिठी राजाकरी । बीजोराने कामो जी ॥ व्यंतर जाकरे नरने तिहां धेबीजोरोतामो जी ॥ श्री० ॥ ५॥ चिठी आवी जिनदास सेउनी । श्रावक शुध विवेको जी ॥ नमस्कार जण बीजोरो ग्रह्यो । बूकव्यो व्यंतर को जी ॥ श्री० ॥६॥ढाल ३ जी॥ नमणी खमणीने मन गमणी ॥ ए देशी ॥ श्री वसंतपुर जितशत्रुराया । जना नामें नारिसुहाया ।। चंग पिंगल चोखो नृपहारा । गणिकाने दीधो मनुहारा ॥ १॥गणिका पहस्यो हारते जाणी। सूलीदीधो चोरते आणी ॥ निज प्रमाद गणिका पलतावे । चोर समीपेनानी आवे ॥२॥ नमस्कार पिंगलने दीधो। तास प्रजावे वंचित सीधो नृपने घर पर अवतरियो । पापी चोर For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६१) एणेऊधरियो॥३॥ मथुरा नगरी जिणदास सेगतिहां किण हुंमक पापनी छ। एकदा चोरी करतां काल्यो।राजा हुकमें सूलीघाट्यो ॥४॥हुंमक चोरते प्यासे गाढो । सेठ कने जल मांगयोगढो॥ नवकारदीधो नपगार आंणी ।सुरथयो ततखिण धर्म सहिनाणी ॥ ५ ॥ चंपानगरीमें कीधुं । सुजनासती निकलंक प्रसीधुं ॥ श्रीनवकार प्रसादते जाणो । मनमें एहनी आसति आयो ॥६॥ ढाल ४ थी॥ जरत नृप लावसुंए ॥ ए देशी ॥ अमावसि पूनिमकरी ए । वीजली बांधी आकास। नमुं नवकारने ए ॥१॥ वृद नपामी चलावियोए । अनुपम महिमा जास ॥ न० ॥॥ वाबरूया एक चारतोए । नदिय प्रबाह्यो बाल । नमस्कार मनचिंतव्योए । जलफाटो तत काल ॥ न ॥३॥ हत्या चार करी हवे ए । वली कस्यापाप अनेक । बुटकवारो एहथी ए ॥ आवे चित्तविवेक ॥ न ॥४॥ मंत्रमाहे मोटो कह्योए । लाखगुणे मनरंग । तीर्थकरपदतेलहए ॥ श्रीनवकारने संग ॥ न० ॥ ५॥ दिन दिन अधिकी संपदाए । मनबंवित सुख श्राय ॥ दयाकुशल वाचक वरूए । धर्म मंदिर गुणगाय ॥ न० ॥ ६॥ इति श्री नवकारतपाधिकारे ४ ढाल नो वृक्ष स्तवन संपूर्णम् ॥ १ २॥ अथ श्रीनवकार छंद लिख्यते ॥ सुखकारण नवियणसमरो नित नवकार ॥ जिनशासन आगम चवदे पूरबसार ॥ इणमंत्रनी महिमा कहितांनलहूंपार सुर तरु जिम चिंतित वंचितफलदातार ॥१॥सुरदानव मानव सेवकरे करजोम । जूमंमलविचरे तारे नवियण कोम ॥ सुरचंदे For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६३) विखसे अनिसय जास अनंत । पहिले पद नमिये अरिगंजन अरिहंत ॥ ॥ जे पनरे लेदे सिद्ध थया लगवंत । पंचमि गति पुहता अष्टकर्म करि अंत ॥ कल कल सरूपी पंचानंतक जेह । सिघना पाय प्रणमुं बीजे पदवलि एह ॥३॥ गबजार धुरं धर सुंदर शशिहर सोम । कर शारण वारना गुण उत्तीसे श्रोल॥ श्रुतजाण शिरोमण सागर जेम गंजीर । तीजे पद नमिये आचारज गुणधीर॥४॥ श्रुतधर गुण आगम सूत्र जणावे सार। तपविधि संयोगे नाखे श्ररथ विचार ॥ मुनिवर गुणयुत्ता ते कहिये जवज्झाय । चोथे पद नमिये अहनिश तेहना पाय ॥५॥ पंचाश्रवटाले पाले पंचाचार । तपसी गुण धारी वारी विषय विकार ॥ त्रस थावर पीहर लोकमांहि ते साध । त्रिविधे ते प्रण, परमारथ जिण लाध ॥६॥ अरिहरिकरि साइण माइण जूतवेताल । सब पाप पणासे विलसे मंगल माल ॥ शण समस्यां संकट दूर टले ततकाल । जंपे जिणगुण श्म सुरवर सीस रसाल ॥ ॥ इति श्रीनवकारनो बंद संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीबृहत् नमस्कार स्तवनं लिख्यते ॥ किंकप्पत्तरु रे अयाण चिंतामण नितरि । किं चिंतामणि कामधेनु आराहो बहुपरि ॥चित्तावेली काज किसे देसांतर लंघन । रयण रासि कारण किसे सायर जांघन ॥ चवदे पूरबसार युगे लघन ए नवकार । सयल काज महियल सरे उत्तर तरे संसार ॥१॥ केवली नासिय रीति जिके नवकार आराहै । जोगवि सुरक अनंत अंत परम पय साहै ॥ इणजाणे सुररिधि पुत्तसुह विलसे बहुपरि । इणकाणे देवलोक For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६३ ) इंदपय पामे सुंदरि ॥ एहमंत्र सास्वतो जपे अचिंत चिंतामणि एह । समरण पापसबेटले रिद्धि सिधि नियगेह ॥ ॥ निय सिर ऊपरकाण मन्क चिंतवे कमल नर । कंचन मय अघ्दल सहित तिहां मांहे कनकवर ॥ तिहां बेग अरिहंत देव पलमासण फिटकमणि । सेयवत्थ पहरेवि पढम पय चिंते नियमणि ॥ निवारय चनग गमण पामिय सासय सुरक । अरिहंत काणे तुम हो जिम अजरामरमुरक ॥३॥पनर नेय तिहां सिक बीय पद जे बाराहे । राते विद्रुमतणेवन्न निय सोहग साहे ॥ राती धोती पहर जपे सिजहिं पुबदिसि । सयल लोय तिहां नरह होइ तत खिणसें वसि ॥ मूलमंत्रवशी करण अवरसह जगधंछ । मणि मूली औषध करे बुद्धिहीण जाचंध ॥४॥ दक्षिण दिसि पंखमी जपे नमो आयरिआणं । सोवन वन्नह सीस सहित उवए सहनाणं ॥ रिद्धि सिद्धि कारणे लान ऊपर जे ध्यावे। पहरि पीलावा तेह मन वंचिय पावे ॥णं काणे नव निधिदुवे रोग कदे नवि हो । गजरथ हय वर पालखी चामर उत्त सिर जोश्॥ ५॥ नीलवन्न उवज्काय सीस पाढंता पश्चिम । श्रारादिको अंग पुत्र धारंत मणोरम ॥ पश्चिम दिसि पंखमी कमल ऊपर सुह जाणं । जोवो परमानंद तासु गय देव विमाणं ॥ गुरु लघु जेलरके विपुर तिहां नर बहु फल होइ । मनसूधेविण जे जपे तिहां फल सिद्धिन होइ ॥६॥ सर्व साधु उत्तर विनाग सामला वश्ता । जिण धर्म लोय पयासंत चारित गुण जि । मणवयण काएहिं जपे जे एके जाणे । पंचवन्न तिहां नाणकाण गुण एह पमाणे ॥ अनंत For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६४) चोवीसी जगहुए होसी अवर अनंत । आदिकोइ जाणे नहीं इण नवकारह मंत ॥ ७ ॥ एसो पंच नमोकारो पददिसि अगनिहिं । सबपावप्पणासणो पद जपनेरेहिं ॥ वायवदिसि जाएह मंगलाणं च सवेसिं । पढम हवश् मंगलं ईसाण पएसि ॥ चिहुँ दिसि चिहुँ बिदिसे मिलिय अग्दल कमल उवे । जो गुरु लघु जाणी जपे सो घणपाप खवेश् ॥ ॥ इण प्रजाव धरणिंद हुढे पायालह सामी । समली कुंवर उपन्न निस सुर लोयह गामी ॥ संबल कम्बल बे बलद पहुता देवां कप्पे । सूली दीधोचोर देव श्रयो नवकारहि जप्पे ॥ शिवकुमार मन वंचिय करे जोगी लियो मसाण । सोना पुरसो सीधलो इण नवकार प्रमाण ॥ ए॥ ींके वेगे चोर एक आकासे गामी । अहि फिट्टि हुई फूलमाल नवकारह नामी ॥ वाउरू आ चारंत बाल जल नदी प्रवाहे । बींध्यो कंटही उयर मंत जपियो मन माहे ॥ चिंत्या काज सबे सरे शत परत विमास । पालित सूरि तणी परे विद्या सिद्ध आकास ॥ १० ॥ चौर धाम संकट टले राजा वति होवे । तित्थंकर सो होइ लाख गुण विधिसुं जोवे ॥ साइण माइण नूत प्रेत वेताल न पुहव। आधि व्याधि ग्रहतणी पीमते किसहि न होवे । कुछ जलोदर रोग सबे नासे एणही मंत । मयणा सुंदरि तणी परे नवपयकाण करत ॥ ११ ॥ एक जीह इण मंत्र तणा गुणकिता वखाणुं । नाणहीण नमत्थ एह गुण पार न जाणूं ॥ जिम सत्तुंजय तित्थराउ महिमा उदयवंतो । सयल मंत्र धुरि एह मंत्रराजा जयवंतो। तित्थंकर गणहर पणिय चवदह पूरब सार । इण गुण अंत For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६५) नको लहे गुण गिर नवकार ॥ १५॥ अमसंपय नवपय सहित इगस लहु अक्खर । गुरु अक्खर सत्तेव इह जाणो परमाक्खर गुरु जिणवबहसूरि नणे सिव सुरकह कारण नरय तिरय गइ रोगसोग बहु पुरक निवारण । जल थल महियल वन गहण स्मरण हुवे इक चित्त पंचपरमेष्ठि मंत्र तणी सेवा दज्यो नित्त ॥ १३ ॥ इति पंच परमेष्ठी महिमा स्तवनं संपूर्णम् ॥अथ सत्तर सो जिनको स्तवन ।। ॥हा॥ स्वस्ति श्री दायक सदा त्रैसलेय जिनचंद ॥ तत्पद नामी कंधरा कारण सिव सुख कंद ॥ १॥ वाच्यका सारदा तणो नर धरि समरण शक्ति । सप्तत्युत्तर सत जिन तणी रच स्युं नुति सुचि नक्ति ॥ ५ ॥ जे घीप समस्तनै मध्यमेरू कनकाल । पूर्वापर जवि तेहने विजय नामको लान ॥ ३ ॥ मूल विजय वसु प्रति दिशा कथनामें युगतीस । शीतोदा तरणी तणो कारण विश्वावीस ॥४॥ अंक धातकी दूसरो वीप मनोहर तेह । कंचन गिरि युग ने तिहां मन धारो धर नेह ॥ ५॥ त्रयतम पुष्कर जांणिये दीप सकल गुण खांण । अर्ध नाग जसु उत्तमें गिरि युग जलद समांन ॥ ६॥ लो जवि संख्या विजयनी प्रति मेरौ बत्तीस । धारो गणित अनुक्रमें षष्टयुत्तर शतहींस ॥ ७॥ एह आढाइ छीपनीविजयतणो परिमाण । काल चतुर्थ तिहां सदा नाष्यो श्रीजिनजाण ॥ ७॥ जिण तीर्थकर वारके विचर्या जे जिनराय । तेहूं प्रति विजये नएं आगमसुं चित लाय ॥ ए॥ ( ढाल पारणेकी)॥ तिण काले ने तिण समेजी तीर्थकर महाराज । For Private And Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६६) अजित जिनेसर राज ताजी तारण तरण जिहाज । नविक जन धारज्यो धर्म सनेह ॥ टेर ॥ १॥ अतिशय चौतीस संजुआजी वांणी गुण पैंतीस ॥ लोकालोक प्रकाशताजी प्रणमत नर सुर ईस ॥ ज० ॥२॥ एहवा श्रीजिन वारके जी एकसो साठ जिनंद । विचर्या महियल बोधताजी विजय मकार सनंद ॥ ज० ॥ ३॥ पंच पंच नरतैरवतेजी दशमित श्रीजिनराय ॥ विचरै जगजन तारताजी समर्या संपति थाय ॥ ज० ॥५॥ए सत्तर सो जिनवरुजी अतुल सकल गुण खांण । श्यामवरण सोले कह्याजी अकल कला द्युतिवांन ॥ज० ॥ ५॥ रक्ताकृति त्रिंशत कह्याजी नीलवरण वसु तीस रवि जिम कलहल लाधरुजी कनकवरण बत्तीस ॥ ज० ॥६॥ रजत मुक्त वय जल कणाजी समसित विमल प्रकाश । नविक चकोर प्रमोदताजी शशि जिम जिन पच्चास ॥ ज० ॥७॥ प्रति जिन व्रत उपवासथीजी वीस प्रमित जप माल । त्यक्त कषाय शुजातमांजी धरिये लाव विशाल ॥ ज० ॥ ॥श्म ए तप पूरण हुयांजी उजमणे जिन शक्ति । कीजे श्रीजिन शाशनेजी संघ सहूनी नक्ति ॥ ज० ॥ ए ॥ ए तपविधि नवि जे करेजी प्रेमसहित जिन धर्म । साधन गुण अनुमोदताजी ते लहे दिव शिव शर्म ॥नम् ॥ १० ॥ कलश ॥ संवत मुनिसर लोक नारद चंड ज्येष्ट (१९३७) पमुरए वदि सप्तमी रवि दिने हितवसन कथन धर जूरए । गुरु खरतरांबर तरणि सनिल जैनचं सनुरए एतवन कीधोजीमगंजे श्रमण चंदक पूरए ॥ ११ ॥ इति श्री सत्तरसो जिन स्तवनं संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६७) ॥ अथ कम्म पयडी स्तवन ॥ ॥ दुहा ॥ सेना माता जितारि सुत श्रीसंनव जिनराज ॥ मूल करम उत्तर पगई हणी चढे सिवपाज ॥ १॥ अष्ट करमकुं क्ष्य करी गुण अष्टक निष्पन्न ॥ सादि अनंत स्थिति सही चिदानंद विदघन्न ॥॥ तासु चरण प्रणमी करी कम्म पयमि विस्तार ॥ वर" जविजन हित जणी प्रवचनने अनुसार ॥ ३ ॥ ढाल रामचंजके बाग ए देशी ॥ अष्ट कर्म तीर्थेश नांमे जिन्न कह्यारी ॥ हेय वस्तु परित्यज्य आतम गुण ग्रह्यारी ॥१॥ नाण दंशण आवर्ण वेदनी मोह बूरोरी । श्राजखो नाम गोत्र कर्मातराय चूरोरी ॥२॥ ज्ञाना वरणी कर्म दर्शना वर्ण तणोरी । वेदनीय अंतराय तीस कोमा कोमी नोरी ॥३॥ नाम कर्म गोत्र कर्म वीश कोमा कोमी हवेरी । आयु सागर तेतीस हिव मोहनीय युवेरी ॥४॥ सत्तरी कोमाकोमी सागर मान लण्योरी ॥ ए उत्कृष्ट स्थिति जोम केवली काल गण्योरी ॥५॥ जघन्य स्थिति पंचकर्म अंतर मुहुर्त पणोरी ॥ नाम गोत्र दोय कर्म आठ मुहुर्त गणोरी ॥ ६ ॥ अकषाय वेदनी वर्ण्य वेदनी कर्म वदेरी । बारे मुहुर्त्त मांन शास्त्रानुसार मुदैरी ॥ ७ ॥ नाणा वरण अंतराय पंच पंच जेद जुदारी । वेदनीय गोत्रकर्म दो दो लेद उदारी ॥७॥ दर्शना वरण नव नेद आयुच्यार विधेरी । मोहकर्म अमवीस सौत्रिकनामसधेरी ॥ ए॥ एक सो अचावन्न उत्तर प्रकृति कहीरी ॥ अष्टकर्मना जांण सर्व विकल्प सहीरी ॥१०॥ For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६० ) ० ढाल || नणदल चुकले जोवन फिल रह्यो ए देशी || पाटे सम ज्ञानावरण के दर्शनावरण प्रतीहार जवियण कर्म विवेचन कीजिये | मधु लिप्तासि धारानी परे वेदनी कर्म मुदार । नविय ॥ १ ॥ मदिरा बाक समान वे मोह सुट महराण ॥ नवि० ॥ खोरे बंधी खाने सारखो आयुकर्म प्रमाण ॥ ज० क० ॥ २ ॥ चीतारे सम नाम कहीजे गोत्रकुंजार समान ॥ ज० ॥ श्रीधर जंकारी सम दाख्यो अंतरायकु ध्यान ॥ ज० क० ॥ ३ ॥ अष्टकर्म ए जावना वीर वदे व्याख्यान ॥ ज० ॥ कर्म संसार स्वरूप अकरम सिद्धि सुश्रान ॥ ज० क० ॥ ४ ॥ मिसासादन मिश्रा विरति देस विरति प्रमत्त 11 ० श्रप्रमत्त गुण अंत सवीमे करम बंध व सत्त क० ॥ ५ ॥ पूर अनुवृत्ति गुण में आयु वरज सप्त बंध ॥ ज० ॥ सुहुम संपराय दशम गणें विन मोहाय पट बंध ॥ ज० क० ॥ ६ ॥ उपसम खीए सजोगमें वेदनी बंध उदार ॥ ज० ॥ योगी गुण चन्दमें नहीं बंधत कर्म द्वार ॥ ज० क० ॥ ७ ॥ कर्म बंध हेतु का मिथ्यात अविरत जोय ज० ॥ क्रोध प्रमुख कपायश्री योग युगत च्यार होय ॥ ज० क० ॥ ८ ॥ पन्नवणण उपांग में कर्मस्थिति पद लेय ॥ ज० ॥ कर्म वेद पण वीसमें कर्म प्रकृति वेद ज्ञेय ॥ ज० क० ॥ ए ॥ कम्म पयमी कर्म ग्रंथ में कर्म तो निरधार ॥ ज० ॥ बंध सत्ता उदीरणा उदय प्रमुख परकार ॥ ज० क० ॥ १० ॥ एकसो घावन थया चनत्थनत्त तप सार ॥ ज० ॥ तप उद्यापन इम करो पूजा अष्ट प्रकार ॥ ज० क० ॥ ११ ॥ ष्ट ज्ञानो For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६ए) पगरण नला अष्ट मंगल वृध बाल ॥ ज० ॥ वात्सट्य चौविह संघनी यथाशक्ति सुविलास ॥ ज क ॥ १२ ॥गरोधन तप करे कर्म प्रकृतिनो सार ॥ ज० ॥ सुर नर सुख अनुक्रम लही शिव रमणी जरतार ॥ न क ॥ १३ ॥ कलश ॥ जिन चंद सूरि मुणिंद खरतरगण खशशि सम युगवरा तासु वचने स्तवन कीधो नयर श्री वालूचरा। चंधानुयोग निध्येक वरषे विशद फालगुन दादशी नवकाय तत्व प्रधान गणिने अमृत गति चित नित वशी॥ १४ ॥ इति श्री कम्म पयमी स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्रीशांतिनाथजीनो वृद्ध स्तवन लिख्यते ॥ ॥श्रीसारद मात नमुंसिरनामी हुंगा त्रिभुवनके स्वामी। संतहि संत जपे सब कोइ । जांघर शांति सदा सुख होई॥१॥ सांति जपी ने कीजे कामा । सोइ काम दुवै अलिरामा । सांति जपी परदेश सिधावे । ते कुशले कमला ले आवे ॥२॥ गर्न थकी प्रनु मारि निवारी । शांतहि नाम दियो महतारी। जे नर शांति तणा गुण गावे । शधि अचिंति ते नर पावे ॥३॥ जा नरकुं प्रनु शांति सहाई। ता नरकुं कुल आरति नांहि । जो कबु वंजे सोही पूरे । दारिज दोष मिथ्या मत चूरे॥४॥ अलख निरंजन ज्योति प्रकासी । घट घटके नीतर प्रनुवासी। स्वामि सरूप कह्यो नवि जावे । कहितां मोमन अचरिज आवे ॥५॥ मार दिया सबही हथियारा । जीतामोह तणा दलसारा । नारितजी सिवसुं रंग राचै। राजतज्यो पिण साहिब साचे ॥६॥ महा बलवंत कही जे देवा कायर कुंथु ने एक हणेवा । For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१० ) सिहू प्रभु पासलहिजे जिक्षा हारी नाम कहीजे ॥ ७ ॥ निंदक पूजक हे सम नायक पिए सेवगकुं सदा सुख दायक तजी परिग्रह नए जगनायक नाम अतीत सर्वे विध लायक ॥ ८ ॥ शत्रु मित्र समचित्त गिली जे नामदेव अरिहंत जीजे । सयल जीव हितवंत कही जे सेवक जांण महापद दीजे ॥ ए ॥ सायर जेसा होय गंजीरा दूषण नहिं इकमाहिं सरीरा मेरु अचल जिम अंतर जामी पिए नरहे प्रभु एकए गंमी ॥ १० ॥ लोक कहे प्रभुजी सब देखे पिए सुपनोकबहु नवि पेखे रीस विना बावीस परीसद् सैन्या जीती तें जगदीसह ॥ ११ ॥ मानविना जग श्रांण मनावे मायाविना सवसुं मन लावे | लोन विना गुण रास ग्रहीजे निक्षु जये त्रिगमो सेविजे ॥ १२ ॥ निग्रंथपणे सिर बत्र धरावे नाम जति पिए चमर दुलावे | अजय दान दाता सुखकारण आगे चक्र चले रिदार ॥ १३ ॥ श्रीजिनराज दयाल जणीजे कर्म सबको मूल खणीजे । चौविह संघ जे तीरथ थापे लबी घणी देखी नवि पे || १४ | विनयवंत जगवंत कहावे नाकिसही कूं सीस नावे | अकिंचनको बिरुद धरावे पिए सोवन पंकज पग ठावे ॥ १५ ॥ तजि रंज निज आतम ध्यावे शिव रमणीकुं साथ चलावे राग नहीं सेवग पितारे देष नहीं निगुणा संग वारे ॥ १६ ॥ तेरी महिमा अनुत कहिये तेरे गुणांको पार न लहिये । तुं प्रभु समरथ साहिब मोरा हुं मनमोहन सेवक तोरा ॥ १७ ॥ तूं त्रिहुं लोक तणो प्रतिपाला । मेहूं अनाथ तूं दीनदयाला । तुं सरणागत राखण् For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७१) धीरा तुं प्रनु तारक ने वमवीरा ॥ १७ ॥ तुम जेसें वम लाग जपायो । तो मेरो कारज चढ्यो सवायो । कर जोमी प्रनु वीनवु तोसुं। करो कृपा जिनवरजी मोसु ॥ १ए ॥ जनम मरण निवारो तारो। नवसागरथी पार उतारो । श्रीहथणा पुर मंगण सोहे । तिहां जिन शांति सदा मन मोहे ॥ २ ॥ पद्मसूरि गुरूराजपसाये श्रीगुणसागरके मन लाये । जे नर नारि श्क चित गावे मन वंचित फल निश्चै पावे ॥ २१॥ इति श्रीशांतिजिनवृद्ध स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री १२ मा वासुपुज्य भगवाननो स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ वीरजी आयारे चंपावनके मेदान ॥ ए देशी ॥ नवियण ध्यावो रे । वासु पूज्य गुण खाण वंचित पावोरे । जिनवर चतुर सुजाण ॥ ज० ॥ ए आंकणी ॥ अंगदेश चंपा नयरि सोहंत । जयदेवीना जात कहंत वसु पुज्य राजाकुल दीवंत । चलदे सुपनारे देखे मात सुजाण । गर्जमां इंधेरे पूज्या जिनवर जाण ॥ ज० ॥१॥ एहथी वासु पूज्य दियोनाम । मातापिताना वंचित काम सहु जनगावे गुण अनिराम । योवन वयमारे संयमलीनो सुजाण । चारित्र पालिरे पाम्यो केवल नाण ॥ नवि० ॥२॥ संघ चतुरविध थाप्यो मुनीश लविजन तास्या विचरि जगीश । बोधबीज विस्तारि ईश । चंपापुरि आव्यारे । कीधो अणशण जाण । मुक्ति पद पायारे । सासनके सुलतान ॥ नवि० ॥ ३ ॥ देरासर त्रण जूमि मनुहार । लुयरेमां आदिनाथ जुहार । मध्यमां बारम For Private And Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१५) जिन सुखकार । ऊपर मजलेरे शीतल जिनवरजाण । नमि जिन स्वामीरे पारस नाथ कहाण ॥ नवि० ॥४॥ मूखनायक बारम जिनचंद । बिंबावलि सोहे अतिचंग । वुहारि नगरमा अतिनगरंग कृपाचं सूरिरे । चलमासो कीनो जाण । जगणीसे चमोत्तरेरे । गाया जिनगुण गान ॥ नवि० ॥ ५॥ इति श्री १२ मा वासु पूज्य लगवाननो स्तवनं संपूर्णम्॥ ॥ अथ बीजनो वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ वर्षमान जिनवंदिये त्रिशलानंदन देव । सिंह लंग्न सेवित सदा । सुरपति सारे सेव ॥२॥ जन्म समेथी जगगुरु । अतुल बली वमवीर । तप उत्तम विधियुत कह्यो जलनिधि जिम गंजीर ॥ १॥ ढाल १ ली ॥ कृपानाथ मुज वीनति अवधार ॥ ए देशी ॥ धर्म करो जिन राजनोजी । आणी उलट लाव, दोय नेदे आराधतांजी । पामो श्रातम स्वलाव नविकजन सेवो श्रीजिनवाणि निजगुण मणिनीखाण ॥ लम् ॥ १ ॥ तिथी आराधन फल तणोजी । शास्त्रमाहे अधिकार बीज आराधो नविजनाजी । तप किरिया विधिसार ॥नम् ॥ ५ ॥। दोय मास लघु दूजनेजी। जावजीव उत्कृष्ट दोय वरस दोय मासमांजी । करो बीज सुन प्रष्ट ॥ ज० ॥ ३ ॥ पमिकमणा दोय टंकनाजी । देववंदन निरधार विधिसेती फल नीपजेजी । पामे जवनो पार ॥ नम्॥४॥बीज दिवस नो सहु जुवेजी। चंत्रोदय सुप्रसीछ । वधति कला तिम जाएंजोजी । धर्मश्री For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७३ ) वंचित सी ॥ ज० ॥ ५ ॥ 5विध धर्म जिनवर कह्यो जी | देशने सर्व विरत । धर्म शुक्ल दोय ध्यानमां जी । होवे सदा निरत्त ॥ ज० ॥ ६ ॥ अर्थ प्रकाशे जिनवरू जी । सूत्र रचे धार । बिहू सेवे वाचंयमी जी । द्वादस अंग विचार ॥ ज० ॥ ७ ॥ ॥ ढाल २ जी ॥ नमोरे नमो सेडुंज गिरिरे ॥ एदेशी ॥ बीज दिवसमा जालीये रे । कल्याणक सुविशाल रे | श्रावण सुदि बीजे चव्या रे । सुमतिनाथ दयाल रे । नमोरे नमो जिनचंद्र रे ॥ १ ॥ माघमासनी उजली रे | बीज दिवसमां जा रे | जिनंदन जनम्या प्रजू रे । त्रिहूं जगना महिराण रे ॥ नमो० ॥ २ ॥ एहिज तिथी वासपूज्यजी रे । पाम्यो केवल ज्ञान रे । फागुण सुदि बीज जालीये जी । अरनाथ चव सुजा रे ॥ नमो० ॥ ३ ॥ समेतशिखर पर सिaatar रे । शीतल जिनवर नाए रे । चेतवदि बीज सुंदरु रे । विचल सुख मन प्राण रे || नमो० ॥ ४ ॥ इम कल्याणक इ तिथी रे । कालानंते होय रे । अनंत कहयाएक जाणजो रे । हम विधि जोय रे || नमो० ॥ ५ ॥ तप पूरण हूं कां रे । कमणो सुविवेक रे । रत्नत्रयी आराधना रे । धन खरचो बहु बेक रे ॥ नमो० ॥ ६ ॥ सीमंधरादि जिनवरारे विहरमाए जिन वीसरे । मनमंदिरमां आवजोरे । कृपाचंद्र सूरीशरे || नमो० ॥ 9 ॥ इति बीजनो बृद्धस्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ आठमनो वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ इहा ॥ वर्धमान जिनवरनमुं । समरि सारदमाय । अष्टमी तप विधिवरण | आगम युत संप्रदाय ॥ १ ॥ म्म तिथी बृ० १८ For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७४) अराधवा । नाखे त्रिजगजाण ॥ विधिसेति तपकीजिये । पामे उत्तम नाण ॥५॥ ॥ ढाल १ ली शंभव जिनवर वीनती ॥ एदेशी॥ आठम तप आराधिये । अष्टमी गति दातारो रे ॥ प्रवचनमाता आउने । पालो निसदिन सारो रे ॥ श्राम ॥१॥ अष्टसिद्धि कारक सदा । श्रामि तप उजमंता रे ॥ सामायक पोसह करि । पर्वतिथी सेवंता रे ॥ श्रा० ॥२॥ पर्वतिथीमां बंधाय । प्रायें परजव आयु रे ॥ तिण कारण तिथी तप करो । आगम मांहि गवायु रे ॥ श्रा० ॥ ३ ॥ बृहदावश्यकवृत्तिमा । हरिनसूरि बोले रे ॥ तिमचूर्णिलघुवृत्तिमां। योगशास्त्रमा खोले रे ॥ ॥४॥ नवपदप्रकरणवृत्तिमां। दिनकृत्य देवेंजसूरि रे॥विधिप्रपा पंचाशक वलि । इम अधिकार ने नूरिरे ॥ श्रा० ॥ ५ सामायक पहिला कह्यो । पाउल इरियानो पाठ रे ॥ जाणे पण माने नहिं । एह कर्मनो गठ रे ॥ ॥६॥ विधिथी सामायक करो । जिम पामो नव पारो रे ॥ अविधि श्री किरिया करि । नवि बूटे नवनो लारो रे ॥ ० ॥७॥ ॥ ढाल २ जी ॥ यतनी ॥ __परवतिथीये पोषध करिये । शुछ आगमने अनुसरिये । वली श्राप कर्मने हरिये । सलूणा नाव नले आराधो । एतो आराधि सिवसुख साधो । सलूणा श्राम तिथी आराधो ॥१॥आठम दोय चनदस कहिये । अमावस पूनिम लहिये। एह उतिथी चारित्र वहिये ॥ स ॥ ना० ॥॥ वली For Private And Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७५) कट्याणक तिथी जाणो । पजुषण मनमा आयो । इत्यादिक पर्व पिगणो ॥ स० ॥ ना० ॥ ३ ॥ बीजे अंगे पांचमे अंगे। उपाशकदशा सुखसंगे । आवश्यकटीका उमंगे ॥ स० ॥ ना० ॥ ४ ॥ इत्यादिक आगम साखे । परव तिथी ये पोषध लाखे । विधियुत करतां फल चाखे ॥ स० ॥ ना ॥ ५॥ जे नित्य पोषधने ताणे । आगम विधि ते नबि जाणे । हरिजन वचन परमाणे ॥ स० ॥ ना० ॥६॥ ॥ढाल ३ जी॥जइने कहेजो मारा बालाजी रे॥एदेशी ॥ श्रापम परव तिथी कही । मारा बालाजी रे । आराधो गुण गेह । जगगुरु वंदिये । मारा बालाजी रे । एह तिथी कट्याणक घणा । मारा वाला जीरे त्रिदुं कालना गिणो तेह । जगगुरु वं० । मारा वालाजी रे ॥१॥ आचारंगमां नाखिया ॥ मा० ॥ वा० ॥ नावना अध्ययनसार ॥ ज० ॥ मा० ॥ गणांग गणे पांचमे ॥ मा० ॥ वा० ॥ कट्पसूत्र मनुहार ॥ ज०॥०॥२॥ आगम प्रकरण चरित्रघणा ॥ मा० ॥वा ॥ एमां प्रगटपणे तूं जोय ॥ ज० ॥ वं० ॥ बकल्याणक वीरना ॥ मा० ॥ वा० ॥ आगम माहे होय ॥ ज०॥०॥३॥ पजूसण कटपे कह्यो ॥ मा० ॥ वा० ॥ पचास दिवस प्रमाण । तेह नवि माने मानश्री ॥ मा० ॥ वा० ॥ जिन आशा सुखखाण ॥ ज० ॥ वं०॥।॥ इम अनेक कल्पना करि॥ मा०॥वा॥ मनमान्यो माने तेह ॥ ज० ॥ वं० ॥ तुज आगम मुज मन वस्यो । मा० ॥ वा ॥ एहज लव लव होय ॥ ज० ॥ वं० ॥ ५॥ विसंवाद घणो पड्यो ।। मा० ॥ वा० ॥ केहने कहिये For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७६) जाय ॥ ज ॥ 4 ॥ अतिशय ज्ञानी तणो पड्यो ॥ मा० ॥ वा० ॥ विरह ते केम खमाय ॥ ज०॥ ॥६॥मुःखम कालमां ऊपनो ॥ मा० ॥ वा० ॥ दक्षिण जरत मकार ॥ जप ॥वं० ॥ प्रजूनो सरणो मे ग्रह्यो ॥ मा० ॥वा० ॥ प्रनु गे प्राण आधार ।। ज ॥ वं० ॥ ७ ॥ तारक तारो तातजी ॥ मा० ॥ वा० ॥ हुंचं सेवक तुज्ज ॥ ज० ॥ ५० ॥ अपराधि घणा तारिया ॥ मा० ॥ वा० ॥ केम विसारसो मुज ॥ ज ॥ वं० ॥ ॥ कलस श्रीवीर जिनवर नविक सुखकर मात त्रिशला नंदनो । में शुण्यो आगम नक्ति संयुत उरित कर्म निकंदनो । शुन वरस जगणीसे चमोत्तर नावसुदि आपम समें कृपाचंधसूरि स्तवन कीधो अनुजव ज्ञानप्रकाशमें ॥ १० ॥ इति अष्टमी वृक्षस्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ इग्यारसनो बृद्धस्तवनं लिख्यते ॥ समवसरण बेठा लगवंत । धरम प्रकाशे श्रीअरिहंत ॥ बारे परषदा वेठी जुमी । मिगशिर शुदि ग्यार सवमी ॥१॥ मशिनाथना तीन कट्याण । जनम दीदाने केवल ज्ञान ॥ अर दीक्षा लीधी रूवमी ॥ मि०॥२॥ नमिने उपर्नु केवल ज्ञान । पांच कल्याणक अतिपरधान ॥ ए तिथीनी महिमा एवमी ।। मि ॥३॥ पांच जरत ऐरवत इमहीज । पांच कट्याणिक दुवे तिमहीज ॥ पचासनी संख्या परगमी ॥ मि० ॥४॥ अतीत अनागत गिणतां एम । दोढसे कट्याणक थाये तेम ।। कुण तिथी जे ए तिथी जेवमी ॥मि०॥५॥ अनंत चोवीशी इण पर गियो । लान अनंत उपवासां तो ॥ ए तिथी सहु तिथी For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७७) शिर राखमी ॥ मि० ॥६॥ मौन पणें रह्या श्रीमलिनाथ । एक दिवस संयमव्रत साथ ॥ मौन तणी परिवत श्म पमी ॥ मि०॥७॥ अग्पुहरी पोसो लीजियें। चोविहार विधि शुं । कीजियें ॥ पण परमादन कीजें घमी ॥ मि० ॥॥ वरस श्यारे कीजें उपवास । जाव जीव पण अधिक उहहास ॥ ए तिथी मोद तणी पावमी ॥ मि० ॥ ए॥ जजमणुं कीजें श्रीकार । ज्ञानना उपगरण इग्यारे ग्यार ॥ करो काउसग्ग गुरु पाये पमी ॥ मि० ॥१०॥ देहरे स्नात्र करीजें वली। पोथी पूजीजें मन रखी। मुगति पुरी कीजें हुकमी ॥ मि० ॥ ११॥ मौन ग्यारस महोटुं पर्व । श्राराध्यां सुख लहिये सर्व ॥ व्रतपच्चरकाण करो आंखमी ॥ मि० ॥ १२ ॥ जेशल सोल इक्यासीसमें । कीधुं स्तवन सहूमनगमे ॥ समय सुंदर कहे करो ध्यावनी ॥ मि ॥ १३ ॥ इति एकादशी वृद्ध स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पंचमी वृद्धस्तवनं लिख्यते ॥ प्रणमु श्रीगुरुपाय । निर्मल ज्ञान उपाय ॥ पंचमी तप लएं ए । जन्म सफल गिणुं ए॥१॥चोवीसमो जिनचंद । केवल ज्ञान दिणंद ॥ त्रिगमे गह गह्यो ए। लवियणने कह्यो ए॥२॥ ज्ञान वमो संसार । ज्ञान मुगति दातार ॥ ज्ञान दीवो कह्यो ए साचो सर्दयो ए॥३॥ ज्ञान लोचन सुविलास । लोका लोक प्रकाश ॥ ज्ञान विना पशु ए। नर जाणे किशुं ए॥॥अधिक आराधक जाण । जगवतीसूत्र प्रमाण ॥ ज्ञानी सर्वतु ए। किरिया देशतु ए ॥ ५॥ ज्ञानी श्वासोश्वास । करम करे जे नास ॥ For Private And Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१७) नारकीने ए। कोम वरस कही ए॥ ६॥ ज्ञान तणो अधिकार । या सूत्र मकार ॥ किरिया ने सहीए ॥ ७ ॥ पण पानें कही ए॥ किरिया सहित जो ज्ञान । हुवे तो अति परधान ॥ सोनोने सूरो ए । शंख दूधे जयो ए ॥ ॥ महा निशीथ मकार । पंचमी अदर सार ॥ लगवंत जाखीयो ए गणधर साखियो ए ॥ ए॥ ॥ ढाल २ जी॥ कालहरानी एदेशी ॥ पंचमी तप विधि सांजलो । जिम पामो लव पारो रे । श्री अरिहंत श्म उपदिशे। नवियणने हितकारो रे ॥ पंच० ॥१॥ मिगसर माह फागुण जला । जेठ आषाढ वैशाखो रे ॥ण षटमासें लीजियें । शुजदिन सशुरु साखो रे ॥ पंच० ॥२॥ देव जुहारी देहरें । गीतार्थ गुरुवंदी रे ॥ पोथी पूजो ज्ञाननी सगति हुवेतो नंदी रे ॥ पंच० ॥ ३॥ बेकर जोमी लावशुं । गुरू मुख करो उपवासो रे ॥ पंचमी पमिकमणो करो। पढो पंमित गुरु पासो रे ॥४॥ जिण दिन पंचमी तप करो। तिण दिन आरंज टालो रे ॥ पंचमी स्तवन थुई कहो । ब्रह्मचारिज पिण पालो रे ॥ ५॥ पंचमास लघु पंचमी । जावजीव उत्कृष्टीरे ॥ पांच वरस पंचमासनी । पंचमी करो शुन दृष्टि रे॥६॥ ॥ढाल ३ जी॥ हिव नवियणरे पंचमी ऊजमणो सुणो । घर सारूरे बारू धन खरचो घणो ॥ए अवसररे श्रावंतां वलि दोहिलो । पुण्य जोगेरे धन पामंतां सोहिलो ॥ उबालो ॥ सोहिलो वलिय धन पामंतां पण धर्मकाज किहां वली। पंचमी दिन गुरु पास For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७५) आवी कीजियें काउसग्गरली॥त्रण ज्ञान दरसन चरण टीकी दे पुस्तक पूजियें । थापना पहिली पूज केशर सुगुरुसेवा कीजियें ॥ १ ॥ दाल ॥ सिद्धांतनी रे पांच परत वीटांगणा। पांच पूगरे मुखमल सूत्र प्रमुख तणा ।। पांच मोरारे लेखण पांच मजीसणा । वास कूपारे कांबी वारू वरतणा ॥ उबालो। वरतणा वारू वलीय कमली पांच किलमिल अति नली। स्थापना चारिज पांच उवणी मुहपत्ती पम पाटली ॥ पट सूत्र पाटी पंच कोथल पंच नवकरवालियां । इण परें श्रावक करे पांचमी ऊजमणुं उजवालियां ॥३॥ ढाल ॥ वलि देहरे रे स्नात्र महोत्सव कीजियें॥घर सारूरे दान वलि तिहां दीजियें ॥ प्रतिमाजीनेरे आगल ढोवणुं ढोइये । पूजानारे जे जे उपगरण जोये ॥ उबालो ।। जोश्ये उपगरण देवपूजा काच कलश शृंगारए । आरति मंगल थाल दीवो धूप धाणुं सारए ॥ धन सार केशर अगर सूकम अंगलूहणो दीस ए । पंच पंच सघली वस्तु ढोवो सगति शुं पचवीश ए॥ ३ ॥ ढाल ॥ पांचमीतारे साहम्मी सर्व जिमानिये । रात्रि जोगेरे गीतरसाल गवामिये ॥ इण करणी रे करतां ज्ञान आराधियें । ज्ञान दरिसरे उत्तम मारग साधिये ॥ उहालो ।। साधियें मारग एह करणी ज्ञान लहिये निरमलो।सुरलोकनें नरलोकमांहि ज्ञानवंत ते आगलो । अनुक्रमें केवल ज्ञान पामी सासता सुख जे लहे । जे करे पंचमी तप अखंमित वीरजिनवर इम कहे ॥४॥ कलश ।। इम पंचमी तप फल प्ररूपक वर्षमान जिनेसरो ॥ में श्रूण्यो श्रीअरिहंत जगवंत । अतुल बल अलवसरो॥ जयवंत श्रीजिन For Private And Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०० ) चंदसूरज सकलचंद नमसियो || वाचनाचारिज समय सुंदर जक्ति जाव प्रशंसियो । वारिजक्ति जाव प्रशंसियो ||२४|| इति पंचमी वृद्धस्तवनं संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री गौतमाष्टकं लिख्यते ॥ श्री भूतिं वसुभूति पुत्रं । पृथ्वीजवं गौतम गोत्ररत्नं ॥ स्तुवंति देवासुरमानवेंद्राः । स गौतमो यचतुवतिं मे ॥ १ ॥ श्री वर्धमानात् त्रिपदीमवाप्य । मुहूर्त्तमात्रेण कृतानि येन || अंगानि पूर्वाणि चतुर्दशापि । स गौतमो यह वांवितं मे ॥ २ ॥ श्री वीरनाथेन पुरा प्रणीतं । मंत्रं महानंदसुखाय यस्य ॥ ध्यायं - त्यमी सूरिवराः समग्राः । स गौतमो यतु वांवितं मे ॥ ३ ॥ यस्यानिधानं मुनयोपि सर्वे । गृहंति निहा भ्रमणस्य काले ॥ मिष्टान्नपानांवर पूर्णकामाः । स गौतमो यतु वांबित मे ॥ ४ ॥ अष्टापदा गगने स्वशक्त्या । ययौ जिनानां पदवंदनाय ॥ निशम्य तीर्थातिशयं सुरेन्यः । स गौतमो यछतु वांबित मे ॥ ५ ॥ त्रिपंशसंख्याशततापसानां । तपः कृषानामपुनर्भवाय ॥ अक्षीण लब्ध्या परमान्नदाता । स गौतमो यतु वांवितं मे ॥ ६ ॥ सदक्षणं जोजनमेव देयं । साधर्मकं संघ सपर्ययेव ॥ केवयवस्त्रं प्रददौ मुनीनां । स गौतमो यन्तु वांबितं मे ॥ ७ ॥ शिवंगते नर्त्तरि वीरनाथे | युगप्रधानत्व मिहै व मत्वा ॥ पट्टाजिषेको विदधे सुरेंद्रैः । स गौतमो यतु वांवितं मे ॥ ० ॥ श्री गौतमस्याष्टकमादरेण प्रबोधकाले मुनिपुंगवा ये ॥ पठति ते सूरिपदं सदैवानंदं वनंते नितरां क्रमेण ॥ ए ॥ इति श्री गौतमस्याष्टकम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०१) ॥ॐ नमः पार्श्वनाथाय विश्व चिंतामणीयते हाँ धर वंज वैरोट्या पद्मादेवी युतायते ॥ १॥ शांति तुष्टि महा पुष्टि घृति कीर्ति विधायिने उ झी मुष्ट व्याल वेत्ताल सर्वाधि व्याधि नाशने ॥२॥ जया जिताख्या विजयाख्या पराजितयान्विते दिक्पालैः ग्रहैर्य विद्यादेवी निरन्विते ॥ ३ ॥ ॐ असि भाउसाय नमः त्रैलोक्यनाथतां चतुषष्टि सुरेंजास्ते जाते त्रचामरैः ॥ ४॥ श्रीसंखेश्वर मंगन पार्श्वजिन प्रणत कल्पतरु कटपः चूरय विघ्ननातं पूरय मे वांवितं नाथ ॥ ५॥ इति त्रयोविंशति जिनस्तोत्रम् ॥ ॥ अथ पंचषष्टि यंत्र गर्भित श्री चतुर्विशति जिनस्तोत्रं लिख्यते ॥ ॥ आदौ नेमि जिनं स्तौमि। संजवं सुविधिस्तथा ॥ धर्मनाथं महादेवं । शांति शांति करं सदा ॥१॥ अनंतं सुव्रतं लत्यानेमिनाथं जिनोत्तमं ॥ अजितं जितकंदर्प । चं चंजसमप्रनं ॥॥ आदिनाथ महादेवं । सुपार्श्व विमलं जिनं ॥ मलिनाथं गुणोपेतं धनुषां पंचविंशति ॥३॥ अरनाथं महावीरं । सुमतिं च जगद्गुरुं ॥ श्रीपद्मप्रननामानं । वासु पूज्यं सुरैर्नतं ॥४॥ शीतलं शीतलं लोके । श्रेयांसं श्रेयसे सदा ॥ कुंथुनाथं च वामेयं । श्री अभिनंदनं विजूं ॥ ५॥ जिनानां नामनिर्बद्धः पंचषष्टिसमुन्नवः ॥ यंत्रोयं राजते यत्र । तत्र सौख्यं निरंतरं ॥६॥ यस्मिन् गृहे महा नक्क्या । यंत्रोयं पूज्यते बुधैः ॥ जूत प्रेत पिशाचादि । जयं तत्र न विद्यते ॥ ७ ॥ सकलगुणनिधानं यंत्रमेनं विशुद्धं ॥ हृदयकमलकोशे धीमतां ध्येयरूपं । For Private And Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०२) जय तिलकगुरोः श्रीसूरिराजस्य शिष्यो वदति सुखनिदानं मोदलक्ष्मीनिवासं ॥ ७ ॥ इति चतुर्विंशति जिनानां अष्टकं संपूर्णम् ॥ - ॥ अथ आत्मरक्षास्तोत्रं लिख्यते ॥ ॥ परमेष्ठिनमस्कारं । सारं नव पदात्मकं ॥ आत्मरक्षाकरं वज्र । पंजरानं स्मराम्यहं॥१॥ नमो अरिहंताणं । शिरस्कं शिरसि स्थितं । उनमो सब सिखाणं । मुखे मुख पटंबरं ॥२॥ उनमो आयरिआणं । अंगरदातिशायिनी ॥ ॐनमो नवज्जायाणं । आयुधं हस्तयो दृढं ॥३॥ नमो खोए सबसाहूणं । मोचके पादयोः सुन्ने ॥ एसो पंच नमुक्कारो शिला वज्र मई तले ॥४॥ सवपावप्पणासणो । वप्रो वज्र मयो वहि ॥ मंगलाणंच सबसि । खादिरंगार खातिका ॥ ५॥ स्वाहांतंच पदं शेयं । पढम हवश् मंगलं । वप्रो परि वज्रमयं पिधानं देह रक्षणे ॥६॥ महा प्रजावा रदेयं । दुजोपजवनाशनी ॥ परमेष्टिपदोद्भूता कथिता पूर्वसूरितिः ॥ ७॥ यश्चैवं कुरुते रदां । परमेष्ठी पदैः सदा ॥ तस्य न स्यानयं व्याधिराधिश्चापि कदाचन ॥ ॥ इति आत्मरदास्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ पंडित श्रीसमयसुंदरोपाध्यायजीकृत आलोयण ३६ सी लिख्यते ॥ ॥ पाप आलोयशुं आपणां । शुद्ध आतम साखे ॥ आलोयां पाप बूटीये । जगवंत श्म जाखे ॥ पा॥१॥ शट्य हीये श्री काढीजे । जिम किधा तेम ।। मुःख देखिस नहितर घणा। रूपी लखमणा जेम ॥ पा० ॥॥ वृक्ष गीतार्थ गुरु मिले । For Private And Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०३ ) श्रतमा शुद्ध कीध ॥ तो आलोय एलीजियें । नहीं तर शंखीध ॥ प० ॥ ३ || daal धिकोदेजिके । पारकाले पाप ॥ लेनार बूटे नहिं । सामो जागे संताप ॥ पा० ॥ ४ ॥ कीधां तिम कोइ कहे नीिं । जिन लमथक जूट ॥ कांटो जाग्यो श्रांगुली । खोत्री जे अंगूठ ॥ पा० ॥ ५ ॥ गामर प्रवाह तूं मूक जे । दुःषम काल दुरंत ॥ तम साखे आलोय जे । वेद ग्रंथ कहंत || पा० ॥ ६ ॥ करम निकाचित जे कर्या । तेतो जोगव्यां बूटे ॥ शिथल बंध बांध्या जिके । ते आलोयां तूटे ॥ ७ ॥ पृथवी पाणी यागना । वायु वनस्पति जीव ॥ तेहनो आरंभ तूं करे । स्वाद लीधो सदीव ॥ पा० ॥ ८ ॥ अंध मूंगो बोबको । मृगा पुत्रज्युं देख | अंगोपांगे तेहने । मारे लोहनो मेख | पा० ॥ ए ॥ बोले नहिं ते बापको । पण पीमा होय || तेहवी तीर्थंकर कहे । श्राचारंगे जोय ॥ पा० ॥ १० ॥ मूलो आदि देश | कंद मूल विचित्र ॥ अनंत जीव सुइ में | पन्नवा सूत्र ॥ पा० ॥ ११ ॥ जिनने स्वाद मारा जिके । तेतो मारशे तु ॥ जव मांहे जमतां थकां । थाशे जिहां तिहां फूल || पा० ॥ १२ ॥ जीने झूट बोहया घणां । दीघां कुमां कलंक ॥ गलजिजी थाशे गले । होशे महोडूं त्रिक || पा० ॥ १३ ॥ परधन चोरी लूटीया । पाड्यो घाशको पेट || मूख्यो जमे संसारमां । निरधन थइ नेट ॥ पा० ॥ १४ ॥ परस्त्रीने तें जोगवी । तुन स्वाद तुं लेसे ॥ नरके ताति पूतली । श्रलिंगण देशे ॥ प० ॥ १९ ॥ परिग्रह मेहयो अति घणो । इछा जेम श्राकाश ॥ काज सरे नहिं तेवां । 1 । For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) उत्तराध्ययन प्रकाश ॥ पा० ॥ १६ ॥ घाणी घंटी ऊखली। जीव जंतु पीलेश ॥ खमीतुं नहि तर नरकमें । घाणि मांहे पिलेश ॥पा० ॥१७॥ गनां अकारीज करी परे । गर्ने नांख्यां पाम ॥ परमाधामि ते तुने । नित्य नाखशे फाम ॥ १७ ॥ गोधानां नाक विधियां ॥ खसी कीधा बलद ॥ श्रारंजी उगमिया । राति जंचे शब्द ॥पा० ॥१॥ वाला वाट्या टांकतां । माकण खाटला कूट ॥ रेच लेइ क्रम पामिया । गलणो गयो बूट ॥ २० ॥ पा ॥ राग ष वाम्या नहिं । ज्यां जीवो त्या सीम॥अनंतानु बंधी ते श्रयी। कहे करीश केम ॥पा० ॥१॥ तम तमते नांख्यां तावमे । सट्यांधान जूवार ॥ तम फीने जीवते मूआं । दया नहिं लगार ॥ पा० ॥२२॥ अणगल पाणि खूगमा । धोयां नदिय तलाव ॥ जीव संहार कीधां घणा ॥ साबु फरस प्रत्नाव ॥ पा० ॥ २३ ॥ वैरी विष देश मारिया । गले फांसी दीध ॥ ते तुजने पण मारशे । मूकशे वेरलीध ॥ पा० ॥ २४ ॥ कोऊ अंगिठी ते करी । ताप्यो सघमी कुंम ॥ राते दीवो राखियो । पाप नस्यो पिंक ॥ पा ॥ २५॥ माथी विगेड्यां वामां । नीरि नहिं चार ॥ जनाले तरशे मूआं । किधि नहिंज सार ॥ पाम् ॥ २६ ॥ मा बापने मान्या नहिं । सव शुं संतोष ॥ धरमनो उपगार नवि धस्यो। सिंगल किम होय ॥ पा० ॥ २७ ॥ बांधो टुंटो पांगुलो। कांणो कोमीयो जार बोर ॥ मरम फिटि जानि बोलवू । कह्यां वचन कोर ॥ पा ॥२॥ मद्यने मांस अलक्षजे । खाधा इंशे दुश॥मिगमि मुक्कम देश्ने । प लेजे व्रतसुंस ॥पा०॥श्ए॥ For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०५) सामायक पोसा किया। लिया साधुना वेस ॥ पण संवेग धयो नहिं । कहि किम तुं करेश ॥ पा० ॥ ३० ॥ सूत्र प्रकरण सम. जतां । कह्यां विपरीत कोय ॥ जण जण मतने जुजूया। सुणतां नम होय ॥ पा० ॥ ३१ ॥ वचन तिके वीतरागना । तेतो सहि साच ॥ जगवति अंगे जोज्यो । वीरनी ए वाच ।। पा० ॥ ३२॥ करमादान पन्नरे कखां । वली पाप अढार ॥ खिण खिण ते सहु खामज्यो । संन्नारी संचार ॥ पा० ॥ ३३ ॥ ण नव परनव एहवां । कीधां होये पाप ॥ नाम कहीने खामजो । करजो पश्चाताप ॥ पा० ॥ ३५ ॥ खरच कांई लागशे नहीं । देहने नहीं सुख ॥ पण मन वैरागे आणज्यो । सहि पामशो सुख ॥ पा० ॥ ३५ ॥ संवत सोल अणुं ए। अहमदपुर मांहिं। समयसुंदर कहे में करी। आलोयण बनिसी जन्हांहिं ॥ पा० ॥ ३६॥ इति आलोयण बत्रीसी संपूर्णम् ॥ ॥अथ पंडित श्रीसारजीकृतस्याद्वादनी सझाय लिख्यते॥ - ॥आराधो अरनाथ अहोनिश ॥ एदेशी ॥ स्याद्वाद मत श्रीजिनवरनो । ते केम कहिये एकांतजी ॥ मत एकांत कहे मिथ्यात्वी। साखी सकल सिहांतजी ॥ स्या० ॥ १॥ त्रियारूप तिहां न रहे मुनिवर॥शोलमे उत्तराध्ययनने विचारजी ।। साधु साधवी वसे एकगं । श्रीगणांगे पांच प्रकारजी ॥ स्या० ॥२॥ जीव असंख्य कह्या जल टबके । पन्नवणा सूत्र जिनराजजी ॥ कल्पसूत्र मांहे नित्य नदीने । लंघे मुनिवर वहोरण काजजी ॥ स्या० ॥३॥ श्रीगणांगे चोथे गणे । मांस आहारी नरकें जायजी ॥ मद्य मांस मधु पण श्राचरणो । श्राचारांगे For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७६) कह्यो जिनरायजी ॥ स्यात् ॥४॥ पंचम अंगे न करे श्रावक। त्रिविध पन्नरह कर्मादानजी ॥ हल निवाहतणा पण दीसे । सप्तम अंगे कियां परमाणजी ॥ स्याम् ॥ ५ ॥ हिंसा न करे त्रिविधं मुनिवर । पंचमे अंगें जुवो धीरजी ॥ जिनवर तेजो लेश्या उपरि । शीत लेश्या मूंकी वीरजी ॥ स्या० ॥६॥ महावेदना हाथ लगायां । वनस्पतिने थाये अंगजी ॥ पमतो मुनिवर तेहज पकने। एह अर्थ ने आचारांगजी ॥ स्या॥७॥ जत्तराध्ययने लाख्यो मुनिवर । समय मात्र न करे प्रमादजी ।। दशवैकालिक त्रीजी पोरिसी। निंदतणी कीधी मरजादजी ॥ स्या ॥ ॥ अंध जणी पण अंध न कहेवो । दशवैकालिक ए विधि वादजी ॥ ज्ञाता अंगें जतियै नाख्या । नागश्रीना अवरणवादजी ॥ स्या० ॥ए ॥ सूत्रे देव अविरति बोल्या । हवे पांचमे चाणे मन रंगजी॥ब्रह्म चरिज तप अति उत्कृष्टो। देव नणी गणांगजी ॥ स्या० ॥ १० ॥ सूत्र नवि घटे प्रकरण विघटे । प्रश्न पूरी में तेहने एहजी ॥ षन बाहुवल शिवपुर पहोता । एकण दिन नांजो संदेहजी ॥ स्या० ॥ ११॥ सात जणाशुं मसी दीक्षा । सातमे गणे श्रीगणांगजी॥ बछे अंगें सात सयाशुं । कोण खोटो कोण साचो अंगजी ॥ स्या० ॥१२॥ नारी सहस बत्तीसें ज्ञाता । सूयगमांग सोल हजारजी ॥ किसनतणी अंतेजरी नाखी । किम मेलीजें एह प्रकारजी ॥ स्या० ॥१३॥ कुलगर पनरे जंबुपन्नत्ति।समवायांगे कुलगर सातजी॥ हरि बारमा जिन आवमे अंगें। तेरमे चोथे अंग कहातजी ॥ स्या० ॥१४॥ चारित्र विराधी जुवो पांचमे अंगें। जवन पतिमाहे For Private And Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh (२७) सुर थायजी ॥ तो सुखमालिका बछे अंगें। किम दूजे देवलोक कहायजी ॥ स्या० ॥१५॥ सूत्र टीका नियुक्ति वखाणो। चूर्णि नाष्य ए मेलो पंचजी ॥ पंच कहे तोतेमत साचो । तिण अर्थे मकरो खल खंचजी ॥ स्या० ॥१६॥ जीवा निगमें असंघयणी । नाख्या नारकी श्री जगवंतजी ॥ जंगणीशमेश्री उत्तराध्ययनें । मांस पिंक बोट्या सिद्धांतजी ॥ स्या ॥१७॥ विण व्याकरणें अर्थ करेजे।अर्थ नहिं पण अनरथ जाणजी॥ लांजे नावें नदी केम तरिये । दशमे अंगें कह्यो जिन नाणजी स्या० ॥ १०॥ श्रीजिन प्रतिमानुं वैयावच्च । करे कर्म निर्जरा काजेंजी ॥ दशमें अंगें साधु जणी ए। श्रर्थ विचार कह्या जिनराजेंजी ॥ स्या० ॥ १७ ॥ हेय गेय उपादेय वखाण्यो । तिम उत्सर्ग अने अपवादजी ॥ विधि चरितानु वाद नयसंस्थित । निश्चय नय व्यवहार मर्जादजी ॥ स्याम् ॥ २० ॥ अनेकांत नयवादी जिनवर । बागम मांहिं वद्या दश बोलजी॥ कहे श्रीसार समजके परिखो । श्रीसिम्घांत रतन बहु मोलजी ॥ स्या० ॥ २१॥ इति स्याद्वादनी सहाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीहंसभुवनसूरिकृत निश्चय व्यवहारनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ देशी एकवीशानी ।। ढाल ॥ श्रीजिनवररे । देशना दिये सोहामणी ॥ नवियणनेरे । नवसायर ऊतारणी ॥ तेह जिनवररे । विनय लावे हित धरी ॥ निश्चय नयरे व्यवहारथी अधिकोगणी ॥ त्रुटक ॥ व्यवहारथी नय अधिको जाणो। हवे आणो मन बली ॥ गृहवेष हुँते कोय न वंदे । जो थयो For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०० ) होय केवली ॥ व्यवहार अधिक वीर जाखे । धर्म दाखे जीवने ॥ अन्याय करतां जगति नेता । वारे दुर्जय लोकने ॥ १ ॥ || ढाल ॥ जुठे मुनिवररे । खप करतो नवि जाणीयो ॥ श्रधा कमरे । आहार असूतो आणीयो ॥ तेह केवली रे । आहार श्रयो ते जमे ॥ मुनि आगल रे । दोष प्रकाशे नवि किमे ॥ त्रुटक || नवि दोष जांखे साधु आगल | सूत्र ऊपर मतिटले || व्यवहार राखे श्रागम पाखे । साधु मारगथी चले ॥ खटमास कूर्मा पुत्र रहिया । गृहस्थवेषे केवली ॥ यतिवेष पामी वनी मांहे । नमे सुरराजावली || २ || ढाल || जरते सररे । रीसा मांहे जोवतां ॥ निजकाया रे । अनियत जावना जावतां ॥ पण श्रे रे । चार कर्म चूरण करी ॥ शुन ध्याने रे । केवल लम्बी तव वरी ॥ त्रुटक ॥ तव वरी केवल लम्बी राजा । इंद्र चोस आवए ॥ मनमां आणंदे कोय न वंदे | जामे वेष न पाव ॥ मुनिवेष पहेरी जाम विचरे । ताम वंदे सुरवरा ॥ उपदेश माला वृत्ति मांहे एसा दीसे अक्षरा ॥ ३ ॥ ॥ ढाल ॥ तप करतो रे । प्रसन चंद्र ऋषिराज रे ॥ वेष देखी रे | साध्यां उत्तम काज रे । सोनी घर रे । मेतारज वहोरण गयो । कृषि देखी रे | सोनार मन आनंद जयो || त्रुटक || सोनार मन आनंद यो । सार आहार वहोरावए ॥ तव जव न पासें मन विमासें । साधुने परि तापए | परलोक पहोतो साधु देखी । ताम वेष अंगीकरे || ऋषि घातकारी अनाचारी । वेषथ जीवित घरे ॥ ४ ॥ ढाल || वेष वंदो रे । निंदोमा मूरख पऐ || वेष राखे रे । धर्म यतिनो जिन जो ॥ गृही For Private And Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh ( ए) हूंतो रे । साधु समान क्रिया करे ॥ व्यवहारे रे । साधुपणुं को नवि कहे ॥ त्रुटक ॥ नवि कहे साधुपणुं गृहीने । प्रवचननी साखे करी ॥ राजर्षि सेलग थयो उसन्नो । शिष्य गया सवि परहरी ॥ साधु पंथग करे वेयावच । चोमोसी खामण करे ॥ शिष्य वचने सेलग वलियो । शत्रुजे अणसण उच्चरे ॥ ५॥ ढाल ॥ प्रतिमा मांहे रे । तीर्थकरना गुण नथी । जिनप्रतिमा रे। सर्दहिये धर्म सारथी ॥ तेम मुनिना रे । पूरा गुण नवि पामिये ॥ प्रतिमापरे रे। वेष देखी शिरनामियें ॥ त्रुटक ॥ प्रतिमा परे वेष देखी। हिये हरखी वांदवा ॥ श्रावक समकित स्थिरी कारण । गुण साधु तिहां नाववा ॥ साधु सेव करतो राग धरतो । कर्मनी करे निरा ॥ श्री नत्रबाहु गुरु पयंपें । आवश्यक मांहे अहरा ॥ ६॥ ढाल ॥ गुरु पाखें रे । दीक्षा दीधी नवि. हुवे ॥ गुरुसेवा रे । करतां सूत्र पूरो खहे ॥ मुनि आगल रे । वीर प्रकासे मनरलि ॥ सुणि गौतम रे । संबंध असुच्चा केवली ।। त्रुटक ॥ संबंध असुच्चा केवलीनो । वीर नांखे एलि परें ॥ अणसांजली जे केवल पान्यो । तेरी देशन नवि करे ॥ शिष्यने ते दीक्ष न दिये । कमजन रचे सुर बरा॥ व्यवहारे तेहनें कांई न हुवे । जगवती माहे अक्षरा ।।। ढाव ॥ मुक्ताफल रे । गुणे करी शोना सहे ॥ संयमस्थान करें । संख्यातीता जिन कहे ।। झाने पूरो रे । आचारे पूरो नहिं । एवा मुनिने रे । पंभित को निंदे नहिं ॥ अटक ॥ निंदे नहिं शषि वेष देखी । मुनि विना शासन नथी । एकवीश सहस वर्ष सीमा । चालसै धर्म बकुसथी । लिक्षांतना ए नाव बृ० १९ For Private And Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ए.) दोहिला । केवली विण नवि लहे ॥ श्रीहंस नुवन सूरिंद बोले। वीतराग एणि परें कदे ॥ ॥ इति नि व्य० स० ॥ ॥ आत्मोपदेश सझाय लिख्यते ॥ सासरीये एम जय रे बाई । सासरीयें एम जश्य ॥ जिनधर्म ते सासरं कहीयें । जिनवर देवते सासरो ॥ जिन आणा सासू रढीयाली । तेना कह्यामां विचरो रे बाई । साम् ॥ १॥ अरांने परां क्यांहि न नमिये । नमतां जस नवि बहीयें रे बाई ॥ सा ॥ ए आंकणी ॥ सीयल स्वन्नाव सोहे घाघरीयो । जीवदया कांचलमी ॥ समकित उढणी उंढीरे कोणी । शंका मेले न खरमी रे बाई ॥ सा ॥२॥ निश्चयने व्यवहार तणा वे। पाये नेउर खलके । मुविध धर्म साधु श्रावकनो कानें अकोटा फलके रे वाई । सा० ॥ ३ ॥ तप तणावे वेरखा बांहे । लगतगे तेजे सारा ॥ ज्ञान परमत तणुं ते अर्चा । मांहे परिणामनी धारा रे बाई ॥ सा ॥४॥ राग सिंदूरनुं की, टोलुं । शियलनो चांदलो शोहे ॥नावनो हार हैयामां लहेके। दाननां कांकण सोहे रे बाई ॥ सा० ॥ ५ ॥ सुमति साहेली साधे लेग्नें। दीये मारग वहीयें ॥ क्रोध कषाय कुमति अज्ञानी । तेहथी वात न करीये रे वाई ॥ सा ॥ ६॥ मिथ्यात्वी पीयरमां न वसीयें । रहेतां अलखामणां श्रश्य ॥ मोहमाया मावतर वीरु । दोहिलो काल निगमीय रे बाई ॥ सा ॥ ७ ॥ अनुजव प्रीतम साथे रमतां । प्रेमे आनंद पद लहियें ॥ विनय प्रजसूरी प्रसादें । जावें शिव सुख लहिये रे बाई॥सा॥७॥ इति स० संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१) ॥ अथ आत्मोपदशनी सझाय लिख्यते ॥ हुँ तो प्रणमुं सशुरु राया रे । माता सरसतीना वंडं पाया रे॥तो गाऊं श्रातमराया । जीवनजी बारणे मति जावो रे । तुमे घेर बेग कमावो ॥ चेतनजी बारणे मति जावो रे ॥१॥ ताहरे बाहिर उमति राणी रे । के तासुं कुमति केहे वाणी रे । तुनें जोलवी बांधशे ताणी ॥ जी० ॥ बा ॥२॥ ताहारा घरमां नेत्रण रतन रे । तेनुं करजे तुं तो यतन रे । ए अखूट खजीनो ने धन ॥ जी० ॥ बा ॥३॥ ताहारा धरमां पेग ने धूतारा रे । तेने काढोने प्रीतम प्यारा रे । एथी रहोने तुमें न्यारा ॥ जी० ॥ बा ॥४॥ सत्तावनने काढो धरमांथी रे । त्रेवीशने कहो जाये इहांथी रे । पठी अनुनव जागशे मांहेथी ॥ जी० ॥ बा० ॥५॥ शोल कषायने दीयो शीख रे । अढार पाप स्थानकने मंगावो नीख रे । पडे आठ कर्मनी शी बीक ॥ जी ॥ बा० ॥६॥ चारने करोने चक चूर रे । पांचमी शुं था हजूर रे ॥ पठे पामो आनंद भरपूर ॥ जी ॥ बा० ॥ ॥ विवेक दीवे करो अजुवालो रे । मिथ्यात्व अंघकारनें टालो रे ॥ पवें अनुभव साथै मालो ॥ जी० ॥ वा०॥ ॥ सुमति साहेवी शुं खेलो रे । धर्मतिनो बेमो मेहलो रे । पठी पामो मुक्ति गढ वहेलो ॥ जी० ॥ बा० ॥ ए॥ ममताने केम न मारो रे । जीती बाजी का हारो रे । केम पामो नवनो पारो ॥ जी० ॥ बा ॥ १० ॥ शुद्ध देव गुरु सुपसाय रे । मारो जीव आवे कांइ गय रे । पचे For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) आनंदघनमय थाय ॥जी॥ बा ॥ ११॥ इति आत्मोपदेश सकाय सं०॥ सुणो वीर्य बोलुं विशालो विबुधो नरे बार योधे मिलि एक गोधो दसे गोधे लेखवो एक घोमो तुरंगे बारे मिलि एक पामो दसे पंच महिषं मदोन्मत्त नागो गज पांचसे एक केशरी त्यागो हरि वीससे एक अष्टापदेको दस लद अष्टापदे राम एको जला राम युग्मे समो वासुदेवो दितीय वासुदेवें गणि चक्री लेवो जला लद चक्री समो नागसुरो कोमनागाधिपे एक इंज पूरो अनंते सुइंजे मिलिवीर्य जे- टची आंगली वीर प्रनु वीर्य तेहनो ॥१॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीथंभणा पार्श्वनाथजीरो स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ * ढाल । प्रनु प्रणमुंरे पास जिणेसर थंजणो । गुण गाश्वारे मुक मन ऊलट अति घणो । ज्ञानी विणरे एहनी आदिनको लहे । तोही पिणरे गीतारथ गुरु श्म कहैत्रूटकाइम कहै सास्त्र तणे प्रमाणे राम दसरथनंदनें। बांधवा पाजे शीत काजे समुन तट एकावनें । तिहां रह्या बांधव राम लमण सात्रि सेन्या अति घणी । प्रासाद एक उत्तंग तोरण थापना जिनवरतणी ॥१॥ ढाल ॥तिहां मूरतिरे मूल गुंजारे पासनी। मनम्तिरे थासापूरे आसनी । ते राजारे दिन प्रतिपूजा साचवे। कर जोमिरे वे बांधव इम बीनवे॥ त्रूटक वीनवे स्वामी तुह्म प्रसादे जलधि जल अंने किमे । तो पाज बांधुं लंक साधुं श्म कही प्रच पाय नमें। बहु पूज करतां ध्यान धरतां सातमास गया जिसे । नव दिवस अधिका श्रया ऊपरि । जलधि जल यंन्यो तिसे ॥२॥डाल For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (शए३) ए अतिशयरे अचरिज पेख्यो प्रनुतणो। तिणकारणरे नाम दीयो तसु ऑनणो । जल ऊपरिरे पाजकरी पत्थर तणी गढलंकारे साधेवा सीता जणी ॥ त्रूटक गढलंक साधी सीत याणी तेण वन आव्यावली । दिन आठ अजय महोठव कीया मन पूगी रखी। श्रीरामराजा शुद्ध श्रावक विनीता नगरी वसे । वीशमा जिनवर तणे वारे इम थया गुरु उपदिसे॥३॥ढाल॥ण अनुक्रमरे केतलो काल गयो वही । ते प्रतिमारे तिणवनमें निश्चल रही। इण अवसररे इंजतणे श्राएसकरी । सायरतटरे सोवनमे धारापुरी। त्रुटक बारिका नगरी कृष्णराजा अई जरत तणो धणी। तिहां वसै यादव कोमि उप्पन वहै आग्या जिण तणी । तिण काल तिण वन तेह तीरथ तेहनी महिमा सुणी । सारंग पाणी जाव आणी आव्या तिहां यात्रा जणी ॥४॥ ढाल २ जी ॥ श्राव्यो तिहां नरहरि जिणहर मन उदास । मनमें आणंदे वंदे अंजणपास । पेखे अतिनवली पूजा प्रजुजीने देह । एकेणे कीधी इम मन थयो संदेह । संदेह थयो अटवी चिटुं. पासे नहीं मानव संचार । केणकरी विद्याधर सुरवर पूजा सतर प्रकार । इसो विमासी मंम्प अंतर रह्यानुं गुपते गम । मध्यरात पाताले भावी । वासग विसहरसाम ॥ ५॥ तिहां श्रावी प्रणमें चै नाटिक आदेस । मिलि नागकुमारी विरचे अदनुत वेस । शकस्तव पत्नणे जाण्या श्रावक एह । हरि प्रगट्यो ततखिण साहमी तणे ससनेह ॥ ससनेह वासग कृष्ण नरेसर बेठा बिंबवखाणे । ए श्री जिणवर पास जिणेसर आदिन कोई जाणे । असीसहसवरस सामे पूज्या जे कुंता पायाले । धरण For Private And Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (शए।) एक प्रासाद कराव्यौ थाप्या एह जिनाले ॥६॥ सहुवात कहीनें वासग गयो पायाले । श्रीकृष्ण नरेसर मनचिंते तत. कालै ॥ जो एहवो तीरथ दुवे दारिकामकार । तो जाणुं नर लव सफल श्रयो अवतार । सफल जनम करिवाने काजे तेह बिंब तिहां थाणे । श्री कारिका हेममें जिणवर थाप्या प्रगट प्रमाणे । घणे काल पूजा तिहां पामी करम निकाचित जाण। श्रावकनें सुपनांतर आवी देववदे इम वाणी ॥ ७ ॥ प्रनु प्रतिमा वाहण लेई समुज मजारि । मुंके ज्यो नगरी थास्ये अवरप्रकार । तिण सागर अंतर कालगयो बहु जाम । दक्षिण दिसि उत्तम कुंती नगरी गम । कुंती नगरी जैनवसै जिहां श्रावक सागरदत्त । वाहण सातवटै व्यापारे पोते परघल वित्त । अन्य दिवस सायर विच वहतां जिहां ने थंजणपाश । परि आव्या अंच्या वाहण ते सवि श्रया उदास ॥७॥ ढाल ३ जी॥ मास दिवस वाणी थई अंबर सुर राय । प्रतिमा अंगण पासनी सायर जलमांय । सुर प्रगट्यो जिण सासणे ॥ सुर कहे वाणी एह प्रतिमा नावसुं प्रगट करो । जश् जैन कुंतीनगरी जिणहर मूलनायक एह धरो । ते बिंबकुंती मांहिं थाप्यो कहै बहु श्रावक तिहां । ए सकल तीरथनाथ समरथ पुन्य जोग मिल्यो इहां ॥ ए॥ इणि अवसर दसलर पुरे पालत्त सूर । विद्याबल अंबर में अतिसय जरपूर । तीरथ जाय जिणहरनमें । ते नमें सेनुंज प्रमुख गिरिवर सदा पाखी पारणे पालीयतांणे रह्यां थाणे नागारजुन जोगी पणें । ते धातु सोवन काज धमतां मास के रस करे । करि कोप जैरववीर नाखे रूप पंखीनो For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (एए) धरे ॥ १० ॥ तिण पालत्तै सूरिने जाण्यो एह महंत । पूजे को सुरदाखवो अतिसय गुणवंत । कृपाकरी मुज नाखवो । गुरु तेह नाखे जेह अंने उपजव सुरनर तणों । तिण कह्यो कुंतीने प्रसादें पास के प्रनु अंजणों । कुण यद वीर वेत्ताल व्यंतर सहू तसु सेवा करे । तेहनी दृष्टे साध विद्या जेम तुम वंचित सरे ॥ ११ ॥ विद्या पिण आकर्षण। । दुती जोगीने पास । ते प्रतिमा आणी तिहां । थापी निज आवास । सोवन रस सीधो जिहां । रस तिहां सीधो सुजस लीधो । नदी सेढीने तटे। गुरुनें जणाव्यो तिण कहाव्यो बिंब नंमायो घटे । इण काल धरम सुथान श्रोमा ढुसी मलेबाण इहां । खाखरा तले सेढिका तीरे । बिंब माखो तिहां ॥ १ ॥ ढाल ४ थी। मेघ आगम सही नदी जलटि वही वेलुका बिंब ऊपर वलै ए। तेण लुइ घणचरे खीर सुरही करे चीकणी नूमि खाखर तले ए। केतला दिन पळे सुगुरु खरतर गजे। श्री अजय देव सूरी सरूए । पट विगय परिहरी नग्रतप आदरी । रगत्त पित्ती श्रया मुनि वरूए । तेरगत्तपित्ती गलत काया चित्तमें चिंता करे । अधरात सासण देवी श्रावी कोकमा नव कर धरे । ए सूत्र तूं सुलका सुपरे ताम गुरु जंपे इसो । जो थायसी मुक नीरोग काया तो सही उखेलसुं ॥ १३॥ तामदेवी कहै नदीय सेढीवहै । तैण तट वृक्ष खाखर तलेए । तिहां तुझे जावो तवन करिवो नवो प्रगट थासी प्रनु धनणो ए। तेहनें स्नात्र जल रोग सवि जाय टले । म कहीय गई सासण सुरीए । संघ सगलो मिली तिहां जाइ मनरली । ताम धरणिंद ध्याने For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०६ ) धरीए । तिहां करी जयतिदुण बत्तीसी पास प्रगट्या तत खिणें । तसु सनानी रे सुखसरीरे धन्य धन्य सहको जलें ॥ तिहां थान थाप्यो सुजस व्याप्यो थयो परचो अति घणो । तेहनें नामें ते वामें गामवास्यो यंणो ॥ १४॥ श्रय महिमा घणी पाश यंजण तणी सुगुरु काया नवपल्लवीए । संघ श्रवे घणा करे वधावणा महियल कीरत विस्तरीए । सुपन जे देवता कोकमा नव हुता सूत्रते सूत्र सिद्धांत नामें । वृत्ति नव अंगनी जेद नव जंगनी रची आचारज तेा गमें। ते तेा गमँ सय पामें श्रासकर जो आवए । बहु जाव जत्ते एक चित्ते सेवतां सुख पावए । एकदा गुरु धरणिंद ध्यानें प्रगट थई पदमावती । श्री जयदेवसुरिंद आगलि । इम कहै सांजल यती ॥ १५ ॥ तवन जे तुझ को मंत्र अतिशय जखो अंति तसु गाहा जे वे कहीए । तेह गुणीये जिहां इंद्र यावे तिहां कष्ट विए तेह गुणवी नहींए । तेह जंगारवी काज संजारवी । तवन महिमा घणीए । समरतां संपदा रोग नामे कदा सदा आवश्यक धुरि जणीए । परिक्रमणा नित न धुरि एह विधि खरतर तीए । इम कही सासणि देव सामणि गई निज थानक जीए । केतले दिवसे देस गुजर सयल मलेवायण थयो । जलो वाम जाणी बिंब आणी । नयर श्री खंजायते यो ॥ १६ ॥ खंजनयर सिरि पास जिसे सरू । दिन दिन दीपे तलवे सरू । जात्र करेवा मुऊ ढुंती रखी । प्रभुमें यो खास सहू फली । मुक यास सफली थईय सांमी जाम जेव्या जगपती । सोजाग सुंदर करो उन्नति करूं एती वीनती । For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (209) अश्वसेन वामादेवी अंगज ध्यान मन तोरा धरूं । करिकृपा सामी सीस नामी सदा तुझ सेवा करूं ॥ १७ ॥ कलश ॥ इम स्तव्यो जण पास सामी नगर श्री खंजाइतै । जिम सुगुरु श्री मुख सुणी वांणी सास्त्र श्रागम संमते । ए यदि मूरति सकल सूरति सेवतां सुख संपए । मन जाव आणी लाज जाणी कुशल बाज पर्यं ॥ १० ॥ इति श्री यंजणपार्श्वनाथजीरो स्तवन संपूर्णम् ॥ * ॥ ॥ अथ अष्ट भय निवारण छंद लिख्यते ॥ * ॥ ॥ * ॥ डुहा ॥ सरस वचन दे सरसती ॥ एह अरज अवधार || प्रारथिया पहने नहीं ॥ उत्तम ए चार ॥ १ ॥ हितकरजे मोसु दिवे || दीजे वया रस्स || कवियण पिण शुनें कहे ॥ सखरो घणुं सरस्स ॥ २ ॥ गुण गिरु गौमी धणी पारसनाथ प्रगट्ट || मन सुझे मोटां तणां ॥ गुण गातां गरगट्ट || ३ || बंद नाराच ॥ प्रसिद्धि बुद्धि सिद्धि निद्धि रिद्धि वृद्धि पूरए ॥ कलत्त पुत्त कित्तिवित्ति व ते सनूरये ॥ वियोग सोग रोग लोग विग्ध सिग्ध घायकं ॥ प्रगट्ट देव नित्त मेव सेवो पास नायकं ॥ ४ ॥ गुमांन मोम हत्थ जोक देवकोकि वग्गये । अनूप भूप चूंप धारि श्राइ पाय लग्गये ॥ पहु बहु सुत्ति नित्त सब सोच लायकं ॥ प्र० ॥ ५ ॥ कुबोह लोह प्रोह को मोह मा वयिं ॥ अनंत कांत शांत दांत रूप मैं लकियं ॥ शेष शुद्ध तत्त जुत्त सोये मायकं ॥ प्र० ॥ ६ ॥ विसाल जाल सुबिसाल श्रमचंद बयिं ॥ रउद्दथी रिसाइ जाए एथ आइ रयिं । सुनै कंद गंध कांत कार्ज जोरा For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए) रायकं ॥ प्र० ॥ ७॥ कपूर पूर कस्सतूर कुंकुमा तुरंग ए। अरग्गजा अथग्गमें रहे गरक अंगए । अह गेह मुत्ति देह सबही सुहायकं ॥ प्र० ॥७॥ मृदंग दो दो दों दप्प मप्प वजाये । न फेर र जहरी नीसाण मेघ गऊए । तटकतांन थेई ई खक्ख सुक्ख दायकं ॥ प्र० ॥ ए ॥ बुहा ॥ करि केहरि २ दव ३ कुचाहि ४ रामि ५ समुद्दह ६रोग ७ अतिबंधण जय अटले । सांम नांम संयोग ॥ १०॥ बंद. नुजंगी ॥ हुंरित्त गको फुकंतो फुकोला । लपक्कै विलग्गीयली माल लोला । वलेटे वलाकावली सुंम दोखा करे निकरा जेम मई कपोला ॥ ११ ॥ पहुचालतो जाण पाहामतोला । फलकै ललकावतो लाख मोला । इसौ दूर पूर्व पता अकोला । जपंतां करे नांचिनी मात चौला ॥ १२॥ इति हस्तिजयनिवारणं ॥ महा सदसीहं अबीहं अदं नरे फाल आफालतो पुच कुंमं । किंगै फाम माचौ वमं वङ मुंमं । महातिरकनक्खं रखे रोख में ॥ १३ ॥ फुरकावतो मुंउ फामंत तु । ललकंत लोला विक विहंमं । धणी पासचौनाम ध्यानं धरंमं । टले श्याल ज्युं सीह होए अहं ॥ १४ ॥ इति सिंघ जय निवारणं ॥ जलां जंगलांमै जटा जूट जाला । घणां काम उजाममै अग्गकाला । बहु मिग्ग वग्गं पशु पंखिवाला । बलंता कमेमा चिमा जंति जाला ॥ १५॥ धुषै धूम लग्गो कीया नग्गकाला ऊलो काल रूखै टड्या नांहि टाला । वमे संकटे एण आयां विचाला । प्रनु नाम नीरे बुकै तत्तकाला ॥ १६ ॥ इति अग्निजय निवारणं ॥ कलकाल रूपि महा विकरालं । फणा टोप रोपै महा कोप For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( एए) जालं । वलकै वलंतो चलंतो करालं । जिणें फूंक सूकै तरु म्माल मालं ॥ १७ ॥ हला हाल संलोलियं विक्ख लालं । रहै लाल लोचन्न दोजीहवालं । धरंता प्रजू नाम रिदे विचालं । सही साम होवै जिसी फूस मालं ॥१०॥ इति सर्प जय निवारणं । लिमे जूप भूपे अधिक्के अटक्के । खलां हाम तूटै खमग्गां पटक्कै । परां हैवरां पाम नाखै पटक्कै । धुरां सिंधुरां कंधरा जूधटक्कै ॥ १५ ॥ पमै प्राण संधाण वांणे बटक्कै । दुकै केश हाथाल रोसे हटक्कै । कला काल गोले दु नालै जटक्कै । तुटै तुंग मुंमा प्रचंमा तटक्कै ॥ २० ॥ गगेहा सलोहा पता चिटक्कै । मुक्कै सूर ऊंफेम नांखै कटक्कै । प्रनुनाम खेतां सही अटक्कै । कदे बाल वांकी न होवै कटक्कै ॥ २१॥ इति युद्ध जय निवारणं ॥ जतन्ने घणें कोई वैसे जिहां जै । अग्गे जले आइ कुवाय वाजै । घटाटोप मेघा धम्मति गाजै। दुवकै तरंगा विरंगा हु वाजै ॥ २॥ लिचापिच्च लागी ऊमी ताल लाजै । अहो कोइ राखै अचै अम्मकाजै । इसे संकटे जे जपे जैन राजै । सही पारपामें तिके सुरकसाजै ॥ २३ ॥ इति जल जय निवारणं । गर्म गुंबमं गोलकं हीय होमी । हरस्सं खसं उध्रसं गांउ फोमी। टले गोमथी कोढ अम्हार रोमी । महाताप संताप आतंक कोमी ॥ २४ ॥ न होवै कदे कायमें कांई खोमी। सहु आधि व्याधं सही जाश् गेमी। जिनंदं नमैं मन्नमैं मान मोमी । लहै सो सदा सुरक संपत्ति जोमी ॥ २५ ॥ इति रोग जय निवारणं ॥ अमुंग बलेग वले मन्न खोटा । जियां चक्खं चुंची बुझ्या गाल खोटा । वले पाघवांकी लपेटा लंगोटा। For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३००) सहेट्या सह्या सबला हाथ सोडा ॥ २६ ॥ दीयैकोरमा देह दोलाद वोटा । वदै वोलवांका ऊमंत कोटा । पड्या बंदि खां. महा मुःख मोटा । प्रनु नामथी वेग थायै विचूटा ॥२७॥ इति वंदि नयनिवारणं ॥नमंता जिणेसं सदा मन्न रागै। सहीये महा कुछ नय अस नागै । रली लोक लरकं लुली पाय लागै। दिसो दिस्स मांहै । जसो जस्स जागै ॥२७॥ कलश ॥ परति खजिन वर पास । आस उनासह अप्पण । विविध जासगुण वाददासचा दालदकप्पण । चैण दैण जसु चरण । ईति अति नीति निवारण । लील लाउ लख गान विमल कीरत्ति वधारण। दिणपति जेम दीपंति इति । विमलचंद मुख नविकरण । दौलत्ति विजय हरखां दीयण धरम सींह ध्यानह धरण ॥२॥ इति अष्ट नय निवारण श्री गौमी पार्श्वनाथ जीको बंद संपूर्ण ॥ ॥ अथ दादाजीगगर निसानि ॥ सरस्वती माता जगतविख्याता कवियण मात कहंदाहे, कास्मीरांमंमण दुखविहंमण करवीणा सोहंदाहे, सदगुरु गुण गाउं वंचित पाउं खरतर ग सोहंदाहे, मंत्रि जिव्हागर बुधनो आगर सदगुरु तात कहंदाहे, १ माता जैतश्री रंनाजिसमि तस कुखे गुरु उपजंदाहे, संवत तेरेसे वरसे तीसे जन्म्या सुषहो वंदाहै, सेंताले वरसे दीक्षा हरसे गुरु जिनचंद दियंदाहे, सितो होतरे पाटे श्रीसंघ बाटे धो धो ढोल धुरंदाहे, नियासिवरसे सखरे दिवसे सुरगपुरी पोचंदाहे, पुनम सोम वारे हरख अपारे मेला खूब मिलंदाहे, घस केसररोलि नरीकचोलिक स्तुरी चरचंदाहे लोबान सिलारस अंबर अगर धूप सुगंध For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०१) धुकंदाहे, ३ गुरु चरणे आवे पूजारचावे मनवंचित सुख पावंदाहे, गुलाब चमेलि राश्वेलि गुरु चरणे चाहँदाहे, नारेल पतासा खुरमाखासा सिरणीयां वाटंदाहे नरनारी आवे वहु गुणगावे वीणा ताल वाजंदाहे ५ वाजे मृदंगानुगल नंला नेरी मुकमधु रंदाहे, नाचे तिहां पातर आवे जातर मुनिवर बहोत मिलंदाहे, सहु मनसा पूरे नवले नूरे एक मना ध्यावंदाहे, मांगेसोपावे मनमे ध्यावे आसा तास पूरंदाहे ५ पुरपट्टण गमे बहुते गामे धुंन जला गजंदाहे, देरावलदीपे मुस्मन बीपे जूना पिठ कई दाहे, मुनतान मरोटे सोहे कोटे गुरु विकाणे बाजंदाहे, नागो रजोधाणे तिवरी थाणे सोजत सुख दियंदाहे, ६ जेसांण वीलामे सुखदेसारे मेमतेमनमोहंदाहे, जालोरखंचायत वमि विगयत सदगुरु नितसोहंदाहे, पाटणने सुरत वहुजन पूजत नित महिमा वाधंदाहे अहमदावादे श्रीसंघ साधे सदगुरु दरस दियंदाहे, अनुजनयरसाचोरे बहुते जोरे उदेपुरे सोहंदाहे,इस रगढ मंमण उख विहंमण सबजनमनमोहंदाहे, इत्यादिक गमे नव नव गामे देस परदेस दिपंदाहे गुरु विषमी वाटे सुस्मन दाटे चोर धाम न खगंदाहे, ७ हस्तिमद माता नाहरचीता सींघस्या लहोवंदाहे, प्पासां जलपावे सुरितगमावे अपणा विरुद वहंदाहे, आपे निरधनियां बहुत लिमियां मणिमाणक दियंदाहे, अपुत्यां पूत दिए घरसुत दियंदाहे, ए श्म एकण जिहां कहुं गुण कहां पारनकोपावंदाहे, संवत अढारेसे बरस पेतीसे जेठमास जाणंदाहे सातम उजवाली सोम सवारी दोलत जती कहंदाहे, सदगुरु सुपसायां ए. गुणगायां For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०५) कोट मरोट वसंदाहे, नरनारी गावे वंचित पावे शदि सिधि नित वाधंदाहे, १० इति दादाजी गगर निसानी संपूर्णम् ॥ ॥ अथ दान शील तप भाव चोढालियो लिख्यते ॥ ॥हा ॥ प्रथम जिनेसर पाय नमी, पामी सुगुरु प्रशाद ॥ दान शील तप नावना, बोलिस बहु संवाद ॥ १॥ वीरजिनंद समोसस्या राजगृही उद्यान ॥ समवसरण देवें रच्यों, बैग श्रीवर्तमान ॥२॥ वैठी बारै परखदा, सुणवा जिपवर वाण, दान कहे प्रनु हुं वमो, मुझने प्रथम वखाण ॥ ३ ॥ सांजलजो. सहुको तुमें, कुण , मुफ समान ॥ अरिहंत दीक्षा अवसरे, आपे पहिलं दान ॥४॥प्रथम पहुर दातारनो, खेडु कोई नाम ॥ दीधारा देवल चढे, सी वंगित काम ॥ ५॥ तीर्थकरने पारणे, कुण करस्यै मुक होम ॥ वृष्टि करुं सोनातणी, साढीबारै कोमि ॥६॥ हुँ जग सगलो वस करूं, मुफ मोटी चै वात ॥ कुण २ दानथकी तिया, ते सुणज्यो अवदात ॥७॥ ॥ ढाल १॥ ललनाकी एदेशी ॥ धनसारथवाह साधुनें, दीधुं घृतनो दान ललना ॥ तीर्थकर पद में दियो, तिणें मुख्ने अनिमान ललना ॥१॥ दान कहै जग हूं वमो, मुझ सरिखं नहि कोय ललना ॥झधि समृद्धि सुख संपदा, दाने दोलत होय ललना ॥ दा० ॥ ॥ सुमुख नाम गाथापती, पमिलान्यो अणगार ललना ॥ कुमर सुबाहु सुख लहै, ते तो मुऊ उपगार ललना ॥ दा० ॥३॥ मासखमणनें पारणे, पमिलान्यो शपिराय ललना ॥ शालिजा सुख जोगवै, दानतणे सुपसाय ललना ॥ दा॥५॥ पांचसें मुनिने For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०३) पारणो, देतो वोहरी आण खलना ॥ जरत श्रयो चक्रवर्ति जलो, ते पण मुझ फल जाण ललना ॥ दाम् ॥ ५॥ आप्या उमदना बाकला, उत्तम पात्र विशेष ललना ॥ मूलदेव राजा अयो, दानतणा फल देख ललना ॥ दा० ॥ ६॥ प्रथम जिनेश्वर पारणे, श्रीश्रेयांशकुमार ललना ॥ सेलमीरस वहरावियो, पाम्यो नवनो पार खलना ॥ दा० ॥ ७॥ चंदनवाला बाकुटा, पमिलान्या महावीर ललना ॥ पंचदिव्य परगट थया, सुंदर रूप शरीर ललना ॥ दा० ॥ ॥ पूरव लव पारेवडूं, शरणे राख्यूं सूर ललना ॥ तीर्थकर चक्रवर्तिपणे, प्रगटयो पुन्य पडूर लखना ॥ दा॥॥ गजनव शिशलो राखीयो, करुणा कीधी सार ललना ॥ श्रेणिकने घर अवतस्यो, अंगज मेघकुमार खलना दा० ॥१०॥ श्म अनेक में ऊधस्या, कहतां नावे पार लखना ॥ समयसुंदर प्रनु वीरजी, मुझ पहिलो अधिकार ललना ॥११॥ ॥ दोहा ॥ शील कहे सुण दान तुं, किस्यो करै अहंकार ।। आमंबर या पदुर, याचकसुं विवहार ॥१॥ अंतराय वलि ताहरै, जोगकरम संसार ॥ जिनवर कर नीचो करै, तुमने पमो धिक्कार ॥२॥ गर्व म कर रे दान तूं, मुझ पूर्व सऊ कोय ॥ चाकर चालै आगले, तो स्युं राजा होय ॥३॥ जिनमंदिर सोनातणो, नवो निपावे कोय ॥ सोवन कोटी दानदिये शीयल समो नहि कोय ॥॥ शीले संकट सक टले, शीले जश शोनाग ॥ शीले सुर सानिध करै, शील वमो वेराग ॥ ५ ॥ शीलै सर्प न आनमै, शीले शीतल श्राग ॥ शीलै अरि करी केसरी, जय नावै सव नाग ॥६॥ जन्म मरणना For Private And Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०४) जय थकी, में बोमच्या अनेक ॥ नाम कहूं हिव तेहना, सांजखजो सुविवेक ॥ ७ ॥ ॥ ढाल २॥ पासजिनंद जुहारिये ॥ ए देशी॥ शील कहै जग हूं वमो, मुझ वात सुणो अति मीठी रे ॥ लालच लावै लोकनें, में दानतणी वात दीनी रे ॥ शी० ॥१॥ कलह कारण जग जाणी, वलि विरती नही पण काई रे ॥ ते नारद में सोफव्या, मुझ जुन ए अधिकाई रे ॥ शी० ॥२॥ बांहे पहिस्सा वैरखा, शंखराजा दूपण दीधो रे ॥ काप्यो हाथ कलावती, ते में नवपशव कीधो रे ॥ शी० ॥३॥ रावणघर शीता रही, तो रामचं घर आणी रे ॥ शीतानो कलंक उतारीयो, में पावक कीबूं पाणी रे ॥ शी० ॥४॥ चंपाबार उघामिया, वली चलणिये काब्युं नीरो रे ॥ सतीय सुनता जस अयो, में तह कीधी जीरो रे ॥ शी० ॥ ५॥ राजा मारण मांमीयो, राणी अजयायें दूषण दाख्या रे ॥ शूली सिंहासाए में कियो, में शेठ सुदर्शन राख्यो रे ॥ शी० ॥ ६॥ शील सन्नाह मंत्रीसरें, अवतां अरिदल यंन्यो रे ॥ तिहां पिण सानिध में करी वली धरम काज आरंन्यो रे ॥ शी० ॥ ७ ॥ पहिरण चीर प्रगट किया, में अठोत्तरसो वारो रे॥ पांझवनारी जौपदी, में राखी मान उदारो रे ॥ शी० ॥ ७ ॥ ब्राह्मी चंदनबालिका, वलि शीलवती दवदंती रे ॥ चेमानी साते सुता, राजीमती सुंदरी कुंती रे ॥ शी० ॥ए ॥ इत्यादिक में जयस्या, नर नारीना वृंदो रे ॥ समयसुंदर प्रनु वीरजी, पहिले मुळ आनंदो रे ॥ शी० ॥ १० ॥ For Private And Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०५) दूहा ॥ तप बोस्यो त्रटकी करी, दानने तूं अवहील, पिण मुस आगल तुं किसुं, सांजल रे तूं शील ॥ १ ॥ सरसा जोजन ते तज्या, जगमें मीग नाद ॥ देहतणी शोना तजी, तुझमां किस्यो सवाद ॥२॥ नारीथकी मरतो रहे, कायर किस्युं वखाण, कूम कपट बहु केलवी, जिम तिम राखे प्राण ॥३॥ को विरलो तुझ आदरै, बंमी सहु संसार ॥ आप एक तूं नांजतो, बीजा लांजै चार ॥४॥ करम निकाचित तोमवा, नांजु जवजय लीम ॥ अरिहंत मुरूने आदरै, वरस बम्मासी सीम ।। ५ ॥ रुचक नंदीसर ऊपरै, मुझ लबधै मुनि जाय ॥ चैत्य जुहारै शाश्वता, आनंद अंग न माय ॥ ६॥ मोटा जोयण लाखना, लघु कुंथु श्राकार ॥ हय गय रथ पायकतणा, रूप करै अणगार ॥ ७॥ मुफ कर फरसै उपशमें, कुष्टादिकना रोग ॥ लब्धि अवीस ऊपजै, उत्तम तप संजोग ॥ ७॥ जे में तास्या ते कहूं, सुणजो मन उदास ॥ चमत्कार चित्त पामसो, देशो मुऊ साबास ॥ ७ ॥ ॥ ढाल ३ ॥ नणदलरी देशी ॥ दृढप्रहार अति पापीयो, हत्या कीधी चार हो सुंदर ॥ ते पिण तिण नव ऊधस्यो, मूक्यो मुगति मकार हो सुंदर ॥१॥ तप सरखो जगको नही, तप करै कर्म, सूम हो सुंदर ॥ तप करवू अति दोहिलूं, तपमां नही को कूम हो सुंदर ॥ त० ५॥ सात माणस नित मारतो, करतो पाप अघोर हो सुंदर ॥ अर्जुन माली में ऊधस्यो, वेद्या कर्म कगेर हो सुंदर ॥ तम्॥३॥ नंदिषेणने में कियो, स्त्रीवक्षनवसुदेव हो बृ० २० For Private And Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०६) सुंदर ॥ बहुत्तर सहस अंतेउरी, सुख जोगवे नित्यमेव हो सुंदर तम् ॥ ४ ॥ रूप कुरूप कालो घणो, हरिकेशी चंमाल हो सुंदर ॥ सुरनर कोमी सेवा करै, ते में कीधी चाल हो सुंदर ॥ तप० ५॥ विष्णुकुमर लवधे कियु, लाख योजननो रूप हो सुंदर ॥ श्रीसंघ केरे कारणे, ए मुक शक्ति अनूप हो सुंदर ॥ त ६॥ अष्टापद गौतम चढ्या, वांद्या जिन चोवीस हो सुंदर ॥ तापस पिण प्रतिवूऊव्यो, तिण मुक अधिक जगीस हो सुंदर ॥ त०७॥ चौद सहस अणगारमां, श्रीधन्नो अणगार हो सुंदर ॥ वीर जिणंद वखाणीयो, ए पण मुज अधिकार हो सुंदर ॥ त० ॥ ७॥ कृष्ण नरेसर आगलै, मुक्करकारक एह हो सुंदर ॥ ढंढण नेम प्रसंसीयो, मुफ महिमा सवि तेह हो सुंदर ॥ तम् ॥ ए॥ नंदिषेण वोहरण गयो, गणिका कीधो हास हो सुंदर ॥ वृष्टि करी सोवनतणी, में तसु पूरी आस हो सुंदर ॥ त० ॥ १० ॥ श्म बलजा प्रमुख बहू, तास्या तपसी जीव हो सुंदर ॥ समयसुंदर प्रन्नु वीरजी, पहिलो मुफ प्रस्ताव हो सुंदर ॥ त ॥११॥ ॥ दूहा ॥ जाव कहै तप तूं किसुंबेड्युं करै कषाय ॥ पूर्वकोमी जो तप तपै, क्षणमां खैरूं थाय ॥१॥ खंधक आचारज प्रते, ते बाट्यो सवि लेश ॥ अशुल नियाणो तूं करें, दमा नही लवलेश ॥॥छीपायन शपि दूहव्या, सांब प्रद्युम्न सनाह ॥ तें तप क्रोध करी तिहां किधो धारिका दाह ॥ ३ ॥ दान शील तप सांजलो, म करो र गुमान ॥ लोक सहूको साख दे, धर्मे लाव प्रधान ॥४॥आप नपूंसक For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०७) गेत्रिएदे, ये व्याकरण साख ॥ काम सरै नहि कोश्न, नाव जणे में पाख ॥ ५॥ रस विन कनक न नीपजै, जल विन तरुथर वृक्ष ॥ रसवति रस नही लवण विण, तिम मुज विण नही सिझ॥६॥ मंत्र यंत्र मणि औषधी, देवधर्मगुरु सेव ॥ नाव विना ते सवि वृथा, नाव फलै नितमेव ॥७॥ दान शिल तप जे तुमें, विध ५ कह्या वृत्तांत ॥ तिहां जो नाव न ढुंततो, कोई सिद्धी नव ढुंत ॥ ७ ॥ जाव कहे में एकले, तास्या बहु नर नार ॥ सावधान असांजलो, नाम कहूं निरधार ॥ ए॥ (ढाल चौथी। कपूर हुवै अति उजलो रे, ए देशी॥) काननमें कालसग्ग रह्यो रे, प्रश्नचंद शषिराय ॥ते में कीधो केवली रे, ततखिण करम खपाय ॥ १॥ सोजागी सुंदर, नाव वमो संसार ॥ एतो बीजो मुझ परिवार, सौ॥ दानादिक विण एकलो रे, पोहचाडूं नवपार ॥ सो० ॥२॥ वंश ऊपर चढ खेलतो रे, एलापूत्र अपार ॥ केवलज्ञानी में कियो रे, प्रतिबोध्यो परिवार ॥ सो ॥३॥ जूख तृषा खमें अतिघणी रे, करतो कूर आहार ॥ केवल महिमा सुर करै रे, कूरगडू अणगार ॥ सो०॥४॥ लानथी खोज वाधे घपो रे, श्राण्यो मन वैराग ॥ कपिल श्रयो मुनि केवली रे, ते मुख्ने सोजाग ॥ सो० ॥ ५ ॥ अर्णिकासुत गबनो धणी रे, खीणजंघा वलि जाण, कीधो अंतगम केवली रे, गंगाजल गुण खाण ॥ सो० ॥६॥ पनरेसें तापसजणी रे, दीधी गौतम दिक ॥ ततखिए कीधा केवली रे, जो मुझ मांनी सीख ॥ For Private And Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०७) सो० ॥ ७॥ पालक पापीये पीलीया रे, खंधकसूरीना शिष ॥ जनममरणथी गेमव्या रे, आपे मुफ आशीष ॥ सो० ॥७॥ चंरजने चालतारे, दीधो दंम प्रहार ॥ नवदीदित थयो केवली रे, ते गुरु पिण तेणी वार ॥ सो० ॥ ए॥ धनरथकारक साधनें रे, पमिलान्यो उलास ॥ मृगलो नावना लावतो रे, पोहतो स्वर्ग आवास ॥ सो ॥१०॥निज अपराध खमावती रे, मुक्यो मनथी मान ॥ मृगावतीने में दियु रे, निर्मल केवलज्ञान ॥ सो० ॥ ११ ॥ मरुदेवी गज ऊपरे रे, देखी पूत्रनी रिधि ॥ मुझने मनमाहे धस्यो रे, ततखिण पामी सिद्ध ॥ सो० ॥ १५॥ वीर वंदन चाट्यो मारगे रे, चांप्यो चपल तुरंग ॥ दर्जुर नामे देवता रे, तेह थयो मुझ संग ॥ सो० ॥ १३ ॥ प्रनु पाय पूजन नीसरी रे, मुर्गला नामे नार ॥ कालधर्म विचमां करी रे, पोहती स्वर्ग मकार ॥ सो० ॥१४॥ कायानी शोना कारमी रे, रूप किसुं अजिमान ॥ जरत श्रारीसानुवनमां रे ॥ पाम्यो केबलज्ञान ॥ सो० ॥ १५॥ आषाढचूति कलानिलो रे, प्रगट्यो जरतसरूप ॥ नाटक करतां पामियो रे, केवल ज्ञान अनूप ॥ सो० ॥ १६ ॥ दीक्षादिन काउसग्ग रह्यो रे, गजसुकमाल मसाण ॥ सोमल शीस प्रजालीयो रे, सिद्धि गयो शुल जाण ॥ सो० ॥ १७॥ गुणसागर थयो केवली रे, सांजल पृथवीचंद ॥ पोते केवल पामियो रे, सेव करै सुर इंद ॥ सो ॥ १८ ॥ श्म अनेक में ऊधया रे, मुक्या शिवपुरवास ॥ समयसुंदर प्रनु वीरजी रे, मुकने प्रथम प्रकास ॥ सो० ॥१५॥ For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०) ॥ दूहा ॥ वीर कहै तुम सांजलो, दान शील तप नाव ।। निंदा चै अति पापणी, धर्म कर्म प्रस्ताव ॥१॥ परनिंदा करतां थकां, पापे पिंम नराय ॥ वेढ राम वाधे घणी, मुर्गति प्राणी जाय ॥२॥ निंदक सरिखो पापीयो, जूमो कोश्य न दि॥ वलि चंमाल समो कह्यो, निंदक वदन अदिछ ॥३॥ आदि प्रशंसा आपणी, करतो इंद नरिंद ॥ लघुता पामे खोकमां, नासै निजगुण वृंद ॥४॥ को केहनी मकरो तुम्हे, निंदाने अहंकार ॥ आप श्रापणे गमे रहो, सहुको जलो संसार ॥ ५॥ तोपण अधिको जाव छै, एकाकी समरत्थ ॥ दान शील तप त्रिणे नला, पण लाव विना अकय ॥६॥ अंजन खै आजता, अधिको आणी रेख ॥ रजमांहे तज काढतां अधिको लाव विशेष ॥ ७॥ जगवंत हट जंजण जणी, चारे समान गणंत ॥ चार करी मुख आपणा, चल विध धर्म नणंत ॥ ७ ॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ वीर जिणेसर इम लणे रे, वैठी परषदा बार, धर्म करो तुमें प्राणिया रे, जिम पामो जव पार रे ॥ धर्म हीये धरो ॥१॥ धर्मना चार प्रकारो रे, नवियण सांजलो ॥ धर्म मुक्ति सुखकारो रे ॥ धर्म ॥ धर्मथकी धन संपजै रे, धर्मथकी सुख होय, धर्मथकी अरति टले रे, धर्म समो नहि कोय रे ॥ध ॥२॥ उगति पमतां प्राणिया रे, राखै श्रीजिनधर्म ॥ कुटुंब सहुको कारमो रे, मति नूलो जवि धर्म रे ॥ध ॥ ३ ॥ जीव जिके सुखिआ हूश्रा रे, वलि होसे के जेह ॥ ते जिनवरना धर्मथी रे, मत कोई करो संदेह For Private And Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१० ) रे ॥ धर्म० ॥ ४ ॥ सोलेसे बासठ समे रे, सांगानेर मकार, पद्म सुपसाउले रे, एह जल्यो अधिकारो रे ॥ ध० ॥ ५ ॥ सोहमसामी परंपरा रे, खरतरगच्छ कुलचंद || युगप्रधान जग परगको रे, श्रीजिनचंद मुनींद रे ॥ ध० ॥ ६ ॥ तास शिष्य ति दीपत रे, विनयवंत जसवंत || श्राचारज चढती कला रे, जिनसिंह सूरि महंत रे ॥ ६० ॥ ७ ॥ प्रथम शिष्य श्री - पूज्यना रे, सकलचंद तस शीस | समयसुंदर वाचक जणे रे, संघ सदा सुजगी रे || ध० ॥ ८ ॥ दान शीयल तप जावना रे, सरस रच्यो संवाद || aणतां गुणतां जावसुं रे, शद्धि समृद्धि सुप्रसाद रे ॥ ध० ॥ ए ॥ इति दान शील तप जाव चोढा लिया संपूर्णम् ॥ || अथ इग्यारसनो २ ढालनो स्तवन लिख्यते ॥ ॥ 5हा || स्वस्तिश्री मंगलकरण हरण ताप जिएचंद वीर जिनंद दिनंदसम प्रणमुं धरि आनंद ॥ १ ॥ गौतम आदि गणधरा श्रुतकेवलि सुविहाण त्रिकरण योगे वंदता पामेकोम कल्याण || २ || एकादशी तिथी वर्णवं शास्त्रत अनुसार विधि पूर्वक राधतां पामें पद निर्वाण ॥ ३ ॥ ( ढाल पहली ) पणियानी || देशी || नेमिजिनेसर ऊपदिशै सुखकारिरे लोय सांजले कृष्ण राजान वालागे द्वारिका नगरी समयसर्या ॥ सु० ॥ रेवताचल उद्यान ॥ वा० ॥ ४ ॥ पर्वाराधन फल कह्यो || सु० ॥ सांजले परषदा बार ॥ वा ॥ पर्युषण चलमासा जला ॥ सु० || नवपद डेलीसार वा० ॥ ५ ॥ पंचमी For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३११) बीज आउम कही। सु० ॥ जिन कल्याणक जाण ॥ वा ॥ एकादशी इम जाणियै ॥ सु० ॥ पर्वाधिक मन आण ॥ वा० ॥६॥ मगसर सुदि एकादशी ॥ सु० ॥ पर्वमाहि श्रीकार ॥ वा ॥ अरनाथ दीदा ग्रही ॥ सु०॥ पाम्या नवनोपार ॥ वा ॥ ७ ॥ मसि जन्म संजमलियो । सु० ॥ पाम्यो केवलज्ञान ॥ वा ॥ नमि नाथने ऊपनो ॥ सु० ॥ केवल नाण प्रधान ॥ वा ॥७॥ पांचकल्याणक अतिनला ॥ सु० ॥ थया इण जरत मझार ॥ वा०॥ तिमहिज एरवतखेत्रमा ॥सु॥ नाखे जगदाधार ॥ वा ॥ ए॥ पांच जरत ऐरवतवलि ॥ सु० ॥ पांच कट्याणक जाण ॥ वा० ॥ दशखेत्रना श्म जाणियै ॥ सु० ॥ पांचकल्याणक आण ॥ वा० ॥ १० ॥ तीनकाल गिणतां अकां ॥ सु० ॥ दोढसै कल्याणक पाय ॥ वा०॥ तिश्रीमांहि सिरोमणि ॥ सु० ॥ ग्यारस सुखदाय ॥वा॥११॥ अनंतकट्याणक इण परे ॥ सु० ॥ अनंत चोवीसी जोय ॥वागा मौनकरी आराधिये ॥ सु० ॥ एहश्री सिवसुख होय वाला ॥ १५ ॥ चोविहार उपवासथी ॥ सु० ॥ पोसह करिने सार ॥ वा० ॥ सुगुरु चरण सेविकरी ॥ सु०॥ काजसग्ग दिलधार ॥ वा० ॥ १३ ॥ मोनकरी मद्विनाथजी ॥ सु० ॥ एकदिवस सुखकार ॥ वा ॥ मौन प्रथा इण परि श्रश् ॥ सु ॥ लह्यो केवल श्रीकार ॥ वा ॥ १४ ॥ ( ढाल बीजी) माता त्रिशला मुलावे पुत्र पालणे ॥ ए देशी सुखकर देवनिरंजन नेमजिनंद श्म उपदिसे ॥ ए आंकमी ॥ नविजन नावधरिने सांजले श्री जिनवाण । अमीरस वयणे श्रवणअंजलीजरपीवतां एतो जाय For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१२) जव जव निर्मित कर्म निवाण ॥ सुख ॥ १५॥ नवियण अंग ग्यार आराधवा तप विधिए कही, जेहथी पामे अनुपम महिमा अतुल अपार वरसग्यारने मास एकादश तप करो संपूरण तप हुवा होवे मंगलकार ॥ सु० ॥ १६॥ ज० ॥ अंग अग्यारे लिखावे सुवरण अकरे पुस्तक पूग उवणी नवकरवाली सार, कवली किलमिल पाटीने वलि पाटली वाटणामखमलरेसम वरतणा मनुहार ॥ सु ॥ १७ ॥ ज० ॥ मोरालेखण जावी वासकूपा वति कोथली, बटवा मिजासाणने चंदरवा अधिकार पूतीया चोपम रुमाल नाना नातिना पाटा पाटलाने निगमो रचै सुखकार ॥ सु ॥ १७ ॥ ज०॥ केसर सूखम खसकूचीने वाटकी, प्यालाने कलसा अंगलूहणा दिलधार चामर पत्र त्रयने आजूषण रत्ने जड्या, रचियै वास खेपादि पूजा विविधि प्रकार ॥ सु ॥ १५ ॥ ॥ देवपूजा तिम गुरुपूजा विधि आदरो, करियै साहमी वरल धरिय नावविसाल रात्रिजागो करिजिन गुण गावै प्रीतसुं अधिको धनखरचीने लहिये रंगरसाल ॥ सु० ॥२०॥ ॥ इग्यारसनो तपसेवो नविनावसुं, सुव्रत से पौषधथी चितलाय चौर अग्नीना उपायथी ते उगर्यो, ए तिथी सेव्यां शिवमारगमां जवाय ॥ सु० ॥१॥ कलश ॥ श्म नेमिजिनवर स्यामसुखकर सिवा दिवी नंदनो। एकादशी तप फल प्रकास्यो नविकजन श्रानंदनो सर, नय, निधि, नूविक्रमवरसैपोषवदि एकादशी जिन कृपाचंजसूरि पत्नणे सुगुरु सेवो नबसी ॥ सु० ॥२॥ इति ग्यारसवृष्ठ स्तवनम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१३) ॥ अथ नव पद वृद्ध स्तवनं ॥ (दुहा) अरिहंतादिक पद तणो । ध्यान धरि मनमाहि सिद्ध चक्र गुणवरण, त्रिकरणधरिननगहि ॥१॥ राजग्रही नयरी जली। समवसर्या गणधार ॥ सिद्धचक्रगुण वरणव्या ते सुण जो अधिकार ॥२॥ (ढाल पहली) जग जीवन जगवालहो ॥ एदेशी श्रीगौतम गणेसरु । पजणे जवि सुखकारलालरे । श्रेणिक पमुहा सांजले । उत्तम धर्म विचार लान् श्री० ॥३॥ पुर्खन मानुष्य जव लही । सेवो श्रीजिन धर्म ला० दानादिक चउनेदश्री । आराधिलहो शर्म ला श्री० ॥ ॥ नावविना जे दान । सिवसुख तेहथी न थाय ला सील ते निष्फल लोकमां जाव विना कहिवाय ला० श्री० ॥ ५॥ नाव वीहूणो तपसही । नववित्थारणहेतु ला दानादिक नावे मिट्या । जव सायरना सेतु ला श्री ॥६॥ जाव मनो विषयिकह्यो सालंबन मन बाण ला श्रालंबन बहु जातिना । नवपदमनमा आण ला श्री० ॥ ७॥ अरिहंत सिम आचारज । उवज्काय साधुवखाण लालरे दर्शन झान चारित्रवलि । तप ए नवपद जाण ला श्री० ॥७॥ ढाल दूसरी॥ जरतरीनी ॥ देशी ॥ नवपद ध्यावो नविजना । त्रिकरण करिइकतारजी ।। गौतमस्वामि उपदिस श्रेणिकनरपतिसारजी ॥ न० ॥ ए ॥ अगर दोष दूरे टट्या । केवल ज्ञान प्रकाशजी ॥ देवदानवपति प्रणमता । प्रगट करे तत्व खासजी न० ॥ १० ॥ एवा श्रीअरिहंतने । ध्यावोचतुर सुजाणजी ॥ नाव सहित For Private And Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१४) आराधतां । सिवसुख लहोमहिराण जी न ॥ ११ ॥ पनरनेद प्रसिद्ध । कर्म रहित सुखदायजी ॥ सिफ़ अनंत चतुकता। ध्यावो सिघलयलायजी न ॥ १२ ॥ पंचाचारने पालता परउपगार प्रधानजी ॥ शुद्ध सिद्धांत वखाणता आचारजश्रुतखानजी न० ॥ १३ ॥ गणतृप्ति करता चला । सूत्र अर्थ नादानजी । शिष्यादिकने थापता नमोउवझायसुजानजी ॥ १४ ॥ कर्म भूमिमां विचरता । रत्नत्रयनाधारजी ॥ सुमति गुपति मुनिपालता । निकषाया सुविचारजीन ॥१५॥ जिन प्रणीत जे सास्त्रमा । तत्व सद्गुण स्वरूपजी दरशन रयण प्रदीपने । धारोचितमां अनूपजी न० ॥ १६ ॥ जीवादिक पदार्थनो वोध स्वरूप विचारजी ॥ विनयकरि सीखो सदा । नापरे सर्व आधारजी न० ॥ १७॥ अशुन्नक्रियानो त्याग छ । सुन्न किरिया अप्रमादजी ॥ उत्तरगुण निरुक्तथी । लहोचरणनो स्वादजी न ॥ १८ ॥ सघन करमतमहरणकुं । नानुसमोतप जाणजी ॥ कषाय रहित बारजेदचै । तप पद मनमा आणजी न ॥ १५ ॥ ( ढाल ) ३ जी कपूर हुवे अति उजलो जी ए देशी । ए नवपद जिनधर्मनोजी सारजूत कहिवाय सिव सुखनो कारक सहीजी आराधो गुरु सहाय जविक जन सेवो जिन उपदेश पत्नणे प्रथम गणेश न ॥ २० ॥ ए नवपदथी नीपजैजी सिद्धचक्र यंत्रराज ॥ श्राराधीने सुखलह्योजी जिम श्रीपालमहाराज ज से ॥२१॥ तव पूरे मगधेसरुजी कुण श्रीपालनरेश किमयाराधिसुखपामीयोजी करुणा करो गणेश न. से० ॥ २२॥ गौतमस्वामि उपदिशेजी निसुणो For Private And Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१५) श्रेणिक राजान चंपानगरीनोराजीयोजो श्रीपाल नाम सुजाण जा से ॥ २३ ॥ जंबर रोगे पीमीयोजी परणि राजकुमार उजयणीमा जूहारियाजी रीषनेश्वर मनुहार न से० ॥२४॥ मुनिचंगुरु उपदेशश्रीजी आराध्यो सिद्धचक्र रोगगयो बलिसुख लह्योजी संपदा पामी जिमशक्र न से० ॥ २५ ॥ नव पद उलीआंबिलतणीजी नवराणीने साथ उजमणो पूरण डुवांजी करि खरच्यो घणो आथ न से० ॥ २६ ॥ नवपमिमादेरासरुजी नव जीरणजधार पहिलो पद आराधियोजी नव पूजा मनुहार न० से० ॥ २७ ॥ श्म नव पद विस्तारयीजी पूजी लह्यो सुखसार आयु पूरण करि ध्यानयीजी नवमे स्वर्ग अवतार ना से० ॥ २७ ॥ श्म श्रीपालना नव थकी जी नवमे लव सहुसार निरुपम शिव सुख पामसेजी कहे गौतम गणधार ज से० ॥ २५॥ श्रेणिक सुणि हरखित थयो जी प्रनुजीना वांद्या पाय । वीरजिनेसर श्म लणे जी सुण श्रेणिक नरराय न० स० ॥ ३० ॥ एक एक पद आराधतांजी केई पाम्या नव अंत नव पद ते निज आतमाजी ध्याता ध्येय लहंत न से० ॥ ३१॥ तीर्थकर पद पामस्येजी तुं इण जरत मकार श्म सांजलि नृप आनंदियोजी निज घर पोतो सुखकार ज से ॥३२॥ कलश ॥ श्म वीर जिनवर जुवन दिनयर नव पद महिमा वरणव्यो सुरत वंदर रहि चोमासो सिपचक गुण गण स्तव्यो संवत उंगणीसै पचोत्तर आश्विनशुदि सातमदिने, जिनकृपाचंजसूरि पनणे वतॊ मंगल For Private And Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१६) प्रति दिने न से० ॥ ३३ ॥ इति नव पद वृक्ष स्तवनम् ॥ ॥ महावीर स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ कर्म तणी कथनीरे कीहां जश्ने कहुं ॥ ए देशी ॥ वीर जिनेसर अलवेसर प्रनु सजिलो सुनिजर धरि सेवकनी ए अरदासजो, वालेसर विन केहने करीये वीनती, श्म जापीने आव्यो तुमारी पासजो ॥ वी० ॥१॥ काल अनादि रफड्यो हुँ संसारमा जवानव जमतां दुःख सह्या अपारजो। वीतराग तमे तारक जाणों तातजी, तोपण वीतक वात कडं निरधारजो ॥ वी० ॥२॥ काल अनंत रहियो सूक्ष्म निगोदमां, व्यवहारेतर राशी दोय कहंत जो श्वासोश्वासमां अधिका सतरे नवकर्या श्म करते नवि पाम्यो जवनों अंत जो ॥ वी० ॥३॥ काल लब्धि पामीने परित्तपणों लह्यो, पृथिव्यादिक व्यवहारमा श्राव्यो तेजो। कर्म उदयथी फरि पमियो निगोदमां, पुद्गल परियट्ट असंख्य रह्यो उहणजो ॥ वी० ॥ ४ ॥ व्यवहारराशिकहवाणों हुं तिहां एजाणूं तुझ आगमयी जगतात जो, एकेजियमां वसतां काल घणो गयो तेहनी केटली कहूं तुम पागल वात जो ॥ वी० ॥ ५ ॥ विकलेंजियनां नव संख्याता मैं कीया सुःख तणो नही आवे कहता पारजो, पंचेंजिय तिर्यंच पणों लहिने प्रनो, जल थल खचरना नव को मुखकारजो ॥ वी० ॥६॥ शीत ताप जय नूख तृषा सही घणी कूर कम करी उपनो नरक मकार जो, वेदन नेदन तामन तर्जनादिक सह्या पर्मा धादि कृत For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१७) कष्ट असारजो ॥ वी० ॥७॥ नरक थकी निकलीने तीर्यच वलि थयो, अकाम निर्जरा करतां वहुली वारजो, देव गतिमां उपजी सुख लंपट थयो, तेथी सुकृत कीनों नहीं लगारजो ॥ वी० ॥ ॥ कर्म संयोगे एकेंजियां उपनो, श्म नव चमण करंता अनंता वेसजो, प्लजतां क्रमथी मनुष्यपणो मै पामियों त्यांपण न बह्यो धर्म तणों लवलेशजो ॥ वी ॥ ए॥श्म जव नाटक करतां काल बढ़ गयो, पुन्य संयोगे पाम्यो प्रनु दीदारजो, स्वामी शाशन लगो मुझने मीठमो हिव प्रनु करुणा करी मुजकरो निस्तारजो ॥ वी० ॥ १० ॥ तुम सरिखा साहिबनी सेवामै लही, हिव प्रनु मुजनें जाणों सेवक खासजो तुम गुण जाणुं एटली सुनिजर कीजीये कृपाचं प्रनु पूरो मनमेनी आसजो ॥ वी० ॥ ११॥ गुर्जर देशे पानसरे प्रनु जेटिया वरष उगणीसे नगणोत्तरे शुज दीसजो, मौन ग्यारस मनमोहन प्रनुजी मिट्या, श्रानंद दायक जयकारी जगदीश जो ॥ वी० ॥ १२ ॥ इति पदम् ॥ ॥ अथ पंचमिका बुद्ध स्तवन लिख्यते ॥ ॥ उहा ॥ सिझारथ कुल दिनमणि । त्रिसला देवि सुजात॥ वर्षमान जिनचंदकुं । नमन करि परमात ॥ १॥ गुरु दरियो नरियो गुणें । तरियो किण विधि जाय ॥ वलिहारि गुरु देवनी। मो मन रह्यो लोनाय ॥२॥ जिनवाणी पीयूष रस पान करो निशिदीश ॥ पांमो नाण सुस्करु । नाखै जगनाईश ॥३॥ ढाल ॥ कपूर हुवे अति ऊजलोजी ॥ ए देशी ॥ ज्ञान आरोधो जविजनाजी । श्राणि नक्ति अपार पांच ज्ञान प्रगटायवाजी ॥ For Private And Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१७) पंचमी सेवो उदाररे प्राणि जिनवाणि मन श्राण अनुपम सुखनी खाणरे ॥ प्रा० ॥ जिन ॥ १॥ नाण बमो संसारमाजी ज्ञानयी मुगति श्राय ज्ञानदीपक समजाणियेजी सर्व लोक प्रगटायरे ॥ प्रा० ॥ जिन ॥२॥दिव्य ज्ञान लोचन कह्योजी लोकालोक देखाय ज्ञान विनापशुसारिखाजी जाणे नही नर कायरे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥३॥ ज्ञान आराधक सर्वथीजी॥ किरिया देश विचार लगवति सूत्रमा लाखियो जी आपमें शतक मकाररे ॥ प्रा० ॥ जि ॥४॥ अज्ञानी क्रोम वरसमांजी तप करि निर्जरा जेह, ज्ञानिस्वासोस्वासमांजी कर्मक्ष्यकरतेहरे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ५॥ ज्ञान तणो अधिकार ने जी नंदिसूत्र मझार क्रिया सहित ज्ञान सुंदरुंजी मोद तणो दाताररे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ६॥ जिम सोनो सुगंधीजी रत्न मुंदीयेजाण, संख सोहे दूधे नस्यो जी तिम करिया युत नाणरे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ७॥ महानिसीथ माहै कह्यो जी पंचमी विधि विस्तार वीर जिनंदै दाखियोजी सूत्रे श्रीगण धाररे ॥ प्रा० ॥ जि० ॥ ॥ ( ढाल बीजी) सखि आज अनोपम दीवालि ॥ ए देशी ॥झान आराधी संपदा साधी निजगुणनो ए सुखकारी सखि नाण सुहंकार गुणकारी ॥ ए॥ पंचमी तप विधियुत नवि करकै नाणने सेवो इकतारी ॥ सप ॥ ना॥१॥मगसर माह फागुण वैसाखे जेठ आषाढने दिल धारी ॥ स ॥ ना० ॥ ११ ॥ ए षट् मासे विधियुत लीजै शुन दिन गुरुमुखश्री सारी ॥ स० ॥ ना ॥१२॥ देव वंदन देहरासर करिने पोथी पूजी सुविचारी ॥ सपना॥१३॥ For Private And Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१५) गीतारथ गुरु चरण नमीने नंदि विधि करि हितकारी ॥ स० ॥ना ॥ १४ ॥ गुरुमुख उपवास नांवे करीने पमिकमि टालो अतिचारि ॥ स० ॥ नाम् ॥ १५॥ शास्त्र जणो श्रीसदगुरु पासै पंचमी दिन श्रारंज टारी॥ स० ॥ ना० ॥ १६ ॥ पांच वरस पांच मासने उत्कृष्ट जावजीव करे इकतारी ॥ स० ॥ ना० ॥ १७॥ पांच मास लघु पंचमी कीजै स्तवन शुश् कहे ब्रह्मचारी ॥ स ॥ ना ॥ १७ ॥ (ढाल ३ जी) पहलो अंग सुहामणोरे ॥ ए देशी ॥ ज्ञान नमो गुण नवि जनारे नाण प्रकाशक जाणरे सुगुण नर पंचमी तप विधियुत करीरे लाल पामो अविचल नाणरे ॥ सु०॥ ज्ञा० ॥ १९ ॥ दोय नेदे नाण जाणीयेरे निश्चयने व्यवहाररे ॥ सु० ॥ त्रण अनुयोग व्यववहारमारे ॥ ला० ॥ भव्य निश्चय सुखकाररे ॥ सु०॥ झा० ॥ २० ॥ पांच ज्ञानना नेदरे इकावन सुविशेषरे ॥ सु० ॥ जिन्न जिन्न ते दाखव्यारे ॥ ला ॥ तेह कहुं लवलेशरे ॥ सुप ॥ज्ञा०॥१॥ मति झानना जाणियेरे अगवीश प्रकाररे ॥सु ॥ श्रुतना चवदेने वाशरे अश्रादिक सुविचाररे ॥ सु० ॥झा ॥२२॥ अवधि व असंख नेदरे मनपर्वय उग जाणरे ॥ सु० ॥ लोकालोक प्रकाशकोरे । ला० ॥ केवल मनमे आणरे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ २३ ॥ तीन ज्ञान प्रत्यदरे देश सर्वसुजगीशरे ॥ सु०॥ अवधि मनपर्य बलिरे ॥ ला० ॥ देश प्रत्यक्ष कह्या ईशरे ॥ सु ॥ज्ञा ॥ २४ ॥ केवल सर्व प्रत्यदनेरे ध्यावो परम पवित्ररे सु० ॥ दोय परोद पिगणियेरे ॥ ला ॥ मतिश्रुत नेद विचित्ररे ॥ सु० ॥ झा० ॥२५॥ For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०) च्यार ज्ञान उप्पा कह्यारे श्रुत अनुयोग विचाररे सु० ॥ उद्दे. शादिक जाणियेरे अनुयोग घार मकाररे ॥ सु० ॥ झा॥२६॥ उपगारि श्रुत नाणधीरे जाणे आज त्रिकालरे ॥ सु० ॥ पर बोधक श्रुत सैवियरे सद्गुरु चरण निहालरे ॥सु०॥ज्ञा ॥२७॥ वायण प्रचना परावर्तनारे अनुपेहा दिल धाररे ॥ सु०॥ धर्मकथा कही कीजीयेरे ॥ ला ॥ सहाय पांच प्रकाररे ॥ सु॥झा ॥ २८ ॥ अंग श्यार बार उपांग रे दश पयन्ना नंदीशरे ॥ सु० ॥ उद चल मूल दिल धरोरे ॥ला ॥ अनुयोगधार पैतालीशरे ॥ सु० ॥ ज्ञा० ॥ ए॥ ॥ ढाल चोथी ॥ गरवेनी स्वामी शरीर सोसाइ गयो॥ ए देशी ॥ ज्ञान नजो जवि प्राणीया वंछितफल दातार ज्ञानी दीपक सम कह्यो सूत्रे श्रीगणधार ॥ ज्ञा० ॥ ३० ॥ सुरतरु सुरमणि सुर गवि कल्पलता अनुकार एहथी अधिको जाणिये महिमा अगम अपार ॥ ज्ञा० ॥ ३१ ॥ काल अनादि लगे जम्यो मिथ्या मति नवमांय सम्यग् ज्ञान प्रगटे यदा नवमें न रहाय ॥ ज्ञा० ॥ ३२ ॥ समकित गुण प्रगटायवा त्रणकरण करे जीव समकित ज्ञान एकणसमे लहै सुरक अतीव ॥ झा० ॥ ३३ ॥ देश विरति पामें तदा पट्य असंख्य जाग जाय सर्व विरति लही चरण धर ज्ञानादिक चित लाय ॥हा॥३॥ घाति करमनो दय करी केवलज्ञान प्रकाश लव्य कमल प्रति बोधता विचरे जगवंत खास ॥ ज्ञा० ॥ ३५ ॥ ज्ञान चरण दोय नेद मुक्ति कारण जाण तप संजम बिहुँ दाखिया नविए मनमां आण ॥ ज्ञा० ॥३६॥ पांचमि आराधन करि ज्ञान For Private And Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३३१) जगति करो सार।तप पूरण थयां कीजिये। उजमणो सुविचार॥ ज्ञा० ॥३७॥ पांच पांच ज्ञानादिना । उपगरण करो सार धन खरचो शुज लावथी। खहो पुन्य संजार ॥ज्ञा ॥ ३ ॥ देवो दान सुपात्रने । साहमीवबल सार॥नगति करो साहमीत: एणी।रात्रि जागो उदार ॥ ज्ञा० ॥३। वरदत्तने गुण मंजरी। ज्ञान श्राराधिने सुख ॥पामी अविचलपदवह्या। मेटीने नव दुःख ॥ज्ञा० ॥४०॥ कलश ॥ संवत् जगणीसै पिचत्तर पोषवदि एक मजलै । सुरत बंदर नविक सुखकर सीतल जिन सुपसाउदै । श्रीवीरजिनवर पंचमि तप विधि प्रकाश्यो शुजमणे। सुविहित परंपर गनखरतर जिनकृपाचंजसूरि नणे ॥ १ ॥ इति पांचम बृवस्तवनम् ॥ ॥ अथ दीवालीको स्तवन लिख्यते ॥ उहा ॥ वर्षमान जिन चंदकुं नमन करी करजोम । कट्याएणकविधि वर्णदुं । मनमां श्राणिकोम ॥१॥ वीर जिणंद दिणंद सम । समवसस्या गुणखाण । जव्यकमल प्रतिबोधता त्रिनुवन जन महिराण ॥२॥ ॥ ढाल १॥ प्रथम जिने सर प्रणमीयै ॥ ए देशी ॥ वर्षमान जिनराजजी । गुणगणअगम अपार ॥ चौवीशम जिन चंद । जगत सुहंकरु। सर्व जीव सुखकार ॥व॥३॥ समकित पामीने प्रन्नु । जव सत्तावीस कीधा।वीस थानक तप सेवी जिन नाम बांधियो। स्वर्गतणा सुख लीधा ॥व० ॥॥ अषाढ शुदि षष्ठि दिने। चविया स्वर्गथी सार। देवा नंदाने उदरे उपन्या जगधणी । सहु जगमे हितकार ॥ व ॥ ५॥ चउदेसुपनानि शिलया। उपनो हरख अपार । दिवस वैयांसीरह्या माहण अव बृ. २१ For Private And Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३२५) तारमा । कर्म तणे अनुसार ॥ व०॥६॥ इंच आदेशथी श्राश्विनवदित्रयोदशीदीश । हरणेगमेसीसंक्रमण कसा प्रनु नक्तिथी । त्रिशलाकूखैजगीश ॥ २०॥७॥ चनद सुपन त्रिशला जुवै। कट्याणक फल एह । वृधिपाम्या नरेशर सर्व प्रकारथी । जाग्रत श्रयो अतिस्नेह ॥ व० ॥ ॥ चैत्र शुदि तेरस समे । जन्म थयो सुप्रसिद्ध । दिग कुंवरी तिहां तक्षिण सूतिकारजकरे । इंज थावे बहुरिछ । व०॥ए॥ पंचरूपकरी प्रन्नु ग्रही । मेरु शिखर ले जाय। चौसठ सुरपति आवि जनमोत्सव करी । माता पासे गाय ॥ २० ॥१०॥ नंदीसर उन्लव करी। देव गया निज गम।सर्व संपवधितेहथी प्रनुनो थापीयो।वर्धमान शुल नाम ॥व०॥११॥ सिझारथ राजा घरे । वरते मंगल माल । इंजाणि उबरंगरमाने प्रन्नु नणी। करति रंगरसाल ॥ व ॥१२॥ श्रामलकी क्रीमा करे । देव परिक्षा काज हारि गयो देव बालक प्रनु नाम पामीयो । महावीर माहाराज ॥व० ॥ १३ ॥ जोवनवय जिनराजजी। परण्यारमणि मनुहार संसारिक सुख जाणि कृत्रिम जगनाथजी । कृपाचं सुखकार ॥व० ॥१४॥ ॥ढाल २॥ तीसवरस घरमा रह्या ॥मनमोहनजी ॥दीधो वरसी दानरे । जग सोहनजी। माता पिता स्वर्गे गया ॥ मन ॥ प्रतिज्ञा पूरण जानरे ॥ जग ॥ १५ ॥ च्यार निकायना देव मलि ॥ मनः ॥ दीक्षा उडवकीधरे ॥ जग ॥ मिगसर वदि दशमी विनु ॥ मन ॥ सुखकर संजमलीधरे ॥ जग० ॥ १६॥ मन पर्यव ज्ञान ऊपनो ॥ मन० ॥ चलनाणी नगवंतरे॥ जगएकाकी For Private And Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५३) प्रनु विचरता ॥ मन ॥ करूणा निधिबलवंतरे ॥ जग॥१॥ परिषह रिपुने जीतता ॥ मन ॥ पराक्रमेवमवीररे । जग ॥ तप करता अति आकरो ॥ मन ॥ पाम्यो नवजलतीररे । जग ॥ १७ ॥ बार बरस उद्मस्थ रह्या ॥ मन ॥ ऊपर सार्ध बमासरे ॥ जग ॥ वैशाख सुदि दशमीये ॥ मन ॥ उपनो केवल खासरे ॥ जग ॥ १५ ॥ लोकालोकने जाणता ॥ मन ॥ पावा पुरि जिनराजरे ॥ जगः ॥ संघ चतुर्विध थापिने ॥ मन० ॥ सीधासगदा काजरे ॥ जग ॥२०॥समवसरणमां विराजता ॥ मन ॥ परउपगारि महंतरे ॥ जग ॥ देशना देता नव्यने ॥ मन० ॥ प्राप्तकरे सुख संतरे ॥ जग० ॥१॥ गौतमादि गण धरा ॥ मन ॥ श्यारह मनु हाररे ॥ जग ॥ चन्दसहस मुनिवर हुवा ॥ मनम् ॥ श्रमणी बतीस हजाररे । जग ॥१॥ एक लाख गुणसउसहस ॥ मन ॥ श्रावकनो परिवाररे ॥ जग० ॥त्रण लाख अढार हजार ॥ मन ॥ श्राविका सुविचार रे ॥ जग ॥ २३ ॥ इत्यादिक परिवारथी ॥ मन ॥ परवरिया गुण सार रे ॥ जग ॥ अंतिम चोमासो रह्या ॥ मन ॥ पावापुरी मकार रे । जग ॥२॥ सोल पहर लग देशना ॥ मन ॥ दीधी पर उपगार रे ॥ जग ॥ पुन्य पाल राजा तणा ॥ मन ॥ प्रशनो उत्तर सार रे ॥ जग ।। ॥ २५॥ पंचम आरेना नाव कह्या ॥ मन ॥ सव जीवने हितकार रे ॥ जग ॥ पुन्य पापना फल तणा ॥ मन ॥ अध्यन पचावन सार रे ॥ जग ॥ २६ ॥ त्रीशवलि उत्तर कह्या ॥ मन ॥ मरु देवी अधिकार रे ॥ जग ॥ बहोतर For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२४ ) वरसनो खो || मन० ॥ पूरण करि हितकार रे ॥ जग० ॥ २७ ॥ काति वदि अमावसे ॥ मन० ॥ मुगति सिधाया वीर रे || जग० ॥ सादि अनंत स्थिति सही ॥ मन० ॥ तोड्या कर्म जंजीर रे || जग० ॥ २८ ॥ कासीकोसलना राजवी ॥ मन० ॥ पोसह को सुखकार रे || जग० ॥ जाव उद्योत गयां थकां ॥ मन० ॥ रत्न मुक्या सुविचार रे || जग० ॥ २ए ॥ देव देवी याव्या घणा || मन० ॥ प्रजुनी जक्ति विशेष रे ॥ जग० || दीवाली थड़ लोकमा || मन० ॥ लह्यो गौतम ज्ञान शेष रे || जग० ॥ ३० ॥ बीजने जाइ जमानीयो ॥ मन० ॥ जगनीये जाइ बीज रे ॥ जंग० ॥ बहकरी पोषकरे || मन० ॥ गुणनाती नलहीज रे ॥ जग० ॥ ३१ ॥ ब कल्याणक वीरन ॥ मन० ॥ गाया नक्ति विशाल रे || जग० ॥ जिन कृपाचंद्रसूरि जौ ॥ मन० ॥ वर्तो मंगल माल रे ॥ जग० ॥ ३२ ॥ इति दीवाली को स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीजिनकुशलसूरिजी छंद लिख्यते ॥ ॥ श्री जिन कुशलसूरि सुखकारं अद्भुतमहिमा अगम पारं । सद्बुद्धि संतां साधारं । नगर मरोट वंदे नरनारं ॥ १ ॥ त्रोटक बंद | वंदे नरनारं उन सवारं जाव पारं मनधारं, गंगोदकधारं चरणपखालं पुरक विदारं सुखकारं । घस सूकमसारं मृगमदजारं केशर कुंकुम घनसारं, परिमल पुष्कगारं गंधोदारं शुजाचारं हितकारं ॥ २ ॥ दूहा ॥ करे सेव सेवक सदा, जाव जगत धर ध्यान । हाथ जोम कनोरहे, करे विविध गुण गान ॥ ३ ॥ करि गुण गानं, धरि शुभ ध्यानं, सद् अजिमानं, मति मानं, For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५५) नाटक मंमानं रचे विधानं, वेषविनानं, परिधान, तत्ताश्तानं । करेजुगानं, देव समानं, शुजमानं, तुं देव देवानं, कृपानिधानं वंचित दानं कट्याणं ॥४॥ दूहा ॥ माश्ण साइण जोगिनी, जूतप्रेत विकराल । सद्गुरुनामे नाबले। पुच्रुक किकराल॥५॥ वैत्तालं कुंजकपालं कर करवालं, परिकालं, अति तिक्ष्णतालं नीषण जालंगले रुम मालं वेधालं । कूदे देतालं रणकेश्रालं मारेफालं असरालं, एहां मुख जालं नूत जरालं कुशल करालं जयटालं ॥६॥ मुहा ॥ जुम्बकरे जोघा जिहां। ऊबके ग्लेखग्ग । कुशल नाम होवे कुशल । त्रसे प्रशन्न समग्ग ॥७॥ त्रोटक बंद ॥ त्रसे समग्गं बहु मुख जग्गं शोला जग्गं आसग्गं, पमिहारण मग्गं तिरखालग्गं पाणि पावे पग पग्गं । सायर अथग्गं करे अघग्गं बेमी जग्गं उत्तंग्गं, तुं निरउवसग्गं करे प्रथगं मुख विहग्गं अलग्गं॥ ॥ उहा । लय अनेक नावट प्रबल, सबल निबल सङघाट। सशुरु तूं सानिधकरे, दोखि सुरजन दाट॥ए।दुरजन दाट वम वृद खाटं सुखकपाटं उद्घाट, अति दुक्कर दाट विषमि घाटं सांनिध कारी सुख वाटं, गोमहिषी श्राटं घूमे माटं अनघत खाटं बहु थाटं । संपत्ति घरहाटं कदियन नाटं धन खादं श्रीवीरतणे पंचासमें पाटं ॥१॥ कलश ।। संवत-सिद्धि-सुमेर-चंदसायर-(१७५०)सुनवरसैय शुक्लपक्ष वैशाख दिवस पूनम मन हरसेय सूरवारसुखकार, दरश सद्गुरुचोदीको। हुवो कुशल जयकार। सोयण अमीय पई हो।मारोट कोट मांहें सुगुरु । पाटे श्रीजिन. चंद तणें । जिन कुशल सूरि सेवो सदा । जावराज इणपरिजणे ॥ ११ ॥ इति श्रीजिन कुशल सूरिजो बंद संपूर्णम् ॥ श्रीरस्तु॥ For Private And Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३२६) ॥ अथ श्रीसरस्वती स्तोत्रं लिख्यते ॥ ॥ वाग्वादिनि नमस्तुन्यं । वीणापुस्तकधारिणी । मह्यं देहि वरं नित्यं । हृदयेषु प्रमोदतः॥१॥ कास्मीरममनी देवी। हंस स्कंध सवाहने । ममाझानविनाशाय । कवित्वं देहि मे वरं ॥२॥ जयत्वं विजयादेवी कवीनां मोहकारिणी। देहिमे ज्ञानविज्ञानं । वाग्वादिनि सरस्वति ॥३॥ ॐ श्री श्री जगवति देवि । श्रीदेहि वरानने । वांचितार्थ प्रदात्रीच । वद वद वाग्वादिनी नमः ॥ लाजापेन मंत्रोयं । गणित्वैकादशाचाम्लैः इति स्तुता महादेवी । सर्वसिधिप्रदायिका ॥५॥ इदं स्तोत्रं पवित्रं च । ये पति नरः सदा । तस्य नश्यति मूढत्वं । प्राप्नोति मंगलावलीं॥६॥ सरस्वतिस्तोत्र मिदम् पवित्रं । गुणै गरिष्ठं निजमंत्रगर्जितं । पति ये रम्यमहर्निशं जना । खजति ते निर्मलबुद्धिमंदिरं ॥७॥ इति सरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॥ अथास्य ग्रंथस्य प्रशस्तिः लिख्यते ॥ ॥ ख्यातोऽष्टापद पर्वतो गजपद सम्मेत शैलानिधः। श्रीमान् रैवतकः प्रसिद्ध महिमा शत्रुजयो मंम्पः॥वैजारः कनकाचलोऽबुंदगिरिश्रीचित्रकूटादयास्तत्र श्रीशषनादयो जिनवराः कुर्वन्तु वो मंगलं ॥१॥ सिरि पुमरीक गोयम पमुहा । गणहर गुणसंपन्न। प्रहऊलीनेप्रणमतां चवदेसे बावन्न ॥२॥दासाऽनुदासा श्व सर्वदेवा । यदीयपादाऽनतले लुवन्ति ॥ मरुस्थली कहपतरुः सजीयाद् । युगप्रधानो जिनदत्तसूरिः॥३॥ सिद्धांतसिंधुः जगदेकबंधुः युगप्रधानःप्रनुतांदधानः।कल्याणकोटिः प्रकटीकरोतु ।सूरीश्वरो श्रीजिननसूरिः ॥४॥ पत्रिंशत्रुणरमनीरनिलयाः श्रीशं For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३७) खवासाऽन्वयाप्ररफुल्बामलनीरसंलवगणाःव्याकोस हंसोपमाः। क्षोणीनायकनम्रकर्मदखनाः दीपाऽऽख्य साध्वंगजाः । शर्मः श्रेणिकराः जयन्तु जगति श्रीकीर्तिरत्नाह्वयाः ॥ ५॥ श्रीमचंबेवविशदोज्वले शंखवालाऽन्वये विपुलनति समन्विताः स्वयं प्राप्त वैराग्यरंग-तरंगोससन्मानसाः पंचशत् पुरुषैः सह अनूढां स्त्रीं त्यक्त्वा सुगुरु पार्चे गृहीत दीक्षाकाः स्वसमय परसमय पारगाः ज्ञातनिखिलशास्त्ररहस्याः युगप्रवरागमाः श्रीममिनकीर्तिरत्नसूरयो संजझिरे तबाखायां तत्परंपरायां च क्रमात्समनवत् उपाध्यायाः श्रीमकायकीय॑ऽनिधः तमिष्या निखिलशास्त्रज्ञाततत्त्वाः श्रीमत्प्रतापसौजाग्यगणयः त्रयः तविष्याः श्रीमदलयसुमतिदानविशालांता संजाताः श्रीमत्सुमतेः समनववीमत्समुजसोमानिधातस्मात्समनवीमद्युक्त्यमृतमुनिःशात हेयज्ञेयउपादेय रूप निखिलशास्त्रतत्त्वावबोधः तस्मात्समनवयुग प्रवरागमः श्रीमजिनकृपाचंजसूरिः तस्मात्समजवत् विघनिरोमणिश्रीमदानंदमुनिर्महान् सर्वत्रलब्धविपुलकीर्तिः तस्याऽनुजेनजयमुनिना संगृहितोऽसौ बृहत्स्तवनावस्यनिधो ग्रंथः परिपूर्तिजावमगमत् श्रीमच्चतुर्विधसंघेन वाच्यमानःचिरं नंदतात् यावञ्जाकोंतावत् विजयतेतराम्॥श्रीरस्तु ॥शुलंजवतु॥ इति बृहत् स्तवनावलिः संपूर्णा ॥ NAM For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal use only