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( १६५ )
चलराज ॥ मनरंग साधु महंतना, गुण गावे रे श्रीजिन
राज ॥ या० ॥ ए ॥ गज० सं०
॥ अथ प्रष्णचंद्र सज्झाय ॥
॥ राज टंकी रलियामणोरे, जांणी थिर संसार | वैरागे मन वालियो, कांइ लीधो संजम जार ॥ प्रष्णचंद प्रभूं तुमारा पाय, तुमे मोटा मुनिराय ॥ प्र० ॥ १ ॥ वनमांहे का सग्ग रह्यो रे, पग ऊपर पगठाय ॥ बांह बेळं उंची करी, सूरज सांमी दृष्टि लगाय ॥ २ ॥ प्र० ॥ श्रेणिक वंदन नीसस्यो रे, वीरजीने वंदन जाय || देइ तीन प्रदक्षिणा, त्रिविध २ खमाय ॥ प्र० ॥ ३ ॥ 5रमुख दूत वचन सुणी रे, कोप चढ्यो ततकाल ॥ मनसुं संग्राम मांगियो, जीव पड्यो जंजाल ॥ प्र० ॥ ४ ॥ श्रेणिके प्रश्न पूबियो रे, एहनी सी गति थाय ॥ जगवंत कहे हिवणां मरे तो, सातमी नरके जाय ॥ प्र० ॥ ५ ॥ खिए इक अंते पूछियो रे सर्वार्थसिद्धि विमांन ॥ वाजी देवनी 55जी मुनि पांग्या केवलज्ञान || प्र० ॥ ६ ॥ प्रष्णचंद मुनि मुगते गया रे, श्रीमहावीरना शिष्य || रिहरख कहे धन्य ते, जिए दीठा रे परत ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ पंडित श्रीजेतसी मुनिकृत दशवैकालिक सझाय लिख्यते ॥
॥ मुनि वृपज श्रीमनक मुनयेनमः ॥ श्रीदशवैकालिकसूत्रकृत् चतुर्दशपूर्वघर श्री शय्यँजवसूरिं वंदे ॥
॥ तत्र प्रथमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ धर्म मंगल महिमानिलो । धरम समो नहीं कोय । धर्म
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