________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १६४ )
खिलोमा ने खरसुश्रा, जूय जूंफोमा बत्रा कार जांणौ नील फल सेवे जूझा ॥ बत्तीस बोल प्रसिद्ध बोल्या लक्ष्मीरतन सूरि इम कहे, परिहरे जे नर दोष जांली प्रांणी ते सवि सुख बहे ॥ १० ॥ इति बावीस न सकाय सं० ॥
॥ अथ गजसुकमाल सज्झाय ॥
॥ संवेगरसमे कीलता, मनसुं करे आलोच ॥ देखीने दोहग टलै, तासु साध्यो रे में करि लोच ॥ १ ॥ यादवराय धन २ गजसुक माल, तेहने करूं रे प्रणाम त्रिकाल ॥ या० ॥ यांकली ॥ प्रजू पासे संयम श्रादखौ, तेहनो ए परिणाम ॥ मन वच काया वसिकरी, जो हूं पामूं रे केवलज्ञान ॥ २ ॥ या० ॥ मुनि मुगति जायवा लजयो, परुषैन दिन दस वीस ॥ साहसीक इम उच्चरतो, पिए दिन जावे रे तो बेह दीस ॥ या० || ३ || समसां जाय का सग्ग रह्यौ, तिए सांकि प्रजुने पूर ॥ मुनिवर वर इम चिंतवै, एहनें साची रे वे मुंह मंत्र ॥ या० ॥ ४ ॥ मुऊ सुता विन अवगुण तजी, सौमिल अगनि प्रजाल ॥ सिगमी रचि सिर ऊपरै, चिहुँ दिसि बांधी रे माटीनी पाल || या० ॥ ए ॥ वेदना जिम अधिक वधै, तिम वधै मन परिणांम ॥ चवदमें गुणगणें चढ्यो, मुनिवर पांमी रे केवलयांन ॥ या० ॥ ६ ॥ देवकी जांमणने थई, ते रयण वरस हजार ॥ वांदवा वी प्रह समें, पिए नवि देखे रे प्रांण - धार ॥ या० ॥ ७ ॥ पूछतां प्रभु मांझीं करी, रातिनी वीतग वात || हरि देखी हियको फूटसी, तेणें कीधो रे ऋषिजीनो घात ॥ या० ॥ ८ ॥ उपसम सुधारस सेवतां, पांमियो वि
For Private And Personal Use Only