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( १६३ )
क्रिया निरती, सुखो जविया मनरली ॥ दाखविए गुण परह केरा, दोष सम काढौ बली ॥ २ ॥ मम काढो रे लोजी नर कूमौ करौ, जांणी सावद्य रे अजद बावीसे परिहरौ ॥ वम पीपल रे पिलखण ने कटुंबरो, जंबरफल रे रखे तुमें जक्षण करो ॥ ३ ॥ उवालो | रखे तुमें जक्षण करौ मांखण, मद्य मधु श्रामिषतो ॥ मितो | विष हेम करहा बंकि परदा, दोष मूल माटी || परिहरो सजन रयणीजोजन, प्रथम पुरगति वारणौ ॥ मम करौ व्यालू ति सूरौ, रविनदय विन पारणो ॥ ५ ॥ थारे अनंतकाय सव निमिय ए, काचागोरस रे मांहि कठोल न जिमिये ॥ एह वेंगए रे तुछ फला सवि बांक ए, आपण रे व्रत लीधो नवि खंम ए ॥ ए ॥ तूटक ॥ नवि खंमए व्रत नियम लेश, वे फल व्रत जंगनौ । अज्ञात फल बहुबीज जोजन, चलित रस होय जेहनो ॥ संवर आणी अन जानी, जो बावीस ए ॥ गुरु वयण विगतें वली पूग्यौ, अनंतकाय बत्तीस ए ॥ ६ ॥ अनंती रे कंद जाति जाणो सहू, जसु क्षण रे पातिक बोया बहू || कचूरौ रे हलदनी दूं वली ॥ वजचूरण रे कंद बहूं कुंवली फली ॥ ७ ॥ तूटक ॥ कुंमली फली कुंवली वीज पाखै, चाखै चतुर नर श्राविली ॥ रतालु पिंकालु थेग थोहर, सतावरी लसण कुली ॥ गाजर मूला गिलौ
ए
गण विरहाली दुकवद्युलौ, पल्यंक सूरण वाल वीली मौथ नीली सांजलौ ॥ ८ ॥ वंसकारेला रे कुंपल कवला तरुणा, अंकूरा रे लोटा ते जलपोयणा ॥ कुमारी रे जमरवृक्षनी बालमी, जे कहिये रे लोके अमृतवेली ॥ ए ॥ वेखकी तानु ताजा
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