________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(ए) सिलाका पुरुष उत्तम जगें जयवंतो सदा । प्रहसमें तेहना चरण पंकजनमें मुनि वसतो मुदा ॥१०॥ इति त्रेसक सिलाकापुरुषस्तवनं ॥ * ॥
॥ * ॥अथ मुहपत्ती पडिलेहण स्तवनं लिख्यते॥ॐ॥ ॥ * ॥ ढाल कपूर हुवे अति ऊजलोरे ए चाल॥ * ॥
वरधमान जिनवर तणा जी। चरण नमुं चित्त लाय । ग्यान क्रिया जिण उपदिसे जी। शिव सुख तणो उपाय ॥१॥ (नविक जनधर श्रीजिन उपदेश । बूटे कर्म कलेस जा)॥ पनि लेहण मुहपति तणी जी। जाखीने पचवीस । तिहां ए जाव विचारीये जी । श्म जाखे जगदीस ॥ ॥ज ॥ प्रथम बे पास विलोकिये जी। सूत्र अर्थनी दृष्टि । ए पनि लेहण दृष्टिनी जी । करे धर्मनी पुष्टि ॥३॥०॥ समकित मिथ्या मिश्रनी जी। मोहनी तीन नो त्याग । कामराग स्नेह रागनें जी। तज वलि तिम दृष्टिराग ॥४॥ ज० ॥ सीष वधूतक गुरु थकी जी। वाम हाथ करनाउ । नव अखोमा श्रादरो जी । नव पखोमा गमाल ॥ ५ ॥न ॥ देवतत्व गुरुतत्व सुंजी । धर्मतत्व गृहसारः। कुगुरु कुदेव कुधर्म नो जो। तीन तणो परिहार ॥ ज० ॥ ६ ॥ ज्ञान दरसाण चारित्रना जी। संग्रह तीन आचार । तजो विराधना तीन ए जा । एह अर्थ अवधार ॥ ज०॥ ॥ मन वचन कायानी सदा जी। गुपति ग्रही जे सुछ । परिहरीये वलि जाणने जी। तीने दंग विसुछ ॥ ज० ॥ ॥ पमिलेहण पचवीस ए जा । मुहपत्तीनी सार । हिव पहिलेहण अंगनी जी । ते पिण चतुर
For Private And Personal Use Only