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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मती ए। राम ॥ १३ ॥ सासणे या (२०) नारकी सातमी । आगला पांच बगी गया ए । सातमो पंचम नयर । चोथी आवमो नवमो तीजी नारीयें ए ॥ ११ ॥ अचल विजयनें जा । सुप्रनु सुदर्शन । आनंद नंदन सुनमती ए। रामचंग बसना । बलदेव ए नव । आठ थया तिहां सिवगती ए॥१॥ बलज ब्रह्म देव लोक । काल उत्सर्पणी । जास्यें सिव कृष्ण सासणे ए । अथवा निपुलाक नाम । तीर्थकर होस्थे । चवदमो श्म बहु श्रुत जणे ए॥ १३॥ ( ढाल) कुमरपणे प्रभु रहतां काल सुखे गर्ने ए, ए चाल ॥ * ॥ अश्वग्रीवने तारक मेरुक बली मधु तिसा ए निशुल वलय प्रल्हाद रावण जरासिंधु जिसा ए । ए नव प्रति वासुदेव नरक गति गामिया ए।ते पिण नावि जिणेस केई प्रणमुं मुदा ए॥१४॥ (ढाल ५) सफल संसारनी॥ * ॥ .. सांतिने कुंथु अर एह नव एकही । चक्रधर तीर्थकर दोय पदवी सही। बीर वासुदेव अरिहंत नव जूजू था । देह तिण साठ पिण जीव गुण सठ श्रया ॥ १५ ॥ वासुदेव वलीय बलदेव केरा पिता । एक हीज थाय नव एण लेखे बता । तीन चक्रधर तणा मिलिय बारे टट्या । एम वेसठ ना तात इकवन मिट्या ॥ १६॥ तीन चक्रधर तणी टाल दीजे जिसे । माय सहुनी थई साठ लेखे इसे । एह नर रयण नो ध्यान नित जे धरे। तेह सुर पद खही मोद पदवी वरे॥१७॥ (कलश) श्म शुण्या तीर्थकर चक्कीसर वासुदेव बलदेव ए। प्रति वासुदेव सुसेव जेहनी करे सुर नर सेव ए । त्रेस For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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