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(३०) विचार ॥ ॥ ए॥ हास्य श्ररति रति दोयने जी । सुध करो बाम बांह । तजि जय शोक सुगंबना जी। दक्षिण पिण करे साह ॥ ॥१०॥ धुरखी लेश्या तीन ए जी। ते शिरथी-करि दूर । रिद्धि रस शाता गारवो जी। करि मुख थी चकचूर ॥ ॥ ११ ॥ काढसट्य तीन उरकी जी। माया नियाण मिथ्यात । च्यार कासाय बे बगलथी जी। क्रोधादिक करि घात ॥ ज० ॥१२॥ तज षट् काय विराधना जी। चरण बेदुं शुष होय । ए पनि लेहण अंगनी जी। पचवीसे तुं जोय ॥ ज० ॥ १३ ॥श्म पनि खेहण जे करे जी। धरमन ज्ञान विवेक । सकल कर्म दूरे करे जी । पामें सुक्ख अनेक ॥ ज० ॥ १५ ॥ कलश । श्म वीर जिणवर तणा मुख श्री अर्थ गणधर सांजली । कहे सूत्रवाणी मन सुहाणी सुणो नवियण मनरखी। उवज्काय वर सिरि लचिकीरति मुख थकी ए संग्रही। मुहपत्ती पमिलेहण तणी विधि सबिवाल गणि कहि ॥ १५॥ इति श्री मुहपत्ती पनि खेहण स्तवनं
॥ अथ श्री महावीर वीनती लिख्यते ॥ ॥ * ॥ वीर सुणो मोरी बीनती । कर जोमी हो कहुं मन निवात । बालकनी परि वीनतुं । मोरासामी हो तूं त्रिभुवन तात ॥ वी० ॥१॥ तुम दरसण विण हुँ जम्यो । जवमाहें हो सामी समुघ मकार । पुरक अनंता में सह्या । ते कहितां हो किम श्रावे पार ॥ वी० ॥२॥ पर उपगारी तुं अनु। मुख नांजे हो जगदीनदयाल । तिण तोरे चरणे हूं आवीयो। सामी मुझने हो निज नयण निहाल । वी० ॥३॥ अपराधी
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