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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०७) . ॥ अथ वीशस्थानक तप वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥श्री सिद्धाचल भेटीये ए देशी॥ ॥ वीश यांनक तप सेवीए । धर करि सुन्न परिणाम लाल रे। तीजे नव सेव्यो थको । बांधे तीर्थकर नाम साखरे ॥ वी० ॥१॥ तप रचना अधकी कही । ज्ञाता अंग मकार लालरे । सुण जो नवि तुमे नावसुं । चितसें करि ए जच्चार साखरे ॥२॥ सुविहित गुरु पासे ग्रहे । वीशथानक तप एह लालरे । निर दूरषण सुन महुरते । जचरी जे ससनेह लालरे ॥ वी० ॥ ३ ॥ अरिहंत १ सिद्ध २ प्रवचन नमुं॥ सूरि । थिवर ५ उवज्काय ६ । लालरे ॥ साधु ७ नाण ७ दसण ए अरु ॥ विनय १० नमुं नलसाय लालरे ॥ वी ॥ ॥ चारित्र ११ बंन्न १२ क्रियापदे १३ ॥ तप १५ गोयम १५ जिण १६ ईस लाल ॥ चारित्र १७ ॥ झानने १७ श्रुत १ए जणी नमुं तीर्थ २० पद वीश लालरे ॥ वी० ॥ ५ वीश दिवशमें एकही । पद गुणनो करमेव लालरे । अथवा दिन वीशांलगे । वीशे पद गुण मेव लासरे ॥ वी० ॥६॥ एक उली षट् माशमें । पूरी जो नवि होय लालरे । फेर नवी करणी पो । पिछली निष्फल जोय लालरे ॥ ७॥ वी० ॥ अध्म उपवाससुं । अथवा देखी शक्ति लालरे । पोसहकर आराधिये । देववांदे निज नक्ति लालरे ॥ वी० ॥॥ संपूरण पद सेवतां पोसहरो नहीं जोग लालरे । तोही सात पदे सही। पोसह करिए संजोग लालरे ॥ वी० ॥ ए ॥ सूरि थिवर पाठक पदे । साधु चारित्र सुजाण लालरे । गौतम For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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