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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०८ ) तीर्थ पदे सही । सात थानक मन मान लाखरे ॥ वी० ॥१०॥ पद पद दी करे सदा । दोय दोय जाप हजार लाल रे || पकिमणो दोय टंकही । करिए पूजासार लालरे ॥ वी० ॥ ११ ॥ शक्ति मुजब तप कीजीए । एक ठेली करो वीश लालरे । वीशा वीशी च्यारसे । तप संख्या कही एम । लालरे ॥ वी० ॥ १२ ॥ जिस दिन जो पद तप करे । तिसके गुण चितधार लालरे । कालसग्ग परदक्षणा । मुख जलिये नवकार लालरे ॥ वी० || १३ || जिस पदकी स्तवना सुणे । कीजे जनपद नक्ति, बाबरे । पूजन शुन मन साचवे । दिन दिन वढती शक्ति लालारे ॥ वी० ॥ १४ ॥ मृतक जनम तुकालमें | कबि धायो उपवास ला० सो लेखे नहिं लेखवो | निकेवल तप जास लालरे ॥ वी० ॥ १५ ॥ सावज त्यागपणो करे । सोक न धारे चित्त लालरे । शील आभूषण आदरे । मुखसुं बोले सत्य लालरे ॥ वी० ॥ १६ ॥ जेठ आसाढ वैशाखमें । मिगसर फागुण मांह लालरे । ए षट् मास मांहिनें । व्रत ग्रहि ए वक जाग लालरे || वी० ॥ १७ ॥ तप पूरण हुवां rai | जणो निरधार लालरे । कीजे शक्ति विचारीनें । व विविध प्रकार लालरे ॥ वी० ॥ १८ ॥ वीसवीस गिणती ता । पुस्तक पूवा आदि लालरे । ज्ञान ती पूजा करे । मुंकी जे हव वाद लालरे ॥ वी० ॥ १९ ॥ फलवधी नगरनी श्राविका कधी विधि चित लाय लालरे । जनम सफल करवा जणी हिज मोह उपाय लालरे | वी० ॥ २० ॥ ( कलश | ) इम वीर जिनवरतणी आज्ञा धार चित्त मऊारए । सदु देख For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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