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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०६) ॥४॥ आदीश्वर अलवेसरु हो राज थां० पूर्व निवाणु वार रायण पगला उव्या हो राज रा थांग ॥ ५॥ कातिपूनम दश कोमसुं हो राजा थांग शिवसुख पाम्या सार प्राविम्बारि खिबजी हो राज प्रा० ॥६॥श्म अनेक मुनि इहां हो राज थांसिधिबधु जरतार थयागिरि फरशतां हो राजा थां० ॥ ७॥ पूरव पुन्यपसाजले हो राज थां० सफल फली सङ श्रास जात्रा विधिसुं करी हो राज जा० थां० ॥ ७॥ रतनपुरीथी आवीया हो राज० श्रां० आनंदकुंवर शुन्न लाव लाल लिधो घणो हो राज ला० श्रां ॥ ए॥ चतुरा चोमासो रह्या हो राजा श्रां जगवति सुण्यो नले नाव, नपधांन तप आदर्यो हो राज न० श्रां ॥ १० ॥ जनवरंग वधामणां हो राज थां० वरत्या जयजयकार सुगुरु सुपसायथी हो राज सु० श्रां ॥ ११ ॥ खरतर वसी छिपा वसी हो राज यां० साकरउजूम हेम प्रेम वालावसी हो राज प्रे० श्रां ॥ १५ ॥ मोती विमल बसी आवीया हो राज थां० ललकाकोल सिद्ध सिला सिबम फरसीया हो राज सि श्रां ॥ १३ ॥ सुनजगणीसे सित्तरे हो राज थां० पोसदशमी सुविदित आनंद सुख पामीया हो राजा आं यां ॥ १४॥ जव जव चाहूं चाकर हो राज थां० प्रन्नु चरणांरी नित्त कृपाचंड वीनवे हो राज कृत थां० श्री सिघाचल शिखरे षन जले नेटिया हो राज ॥ १५ ॥ इति सिघाचल स्तवन संपूर्ण For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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